तीसरी किस्त

राधा स्वामी पंथ की कहानी-उन्हीं की जुबानी: जगत गुरु

(धन-धन सतगुरु, सच्चा सौदा तथा जय गुरुदेव पंथ भी राधास्वामी की शाखाएं हैं)

(तीसरी किस्त)
(26 मार्च 2006 को पंजाब केसरी में प्रकाशित) (गतांक से आगे-----)

प्रश्नः- आपके द्वारा लिखे लेख समाचार पत्र दैनिक पंजाब केसरी में पढ़े। ‘‘राधास्वामी पंथ की कहानी उन्हीं की जुबानी’’ किस्त 1 तथा 2 को पढ कर मालूम हुआ कि सचमुच राधास्वामी पंथ के सन्तों से तो दूसरी कक्षा का विद्यार्थी भी कुछ अच्छा लिख सकता है। परन्तु राधास्वामी पंथ व इसकी शाखाओं (धन-धन सतगुरू-सच्चा सौदा आदि) में लाखों की संख्या में अनुयाई हैं। क्या सर्व मूर्ख हैं? इस संस्था में बहुत शिक्षित वर्ग भी है जिसमें आई.ए.एस., आई.पी.एस. तथा वकील व मजिस्ट्रेट भी जुड़े हैं। क्या उन्होंने नहीं पढ़ा होगा? अब उन पुस्तकों को पढ़ते हैं तो रोना आता है मेरे 20 वर्ष व्यर्थ कर दिये अब मैं क्या करूं ? घर का रहा न घाट का मेरी आयु 65 वर्ष है। अब सन्तों से विश्वास उठ गया।

उत्तरः- प्रिय श्रद्धालु जो शिक्षित वर्ग व उच्च अधिकारी गण राधास्वामी पंथ तथा उस की शाखाओं (धन-धन सतगुरू-सच्चा सौदा, जय गुरूदेव) से जुड़े हैं। वे मूर्ख नहीं हैं अपितु प्रभु प्रेमी व नेक हैं। जो पढ़ाई पढ़ कर वे उच्चधिकारी बने हैं। उस पढ़ाई से अध्यात्मिक ज्ञान का कोई मेल नहीं है। जैसे वैद्य (डाक्टर) के पास रोगी जाता है वह उस वैद्य के द्वारा दी गई दवाई के विषय में नहीं सोचता कि यह ठीक है या गलत। वैद्य के पास चाहे आई.ए.एस. चाहे पी.एच.डी. वाला भी जाए तो भी डाक्टर की दवाई को नहीं परख सकता। डाक्टर(वैद्य) वाली पढ़ाई भिन्न होती है। उस को अन्य वैद्य (डाक्टर) ही परख सकता है।

जो अब मुझ दास (रामपाल दास) द्वारा परखी गई है जो साधना विधि अन्य सन्तों तथा पन्थों द्वारा भक्त समाज को बताई गई है वह शास्त्रविरूद्ध है, इसलिए व्यर्थ है। अतः आप सर्व को चाहिए कि पुनर् विचार करें तथा स्वयं शास्त्रों को मुझ दास द्वारा बताए तरीके से समझें और तुलना करें। आसानी से निष्कर्ष निकल जाएगा। रही बात लाखों की संख्या में जमघट होने की यह सब एक दुसरे की देखा देखी लगे हैं।

जैसे यह दास (रामपाल दास) श्री हनुमान जी की साधना करता था। राजस्थान प्रांत के चूरू जिला के गाँव सालासर में प्रतिवर्ष पूजा के लिए जाता था। वहाँ देखता था कि कोई राजस्थान प्रांत का मंत्री पूजा के लिए आया होता, कोई हरियाणा प्रान्त का मंत्री पूजा के लिए आया होता था। लाखों की संख्या में अन्य श्रद्धालु पूजा के लिए जाते थे। उन बड़े व्यक्तियों को तथा अधिक समूह को देख कर संतुष्ट हो जाता था कि जब यहाँ पर इतने बड़े-बड़े मंत्री जी तथा अन्य सेठ लोग आते हैं तो हमारी साधना सही है।

परन्तु जब पूर्ण सन्त मिला सर्व शास्त्रों का अध्ययन किया तो यह दास स्तब्ध रह गया। पूरे पवित्र हिन्दु समाज को अपने सद्ग्रन्थों (पवित्र गीता जी, पवित्र चारों वेदों तथा पवित्र पुराण) के विपरीत ज्ञान प्राप्त है तथा साधना भी शास्त्रविधि त्याग कर मनमाना आचरण(पूजा) कर रहे हैं। अभी तक पवित्र हिन्दु समाज को यह नहीं पता था कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिवजी के माता पिता कौन है।

इन्हें अजरो-अमर-मृत्युंज्य-सर्व लोकों के रचनहार कुल के कत्र्ता ही बताया जाता रहा है। जबकि पवित्र देवी महापुराण (तीसरे स्कंद) तथा पवित्र शिवपुराण में रूद्र संहिता 6 तथा 7 अध्याय में स्पष्ट लिखा है कि सदाशिव अर्थात कालरूपी ब्रह्म तो इनका पिता है तथा दुर्गा(प्रकृति) इनकी माता है। तीनों ने स्वयं कहा है कि हमारा तो आविर्भाव अर्थात जन्म तथा तिरोभाव अर्थात मृत्यु होती है। हम अविनाशी नहीं हैं। यह भी लिखा है कि रजगुण ब्रह्मा जी हैं, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिवजी हैं। पवित्र गीता जी अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में तीनों भगवानों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी) की पूजा करने वालों को मूर्ख कहा है। गीता अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में स्पष्ट लिखा हैः- प्रकृति (दुर्गा) तो सर्व प्राणियों की माता है और मैं ब्रह्म(काल/क्षर पुरूष) सर्व का पिता हूँ। प्रकृति(दुर्गा) से तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) उत्पन्न हुए हैं। ये तीनों प्रभु जीवात्मा को शरीर में बांधते हैं अर्थात मुक्त नहीं होने देते।

नोटः- पवित्र गीता जी पवित्र चारों वेदों का सारांश है इसलिए इस में सांकेतिक शब्दों का प्रयोग भी अधिक है।

यदि बहु संख्या या उच्च शिक्षायुक्त व्यक्तियों या उच्च पद को देख कर ही सत्य साधना का प्रमाण माना जाए तो पवित्र हिन्दु समाज की जनसंख्या लगभग सत्तर करोड़ है तथा प्रधानमंत्री तथा जज तक हिन्दु भी लोक वेद अनुसार अर्थात शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण(पूजा) कर रहे हैं। क्योंकि अध्यात्मिक ज्ञान सर्व शिक्षाओं से भिन्न है। इसलिए अध्यात्मिक ज्ञान को समझने के लिए शास्त्रों को ही आधार माना जाता है जो आज भी साक्षी हैं। पवित्र गीता जी तथा पवित्र वेदों में भी सतलोक का विवरण विस्तृत वर्णित है परन्तु कोई नहीं समझ सका। केवल सतलोक जाने तथा सतपुरूष प्राप्ति की विधि पवित्र गीता जी तथा पवित्र वेदों में वर्णित नहीं है। वह परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपनी अमृतवाणी में बताई है फिर भी सारशब्द गुप्त रखा था जो अब मुझ को बताया है।

इसलिए पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में स्पष्ट किया है कि शास्त्रविधि त्याग कर मनमाना आचरण(पूजा) करना व्यर्थ है तथा सत्य साधना जो करनी चाहिए तथा असत्य साधना जो त्यागनी चाहिए उसके लिए शास्त्रों को ही आधार माने। किसी सन्त विशेष के कहने मात्र से ही साधना स्वीकार न करें। पवित्र हिन्दु समाज के श्रद्धालुओं को समझाना अति आसान है क्योंकि वे पवित्र गीता जी तथा पवित्र वेदों तथा पवित्र पुराणों को सत्य मानते हैं। अब प्रमाण देखकर मुझ दास (रामपाल दास) द्वारा बताए भक्ति मार्ग को स्वीकार कर रहे हैं। परन्तु राधास्वामी पंथ तथा इसी की शाखाओं (धन-धन सतगुरू-सच्चा सौदा-जय गुरूदेव-ठाकुर सिंह वाला समूह) के सन्तों ने तो अनुयाई श्रद्धालुओं को कहीं का नहीं छोड़ा। सन्तजन कहते हैं कि हम गीता तथा वेदों को नहीं मानते क्योंकि हमारा ज्ञान तो इन से ऊपर का है। कबीर साहेब जी कहते हैंः-

‘‘कच्ची सरसौं पेली, खल भया न तेल’’

प्रिय श्रद्धालु कृप्या पढ़ें राधास्वामी पंथ तथा उसकी शाखाओं (धन-धन सतगुरू-सच्चा सौदा जय गुरूदेव मथुरा वाले-कृपाल सिंह तथा ठाकुर सिंह आदि) के प्रथम परम सन्त परमधनी हजूर स्वामी शिवदयाल जी(राधास्वामी जी) का ज्ञान जो पवित्र गीता जी तथा पवित्र वेदों से भी बढ़कर है या कोरा अज्ञान है।

राधास्वामी कोई स्थान है या भगवान है या सतपुरूष है या नाम मन्त्र है या कोई सन्त है? कोरा अज्ञान है:-

कृप्या पढ़ें पुस्तक ‘‘सार वचन राधास्वामी वार्तिक’’ पहला भाग तथा दूसरा भाग (प्रकाशकः- एस.एल. सौंधी सैक्रेटरी राधास्वामी सत्संग ब्यास, डेरा बाबा जैमल सिंह, जिला-अमृतसर पंजाब) के भूमिका पृष्ठ 1 तथा वचन सं. 1, 3, 4, 12, 28, 52, 67. भाग-2 के वचन 31 की फोटो काॅपी। इसी पुस्तक (सच्चखण्ड का संदेश) पृष्ठ 94 से 96 पर।

पुस्तक सार वचन वार्तिक की भूमिका में लिखा हैः- यह पुस्तक हजूर स्वामी जी महाराज(शिवदयाल जी उर्फ राधास्वामी) जी के सत्संग वचनों का संग्रह है जो उनके मुख कमल से निकले हैं। जिनको बाद में पुस्तक सारवचन वार्तिक के रूप में छपवाया गया। जिन का शुभ नाम सेठ शिवदयाल सिंह जी था माता जी का नाम महामाया जी तथा पिता जी का नाम सेठ दिलवाली सिंह जी था। फोटो कापी इसी पुस्तक (सच्चखण्ड का संदेश) के पृष्ठ 94 पर।

वचन 1 में लिखा हैः- जीवात्मा अर्थात सुरत को रूह कहते हैं यह सबसे ऊँचे स्थान यानी सतनाम और राधास्वामी पद से उतरी है(इसमें राधास्वामी तथा सतनाम को स्थान कहा है) फोटो कापी इसी पुस्तक (सच्चखण्ड का संदेश) के पृष्ठ 94 पर।

वचन 3 में कहा है कि पाँचवीं मंजिल सतनाम तथा आठवीं मंजिल राधास्वामी (इसमें भी दोनों को स्थान कहा है) फोटो कापी इसी पुस्तक (सच्चखण्ड का संदेश) के पृष्ठ 94 पर।

वचन 4 में राधास्वामी पद को सबसे ऊँचा स्थान(मुकाम) भी कहा है तथा भगवान भी कहा है। फिर अन्त की पंक्तियों में कहा है कि राधास्वामी ला मकान है जिसे स्थान भी नहीं कह सकते फिर लिखा है इसी को कहते हैं। इसी वचन 4 में सतनाम के विषय में लिखा है राधास्वामी स्थान से दो स्थान छोड़कर सतनाम का स्थान है। फिर सतनाम और सतशब्द और सारशब्द और सतलोक और सतपुरूष को एक बताया है(भगवान-स्थान-नाम-शब्द एक कर दिया)। फोटो कापी इसी पुस्तक (सच्चखण्ड का संदेश) के पृष्ठ 94 पर।

इस वचन सं. 12 में एक बार लिखा है सतनाम का स्थान सतलोक प्रकाशवान है महानाद-सतशब्द-सतपुरूष और आदि पुरूष भी इसी सतलोक को कहते हैं। फिर कहा है कि सन्त इसी पुरूष का रूप यानी अवतार है। यह स्थान दयाल पुरूष का है। इस स्थान में अत्यधिक आत्माऐं अर्थात भक्त भिन्न-2 द्वीपों में बसते हैं तथा सतपुरूष का दर्शन आन्नद लेते हैं। साधना सतपुरूष राधास्वामी की बताई है। कृप्या पढ़ें फोटो कापी इसी पुस्तक (सच्चखण्ड का संदेश) के पृष्ठ 95 पर।

विचार करेंः-राधास्वामी पंथ का सिद्धान्त है कि सतपुरूष निराकार है। सतलोक में सतपुरूष साकार नहीं है। केवल प्रकाश ही प्रकाश है। सतलोक में जाने वाली रूह परमात्मा में ऐसे समा जाती हैं जैसे समुद्र में बूंद। यहाँ वचन 12 में सतपुरूष साकार लिखा है कहा है कि आत्माऐं सतलोक में सतपुरूष का दर्शन करती हैं। यह भी लिखा है कि सन्त इसी सतलोक स्थान के अवतार हैं। फिर सतपुरूष राधास्वामी एक लिख दिया।

कृप्या प्रेमी पाठक स्वयं निर्णय करें क्या श्री शिवदयाल जी (राधास्वामी) को प्रभु प्राप्ति हुई होगी ? जिसको यही पता नहीं सतनाम क्या है? सतपुरूष किसे कहते हैं? सारशब्द क्या है? सारनाम क्या है?

सतनाम तो नाम जाप है, जो दो मन्त्र का है। जिसमें एक ॐ मन्त्र व दूसरा तत्(जो सांकेतिक है यह दास केवल उपदेशी को बताएगा) मन्त्र है। सतलोक वह स्थान है जहाँ पूर्ण परमात्मा रहता है। सतपुरूष अर्थात् पूर्ण परमात्मा साकार है। सारनाम भी जाप करने का है यह भी साँकेतिक है।

वचन 28 में सतपुरूष तथा राधास्वामी को एक बताया है तथा इसे सन्त रूप में प्रकट होकर जीव उद्धार करने वाला बताया है। कृप्या पढ़ें फोटो कापी इसी पुस्तक (सच्चखण्ड का संदेश) के पृष्ठ 95 पर।

वचन 52 में लिखाः- उस सन्त रूप में आए सतपुरूष राधास्वामी के बताए मार्ग से साधक ‘‘स्थान सतपुरूष राधास्वामी’’ में पहुँच जाता है। कृप्या पढ़ें फोटो कापी इसी पुस्तक (सच्चखण्ड का संदेश) के पृष्ठ 96 पर।

विचार करेंः- वाह रे गीता तथा वेदों से श्रेष्ठ ज्ञान देने वालो ! ऐसे वचन तो कोई भांग के नशे में बोल सकता है। ऐसे विचार परमात्मा प्राप्त सन्त के नहीं हो सकते। ये विचार राधास्वामी पंथ के सर्वोपरी महात्मा श्री शिवदयाल जी जिसे ही राधास्वामी नाम से जाना जाता था के हैं।

वचन 67 तथा 31 का निष्कर्ष:- वचन 67 में लिखा है कि सच्चा मालिक सतपुरूष राधास्वामी है जो पारब्रह्म से भी परे है अर्थात बड़ा है। फिर वचन 31 में कहा है कि वह पारब्रह्म परमात्मा सन्त-सतगुरू रूप धार कर जीवों को सतमार्ग बताता है। यहाँ पर सतपुरूष राधास्वामी तथा पारब्रह्म एक बताया है, वचन 67 में पारब्रह्म से भी परे अर्थात् बड़ा कहा है। फिर वचन 67 में ही कहा है कि वह सतपुरूष राधास्वामी सन्त रूप में आया उसी ने ‘‘राधास्वामी’’ नाम प्रकट किया जो इस नाम ‘‘राधास्वामी’’ का जाप राधास्वामी की शरण लेकर जाप करता है या धुन सुनता है उसका उद्वार हो जाता है। वह (वचन 52 के अनुसार) ‘‘स्थान सतपुरूष राधास्वामी’’ में पहुँच जाता है। कृप्या पढ़ें फोटो कापी इसी पुस्तक (सच्चखण्ड का संदेश) के पृष्ठ 96 पर।

विचार करेंः- उपरोक्त विवरण में कहीं तो राधास्वामी नाम जाप का कहा है। कहीं सन्त, कहीं स्थान कहा है, कहीं कुल मालिक कहा है। फिर यह भी कहा है कि राधास्वामी ने राधास्वामी नाम प्रकट किया। राधास्वामी का जाप करने वाला स्थान सतपुरुष राधास्वामी में पहुंच जाता है। यह तो ऐसा विवरण है जैसे कोई कहे कि रोहतक शहर अपने स्थान रोहतक से संत बन कर आया है, रोहतक शहर ने अपना रोहतक नाम प्रकट किया जो रोहतक की शरण होकर रोहतक नाम जाप करे वह स्थान संत रोहतक में पहुंच जाएगा।

वाह रे सन्त मत का नाश करने वाले विद्वानों! खूब मूर्ख बनाया भोले श्रद्धालुओं को। फिर कहा है कि राधास्वामी नाम का चाहे जाप करले, चाहे धुन सुन ले, एक जैसा ही लाभ होता है।

विचार करेंः- सतनाम अर्थात सच्चे नाम (निज नाम अर्थात वास्तविक नाम है जो दो अक्षर/मन्त्र का होता है) का जाप तो मजदूरी करके नाम की कमाई करनी होती है तथा धुन तो नाम के जाप से प्रकट होती है जो नाम की मजूदरी का फल है।

यदि कोई कहे, चाहे तो मजदूरी करले, चाहे प्राप्त धन को देखता रहे वह अवश्य धनी हो जाएगा। क्या ऐसे विचार समझदार व्यक्ति के हो सकते हैं? उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि श्री शिवदयाल जी (राधास्वामी) को कुछ भी ज्ञान नहीं था। उसी के विचारों पर आधारित धन-धन सतगुरू-सच्चा सौदा, श्री कृपाल सिंह दिल्ली वाले श्री ठाकुर सिंह वाले तथा जयगुरूदेव मथुरा वाला पंथों के अनुयाई हंै। जो सर्व अपने मानव जीवन को व्यर्थ कर रहे हैं।

निष्कर्ष:- वास्तव में श्री शिवदयाल जी की धर्मपत्नी का नाम नारायणी देवी था। उसी का उर्फ नाम ‘‘राधा’’ था। राधा जी का पति (स्वामी) होने के कारण श्री शिवदयाल जी को राधास्वामी कहने लगे। जैसे उमा (पार्वती) का पति (स्वामी) होने के कारण भगवान शिव उमास्वामी कहलाते हैं। जहाँ भी शिवपुराण में उमास्वामी शब्द आता है तो श्री शिव जी का बोध होता है। इसी प्रकार राधास्वामी भी श्री शिवदयाल का ही बोधक है। श्री सालगराम जी ने श्री शिवदयाल (राधास्वामी) को पूर्ण परमात्मा मान कर इन्हीं के नाम से पंथ चला दिया। इस पुस्तक सार वचन वार्तिक में कोरे गपौड़ लिखे हैं। पाठकों ने किस्त-2 में पढ़ा कि श्री शिवदयाल जी(राधास्वामी) हुक्का पीते थे तथा हठयोग साधना करते थे जो सन्त मत के विरूद्ध है। शास्त्रविधि त्याग कर मनमाना आचरण (पूजा) करते थे। श्री शिवदयाल जी का कोई वक्त गुरू नहीं था। राधास्वामी पंथ का परम सिद्धान्त है कि वक्त गुरू बिना मोक्ष कभी नहीं हो सकता। जिस कारण श्री शिवदयाल जी मोक्ष से वंचित रह गए। इसलिए मृत्यु पश्चात् अपनी शिष्या बुक्की में प्रवेश करके पितरों व भूतों की तरह बोल कर आदेश देते थे तथा बुक्की के माध्यम से प्रतिदिन हुक्का ग्रहण करते थे अर्थात बुक्की जी के मुख से हुक्का पीते थे तथा खाने की भी सेवा पहले की तरह बुक्की के मुख द्वारा ग्रहण करते थे। बुक्की के शरीर में उसके अन्तिम स्वांस तक प्रवेश रहे।

यह विवरण वचन सं. 65, 31 जीवन चरित्र हजूर स्वामी जी महाराज आगरा से प्रकाशित में है जो आपने दूसरी किस्त में इसी पुस्तक (सच्चखण्ड का संदेश) के पृष्ठ 73-74 पर तथा फोटो कापी पृष्ठ 80-84 पर पढ़ा था।

विचार करेंः- क्या ये मोक्ष प्राप्त प्राणी के लक्षण हो सकते हैं? श्री सालगराम जी जैसे मनमुखी व्यक्तियों ने एक अधूरे ज्ञान युक्त व्यक्ति को परम धनी परम पुरूष बताकर लाखों भोले-भाले श्रद्धालुओं को गुमराह कर दिया। तीन-तीन पीढ़ियों को नरकगामी करा दिया। राधास्वामी पंथ, धन-धन सतगुरु सच्चा सौदा पंथ तथा शाखाओं का सिद्धांत है कि परमात्मा एक है। वह सतलोक में तो निराकार है, केवल प्रकाश है। वही परमात्मा जब संसार में मनुष्य रूप में आता है तो जीव उद्धार करता है।

विचार करें: श्री सावन सिंह के बाद तीन परमात्मा हो गए। शाहमस्ताना जी बेगु रोड़ सिरसा में, श्री कृपाल सिंह जी दिल्ली में तथा श्री जगत सिंह जी और उनके बाद श्री चरण सिंह जी ब्यास में। तीनों समकालीन थे प्रत्येक श्रद्धालु अपने गुरुजी को मनुष्य रूप में परमात्मा आया मानता है यह ज्ञान गीता जी से श्रेष्ठ है या कोरा अज्ञान है। कृप्या श्रद्धालु स्वयं निर्णय करें। श्री शिवदयाल (राधास्वामी) जी तथा अन्य अनुयाईयों (धन धन सतगुरू-सच्चा सौदा-जयगुरूदेव, कृपाल सिंह वाला पंथ-ठाकुर सिंह वाला पंथ) को सतलोक तथा सतपुरूष की भक्ति का क-ख का भी ज्ञान नहीं। श्रद्धालु इन्हें पूर्ण सन्त-पूर्ण धनी मान कर आश्रित हैं। कृप्या अब शिक्षित समाज है स्वयं निर्णय कर सकता है। उस के लिए कृपा दो पुस्तकें:-

  1. ‘‘गहरी नजर गीता में’’ जिसमें 552 पृष्ठ है तथा
  2. ‘‘परमेश्वर का सार संदेश’’ जिसमें 770 पृष्ठ है मुफ्त प्राप्त करें दोनों पुस्तकों का डाक खर्च केवल 35 रूपये पुस्तक लेते समय डाकिए को देने होगें, फोन द्वारा अपना पता लिखवाएं पुस्तकें आपके पास पहुँच जाऐंगी।

सन्त रामपाल जी महाराज की ज्ञान युक्त पुस्तकों में आपको अनमोल ज्ञान पढ़ने को मिलेगा।

शिक्षित वर्ग से प्रार्थना है कि सत्य को देखकर आत्म कल्याण का मार्ग ग्रहण करें तथा मुझ दास को प्रभु कबीर जी का भेजा हुआ कुत्ता जानों जो आप भक्ति धन के धनियों को जगाने के लिए भौंक रहा है। आप के मानव जीवन रूपी धन की हानि हो रही है। भक्त समाज कुम्भकर्ण वाली नींद सो रहा है न जाने कब जागेगा।

तम्बाखु सेवन या शराब-मांस आदि सेवन प्रभु भक्ति को साथ-2 नष्ट करता है। जैसे देशी घी का हलवा बनाकर उसमें बालु रेत भी डाल दिया जाए तो वह हलवा खराब हो गया। इसी प्रकार साधना करके तम्बाखु-शराब-मांस सेवन भक्ति नाशक है। यदि उपरोक्त प्रमाणों को पढ़ कर भी व्यक्ति सावधान नहीं होता तो वह भक्ति चाहने वाला नहीं है।

कुछ श्रद्धालु इस उपकार के कार्य को निन्दा कहते हैं। यह तो ऐसा प्रयत्न जानों जैसे सरकार ने एक समय पाँच सौ रूपये के नकली नोट पकड़े थे। नकली तथा असली नोटों को समाचार पत्रों में छापकर जनता को नकली-असली की पहचान बताई थी। सरकार निन्दा नहीं कर रही थी। अपितु महा उपकार किया था। यही प्रयत्न मुझ दास (रामपाल दास) का है। दूसरे शब्दों में मुझ दास का ऐसा प्रयत्न जानों जैसे एक रेल की पटरी वर्षा से टूट गई थी। एक स्कूल के 12 वर्ष के बच्चे ने देखा कि पटरी टूटी पड़ी है। रेल गाड़ी आ रही है । न जाने कितने यात्रियों की जानें जाएगीं। लड़के ने अपना कमीज निकाला, जोर-2 से हिलाते हुए संकेत करने लगा। बुद्धिमान चालक था। उसने बच्चे की गतिविधि को समझा तथा रेल गाड़ी को रोका तथा बच्चे से कारण पूछा तो पता चला कि भयंकर दुर्घटना टल गई है। ठीक यह दास(रामपाल दास) आप जी को संकेत कर रहा है। जिस राम नाम की गाड़ी में आप बैठे हैं वह ठीक रास्ते नही जा रही है। आपका जीवन व्यर्थ हो रहा है। सर्व सन्तों तथा पंथों के संचालकों (ड्राईवरस) से प्रार्थना है कृपा अपने पंथ की पुस्तकों को जो शास्त्र अनुसार ज्ञानयुक्त नहीं हैं। उस शास्त्रविरूद्ध ज्ञान को(टूटी पटरी को) उतर कर उसे देख लें। आप की लापरवाही से लाखों व्यक्तियों का जीवन नष्ट हो जाएगा। आप स्वयं भी उपदेश मुझ दास से प्राप्त करें तथा अनुयाईयों को भी समझाऐं। नहीं तो आप महापाप के पात्र बनोगे। पहले जो भी हो चुका है उसे भूलें, नए सिरे से ज्ञान तथा उपदेश प्राप्त करके अपना मानव जीवन सफल बनाऐं। मुझे अपना दास या छोटा-बड़ा भाई जानकर अविलम्ब दिक्षा प्राप्त करें। आज पृथ्वी पर पूर्ण ज्ञान पूर्ण परमात्मा(सतपुरूष) का मुझ दास के पास है जो पूर्ण परमात्मा कविर्देव जी(कबीर प्रभु जी) तथा मेरे पूज्य गुरूदेव की असीम कृपा से प्राप्त है। जैसे माननीय प्रधानमंत्री या माननीय राष्ट्रपति जी को भी कोई रोग हो जाता है तो अपने कर्मचारी डाक्टर से उपचार कराते हैं। उनका मान नहीं घटता अपितु जीवन रक्षा होती है। ठीक इसी प्रकार आप सर्व को(श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव सहित) जन्म-मृत्यु का रोग लगा है। इसकी एक मात्र औषधी (सत्यनाम तथा सारनाम) मुझ दास के पास है। अपना उपचार(जन्म-मरण के रोग का निवारण) करवाऐं। राधास्वामी पंथ की पुस्तक संतमत प्रकाश भाग-4 पृष्ठ 261-262 पर नानक साहेब जी की वाणी तथा परमेश्वर कबीर जी की वाणी का प्रमाण दे कर कहा है कि - सोई गुरु पूरा कहावै, दोय अख्खर का भेद बतावै। एक छुड़ावै एक लखावै, तो प्राणी निज घर जावै।। जे तू पढया पंडित बीना, दूय अक्षर दूय नावां।

कबीर जी की वाणी - कह कबीर अक्षर दुय भाख। होयगा खसम त लेयगा राख।। उपरोक्त वाणी में स्पष्ट है कि मुक्ति के लिए दोय अक्षर का नाम जाप है। वह सतनाम मंत्र है। सतनाम में दो अक्षर हैं एक ऊँ, तत् जो साँकेतिक है। केवल उपदेशी को बताया जाएगा। फिर सारनाम भी गुरुदेव द्वारा दिया जाता है। ओम मंत्र ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) का ऋण मुक्त करा कर छुटाएगा तथा तत् नाम परमात्मा तक पहुँचाएगा और सारनाम परमात्मा मिलाएगा। उपरोक्त वाणी में यह भी स्पष्ट है कि पूरा गुरु ही यह दो अक्षर का भेद बताएगा।

विचार करें: यह मंत्र राधास्वामी पंथ व उसकी शाखाओं के पास नहीं है। कुछेक श्रद्धालु कहते हैं कि गुरू बदलने में पाप तो नहीं लगेगा? उन श्रद्धालुओं से निवेदन है कि जैसे एक डाक्टर (वैद्य) से उपचार नहीं होता है तो दूसरा डाक्टर बदलने में लाभ होता है हानि नहीं होती। ठीक इसी प्रकार गुरू को जानो। इसलिए शास्त्रविधि विरूद्ध ज्ञान वाले गुरू को त्यागकर पूर्ण गुरू धारण करना हितकर है। पाप नहीं पूण्य है। कुछ श्रद्धालु संकोच करते हैं कि हम तीस वर्ष से राधास्वामी पंथ से जुड़े हैं अब तीस वर्ष की साधना का क्या होगा? अब कैसे छोड़ें? उन श्रद्धालुओं से निवेदन हैं कि विचार करें कि आपको किसी शहर में जाना है, तीस किलोमीटर जाने के बाद पता चले कि आप गलत रास्ते पर जा रहे हैं तो तुरंत मुड़ जाना चाहिए। नहीं तो मंजिल दूर होती जाएगी। फिर भी कोई कहे कि हम तो तीस किलोमीटर सफर तय कर चुके हैं, अब कैसे छोड़ें इस रास्ते को? यह विचार तो बालक के या शराबी के हो सकते हैं। समझदार तो तुरंत मुड़ जाएगा। इसलिए उस साधना को तुरंत त्यागकर वास्तविक शास्त्रविधि अनुसार साधना ग्रहण करें।

कबीर परमेश्वर कहते हैं किः-

झूठे गुरू को त्यागन में तनिक न लावे वार। द्वार न पावै शब्द का भटकै द्वार-द्वार।

कृप्या निशंकोच अधुरे गुरू को त्याग दें तथा पूर्ण सन्त की शरण ग्रहण करें।
दासन दास रामपाल दास

प्रश्नः- पूर्ण सन्त की पहचान कैसे करें? जहाँ भी जाते हैं वह सन्त पूर्ण लगता है।

उत्तरः-----------------
-------(शेष अगले अंक में)

पुस्तक सारवचन वार्तिक पृष्ठ 2 वचन - 3 की फोटो काॅपी

पुस्तक सारवचन वार्तिक पृष्ठ 3 वचन - 4 की फोटो काॅपी

पुस्तक सारवचन वार्तिक पृष्ठ 1 वचन - 1 की फोटो कॅापी

पुस्तक सारवचन वार्तिक पृष्ठ 8 वचन - 12 की फोटो काॅपी

पुस्तक सार वचन राधास्वामी वार्तिक पृष्ठ 15 वचन 28 की फोटो काॅपी

पुस्तक सारवचन वार्तिक पृष्ठ 31 वचन 52 की फोटो काॅपी

‘‘पुस्तक सार वचन वार्तिक पृष्ठ 45.46 वचन 67 की फोटो काॅपी’’

‘‘पुस्तक सार वचन वार्तिक भाग 2 पृष्ठ 54-55 वचन 31 की फोटो काॅपी’’

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