मंशूर अली का शब्द

अगर है शौक अल्लाह से मिलने का, तो हरदम नाम लौ लगाता जा।।(टेक)।।
न रख रोजा, न मर भूखा, न कर सिजदा।
वजू का तोड़ दे कूजा, शराबे नाम जाम पीता जा।।1।।
पकड़ कर ईश्क का झाड़ू, साफ कर दिल के हूजरे को।
दूई की धूल रख सिर पर, मूसल्ले पर उड़ाता जा।।2।।
धागा तोड़ दे तसबी, किताबें डाल पानी में।
मसाइक बनकर क्या करना, मजीखत को जलाता जा।।3।।
कहै मन्सूर काजी से, निवाला कूफर का मत खा।
अनल हक्क नाम बर हक है, यही कलमा सुनाता जा।।4।।

अर्थात् अल्लाह कबीर (अल-खिज्र व जिंदा वेशधारी) से ज्ञान सुनने के बाद पता चल जाता है कि जो साधना वर्तमान में समाज में की जा रही है, यह तो सामान्य लाभ देती है। मोक्ष तो सूक्ष्मवेद के ज्ञान में बताई इबादत से ही संभव है। जिस कारण से परंपरागत इबादत (पूजा) छोड़कर सत्य भक्ति करनी होती है जो समाज के अन्य लोगों को अच्छा नहीं लगता। वे भयंकर विरोध करते हैं। जान के दुश्मन बन जाते हैं। यही कारण था भक्त मंशूर जी को मारने का। परंतु भक्त मरते नहीं। जब मंशूर जी को दृढ़ विश्वास हुआ कि पूर्व वाली साधना {रोजे (व्रत) रखना, अजान (बंग देना) लगाना, नमाज अदा करना, बकरी-बकरा, गाय आदि जब्ह (कत्ल) करना} मोक्ष प्राप्ति के लिए सहयोगी नहीं है और पर्याप्त भी नहीं है। नरक का मार्ग है। तब उसने अपने ही धर्म के प्रचारकों को समझाना चाहा और कहा कि हे काजी! यदि आपको अल्लाह से मिलने का शौक (इच्छा) है तो प्रत्येक श्वांस-उश्वांस में सच्चे नाम का जाप (लौ लगाकर) ध्यान लगाकर किया कर। (रोजा) व्रत करना त्याग दे। भूखा मरने से अल्लाह नहीं मिलता। जो तुम (वजू) स्नान आदि किए बिना धार्मिक क्रिया करना पाप मानते हो, यह मात्र भ्रम है। स्नान के लिए जल लाने वाले (कूजे) टोकने यानि मटके को फोड़कर कहीं डाल दे अर्थात् नहाने-धोने के चक्कर में ही ना लगा रह यानि शरीर के ऊपर की सफाई से ही मोक्ष प्राप्ति की साधना सफल नहीं होती। उसके लिए दिल (पाक) शुद्ध होना चाहिए। नाम जाप करने का नशा कर यानि नाम जाप (वाली शराब पीया कर) का नशा कर। अल्लाह से गहरा प्रेम (ईश्क) कर। इस (ईश्क) प्रेम की झाड़ू से दिल का मैल (दोष) साफ कर। (दूई) ईष्र्या का नाश कर, सच्चा भक्त बन। जो माला ले रखी है, यथार्थ नाम की साधना नहीं कर रहा है। इस माला (तसबी) को तोड़ दे। जो तुम किताबों (कुरआन मजीद, जबूर, तौरेत, इंजिल) को पढ़ते हो, इसी से मोक्ष होना मानते हो, यह तुम्हारी धारणा गलत है। इसलिए कहा है कि इन किताबों को जल प्रवाह कर दो। प्रभु प्राप्ति के लिए अहंकार को जला दे यानि अभिमान करना त्याग दे। मंशूर जी ने काजी से कहा कि जीव हिंसा (गाय-बकरा आदि को मारना) करना त्याग दे। यह (कुफर) पाप न कर। अनल हक्क नाम सच्चा मोक्ष मंत्र है। यही कलमा पढ़।

रूमी को अल्लाह कबीर समस्तरबेज के वेश में मिले थे। जो मंशूर अली को मिले, वे समस्तरबेज मुसलमान सूफी संत थे। कुछ पुस्तकों में उल्लेख यह भी है कि परमात्मा कबीर ने गुप्त प्रेरणा करके समस्तरबेज के मन में आश्रम त्याग जाने की इच्छा उत्पन्न की क्योंकि उस नगरी में समस्तरबेज का विरोध बहुत बढ़ गया था। समस्तरबेज के आश्रम छोड़कर निकलते ही स्वयं कबीर जी ही समस्तरबेज के वेश में आश्रम में रहने लगे। वहाँ से अपने हंस मंशूर को निकालना था। वहाँ के राजा तथा प्रजा के घोर विरोध के बाद समस्तरबेज वेशधारी अल खिज्र अपने शागिर्द शहजादे मुहम्मद (मंशूर का नाम बदलकर मुहम्मद रख लिया था) को साथ लेकर हिन्दुस्तान (वर्तमान में पाकिस्तान) के शहर मुलतान में आ गए। सतगुरू समस्तरबेज तथा शहजादे मुहम्मद ने मुलतान शहर में अपना डेरा लगाया। उनके ज्ञान को सुनकर कुछ अच्छी आत्माएँ उनके अनुयाई बन गए। परंतु इस्लाम के विरूद्ध भक्ति क्रिया होने के कारण वहाँ के व्यक्तियों ने घोर विरोध करना शुरू कर दिया। जो अनुयाई बने थे, उनका भी आश्रम में जाना बंद कर दिया। समस्तरबेज के पास ईंधन समाप्त हो गए। उन्होंने शहजादे से कहा कि इस आटे की एक ही मोटी रोटी बनाकर शहर में ले जा। किसी के घर से रोटी पका ला। शहजादा कच्ची रोटी लेकर शहर में गया। किसी ने रोटी नहीं सेकी। उल्टा मुहम्मद के मुख पर चोट मारकर जख्मी कर दिया। बिना रोटी पकाये शागिर्द वापिस आया और सतगुरू जी को बताया कि लोगों ने मेरा यह हाल कर दिया। रोटी भी नहीं सेकी (पकाई)। तब समस्तरबेज ने रोटी को हाथ पर रखकर सूरज (sun) की ओर मुख करके कहा कि यहाँ आकर मेरी बाटी सेक (पका)। उसी समय सतगुरू जी के हुक्म से सूरज जमीन के करीब आने लगा। गर्मी इतनी बढ़ गई कि मुलतान शहर भठ्ठी बन गया। पूरा मुलतान शहर जलने लगा। दर तथा दीवार तपने लगे। कुछ समझदार लोग सतगुरू की खिदमत में पेश हुए और क्षमा याचना की। कहा कि कुछ नादान लोगों के कर्म की सजा पूरे मुलतान को मत दीजिए।

सतगुरू ने कहा कि ये लोग नादान नहीं दुष्ट हैं। इन्होंने आग जैसी सस्ती वस्तु भी संतों को देने से मना कर दिया। इस बच्चे का मुँह फोड़ दिया। करबद्ध खड़े लोगों ने कहा कि ये आपकी शक्ति से वाकिफ नहीं हैं। खुदा के लिए इन्हें माफ कर दो। यह सुनकर सतगुरू समस्तरबेज ने कहा कि तुम खुदा को बीच में ले आए हो तो माफ कर देता हूँ। सूरज की ओर नजर करके कहा कि अपनी गर्मी कम कर दें। पता नहीं ये लोग दोजख की आग कैसे सहन करेंगे? इतना कहते ही सूरज वापिस अपने स्थान पर चला गया। उसके पश्चात् मुलतान के व्यक्ति भक्त बनने लगे। सतगुरू कबीर जी जो समस्तरबेज का अभिनय कर रहे थे। उन्होंने अपनी योजना के तहत कुछ दिन मौन धारण किया क्योंकि समस्तरबेज अपने शिष्य मंशूर के साथ हुए घोर-विरोध व अत्याचार को देखकर मौन हो गए थे। समस्तरबेज रूप में कबीर जी भी कई दिनों से मौन धारण किए हुए थे। प्रतिदिन की तरह सुबह सैर करने गए। लौटे नहीं। उसी दिन असली समस्तरबेज उस आश्रम में आ गया जो मौनी हो गया था। आते ही शरीर त्याग दिया। लोगों को आज तक इस राज का पता नहीं है। समस्तरबेज के शरीर को कब्र में दफना दिया गया। सन् 1329 में यादगार बना दी। सन् 1398.1518 तक एक सौ बीस वर्ष काशी (भारत) में कबीर परमेश्वर जी ने लीला की। उस समय कमाली बालिका कब्र से निकलवाकर जीवित की थी। जवान होने पर कमाली को जब उपरोक्त हकीकत का पता चला तो उसे देखने की प्रबल इच्छा की। सतगुरू से निवेदन किया। कमाली का विवाह उसी मुलतान शहर में भक्त के घर कर दिया। संत गरीबदास जी ने कहा है कि:-

गरीब, सतगुरू समस्तरबेज कूं, बाटी धरिया हाथ।
सूरज कूं सेकी जहां, तेजपुंज का गात।।

अर्थात् सतगुरू सतस्तरबेज ने कच्ची रोटी (बाटी) हाथ पर रखकर सूरज से सेकने (पकाने) के लिए कहा। उसी समय सूरज धरती के निकट आ गया। उस समय समस्तरबेज रूपधारी सतगुरू का शरीर तेजपुंज में बदल गया। नूरी शरीर दिखाई देने लगा। सूरज की गर्मी से वह रोटी खाने योग्य पक गई।

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