केदारनाथ मंदिर भारत में तथा पशुपति मंदिर नेपाल में कैसे बना?
(केदार का अर्थ दलदल है)
महाभारत में कथा है कि पाँचों पाण्डव (युद्धिष्ठर, अर्जुन, भीम, नकुल व सहदेव) जीवन के अंतिम समय में हिमालय पर्वत पर तप कर रहे थे। एक दिन सदाशिव यानि काल ब्रह्म ने दुधारू भैंस का रूप बनाया और उस क्षेत्रा में घूमने लगा। भीम दूध प्राप्ति के उद्देश्य से उसे पकड़ने के लिए दौड़ा तो भैंस पृथ्वी में समाने लगी। भीम ने भैंस का पिछला भाग दृढ़ता से पकड़ लिया जो पृथ्वी से बाहर शेष था। वह पत्थर का हो गया और बाहर ही रह गया, वह केदारनाथ बना। भैंस के शरीर के अन्य भाग जैसे अगले पैर, पिछले पैर आदि-आदि जहाँ-जहाँ निकले, वहाँ-वहाँ पर अन्य केदार बने। ऐसे-ऐसे सात केदार हिमालय में बने हैं। उस भैंस का सिर वाला भाग काठमाण्डू में निकला जिसको पशुपति कहा गया। उसके ऊपर मंदिर बना दिया गया। उस भैंस के पिछले भाग पर तथा अन्य अंग जहाँ-जहाँ निकले, उनको केदार नाम देकर यादगार बनाई गई थी कि यह पौराणिक घटना सत्य है। ये साक्षी हैं। सब मंदिर किसी न किसी कथा के साक्षी हैं। परंतु पूजा करना गलत है, व्यर्थ है।
लगभग सौ वर्ष पूर्व केदारनाथ पर अधिक वर्षा के कारण दलदल अधिक हो गई थी। लगभग साठ (60) वर्ष तक वहाँ कोई पूजा-आरती नहीं की गई। न कोई दर्शन करने गया था। बाद में तीस-चालीस वर्ष से पुनः दर्शनार्थी जाने लगे हैं।
सन् 2012 में केदारनाथ धाम के दर्शनार्थ व पूजार्थ गए लाखों व्यक्ति बाढ़ में बह गए। परिवार के परिवार अंध श्रद्धा भक्ति करने वाले मारे गए। यदि यह साधना पवित्रा गीता में वर्णित होती तो वहाँ जाने वाले श्रद्धालु मर भी जाते तो भी पुण्यों के साथ परमात्मा के दरबार जाते। परंतु शास्त्राविरूद्ध भक्ति करते हुए ऐसे मरते हैं तो व्यर्थ जीवन गया।