शास्त्रों में परमात्मा

प्रश्न:- संसार के शास्त्र तथा सन्त, परमात्मा के विषय में क्या जानकारी देते हैं?

उत्तर:- विश्व के मुख्य शास्त्रों, सद्ग्रन्थों में परमात्मा को बहुत अच्छे तरीके से परिभाषित किया है। पहले यह जानते हैं कि विश्व के मुख्य शास्त्र, सद्ग्रन्थ कौन-से हैं?

वेद

वेद दो प्रकार के हैंः-

  1. सूक्ष्म वेद,
  2. सामान्य वेद।

सूक्ष्म वेद:-

यह वह ज्ञान है, जो परमात्मा स्वयं पृथ्वी पर प्रकट होकर अपने मुख कमल से उच्चारण करके बोलता है, यह सम्पूर्ण ज्ञानयुक्त है।

प्रमाण:-

  • ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 86 मन्त्र 26-27
  • ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 82 मन्त्र 1-2, 3
  • ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 94 मन्त्र 1
  • ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 95 मन्त्र 2
  • ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 20 मन्त्र 1
  • ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 96 मन्त्र 16 से 20
  • ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 54 मन्त्र 3
  • यजुर्वेद अध्याय 9 मन्त्र 1 तथा 32
  • यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25
  • अथर्ववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मन्त्र 7
  • (सामवेद मन्त्र संख्या 822)

अन्य प्रमाण:- श्री मद्भगवत गीता अध्याय 4 मन्त्र 32 में है। कहा है कि सच्चिदानंद घन ब्रह्म यानि सत्य पुरूष अपने मुख कमल से वाणी बोलकर तत्वज्ञान विस्तार से कहता है।

कारण:- परमात्मा ने सृष्टि के प्रारम्भ में सम्पूर्ण ज्ञान ब्रह्म (ज्योति निरंजन अर्थात् काल पुरूष) के अन्तकरण में डाला था। (fax किया था) परमात्मा द्वारा किए निर्धारित समय पर यह ज्ञान स्वयं ही काल पुरूष के श्वांसों द्वारा समुद्र में प्रकट हो गया। काल पुरूष ने इसमें से महत्वपूर्ण जानकारी निकाल दी। शेष अधूरा ज्ञान संसार में प्रवेश कर दिया। उसी को चार भागों में चार वेदों के रूप में जाना जाता है।

सामान्य वेद:-

यह वही आंशिक ज्ञान है जो ब्रह्म (ज्योति निरंजन अर्थात् काल) ने अपने ज्येष्ठ पुत्रा ब्रह्मा जी को दिया था। यह अधूरा ज्ञान है। इसमें से मुख्य जानकारी निकाली गई है जो ब्रह्म अर्थात् काल ने जान-बूझकर निकाली थी। कारण यह था कि “काल पुरूष” को भय रहता है कि किसी को पूर्ण परमात्मा का ज्ञान न हो जाए। यदि प्राणियों को पूर्ण परमात्मा का ज्ञान हो गया तो सब इस काल के लोक को त्यागकर पूर्ण परमात्मा के लोक (सत्यलोक=शाश्वत स्थान) में चले जाऐंगे, जहाँ जाने के पश्चात् जन्म-मृत्यु समाप्त हो जाता है। इसलिए ब्रह्म (काल पुरूष) ने पूर्ण परमात्मा के परमपद की जानकारी नहीं बताई, वह नष्ट कर दी थी। उसकी पूर्ति करने के लिए पूर्ण परमात्मा स्वयं सशरीर प्रकट होकर सम्पूर्ण ज्ञान बताता है। अपनी प्राप्ति के वास्तविक मन्त्र भी बताता है जो काल भगवान ने समाप्त करके शेष ज्ञान प्रदान कर रखा होता है। उसको ऋषिजन वेद कहते हैं। ऋषि व्यास जी ने इस वेद को लिखा तथा इस के चार भाग बनाए।

  1. ऋग्वेद
  2. यजुर्वेद
  3. सामवेद
  4. अथर्ववेद जो वर्तमान में प्रचलित हैं।

इन्हीं चार वेदों का सारांश काल पुरूष ने श्री मद्भगवत गीता के रूप में श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके महाभारत के युद्ध से पूर्व बोला था। वह भी बाद में महर्षि व्यास जी ने कागज पर लिखा। जो आज अपने को उपलब्ध हैं।

सद्ग्रन्थों में बाईबल का नाम भी है। बाईबल:- यह तीन पुस्तकों का संग्रह है।

  1. तौरेत
  2. जबूर
  3. इंजिल।

बाईबल में सर्वप्रथम सृष्टि की उत्पत्ति की जानकारी है, जिसमें लिखा है कि परमात्मा ने सर्वप्रथम सृष्टि की रचना की। पृथ्वी, सूर्य, दिन-रात, पशु-पक्षी, मनुष्य (नर-नारी) की रचना परमात्मा ने छः दिन में की तथा सातवें दिन तख्त पर जा विराजा। सृष्टि रचना अध्याय 1 के श्लोक 26, 27-28 में यह भी स्पष्ट किया है कि परमात्मा ने मानव को अपने स्वरूप जैसा उत्पन्न किया। इससे सिद्ध हुआ कि परमात्मा भी मनुष्य जैसा (नराकार) है।

© Kabir Parmeshwar Bhakti Trust (Regd) - All Rights Reserved