शेखतकी द्वारा कबीर जी की परीक्षाएँ
- मृत लड़के कमाल को जीवित करना
- शेख तकी द्वारा कबीर जी की अन्य परीक्षाएँ
- कमाली के पहले के जन्म
- शेखतकी की मृत लड़की कमाली को जीवित करना
- कबीर साहेब को सरसों के गर्म तेल के कड़ाहे में डालना
- शेखतकी द्वारा कबीर साहेब को गहरे कुएँ (झेरे) में डालना
- शेखतकी द्वारा कबीर साहेब को गुंडों से मरवाने की निष्फल कुचेष्टा
“मृत लड़के कमाल को जीवित करना”
शेखतकी महाराजा सिकंदर से मुख चढ़ाए फिर रहा था। सिकंदर ने पूछा कि क्या बात है पीर जी? शेखतकी ने कहा कि क्या तुझे बात नहीं मालूम? सिकंदर ने पूछा कि क्या बात है? शेखतकी ने कहा कि यह तेरे साथ कौन है? सिकंदर ने कहा कि ये तो भगवान (अल्लाह) है। शेखतकी ने कहा कि अच्छा अल्लाह अब आकार में धरती पर आने लग गया। अल्लाह कैसे है? सिकंदर ने कहा कि पहले तो अल्लाह ऐसे कि मेरा रोग ऐसा था कि किसी से भी ठीक नहीं हो पा रहा था। इस कबीर प्रभु ने हाथ ही लगाया था, मैं स्वस्थ हो गया। शेखतकी ने कहा कि ये जादूगर होते हैं। सिकंदर ने फिर कहा दूसरे अल्लाह ऐसे हैं कि मैंने उनके गुरुदेव का सिर काट दिया था और उन्होंने उसे मेरी आँखों के सामने तुरंत जीवित कर दिया।
शेखतकी ने कहा कि अगर यह कबीर अल्लाह है तो मैं इसकी परीक्षा लँूगा। यदि कबीर जी मेरे सामने कोई मुर्दा जीवित करे तो इसे अल्लाह मान लँूगा। नहीं तो दिल्ली जाकर मैं पूरे मुसलमान समाज को कह दूँगा कि यह राजा काफिर हो गया है।
सिकंदर लोधी डर गया कि कहीं ऐसा न हो कि यह जाते ही राज पलट दे। (राज को देने वाला पास बैठा है और उस मूर्ख से डर लगता है।) राजा ने शेखतकी से कहा कि आप कैसे प्रसन्न होंगे? शेखतकी ने कहा कि मैं तब प्रसन्न होऊँगा जब मेरे सामने यह कबीर कोई मुर्दा जीवित कर दे। राजा ने अपनी समस्या कबीर जी को बताई कि मेरे पीर ने कहा है कि यदि कबीर मेरे सामने मुर्दा जीवित करे तो मैं इनकी सब बातें मानने को तैयार हूँ। अन्यथा सब मुसलमानों को मेरे विरूद्ध कर देगा। मेरे राज को भी खतरा पैदा कर देगा।
कबीर साहेब ने कहा कि ठीक है। (कबीर साहेब ने सोचा कि यह शेखतकी अनाड़ी आत्मा है। अगर यह मेरी बात मान गया तो आधे से ज्यादा मुसलमान इसकी बात स्वीकार करते हैं क्योंकि यह दिल्ली के बादशाह का पीर है और अगर यह सही ढं़ग से मुसलमानों को बता देगा तो भोली आत्माऐं सत्य साधना करके कल्याण करवा लेंगी क्योंकि अपने पीर की बात पर शीघ्र विश्वास कर लेते हैं।
इसलिए कहा कि शेखतकी! ढूँढ़ ले कोई मुर्दा। सुबह एक 10-12 वर्ष की आयु के लड़के का शव पानी में तैरता हुआ आ रहा था। शेखतकी ने कहा कि वह आ रहा है मुर्दा, इसे जिन्दा कर दो। कबीर साहेब ने कहा पहले आप प्रयत्न करो, कहीं फिर पीछे नम्बर बनाओ। उपस्थित मन्त्रिायों तथा सैनिकों ने कहा कि पीर जी आप कोशिश करके देख लो।
शेखतकी जन्त्र-मन्त्र करता रहा। इतने में वह मुर्दा तीन फर्लांग आगे चला गया। शेखतकी ने कहा कि यह कबीर चाहता था कि यह बला सिर से टल जाए। कहीं मुर्दे जीवित होते हैं? मुर्दे तो कयामत के समय ही जीवित होते हैं। कबीर साहेब बोले शेख जी! आप बैठ जाओ, शांति करो। कबीर साहेब ने उस मुर्दे को हाथ से वापिस आने का संकेत किया। बारह वर्षीय बच्चे का मृत शरीर दरिया के पानी के बहाव के विपरीत चलकर कबीर जी के सामने आकर रूक गया। पानी की लहर नीचे-नीचे जा रही और शव ऊपर रूका था। कबीर साहेब ने कहा कि हे जीवात्मा जहाँ भी है कबीर हुकम से मुर्दे में प्रवेश कर और बाहर आ। कबीर साहेब ने इतना कहा ही था कि शव में कम्पन हुई तथा जीवित हो कर बाहर आ गया। कबीर साहेब के चरणों में दण्डवत् प्रणाम किया। “बोलो कबीर परमेश्वर की जय”
सर्व उपस्थित जनों ने कहा कि कबीर साहेब ने तो कमाल कर दिया। उस लड़के का नाम कमाल रख दिया। लड़के को अपने साथ रखा। अपने बच्चे की तरह पालन-पोषण किया और नाम दिया। उसके बाद दिल्ली में आ गए। सभी को पता चला कि यह लड़का जो इनके साथ है यह परमेश्वर कबीर साहेब ने जीवित किया है। दूर तक बात फैल गई। शेखतकी की तो माँ सी मर गई सोचा यह कबीर अच्छा दुश्मन हुआ। इसकी तो और ज्यादा महिमा हो गई।
शेखतकी की ईष्या बढ़ती ही चली गई। उसकी तेरह वर्षीय लड़की को मृत्यु पश्चात् कब्र में जमीन में दबा रखा था। शेखतकी ने कहा यदि कबीर मेरी लड़की को जो कब्र में दफना रखी है। जीवित करेगा तो मैं इसे अल्लाह मान लूँगा।
‘‘शेखतकी द्वारा कबीर जी की अन्य परीक्षाएँ’’
“कमाली के पहले के जन्म”
(पूर्ण मुक्ति पूर्ण संत बिना असंभव)
सतयुग में कमाली वाला जीव विद्याधार पंण्डित की पत्नी दीपिका थी। फिर त्रोतायुग में ऋषि वेदविज्ञ (जो विद्याधार वाली ही आत्मा थी) की पत्नी सूर्या थी। सत्ययुग तथा त्रोता में परमात्मा कबीर जी बालक रूप में इन्हीं को प्राप्त हुए थे। तत्पश्चात् अन्य जीवन धारण किए तथा कलयुग में मुस्लमान धर्म में राबी लड़की का जन्म हुआ। उसके पश्चात् एक जीवन वैश्या रूप में जीया। फिर बंसुरी नामक लड़की का जन्म हुआ। फिर कमाली नामक शेखतकी की लड़की हुई। राबिया के प्रमाण में साखियाँ संत गरीबदास साहेब द्वारा रचित गं्रथ साहेब से पारख के अंग की वाणी नं. 56 से 59:-
गरीब, सुलतानी मक्के गये, मक्का नहीं मुकाम।
गया रांड के लेन कूं, कहै अधम सुलतान।।56।।
गरीब, राबिया परसी रबस्यूं, मक्कै की असवारि।
तीन मंजिल मक्का गया, बीबी कै दीदार।।57।।
गरीब, फिर राबिया बंसरी बनी, मक्कै चढाया शीश।
सुलतान अधम चरणौं लगे, धनि सतगुरु जगदीश।।58।।
गरीब, बंसरी सैं बेश्वा बनी, शब्द सुनाया राग।
बहुरि कमाली पु़त्री, जुग जुग त्याग बैराग।।59।।
प्रमाण के लिए संत गरीबदास साहेब द्वारा रचित गं्रथ साहेब से अचला के अंग की वाणी नं. 363 से 368 तक:-
गरीब राबी कुं सतगुरु मिले, दीना अपना तेज।
ब्याही एक सहाब सैं, बीबी चढ़ी न सेज।।363।।
गरीब, राबी मक्के कूं चली, धर्या अल्लाह का ध्यान।
कुत्ती एक प्यासी खड़ी, छुटे जात हैं प्राण।।364।।
गरीब, केश उपारे शीश के, बाटी रस्सी बीन।
जाकै बस्त्रा बांधि कर, जल काढ्या प्रबीन।।365।।
गरीब, सुनहीं कूं पानी पीया, उतरी अरस अवाज।
तीन मंजिल मक्का गया, बीबी तुम्हरे काज।।366।।
गरीब, बीबी मक्के पर चढ़ी, राबी रंग अपार।
एक लाख अस्सी जहाँ, देखै सब संसार।।367।।
गरीब, राबी पटरा घालि कर, किया जहाँ स्नान।
एक लाख अस्सी बहे, मंगर मल्या सुलतान।।368।।
{उपरोक्त वाणियों में निम्न कथा का संक्षिप्त वर्णन है।}
एक राबी नाम की लड़की मुसलमान धर्म में उत्पन्न हुई। जब उसकी आयु 16 वर्ष की थी तो उसे पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब मिले। प्रभु में बहुत प्रेम था। रोजा रखना, नमाज करना, ईद मनाना जो परम्परागत साधना धर्म अनुसार थी, वह पूरी लगन से किया करती थी। तब कबीर साहेब ने बताया बेटी यह साधना प्रभु पाने की नहीं है। सारी सृष्टि रचना सुनाई तथा सत भक्ति का मार्ग बताया। उस लड़की राबिया ने उपदेश ले लिया। फिर चार वर्ष सत साधना करके समाज के दबाव से लोक-लाज के कारण सतमार्ग छोड़ दिया तथा वही परम्परागत साधना पुनः शुरू कर दी। उस लड़की की आस्था प्रभु में इतनी प्रबल थी कि शादी से मना कर दिया। माता-पिता रोने लग गए कि जवान लड़की को घर पर कैसे रखें? माता-पिता को आवश्यकता से अधिक परेशान देखकर राबिया ने शादी की स्वीकृती दे दी। उस लड़की राबिया की शादी एक बहुत बड़े साहेब (अधिकारी) से हुई। परन्तु अपने पति से स्पष्ट कह दिया कि मैं सन्तान उत्पत्ति नहीं करूँगी। मैंने तो मेरे माता-पिता के विशेष दबाव तथा समाज शर्म के कारण शादी की है। यदि आप मेरी बात स्वीकार नहीं करोगे तो मैं आत्महत्या कर लूंगी। यह मेरा अन्तिम फैसला समझो। मैं केवल प्रभु भक्ति करके आत्म कल्याण चाहती हूँ।
राबिया के पति ने सोचा क्यों मैं इस भक्तात्मा को दुःखी करूं और पाप का भागी बनूं। सोच विचार करके कहा कि राबिया जिस प्रकार आपने समाज से डर था ऐसे ही मेरा भी अपना एक समाज है। आपको समाज की दृष्टि में मेरी पत्नी के रूप में रहना पड़ेगा। मेरी दृष्टि में आप मेरी बहन होंगी। तुझे घर से बाहर नहीं जाने दूँगा। आप भजन(भक्ति) करो। कहो तो आपके लिए दो नौकरानी छोड़ देता हूँ। राबिया बहुत प्रसन्न हुई तथा कहा कि हे प्रभु ! आपने मेरी बड़ी सुनी। उस दिन के बाद राबिया मुसलमान धर्म में प्रचलित साधना करती रही।
मुसलमान धर्म में जन्म था। ईद और बकरीद, रोजे आदि श्रद्धा से करती थी। जब पचास वर्ष से ऊपर की आयु हो गई, तब अपने पति से कहा कि कहते हैं कि मक्का में जाना अति आवश्यक होता है। अब न जाने प्राण कब निकल जाऐं। एक बार मैं हज करना चाहती हूँ। उसके पति ने कहा कि आप जा सकती हो। कहो तो आपके लिए कोई ऊँट की व्यवस्था करवा देता हूँ। राबिया ने कहा कि मैं पैदल यात्रा करूँगी। अन्य भी बहुत यात्री जा रहे हैं। उसके पति ने कहा कि आप जा सकती हो।
राबिया ने मक्के में हज के लिए प्रस्थान किया। रास्ते में देखा एक कुत्तिया बहुत प्यासी थी। वह कुत्तिया कभी राबिया के पैरों की ओर दौड़ कर आ रही थी, कभी कुएँ की ओर जा रही थी। राबिया समझ गई कि यह कुत्तिया बहुत प्यासी है। साथ में इसके छोटे-छोटे बच्चे भी नजर आ रहे थे। इसको जल प्राप्त नहीं हुआ तो ये प्राण त्याग जाएगी, इसके बच्चे भी मर जाएँगे। भक्तात्मा में दया बहुत होती है। राबिया कुएँ पर गई। वहाँ देखा न वहाँ बाल्टी थी और न ही कोई रस्सा था। आसपास कोई गाँव भी नजर नहीं आ रहा था।
राबिया ने आव देखा न ताव, अपने सिर के बालों को उखाड़ कर एक लम्बी रस्सी बनाई। अपने ही कपड़े (क्योंकि उस समय मोटे खादी के कपड़े पहना करते थे।) उतार कर रस्सी से बाँध कर कुएँ में जल से भिगोकर बाहर निकाले और एक मटके का टूटा हुआ आधा हिस्सा वही पर रखा था उसको भर दिया।
कुत्तिया ने बहुत शीघ्रता से पानी पीया। राबिया का सारा शरीर लहु-लुहान हो गया। अपने कपड़ों से सारे शरीर को पोंछ कर और उन कपड़ो को धोकर कर पहन लिया तथा जैसे ही चलने के लिए तैयार हुई इतने में वह मक्का ज्यों का त्यों मकान (पवित्र मस्जिद) वहाँ से उठकर राबिया के लिए उस कुएँ के पास आ गया। आकाश वाणी हुई कि ‘‘हे भक्तमति तेरे लिए वह मक्का तीन मंजिल अर्थात् 60 मील से उड़ कर आया है। आप इस में प्रवेश करो। राबिया ने उसमें प्रवेश किया। मक्का वहाँ से उठा। वायुयान की तरह उड़ कर वापिस यथा स्थान पर आ गया। इस लीला को देख कर समाज में एक विशेष चर्चा हो गई कि भक्ति हो तो राबिया जैसी मुसलमान समाज में (मीरा बाई की तरह) राबिया का नाम आदर के साथ लिया जाने लगा। सभी उसका विशेष सत्कार करने लगे।
कुछ समय पश्चात् राबिया ने प्राण त्याग दिए। दूसरा जन्म मुसलमान धर्म में एक बंसुरी नाम की लड़की का हुआ। क्योंकि जहाँ जीव के संस्कार होते हैं वहीं उसकी उत्पत्ति होती रहती है। इतनी अच्छी धार्मिक वृत्ति की लड़की बहुत अच्छे प्रभु के गुण-गान करती थी और अपनी धार्मिक पूजा मुसलमान धर्म के अनुसार पूरी आयु करती रही। उस लड़की ने भी लोकवेद के आधार से यही सुना था कि यदि मक्का में प्राण निकल जाएँ तो उसके लिए जन्नत का द्वार खुल जाता है यानि वह जीव सीधा स्वर्ग (बहिस्त) जाता है।
वृद्ध होने पर हज करने मक्का में गई। सोचा कि इससे अच्छा सुअवसर और क्या होगा? यदि मक्का में प्राण निकल जाएं और स्वर्ग प्राप्ति हो जाए। लड़की ने अपना सिर काट कर मक्के में चढ़ा दिया। सारे मुसलमान समाज में इस बात की विशेष चर्चा हो गई कि कुर्बानी प्रभु के नाम पर ऐसे होती है। बंसुरी तो जन्नत में जाएगी।
(अब यहाँ नादान व्यक्तियों को सोचना चाहिए कि कुर्बानी अपनी करनी चाहिए। प्रभु के नाम पर बकरे और गाय या मुर्गे की नहीं। वास्तव में कुर्बानी प्रभु चरणों में समर्पण तथा सत्य भक्ति होती है। शीश काट देने तथा अविधि पूर्वक साधना करने से मुक्ति नहीं होती। यह तो काल की भूल भुलैया है। कुर्बानी गर्दन काटने से नहीं होती, समर्पण से होती है। प्रभु के निमित्त हृदय से समर्पण कर दे कि हे प्रभु तन भी तेरा, धन भी तेरा, यह दास या दासी भी तेरी, यह कुर्बानी प्रभु को पसंद है। हिंसा, हत्या प्रभु कभी पसंद नहीं करता।)
उसके बाद उसी लड़की राबिया का तीसरा जन्म अन्य समाज में हुआ। कर्म आधार पर वैश्या बनी। पूर्ण परमेश्वर (सतपुरूष कबीर साहेब) ही जीव के पाप कर्म काट सकता है अन्य नहीं काट सकते। जैसे हिन्दूस्त्तान का राष्ट्रपति फांसी की सजा को भी क्षमा कर सकता है, अन्य सजाएं तो कहना ही क्या है? अन्य कोई भी फांसी की सजा को क्षमा नहीं कर सकता। इसी प्रकार (पूर्ण परमात्मा) परम शक्तियुक्त कबीर साहेब हमारे सर्व दुःखों का निवारण कर सकते हैं। अन्य कोई खुदा किस्मत में लिखे कष्ट को समाप्त नहीं कर सकता।
(शेष कथा)
राबिया वाली आत्मा ने वैश्या का जीवन पूर्ण करके प्राण त्याग दिए। उसी राबिया का चैथा मानव जन्म शेखतकी, पीर के यहाँ लड़की के रूप में हुआ। जो सिकंदर लौधी का धार्मिक गुरु दिल्ली में था बारह वर्ष की आयु पूरी करके वह लड़की शरीर त्याग गई। उसको कब्र में दबा दिया गया। कबीर साहेब कहते हैं कि:-
गरीब, जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास। गैल गैल लाग्या रहंू, जब लग धरणी आकाश।।
गरीब ज्यों बछा गऊ की नजर मंे, यों साई ने संत। भक्तों के पीछे फीरे, वो भक्त वत्सल भगवंत।।
उस पूर्ण परमात्मा की भक्ति अर्थात् कविर्देव अपनी भक्ति जो स्वयं सन्त रूप में आकर बताता है उस सतगुरु रूप में प्रकट कबीर साहेब के बताए अनुसार सत भक्ति इस लड़की ने चार-पाँच वर्ष की थी। उसके बाद त्याग दी थी। उस भक्ति के परिणाम स्वरूप इसको लगातार तीन मनुष्य शरीर प्राप्त हुए। उसका आगे मनुष्य जीवन का संस्कार शेष नहीं था। अब इस आत्मा ने चैरासी लाख योनियों में कष्ट पर कष्ट उठाना था। कबीर प्रभु दयालु हैं। कारण बनाया, उस लड़की को वहाँ कब्र से जीवित करके अपने चरणों में ले करके कमाली नाम रखा और इस प्यारी बिटिया को उपदेश दिया और मुक्ति प्रदान की। इसी प्रकार हमने यह सोचना होगा कि हम जड़ों मंे पानी डालेंगे तो पौधा हरा-भरा होगा। हम पत्ते और टहनियों की पूजा कर रहे हैं ये गलत है।
कबीर, अक्षर पुरूष एक पेड़ है, निरंजन वाकी डार।
तीनों देवा शाखा हैं, पात रूप संसार।।
उल्टा लटका हुआ संसार रूपी वृक्ष है। इसकी ऊपर को जड़ें परम अक्षर पुरूष सतपुरूष पूर्ण ब्रह्म हैं और जमीन से बाहर जो तना दिखाई देता है वह अक्षर पुरूष (परब्रह्म) समझो। उसके बाद तने के एक मोटी डार होती है। उस डाल को ज्योति निरंजन (ब्रह्म) समझो। उस डार की फिर तीन शाखाएँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश समझो और फिर इनके ये टहनियाँ देवी देवता और पत्ते संसार समझो। ऐसा कबीर साहेब ने पूरी सृष्टि रचना को एक ही दोहे मंे सुना दिया।
“शेखतकी की मृत लड़की कमाली को जीवित करना”
शेखतकी ने देखा कि यह कबीर तो किसी प्रकार भी काबू नहीं आ रहा है। तब शेखतकी ने जनता से कहा कि यह कबीर तो जादूगर है। ऐसे ही जन्त्र-मन्त्र दिखाकर इसने बादशाह सिकंदर की बुद्धि भ्रष्ट कर रखी है। सारे मुसलमानों से कहा कि तुम मेरा साथ दो, वरना बात बिगड़ जाएगी। भोले मुसलमानों ने कहा पीर जी हम तेरे साथ हैं, जैसे तू कहेगा ऐसे ही करेंगे। शेखतकी ने कहा इस कबीर को तब प्रभु मानेंगे जब मेरी लड़की को जीवित कर देगा जो कब्र में दबी हुई है।
पूज्य कबीर साहेब से प्रार्थना हुई। कबीर साहेब ने सोचा यह नादान आत्मा ऐसे ही मान जाए। {क्योंकि ये सभी जीवात्माऐं कबीर साहेब के बच्चे हैं। यह तो काल ने (मजहब) धर्म का हमारे ऊपर कवर चढ़ा रखा है। एक-दूसरे के दुश्मन बना रखे हैं।} शेखतकी की लड़की का शव कब्र में दबा रखा था। शेखतकी ने कहा कि यदि मेरी लड़की को जीवित कर दे तो हम इस कबीर को अल्लाह स्वीकार कर लेंगे और सभी जगह ढिंढ़ोरा पिटवा दूँगा कि यह कबीर जी भगवान है। कबीर साहेब ने कहा कि ठीक है। वह दिन निश्चित हुआ। कबीर साहेब ने कहा कि सभी जगह सूचना दे दो, कहीं फिर किसी को शंका न रह जाए। हजारों की संख्या में वहाँ पर भक्त आत्मा दर्शनार्थ एकत्रित हुई। कबीर साहेब ने कब्र खुदवाई। उसमें एक बारह-तेरह वर्ष की लड़की का शव रखा हुआ था। कबीर साहेब ने शेखतकी से कहा कि पहले आप जीवित कर लो। सभी उपस्थित जनों ने कहा है कि महाराज जी यदि इसके पास कोई ऐसी शक्ति होती तो अपने बच्चे को कौन मरने देता है? अपने बच्चे की जान के लिए व्यक्ति अपना तन मन धन लगा देता है। हे दीन दयाल आप कृपा करो। पूज्य कबीर परमेश्वर ने कहा कि हे शेखतकी की लड़की जीवित हो जा। तीन बार कहा लेकिन लड़की जीवित नहीं हुई। शेखतकी ने तो भंगड़ा पा दिया। नाचे-कूदे कि देखा न पाखण्ड़ी का पाखंड पकड़ा गया। कबीर साहेब उसको नचाना चाहते थे कि इसको नाचने दे।
कबीर, राज तजना सहज है, सहज त्रिया का नेह। मान बड़ाई ईष्र्या, दुर्लभ तजना ये।।
मान-बड़ाई, ईष्र्या की बीमारी बहुत भयानक है। अपनी लड़की के जीवित न होने का दुःख नहीं, कबीर साहेब की पराजय की खुशी मना रहा था। कबीर साहेब ने कहा कि बैठ जाओ महात्मा जी, शान्ति रखो। कबीर साहेब ने आदेश दिया कि हे जीवात्मा जहाँ भी है कबीर आदेश से इस शव में प्रवेश करो और बाहर आओ। कबीर साहेब का कहना ही था कि इतने में शव में कम्पन हुआ और वह लड़की जीवित होकर बाहर आई, कबीर साहेब के चरणों में दण्डवत् प्रणाम किया। (बोलो सतगुरु देव की जय।)
उस लड़की ने डेढ घण्टे तक कबीर साहेब की कृपा से प्रवचन किए। कहा हे भोली जनता ये भगवान आए हुए हैं। पूर्ण ब्रह्म अन्नत कोटि ब्रह्मण्ड के परमेश्वर हैं। क्या तुम इसको एक मामूली जुलाहा(धाणक) मान रहे हो। हे भूले-भटके प्राणियों ये आपके सामने स्वयं परमेश्वर आए हैं। इनके चरणों में गिरकर अपने जन्म-मरण का दीर्घ रोग कटवाओ और सत्यलोक चलो। जहाँ पर जाने के बाद जीवात्मा जन्म-मरण के चक्कर से बच जाती है। कमाली ने बताया कि इस काल के जाल से बन्दी छोड़ कबीर साहेब के बिना कोई नहीं छुटवा सकता। चाहे हिन्दू पद्धति से तीर्थ-व्रत, गीता-भागवत, रामायण, महाभारत, पुराण, उपनिषद्ध, वेदों का पाठ करना, राम, कृष्ण, ब्रह्मा-विष्णु-शिव, शेराँवाली(आदि माया, आदि भवानी, प्रकृति देवी), ज्योति निरंजन की उपासना भी क्यों न करें, जीव चैरासी लाख प्राणियों के शरीर में कष्ट से नहीं बच सकता और मुसलमान पद्धति से भी जीव काल के जाल से नहीं छूट सकता। जैसे रोजे रखना, ईद बकरीद मनाना, पाँच वक्त नमाज करना, मक्का-मदीना में जाना, मस्जिद में बंग देना आदि सर्व व्यर्थ है। कमाली ने सर्व उपस्थित जनों को सम्बोधित करते हुए अपने पिछले जन्मों की कथा सुनाई जो उसे कबीर साहेब की कृपा से याद हो आई थी। जो कि आप पूर्व पढ़ चुके हो।
कबीर साहेब ने कहा कि बेटी अपने पिता के साथ जाओ। वह लड़की बोली मेरे वास्तविक पिता तो आप हैं। यह तो नकली पिता है। इसने तो मैं मिट्टी में दबा दी थी। मेरा और इसका हिसाब बराबर हो चुका है। सभी उपस्थित व्यक्तियों ने कहा कि कबीर परमेश्वर ने कमाल कर दिया। कबीर साहेब ने लड़की का नाम कमाली रख दिया और अपनी बेटी की तरह रखा और नाम दिया। उपस्थित व्यक्तियों ने हजारों की संख्या में कबीर परमेश्वर से उपदेश ग्रहण किया। अब शेखतकी ने सोचा कि यह तो और भी बात बिगड़ गई। मेरी तो सारी प्रभुता गई।
”कबीर साहेब को सरसों के गर्म तेल के कड़ाहे में डालना“
अब शेखतकी ने देखा कि कबीर साहेब जी की तो और अधिक महिमा हो गई। वह फिर साहेब को किसी न किसी प्रकार नीचा दिखाने की योजना बनाने लगा। इतनी लीला देखकर भी शेखतकी नीच की आँखें नहीं खुली। परमात्मा सामने थे, परन्तु मान-बड़ाई वश स्वीकार नहीं कर रहा था।
कुछ दिनों पश्चात् फिर शेखतकी ने मुसलमानों को इकट्ठे किया और कहा कि यह कबीर कोई जादूगर है। हम इसकी एक और परीक्षा लेंगे। हजारों की संख्या में मुसलमान शेखतकी के साथ राजा सिकंदर के पास गए तथा कहा कि हम इस कबीर को उबलते सरसों के तेल के कड़ाहे में डालेंगे। यदि यह नहीं मरा तो हम इसको भगवान मान लेंगे। सिकंदर लौधी घबरा गया कि कहीं ये मेरे राज को न पलट दें। कबीर साहेब के पास गया और प्रार्थना की कि महाराज जी मैं आपको यहाँ पर लाया तो था सेवा करने के लिए। लेकिन मैंने तो आपको दुःखी कर दिया दाता। कबीर साहेब ने पूछा कि क्या बात है राजन्? सिकंदर लौधी ने कहा कि साहेब आप तो जानीजान हो, शेखतकी ऐसे-ऐसे कह रहा है। कबीर साहेब जी बोले राजन् कोई बात नहीं, इन्होंने तो मुझे खत्म करना ही है। आज नहीं तो कल करेंगे। आज ही टंटा कट जाए तो बहुत अच्छा। कबीर साहेब ने कहा कि कह दे उनको कि तेल गर्म कर लेंगे। कबीर साहेब जी सोचते थे कि यह नादान शेखतकी ऐसे ही मान जाए। सिकंदर लौधी ने शेखतकी से कहा कि कर लो तेल गर्म।
शेखतकी ने बहुत मोटी-मोटी लकड़ी लगा कर तेल के कड़ाहे को बहुत उबाल दिया और कहा इस कबीर को उठा कर इसमें डाल दो। कबीर साहेब बोले कि शेख जी यह कष्ट भी क्यों कर रहे हो, मैं स्वयं ही बैठ जाऊँगा। पूज्य कबीर साहेब जी उस उबलते तेल के कड़ाहे में प्रवेश कर गए। केवल गर्दन बाहर दिखाई दे रही थी। शेष शरीर उस उबलते हुए तेल में था। कबीर साहेब जी आराम से बैठे थे जैसे ठण्डे पानी में बैठे हों। शेखतकी ने कहा कि यह जंत्र-मंत्र जानता है। इसने इस तेल को ठंडा कर दिया है। यह वैसे उबलता हुआ दिखाई दे रहा है। सिकंदर लौधी ने सोचा कि कहीं सचमुच यह ठण्डा हो गया हो। सिकंदर ने परीक्षण के लिए उस उबलते हुए तेल के कड़ाहे में ऊँगली देनी चाही। कबीर साहेब ने कहा कि राजा इसमें ऊँगली मत देना, कहीं इस बावली बूच के चक्कर में आकर हाथ नष्ट करवा ले। यह इतना गर्म है कि ऊँगली ढूंढी नहीं मिलेगी। सिकंदर ने सोचा कि जब कबीर साहेब जी तेल में बैठे हैं तो तुझे क्या होगा? यह सोचकर मना करते-करते उस उबलते हुए तेल के कड़ाहे में ऊँगली दे दी। जितनी ऊँगली तेल में गई थी उतनी कट कर अलग हो गई और राजा दर्द के मारे बेहोश हो गया। कबीर साहेब ने सोचा कि यह नादान बादशाह इस ईर्षालु शेखतकी के चक्कर में मरेगा। कबीर साहेब तेल के कड़ाहे से बाहर आए। सिकंदर को होश में लाया गया। इतनी पीड़ा थी कि फिर बेहोश हो गया। कबीर साहेब ने ऊँगली को पकड़ कर पूरा कर दिया। बादशाह सिकंदर सचेत हो गया। सिकंदर ने क्षमा याचना करते हुए कहा कि मुझे माफ कर दो दाता, मेरे से गलती हो गई। कबीर साहेब ने कहा कि राजन् आपका दोष नहीं है। काल नहीं चाहता कि मेरे बच्चे मुझे पहचान लें।
शेखतकी द्वारा कबीर साहेब को गहरे कुएँ (झेरे) में डालना
शेखतकी ने देखा कि यह तो ऐसे भी नहीं मरा। मुसलमानों को पुनर् इक्कठा किया और कहा कि अब की बार इस कबीर को कुएँ में डालकर ऊपर से मिट्टी, ईटें और रोड़े डाल देंगे। तब देखेंगे यह कैसे बचेगा? भोली जनता तो जैसे पीर जी कहे वैसे ही करने को तैयार थी। शेखतकी ने सिकंदर लौधी से कहा कि हम इसकी एक परीक्षा और लेंगे। सिकंदर ने पूछा कि क्या परीक्षा लोगे? शेखतकी ने कहा कि हम इसको झेरे कुएँ में डालेंगे और फिर देखेंगे कि वहाँ से कैसे जीवित होगा?
{अब इतनी लीला देखकर भी राजा का अपने मालिक पर विश्वास नहीं बना। नहीं तो धमका देता कि जा करले तूने जो करना है। मंै नहीं दुःखी करूं अपने भगवान को। फिर देखता उसका राज्य जाता या और मौज हो जाती।} राजा ने सोचा कहीं मेरा राज्य न चला जाए। सिकंदर लौधी राजा ने साहेब से प्रार्थना की कि यह शेखतकी तो नहीं मानता और आज ऐसे-ऐसे जिद्द किए हुए है। पूज्य कबीर साहेब जी ने कहा ठीक है। कर लेने दे इसको जो यह करे। मेरा भी टंटा कटे। मैं भी दुःखी हो लिया। कह दे कि तुने जो करना है कर ले। शेखतकी कबीर साहेब जी को बाँध जूड़ कर ले गया और जाकर गहरे झेरे कुएँ में डलवा दिया। वहाँ पर हजारों व्यक्तियों को इक्कठा किए हुए था। बहुत गहरा अंधा कुआँ जिसमें पानी गंदा और थोड़ा-सा पड़ा था और ऊपर से मिट्टी, कांटेदार छड़ी, गोबर, ईंट आदि से डेढ़ सो फूट ऊँचा पूरा भर दिया। फिर शेखतकी हाथ-मुँह धोकर सिकंदर लौधी के पास गया तथा कहा कि राजा कर दिया तेरे शेर को समाप्त। उसके ऊपर इतनी मिट्टी डाल दी है कि अब किसी भी प्रकार बाहर नहीं आ सकता। सिकंदर लौधी ने पूछा पीर जी आप किसकी बात कर रहे हो? शेखतकी बोला कि तेरे गुरुदेव कबीर की। उसको आज हमने समाप्त कर दिया है। सिकंदर ने कहा कि पीर जी पूज्य कबीर साहेब जी तो अंदर कमरे में बैठे हैं, वे तो कहीं पर गये ही नहीं। शेखतकी ने अंदर जाकर देखा तो पूज्य कबीर साहेब अंदर कमरे में आसन पर आराम से बैठे थे। शेखतकी को तो और ज्यादा ईष्र्या हो गई कि यह कबीर तो मारे से मर नहीं रहा। अब क्या किया जाए? अन्य समझदार व्यक्ति तो मान गये, हजारों ने उपदेश लिया, प्रभु कबीर जी के शिष्य बने, परन्तु वह शेखतकी दुष्ट नहीं माना। शाहतकी नहीं लखी, निरंजन चाल रे। इस परचे तै आगे माँगे जवाल रे।।
शेखतकी बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर की महिमा को नहीं समझ पाया। उसको चाहिए था भगवान के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करता तथा अपना आत्म कल्याण करवाता, परन्तु मान-बड़ाई वश होकर साहेब का दुश्मन बन गया। शेखतकी ने और भी बहुत से जुल्म किए। कबीर साहेब काशी लौट गए।
“शेखतकी द्वारा कबीर साहेब को गुंडों से मरवाने की निष्फल कुचेष्टा”
कबीर साहेब के काशी आने के बाद शेखतकी ने सोचा कि यह कबीर तो किसी भी प्रकार नहीं मर रहा। वह कबीर साहेब को मारने के लिए रात्री के समय कुछ गुंडों को साथ लेकर कबीर साहेब की झोपड़ी पर गया। कबीर साहेब सो रहे थे। शेखतकी ने गुंडों से कहा कि इसके टुकड़े-टुकड़े कर दो। गुंडों ने तलवार से पूज्य कबीर साहेब जी के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और अपनी तरफ से मरा हुआ जानकर चल पड़े। जब वे झोपड़ी से बाहर निकले तो पीछे से कबीर साहेब ने उठकर कहा कि पीर जी, दूध पीकर जाना। ऐसे थोड़े ही जाते हैं। शेखतकी व उसके गुंडों ने सोचा कि यह भूत है। वहाँ से भाग गये। उन गुंडों को तो बुखार हो गया। कई दिन तक बुखार नहीं उतरा। कबीर साहेब उनके पास गये और उनको ठीक किया तथा कहा कि यह पीर तुम्हें मरवा कर छोड़ेगा, यह तुम्हें गुमराह कर रहा है। तब उन्होंने कबीर साहेब से क्षमा याचना की।