शब्द गुंजार
अध्याय स्वांस गुंजार = शब्द गुंजार का सारांश
कबीर सागर में 35वां अध्याय ‘‘स्वांस गुंजार‘‘ पृष्ठ 1 (1579) पर है। वास्तव में यह शब्द गुंजार है। गलती से श्वांस गुंजार लिखा गया है। इस अध्याय में कुछ भी भिन्न नहीं है। जो प्रकरण पूर्व के अध्यायों में कहा गया है। उसी की आवर्ती की गई है। बार-बार प्रकरण कहा गया है। बचन से यानि शब्द से जो सृष्टि की उत्पत्ति की गई है, उसी का ज्ञान है।
‘‘यह शब्द गुंजार अध्याय है, न कि स्वांस गुंजार‘‘
प्रमाण पृष्ठ 4 पर:-
शब्द हिते है पुरूष अस्थूला। शब्दहि में है सबको मूला।।
शब्द हिते बहु शब्द उच्चारा। शब्दै शब्द भया उजियारा।।
शब्द हिते भव सकल पसारा। सोई शब्द जीव का रखवारा।।
प्रथम शब्द भया अनुसारा। नीह तत्त्व एक कमल सुधारा।।
इन उपरोक्त वाणियों से स्पष्ट है कि परमात्मा शब्द रूप में सूक्ष्म शरीर युक्त थे। वह सूक्ष्म शरीर काल लोक वाले शरीर जैसा नहीं है। परमात्मा जब चाहे शब्द (वचन) से जैसा चाहे स्थूल शरीर धारण कर लेते हैं। पुरूष यानि परमेश्वर जी ने शब्द से सब रचना की है। अन्य अध्यायों में भी स्पष्ट है कि परमात्मा ने शब्द (वचन) से सब पुत्रा उत्पन्न किए, वचन से ही सतलोक, अलख लोक, अगम लोक, अकह लोक की रचना की। यहाँ कुछ पंक्तियों में श्वांस से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति लिखी है, यह गलत है।
श्वांसों की महिमा तथा महत्त्व पृथ्वी लोक पर है। स्थूल शरीर के लिए आक्सीजन यानि शुद्ध वायु की आवश्यकता है। सूक्ष्म शरीर में प्राण (श्वांस) काम करता है। सतलोक में शरीर श्वांसों से नहीं अध्यात्म शक्ति से चलता है।
काल लोक में भक्ति करके सत्यलोक प्राप्ति करनी होती है। स्थूल शरीर से साधना करनी है। स्थूल शरीर मानव का जब प्राप्त होता है, तब ही मोक्ष का मार्ग खुलता है। इसलिए इस अध्याय में श्वांस का जो महत्त्व बताया है, वह पृथ्वी लोक पर साधना से सम्बन्ध रखता है।
कबीर, श्वांस-उश्वांस में नाम जपो, व्यर्था श्वांस ना खोय।
ना बेरा इस श्वांस का, आवन होके ना होय।।
श्वासा पारस भेद हमारा, जो खोजै सो उतरे पारा।
श्वासा पारस आदि निशानी, जो खोजे तो होय दरबानी।।
हरदम नाम सोहं सोई। आवागवन बहोर न होई।।
श्वांस गुंजार पृष्ठ 94(1672) पर भी प्रमाण है:-
श्वासा सार गहै सहिदानी। शशि के घर महं सूर्य उगानै।।
श्वासा सार गहै गुंजारा। जाप जपै सतनाम पियारा।।
अजपा जाप जपै सुखदाई। आवै न जावै रह ठहराई।।
इस प्रकार श्वांस का महत्त्व बताया है। श्वांस से स्मरण करने से यानि जाप की धुन (लगन के साथ जाप करने) से जीव मोक्ष प्राप्ति करता है।
यह श्वांस (शब्द) गुंजार है। अध्याय का सारांश सम्पूर्ण हुआ।