हिन्दू भाईजान नहीं समझे गीता का ज्ञान

‘‘गीता ज्ञान देने वाले ने अपने से अन्य परमेश्वर की शरण में जाने को कहा है’’

वर्तमान के हिन्दू धर्म के गीता मनीषियों व शंकराचार्यों को यह भी नहीं पता कि गीता ज्ञान देने वाले ने गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में अपने से अन्य किस परमेश्वर की शरण में जाने को कहा है। ये कहते हैं कि श्री विष्णु उर्फ श्री कृष्ण यानि गीता ज्ञान दाता से अन्य कोई भगवान ही नहीं है।

वास्तविकता इस प्रकार है:-

हिन्दू भाईजान नहीं समझे गीता का ज्ञान

गीता का ज्ञान बताने वाले ने गीता अध्याय 7 के श्लोक 29 में अर्जुन को बताया था कि ‘‘जो साधक जरा (वृद्धावस्था) मरण (मृत्यु) से छुटकारा (मोक्ष) चाहते हैं व तत् ब्रह्म से, सम्पूर्ण आध्यात्म से तथा सर्व कर्मों से परिचित हैं।

अर्जुन ने गीता अध्याय 8 श्लोक 1 में प्रश्न किया कि गीता अध्याय 7 श्लोक 29 में जो तत् ब्रह्म कहा है, वह क्या है? इसका उत्तर गीता ज्ञान देने वाले प्रभु ने गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में बताया है कि वह ‘‘परम अक्षर ब्रह्म’’ है।

इसके बाद गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 8 श्लोक 5, 7 में अर्जुन को अपनी भक्ति करने को कहा है तथा इसी अध्याय 8 श्लोक 8-9-10 में अपने से अन्य परम अक्षर ब्रह्म यानि सच्चिदानंद घन ब्रह्म की भक्ति करने को कहा है। यह भी स्पष्ट किया है कि जो मेरी भक्ति करता है, वह मुझे प्राप्त होता है। जो तत् ब्रह्म यानि परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति करता है, वह उसी को प्राप्त होता है। फिर अपनी भक्ति का मंत्र ओम् (ॐ) यह एक अक्षर बताया है तथा तत् ब्रह्म (परम अक्षर ब्रह्म/दिव्य परमेश्वर सच्चिदानंद घन ब्रह्म) की भक्ति का तीन नाम का ‘‘ओम् (ॐ) तत् सत्’’ बताया है।

गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता ने उसी परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने से परम शांति को तथा (शाश्वतम् स्थानम्) सनातन परम धाम (जिसे संत गरीबदास जी ने सत्यलोक/अमरलोक कहा है।) को प्राप्त होना संभव बताया है।

गीता का ज्ञान समझे संत रामपाल दास विद्वान

उपरोक्त ज्ञान संत रामपाल जी द्वारा बताया व गीता शास्त्र में सत्संगों के माध्यम से वीडियो में दिखाया है। हमें यानि हिन्दुओं को दिखाया व निष्कर्ष निकालकर समझाया है। जिसको हमारे हिन्दू धर्म प्रचारक/गुरूजन/मनीषी और मंडलेश्वर नहीं समझ सके। दास (लेखक) ने समझा है।

हिन्दू भाई जान कृपया पढ़ें फोटोकाॅपी उपरोक्त श्लोकों की:-

(गीता अध्याय 7 श्लोक 29 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 7 Verse 29

(गीता अध्याय 8 श्लोक 1 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 8 Verse 1

(गीता अध्याय 8 श्लोक 3 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 8 Verse 3

(गीता अध्याय 8 श्लोक 5 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 8 Verse 5

(गीता अध्याय 8 श्लोक 7 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 8 Verse 7

(गीता अध्याय 8 श्लोक 8 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 8 Verse 8

(गीता अध्याय 8 श्लोक 9 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 8 Verse 9

(गीता अध्याय 8 श्लोक 10 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 8 Verse 10

इससे स्पष्ट हो जाता है कि ‘‘हिन्दू नहीं समझे गीता का ज्ञान’’। {इसे समझे संत रामपाल दास विद्वान।}

विशेष:- हिन्दू भाईयो! कबूतर के आँख बंद कर लेने से बिल्ली का खतरा टल नहीं जाता। यह उसका भ्रम होता है।

सच्चाई को आँखों देखो। स्वीकार करो। आप शिक्षित हो। 21वीं सदी के सभ्य व शिक्षित हो। आज दो सौ वर्ष पुराना भारत नहीं है। जिस समय अपने पूर्वज अशिक्षित व पूर्ण निर्मल आत्मा वाले थे। हमारे अज्ञानी धर्म प्रचारकों/मण्डलेश्वरों/मनीषियों/ आचार्यों/शंकराचार्यों को पूर्ण विद्वान/गीता मनीषी मानकर इनकी झूठ पर अंध-विश्वास (blind faith) किया और इनके द्वारा बताई शास्त्र विधि त्यागकर मनमाना आचरण वाली भक्ति करके अनमोल जीवन नष्ट कर गए और हमने अपने पूर्वजों की परंपरा का निर्वाह आँखें बंद किए हुए शुरू कर दिया। पूरा पवित्र हिन्दू समाज इन तत्त्वज्ञानहीनों द्वारा भ्रमित है। अब तो आँखें खोलो। आप पुनः पढ़ें गीता। आप जानोगे कि गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में कहा है कि हे अर्जुन! जो शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण (भक्ति) करता है, उसे न तो सुख मिलता है, न उसको सिद्धि (सत्य शास्त्रनुकूल साधना से होने वाली कार्य सिद्धि) प्राप्त होती है, न उसकी गति (मोक्ष) होती है।

विचार करें हिन्दू भाईजान! भक्ति इन्हीं तीन वस्तुओं के लिए की जाती है।

  1. जीवन में सुख मिले।
  2. कार्य सिद्ध हों, कोई संकट न आए।
  3. मोक्ष मिले।

शास्त्र में न बताई साधना व भक्ति करने से ये तीनों नहीं मिलेंगी। इसलिए जो गीता में नहीं करने को कहा, वह नहीं करना चाहिए।

गीता अध्याय 16 के श्लोक 24 में यह भी स्पष्ट कर दिया है। कहा है कि:-

गीता अध्याय 16 श्लोक 24:- इससे तेरे लिए हे अर्जुन! कर्तव्य (कौन-सी साधना करनी चाहिए) तथा अकर्तव्य (कौन-सी साधना नहीं करनी चाहिए) में शास्त्र ही प्रमाण हैं।

  • हिन्दू धर्मगुरू व प्रचारक आचार्य, शंकराचार्य तथा गीता मनीषी गीता ज्ञान देने वाले (जिसे ये श्री विष्णु का अवतार श्री कृष्ण कहते हैं) को अविनाशी बताते हैं। कहते हैं इनका जन्म-मृत्यु नहीं होता। इनके कोई माता-पिता नहीं हैं जो झूठ है।

आप देखें स्वयं गीता अध्याय 2 श्लोक 12, गीता अध्याय 4 श्लोक 5, गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में गीता ज्ञान देने वाला (इनके अनुसार श्री विष्णु उर्फ श्री कृष्ण जी) कहता है कि

  • ‘‘हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। (गीता अध्याय 4 श्लोक 5)

  • हे अर्जुन! ऐसा नहीं है कि मैं-तू तथा ये सब राजा व सैनिक पहले नहीं थे या आगे नहीं होंगे। अर्थात् मैं (गीता ज्ञान दाता) तू (अर्जुन) तथा ये सब सैनिक आदि-आदि सब पहले भी जन्मे थे, आगे भी जन्मेंगे। (गीता अध्याय 2 श्लोक 12)

  • मेरी उत्पत्ति को न तो ऋषिजन जानते हैं, न सिद्धगण तथा न देवता जानते हैं क्योंकि मैं इन सबका आदि कारण (उत्पत्तिकर्ता) हूँ। (गीता अध्याय 10 श्लोक 2)

हिन्दू भाईजान! कृपया पढ़ें फोटोकाॅपी श्रीमद्भगवत गीता पदच्छेद अन्वय के उपरोक्त श्लोकों की यानि गीता अध्याय 16 श्लोक 24, गीता अध्याय 4 श्लोक 5, गीता अध्याय 2 श्लोक 12, गीता अध्याय 10 श्लोक 2 जो गीता प्रैस गोरखपुर से मुद्रित है तथा श्री जयदयाल गोयन्दका द्वारा अनुवादित है:-

(गीता अध्याय 16 श्लोक 24 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 16 Verse 24

(गीता अध्याय 2 श्लोक 12 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 2 Verse 12

(गीता अध्याय 4 श्लोक 5 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 4 Verse 5

(गीता अध्याय 10 श्लोक 2 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 10 Verse 2

विचार करें पाठकजन! जो जन्मता-मरता है, वह अविनाशी नहीं है, नाशवान है। नाशवान समर्थ नहीं होता।

प्रश्न:- यदि गीता ज्ञान देने वाला (श्री विष्णु उर्फ श्री कृष्ण जी) जन्मता-मरता है यानि नाशवान है तो अविनाशी यानि जन्म-मरण से रहित कौन प्रभु है जो गीता ज्ञान दाता से अन्य है?

उत्तर:- यह उत्तर गीता अध्याय 2 श्लोक 17 तथा गीता अध्याय 15 के श्लोक 16- 17 में तथा गीता अध्याय 18 श्लोक 46, 61 तथा 62 में है।

गीता अध्याय 2 श्लोक 17:- (गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य परमेश्वर की महिमा कही है।) नाशरहित तो उसको जान जिससे यह सम्पूर्ण जगत व्याप्त है। इस अविनाशी का विनाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है। {गीता अध्याय 18 श्लोक 46 में भी अपने से अन्य परमेश्वर की महिमा गीता ज्ञान दाता ने बताई है।}

गीता अध्याय 18 श्लोक 46:- जिस परमेश्वर से सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति हुई है (और) जिससे यह सम्पूर्ण जगत व्याप्त है। अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परम सिद्धि को प्राप्त हो जाता है।

गीता अध्याय 18 श्लोक 61:- {गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य परमेश्वर की महिमा बताई है।}

हे अर्जुन! शरीर रूप यंत्र में आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को परमेश्वर अपनी माया से (उनके कर्मों के अनुसार) भ्रमण कराता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित है।

गीता अध्याय 18 श्लोक 62:- {इस श्लोक में गीता ज्ञान दाता ने अर्जुन को उपरोक्त अपने से अन्य परमेश्वर की शरण में सर्व भाव से जाने के लिए कहा है।} हे भारत! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से (ही तू) परम शांति को (तथा) सनातन परम धाम यानि सत्यलोक (अमर स्थान) को प्राप्त होगा।

‘‘गीता ज्ञान दाता से अन्य व अविनाशी तथा सबका धारण-पोषण करने वाले परमेश्वर का प्रमाण केवल वही परमात्मा है, का प्रमाण’’

गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में:-

गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में कहा है कि इस संसार में दो पुरूष (प्रभु) हैं। एक क्षर पुरूष तथा दूसरा अक्षर पुरूष। ये दोनों तथा इनके अंतर्गत सब प्राणी नाशवान हैं।

गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में गीता ज्ञान देने वाले ने स्पष्ट कर दिया है कि:-

गीता अध्याय 15 श्लोक 17:- उत्तम पुरूष यानि श्रेष्ठ परमेश्वर तो उपरोक्त क्षर पुरूष और अक्षर पुरूष से अन्य ही है जो परमात्मा कहा जाता है। जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है और वही अविनाशी परमेश्वर है।

हिन्दू भाईजान! कृपया पढ़ें प्रमाण के लिए उपरोक्त श्लोकों की फोटोकाॅपी श्रीमद्भगवद गीता पदच्छेद, अन्वय से जो गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित है तथा श्री जयदयाल गोयन्दका द्वारा अनुवादित है:-

(गीता अध्याय 2 श्लोक 17 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 2 Verse 17

(गीता अध्याय 18 श्लोक 46 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 18 Verse 46

(गीता अध्याय 18 श्लोक 61 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 18 Verse 61

(गीता अध्याय 18 श्लोक 62 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 18 Verse 62

(गीता अध्याय 15 श्लोक 16 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 15 Verse 16

(गीता अध्याय 15 श्लोक 17 की फोटोकाॅपी)

Gita Chapter 15 Verse 17

भ्रम निवारण:- गीता अध्याय 15 श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता ने बताया है कि मैं लोकवेद (दंत कथा) के आधार से पुरूषोत्तम प्रसिद्ध हूँ क्योंकि मैं अपने अंतर्गत सब प्राणियों से उत्तम हूँ।

परमेश्वर गीता ज्ञान दाता से अन्य है

विचार करो:- गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में परम अक्षर ब्रह्म (पुरूष) अपने से अन्य बताया है। श्लोक 5-7 में अपनी भक्ति करने को कहा है तथा गीता अध्याय 8 के ही श्लोक 8-9-10 में अपने से अन्य परम अक्षर ब्रह्म यानि परम अक्षर पुरूष/ सच्चिदानंद घन ब्रह्म यानि दिव्य परम पुरूष (परमेश्वर) की भक्ति करने को कहा है। गीता अध्याय 8 श्लोक 9 में भी उसी को सबका धारण-पोषण करने वाला बताया है। इसी प्रकार गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में अपने से अन्य परम अक्षर पुरूष को पुरूषोत्तम कहा है। उसी को सबका धारण-पोषण करने वाला अविनाशी कहा है। फिर गीता अध्याय 15 श्लोक 18 में अपनी स्थिति बताई है कि मैं तो लोक वेद (सुनी-सुनाई बातों/दंत कथाओं) के आधार से पुरूषोत्तम प्रसिद्ध हूँ। {वास्तव में पुरूषोत्तम तो ऊपर गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में बता दिया है।}

कुछेक व्यक्ति श्लोक 18 को पढ़कर कहते हैं कि देखो! गीता ज्ञान देने वाला अपने को पुरूषोत्तम कह रहा है। इससे अन्य कोई पुरूषोत्तम नहीं है। उसकी मूर्ख सोच का उत्तर ऊपर स्पष्ट कर दिया है।

प्रश्न:- शास्त्रों में कौन-से भक्ति कर्म (कर्तव्य) करने योग्य तथा कौन-से कर्म (अकर्तव्य) न करने योग्य हैं?

उत्तर:- श्रीमद्भगवद् गीता में गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में गीता ज्ञान देने वाले प्रभु ने अपनी भक्ति/पूजा का केवल एक अक्षर ॐ (ओम्) स्मरण करने का बताया है। इसके अतिरिक्त अन्य नाम (अकर्तव्य) न जाप करने वाले हैं।

गीता अध्याय 3 श्लोक 10-15 में यज्ञ करना (कर्तव्य) करने योग्य भक्ति कर्म कहा है। उनमें (परम अक्षर ब्रह्म) अविनाशी परमात्मा को ईष्ट रूप में प्रतिष्ठित करने को कहा है।

यज्ञ पाँच प्रकार की हैं:-

  1. धर्म यज्ञ
  2. ध्यान यज्ञ
  3. हवन चज्ञ
  4. प्रणाम यज्ञ
  5. ज्ञान यज्ञ।

इनको करने की विधि तत्त्वदर्शी संत बताता है। यह प्रमाण गीता अध्याय 4 श्लोक 32-33-34 में भी है। कहा है कि सच्चिदानंद घन ब्रह्म अपने मुख कमल से बोली वाणी में तत्त्वज्ञान बताता है। उससे पूर्ण मोक्ष होता है। उसको जानकर तू कर्म बंधन से सर्वथा मुक्त हो जाएगा। (गीता अध्याय 4 श्लोक 32)

गीता अध्याय 4 श्लोक 33:- हे परंतप अर्जुन! द्रव्यमय (धन से खर्च करके की जाने वाली) यज्ञ से ज्ञान यज्ञ यानि तत्त्वदर्शी संत का सत्संग सुनना अधिक श्रेष्ठ है। क्योंकि तत्त्वदर्शी संत धर्म-कर्म व जाप आदि करने की शास्त्रोक्त विधि बताता है। जैसे बिना ज्ञान के कर्ण (छठा पांडव) ने केवल सोना (gold) ही दान किया। उससे उसको स्वर्ग में सोने (gold) के पर्वत पर छोड़ दिया। उसे भूख लगी तो भोजन माँगा। उसे बताया गया कि आपने अन्न दान (धर्म यज्ञ) नहीं किया। केवल सोना दान किया। इसलिए भोजन नहीं मिलेगा। यदि तत्त्वदर्शी संत मिला होता तो कर्ण पाँचों यज्ञ करके पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता। इसलिए गीता अध्याय 4 श्लोक 33 में कहा है कि द्रव्यमय यज्ञ से ज्ञान यज्ञ श्रेष्ठ है यानि (ज्ञान यज्ञ) तत्त्वदर्शी संत का ज्ञान सुनने से पता चलता है कि शास्त्रविधि अनुसार कौन से भक्ति कर्म हैं?

गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि उस तत्त्वज्ञान को जो सच्चिदानंद घन परमात्मा अपने मुख से वाणी बोलकर बताता है, उस वाणी में लिखा है। उसको तत्त्वदर्शी संतों के पास जाकर समझ। उनको भली-भांति दण्डवत् प्रणाम करने से उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्त्व को जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे।

तत्त्वज्ञान केवल संत रामपाल दास के पास है

वह तत्त्वज्ञान मेरे (लेखक-रामपाल दास के) पास है जो सूक्ष्मवेद (स्वसमवेद) में स्वयं सच्चिदानंद घन ब्रह्म कबीर जी ने अपने मुख कमल से बोली वाणी यानि कबीर वाणी में बोलकर बताया है जो श्री धर्मदास जी (बांधवगढ़ वाले) ने लिखा है। फिर परमेश्वर कबीर जी ने वही ज्ञान अपनी प्रिय आत्मा संत गरीबदास जी को बताया था तथा अपना सत्यलोक दिखाया था। फिर संत गरीबदास जी ने आँखों देखी महिमा कबीर जी की बताई है। सूक्ष्मवेद में सम्पूर्ण आध्यात्म ज्ञान है। चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) का ज्ञान सूक्ष्मवेद से लिया गया है। परंतु अधिक ज्ञान छोड़ा गया है। उसकी पूर्ति करने के लिए परमेश्वर स्वयं पृथ्वी पर आए थे। सम्पूर्ण आध्यात्म ज्ञान बताया था।

सम्पूर्ण तथा अधिक जानकारी के लिए हिन्दू भाईजान कृपया पढ़ें पुस्तक ‘‘गीता तेरा ज्ञान अमृत’’ जो लेखक {संत रामपाल दास जी महाराज (सतलोक आश्रम बरवाला)} द्वारा लिखी है जिसकी कीमत मात्र 10 रूपये है। यदि आप इस पुस्तक को निःशुल्क मंगवाना चाहते हैं तो कृपया अपना पूरा नाम, पता हमें नीचे दिए नंबर SMS या Whatsapp करें। यह पुस्तक बिल्कुल फ्री दी जाएगी। डाक खर्च भी आपको नहीं देना होगा। अन्य पुस्तकें ज्ञान गंगा, जीने की राह, अंध श्रद्धा भक्ति खतरा-ए-जान भी SMS या Whatsapp द्वारा निःशुल्क मंगवाई जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त उपरोक्त तथा अन्य सभी पुस्तकें हमारी website या संत रामपाल जी महाराज एप से निःशुल्क डाउनलोड कर सकते हैं। हमारी वेबसाईट है:- www.jagatgururampalji.org सत्संग सुनने के लिए YouTube पर सर्च करें ‘Sant Rampal Ji Maharaj Channel’’ SMS या Whatsapp करने के लिए हमारा सम्पर्क सूत्र:- 7496801825

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