मूर्ति पूजा क्या है? (What is Worship of Idols)
मूर्ति पूजा के अंतर्गत अंध श्रद्धालुओं को कई प्रावधान बताए गए हैं:-
श्री विष्णु जी, श्री शिव जी, श्री देवी दुर्गा माता जी, श्री गणेश जी, श्री लक्ष्मी जी, श्री पार्वती जी तथा अन्य लोक प्रसिद्ध देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा यानि उनको प्रतिदिन स्नान करवाना, नए वस्त्र पहनाना, तिलक लगाना, उन पर फूल चढ़ाना, अच्छा भोजन बनाकर उनके मुख को भोजन लगाकर भोजन खाने की प्रार्थना करना। दूध पिलाना, अगरबत्ती व ज्योति जलाकर उनकी आरती उतारना। उनसे अपने परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के लिए प्रार्थना करना। नौकरी-रोजगार, संतान व धन प्राप्ति के लिए अर्ज करना आदि-आदि तथा शिव जी के लिंग (च्तपअंजम च्ंतज) यानि गुप्तांग की पूजा करना। उस लिंग पर दूध डालना, उसके ऊपर ताम्बे या पीतल का स्टैंड रखकर ताम्बे या पीतल का घड़ा (छोटी टोकनी) के नीचे तली में बारीक छेद करके पानी से भरकर रखना जिससे लगातार लिंग के ऊपर शीतल जल की धारा गिरती रहती है। यह मूर्ति पूजा है।
निवेदन:- श्रीमद्भगवत गीता के अध्याय 16 श्लोक 23-24 में स्पष्ट निर्देश है कि जो साधक शास्त्रों में वर्णित भक्ति की क्रियाओं के अतिरिक्त साधना व क्रियाऐं करते हैं, उनको न सुख की प्राप्ति होती है, न सिद्धि यानि आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है, न उनको गति यानि मोक्ष की प्राप्ति होती है अर्थात् व्यर्थ पूजा है। वह नहीं करनी चाहिए क्योंकि साधक इन तीन लाभों के लिए ही परमात्मा की भक्ति करता है। इसलिए वे धार्मिक क्रियाऐं त्याग देनी चाहिऐं जो गीता तथा वेदों जैसे प्रभुदत्त शास्त्रों में वर्णित नहीं है। उपरोक्त मूर्ति पूजा का वेदों तथा गीता में उल्लेख न होने से शास्त्रविरूद्ध साधना है।
विशेष:- यहाँ पर कुछ तर्क देना अनिवार्य समझता हूँ:-