भूमिका

बिस्मिल्लाहिर्रमानिर्रहीम:- शुरू खुदा का नाम लेकर जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

मैंने (लेखक संत रामपाल दास जी ने) सर्व पवित्र धर्मों के पवित्र ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया। पता चला कि संसार में विशेषकर दो ताकत हैं जो सब जीवों को प्रभावित कर रही हैं।

  1. रहमान
  2. शैतान

इसी पुस्तक के अंत में लिखी सृष्टि रचना (creation of world) नामक अध्याय में पढ़ेंगे। उसमें आप जी को पता चलेगा कि रहमान यानि दयालु कादर (समर्थ) अल्लाह (परमेश्वर) सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता, सबका पालन-पोषण करने वाला कौन है तथा ‘‘शैतान’’ कौन है? जो प्रत्येक प्राणी को धोखे में रखकर अपने जाल में फंसाता है। यह मानव को कुछ अच्छा तथा अधिक गलत ज्ञान प्रदान करता है।

कादर अल्लाह यथार्थ ज्ञान बताता है। शैतान (जिसे महापुरूषों ने ‘‘काल’’ कहा है) गुप्त रहता है। गुप्त रूप से अज्ञान व ज्ञान का मिश्रण मानव को देता है जो अधूरा अध्यात्म ज्ञान है। समर्थ परमेश्वर संत व सतगुरू (मुर्शिद) के रूप में प्रत्यक्ष प्रकट होकर यथार्थ सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान अपने मुख से बोलकर बताता है। परंतु सर्व मानव ने एक बात की रट लगा रखी है कि प्रभु (खुदा- God ,रब) निराकार है जबकि सर्व धर्मों के पवित्र ग्रन्थों में प्रमाण है कि खुदा मानव जैसा साकार है।

प्रमाण के लिए:- पवित्र बाईबल में उत्पत्ति अध्याय नं. 1 के श्लोक नं. 26 में कहा है कि ‘‘परमेश्वर ने छठे दिन कहा कि हम मानव को अपनी समानता में अपने जैसी शक्ल-सूरत का उत्पन्न करेंगे।’’ परमात्मा ने मानव को अपने जैसा उत्पन्न किया। (पवित्र बाईबल से लेख समाप्त)

इससे स्पष्ट है कि परमात्मा मानव जैसे आकार में है, निराकार (बेचून) नहीं है। ईसाई भाईयों ने रट लगा रखी है कि (God is formless) परमात्मा निराकार है। इसी प्रकार हिन्दू भाई भी परमात्मा को निराकार कहते हैं। श्री राम जी तथा श्री कृष्ण जी को पूजते हैं। उन्हें परमात्मा मानते हैं जो साकार मानव सदृश थे।

इसी प्रकार मुसलमान भाई कहते हैं कि अल्लाह बेचून (निराकार) है। फिर यह भी कहते हैं कि खुदा सातवें आसमान पर तख्त (सिंहासन) पर बैठा है। जब सिंहासन पर बैठा है तो वह साकार मानव समान है। जब अल्लाह पृथ्वी पर आता है तो इसी भ्रम में उसे पहचानने में धोखा खा जाते हैं। उसके यथार्थ सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान को अपने अज्ञान के कारण झूठा मानकर स्वीकार नहीं करते तथा न उसे खुदा मानते हैं।

इस पाक किताब ‘‘मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरआन’’ में यह शंका समूल समाप्त की गई है। कृपया दिल थामकर धैर्य के साथ पढ़ोगे तो दाँतों तले ऊँगली दबाते रहे जाओगे। लेखक ने इस पुस्तक को उस कादर खुदा द्वारा आसमान से स्वयं पृथ्वी पर आकर बताया यथार्थ सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान से प्रमाणों सहित लिखा है। मेरा उद्देश्य है कि विश्व के मानव को यथार्थ अध्यात्म ज्ञान बताऊँ। आश्चर्य की बात यह है कि जो ज्ञान प्रत्येक धर्म के पाक ग्रन्थों में लिखा है। उसे भी उस धर्म के अनुयाई ठीक से नहीं समझ सके। जिस कारण से मेरे को अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।

यदि प्रत्येक धर्म के व्यक्ति अपने ग्रन्थों को यथार्थ रूप में समझे होते तो उनको समझाना आसान हो जाता। जैसे यदि विद्यार्थी आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई ठीक से पढ़ा हो तो उनको उच्च जमातों (कक्षाओं) की पढ़ाई पढ़ाना बहुत आसान होता है। जो दो जमा दो छः पढ़े हैं, उसी की रट लगाए हुए हैं। उनको यह समझाना कि दो जमा दो चार होते हैं, महाकठिन कार्य है। विरोध खड़ा हो जाता है कि नया अध्यापक गलत पढ़ा रहा है। जैसा कि ऊपर बताया है कि ‘‘पवित्र बाईबल’’ में लिखा है कि परमात्मा मानव जैसा साकार है। ईसाईयों को यदि कहता हूँ कि आप ने पवित्र बाईबल ठीक से नहीं समझा। आप गलत कह रहे हो कि God is Formless (परमेश्वर निराकार है) तो वे मुझे मूर्ख बताते हैं कि एक हिन्दू व्यक्ति कैसे समझ सकता है पवित्र बाईबल के ज्ञान को। हम प्रतिदिन पढ़ते हैं। यही दशा प्रत्येक धर्म के अनुयाईयों की है।

हिन्दू धर्म में पवित्र ग्रन्थों में प्रथम नाम वेदों का है। वेदों के ज्ञान को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 54 मंत्र 3 में प्रमाण है। लिखा है कि सर्व सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता परमेश्वर सब लोकों के ऊपर के लोक में बैठा है।

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मंत्र 1-2, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 मंत्र 26-27 में तथा अनेकों स्थानों पर वेदों में लिखा है कि ‘‘परमेश्वर ऊपर के लोक में बैठा है’’ यानि निवास करता है। वहाँ पर सम्राट (राजा) की तरह सिंहासन पर विराजमान है। यथार्थ सम्पूर्ण अध्यात्मिक ज्ञान बताने के लिए सशरीर गति करके (चलकर) नीचे पृथ्वी आदि लोकों में प्रवेश करके, जो परमेश्वर की खोज में लगे हैं, उनकी उलझनों को सरल करता है। उन अच्छी आत्माओं को यथार्थ ज्ञान समझाता है। हिन्दू धर्म के व्यक्ति भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि ऐसा कुछ वेदों में वर्णन है। इसलिए मेरे को आलोचक कहते हैं। धर्म का विरोधी मानते हैं। मैंने प्रत्येक धर्म के पवित्र ग्रन्थों से सच्चाई उजागर की है। उसी के आधार से उस-उस धर्म के धार्मिक व्यक्ति को समझाना चाहा है। एक बार विरोध तो जोर-शोर से होता है। परंतु सत्य को अपने-अपने ग्रन्थों में देखकर शांत हो जाते हैं। परंतु उस सत्य को आँखों देखकर भी स्वीकार करने में आना-कानी करते हैं क्योंकि शैतान उनकी बुद्धि पर बैठ जाता है। उनको भयभीत करता है कि समाज के व्यक्ति क्या कहेंगे? तेरे को हानि हो जाएगी। ये हो जाएगा, वो हो जाएगा। जो बुद्धिमान व अल्लाह के सच्चे चाहने वाले हैं, उनकी तो खुशी का ठिकाना नहीं रहता। वे मेरे साथ मिलकर अपना मानव जीवन धन्य कर लेते हैं।

उदाहरण के लिए पेश है अल्लाह की खोज के सच्चे खोजी की आत्मकथा। समझने के लिए एक उदाहरण पर्याप्त है:-

’’मैं समझा पाक कुरआन‘‘

मैं शहजाद खान जिला-गुड़गाँव का रहने वाला हूँ। मैं एक मुस्लिम समाज से हूँ। मुझे शुरू से ही अल्लाह की तलाश थी। बंदी छोड़ सतगुरू रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद मेरी अल्लाह ताला की तलाश पूरी हुई। नाम दीक्षा लेने से पहले मैंने कुरआन शरीफ भी पढ़ी। लेकिन उसमें जो लिखा है, वो मुझे समझ नहीं आया। मुझे शुरू से ही हमारे जो मुस्लिम समाज में जो मुल्ला-काजी और हमारे बड़े-बुजुर्ग होते थे, उन्होंने बस एक ही बात सिखाई थी। नमाज पढ़ो, रोजे करो, बकरा ईद मनाओ, बकरे काटो, माँस खाओ। कुछ भी करो, लेकिन मालिक का नाम लो। मैंने मुस्लिम समाज में रहते हुए ये सारी भक्ति साधना की जो मुस्लिम समाज में बताया जाता है। लेकिन इसके करते हुए मुझे कोई भी लाभ नहीं मिला। मेरा खुद का कोई काम-धंधा नहीं था। मेरे मम्मी-पापा मुझसे हमेशा कहते थे कि मैं कभी अपनी जिंदगी में कुछ नहीं कर सकता। जिसके चलते मैं बहुत परेशान रहता था। मुस्लिम समाज में मुझसे जो भी कहा जाता था, मैंने वो सब किया। लेकिन उससे भी मुझे कोई राहत नहीं मिली। मुझे बताया था कि एक तहजीब की नमाज होती है जो रात को 12:00 बजे पढ़ी जाती है। अगर उसको पढ़ लोगे तो आपका शबाब (शबाब यानि आपका जो फल है) वह दोगुना हो जाएगा और सुबह 4:00 बजे की नमाज जिसे हम फजर की नमाज कहते हैं, अगर इस नमाज को पढ़कर आप किसी काम के लिए निकलते हो तो ये समझ लो कि आपका वह काम तो होगा ही होगा। यह सौ प्रतिशत है।

मैंने लगभग यह साधना 22 साल तक की। लेकिन मुझे इन 22 सालों में एक दिन भी ऐसा नहीं हुआ कि मुझे लगा हो कि आज मुझे कुछ फायदा हुआ हो, मेरा कैरियर बन गया हो। मेरा कोई काम हो गया हो या किसी चीज में परफेक्ट हो गया हूँ। मुझे ऐसे किसी भी लाभ का अनुभव नहीं हुआ। ये तो शुक्र है उस अल्लाह ताला का जो मुझे संत रामपाल जी महाराज के रूप में मिले और शास्त्रों के अनुसार सही सत्भक्ति बताई।

मैंने ख्वाजा शरीफ की दरगाह जो अजमेर में है जिसे मोहिद्दीन चिश्ती की दरगाह बोला जाता है जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। मैंने उसके लिए भी चाद्दर के लिए बोला। मम्मी-पापा ने बोला कि आप वहाँ जाओ। वह सब की मुराद पूरी करते हैं तो आपकी भी पूरी करेंगे। मैं वहाँ भी गया। परंतु मैं जहाँ पर भी गया, वहाँ पर देखा कि वहाँ पर एक बहुत बड़ा देग होता है जिसमें लोग पैसे डालते हैं। कोई चांदी-सोना डाल रहा है। लेकिन मेरे पास कोई पैसे नहीं थे। वहाँ पर लोग सिर पर टोपी डाल लेते हैं। मालिक का नाम लेते हैं और एक हरे रंग का कपड़ा होता है, उसके नीचे से आपको निकाला जाता है। फिर कहते हैं कि आपको शबाब मिल चुका है। अब आपके लिए जन्नत के दरवाजे खुल चुके हैं। कहते हैं कि यही जन्नत के दरवाजे हैं जो रमजान के दिनों में खोले जाते हैं। 22 साल तक मैंने यह सब कुछ किया। लेकिन मुझे इन सबसे कोई भी फायदा नहीं हुआ। बहुत सारी जगह पर मैं गया। अलीगढ़ दरगाह, महरौली पर भी गया। वहाँ पर भी मैंने चद्दर बोली। वहाँ पर बाहर तो माँस कटता है और अंदर एक पत्थर होता है। उसके सामने सजदा करो या उसके ऊपर चद्दर चढ़ा दो। सब जगह यही कहानी और हर जगह कुछ ना कुछ नया देखने को मिलता था। मैंने अपने एक मौलवी साहब से पूछा कि क्या हम जो कर रहे हैं, हम जिस रास्ते पर चल रहे हैं, क्या वह सच है? उन्होंने कहा कि हाँ! यह बहुत अच्छा है। उन्होंने मुझसे कहा कि आप 40 दिन की जमात में जाइए। मैं 40 दिन की जमात में तो नहीं लेकिन 3 दिन की जमात में गया था। वहाँ पर भी मैंने वही सब देखा। लोग भेड़ चाल चल रहे हैं। अगर वहाँ पर कहीं खाना बन रहा है तो लोग नमाज को छोड़कर पहले खाने की तरफ भाग कर जाते हैं। वह लोग यह नहीं देखते कि हमें भक्ति करनी है, वह सिर्फ इतना देखते हैं कि हमारा पेट भरे और हम सोएँ। उन व्यक्तियों के लिए नमाज कोई भी अहमियत नहीं रखती। नमाज का मतलब है एक नित्य नियम। नमाज से मुझे कोई भी फायदा नहीं मिला।

महरौली की दरगाह में एक बहुत बड़ी दरगाह बना रखी है। एक पत्थर है। उस पर चद्दर चढ़ा रखी है। और बाहर माँस काटा जाता है। माँस के टुकड़े कर-करके खिलाए जाते हैं और कहते थे कि यह बहुत बड़ा शबाब है। मालिक ने माँस खाने के लिए बोला है। मालिक ने बोला था कि कुर्बानी दो। जो भी गाय, भैंस, बकरी जो भी उनके हाथ लगता था। उनको काटते थे। लोगों को खिलाते थे। मुसलमान धर्म में जो माँस बनता है, वह इस प्रकार बनता है कि जैसे कोई हरी सब्जी बन रही हो। कोई बकरा काट देता है, कोई गाय काट देता है, कोई भैंस काट देता है। मतलब सब कुछ वहाँ पर चल रहा है। वहाँ पर एक ही पानी के मटके में सब लोग पानी पीते हैं। अगर कोई शराबी है, कोई बच्चा है, कोई कैंसर र्पीिड़त है या कोई नवाबी व्यक्ति है तो वह भी उसी घड़े में पानी पीता है। अगर आप उस पर प्रश्न चिन्ह उठाते हो तो आपसे कहा जाता है कि यह गलत नहीं है। इससे शबाब मिलता है। एक मुसलमान दूसरे मुसलमान का झूठा खा सकता है।

इस बात से मैं इतना परेशान हो गया था कि मैं अपना मानसिक संतुलन तक खो चुका था। मुसलमानों में एक बात कही जाती है कि आपको सीधा मुसलमान बनाकर भेजा जाता है। मैं इस परंपरा को निभाते आ रहा था। मुझे एक भक्ति सौदागर को संदेश नाम की किताब मिली और मैं धीरे-धीरे उस पुस्तक को पढ़ने लगा। मैंने पापा से पूछा कि पापा यह पुस्तक कहाँ से आई तो उन्होंने बताया कि उन्होंने यह पुस्तक बरवाला आश्रम से डाक द्वारा मंगवाई है। उस पुस्तक में मैंने देखा कि उसमें कलाम-ए-पाक की एक हैंडिग लिख रखी थी। इसमें लिखा था कि वह अल्लाह ताला जिसने पानी की एक बूंद से आदमी और औरत को उत्पन्न किया और फिर इस पृथ्वी पर साहिब-ए-नस्ल से किसी का बाप, पिता, बेटा बनाकर भेज दिया। उस अल्लाह ताला के बारे में जिसने आसमान और जमीन, इन दोनों के दरमियान जो कुछ भी है, उसको छः दिन में बनाया और सातवें दिन तख्त पर जा विराजा। उसके बारे में किसी बाखबर से पूछकर देखो। उन्होंने बताया था कि सूरः फुरकानि-25 आयत 52 से 59 में यह लिखा है। फिर मैंने उस चीज को नोट किया। उस चीज पर गौर किया और फिर कुरआन शरीफ हिंदी में लेकर आया और वो बातें मिलान की। वैसे का वैसे ही वह सब मिला तो यह सब देखकर मेरा दिमाग घूम गया। फिर मैं सोचने लग गया कि यह ज्ञान और एक हिन्दू समाज के आदमी के पास, कलाम-ए-पाक का ज्ञान एक हिन्दू समाज के व्यक्ति के पास कैसे आया? फिर धीरे-धीरे मैं उस पुस्तक को दिन-रात पढ़ने लगा। एक दिन मैंने निर्णय कर लिया कि अब से मैं जब भी दुकान खोलूंगा तो पूर्ण परमात्मा संत रामपाल जी महाराज का नाम लेकर ही खोलूंगा। नया-नया हाॅस्पिटल था तो मैं जब भी दुकान खोलता था तो संत रामपाल जी महाराज का नाम लेकर खोलता। फिर धीरे-धीरे संत रामपाल जी महाराज की दया से मेरी दुकान की प्रोग्रैस होने लगी। नाम दीक्षा लेने के बाद जब मैं संत रामपाल जी महाराज के दर्शनों के लिए गया तो मैंने कहा कि मालिक! मैं इतने दुःखों से उभरकर यहाँ पर आया हूँ तो परमात्मा ने मुझसे कहा कि करोड़ों के ऊपर से तेरे को मेहर हुई है और कहा कि बेटा! इस भक्ति पर डटा रह और अगर मर्यादा में रहकर भक्ति की तो जिंदगी में तू एक दिन वह मुकाम पा जाएगा जो तूने कभी सोचा भी नहीं होगा।

यह परमात्मा/अल्लाह ताला के वचन मेरी जिंदगी में सच साबित हुए हैं। आज परमात्मा ने वो सब दे रखा है जिसको सोचा भी नहीं था। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद मैंने माँस खाना छोड़ दिया। जो कहते थे कि अल्लाह के लिए कुर्बानी दो, अल्लाह ने माँस खाने का आदेश दिया है। लेकिन मुझे यह संत रामपाल जी महाराज की शरण में आने के बाद पता लगा कि अल्लाह का ऐसा कोई आदेश नहीं था। अल्लाह के लिए कुर्बानी देने का मतलब था कि आपकी जो बुराईयाँ हैं, आप उनको छोड़ दो। अल्लाह ताला ने कभी भी माँस खाने का आदेश नहीं दिया। मैं और भी बहुत से लोगों को मिला लेकिन मुझे कहीं से कोई संतुष्टि नहीं मिली। संतुष्टि केवल संत रामपाल जी महाराज के तत्त्वज्ञान से मिली। किसी भी मुसलमान प्रवक्ता के पास ऐसा ज्ञान नहीं है। मैं खुद एक मुसलमान हूँ और सभी मुसलमान भाईयों से कहना चाहता हूँ कि मैंने जितनी भी नमाज पढ़ी हैं, नियत पढ़ी हैं, वह अल्लाह ताला के बारे में बोलते है कि:-

‘‘सुभाना कल्ला हममा वा बी हमदीका बाता बारा कसमूका’’

इसकी हिंदी निकालकर देखो तो आपको कहीं पर भी नहीं मिलेगा कि आप परमात्मा की प्रार्थना कर रहे हो क्योंकि यह प्रार्थना है ही नहीं। आप तो आदेश दे रहे हो। मैंने हिंदी निकालकर देखी।

‘‘अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन। अर्रहमानिर रहीम। मालिकि योमिद्दीन इय्या-क नाबुदू व इय्या-क नस्तईन। इहदि नस-सिरातल मुस्तकीम, सिरातल लजी-न अन-अम-त अलैहिम गैरिल मग्जूबि अलैहिम वलज-जाल्लीन (अमीन)’’

यह प्रार्थना हम शुरू में पढ़ते थे। लेकिन इसका कोई मतलब ही नहीं निकला क्योंकि इसमें कोई प्रार्थना की चीज है ही नहीं। हम तो आदेश दे रहे हैं कि ऐ पैगंबर! तू वहाँ जा, ये कर, वो कर। यह प्रार्थना नहीं थी। हमें प्रार्थना करनी है। नमाज का मतलब समझना है। नमाज का मतलब जो परमात्मा बताते हैं कि अपनी अरदास लगाना, प्रार्थना करना, नित्य नियम करना। जब हम पैदा होते हैं, तब हिंदू होते हैं। जब हमारी मुसलमानी कर दी जाती है, तब हम मुसलमान हो जाते हैं। ऐसा क्यों? अगर मालिक ने हमें मुसलमान ही बनाना था तो वह मालिक हमारी ऊपर से ही मुसलमानी करके भेजता। इसका किसी भी मुल्ला-काजी के पास कोई जवाब नहीं है। ना ही कभी मुहम्मद साहब ने माँस को छूआ था। उनके 1 लाख 80 हजार शिष्य हो गए थे। लेकिन उन्होंने कभी भी माँस को नहीं छूआ और ना माँस खाने के लिए बोला।

मेरी विश्व के सभी मुसलमान भाईयों से प्रार्थना है कि माँस खाना मतलब हम अपने बेटे का माँस खा रहे हैं। एक माँस दूसरे माँस को खा रहा है। इससे बड़ा राक्षस और कौन होगा? मेरी विश्व के सभी मुसलमान भाईयों से प्रार्थना है कि मुसलमान हो तो मुसले ईमान बनो। लेकिन हमारा ईमान कहाँ है? हमारा ईमान तो कुछ है नहीं, आज हम माँस खाते हैं। फिर तम्बाकू खा लेते हैं। फिर झूठ बोलते हैं। लेकिन पहले मुसलमान समाज में ऐसा नहीं था। पहले अगर किसी मुसलमान व्यक्ति के ऊपर शराब भी गिर जाती थी तो जिस अंग पर शराब गिरती थी, वह उस अंग को काट देता था। आज मुसलमान शराब पीते हैं। मस्जिद में शराब लेकर चले जाते हैं। कुर्बानी देते हैं, बकरे को काट देते हैं। मुसलमान समाज एक पाक समाज है। वह सिवाय अल्लाह ताला के किसी को नहीं मानते। लेकिन आज का मुसलमान समाज मुल्ला-काजियों द्वारा भ्रमित है। मेरे पिताजी जिनकी हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी, उनके फेफड़े गल गए थे। तब मैंने उनसे कहा कि अब कहाँ गया आपका खुदा? वह रोजे भी रखते थे, नमाज पढ़ते थे। लेकिन उस दुःख के समय में वह कुछ काम नहीं आया। तब उन्होंने संत रामपाल जी महाराज से प्रार्थना की कि मैं जन्मजात नाम ले लूँगा। मेरी यह बीमारी ठीक कर दो।

मेरे पूरे घर वालों ने, यहाँ तक कि डाॅक्टरों ने भी बोल दिया था कि अब ये जीवित नहीं रह सकता। लेकिन संत रामपाल जी महाराज की दया से मेरे पिता जी की बीमारी ठीक हो गई। परमात्मा के नाम में इतनी शक्ति है कि आप बिना नाम उपदेश लिए अगर सच्चे दिल से परमात्मा को याद करते हो तो वह परमात्मा आपके सारे दुःख ठीक कर देता है। अगर आप अब भी परमात्मा को नहीं पहचान रहे तो फिर कब पहचानोगे? अब मैंने संत रामपाल जी महाराज की शरण में आने के बाद तहेदिल से तीन बार कलाम-ए-पाक को पढ़ा है। वहाँ पर मुझे एक-एक चीज के बारे में पता लगा। वहाँ पर एक बात लिखी है कि शुरू करता हूँ उस अल्लाह ताला के नाम से जो सबसे बड़ा है और वह अपने बंदे के गुनाहों को माफ करने वाला है।

सूरः फुरकानि-25 आयत 52 से 59 में कबीर परमात्मा को बड़ा बोला गया है। मैंने बहुत से मुल्ला-काजियों से पूछा कि कबीर का अर्थ क्या है? उन्होंने बताया कि ‘कबीर गुनाह’ है। कौन-सा गुनाह है? पाप का है या चोरी का है? कौन-सा गुनाह है? उन्होंने कहा कि कबीर गुनाह है जिसकी कोई माफी नहीं हो सकती। यह उनका अज्ञान है। सबको भ्रमित किया हुआ है। असली ज्ञान तो यह था कि वह कबीर परमात्मा है। कबीर ही अल्लाह है। हजरत मुहम्मद साहब को भी कबीर परमात्मा जिंदा बाबा के रूप में मिले थे। जब मुहम्मद जी ने जिंदा गाय को मार दिया था। लेकिन फिर उनसे वह गाय जीवित नहीं हुई और वह गुफा के अंदर चले गए और बहुत जोर से रोए और बोले अल्लाह-हू कबीर, अल्लाह-हू कबीर। फिर परमात्मा अल्लाह सूक्ष्म रूप बनाकर वहाँ पर आए और उन्होंने कहा कि जा हजरत तेरी गाय जीवित कर दी है और उस दिन से मुहम्मद साहब की महिमा बनी। जिस दिन गाय को काटा गया था, उस दिन को इन मुसलमान भाईयों ने लिख लिया और उसी दिन से यह जीव हत्या की परंपरा चल पड़ी। अगर आपको मेरी बातों पर यकीन नहीं होता तो आप अपने मुल्ला-काजियों से जाकर पूछो कि अगर मुहम्मद साहब इतने प्यारे थे तो उनकी मौत इतनी दुर्गति से क्यों हुई? अपने मुल्ला-काजियों से जाकर पूछो। सारा ज्ञान खंगालो। अगर फिर भी संतुष्टि नहीं होती है तो आप यहाँ बरवाला आश्रम में आओ और आपको यहाँ सभी प्रश्नों का उत्तर संतुष्टि के साथ दिया जाएगा। आपको बिल्कुल संतुष्ट किया जाएगा। हमारी जाति ‘‘मानव जाति’’ है। हमारा हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। अगर आप इस जाति प्रथा में चलते रहे तो आप कभी भी अल्लाह ताला की प्राप्ति नहीं कर सकते। अजान जो हम लगाते हैं, अजान का मतलब ही क्या होता है?

अश्हदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाह। अशहदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाह।
अश्हदु अन-न मुहम्मदर्रसूलुल्लाह। अश्हदु अन-न मुहम्मदर्रसूलुल्लाह।
हय-य अलस्सलाह। हय-य अलस्सलाह।
हय-य अलल फलाह। हय-य अलल फलाह।
अल्लाहू अकबर। अल्लाहू अकबर।
ला इला-ह इल्लल्लाह असिस्लातु खैरूम्मिनन्नौम, अस्सलातु खैरूम्मिन्नौस।

इसका मतलब हमें आज तक नहीं पता लगा। बस सब लोग भेड़ चाल चल रहे हैं। एक के पीछे एक। अगर कोई सही रास्ता बताता है तो लोग उसकी सुनते नहीं। कहते हैं कि हमारे बड़े-बुजुर्ग इसी परंपरा को निभाते आए हैं।

अब समय है सही साधना करने का। भेड़ चाल से मुक्ति नहीं होगी। मुक्ति तो सतभक्ति से ही होगी और वर्तमान में वह केवल संत रामपाल जी महाराज जी के पास है। मेरी विश्व के सभी मुस्लिम भाईयों से प्रार्थना है कि समय रहते इस ज्ञान को समझ लो। अभी समय से संत रामपाल जी महाराज के तत्त्वज्ञान को समझो क्योंकि परमात्मा की वाणी है कि:- गरीबदास यह वक्त जात है, रोओगे इस पहरे नंू।

यह हकीकत बात है। आज आप जितना लेट यहाँ आओगे तो आपके हाथ कुछ नहीं लगेगा रोने के सिवाय। कुरआन शरीफ में कहीं पर भी बकरे की कुर्बानी नहीं लिखी है। वहाँ पर कुर्बानी लिखी है, कुर्बानी का मतलब है कि अल्लाह ताला की राहों में अपनी बुराईयों को कुर्बान कर देना, उनको छोड़ देना, ना कि बकरे को काट देना, मुर्गे को काट देना। हम ईद पर जितनी भी कुर्बानी देते हैं, वह हमारे पाप इकठ्ठे हो रहे हैं। कलमा पढ़कर बकरे की कुर्बानी देना बहुत बड़ा पाप है, बहुत बड़ा हराम है। अगर मुल्ला-काजियों ने यह बात पहले बता दी होती तो इतने बड़े पाप नहीं होते। इन्हीं की वजह से आज मुसलमान समाज में मुसलमान शुरू से ही माँस खाने लग जाता है। परमात्मा ने हमें यहाँ भेजा था तो कुछ नियम बनाकर भेजे थे और अगर हम परमात्मा के नियमों को तोड़ते हैं तो हम सीधा शैतान के पास जाते हैं। नरक में जाएँगे। अल्लाह कबीर है और उस अल्लाह का ज्ञान वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज के अलावा और किसी के पास भी नहीं है। अगर मुल्ला-काजियों को थोड़ा-सा भी ज्ञान था तो उन्होंने क्यों नहीं बताया कि कुरआन शरीफ में यह कहा है कि उस अल्लाह की खबर किसी बाखबर से पूछो। यह मानुष जन्म दुर्लभ है। समय रहते इसका सदुपयोग कर लो। बाद में पछतावे के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। आज आप पढ़े-लिखे हो। अपनी पवित्र पुस्तकों को पढ़कर देखो। उनमें सब कुछ लिखा है। आपको वहाँ बहुत कुछ मिलेगा। वह अल्लाह ताला साकार है। कण-कण में समाया हुआ है। हमारी कुरआन शरीफ में लिखा है कि उस अल्लाह ताला ने 6 दिन में सृष्टि की रचना की और सातवें दिन तख्त पर जा विराजा। उस अल्लाह ताला की खबर किसी बाखबर से पूछकर तो देखो।

वर्तमान में वह बाखबर (तत्त्वदर्शी) संत रामपाल जी महाराज हैं। आप पवित्र कुरआन शरीफ को खोलकर देखो। उसमें स्पष्ट लिखा है कि वह अल्लाह ताला कबीर है। वह सातवें आसमान पर बैठा है। हम सब उसी की आत्माएँ हैं। यह पूरा संसार उसी की आत्मा है। हमारा मोक्ष केवल शास्त्रों के अनुसार की हुई सत्भक्ति से ही हो सकता है। सत्भक्ति के लिए आपको तत्त्वदर्शी संत की तलाश करनी पड़ेगी। उस तत्त्वदर्शी संत के द्वारा बताई गई सत्भक्ति से ही आत्मा की मुक्ति संभव है। वर्तमान में वह तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं। अल्लाह ताला के भेजे हुए नुमाइंदे हैं। अल्लाह ताला के फरिश्ते हैं। इनके द्वारा बताई गई सत्भक्ति को अगर आप पूरी तड़फ के साथ करोगे तो आप वास्तव में उस जन्नत में चले जाओगे जहाँ पर वह अल्लाह ताला विराजमान है। इस काल के लोक में सभी के ऊपर दुःखों का पहाड़ टूटा हुआ है और वह दुःख केवल संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर ही समाप्त हो सकते हैं।

भगत शहजाद दास
गुरूग्राम (हरियाणा)
सम्पर्क सूत्र:- 8950781981

इस पुस्तक में सर्व ज्ञान पाक कुरआन व महापुरूषों की पवित्र अमृतवाणी से लिखा है। इसको पढ़कर पाठक को संदेह की गुंजाईश नहीं रहेगी।

मेरा उद्देश्य विश्व के मानव को भक्ति की सही दिशा देना है। सत्य की राह पर लगाना है। निःस्वार्थ प्रयत्न कर रहा हूँ। परमात्मा व सतगुरू को साक्षी मानकर भय मानकर परोपकार कर रहा हूँ। आशा करता हूँ कि विश्व का मानव वर्तमान में शिक्षित है। अपने-अपने पवित्र ग्रन्थों को स्वयं समझेगा और मेरे परोपकारी कार्य को सफल बनाने में मदद करेगा। अपना तथा अपने परिवार का कल्याण करवाएगा।

सर्व मानव का शुभचिंतक
रामपाल दास
(सतपुरूष का अंतिम नबी)

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