हजरत मुहम्मद जी का जीवन चरित्र
‘‘हजरत मुहम्मद के बारे में श्री मुहम्मद इनायतुल्लाह सुब्हानी के विचार’’
जीवनी हजरत मुहम्मद(सल्लाहु अलैहि वसल्लम)
लेखक हैं - मुहम्मद इनायतुल्लाह सुब्हानी,
मूल किताब - मुहम्मदे(अर्बी) से, अनुवादक - नसीम गाजी फलाही,
प्रकाशक - इस्लामी साहित्य ट्रस्ट प्रकाशन नं. 81 के आदेश से प्रकाशन कार्य किया है।
मर्कजी मक्तबा इस्लामी पब्लिशर्स, डी-307, दावत नगर, अबुल फज्ल इन्कलेव जामिया नगर, नई दिल्ली-1110025,
श्री हाशिम के पुत्र शौबा थे। उन्हीं का नाम अब्दुल मुत्तल्लिब पड़ा क्योंकि जब मुत्तलिब अपने भतीजे शौबा को अपने गाँव लाया तो लोगों ने सोचा कि मुत्तलिब कोई दास लाया है। इसलिए श्री शौबा को श्री अब्दुल मुत्तलिब के उर्फ नाम से अधिक जाना जाने लगा। श्री अब्दुल मुत्तलिब को दस पुत्र प्राप्त हुए। किसी कारण से अब्दुल मुत्तलिब ने अपने दस बेटों में से एक बेटे की कुर्बानी अल्लाह के निमित देने का प्रण लिया।
देवता को दस बेटों में से कौन सा बेटा कुर्बानी के लिए पसंद है। इसके लिए एक मन्दिर(काबा) में रखी मूर्तियों में से बड़े देव की मूर्ति के सामने दस तीर रख दिए तथा प्रत्येक पर एक पुत्र का नाम लिख दिया। जिस तीर पर सबसे छोटे पुत्र अब्दुल्ला का नाम लिखा था वह तीर मूर्ति की तरफ हो गया। माना गया कि देवता को यही पुत्र कुर्बानी के लिए स्वीकार है। श्री अब्दुल्ला(नबी मुहम्मद के पिता) की कुर्बानी देने की तैयारी होने लगी। पूरे क्षेत्र के धार्मिक लोगों ने अब्दुल मुत्तल्लिब से कहा ऐसा न करो। हाहाकार मच गया। एक पुजारी में कोई अन्य आत्मा बोली। उसने कहा कि ऊंटों की कुर्बानी देने से भी काम चलेगा। इससे राहत की स्वांस मिली। उसी शक्ति ने उसके लिए एक अन्य गाँव में एक औरत जो अन्य मन्दिरों के पुजारियों की दलाल थी के विषय में बताया कि वह फैसला करेगी कि कितने ऊंटों की कुर्बानी से अब्दुल्ला की जान अल्लाह क्षमा करेगा। उस औरत ने कहा कि जितने ऊंट एक जान की रक्षा के लिए देते हो, अन्य दस और जोड़कर तथा अब्दुल्ला के नाम की पर्ची तथा दस ऊंटों की पर्ची डाल कर जाँच करते रहो। जब तक ऊंटों वाली पर्ची न निकले, तब तक करते रहो। इस प्रकार दस.2 ऊंटों की संख्या बढ़ाते रहे तब सौ ऊंटों के बाद ऊंटों की पर्ची निकली, उस से पहले अब्दुल्ला की पर्ची निकलती रही। इस प्रकार सौ ऊटों की कुर्बानी(हत्या) करके बेटे अब्दुल्ला की जान बचाई। जवान होने पर श्री अब्दुल्ला का विवाह भक्तमति आमिनी देवी से हुआ। जब हजरत मुहम्मद माता आमिनी जी के गर्भ में थे पिता श्री अब्दुल्ला जी की मृत्यु किसी दूर स्थान पर हो गई। वहीं पर उनकी कब्र बनवा दी। जिस समय बालक मुहम्मद की आयु छः वर्ष हुई तो माता आमिनी देवी अपने पति की कब्र देखने गई थी। उसकी भी मृत्यु रास्ते में हो गई। छः वर्षीय बालक मुहम्मद जी यतीम (अनाथ) हो गए। (उपरोक्त विवरण पूर्वोक्त पुस्तक ‘जीवनी हजरत मुहम्मद‘ पृष्ठ 21 से 29 तथा 33-34 पर लिखा है)।
हजरत मुहम्मद जी जब 25 वर्ष के हुए तो एक चालीस वर्षीय विधवा खदीजा नामक स्त्राी से विवाह हुआ। खदीजा पहले दो बार विधवा हो चुकी थी। तीसरी बार हजरत मुहम्मद से विवाह हुआ। वह बहुत बड़े धनाङ्य घराने की औरत थी।(यह विवरण पूर्वोक्त पुस्तक के पृष्ठ 46, 51-52 पर लिखा है)। हजरत मुहम्मद जी को संतान रूप में खदीजा जी से तीन पुत्र तथा चार बेटियाँ प्राप्त हुई। तीनों पुत्र 1. कासिम, 2. तय्यब 3. ताहिर आप (हजरत मुहम्मद जी) की आँखों के सामने मृत्यु को प्राप्त हुए। केवल चार लड़कियां शेष रहीं। (पूर्वोक्त पुस्तक के पृष्ठ 64 पर यह उपरोक्त विवरण लिखा है)। एक समय प्रभु प्राप्ति की तड़फ में हजरत मुहम्मद जी नगर से बाहर एक गुफा में साधना कर रहे थे। एक जिबराईल नामक फरिश्ते ने हजरत मुहम्मद जी का गला घोंट-2 कर बलात् र्कुआन शरीफ का ज्ञान समझाया। हजरत मुहम्मद जी को डरा धमका कर अव्यक्त माना जाने वाले प्रभु का ज्ञान दिया गया। उस जिबराईल देवता के डर से हजरत मुहम्मद जी ने वह ज्ञान याद किया। इस प्रकार मुहम्मद साहेब जी को काल के भेजे फरिश्ते द्वारा इस ज्ञान को जनता में बताने को बाध्य किया गया। हजरत मुहम्मद जी ने अपनी पत्नी खदीजा जी को बताया कि मैं जब गुफा में बैठा था तो एक फरिश्ता आया। उसके हाथ में एक रेशम का रूमाल था। उस पर कुछ लिखा था। फरिश्ते ने मेरा गला घोंट कर कहा इसे पढ़ो। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे प्राण निकलने वाले हैं। पूरे शरीर को भींच कर जबरदस्ती मुझे पढ़ाना चाहा। ऐसा दो बार किया। तीसरी बार फिर कहा पढ़ो, मैं अशिक्षित होने के कारण नहीं पढ़ पाया। अब की बार मुझे लगा कि यह और ज्यादा पीड़ा देगा। मैंने कहा क्या पढूं। तब उसने मुझे र्कुआन की एक आयत पढ़ाई। (यह विवरण पूर्वोक्त पुस्तक के पृष्ठ 67 से 75 तक लिखा है तथा पृष्ठ 157 से 165 तक लिखा है)। फरिश्ते जिबराईल ने नबी मुहम्मद जी का सीना चाक किया उसमें शक्ति उड़ेल दी और फिर सील दिया तथा एक खच्चर जैसे जानवर पर बैठा कर ऊपर ले गया। वहाँ नबियों की जमात आई, उनमें हजरत मुसा जी, ईसा जी और इब्राहीम जी आदि भी थे। जिनको हजरत मुहम्मद जी ने नमाज पढाई। वहाँ हजरत आदम जी भी थे जो कभी हँस रहे थे और कभी रो रहे थे।
फरिश्ते जिबराईल ने हजरत मुहम्मद जी को बताया यह बाबा आदम जी हैं। रोने तथा हँसने का कारण था कि दाईं ओर स्वर्ग में नेक संतान थी जो सुखी थी जिसे देख कर बाबा आदम हँस रहे थे तथा बाईं ओर निकम्मी संतान नरक में कष्ट भोग रही थी, जिसे देखकर रो रहे थे। जिसके कारण बाबा आदम ऊपर के लोक में भी पूर्ण सुखी नहीं थे।
फिर सातवंे आसमान पर गए। पर्दे के पीछे से आवाज आई की प्रति दिन पचास नमाज किया करे। वहाँ से पचास नमाजों से कम करवाकर केवल पाँच नमाज ही अल्लाह से प्राप्त करके नबी मुहम्मद वापिस आ गए।
(पृष्ठ नं. 307 से 315) हजरत मुहम्मद जी द्वारा मुसलमानों को कहा कि खून-खराबा मत करना, ब्याज तक भी नहीं लेना तथा 63 वर्ष की आयु में सख्त बीमार होकर तड़पते-2 भी नमाज की तथा घर पर आकर असहनीय पीड़ा में सारी रात तड़फ कर प्राण त्याग दिए।
(पृष्ठ नं. 319) बाद में उत्तराधिकारी का झगड़ा पड़ा। फिर हजरत अबू बक्र को खलीफा चुना गया।
शेखतकी पीर ने बताया कि अल्लाह तो सातवें आसमान पर रहता है वह तो निराकार है। कबीर जी ने कहा शेख जी एक ओर तो आप भगवान को निराकार कह रहे हो। दूसरी ओर प्रभु को सातवें आसमान पर एक देशीय सिद्ध कर रहे हो। जब परमात्मा सातवें आसमान पर रहता है तो वह साकार हुआ। शेखतकी से उपरोक्त जीवन परिचय हजरत मुहम्मद साहेब जी का सुनकर परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा शेखतकी जी आपने बताया कि हजरत मुहम्मद जी जब माता के गर्भ में थे उस समय उनके पिता श्री अब्दुल्लाह जी की मृत्यु हो गई, छः वर्ष के हुए तो माता जी की मृत्यु। आठ वर्ष के हुए तो दादा अब्दुल मुत्तलिब चल बसा। यतीमी का जीवन जीते हुए हजरत मुहम्मद जी की 25 वर्ष की आयु में शादी दो बार पहले विधवा हो चुकी 40 वर्षीय खदीजा से हुई। तीन पुत्र तथा चार पुत्रियाँ संतान रूप में हुई।
हजरत मुहम्मद जी को जिबराईल नामक फरिश्ते ने गला घोंट-घोंट कर जबरदस्ती डरा धमका कर र्कुआन शरीफ (मजीद) का ज्ञान तथा भक्ति विधि (नमाज आदि) बताई जो तुम्हारे अल्लाह द्वारा बताई गई थी। फिर भी हजरत मुहम्मद जी के आँखों के तारे तीनों पुत्र (कासिम, तय्यब तथा ताहिर) चल बसे। विचार करें जिस अल्लाह के भेजे रसूल (नबी) के जीवन में कहर ही कहर (महान कष्ट) रहा। तो अन्य अनुयाईयों को र्कुआन शरीफ व मजीद में वर्णित साधना से क्या लाभ हो सकता है ? हजरत मुहम्मद 63 वर्ष की आयु में दो दिन असहाय पीड़ा के कारण दर्द से बेहाल होकर मृत्यु को प्राप्त हुआ। जिस पिता के सामने तीनों पुत्र मृत्यु को प्राप्त हो जाऐं, उस पिता को आजीवन सुख नहीं होता। प्रभु की भक्ति इसीलिए करते हैं कि परिवार में सुख रहे तथा कोई पाप कर्म दण्ड भोग्य हो, वह भी टल जाए। आप के अल्लाह द्वारा दिया भक्ति ज्ञान अधूरा है। इसीलिए सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 तक में कहा है कि जो गुनाहों को क्षमा करने वाला कबीर नामक अल्लाह है उसकी पूजा विधि किसी तत्वदर्शी (बाखबर) से पूछ देखो। कबीर परमेश्वर ने कहा शेखतकी मैं स्वयं वही कबीर अल्लाह हूँ। मेरे पास पूर्ण मोक्ष दायक, सर्व पाप नाशक भक्ति विधि है। इसीलिए आप के समक्ष बादशाह सिकंदर लोधी जी पाप के कारण भोग रहे कष्ट से मुक्त होकर सुख की सांस ले रहे हैं। जो आपकी भक्ति पद्धति से नहीं हो पाया।
जैसा कि शेखतकी जी आपने बताया कि सब मनुष्यों का पिता हजरत आदम ऊपर आसमान पर (जहाँ जिस लोक में जिबराईल फरिश्ता हजरत मुहम्मद को लेकर गया था) कभी रो रहा था, कभी हंस रहा था। क्योंकि उसकी निकम्मी संतान नरक में कष्ट उठा रही थी। उन्हें देखकर रो रहा था तथा अच्छी संतान जो स्वर्ग में सुखी थी, उन्हें देखकर जोर-जोर से हंस रहा था। विचारणीय विषय है कि पवित्र ईसाई धर्म तथा पवित्र मुसलमान धर्म के प्रमुख बाबा आदम ने जो साधना की उसके प्रतिफल में जिस लोक में पहुँचा है वहाँ पर भी चैन से नहीं रह रहा। इस लोक में भी बाबा आदम जैसे पुण्यात्माओं के प्रथम दोनों पुत्रों में राग-द्वेष भरा था जिस कारण बड़े भाई ने छोटे की हत्या कर दी। यहाँ पृथ्वी पर भी बाबा आदम महादुःखी ही रहे क्योंकि बड़े भाई ने छोटे को मार दिया, बड़ा घर त्याग कर चला गया। सैकड़ों वर्षों पश्चात् बाबा आदम को एक पुत्र हुआ। जिस से भक्ति मार्ग चला है। जिस किसी के दोनों पुत्र ही बिछुड़ जाए वह पिता सुखी नहीं हो सकता यही दशा बाबा आदम जी की हुई थी। सैकड़ों वर्ष दुःख झेलने के पश्चात् एक नेक पुत्र प्राप्त हुआ। फिर बाबा आदम उस लोक में भी इसी कष्ट को झेल रहे हैं। सर्व नबी जो पहले पृथ्वी पर अल्लाह के भेजे आए थे, वे (हजरत ईसा, हजरत अब्राहिम, हजरत मूसा आदि) भी उसी स्थान (लोक) में अपनी साधना से पहुँचे। वास्तव में वह पितर लोक है। उसमें अपने-अपने पूर्वजों के पास चले जाते हैं। इसी प्रकार हिन्दूओं का भी ऊपर वही पितर लोक है। जिनका संस्कार पितर बनने का होता है, वह पितर योनि धारण करके उस पितर लोक में रहता है। फिर पितर वाला जीवन भोगकर फिर भूत तथा अन्य पशु व पक्षियों की योनियों को भी भोगता है। यह तो पूर्ण मोक्ष तथा सुख प्राप्ति नहीं हुई। अन्य वर्तमान के साधकों को क्या उपलब्धि होगी ?
पवित्र बाईबल में लिखा है कि हजरत आदम के काईन तथा हाबिल दो पुत्र थे। हाबिल भेड़ बकरियाँ पाल कर निर्वाह कर रहा था तथा काईन खेती करता था। एक दिन काईन अपनी पहली फसल का कुछ अंश प्रभु के लिए ले गया। प्रभु ने काईन की भेंट स्वीकार नहीं की क्योंकि काईन का दिल पाक नहीं था। हाबिल अपने भेड़ का पहलौंठा मेंमना(बच्चा) भेंट के लिए लेकर प्रभु के पास गया, जो प्रभु ने स्वीकार कर लिया। इस बात से काईन क्रोधित हो गया। वह अपने छोटे भाई हाबिल को बहका कर जंगल में ले गया, वहाँ उसकी हत्या कर दी। प्रभु ने पूछा काईन तेरा भाई कहाँ गया? काईन ने कहा मैं क्या उसके पीछे-पीछे फिरता हूँ? मुझे क्या मालूम?
तब प्रभु ने कहा कि तुने अपने भाई के खून से पृथ्वी को रंगा है। अब मैं तुझे शाप देता हूँ कि तू रोजी के लिए भटकता रहेगा।
विचार करें:-- विचार करने योग्य है कि जहाँ से दोनों पवित्र धर्मों (मुसलमान तथा ईसाई) के पूर्वज मुखिया की जीवनी प्रारम्भ होती है वहीं से हृदय विदारक घटनाऐं प्रारम्भ हो गई।
वास्तव में हजरत आदम के शरीर में कोई पितर आकर प्रवेश करता था। वही माँस खाने का आदी होने के कारण पवित्र आत्माओं को गुमराह करता था कि अल्लाह (प्रभु) को भेड़ के बच्चे की भेंट स्वीकार है। दोनों भाईयों का झगड़ा करा दिया। हजरत आदम जी के परिवार को बर्बाद कर दिया।