नेकी, सेऊ, सम्मन के बलिदान की कथा
जिस समय परमेश्वर कबीर जी ने काशी में एक सौ बीस वर्ष लीला की थी, उस समय दिल्ली के निवासी सम्मन जाति से मनियार, उसकी पत्नी नेकी तथा पुत्र शिव (सेऊ) ने परमेश्वर से दीक्षा ली थी। आर्थिक स्थिति कमजोर थी। परमात्मा के उपदेश का दृढ़ता से पालन करते थे। परमेश्वर पर पूर्ण विश्वास था। दोनों पति-पत्नी स्त्रिायों को चूड़ियाँ पहनाने का कार्य घर-घर जाकर करते थे। साथ में अपने गुरूदेव कबीर जी की महिमा भी किया करते थे।
बताया करते थे कि हमारे सतगुरू देव जी ने राजा सिकंदर लोधी का असाध्य रोग आशीर्वाद मात्र से ठीक कर दिया। बादशाह सिकंदर ने स्वामी रामानन्द जी की गर्दन काट दी थी। उसको सतगुरू कबीर जी ने धड़ पर गर्दन जोड़कर जीवित कर दिया। एक कमाल नाम का लड़का मर गया था। उसके कबीले वालों ने अंतिम संस्कार रूप में दरिया में प्रवाह कर दिया था। शेखतकी जो राजा सिकंदर जी का धर्मगुरू है, उसको विश्वास नहीं था कि रामानंद जी की गर्दन काटने के पश्चात् भी कबीर जी ने जीवित कर दिया। वह राजा से कहता था कि कबीर जन्त्र-मन्त्र जानता है और कुछ नहीं है, मुर्दे कभी जिंदे नहीं होते। मेरे सामने कोई मुर्दा जिन्दा करे तो मानूँ।
{राजा सिकंदर को कबीर जी पर पूर्ण विश्वास था क्योंकि वह तो रोग से महादुःखी था तथा रामानन्द स्वामी जी को अपने हाथों से कत्ल किया था। उसके सामने कबीर जी ने जीवित किया था।} शेखतकी भी दरिया पर उपस्थित था। मुर्दे को देखकर कहा कि यदि मेरे सामने इस मुर्दे को जीवित कर दे तो मैं कबीर को अल्लाह का नबी मान लूँगा।
कबीर जी ने कहा कि हे शेख जी! आप भी बड़े पहुँचे हुए पीर हो, आप कोशिश करो, बाद में कहोगे कि मैं भी कर देता। उपस्थित सर्व मन्त्रियों और बादशाह ने भी यही कहा कि आप कौन-से छोटी हस्ती हो? कर दो काम।
शेखतकी ने शर्म के मारे जन्त्र-मन्त्र किए, परंतु व्यर्थ। कहा कि मुर्दे जिन्दा नहीं हुआ करते। कबीर तो चाहता है कि मुर्दा बहकर दूर चला जाए और इज्जत रह जाए। वह चला गया मुर्दा। कबीर जी ने अपने हाथ का संकेत किया और कहा मुर्दा वापिस आओ। इन्जन वाली नौका के समान बालक का शव वापिस आ गया। कबीर जी ने कहा, हे जीवात्मा! जहाँ भी है, कबीर हुक्म से शव में प्रवेश कर और बाहर आओ। उसी समय वह 12 वर्षीय बालक जीवित होकर दरिया से बाहर आ गया। उपस्थित दर्शकों ने कहा, कबीर जी! कमाल कर दिया। बालक का नाम कमाल रख दिया। परमात्मा कबीर जी ने उस कमाल बालक को अपने घर बच्चे की तरह पाला। शेखतकी शर्म से पानी-पानी हो गया, परंतु माना नहीं। कहने लगा कि बालक को सदमा हुआ था। गलती से मृत मानकर जल प्रवाह कर दिया था। जब जानूँ, मेरी बेटी कई दिनों से कब्र में दबा रखी है। वह मृत्यु को प्राप्त हो चुकी है। उसको कबीर जीवित कर दे।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि दो दिन बाद तेरी बेटी को जीवित कर दूँगा। आसपास के गाँव तथा दिल्ली में मुनादी करा दो कि सब आकर देखें। ऐसा ही किया गया। कब्र तोड़ दी गई। कबीर परमेश्वर जी ने कहा, शेख जी! प्रयत्न करो, कहीं बाद में कहे कि लड़की सदमे में थी। उपस्थित जनता ने कहा कि कबीर जी! यदि शेख में शक्ति होती तो अपनी बेटी को कैसे मरने देता? आप कोशिश करो। कबीर जी ने कहा कि हे शेखतकी की बेटी! जीवित हो जा। लड़की जीवित नहीं हुई। ऐसा दो बार कहा। लड़की जीवित नहीं हुई। शेखतकी को अपनी बेटी के जीवित न होने का दुःख नहीं, कबीर जी की हार की खुशी मनाने लगा और ताली बजाते हुए नाचने लगा। कबीर जी ने कहा, हे जीवात्मा! जहाँ भी हो, कबीर हुक्म से अपने शरीर में प्रवेश कर और कब्र से बाहर आओ। कहने की देरी थी, उसी समय 12 वर्षीय कन्या के शरीर में हलचल हुई और लड़की उठकर बाहर आई और कबीर जी को दण्डवत् प्रणाम किया। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे शेखतकी की बेटी! अपने पिता के साथ घर जाओ। शेखतकी ने भी बेटी का हाथ पकड़ा और घर चलने को कहा। कन्या का नाम कमाली रखा क्योंकि उपस्थित जनता ने कहा, कमाल है, कमाल है। इसलिए कमाली नाम रखा।
कमाली ने कहा कि शेखतकी की ओर से तो मैं यमराज के पास जा चुकी थी। अब तो मैं अल्लाह अकबर की बेटी हूँ। यह कबीर स्वयं अल्लाह है। इस प्रकार लड़की ने कबीर परमेश्वर जी के आशीर्वाद से 1) घण्टे तक प्रवचन किए। अपने पूर्व के जन्मों की जानकारी दी कि एक बार मैं राबिया थी। उस समय 12 वर्ष की आयु में कबीर जी मिले थे। मैंने 4 वर्ष इनकी बताई साधना की थी। फिर अपने मुसलमान धर्म वाली साधना करने लगी थी जो व्यर्थ थी। फिर मैं बांसुरी लड़की बनी। मक्के में अपना शरीर भी काटकर अर्पित कर दिया था। अगले जन्म में मैंने वैश्या का जीवन जीया। उन चार वर्ष की सत्यभक्ति से मुझे 2) जन्म मनुष्य के मिले थे। अब मेरा कोई मानव जीवन शेष नहीं था। पशु की योनि में जाना था। उसी समय परमेश्वर कबीर जी धर्मराज के पास गए और मुझे छुड़ाकर लाए और शरीर में प्रवेश कर दिया। इनकी कृपा से मुझे मानव जीवन मिला है। अब मैं अपने वास्तविक पिता अल्लाह कबीर जी के साथ रहूँगी।
कबीर जी ने कमाली को बेटी की तरह पाला और अपने घर पर रखा। उपस्थित लाखों की सँख्या में दर्शकों ने परमेश्वर कबीर जी से दीक्षा ली। सबको प्रथम 5 मन्त्र का उपदेश दिया। {इस प्रकार कबीर जी के उस समय 64 लाख शिष्य हो गए थे। वे चमत्कार देखकर ही शरण में आए थे।} दिल्ली नगर की स्त्रिायाँ नेकी तथा सम्मन से ये अनोखी बातें सुनकर बाद में चर्चा करती थी कि क्या ये बातें सम्भव हो सकती हैं? कुछ तो कहती थी कि हमारे घर वाला भी उस समय वहीं उपस्थित था। जब शेख की लड़की कब्र से निकालकर जीवित की गई थी, परंतु मेरा पति इस बात से नाराज हुआ कि कबीर क्यों ले गया लड़की को? जिसकी बेटी थी, उसको सौंप देनी थी। भावार्थ है कि कुल मिलाकर वे स्त्रियां अंदर से मजाक रूप में मानती थी, परंतु उनके सम्मुख चुप रह जाती थी।
एक समय साहेब कबीर अपने भक्त सम्मन के यहाँ अचानक दो सेवकों (कमाल व शेखफरीद) के साथ पहुँच जाते हैं। सम्मन के घर कुल तीन प्राणी थे। सम्मन, सम्मन की पत्नी नेकी और सम्मन का पुत्र सेऊ (शिव)। भक्त सम्मन इतना गरीब था कि कई बार अन्न भी घर पर नहीं होता था। सारा परिवार भूखा सो जाता था। आज वही दिन था। भक्त सम्मन ने अपने गुरुदेव कबीर साहेब से पूछा कि साहेब खाने का विचार बताएँ, खाना कब खाओगे?
कबीर साहेब ने कहा कि भाई भूख लगी है। भोजन बनाओ। सम्मन अन्दर घर में जा कर अपनी पत्नी नेकी से बोला कि अपने घर अपने गुरुदेव भगवान आए हैं। जल्दी से भोजन तैयार करो।
नेकी ने कहा कि घर पर अन्न का एक दाना भी नहीं है।
सम्मन ने कहा पड़ोस वालों से उधार मांग लाओ।
नेकी ने कहा कि मैं मांगने गई थी लेकिन किसी ने भी उधार आटा नहीं दिया। उन्होंने आटा होते हुए भी जान बूझ कर नहीं दिया और कह रहे हैं कि आज तुम्हारे घर तुम्हारे गुरु जी आए हैं। तुम कहा करते थे कि हमारे गुरु जी भगवान हैं। आपके गुरु जी भगवान हैं तो तुम्हें माँगने की आवश्यकता क्यों पड़ी? ये ही भर देगें तुम्हारे घर को आदि-2 कह कर मजाक करने लगे।
सम्मन ने कहा लाओ आपका चीर गिरवी रख कर तीन सेर आटा ले आता हूँ।
नेकी ने कहा यह चीर फटा हुआ है। इसे कोई गिरवी नहीं रखता। सम्मन सोच में पड़ जाता है और अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए कहता है कि मैं कितना अभागा हूँ। आज घर भगवान आए और मैं उनको भोजन भी नहीं करवा सकता। हे परमात्मा! ऐसे पापी प्राणी को पृथ्वी पर क्यों भेजा। मैं इतना नीच रहा हूँगा कि पिछले जन्म में कोई पुण्य नहीं किया। अब सतगुरु को क्या मुंह दिखाऊँ? यह कह कर अन्दर कोठे में जा कर फूट-2 कर रोने लगा।
तब उसकी पत्नी नेकी कहने लगी कि हिम्मत करो। रोवो मत। परमात्मा आए हैं। इन्हें ठेस पहुँचेगी। सोचेंगे हमारे आने से तंग आ कर रो रहा है। सम्मन चुप हुआ। फिर नेकी ने कहा आज रात्रि में दोनों पिता पुत्र जा कर तीन सेर (पुराना बाट किलो ग्राम के लगभग) आटा चुरा कर लाना। केवल संतों व भक्तों के लिए।
तब लड़का सेऊ बोला माँ - गुरु जी कहते हैं चोरी करना पाप है। फिर आप भी मुझे शिक्षा दिया करती कि बेटा कभी चोरी नहीं करनी चाहिए। जो चोरी करते हैं उनका सर्वनाश होता है। आज आप यह क्या कह रही हो माँ? क्या हम पाप करेंगे माँ? अपना भजन नष्ट हो जाएगा। माँ हम चैरासी लाख योनियों में कष्ट पाएंगे। एैसा मत कहो माँ। माँ आपको मेरी कसम।
तब नेकी ने कहा पुत्र तुम ठीक कह रहे हो। चोरी करना पाप है परंतु पुत्र हम अपने लिए नहीं बल्कि संतों के लिए करेंगे। जिस नगर में निर्वाह किया है। इसकी रक्षा के लिए चोरी करेंगे। नेकी ने कहा बेटा - ये नगर के लोग अपने से बहुत चिढ़ते हैं। हमने इनको कहा था कि हमारे गुरुदेव कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा) पृथ्वी पर आए हुए हैं। इन्होंने एक मृतक गऊ तथा उसके बच्चे को जीवित कर दिया था जिसके टुकड़े सिंकदर लौधी ने करवाए थे। एक लड़के तथा एक लड़की को जीवित कर दिया। सिंकदर लौधी राजा का जलन का रोग समाप्त कर दिया तथा श्री स्वामी रामानन्द जी (कबीर साहेब के गुरुदेव) को सिंकदर लौधी ने तलवार से कत्ल कर दिया था वे भी कबीर साहेब ने जीवित कर दिए थे। इस बात का ये नगर वाले मजाक कर रहे हैं और कहते हैं कि आपके गुरु कबीर तो भगवान हैं तुम्हारे घर को भी अन्न से भर देंगे। फिर क्यों अन्न (आटे) के लिए घर घर डोलती फिरती हो?
बेटा! ये नादान प्राणी हैं। यदि आज साहेब कबीर इस नगरी का अन्न खाए बिना चले गए तो काल भगवान भी इतना नाराज हो जाएगा कि कहीं इस नगरी को समाप्त न कर दे। हे पुत्र! इस अनर्थ को बचाने के लिए अन्न की चोरी करनी है। हम नहीं खाएंगे। केवल अपने सतगुरु तथा आए भक्तों को प्रसाद बना कर खिलाएगें। यह कह कर नेकी की आँखों में आँसू भर आए और कहा पुत्र नाटियो मत अर्थात् मना नहीं करना।
तब अपनी माँ की आँखों के आँसू पौंछता हुआ लड़का सेऊ कहने लगा - माँ रो मत, आपका पुत्र आपके आदेश का पालन करेगा। माँ आप तो बहुत अच्छी हो न।
अर्ध रात्रि के समय दोनों पिता (सम्मन) पुत्र (सेऊ) चोरी करने के लिए जाते हैं। एक सेठ की दुकान की दीवार में छिद्र किया। सम्मन ने कहा कि पुत्र मैं अन्दर जाता हूँ। यदि कोई व्यक्ति आए तो धीरे से कह देना मैं आपको आटा पकड़ा दूंगा और ले कर भाग जाना।
सेऊ ने कहा नहीं पिता जी, मैं अन्दर जाऊँगा। यदि मैं पकड़ा भी गया तो बच्चा समझ कर माफ कर दिया जाऊँगा।
सम्मन ने कहा पुत्र यदि आपको पकड़ कर मार दिया तो मैं और तेरी माँ कैसे जीवित रहेंगे? सेऊ प्रार्थना करता हुआ छिद्र द्वार से अन्दर दुकान में प्रवेश कर जाता है। तब सम्मन कहता है कि पुत्र! केवल तीन सेर आटा लाना, अधिक नहीं। लड़का सेऊ लगभग तीन सेर आटा अपनी फटी-पुरानी चद्दर में बाँधकर चलने लगता है तो अंधेरे में तराजू के पलड़े पर पैर रखा गया। जोरदार आवाज हुई जिससे दुकानदार जाग जाता है और सेऊ को चोर-चोर करके पकड़कर रस्से से बाँध देता है। इससे पहले सेऊ वह चद्दर में बँधा हुआ आटा उस छिद्र से बाहर फैंक देता है और कहता है कि पिता जी! मुझे सेठ ने पकड़ लिया है। आप आटा ले जाओ और सतगुरु व भक्तों को भोजन करवाना। मेरी चिंता मत करना।
आटा लेकर सम्मन घर पर गया तो सेऊ को न पा कर नेकी ने पूछा लड़का कहाँ है?
सम्मन ने कहा उसे सेठ जी ने पकड़ कर थाम्ब से बाँध दिया।
नेकी ने कहा कि आप वापिस जाओ और लड़के सेऊ का सिर काट लाओ क्योंकि लड़के को पहचान कर अपने घर पर लाएंगे। फिर सतगुरु को देख कर नगर वाले कहेंगे कि ये हैं जो चोरी करवाते हैं। हो सकता है सतगुरु देव को परेशान करें। हम पापी प्राणी अपने दाता को भोजन के स्थान पर कैद न करवा दें। यह कहकर माँ अपने बेटे का सिर काटने के लिए अपने पति से कह रही है वह भी गुरुदेव जी के लिए।
सम्मन ने हाथ में कर्द (लम्बा छुरा) लिया तथा दुकान पर जा कर कहा सेऊ बेटा, एक बार गर्दन बाहर निकाल। कुछ जरूरी बातें करनी हैं। कल तो हम नहीं मिल पाएंगे। हो सकता है ये आपको मरवा दें। तब सेऊ उस सेठ (बनिए) से कहता है कि सेठ जी बाहर मेरा बाप खड़ा है। कोई जरूरी बात करना चाहता है। कृप्या करके मेरे रस्से को इतना ढीला कर दो कि मेरी गर्दन छिद्र से बाहर निकल जाए। सेठ ने उसकी बात को स्वीकार करके रस्सा इतना ढीला कर दिया कि गर्दन आसानी से बाहर निकल गई।
सेऊ ने कहा पिता जी मेरी गर्दन काट दो। यदि आप मेरी गर्दन नहीं काटोगे तो आप मेरे पिता नहीं हो। मुझे पहचानकर घर तक सेठ पहुँचेगा। राजा तक इसकी पहुँच है। यह अपने गुरूदेव को मरवा देगा। पिताजी हम क्या मुख दिखाऐंगे? सम्मन ने एकदम करद मारी और सिर काट कर घर ले गया। सेठ ने लड़के का कत्ल हुआ देखकर उसके शव को घसीट कर साथ ही एक पजावा (ईटें पकाने का भट्ठा) था, उस खण्डहर में डाल गया।
जब नेकी ने सम्मन से कहा कि आप वापिस जाओ और लड़के का धड़ भी बाहर मिलेगा उठा लाओ। जब सम्मन दुकान पर पहुँचा। उस समय तक सेठ ने उस दुकान की दीवार के छिद्र को बंद कर लिया था। सम्मन ने शव कीे घसीट (चिन्हों) को देखते हुए शव के पास पहुँच कर उसे उठा लाया। ला कर अन्दर कोठे में रख कर ऊपर पुराने कपड़े (गुदड़) डाल दिए और सिर को अलमारी के ताख (एक हिस्से) में रख कर खिड़की बंद कर दी।
कुछ समय के बाद सूर्य उदय हुआ। नेकी ने स्नान किया। सतगुरु व भक्तों का खाना बनाया। सतगुरु कबीर साहेब जी से भोजन करने की प्रार्थना की। नेकी ने साहेब कबीर व दोनों भक्त (कमाल तथा शेख फरीद), तीनों के सामने आदर के साथ तीन दौनों (मिट्टी के बर्तनों) में भोजन परोस दिया। साहेब कबीर ने कहा इसे छः दौनों में डाल कर आप तीनों भी साथ बैठो। यह प्रेम प्रसाद पाओ। बहुत प्रार्थना करने पर भी साहेब कबीर नहीं माने तो छः दौनों में प्रसाद परोसा गया। पाँचों प्रसाद के लिए बैठ गए। तब साहेब कबीर जी ने कहा:-
आओ सेऊ जीम लो, यह प्रसाद पे्रम। शीश कटत हैं चोरों के, साधों के नित्य क्षेम।।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि सेऊ आओ भोजन पाओ। सिर तो चोरों के कटते हैं। संतों (भक्तों) के नहीं। उनकी तो रक्षा होती है। उनको तो क्षमा होती है। साहेब कबीर ने इतना कहा था उसी समय सेऊ के धड़ पर सिर लग गया। कटे हुए का कोई निशान भी गर्दन पर नहीं था तथा पंगत (पंक्ति) में बैठ कर भोजन करने लगा। बोलो कबीर साहेब (कविरमितौजा) की जय। (वेदों के वचन:- कविर् = कविर्देव = कबीर परमेश्वर, अमित $ औजा = जिसकी शक्ति का कोई वार-पार न हो।)
सम्मन तथा नेकी ने देखा कि गर्दन पर कोई चिन्ह भी नहीं है। लड़का जीवित कैसे हुआ? अन्दर जा कर देखा तो वहाँ शव तथा शीश नहीं था। केवल रक्त के छीटें लगे थे जो इस पापी मन के संशय को समाप्त करने के लिए प्रमाण बकाया था।
ऐसी-ऐसी बहुत लीलाएँ साहेब कबीर (कविरग्नि) ने की हैं जिनसे यह स्वसिद्ध है कि ये ही पूर्ण परमात्मा हैं। सामवेद संख्या नं. 822 तथा ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2 में कहा है कि कविर्देव अपने विधिवत् साधक साथी की आयु बढ़ा देता है। यदि मृत्यु को भी प्राप्त हो चुका हो, उसे धर्मराज से छुड़वाकर सौ वर्ष का जीवन दे देता है।