छठी किस्त

राधा स्वामी पंथ की कहानी-उन्हीं की जुबानी: जगत गुरु

(धन-धन सतगुरु, सच्चा सौदा तथा जय गुरुदेव पंथ भी राधास्वामी की शाखाएं हैं)

(छठी किस्त)
(23 अप्रैल 2006 को पंजाब केसरी में प्रकाशित)
(---- गतांक से आगे)

पूर्ण सन्त की पहचान (2)

नानक साहेब जी कहते हैं:-

सोई सतगुरू पूरा कहावै। दोय अख्खर का भेद बतावै।।
एक छुड़ावै एक लखावै। तो प्राणी निज घर जावै।।

गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में उस पूर्ण परमात्मा (सतपुरूष) की साधना का भी संकेत दिया है। कहा है कि उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का तो केवल ॐ-तत्-सत् इस तीन मन्त्र के जाप का निर्देश है। जिसका तीन विधि से स्मरण किया जाता है। यही साधना साधक जन सृष्टि के प्रारम्भ में करते थे। तीन मन्त्र के स्मरण की विधि तत्वदर्शी(पूर्ण) सन्त बताएगा। क्योंकि गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि पूर्ण परमात्मा के विषय में तत्वदर्शी सन्त से पूछो।

ओम् शब्द- यह ब्रह्म (क्षर पुरूष) का जाप है। तत् शब्द यह परब्रह्म का जाप है। यहाँ तत् शब्द सांकेतिक है। जो यह दास केवल उपदेशी को ही बताएगा।

ओम्+तत् (सांकेतिक) मिलकर सतनाम (दो अक्षर का मन्त्र) बनता है तथा सत् शब्द (सांकेतिक) तीसरा मन्त्र है इसे सारनाम भी कहते हैं। इसी को आदि नाम भी कहते हैं। जो गुप्त है उसको पूर्ण सन्त ही बताएगा जो स्मरण करने का है। ओम मन्त्र का जाप काल (ब्रह्म) के ऋण से मुक्त कराएगा (काल से छुड़वाएगा) तथा दूसरा तत् (सांकेतिक) परब्रह्म का मन्त्र है। जिसका जाप परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्डों को पार करने का किराया है। यह भंवर गुफा तक पहुँचाएगा अर्थात पूर्ण परमात्मा को दिखाएगा (लखाएगा) तथा तीसरा मन्त्र सारनाम पूर्ण परमात्मा के सतलोक में स्थाई करेगा। फिर साधक का जन्म-मृत्यु सदा के लिए समाप्त हो जाएगा। सतलोक में पूर्ण परमात्मा अर्थात् सतपुरूष मानव सदृश आकार में है। जिसके एक रोम कूप की शोभा करोड़ सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है। जीव आत्मा भी साकार मानव सदृश शरीर में रहती है तथा आत्मा के शरीर का प्रकाश सोलह सूर्यों के प्रकाश के समान है। आत्मा अपने साकार परमात्मा के सिर पर चंवर करती है (प्रमाण कबीर परमेश्वर की अमृतवाणी शब्द ‘कर नैनों दीदार महल में प्यारा है’ जो सन्तमत प्रकाश भाग-3 के प्रथम पृष्ठ पर लिखा है)।

राधास्वामी पन्थ तथा धन-धन सतगुरू पंथ वाले सन्तों का कहना है कि सतलोक में तो केवल प्रकाश ही प्रकाश है। सतपुरूष निराकार है। आत्मा सतलोक में जा कर परमात्मा में ऐसे समा जाती है जैसे बूंद समुंद्र में समा जाती है। परमात्मा और आत्मा का भिन्न अस्तित्व नहीं रहता। जबकि वास्तविकता ऊपर वर्णित है वह सही है जो परमात्मा पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) ने स्वयं बताई है। मुझ दास को अपनी कृपा से दर्शन कराए हैं।

उपरोक्त सतनाम जो दो अक्षर (ओम् तत् सांकेतिक) के योग से बनता है का उदाहरण स्वयं श्री सावन सिंह जी महाराज (जो श्री खेमामल उर्फ शाहमस्ताना जी के गुरु जी है। शाहमस्ताना जी ने धन-धन सतगुरु सच्चा सौदा सिरसा में स्थापित किया है) ने पुस्तक संतमत प्रकाश भाग-4 के पृष्ठ 261-262 पर लिखा है। परन्तु स्वयं ज्ञान नहीं है, ग्रंथ साहेब का प्रमाण लिया है। नानक साहेब कहते हैं कि -

सोई सतगुरु पूरा कहावै, दोय अख्खर का भेद बतावै। एक छुड़ावै एक लखावै, तो प्राणी निज घर जावै।

फिर कहते हैं - जे तू पढ़या पंडित बीना दोय अख्खर दुयनावां। प्रणवत नानक एक लंघाए जे कर सच्च समावां। (आदि गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ 1171)

फिर कबीर परमेश्वर जी की वाणी का प्रमाण दिया है:- कह कबीर अक्षर दुय भाख। होयगा खसम त लेयगा राख। (आदि गुरु ग्रन्थ पृष्ठ 329)

फिर लिखा है:- ओम् शब्द, सोहं शब्द, सतशब्द

विचार करें:- उपरोक्त मंत्र पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति तथा सतलोक निवास के हैं जिसका पवित्र गीता जी में तथा पवित्र अमृत वाणी कबीर साहेब तथा प्रभु प्राप्त संतों की अमृतवाणी में भी प्रमाण है। परंतु राधास्वामी पंथ तथा धन-धन सतगुरु पंथ तथा जयगुरुदेव तथा दिनोंद भिवानी आदि राधास्वामी वाले पंथों के संतों को ज्ञान नहीं है। सतनाम जो दो अक्षर के योग से बनता है उस के विषय में गोल-मोल लिख दिया कि ये आगे पारब्रह्म में हैं तथा एक अक्षर (सारनाम) के विषय में लिखा है कि वह भी पारब्रह्म में मिलेगा। स्वयं वे ‘‘ज्योति निरंजन’’, ‘‘औंकार’’, ‘‘ररंकार’’, ‘‘सोहं’’ तथा ‘‘सतनाम’’ ये पांच नाम देते हैं तथा धन-धन सतगुरू सच्चा सौदा वाले सन्त पहले तो यही पांच नाम देते थे अब, ‘‘सतपुरुष’’, ‘‘अकाल मूर्ति’’, ‘‘शब्द स्वरूपी राम’’ ये अन्य तीन नाम देते हैं। दिनोंद भिवानी वाले ताराचन्द जी महाराज वाला पंथ केवल ‘‘राधास्वामी’’ नाम देता है, स्वयं दो अख्खर के वास्तविक मंत्र से अपरिचित हैं।

इसलिए कबीर परमेश्वर की अमृतवाणी तथा श्री नानक जी की अमृतवाणी के आधार से जो दो अक्षर का भेद नहीं जानता वह पूरा गुरु (पूर्ण संत) नहीं है। इससे सिद्ध हुआ कि राधा स्वामी पंथ तथा धन-धन सतगुरू-सच्चा सौदा पंथ तथा श्री ठाकुर सिंह, श्री कृपाल सिंह तथा जय गुरूदेव मथुरा वाले तथा दिनोद भिवानी वाले राधास्वामी के सन्त जी पूर्ण सन्त नहीं हैं क्योंकि उनको दो अक्षर का ज्ञान नहीं है।

पुस्तक सन्तमत प्रकाश भाग-4 पृष्ठ 262 में लिखा है सतनाम हमारी जाति है, सतपुरूष हमारा धर्म है, सच्चखण्ड(सतलोक) हमारा देश है। यहाँ पर सतनाम, सतपुरूष, सच्चखण्ड तीनों को भिन्न-2 बताया है। इसी पुस्तक के पृष्ठ 21 पर सतनाम को स्थान कहा है। पुस्तक सारवचन वार्तिक प्रथम भाग के वचन 4 में सतनाम, सच्चखण्ड, सतपुरूष, सारशब्द, सतशब्द को एक बताया है। क्या ये विचार परम सन्त के हो सकते हैं? {कृप्या पढ़ें सन्तमत प्रकाश भाग-4 पृष्ठ 261-262 से फोटो कापी इसी पुस्तक (सच्चखण्ड का संदेश) के पृष्ठ 109-110 पर}

अधूरे सन्तों के विषय में पूज्य कबीर परमेश्वर जी कहते हैंः-

सतगुरू बिन काहु न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुस छिड़ै मूढ किसाना।
सतगुरू बिन बेद पढें जो प्राणी, समझे ना सार रहे अज्ञानी।

वस्तु कहीं खोजे कहीं, किस विद्य लागे हाथ।
एक पलक में पाईए, भेदी लिजै साथ।

एक समय एक व्यक्ति की अचानक मृत्यु हो गई। उसने बहुत सारा धन जमीन में दबा रखा था। उस का विवरण एक बही (पैड) में लिखा था जो सांकेतिक था। उस व्यक्ति ने अपने मकान के एक कोने में मन्दिर बनवा रखा था। बही में लिखा था चाँदनी चैदस रात्रि के बारह बजे मन्दिर के गुमज में सर्व धन दबा रखा है। लड़कों ने रात्रि में मन्दिर का गुमज फोड़ा। उसमें कुछ नहीं पाया। उनके पिता का एक दोस्त दूसरे गांव में रहता था। बच्चों ने उसको सर्व विवरण बताया तथा कहा कि पिता जी ने झूठ लिखा है। मन्दिर के गुमज में धन नहीं मिला। पिता जी के दोस्त ने उस लेख को पढ़ा तथा कहा कि आप मन्दिर के गुमज का पुनर् निर्माण करवाएं। मन्दिर के गुमज का पुनर् निर्माण होने के पश्चात् चांदनी चैदस (शुद्धि चतुर्दशी) को रात्रि के बारह बजे जहां पर गुमज की छाया थी उस स्थान को खोदा गया तो सर्व धन मिल गया।

अपने सद्ग्रन्थों में प्रभु ज्ञान का अपार धन छुपा है जो सांकेतिक है। वह पूर्ण संत (तत्वदर्शी संत) के बिना किसी को नहीं मिला। इसीलिए राधास्वामी तथा धन-धन सतगुरू वाले पंथों के सन्तों ने श्रद्धालुओं को भ्रमित कर दिया कि वेद तथा गीता आदि शास्त्र तो व्यर्थ हैं। कबीर परमेश्वर तो कहते हैं:-

वेद कतेब झूठे नहीं भाई, झूठे हैं जो समझे नाहीं।

भावार्थ है कि वेद तथा गीता जी व र्कुआन झूठे नहीं हैं। जो इन्हें समझ नहीं सके वे अज्ञानी हैं। राधास्वामी तथा धन-धन सतगुरू-सच्चा सौदा वाले पंथों के सन्त जी कहते हैं कि गीता व वेदों में पूर्ण परमात्मा का ज्ञान नहीं है। स्वयं लोक वेद (दंत कथाओं) के आधार पर ढेर सारी पुस्तकंे रच कर गलत ज्ञान प्रचार कर डाला। अब श्रद्धालुओं को शास्त्रों का ज्ञान समझाना कठिन हो रहा है। वर्तमान में मुझ दास को पूर्ण परमात्मा ने आप सर्व प्रभु प्रेमियों को छुपा धन बताने भेजा है। कृप्या अविलम्ब प्राप्त करें। वर्तमान में दो अक्षर से बने ‘‘सतनाम’’ का तथा एक अक्षर ‘‘सारनाम’’ का केवल मुझ दास (रामपाल दास) ही को दान करने का अधिकार पूज्य गुरूदेव तथा परमात्मा कबीर साहेब ने स्वयं प्रदान किया है। मुझ दास से विमुख एक-दो पापात्माऐं तीनों मंत्रों को प्राप्त करके स्वयंभू गुरू बन कर नाम दान करने लगे हैं। वे अधिकारी नहीं। उन्हें भक्त समाज के पक्के दुश्मन जानना। न तो वे स्वयं पार हो सकते हैं तथा न ही उनसे उपदेश प्राप्त भक्तजन पार हो सकते हैं। ऐसे ही लालची व्यक्तियों ने परमात्मा कबीर जी के साथ भी धोखा किया था जो अभी तक तत्वज्ञान समझने में बाधक सिद्ध हो रहा है। उनके तो दर्शन करना भी पाप है। जिनके विषय में ‘‘परमेश्वर का सार संदेश’’ पुस्तक के अध्याय पन्द्रह में ‘‘शंका समाधान विषय’’ में विस्तृत वर्णन है। एक समय में सन्त एक ही होता है वह पूरे विश्व को नाम देकर पार कर सकता है। जैसे परमपूज्य कबीर परमेश्वर जी काशी में आए थे उस समय पूरे विश्व में अकेले ही नाम दान करते थे। उनके चैसठ लाख शिष्य सर्व धर्मों के हुए थे। अपने रहते उन्होंने कोई उत्तराधिकारी नहीं बनाया था। इसलिए नकली संतों से सावधान रहें।

किस्त संख्या चार तथा किस्त संख्या छः के प्रमाणों से आपजी को स्पष्ट हुआ कि पूर्ण संत की क्या पहचान है ?

‘‘कैसे मिले भगवान?’’
शेष अगले अंक में ----------------

(पुस्तक ‘संतमत प्रकाश‘ भाग-4 पृष्ठ 261 से फोटो काॅपी)

(पुस्तक ‘संतमत प्रकाश‘ भाग-4 पृष्ठ 262 से फोटो काॅपी)

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