कादर खुदा का कलयुग में प्राकाट्य

  1. परमेश्वर कबीर जी का लहरतारा तालाब काशी नगर के जंगल में कमल के फूल पर प्रकट होने का वर्णन
  2. कबीर परमेश्वर जी का कलयुग में अवतरण
  3. भक्त सुदर्शन के माता-पिता वाले जीवों के कलयुग के अन्य मानव जन्मों की जानकारी
  4. शिशु कबीर परमेश्वर का नामांकन
  5. शिशु कबीर देव द्वारा कुँवारी गाय का दूध पीना
  6. नीरू को धन की प्राप्ति
  7. शिशु कबीर की सुन्नत करने का असफल प्रयत्न
  8. ऋषि रामानन्द, सेऊ, सम्मन तथा नेकी व कमाली के पूर्व जन्मों का ज्ञान

पारख के अंग की वाणी नं. 376-380:-

गरीब, चैरासी बंधन कटे, कीनी कलप कबीर।
भवन चतुरदश लोक सब, टूटे जम जंजीर।।376।।
गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बंदी छोड कहाय।
सो तौ एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।377।।
गरीब, शब्द स्वरूप साहिब धनी, शब्द सिंध सब मांहि।
बाहर भीतर रमि रह्या, जहाँ तहां सब ठांहि।।378।।
गरीब, जल थल पृथ्वी गगन में, बाहर भीतर एक।
पूरणब्रह्म कबीर हैं, अबिगत पुरूष अलेख।।379।।
गरीब, सेवक होय करि ऊतरे, इस पृथ्वी के मांहि।
जीव उधारन जगतगुरू, बार बार बलि जांहि।।380।।

सरलार्थ:- वाणियों में परमात्मा कबीर जी के कलयुग में प्राकाट्य का प्यारा वर्णन है जो इस प्रकार हैः-

  • वाणी नं. 376-380 में परमात्मा कबीर जी की महिमा का वर्णन है। कहा है कि कबीर परमेश्वर बंदी छोड़ हैं। अनंत करोड़ ब्रह्माण्डों में बन्दी छोड़ के नाम से प्रसिद्ध हैं। बन्दी छोड़ का अर्थ है कैदी को कारागार से छुड़ाने वाला। हम सब जीव काल ज्योति निरंजन की कारागार में बंदी (कैदी) हैं। इस बंदीगृह से केवल कबीर परमात्मा की छुड़ा सकते हैं। इसलिए सब ब्रह्माण्डों में परमात्मा कबीर जी एकमात्र बन्दी छोड़ हैं। केवल कबीर परमेश्वर जी ही एकमात्र हैं जिनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ।(376)

  • जो परमात्मा कबीर जी की शरण में आ जाते हैं, कबीर परमेश्वर जी की कृपा से चैरासी लाख योनियों में जाने वाले बंधन कट जाते हैं। (कर्मों के कारण बंधन होता है। वे पाप कर्म परमात्मा कबीर जी की कृपा से नष्ट हो जाते हैं। सतनाम के जाप से पाप नाश होते हैं।)(377)

  • परमात्मा कबीर जी (शब्द स्वरूपी) अविनाशी रूप हैं। उनकी (शब्द सिंधु) वचन शक्ति समुद्र की तरह अथाह है। जीव एक तुम्बे की तरह है जो समुद्र में पड़ा है। उसके अंदर भी जल बाहर भी जल होता है। ऐसे परमात्मा कबीर जी की शक्ति के अंदर सब ब्रह्माण्डों के जीव हैं। परमात्मा इस प्रकार सर्वव्यापक कहा जाता है। कबीर जी पूर्णब्रह्म हैं। (अविगत पुरूष अलेख) दिव्य अवर्णननीय परमेश्वर है।(378-379)

  • परमात्मा कबीर जी वेदों में बताए उनकी महिमा के अनुरूप लीला करते हैं। ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 82 मंत्र 1.2, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 मंत्र 26.27, ऋग्वेद मण्डल नं9 सूक्त 54 मंत्र 3, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मंत्र 1, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 95 मंत्र 2, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 16.20 आदि-आदि अनेकों मंत्रों में कहा है कि परमात्मा (कविर्देव) कबीर परमेश्वर है जो आकाश में सबसे ऊपर वाले स्थान पर बैठा है। वहाँ से गति करके आता है। अच्छी आत्माओं को मिलता है। उनको उपदेश देता है। तत्त्वज्ञान का प्रचार अपनी (कविर्गिर्भिः) कबीर वाणी द्वारा (काव्येन) कवित्व से यानि कवियों की तरह साखी, शब्द, चैपाईयों द्वारा बोल-बोलकर करता है। जिस कारण से (कविनाम पदवी) कवियों में से प्रसिद्ध कवि की उपाधि प्राप्त करता है। जैसे परमात्मा कबीर जी को ‘‘कवि’’ भी कहा जाता है। परमात्मा कबीर जी पृथ्वी पर कवियों की तरह आचरण करता हुआ विचरण करता है। परमात्मा कबीर जी अपनी वाणी बोलकर भक्ति करने की प्रेरणा करता है। भक्ति के गुप्त नाम का आविष्कार करता है।(380)

सन् 1398 में जब परमात्मा कबीर जी (कविर्देव जी) स्वयं प्रकट हुए थे उस समय सर्व सद्ग्रन्थों का वास्तविक ज्ञान लोकोक्तियों (दोहों, चोपाईयों, शब्दों अर्थात् कविताओं) के माध्यम से साधारण भाषा में जन साधारण को बताया था। उस तत्त्व ज्ञान को उस समय के संस्कृत भाषा व हिन्दी भाषा के ज्ञाताओं ने यह कह कर ठुकरा दिया कि कबीर जी तो अशिक्षित है। इस के द्वारा कहा गया ज्ञान व उस में उपयोग की गई भाषा व्याकरण दृष्टिकोण से ठीक नहीं है। जैसे कबीर जी ने कहा है:-

कबीर बेद मेरा भेद है, मैं ना बेदों माहीं।
जौण बेद से मैं मिलु ये बेद जानते नाहीं।।

भावार्थ:- परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी ने कहा है कि जो चार वेद है ये मेरे विषय में ही ज्ञान बता रहे हैं परन्तु इन चारों वेदों में वर्णित विधि द्वारा मैं (पूर्ण ब्रह्म) प्राप्त नहीं हो सकता। जिस वेद (स्वसम अर्थात् सूक्ष्म वेद) में मेरी प्राप्ति का ज्ञान है। उस को चारों वेदों के ज्ञाता नहीं जानते। इस वचन को सुनकर। उस समय के आचार्यजन कहते थे कि कबीर जी को भाषा का ज्ञान नहीं है। देखो वेद का बेद कहा है। नहीं का नाहीं कहा है। ऐसे व्यक्ति को शास्त्रों का क्या ज्ञान हो सकता है? इसलिए कबीर जी मिथ्या भाषण करते हैं। इस की बातों पर विश्वास नहीं करना। स्वामी दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास ग्यारह पृष्ठ 306 पर कबीर जी के विषय में यही कहा है।

पूर्ण परमात्मा कविर्देव है, यह प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 29 मंत्र 25 तथा सामवेद संख्या 1400 में भी है जो निम्न है:-

यजुर्वेद के अध्याय नं. 29 के श्लोक नं. 25 (संत रामपाल दास द्वारा भाषा-भाष्य):-

समिद्धोऽअद्य मनुषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेदः।
आ च वह मित्रमहश्चिकित्वान्त्वं दूतः कविरसि प्रचेताः।।25।।

समिद्धः अद्य मनुषः दुरोणे देवः देवान्य ज् असि जातवेदः आ च वह मित्रमहः चिकित्वान् त्वम् दूतः कविर् असि प्रचेताः

अनुवाद:- (अद्य) आज अर्थात् वर्तमान में (दुरोणे) शरीर रूप महल में दुराचार पूर्वक (मनुषः) झूठी पूजा में लीन मननशील व्यक्तियों को (समिद्धः) लगाई हुई आग अर्थात् शास्त्र विधि रहित वर्तमान पूजा जो हानिकारक होती है, उसके स्थान पर (देवान्) देवताओं के (देवः) देवता (जातवेदः) पूर्ण परमात्मा सतपुरूष की वास्तविक (यज्) पूजा (असि) है। (आ) दयालु (मित्रमहः) जीव का वास्तविक साथी पूर्ण परमात्मा ही अपने (चिकित्वान्) स्वस्थ ज्ञान अर्थात यथार्थ भक्ति को (दूतः) संदेशवाहक रूप में (वह) लेकर आने वाला (च) तथा (प्रचेताः) बोध कराने वाला (त्वम्) आप (कविरसि) कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर हैं।

भावार्थ - जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होता है उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा द्वारा सर्व भक्त समाज का मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। तब अपने तत्त्वज्ञान अर्थात् स्वस्थ ज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु ही आता है।

संख्या नं. 1400 सामवेद उतार्चिक अध्याय नं. 12 खण्ड नं. 3 श्लोक नं. 5
(संत रामपाल दास द्वारा भाषा-भाष्य)

भद्रा वस्त्रा समन्या3वसानो महान् कविर्निवचनानि शंसन्।
आ वच्यस्व चम्वोः पूयमानो विचक्षणो जागृविर्देववीतौ।।5।।

भद्रा वस्त्रा समन्या वसानः महान् कविर् निवचनानि शंसन् आवच्यस्व चम्वोः पूयमानः विचक्षणः जागृविः देव वीतौ

अनुवाद:- (सम् अन्या) अपने शरीर जैसा अन्य (भद्रा वस्त्रा) सुन्दर चोला यानि शरीर (वसानः) धारण करके (महान् कविर्) समर्थ कविर्देव यानि कबीर परमेश्वर (निवचनानि शंसन्) अपने मुख कमल से वाणी बोलकर यथार्थ अध्यात्म ज्ञान बताता है, यथार्थ वर्णन करता है। जिस कारण से (देव) परमेश्वर की (वितौ) भक्ति के लाभ को (जागृविः) जागृत यानि प्रकाशित करता है। (विचक्षणः) कथित विद्वान सत्य साधना के स्थान पर (आ वच्यस्व) अपने वचनों से (पूयमानः) आन-उपासना रूपी मवाद (चम्वोः) आचमन करा रखा होता है यानि गलत ज्ञान बता रखा होता है।

भावार्थ:- जैसे यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र एक में कहा है कि ‘अग्नेः तनुः असि = परमेश्वर सशरीर है। विष्णवे त्वा सोमस्य तनुः असि = उस अमर प्रभु का पालन पोषण करने के लिए अन्य शरीर है जो अतिथि रूप में कुछ दिन संसार में आता है। तत्त्व ज्ञान से अज्ञान निंद्रा में सोए प्रभु प्रेमियों को जगाता है। वही प्रमाण इस मंत्र में है कि कुछ समय के लिए पूर्ण परमात्मा कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु अपना रूप बदलकर सामान्य व्यक्ति जैसा रूप बनाकर पृथ्वी मण्डल पर प्रकट होता है तथा कविर्निवचनानि शंसन् अर्थात् कविर्वाणी बोलता है। जिसके माध्यम से तत्त्वज्ञान को जगाता है तथा उस समय महर्षि कहलाने वाले चतुर प्राणी मिथ्याज्ञान के आधार पर शास्त्र विधि अनुसार सत्य साधना रूपी अमृत के स्थान पर शास्त्र विधि रहित पूजा रूपी मवाद को श्रद्धा के साथ आचमन अर्थात् पूजा करा रहे होते हैं। उस समय पूर्ण परमात्मा स्वयं प्रकट होकर तत्त्वज्ञान द्वारा शास्त्र विधि अनुसार साधना का ज्ञान प्रदान करता है।

पवित्र ऋग्वेद के निम्न मंत्रों में भी पहचान बताई है कि जब वह पूर्ण परमात्मा कुछ समय संसार में लीला करने आता है तो शिशु रूप धारण करता है। उस पूर्ण परमात्मा की परवरिश (अध्न्य धेनवः) कंवारी गायों द्वारा होती है। फिर लीलावत् बड़ा होता है तो अपने पाने व सतलोक जाने अर्थात् पूर्ण मोक्ष मार्ग का तत्त्वज्ञान (कविर्गिभिः) कबीर बाणी द्वारा कविताओं द्वारा बोलता है, जिस कारण से प्रसिद्ध कवि कहलाता है, परन्तु वह स्वयं कविर्देव पूर्ण परमात्मा ही होता है जो तीसरे मुक्ति धाम सतलोक में रहता है।

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 तथा सूक्त 96 मंत्र 17 से 20:-

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9

अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।

अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।

अनुवाद: -(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुख सुविधाओं द्वारा अर्थात् खाने-पीने द्वारा जो शरीर वृद्धि को प्राप्त होता है उसे (पातवे) वृद्धि के लिए (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गौवें, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कंवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। भावार्थ - पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है उस समय कंवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।

देखें फोटोकाॅपी ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 की जिसका अनुवाद आर्य समाजियों ने किया है:-

विवेचन:- यह फोटो कापी ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 की है इसमें स्पष्ट है कि (सोम) अमर परमात्मा जब शिशु रूप में प्रकट होता है तो उसकी परवरिश की लीला कुंवारी गायों (अभि अध्न्या धेनुवः) द्वारा होती है। यही प्रमाण कबीर सागर के अध्याय ’’ज्ञान सागर’’ में है कि जिस परमेश्वर कबीर जी को नीरू-नीमा अपने घर ले गए। तब शिशु रूपधारी परमात्मा ने न अन्न खाया, न दूध पीया। फिर स्वामी रामानन्द जी के बताने पर एक कुंवारी गाय अर्थात् एक बछिया नीरू लाया, उसने तत्काल दूध दिया। उस कुंवारी गाय के दूध से परमेश्वर की परवरिश की लीला हुई थी। कबीर सागर लगभग 600 (छः सौ) वर्ष पहले का लिखा हुआ है।

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 के अनुवाद में कुछ गलती की है। जैसे (अभिअध्न्या) का अर्थ अहिंसनीय कर दिया जो गलत है। हरियाणा प्रान्त के जिला रोहतक में गाँव धनाना में लेखक का जन्म हुआ जो वर्तमान में जिला सोनीपत में है। इस क्षेत्र में जिस गाय ने गर्भ धारण न किया हो तो कहते हैं कि यह धनाई नहीं है, यह बिना धनाई है। यह अपभ्रंस शब्द है। एक गाय के लिए ‘‘अध्नि‘‘ शब्द है। बहुवचन के लिए ‘‘अध्न्या‘‘ शब्द है। ‘‘अध्न्या‘‘ का अर्थ है बिना धनाई गौवें तथा अभिध्न्या का अर्थ है पूर्ण रूप से बिना धनायी अर्थात् कुंवारी गायें अर्थात् बछियाँ।

पारख के अंग की वाणी नं. 380 में कहा है कि:-

गरीब, सेवक होय करि ऊतरे, इस पृथ्वी के मांहि।
जीव उधारन जगतगुरू, बार बार बलि जांहि।।380।।

परमात्मा कबीर से (सेबक) दास बनकर (ऊतरे) ऊपर आकाश में अपने निवास स्थान सतलोक से गति करके उतरकर नीचे पृथ्वी के ऊपर आए। उद्देश्य बताया है कि जीवों का काल जाल से उद्धार करने के लिए जगत गुरू बनकर आए। मैं (संत गरीबदास जी) अपने सतगुरू कबीर जी पर बार-बार बलिहारी जाऊँ।

’’परमेश्वर कबीर जी का लहरतारा तालाब काशी नगर के जंगल में कमल के फूल पर प्रकट होने का वर्णन‘‘

पारख के अंग की वाणी नं. 381-384:-

गरीब, काशीपुरी कस्त किया, उतरे अधर अधार।
मोमन कूं मुजरा हुवा, जंगल में दीदार।।381।।
गरीब, कोटि किरण शशि भान सुधि, आसन अधर बिमान।
परसत पूरणब्रह्म कूं, शीतल पिंडरू प्राण।।382।।
गरीब, गोद लिया मुख चूंबि करि, हेम रूप झलकंत।
जगर मगर काया करै, दमकैं पदम अनंत।।383।।
गरीब, काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर।
कोई कहै ब्रह्मा बिष्णु हैं, कोई कहै इन्द्र कुबेर।।384।।

पारख के अंग की वाणी नं. 381-384 का सरलार्थ:-

‘‘कबीर परमेश्वर जी का कलयुग में अवतरण’’

लेखक के शब्दों में:- बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर जी ने द्वापर युग में अपने प्रिय शिष्य सुदर्शन वाल्मिीकि जी को शरण में लिया था। भक्त सुदर्शन जी के माता-पिता ने परमेश्वर कबीर जी के ज्ञान को स्वीकार नहीं किया था जिनके नाम थे पिता जी का नाम ‘‘भीखू राम’’ तथा माता जी का नाम ‘‘सुखवन्ती’’। जिस समय दोनों (माता तथा पिता) शरीर त्याग गए तो भक्त सुदर्शन जी अत्यन्त व्याकुल रहने लगे। भक्ति भी कम करते थे। अन्तर्यामी करूणामय जी (द्वापर युग में कबीर परमेश्वर करूणामय नाम से लीला कर रहे थे) ने अपने भक्त के मन की बात जान कर पूछा हे भक्त सुदर्शन! आप को कौन सी चिन्ता सता रही है। क्या माता-पिता का वियोग सता रहा है? या कोई अन्य पारिवारिक परेशानी है? मुझे बताइये।

भक्त सुदर्शन जी ने कहा हे बन्दी छोड़! हे अन्तर्यामी! आप सर्वज्ञ हैं आप बाहर-भीतर की सर्व स्थिति से परिचित है। हे प्रभु! मुझे मेरे माता-पिता के निधन का दुःख नहीं है क्योंकि वे बहुत वृद्ध हो चुके थे। आप ने बताया है कि यह पाँच तत्त्व का पुतला एक दिन नष्ट होना है। मुझे चिन्ता सता रही है कि मेरे माता-पिता अत्यन्त पुण्यात्मा, दयालु तथा धर्मात्मा थे। उन्होंने अपनी भक्ति लोकवेद अनुसार की थी। जो शास्त्रविधि के विरूद्ध थी। जिस कारण से उनका मानव जीवन व्यर्थ गया। अब पता नहीं किस प्राणी की योनी में कष्ट उठा रहे होंगे? आप से नम्र निवेदन आप का दास करता है कि कभी मेरे माता-पिता मानव शरीर प्राप्त करें तो उन्हें अपनी शरण में लेना परमेश्वर तथा उन्हें भी भवसागर से (काल ब्रह्म के लोक से) पार करना मेरे दाता! मुझे यही चिन्ता सता रही है। परमेश्वर कबीर जी ने सोचा कि यह भोला भक्त सुदर्शन माता-पिता के मोह में फंस कर काल जाल में ही रहेगा। काल ब्रह्म ने मोह रूपी पाश बहुत दृढ़ बना रखा है। यह विचार कर परमेश्वर कबीर जी ने कहा हे भक्त सुदर्शन ! आप चिन्ता मत करो मैं आप के माता-पिता को अवश्य शरण में लूंगा तथा पार करके ही दम लूंगा। आप सत्य लोक जाओ। यह चिन्ता छोड़ो। परमेश्वर कबीर जी के आश्वासन के पश्चात् भक्त सुदर्शन जी सत्य साधना करके सत्यलोक को गया। पूर्ण मोक्ष प्राप्त किया।

‘‘भक्त सुदर्शन के माता-पिता वाले जीवों के कलयुग के अन्य मानव जन्मों की जानकारी’’

भक्त सुदर्शन के माता-पिता प्रथम बार कुलपति ब्राह्मण (पिता) तथा महेश्वरी (माता) रूप में जन्में। दोनों का विवाह हुआ। संतान नहीं हुई। एक दिन महेश्वरी जी सूर्य की उपासना करते हुए हाथ फैलाकर पुत्र माँग रही थी। उसी समय कबीर परमेश्वर जी उसके हाथों में बालक रूप बनाकर प्रकट हो गए। सूर्य का पारितोष (तोहफा) जानकर बालक को घर ले गई। वे बहुत निर्धन थे। उनको प्रतिदिन एक तोला सोना परमात्मा के बिछौने के नीचे मिलने लगा। यह भी उन्होंने सूर्यदेव की कृपा माना। पाँच वर्ष की आयु का होने पर उनको भक्ति बताई, परंतु बालक जानकर उनको परमात्मा की एक बात पर भी विश्वास नहीं हुआ। उस जन्म में उन्होंने परमात्मा को नहीं पहचाना। जिस कारण से परमेश्वर कबीर जी बालक रूप अंतध्र्यान हो गए। दोनों पति-पत्नी पुत्र मोह में व्याकुल हुए। परमात्मा की सेवा के फलस्वरूप उनको अगला जन्म भी मानव का मिला। चन्दवारा शहर में पुरूष का नाम चंदन तथा स्त्री का नाम उद्धा था। ब्राह्मण कुल में जन्म हुआ। दोनों निःसंतान थे। एक दिन उद्धा सरोवर पर स्नान करने गई। वहाँ कबीर परमेश्वर जी कमल के फूल पर शिशु रूप धारण करके विराजमान हुए। उद्धा बालक कबीर जी को उठाकर घर ले गई। लोकलाज के कारण चन्दन ने पत्नी से कहा कि इस बालक को जहाँ से लाई थी, वहीं छोड़कर आ। कुल के लोग मजाक करेंगे। दोनों पति-पत्नी परमात्मा को लेकर जल में डालने चले तो परमात्मा उनके हाथों से गायब हो गए। दोनों बहुत व्याकुल हुए। परमात्मा का पारितोष न लेने के भय से सारी आयु रोते रहे। अगला जन्म भी मानव का हुआ। कथा इस प्रकार है:-

भक्त सुदर्शन वाल्मीकि के माता-पिता वाले जीवों को कलयुग में तीसरा भी मानव शरीर प्राप्त हुआ। भारत वर्ष के काशी शहर में सुदर्शन के पिता वाले जीव ने एक ब्राह्मण के घर जन्म लिया तथा गौरीशंकर नाम रखा गया तथा सुदर्शन जी की माता वाले जीव ने भी एक ब्राह्मण के घर कन्या रूप में जन्म लिया तथा सरस्वती नाम रखा। युवा होने पर दोनों का विवाह हुआ। गौरी शंकर ब्राह्मण भगवान शिव का उपासक था तथा शिव पुराण की कथा करके भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया करता। गौरीशंकर निर्लोभी था। कथा करने से जो धन प्राप्त होता था उसे धर्म में ही लगाया करता था। जो व्यक्ति कथा कराते थे तथा सुनते थे सर्व गौरी शंकर ब्राह्मण के त्याग की प्रशंसा करते थे।

जिस कारण से पूरी काशी में गौरी शंकर की प्रसिद्धि हो रही थी। अन्य स्वार्थी ब्राह्मणों का कथा करके धन इकत्रित करने का धंधा बन्द हो गया। इस कारण से वे ब्राह्मण उस गौरीशंकर ब्राह्मण से ईष्र्या रखते थे। इस बात का पता मुसलमानों को लगा कि एक गौरीशंकर ब्राह्मण काशी में हिन्दू धर्म के प्रचार को जोर-शोर से कर रहा है। इसको किस तरह बन्द करें। मुसलमानों को पता चला कि काशी के सर्व ब्राह्मण गौरीशंकर से ईष्र्या रखते हैं। इस बात का लाभ मुसलमानों ने उठाया। गौरीशंकर व सरस्वती के घर के अन्दर अपना पानी छिड़क दिया। अपना झूठा पानी उनके मुख पर लगा दिया। कपड़ों पर भी छिड़क दिया तथा आवाज लगा दी कि गौरीशंकर तथा सरस्वती मुसलमान बन गए हैं। पुरूष का नाम नूरअली उर्फ नीरू तथा स्त्री का नाम नियामत उर्फ नीमा रखा। अन्य स्वार्थी ब्राह्मणों को पता चला तो उनका दाव लग गया। उन्होंने तुरन्त ही ब्राह्मणों की पंचायत बुलाई तथा फैसला कर दिया कि गौरीशंकर तथा सरस्वती मुसलमान बन गए हैं अब इनका ब्राह्मण समाज से कोई नाता नहीं रहा है। इनका गंगा में स्नान करने, मन्दिर में जाने तथा हिन्दू ग्रन्थों को पढ़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। गौरीशंकर (नीरू) जी कुछ दिन तो बहुत परेशान रहे। जो कथा करके धन आता था उसी से घर का निर्वाह चलता था। उसके बन्द होने से रोटी के भी लाले पड़ गए। नीरू ने विचार करके अपने निर्वाह के लिए कपड़ा बुनने का कार्य प्रारम्भ किया। जिस कारण से जुलाहा कहलाया। कपड़ा बुनने से जो मजदूरी मिलती थी उसे अपना तथा अपनी पत्नी का पेट पालता था। जिस समय धन अधिक आ जाता तो उसको धर्म में लगा देता था। विवाह को कई वर्ष बीत गए थे। उनको कोई सन्तान नहीं हुई। दोनों पति-पत्नी ने बच्चे होने के लिए बहुत अनुष्ठान किए। साधु सन्तों का आशीर्वाद भी लिया परन्तु कोई सन्तान नहीं हुई। हिन्दुओं द्वारा उन दोनों का गंगा नदी में स्नान करना बन्द कर दिया गया था। उनके निवास स्थान से लगभग चार किमी. दूर एक लहर तारा नामक सरोवर था जिस में गंगा नदी का ही जल लहरों के द्वारा नीची पटरी के ऊपर से उछल कर आता था। इसलिए उस सरोवर का नाम लहरतारा पड़ा। उस तालाब में बड़े-2 कमल के फूल उगे हुए थे। मुसलमानों ने गौरीशंकर का नाम नूर अली रखा जो उर्फ नाम से नीरू कहलाया तथा पत्नी का नाम नियामत रखा जो उर्फ नाम से नीमा कहलाई। नीरू-नीमा भले ही मुसलमान बन गए थे परन्तु अपने हृदय से साधना भगवान शंकर जी की ही करते थे तथा प्रतिदिन सवेरे सूर्योदय से पूर्व लहरतारा तालाब में स्नान करने जाते थे।

ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार को भी ब्रह्म मुहूर्त (ब्रह्म मुहूर्त का समय सूर्योदय से लगभग डेढ़ घण्टा पहले होता है) में स्नान करने के लिए जा रहे थे। नीमा रास्ते में भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही थी कि हे दीनानाथ! आप अपने दासों को भी एक बच्चा-बालक दे दो आप के घर में क्या कमी है प्रभु ! हमारा भी जीवन सफल हो जाएगा। दुनिया के व्यंग्य सुन-2 कर आत्मा दुःखी हो जाती है। मुझ पापिन से ऐसी कौन सी गलती किस जन्म में हुई है जिस कारण मुझे बच्चे का मुख देखने को तरसना पड़ रहा है। हमारे पापों को क्षमा करो प्रभु! हमें भी एक बालक दे दो।

यह कह कर नीमा फूट-2 कर रोने लगी तब नीरू ने धैर्य दिलाते हुए कहा हे नीमा! हमारे भाग्य में सन्तान नहीं है यदि भाग्य में सन्तान होती तो प्रभु शिव अवश्य प्रदान कर देते। आप रो-2 कर आँखे खराब कर लोगी। बालक भाग्य में है नहीं जो वृद्ध अवस्था में ऊंगली पकड़ लेता। आप मत रोओ आप का बार-2 रोना मेरे से देखा नहीं जाता। यह कह कर नीरू की आँखे भी भर आई। इसी तरह प्रभु की चर्चा व बालक प्राप्ति की याचना करते हुए उसी लहरतारा तालाब पर पहुँच गए। प्रथम नीमा ने प्रवेश किया, पश्चात् नीरू ने स्नान करने को तालाब में प्रवेश किया। सुबह का अंधेरा शीघ्र ही उजाले में बदल जाता है। जिस समय नीमा ने स्नान किया था उस समय तक तो अंधेरा था। जब कपड़े बदल कर पुनः तालाब पर उस कपड़े को धोने के लिए गई, जिसे पहन कर स्नान किया था, उस समय नीरू तालाब में प्रवेश करके गोते लगा-2 कर मल मल कर स्नान कर रहा था।

नीमा की दृष्टि एक कमल के फूल पर पड़ी जिस पर कोई वस्तु हिल रही थी। प्रथम नीमा ने जाना कोई सर्प है जो कमल के फूल पर बैठा अपने फन को उठा कर हिला रहा है। उसने सोचा कहीं यह सर्प मेरे पति को न डस ले नीमा ने उसको ध्यानपूर्वक देखा वह सर्प नहीं है कोई बालक है जिसने एक पैर अपने मुख में ले रखा है तथा दूसरे को हिला रहा है। नीमा ने अपने पति से ऊँची आवाज में कहा देखियो जी! एक छोटा बच्चा कमल के फूल पर लेटा है। वह जल में डूब न जाए। नीरू स्नान करते-2 उस की ओर न देख कर बोला नीमा! बच्चों की चाह ने तुझे पागल बना दिया है। अब तुझे जल में भी बच्चे दिखाई देने लगे हैं। नीमा ने अधिक तेज आवाज में कहा मैं सच कह रही हूँ, देखो सचमुच एक बच्चा कमल के फूल पर, वह रहा, देखो! देखो--- नीमा की आवाज में परिवर्तन व अधिक कसक देखकर नीरू ने उस ओर देखा जिस ओर नीमा हाथ से संकेत कर रही थी। कमल के फूल पर नवजात शिशु को देखकर नीरू ने आव देखा न ताव झपट कर कमल के फूल सहित बच्चा उठाकर अपनी पत्नी को दे दिया।

नीमा ने परमेश्वर कबीर जी को सीने से लगाया, मुख चूमा, पुत्रवत् प्यार किया जिस परमेश्वर की खोज में ऋषि-मुनियों ने जीवन भर शास्त्रविधि विरूद्ध साधना की उन्हें नहीं मिला। वही परमेश्वर भक्तमती नीमा की गोद में खेल रहा था। जिस शान्तिदायक परमेश्वर को आनंद की प्राप्ति के लिए प्राप्त करने की इच्छा से साधना की जाती है वही परमेश्वर नीमा के हाथों में सीने से लगा हुआ था। उस समय जो शीतलता व आनन्द का अनुभव भक्तमती नीमा को हो रहा होगा उस की कल्पना ही की जा सकती है। नीरू स्नान करके जल से बाहर आया। नीरू ने सोचा यदि हम इस बच्चे को नगर में ले जाएँगे तो शहर वासी हम पर शक करेंगे सोचेंगे कि ये किसी के बच्चे को चुरा कर लाए हैं। कहीं हमें नगर से निकाल दें। इस डर से नीरू ने अपनी पत्नी से कहा नीमा! इस बच्चे को यहीं छोड़ दे इसी में अपना हित है। नीमा बोली हे पति देव ! यह भगवान शंकर का दिया खिलौना है। इस बच्चे ने पता नहीं मुझ पर क्या जादू कर दिया है कि मेरा मन इस बच्चे के वश हो गया है। मैं इस बच्चे को नहीं त्याग सकती। नीरू ने नीमा को अपने मन की बात से अवगत करवाया। बताया कि यह बच्चा नगर वासी हम से छीन लेगें, पूछेंगे कहाँ से लाए हो? हम कहेंगे लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर मिला है। हमारी बात पर कोई भी विश्वास नहीं करेगा। हो सकता है वे हमें नगर से भी निकाल दें। तब नीमा ने कहा मैं इस बालक के साथ देश निकाला भी स्वीकार कर लूँगी। परन्तु इस बच्चे को नहीं त्याग सकती। मैं अपनी मृत्यु को भी स्वीकार कर लूँगी। परन्तु इस बच्चे से भिन्न नहीं रह सकूँगी।

नीमा का हठ देख कर नीरू को क्रोध आ गया तथा अपने हाथ को थप्पड़ मारने की स्थिति में उठा कर आँखों में आँसू भरकर करूणाभरी आवाज में बोला नीमा मैंने आज तक तेरी किसी भी बात को नहीं ठुकरवाया। यह जान कर कि हमारे कोई बच्चा नहीं है मैंने तुझे पति तथा पिता दोनों का प्यार दिया है। तू मेरे नम्र स्वभाव का अनुचित लाभ उठा रही है। आज मेरी स्थिति को न समझ कर अपने हठी स्वभाव से मुझे कष्ट दे रही है। विवाहित जीवन में नीरू ने प्रथम बार अपनी पत्नी की ओर थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया था तथा कहा कि या तो इस बच्चे को यहीं रख दे वरना आज मैं तेरी बहुत पिटाई करूँगा।

उसी समय नीमा के सीने से चिपके बालक रूपधारी परमेश्वर बोले हे नीरू! आप मुझे अपने घर ले चलो आप पर कोई आपत्ति नहीं आएगी। मैं सतलोक से चलकर तुम्हारे हित के लिए यहाँ आया हूँ। नवजात शिशु के मुख से उपरोक्त वचन सुनकर नीरू (नूर अल्ली) डर गया कहीं यह कोई देव या पित्तर या कोई सिद्ध पुरूष न हो और मुझे शाप न दे दे। इस डर से नीरू कुछ नहीं बोला घर की ओर चल पड़ा। पीछे-2 उसकी पत्नी परमेश्वर को प्यार करती हुई चल पड़ी। प्रतिदिन की तरह ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (1398 ई.) सोमवार को भी एक अष्टानन्द नामक ऋषि, जो स्वामी रामानन्द ऋषि जी के शिष्य थे काशी शहर से बाहर बने लहरतारा तालाब के स्वच्छ जल में स्नान करने के लिए प्रतिदिन की तरह गए। ब्रह्म मुहूर्त का समय था (ब्रह्म मुहूर्त का समय सूर्योदय से लगभग डेढ़ घण्टा पूर्व का होता है) ऋषि अष्टानन्द जी ने लहरतारा तालाब में स्नान किया। वे प्रतिदिन वहीं बैठ कर कुछ समय अपनी पाठ पूजा किया करते थे। ऋषि अष्टानन्द जी ध्यान मग्न होने की चेष्टा कर ही रहे थे उसी समय उन्होंने देखा कि आकाश से एक प्रकाश पुंज नीचे की ओर आता दिखाई दिया। वह इतना तेज प्रकाश था उसे ऋषि जी की चर्म दृष्टि सहन नहीं कर सकी। जिस प्रकार आँखे सूर्य की रोशनी को सहन नहीं कर पाती। सूर्य के प्रकाश को देखने के पश्चात् आँखे बन्द करने पर सूर्य का आकार दिखाई देता है उसमें प्रकाश अधिक नहीं होता।

इसी प्रकार प्रथम बार परमेश्वर के प्रकाश को देखने से ऋषि जी की आँखे बन्द हो गई बन्द आँखों में शिशु को देख कर फिर से आँखे खोली। ऋषि अष्टानन्द जी ने देखा कि वह प्रकाश लहरतारा तालाब पर उतर गया। जिससे पूरा सरोवर प्रकाश मान हो गया तथा देखते ही देखते वह प्रकाश जलाशय के एक कोने में सिमट गया। ऋषि अष्टानन्द जी ने सोचा यह कैसा दृश्य मैंने देखा? यह मेरी भक्ति की उपलब्धि है या मेरा दृष्टिदोष है? इस के विषय में गुरूदेव, स्वामी रामानन्द जी से पूछूँगा। यह विचार करके ऋषि अष्टानन्द जी अपनी शेष साधना को छोड़ कर अपने पूज्य गुरूदेव के पास गए। स्वामी रामानन्द जी को सर्व घटनाक्रम बताकर पूछा हे गुरूदेव! यह मेरी भक्ति की उपलब्धि है या मेरी भ्रमणा है? मैंने प्रकाश आकाश से नीचे की ओर आते देखा जिसे मेरी आँखे सहन नहीं कर सकी। आँखे बन्द हुई तो नवजात शिशु दिखाई दिया। पुनः आँखें खोली तो उस प्रकाश से पूरा जलाशय ही जगमगा गया, पश्चात् वह प्रकाश उस तालाब के एक कोने में सिमट गया। मैं आप से कारण जानने की इच्छा से अपनी साधना बीच में ही छोड़ कर आया हूँ। कृपया मेरी शंका का समाधान कीजिए।

ऋषि रामानन्द स्वामी जी ने अपने शिष्य अष्टानन्द से कहा हे ब्राह्मण! यह न तो तेरी भक्ति की उपलब्धि है न आप का दृष्टिदोष ही है। इस प्रकार की घटनाएँ उस समय होती हैं। जिस समय ऊपर के लोकों से कोई देव पृथ्वी पर अवतार धारण करने के लिए आते हैं। वह किसी स्त्री के गर्भ में निवास करता है। फिर बालक रूप धारण करके नर लीला करके अपना अपेक्षित कार्य पूर्ण करता है। कोई देव ऊपर के लोकों से आया है। वह काशी नगर में किसी के घर जन्म लेकर अपना प्रारब्ध पूरा करेगा। उपरोक्त वचनों द्वारा ऋषि रामानन्द स्वामी जी ने अपने शिष्य अष्टानन्द की शंका का समाधान किया। उन ऋषियों की यही धारणा थी की सर्व अवतार गण माता के गर्भ से ही जन्म लेते हैं।

पारख के अंग की वाणी नं. 385-391:-

गरीब, कोई कहै बरूण धर्मराय है, कोई कोई कहते ईश।
सोलह कला सुभांन गति, कोई कहै जगदीश।।385।।
गरीब, भक्ति मुक्ति ले ऊतरे, मेटन तीनूं ताप।
मोमन के डेरा लिया, कहै कबीरा बाप।।386।।
गरीब, दूध न पीवै न अन्न भखै, नहीं पलने झूलंत।
अधर अमान धियान में, कमल कला फूलंत।।387।।
गरीब, कोई कहै छल ईश्वर नहीं, कोई किंनर कहलाय।
कोई कहै गण ईश का, ज्यूं ज्यूं मात रिसाय।।388।।
गरीब, काशी में अचरज भया, गई जगत की नींद।
ऐसे दुल्हे ऊतरे, ज्यूं कन्या वर बींद।।389।।
गरीब, खलक मुलक देखन गया, राजा परजा रीत।
जंबूदीप जिहाँन में, उतरे शब्द अतीत।।390।।
गरीब, दुनी कहै योह देव है, देव कहत हैं ईश।
ईश कहै परब्रह्म है, पूरण बीसवे बीस।।391।।

सरलार्थ:- बालक को लेकर नीरू तथा नीमा अपने घर जुलाहा मोहल्ला (काॅलोनी) में आए। जिस भी नर व नारी ने नवजात शिशु रूप में परमेश्वर कबीर जी को देखा वह देखता ही रह गया। परमेश्वर का शरीर अति सुन्दर था। आँख जैसे कमल का फूल हो, घुँघराले बाल, लम्बे हाथ। लम्बी-2 अँगुलियाँ शरीर से मानो नूर झलक रहा हो। पूरी काशी नगरी में ऐसा अद्धभुत बालक नहीं था। जो भी देखता वहीं अन्य को बताता कि नूर अली को एक बालक तालाब पर मिला है आज ही उत्पन्न हुआ शिशु है। डर के मारे लोक लाज के कारण किसी विधवा ने डाला होगा। बालक को देखने के पश्चात् उसके चेहरे से दृष्टि हटाने को दिल नहीं करता, आत्मा अपने आप खिंची जाती है। पता नहीं बालक के मुख पर कैसा जादू है? पूरी काशी परमेश्वर के बालक रूप को देखने को उमड़ पड़ी। स्त्री-पुरूष झुण्ड के झुण्ड बना कर मंगल गान गाते हुए, नीरू के घर बच्चे को देखने को आए।

बच्चे (कबीर परमेश्वर) को देखकर कोई कह रहा था, यह बालक तो कोई देवता का अवतार है, कोई कह रहा था। यह तो साक्षात् विष्णु जी ही आए लगते हैं। कोई कह रहा था यह भगवान शिव ही अपनी काशी नगरी को कृत्तार्थ करने को उत्पन्न हुए हैं। कोई कह रहा था। यह तो किन्नर का अवतार है, कोई कह रहा था। यह पित्तर नगरी से आया है। यह सर्व वार्ता सुनकर नीमा अप्रसन्न हो कर कहती थी कि मेरे बच्चे के विषय में कुछ मत कहो। हे अल्लाह! मेरे बच्चे की इनकी नजर से रक्षा करना। तुमने कभी बच्चा देखा भी है कि नहीं। ऐसे समूह के समूह मेरे बालक को देखने आ रहे हो। आने वाले स्त्री-पुरूष बोले हे नीमा। हमने बालक तो बहुत देखे हैं परन्तु आप के बालक जैसा नहीं देखा। इसीलिए हम इसे देखने आए हैं। ऊपर अपने-2 लोकों से श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिवजी भी झांक कर देखने लगे। काशी के वासियों के मुख से अपने में से (श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा शिव में से) एक यह बालक होने की बात सुनकर बोले कि यह बालक तो किसी अन्य लोक से आया है। इस के मूल स्थान से हम भी अपरिचित हैं परन्तु है बहुत शक्ति युक्त कोई सिद्ध पुरूष है।

‘‘शिशु कबीर परमेश्वर का नामांकन’’

पारख के अंग की वाणी नं. 392-393:-

गरीब, काजी गये कुरआन ले, धरि लरके का नाम।
अक्षर अक्षर मैं फुर्या, धन कबीर बलि जांव।।392।।
गरीब, सकल कुरआन कबीर हैं, हरफ लिखे जो लेख।
काशी के काजी कहैं, गई दीन की टेक।।393।।_

सरलार्थ:- नीरू (नूर अली) तथा नीमा पहले हिन्दू ब्राह्मण-ब्राह्मणी थे। इस कारण लालच वश ब्राह्मण लड़के का नाम रखने आए। उसी समय काजी मुसलमान अपनी पुस्तक कुरआन शरीफ को लेकर लड़के का नाम रखने के लिए आ गए। उस समय दिल्ली में मुगल बादशाहों का शासन था जो पूरे भारतवर्ष पर शासन करते थे। जिस कारण हिन्दू समाज मुसलमानों से दबता था। काजियों ने कहा लड़के का नाम करण हम मुसलमान विधि से करेंगे अब ये मुसलमान हो चुके हैं। यह कहकर काजियों में मुख्य काजी ने कुरआन शरीफ पुस्तक को कहीं से खोला। उस पृष्ठ पर प्रथम पंक्ति में प्रथम नाम ‘‘कबीरन्’’ लिखा था। काजियों ने सोचा ‘‘कबीर’’ नाम का अर्थ बड़ा होता है। इस छोटे जाति (जुलाहे अर्थात् धाणक) के बालक का नाम कबीर रखना शोभा नहीं देगा। यह तो उच्च घरानों के बच्चों के नाम रखने योग्य है। शिशु रूपधारी परमेश्वर काजियों के मन के दोष को जानते थे। काजियों ने पुनः पवित्र कुरआन शरीफ को नाम रखने के उद्देश्य से खोला। उन दोनों पृष्ठों पर कबीर-कबीर-कबीर अखर लिखे थे अन्य लेख नहीं था। काजियों ने फिर कुरआन शरीफ को खोला उन पृष्ठों पर भी कबीर-कबीर-कबीर अक्षर ही लिखा था। काजियों ने पूरी कुरआन का निरीक्षण किया तो उनके द्वारा लाई गई कुरआन शरीफ में सर्व अक्षर कबीर-कबीर-कबीर-कबीर हो गए काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मन्त्र करके हमारी कुरआन शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्लाह अर्थात् अल्लाहुअकबर, हूँ। मेरा नाम ‘‘कबीर’’ ही रखो। काजियों ने अपने साथ लाई कुरआन को वहीं पटक दिया तथा चले गए। बोले इस बच्चे में कोई प्रेत आत्मा बोलती है।

‘‘शिशु कबीर देव द्वारा कुँवारी गाय का दूध पीना’’

पारख के अंग की वाणी नं. 394-397:-

गरीब, शिव उतरे शिवपुरी से, अविगत बदन विनोद।
महके कमल खुसी भये, लिया ईश कूं गोद।।394।।
गरीब, नजर नजर सें मिल गई, किया ईश प्रणाम।
धनि मोमन धनि पूरना, धनि काशी निःकाम।।395।।
गरीब, सात बार चर्चा करी, बोले बालक बैंन।
शिव कूं कर मस्तक धर्या, ल्या मोमन एक धैंन।।396।।
गरीब, अन ब्यावर कूं दूहत है, दूध दिया ततकाल।
पीवै बालक ब्रह्मगति, तहां शिव भये दयाल।।397।।

सरलार्थ:- बालक कबीर को दूध पिलाने की कोशिश नीमा ने की तो परमेश्वर ने मुख बन्द कर लिया। सर्व प्रयत्न करने पर भी नीमा तथा नीरू बालक को दूध पिलाने में असफल रहे। 25 दिन जब बालक को निराहार बीत गए तो माता-पिता अति चिन्तित हो गए। 24 दिन से नीमा तो रो-2 कर विलाप कर रही थी। सोच रही थी यह बच्चा कुछ भी नहीं खा रहा है। यह मरेगा, मेरे बेटे को किसी की नजर लगी है। 24 दिन से लगातार नजर उतारने की विधि भिन्न भिन्न-2 स्त्री-पुरूषों द्वारा बताई प्रयोग करके थक गई। कोई लाभ नहीं हुआ। आज पच्चीसवाँ दिन उदय हुआ। माता नीमा रात्रि भर जागती रही तथा रोती रही कि पता नहीं यह बच्चा कब मर जाएगा। मैं भी साथ ही फाँसी पर लटक जाऊँगी। मैं इस बच्चे के बिना जीवित नहीं रह सकती बालक कबीर का शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ था तथा ऐसे लग रहा था जैसे बच्चा प्रतिदिन एक किलो ग्राम (एक सेर) दूध पीता हो। परन्तु नीमा को डर था कि बिना कुछ खाए पीए यह बालक जीवित रह ही नहीं सकता। यह कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। यह विचार करके चिंतित थी। भगवान शंकर के साथ-साथ निराकार प्रभु की भी उपासना तथा उससे की गई प्रार्थना जब व्यर्थ रही तो अति व्याकुल होकर रोने लगी।

भगवान शिव, एक ब्राह्मण (ऋषि) का रूप बना कर नीरू की झोंपड़ी के सामने खड़े हुए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा। नीमा रोती रही हिचकियाँ लेती रही। सन्त रूप में खड़े भगवान शिव जी के अति आग्रह करने पर नीमा रोती-2 कहने लगी हे ब्राह्मण ! मेरे दुःख से परिचित होकर आप भी दुःखी हो जाओगे। फकीर वेशधारी शिव भगवान बोले हे माई! कहते है अपने मन का दुःख दूसरे के समक्ष कहने से मन हल्का हो जाता है। हो सकता है आप के कष्ट को निवारण करने की विधि भी प्राप्त हो जाए। आँखों में आँसू जिव्हा लड़खड़ाते हुए गहरे साँस लेते हुए नीमा ने बताया हे महात्मा जी! हम निःसन्तान थे। पच्चीस दिन पूर्व हम दोनों प्रतिदिन की तरह काशी में लहरतारा तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। उस दिन ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी की सुबह थी। रास्ते में मैंने अपने ईष्ट भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति की हृदय से प्रार्थना की थी मेरी पुकार सुनकर दीनदयाल भगवान शंकर जी ने उसी दिन एक बालक लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर हमें दिया। बच्चे को प्राप्त करके हमारे हर्ष का कोई ठिकाना नहीं रहा। यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा। इस बच्चे ने दूध नहीं पीया। सर्व प्रयत्न करके हम थक चुके हैं। आज इस बच्चे को पच्चीसवां दिन है कुछ भी आहार नहीं किया है। यह बालक मरेगा। इसके साथ ही मैं आत्महत्या करूँगी। मैं इसकी मृत्यु की प्रतिक्षा कर रही हूँ। सर्व रात्रि बैठ कर तथा रो-2 व्यतीत की है। मैं भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही हूँ कि हे भगवन्! इससे अच्छा तो यह बालक न देते। अब इस बच्चे में इतनी ममता हो गई है कि मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी।

नीमा के मुख से सर्वकथा सुनकर साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा। आप का बालक मुझे दिखाईए। नीमा ने बालक को पालने से उठाकर ऋषि के समक्ष प्रस्तुत किया। नीमा ने बालक को साधु के चरणों में डालना चाहा। बालक हवा में उठा। दोनों प्रभुओं की आपस में दृष्टि मिली। भगवान शंकर जी ने शिशु कबीर जी को अपने हाथों में ग्रहण किया तथा मस्तिष्क की रेखाएँ व हस्त रेखाएँ देख कर बोले नीमा! आप के बेटे की लम्बी आयु है यह मरने वाला नहीं है। देख कितना स्वस्थ है। कमल जैसा चेहरा खिला है। नीमा ने कहा हे विप्रवर! बनावटी सांत्वना से मुझे सन्तोष होने वाला नहीं है। बच्चा दूध पीएगा तो मुझे सुख की साँस आएगी। पच्चीस दिन के बालक का रूप धारण किए परमेश्वर कबीर जी ने भगवान शिव जी से कहा हे भगवन्! आप इन्हें कहो एक कुँवारी गाय लाएँ। आप उस कंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी। मैं उस कुँवारी गाय का दूध पीऊँगा। वह गाय आजीवन बिना ब्याए (अर्थात् कुँवारी रह कर ही) दूध दिया करेगी उस दूध से मेरी परवरिश होगी। परमेश्वर कबीर जी तथा भगवान शंकर (शिव) जी की सात बार चर्चा हुई।

शिवजी ने नीमा से कहा आप का पति कहाँ है? नीमा ने अपने पति को पुकारा वह भीगी आँखों से उपस्थित हुआ तथा ब्राह्मण को प्रणाम किया। ब्राह्मण ने कहा नीरू! आप एक कुँवारी गाय लाओ। वह दूध देवेगी। उस दूध को यह बालक पीएगा। नीरू कुँवारी गाय ले आया तथा साथ में कुम्हार के घर से एक ताजा छोटा घड़ा (चार कि.ग्रा. क्षमता का मिट्टी का पात्र) भी ले आया। परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार विप्ररूपधारी शिव जी ने उस कंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा जैसे थपकी लगाते हैं। गऊ माता के थन लम्बे-2 हो गए तथा थनों से दूध की धार बह चली। नीरू को पहले ही वह पात्र थनों के नीचे रखने का आदेश दे रखा था। दूध का पात्र भरते ही थनों से दूध निकलना बन्द हो गया। वह दूध शिशु रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने पीया। नीरू नीमा ने ब्राह्मण रूपधारी भगवान शिव के चरण लिए तथा कहा आप तो साक्षात् भगवान शिव के रूप हो। आपको भगवान शिव ने ही हमारी पुकार सुनकर भेजा है। हम निर्धन व्यक्ति आपको क्या दक्षिणा दे सकते हैं? हे विप्र! 24 दिनों से हमने कोई कपड़ा भी नहीं बुना है। विप्र रूपधारी भगवान शंकर बोले! साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं। जो है भूखा धन का, वह तो साधु नाहीं। यह कहकर विप्र रूपधारी शिवजी ने वहाँ से प्रस्थान किया।

यही प्रमाण वेदों में है कि परमात्मा शिशु रूप में प्रकट होकर लीला करता है। तब उनकी परवरिश कंवारी गायों के दूध से होती है।

प्रमाण:- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9

अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।

अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।

(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।

भावार्थ - पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।

‘‘नीरू को धन की प्राप्ति’’

बालक की प्राप्ति से पूर्व दोनों जने (पति-पत्नी) मिलकर कपड़ा बुनते थे। 25 दिन बच्चे की चिन्ता में कपड़ा बुनने का कोई कार्य न कर सके। जिस कारण से कुछ कर्ज नीरू को हो गया। कर्ज मांगने वाले भी उसी पच्चीसवें दिन आ गए तथा बुरी भली कह कर चले गए। कुछ दिन तक कर्ज न चुकाने पर यातना देने की धमकी सेठ ने दे डाली। दोनों पति -पत्नी अति चिन्तित हो गए। अपने बुरे कर्मों को कोसने लगे। एक चिन्ता का समाधान होता है, दूसरी तैयार हो जाती है। माता-पिता को चिन्तित देख बालक बोला हे माता-पिता! आप चिन्ता न करो। आपको प्रतिदिन एक सोने की मोहर (दस ग्राम स्वर्ण) पालने के बिछौने के नीचे मिलेगी। आप अपना कर्ज उतार कर अपना तथा गऊ का खर्च निकाल कर शेष बचे धन को धर्म कर्म में लगाना। उस दिन के पश्चात् दस ग्राम स्वर्ण प्रतिदिन नीरू के घर परमेश्वर कबीर जी की कृपा से मिलने लगा। यह क्रिया एक वर्ष तक चलती रही।

परमेश्वर कबीर जी ने मुहर (सोने का सिक्का) मिलने वाली लीला को गुप्त रखने को कहा था एक दिन नीमा की प्रिय सखी उसी समय नीरू के घर पर आई जिस समय वह कबीर जी को जगाने का प्रयत्न कर रही थी। नीमा की सखी ने वह स्वर्ण मुहर देख ली तथा बोली इतना सोना आपके पास कैसे आया। नीमा ने अपनी प्रिय सखी से सर्व गुप्त भेद कह सुनाया कि हमें तो एक वर्ष से यह मुहर प्रतिदिन प्राप्त हो रही है। हमारे घर पर भाग्यशाली लड़का कबीर जब से आया है। हम तो आनन्द से रहते हैं। अगले दिन ही सोना मिलना बंद हो गया। नीरू तथा नीमा दोनों मिलकर कपड़ा बुनकर अपने परिवार का पालन पोषण करने लगे। बड़ा होकर बालक कबीर भी पिता के काम में हाथ बटाने लगा। थोड़े ही समय में अधिक बुनाई करने लगा।

‘‘शिशु कबीर की सुन्नत करने का असफल प्रयत्न’’

शिशु रूपधारी कबीर देव की सुन्नत करने का समय आया तो पूरा जन समूह सम्बन्धियों का इकट्ठा हो गया। नाई जब शिशु कबीर जी के लिंग को सुन्नत करने के लिए कैंची लेकर गया तो परमेश्वर ने अपने लिंग के साथ एक लिंग और बना लिया। फिर उस सुन्नत करने को तैयार व्यक्ति की आँखों के सामने तीन लिंग और बढ़ते दिखाए कुल पाँच लिंग एक बालक के देखकर वह सुन्नत करने वाला आश्चर्य में पड़ गया। तब कबीर जी शिशु रूप में बोले भईया एक ही लिंग की सुन्नत करने का विधान है ना मुसलमान धर्म में। बोल शेष चार की सुन्नत कहाँ करानी है? जल्दी बोल! शिशु को ऐसे बोलते सुनकर तथा पाँच लिंग बालक के देख कर नाई ने अन्य उपस्थित व्यक्तियों को बुलाकर वह अद्धभुत दृश्य दिखाया।

सर्व उपस्थित जन समूह यह देखकर अचम्भित हो गया। आपस में चर्चा करने लगे यह अल्लाह का कैसा कमाल है एक बच्चे को पाँच पुरूष लिंग। यह देखकर बिना सुन्नत किए ही चला गया। बच्चे के पाँच लिंग होने की बात जब नीरू व नीमा को पता चला तो कहने लगे आप क्या कह रहे हो? यह नहीं हो सकता। दोनों बालक के पास गए तो शिशु को केवल एक ही पुरूष लिंग था, पाँच नहीं थे। तब उन दोनों ने उन उपस्थित व्यक्तियों से कहा आप क्या कह रहे थे देखो कहाँ हैं? बच्चे के पाँच लिंग केवल एक ही है। उपस्थित सर्व व्यक्तियों ने पहले आँखों देखे थे पांच पुरूष लिंग तथा उस समय केवल एक ही लिंग (पेशाब इन्द्री) को देखकर आश्चर्य चकित हो गए।

तब शिशु रूप धारी परमेश्वर बोले है भोले लोगो! आप लड़के का लिंग किसलिए काटते हो? क्या लड़के को बनाने में अल्लाह (परमेश्वर) से चूक रह गई जिसे आप ठीक करते हो। क्या आप परमेश्वर से भी बढ़कर हो? यदि आप लड़के के लिंग की चमड़ी आगे से काट कर (सुन्नत करके) उसे मुसलमान बनाते हो तो लड़की को मुसलमान कैसे बनाओगे। यदि मुसलमान धर्म के व्यक्ति अन्य धर्मों के व्यक्तियों से भिन्न होते तो परमात्मा ही सुन्नत करके लड़के को जन्म देता। हे भोले इन्सानों! परमेश्वर के सर्व प्राणी हैं। कोई वर्तमान में मुसलमान समुदाय में जन्मा है तो वह मृत्यु उपरान्त हिन्दू या ईसाई धर्म में भी जन्म ले सकता है। इसी प्रकार अन्य धर्मों में जन्में व्यक्ति भी मुसलमान धर्म व अन्य धर्म में जन्म लेते हैं। ये धर्म की दिवारे खड़ी करके आपसी भाई चारा नष्ट मत करो। यह सर्व काल ब्रह्म की चाल है। कलयुग से पहले अन्य धर्म नहीं थे। केवल एक मानव धर्म (मानवता धर्म) ही था। अब कलयुग में काल ब्रह्म ने भिन्न-2 धर्मों में बांट कर मानव की शान्ति समाप्त कर दी है।

सुन्नत के समय उपस्थित व्यक्ति बालक मुख से सद्उपदेश सुनकर सर्व दंग रह गए। माता-नीमा ने बालक के मुख पर कपड़ा ढक दिया तथा बोली घना मत बोल। काजी सुन लेंगे तो तुझे मार डालेंगे वो बेरहम हैं बेटा। परमेश्वर कबीर जी माता के हृदय के कष्ट से परिचित होकर सोने का बहाना बना कर खराटे भरने लगे। तब नीमा ने सुख की सांस ली तथा अपने सर्व सम्बन्धियों से प्रार्थना की आप किसी को मत बताना कि कबीर ने कुछ बोला है। कहीं मुझे बेटे से हाथ धोने पड़ें।

‘‘ऋषि रामानन्द, सेऊ, सम्मन तथा नेकी व कमाली के पूर्व जन्मों का ज्ञान’’

ऋषि रामानन्द जी का जीव सत्ययुग में विद्याधर ब्राह्मण था जिसे परमेश्वर सत सुकृत नाम से मिले थे। त्रोता युग में वह वेदविज्ञ नामक ऋषि था जिसको परमेश्वर मुनिन्द्र नाम से शिशु रूप में प्राप्त हुए थे तथा कमाली वाली आत्मा सत्य युग में विद्याधर की पत्नी दीपिका थी। त्रोता युग में सूर्या नाम की वेदविज्ञ ऋषि की पत्नी थी। उस समय इन्होनें परमेश्वर को पुत्रवत् पाला तथा प्यार किया था। उसी पुण्य के कारण ये आत्माएँ परमात्मा को चाहने वाली थी। कलयुग में भी इनका परमेश्वर के प्रति अटूट विश्वास था। ऋषि रामानन्द व कमाली वाली आत्माएँ ही सत्ययुग में ब्राह्मण विद्याधर तथा ब्राह्मणी दीपीका वाली आत्माएँ थी जिन्हें ससुराल से आते समय कबीर परमेश्वर एक तालाब में कमल के फूल पर शिशु रूप में मिले थे। यही आत्माएँ त्रोता युग में (वेदविज्ञ तथा सूर्या) ऋषि दम्पति थे। जिन्हें परमेश्वर शिशु रूप में प्राप्त हुए थे। सम्मन तथा नेकी वाली आत्माएँ द्वापर युग में कालू वाल्मीकि तथा उसकी पत्नी गोदावरी थी। जिन्होंने द्वापर युग में परमेश्वर कबीर जी का शिशु रूप में लालन-पालन किया था। उसी पुण्य के फल स्वरूप परमेश्वर ने उन्हें अपनी शरण में लिया था। सेऊ (शिव) वाली आत्मा द्वापर में ही एक गंगेश्वर नामक ब्राह्मण का पुत्र गणेश था। जिसने अपने पिता के घोर विरोध के पश्चात् भी मेरे उपदेश को नहीं त्यागा था तथा गंगेश्वर ब्राह्मण वाली आत्मा कलयुग में शेख तकी बना। वह द्वापर युग से ही परमेश्वर का विरोधी था। गंगेश्वर वाली आत्मा शेख तकी को काल ब्रह्म ने फिर से प्रेरित किया। जिस कारण से शेख तकी (गंगेश्वर) परमेश्वर कबीर जी का शत्रु बना। भक्त श्री कालू तथा गोदावरी का गणेश माता-पिता तुल्य सम्मान करता था। रो-2 कर कहता था काश आज मेरा जन्म आप (वाल्मीकि) के घर होता। मेरे (पालक) माता-पिता (कालू तथा गोदावरी) भी गणेश से पुत्रवत् प्यार करते थे। उनका मोह भी उस बालक में अत्यधिक हो गया था। इसी कारण से वे फिर से उसी गणेश वाली आत्मा अर्थात् सेऊ के माता-पिता (नेकी तथा सम्मन) बने। सम्मन की आत्मा ही नौशेरवाँ शहर में नौशेरखाँ राजा बना। फिर बलख बुखारे का बादशाह अब्राहिम अधम सुलतान हुआ तब उसको पुनः भक्ति पर लगाया। {सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम की सम्पूर्ण कथा इसी पुस्तक के पृष्ठ 221 पर लिखी है।}

  • सतगुरू रामपाल जी से निवेदन है कि जब हम मुसलमान भाईयों से ज्ञान चर्चा करते हैं। उनके प्रश्नों का उत्तर हम नहीं दे पाते। कृपया इनका जवाब कैसे दें? प्रश्न यह है:-

प्रश्न:- कुरआन ज्ञान उतारने वाला अल्लाह (प्रभु) कादर नहीं है। यह कैसे माना जाए क्योंकि कुरआन मजीद में सूरः साद-38 आयत नं. 41-42 में प्रमाण है कि ’’अल्लाह ने बंदे अय्यूब की पुकार सुनकर उसे कहा कि जमीन पर लात मारो। पीने के पानी का चश्मा निकलेगा। अय्यूब ने वैसा ही किया और लात मारते ही पीने के ठंडे पानी का चश्मा बहने लगा।‘‘

  • (रामपाल दास) उत्तर इस प्रकार दो:-

उत्तर:- आप जी इसी पुस्तक में सृष्टि रचना अध्याय में पढ़ें। उससे पता चलेगा कि कुरआन का ज्ञान उतारने वाला किस स्तर का खुदा है?

अल्लाह की परिभाषा समझें। ’खुदा‘ अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है स्वामी, प्रभु, मालिक।

उदाहरण से समझते हैं:- जैसे भारत देश में प्रांत (State) में मंत्री जी, मुख्यमंत्री जी के पद हैं। मंत्री जी केवल एक या अधिक विभाग का स्वामी (प्रभु) होता है। मुख्यमंत्री पूरे राज्य (प्रांत) का प्रभु (मालिक) होता है। प्रांत में अन्य राज अधिकारी भी होते हैं। जैसे पुलिस विभाग में डाॅयरेक्टर जनरल (DG) होता है जो पूरे प्रांत की पुलिस का प्रभु (मालिक) है।

उससे नीचे अन्य पद भी होते हैं, इंस्पैक्टर जनरल (IG), सुप्रीटेंडेंट आफ पुलिस (SP), डिप्टी सुप्रीटेंडेंट आफ पुलिस (DSP), फिर थानेदार (SHO) तथा अन्य पुलिस मुलाजिम होते हैं।

पूरे भारत देश का मालिक (प्रभु/स्वामी) राष्ट्रपति जी हैं। दूसरे नंबर पर प्रधानमंत्री जी पूरे भारत के मालिक (प्रभु) हैं। इनके बाद अन्य विभागीय मंत्रीगण अपने-अपने विभागों के प्रभु (मालिक) होते हैं। परंतु प्रधानमंत्री जी सब मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों से अधिक शक्तिमान (powerful) होते हैं।

सूक्ष्मवेद में लिखा है कि (जो कादर अल्लाह का बताया हुआ सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान है, उसमें कहा है कि):-

कबीर, जो जा की शरणां बसै, ताको ताकी लाज।
जल सौंही मछली चढ़ै, बह जाते गज राज।।

अर्थात् जो व्यक्ति जिस प्रभु (सहाब) का मित्र है, वह सहाब अपने स्तर का लाभ अपने मित्र को तुरंत सम्मान के साथ दे देता है जो जन साधारण को नहीं मिल सकता। जैसे किसी का दोस्त थानेदार (Station Headquarter Officer) है, वह थाने में किसी के काम के लिए जाता है तो उसका दोस्त दरोगा उसको सम्मान के साथ कुर्सी पर बैठाता है। चाय पिलाता है और अपने स्तर का काम तुरंत कर देता है। सामान्य जनताजन थाने में प्रवेश करते हुए भी डरता है। काम होना तो दूर की बात है।

इसी प्रकार यदि किसी की दोस्ती पुलिस के डी.जी. से है तो उसके लिए पूरे प्रांत में पुलिस के स्तर का कार्य तुरंत हो जाता है। जो कार्य SP, DSP, थानेदार भी नहीं कर सकते, वह भी डी.जी. के मित्र का हो जाता है।

इसी प्रकार प्रांत में मंत्री जी भी राहत दे सकता है, परंतु मुख्यमंत्री के समान लाभ नहीं दे सकता।

इसी प्रकार भारत के प्रधानमंत्री जी सब मुख्यमंत्रियों व केन्द्रीय मंत्रियों से अधिक लाभ दे सकते हैं। जिनकी दोस्ती प्रधानमंत्री से है, उसके काम देश में किसी भी स्तर के सहाब के पास हों, निर्बाध (बिना रोक-टोक के) हो जाते हैं।

वाणी का अर्थ है कि जैसे मछली की जल से सच्ची दोस्ती है। जल की दरिया (river) बह रही हो। उसमें चाहे पचास फुट का एकदम निचान (fall) है। ऐसे फाॅल (पानी नीचे गिरने वाले स्थान) पर पानी बहुत तेजी से नीचे गिरता है। उसके सामने यदि (गजराज) हाथियों में सबसे ताकतवर हाथी भी आ जाए तो वह जल प्रवाह उस हाथी को भी बहा ले जाता है। परंतु मछली उस फाॅल के नीचे वाले स्तर पर बह रहे जल से ऊपर वाले स्तर पर यानि पचास फुट ऊपर सम्मुख सीधे चढ़ जाती है यानि जल ने अपनी दोस्त मछली को अपने स्तर की सुविधा दे रखी है जिसे हाथी प्राप्त नहीं कर सकता।

अब आसानी से समझ सकेंगे कि कुरआन मजीद की सूरः साद-38 आयत नं. 41-42 में जो चश्मा लात मारने से अय्यूब के अल्लाह ने जमीन से निकाल दिया। कारण यह है कि प्रत्येक प्रभु में अपने स्तर की शक्ति है। कुरआन मजीद (शरीफ) का ज्ञान देने वाला काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) है। इसकी सत्ता इक्कीस ब्रह्मण्डों पर है। उनमें से एक ब्रह्मंड के सब लोकों में जीव हैं। जिस ब्रह्मंड में हम हैं, इसका प्रभु भी यह काल ब्रह्म है। इसके स्तर की साधना करने से यह चमत्कार करता है। इसके द्वारा बताई भक्ति क्रियाओं से जन्नत (स्वर्ग) में सदा नहीं रहा जा सकता। जन्म तथा मृत्यु का चक्र सदा बना रहेगा। कुत्ते, गधे, सूअर आदि पशुओं व पक्षियों, जीव-जंतुओं के शरीरों में कष्ट प्रत्येक जीव को उठाना पड़ता है। चाहे कोई भक्ति (इबादत) करे, चाहे ना करे। इबादत न करने वाले सीधे नरक में जाते हैं। फिर पशु, पक्षी आदि के जीवन भोगते हैं। इबादत करने वालों को कुछ समय स्वर्ग का सुख मिल जाता है। उनको भी नरक (जहन्नम) में गिरना पड़ता है। अन्य जीवों के शरीरों में भी कष्ट भोगना पड़ता है।

केवल सृष्टि उत्पन्न करने वाले कादर अल्लाह {जिसे गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में परम अक्षर ब्रह्म कहा है तथा उसी की जानकारी इसी अध्याय के श्लोक 8-10 तथा 20-22 में तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 17, गीता अध्याय 18 श्लोक 46, 61-62 में तथा अनेकों अन्य स्थानों पर गीता में है तथा कुरआन मजीद की सूरः फुरकान-25 आयत नं. 52-59, सूरः बकरा-2 आयत नं 255 तथा अन्य अनेकों सूरों में जिसको सम्पूर्ण जगत का उत्पत्तिकर्ता, परवरदिगार व शाशवत् (अविनाशी) बताया है} की इबादत करने से साधक सदा रहने वाले सुख स्थान सतलोक को प्राप्त करता है। वहाँ जाने के पश्चात् फिर कभी काल लोक में जन्म नहीं लेता।

जिस खुदा का भक्त अय्यूब था, उसी का भक्त भीम था। महाभारत ग्रंथ में प्रकरण है कि भीम अपनी माता तथा पत्नी द्रोपदी तथा अन्य चारों भाइयों के साथ हिमालय पर्वत पर गए। जल का अभाव था। सब प्यास से व्याकुल हो गए। भीम ने पैर को मोड़कर गोडा (knee) जमीन पर मारा। पत्थरों से मीठे जल का चश्मा बह चला। उस स्थान को भीम गोडा कहते हैं जो भारत के उत्तराखंड राज्य में हरिद्वार शहर के पास है।

केवल ऐसे चमत्कारों के होने से कादर खुदा नहीं माना जा सकता।

कादर खुदा कबीर जी ने अपने भक्त बीरदेव सिंह बघेल काशी के नरेश के लिए जंगल में ऊँची सूखी पहाड़ी के ऊपर मीठे जल का तालाब बना दिया। उसके चारों ओर फलदार वृक्षों का बाग लगा दिया क्योंकि राजा तथा उसके साथ सैंकड़ों सैनिक शिकार के लिए जंगल में बहुत आगे तक चले गए थे। वे सब भूख तथा प्यास से मरने लगे थे। प्राण जाने को हो गए थे। उनके जीवन की रक्षा की।

इस करिश्मे के साथ-साथ पूर्ण मोक्ष भी कबीर अल्लाह अपने भक्त को पूर्ण मोक्ष भी प्रदान करता है। भक्त को सदा सर्वश्रेष्ठ जन्नत में रहने के लिए स्थान देता है।

जो जितना प्रभु (खुदा) है, वह अपनी (लाज) इज्जत रखने के लिए अपने भक्त को अपने स्तर का लाभ देता है।

{कबीर अल्लाह ताला की समर्थता की अधिक जानकारी के लिए अध्याय ’’हजरत आदम से हजरत मुहम्मद तक‘‘ में पढ़ें ढ़ेर सारे प्रमाण।}

प्रश्न:- कुरआन मजीद की सूरः साद-38 आयत नं. 45-51 में हमारे (मुसलमानों के) अल्लाह ने बताया है कि जो हमारे बंदों इब्राही और इस्हाक और याकूब, इस्माईल और अल् यसअ् तथा जुलकिफ्ल जैसे नेक व परहेजगार होंगे। उनके लिए जन्नत के दरवाजे खुले होंगे। वे वहाँ पर तकिये लगाकर बैठेंगे। उनके खाने के लिए बहुत सारे मेवे व फल होंगे तथा पीने के लिए शराब होगी तथा उनके पास नीची निगाह रखने वाली (शर्मीली) हमउम्र बीबियाँ (पत्नियाँ) होंगी। क्या इस जन्नत में भक्त सदा सुख से नहीं रहेंगे?

(रामपाल दास) उत्तर इस प्रकार बताओ:-

उत्तर:-जहाँ पर शराब पीने को मिलती हो तो वहाँ कोई कैसे सुखी रह सकता है तथा कैसे सदा रह सकता है? आप जी इसी पुस्तक ‘‘मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरआन’’ में पृष्ठ 68 पर पढ़ें ‘‘सर्वनाश के लिए शराब पीना पर्याप्त है।’’

पुराणों में कथा है:- स्वर्ग (जन्नत) में नल तथा कुबर नाम के दो देवता थे जो कुबेर देवता के पुत्र थे। एक दिन दोनों ने शराब पी ली और एक दरिया के किनारे नंगे होकर उत्पात मचाने लगे। उस दरिया में उसी स्थान पर देवताओं (फरिस्तों) की पत्नियाँ, बेटियाँ स्नान कर रही थी जो शर्म के मारे मुख फेरकर दरिया के जल में गहरे पानी में खड़ी थी। ऋषि नारद जी वहाँ से गुजर रहे थे। नल तथा कुबर ने ऋषि नारद जी की भी शर्म नहीं की। उसी प्रकार औरतों की ओर अभद्र संकेत करते रहे। ऋषि जी ने उनको समझाया परंतु शराब जो सिर में चढ़ी थी, नहीं माने। तो नारद ऋषि जी ने श्राप दे दिया कि तुम स्वर्ग (जन्नत) में रहने योग्य नहीं हो। पृथ्वी के ऊपर जड़ जूनी में वृक्षों के रूप में उत्पन्न होओ। दोनों की मृत्यु स्वर्ग में हो गई। दोनों पृथ्वी के ऊपर अर्जुन तथा जुमला के वृक्ष कालीदह नामक झील के किनारे उगे।

जहाँ शराब पीने को मिलती है और जो अल्लाह शराब का लोभ देकर अपनी इबादत में लगाता है, वह कादर अल्लाह नहीं है। वह काल ज्योति निरंजन है। सतलोक के अतिरिक्त किसी भी लोक की जन्नत (स्वर्ग) तथा महास्वर्ग यानि ब्रह्म लोक (बड़ी जन्नत) में कोई व्यक्ति सदा नहीं रह सकता। यह शत प्रतिशत सत्य है।

विशेष:- कुरआन मजीद की उपरोक्त सूरः साद-38 की आयत नं. 45-51 में यह भी लिखा है कि जन्नत (बहिसत) में जाने वालों को हमउम्र (अपनी आयु के समान आयु वाली) बीवियाँ (पत्नियाँ) मिलेंगी जो नीची निगाहों वाली यानि बड़ी शर्मीली होंगी।

इस काल ज्योति निरंजन अल्लाह (कुरआन का ज्ञान देने वाले अल्लाह) ने कहा कि (जैसा मुसलमान भाई बताते हैं कि) सब मानव कयामत तक मरते रहेंगे। उनको कब्रों में जमीन में दफनाते (दबाते) रहेंगे। जब कयामत (प्रलय) आएगी, सब जिलाये जाएँगे यानि जीवित किए जाएँगे। जो मुसलमान (आज्ञाकारी, अल्लाह के आदेशानुसार चलने वाले) हैं, उनको जन्नत में तथा काफिर (अवज्ञाकारी, बदी करने वाले) हैं, उनको जहन्नम (नरक) में रखा जाएगा।

विचार करो:- कोई तो दो वर्ष का मर जाता है, कोई दस वर्ष का, कोई जवान, कोई वृद्ध अस्सी-पचासी वर्ष का मरता है। उनकी हमउम्र बीवियाँ भी उसी आयु की मिलेंगी। साठ वर्ष के पुरूष की साठ वर्ष की बीवी होगी। सत्तर वर्ष के पुरूष की सत्तर वर्ष की बीवी होगी। ऐसे ही अन्य आयु वालों की दशा होगी। वे चाहे नीची निगाह वाली हों, चाहे ऊँची निगाह वाली हों। उनको जन्नत में खाक सुख मिलेगा?

यह काल ज्योति निरंजन का जाल है। इसके द्वारा भ्रमित ज्ञान दिया जाता है ताकि सब मानव पाप करके यहीं जन्मते-मरते रहें। नरक, स्वर्ग व अन्य पशु-पक्षियों के शरीरों में भटकते रहें।

प्रश्न:- यह कैसे माना जाए कि कुरआन मजीद का ज्ञान देने वाला काल ज्योति निरंजन है?

(रामपाल दास) उत्तर:- प्रमाण पवित्र पुस्तक कुरआन मजीद में ही पर्याप्त हैं। आप जी को यह तो ज्ञान है कि हजरत आदम से लेकर हजरत मुहम्मद तक का खुदा एक ही है। हजरत मूसा जी को भी पवित्र पुस्तक तौरेत उसी ने प्रदान (नाजिल) की थी।

कुरआन मजीद सूरः अल-कसस-28 आयत नं. 29-32 में तथा सूरः ता.हा.-20 आयत नं. 9. 23 में लिखा है कि हजरत मूसा ने तुर (कातुर) पर्वत के ऊपर आग जलती (ज्योति) देखी। उसने अपने परिवार के लोगों से कहा ‘‘तुम सब यहीं ठहरो। मैं उस आग से तुम्हारे लिए अँगार ले आता हूँ।’’ जब मूसा उस आग के निकट पहुँचा तो देखा कि वह लकड़ी से जलने वाली आग नहीं है। वह तो अलौकिक प्रकाश है। उस रोशनी से आवाज आई कि हे मूसा! मैं तेरा रब हूँ। तू जूती उतारकर नंगे पैरों से इस पर्वत पर चढ़। जब मूसा कुछ दूरी पर रह गया तो उस ज्योति में से आवाज फिर आई कि मूसा! तू अपनी लाठी मेरी ओर फैंक दो। मूसा ने लाठी फैंक दी जो एक साँप बनकर चलने लगी। फिर कहा कि मैं तेरे को अपना रसूल बनाता हूँ। तेरे को किताब की निशानी देता हूँ, आदि-आदि कहा।

इससे सिद्ध हुआ कि ज्योति निरंजन जिसे काल कहा जाता है, उसी ने मूसा को तौरेत किताब उतारी (नाजिल की)। वही हजरत आदम से हरजत मुहम्मद तक का रब है। इसने प्रतिज्ञा कर रखी (कसम खा रखी) है कि मैं अपने वास्तविक स्वरूप में किसी को दर्शन नहीं दूँगा। सब कार्य करूँगा। कसम किसलिए खा रखी है? यह आप इसी पुस्तक के पृष्ठ 263 से 321 तक अध्याय ’’सृष्टि रचना‘‘ में पढ़ें।

श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान भी इसी ज्योति निरंजन यानि काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके अर्जुन को बताया था। गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में काल ब्रह्म ने कहा है कि:-

श्लोक 24:- बुद्धिहीन व्यक्ति मेरे (अनुत्तम) घटिया (अव्ययम्) अटल नियम को नहीं जानते। इसलिए मुझे (श्री कृष्ण) व्यक्ति रूप में आया (कृष्ण) मानते हैं।

श्लोक 25:- मैं अपनी योग माया से (शक्ति से) छिपा रहता हूँ। किसी के प्रत्यक्ष नहीं होता। यह अज्ञानी जन समुदाय कभी मनुष्य की तरह जन्म न लेने वाले को नहीं जानता।

अर्थात् ज्योति निरंजन (काल) ने स्पष्ट कर दिया कि मेरा अटल नियम है कि मैं छिपा रहता हूँ। सबके सामने कभी भी प्रत्यक्ष नहीं होता। सब कार्य छुपकर करता रहता हूँ। गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में स्पष्ट किया है कि ‘‘मैं काल हूँ।’’ सबका नाश करने के लिए अब (श्री कृष्ण में) आया हूँ यानि कृष्ण के शरीर में प्रवेश हुआ हूँ। श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान बोला था।

ऐसे ही चारों किताबों (जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरआन) का ज्ञान गुप्त रहकर बताया है। यह कादर सृष्टि की उत्पत्ति करने वाला अल्लाह नहीं है। कबीर खुदा ने इसको काल कराल (शैतान) कहा है।

अन्य प्रमाण:- कुरआन मजीद की सूरः अल बकरा-2 आयत नं. 35-38 तक कुरआन का ज्ञान देने वाला अल्लाह कह रहा है कि:-

  • आयत नं. 35:- फिर हमने आदम से कहा ‘‘तुम और तुम्हारी पत्नी दोनों जन्नत (स्वर्ग) में रहो और यहाँ जी भरकर जो चाहो खाओ, किन्तु इस पेड़ के निकट न जाना नहीं तो जालिमों में गिने जाओगे।’’
  • आयत नं. 36:- अन्ततः शैतान ने उन दोनों को उस पेड़ की ओर प्रेरित करके हमारे आदेश की अवहेलना करवा दी। हमने हुकम दिया कि अब तुम सब यहाँ से उतर जाओ। एक-दूसरे के दुश्मन बन जाओ। (साँप और इंसान एक-दूसरे के शत्रु हो गए) और तुम्हें एक समय तक धरती पर ठहरना है। वहीं गुजर-बसर करना है।
  • आयत नं. 37:- उस समय आदम ने अपने रब से कुछ शब्द सीखकर तौबा (क्षमा याचना) की जिसको उसके रब ने स्वीकार कर लिया क्योंकि वह बड़ा क्षमा करने वाला और दया करने वाला है।
  • आयत नं. 38:- हमने कहा कि ‘‘तुम अब यहाँ से उतर जाओ।’’ फिर मेरी ओर से जो मार्गदर्शन तुम्हारे पास पहुँचे, उस अनुसार (चलना)। जो मेरे मार्गदर्शन के अनुसार चलेंगे, उनके लिए किसी भय और दुःख का मौका न होगा। (कुरआन मजीद से लेख समाप्त)।

पवित्र बाईबल में (तौरेत किताब में) लिखा है कि परमेश्वर ने छः दिन में सृष्टि की जिसमें छठे दिन मनुष्यों को अपने जैसे रूप का उत्पन्न किया। आदम तथा हव्वा आदि को उत्पन्न करके सातवें दिन आसमान में तख्त पर जा बैठा। उसके पश्चात् ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) ने बागडोर संभाल ली। अपने पुत्रों ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के माध्यम से सब कार्य करने लगा।

उपरोक्त कुरआन मजीद वाला प्रकरण बाईबल ग्रन्थ में विस्तारपूर्वक है जो इस प्रकार है:-

काल (ज्योति निरंजन) ने अपने तीन पुत्रों द्वारा अपनी व्यवस्था करवा रखी है। ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव ये तीन पुत्र काल के हैं। आदम जी ब्रह्मा के लोक से आई आत्मा हैं। इसलिए ब्रह्मा ने आदम को वाटिका में संभाला।

प्रभु काल के पुत्र ब्रह्मा ने हजरत आदम तथा हजरत हव्वा (जो श्री आदम जी की पत्नी थी) को कहा कि इस वाटिका में लगे हुए पेड़ों के फलों को तुम खा सकते हो। लेकिन ये जो बीच वाले पेड़ों के फल नहीं खाना, अगर खाओगे तो मर जाओगे। परमेश्वर ऐसा कह कर चला गया।

उसके बाद सर्प आया और कहा कि तुम ये बीच वाले पेड़ों के फल क्यों नहीं खा रहे हो? हव्वा जी ने कहा कि भगवान (अल्लाह) ने हमें मना किया है कि अगर तुम इनको खाओगे तो मर जाओगे, इन्हें मत खाना। सर्प ने फिर कहा कि भगवान ने आपको बहकाया हुआ है। वह नहीं चाहता है कि तुम प्रभु के सदृश ज्ञानवान हो जाओ। यदि तुम इन फलों को खा लोगे तो तुम्हें अच्छे और बुरे का ज्ञान हो जाएगा। आपकी आँखों पर से अज्ञानता का पर्दा हट जाएगा जो प्रभु ने आपके ऊपर डाल रखा है। यह बात सर्प ने आदम की पत्नी हव्वा से कही थी। हव्वा ने अपने पति हजरत आदम से कहा कि हम ये फल खायेंगे तो हमें भले-बुरे का ज्ञान हो जाएगा। ऐसा ही हुआ। उन्होंने वह फल खा लिया तो उनकी आँखें खुल गई तथा वह अंधेरा हट गया जो भगवान ने उनके ऊपर अज्ञानता का पर्दा डाल रखा था। जब उन्होंने देखा कि हम दोनों निवस्त्र हैं तो शर्म आई और अंजीर के पत्तों को तोड़कर लंगोट बनाकर गुप्तांगों पर बांधा।

यह उपरोक्त प्रकरण पवित्र बाईबल से उत्पत्ति अध्याय से लिया है। सृष्टि रचने वाला कादर अल्लाह तो ऊपर आसमान में तख्त पर जा बैठा और जो आदम तथा हव्वा को जन्नत में रखता है। उनको एक पेड़ के फल खाने से मना करता है। शैतान के बहकावे में आकर आदम जी तथा हव्वा जी उस भले-बुरे का ज्ञान करवाने वाले पेड़ का फल खा लेते हैं। फिर अल्लाह आया और पता चला तो कहा कि आदम तथा हव्वा ने भले-बुरे का ज्ञान करवाने वाले पेड़ का फल खा लिया है। जिस कारण से मनुष्य हममें से एक के समान हो गए हैं। इसलिए ऐसा न हो कि यह जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़कर खा ले और सदा जीवित रहे। इसलिए जन्नत (भ्मंअमद) से निकाल दिया।

सृष्टि रचने वाला अल्लाह ताला है। वह तो ऊपर चला गया है। आदम व हव्वा के साथ अल्लाह ताला नहीं था। अन्य अल्लाह सिद्ध हुआ। वह उपरोक्त कुरआन मजीद की सूरः अल बकरा-2 की आयत 35-38 में कुरआन मजीद का ज्ञान देने वाला स्वीकार कर रहा है कि मैंने आदम व हव्वा को जन्नत में रखा और गलती करने पर जन्नत (स्वर्ग) से निकाल दिया। धरती पर छोड़ दिया। इससे सिद्ध हुआ कि कुरआन मजीद का ज्ञान देने वाला यानि हजरत आदम से हजरत मुहम्मद तक का रब कादर अल्लाह सृष्टि रचने वाला नहीं है। वे एक से अधिक हैं। यह सब प्रपंच ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) का है। यह स्वयं किसी के सामने नहीं आता। कहीं स्वयं आग रूप में प्रकट होकर मानव को भ्रमित करता है, कभी अपने तीनों पुत्रों द्वारा भ्रमित करता है। कभी अपने तीनों पुत्रों में से एक में प्रवेश करके ज्ञान बताता है। कभी सीधा मानव में प्रवेश करके बोलता है। कुछ सत्य ज्ञान, कुछ असत्य तथा अधूरा ज्ञान बताकर अपने जाल में फँसाकर रखता है।

असत्य कथन का प्रमाण:- पवित्र कुरआन मजीद में सूरः अल बकरा-2 आयत नं. 38 में (ज्योति निरंजन) कुरआन मजीद का ज्ञान देने वाले ने कहा है कि हे आदम तथा हव्वा! तुम धरती पर उतर जाओ। मैं तुम्हें मार्गदर्शन करूँगा यानि किताब नाजिल करूँगा। उसमें धर्म-कर्म की जानकारी बताऊँगा तथा परहेज (मर्यादा) बताऊँगा। जो मेरे मार्गदर्शन के अनुसार चलेंगे, उनके लिए किसी भय और दुःख का मौका नहीं होगा। जब हम हजरत मुहम्मद जी की जीवनी पढ़ते हैं तो रोना आता है कि जिस महान आत्मा ने कुरआन मजीद का ज्ञान देने वाले अल्लाह की प्रत्येक आज्ञा का पालन तन-मन-धन से किया। उसी के मार्गदर्शन में अंतिम श्वांस तक चले। फिर भी हजरत मुहम्मद (सल्ल. वसल्लम) जी का जीवन दुःखों से भरा था जिसको उसी अल्लाह ने अपना रसूल बनाकर भेजा था।

जब नबी मुहम्मद जी माता के गर्भ में थे तो पिता जी का देहांत हो गया। जब छः वर्ष के हुए तो माता जी मर गई। जब आठ वर्ष के हुए तो दादा जी चल बसे जो बालक मुहम्मद की परवरिश कर रहे थे। फिर चाचा ने पाला। यतीमी का जीवन जीया।

यदि विचार किया जाए तो पता चलता है कि जिस बच्चे के माता-पिता मर जाते हैं, उसकी क्या दशा होती है? कोई माता-पिता जैसा प्यार नहीं देगा, कोई धमकाएगा। किसी के बच्चे अच्छे वस्त्र पहनते हैं। यतीम को फटे-पुराने वस्त्र दिए जाते हैं। अधिक कार्य लिया जाता है। अपनी समस्या किसके आगे कहे? अन्य बच्चे मेले में रूपये लेकर जाते हैं। यतीम उनको देखकर किस्मत को कोसता है। त्यौहार के दिन सब अच्छा भोजन खाते हैं। यतीम को लूखा-सूखा, बासी भोजन खाने को दिया जाता है, आदि-आदि घोर कष्ट भोगता है।

पच्चीस वर्ष की आयु तक विवाह नहीं हुआ। फिर चालीस वर्षीय खदीजा नाम की विधवा से विवाह हुआ। खदीजा पहले दो बार विधवा हो चुकी थी। हजरत खदीजा जी से आप जी को तीन पुत्र तथा चार पुत्री संतान उत्पन्न हुई। आपकी आँखों के सामने तीनों पुत्र आँखों के तारे मृत्यु को प्राप्त हुए। काल यानि ज्योति निरंजन के बताए कुरआन मजीद के ज्ञान का प्रचार करने में घोर संकट का सामना करना पड़ा। अनेकों लड़ाई लड़ी। विरोधियों द्वारा तीन वर्ष बहिष्कार किया गया। उस दौरान आप (सल्ल.) का सारा खानदान महादुःखी रहा। बच्चों ने पत्ते खाकर विलख-विलखकर जीवन जीया। हजरत मुहम्मद जी का तरेसठ वर्ष की आयु में महाकष्ट भोगकर इंतकाल (देहांत) हुआ।

कुरआन ज्ञान दाता ने ऊपर सूरः अल बकरा-2 की आयत नं. 38 में कहा है कि जो मेरे बताए अनुसार कार्य करेगा, उसको कोई दुःख नहीं होगा। यह खरा नहीं उतरा। कादर अल्लाह कबीर है। वह अपने भक्त/भक्तमति व रसूल को कोई कष्ट नहीं आने देता तथा पूर्ण मोक्ष प्रदान करता है। सीधा सतलोक ले जाता है। समर्थ परमेश्वर का डर काल ज्योति निरंजन को भी है। इसलिए काल ब्रह्म अपना बचाव करते हुए उस कादर खुदा जो कबीर है, की इबादत बिना किसी के शरीक किए करने को कहता है। फिर अपनी इबादत करने को भी अधिक जोर देता है। उसमें भी कहता है कि मेरे अतिरिक्त किसी को शरीक (मेरे समान न मानकर) न करके मेरी पूजा (इबादत) करो।

इसी प्रकार इसी काल ब्रह्म ने गीता का ज्ञान दिया। उसमें अध्याय 8 श्लोक 1 में अर्जुन ने प्रश्न किया कि हे प्रभु! आपने गीता अध्याय 7 श्लोक 29 में जो तत् ब्रह्म बताया है, वह कौन है? इसका उत्तर काल ब्रह्म ने गीता अध्याय 8 के श्लोक 3 में दिया है। बताया है कि वह ‘‘परम अक्षर ब्रह्म है।’’

फिर अध्याय 8 के श्लोक 5 तथा 7 में अपनी पूजा करने को कहा है तथा श्लोक 8.9.10 में अपने से अन्य परम अक्षर ब्रह्म की पूजा करने को कहा है। स्पष्ट किया है कि मेरी भक्ति करेगा तो मेरे पास मेरे लोक में रहेगा। यदि उस परम अक्षर ब्रह्म (समर्थ परमेश्वर) की भक्ति करेगा तो उसको प्राप्त हो जाएगा। उसके सतलोक में जाएगा।

अपने विषय में गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 10 श्लोक 2 में स्पष्ट किया है कि जन्म तथा मृत्यु तेरी भी होती रहेगी तथा मेरी भी।

  • गीता अध्याय 18 श्लोक 46, 61 में उस समर्थ परमेश्वर के विषय में कहा है किः- परम अक्षर ब्रह्म (कादर सृष्टि की उत्पत्ति व पालनकर्ता परमेश्वर) वह है जिसने इस संसार की रचना की है। वही इसको सहारा देकर अपनी शक्ति से रोके हुए है तथा सब जीवों को उनके कर्मों अनुसार अन्य प्राणियों के शरीरों में स्वर्ग, नरक व फिर मानव के शरीरों में भ्रमण करवाता है यानि समर्थ परमेश्वर ने विधान बना रखा है कि जो जैसे कर्म करेगा, उसका फल अवश्य मिलेगा।

  • गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि हे अर्जुन! तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परम धाम (अमर लोक) को प्राप्त होगा।

  • गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्त्वज्ञान (बाखबर) तत्त्वदर्शी संत से प्राप्त करके उसके पश्चात् उस (उपरोक्त) परमेश्वर के उस परम पद (सतलोक) की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आता। उसकी पूजा करो।

  • गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में बताया है कि क्षर पुरूष (काल ब्रह्म) तथा अक्षर पुरूष ये दो प्रभु इस नाशवान लोक में हैं। ये दोनों तथा इनके अंतर्गत जितने प्राणी हैं, सब नाशवान हैं। आत्मा सबकी अमर हैं।

  • गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि उत्तम प्रभु यानि पुरूषोत्तम तो उपरोक्त दोनों से भिन्न है जो वास्तव में परमात्मा कहा जाता है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। वह अविनाशी परमेश्वर है।

गीता में यह भी स्पष्ट किया है कि उस परमेश्वर की भक्ति अनन्य भाव से करो यानि उसके अतिरिक्त किसी अन्य देव को उसके साथ न पूजो। अपने विषय में भी यही कहा है कि मेरी भक्ति करो। किसी अन्य देवता को मेरे समान मानकर न पूजो।

इसी प्रकार कुरआन ज्ञान देने वाले ने सूरः अंबिया-21 आयत नं. 92, 30, 31, 32 में अपनी इबादत करने को कहा है तथा अपनी महिमा बताई है। सूरः बकरा-2 आयत नं. 255 में अपने से अन्य परमेश्वर की महिमा बताई है तथा सूरः फातिर-1 आयत नं. 1-7 में समर्थ रहमान की इबादत करने को कहा है।

उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध हुआ कि कुरआन मजीद (शरीफ) का ज्ञान देने वाला काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) है जो सबको धोखा देकर रखता है। अधूरा ज्ञान बताकर अपने जाल में फँसाकर रखता है। पाप कर्म करने की भी प्रेरणा करता है। युद्ध (लड़ाई-झगड़े) करवाता रहता है ताकि सब जीव दुःखी रहें, भक्ति न करें। करें तो गलत भक्ति (इबादत) करें।

अन्य प्रमाण:- कुरआन मजीद सूरः सजदा-32 आयत नं. 13:- कुरआन का ज्ञान देने वाले अल्लाह ने कहा है कि मेरी ओर से यह बात करार पा चुकी है कि मैं जिन्नों और मनुष्यों से दोजख को भर दूँगा। हम चाहते तो हर शख्स को हिदायत दे देते, लेकिन मैंने जिन्नों तथा मनुष्यों से दोजख (नरक) को भरना है। साधना अधूरी बताता है। माँस खाने की छूट देता है। जिस कारण से नरक ही भरेगा, जन्नत में तो जा ही नहीं सकते। कुरआन का ज्ञान देने वाला लड़ाई करने के लिए प्रेरित करता है।

प्रमाण के लिए सूरः अन् निशा-4 आयत नं. 71-84 तक:-

  • आयत नं. 71:- ऐ लोगो! जो ईमान लाए हो, मुकाबले के लिए हर समय तैयार रहो। फिर जैसा अवसर हो, अलग-अलग टुकड़ियों के रूप में निकलो या इकठ्ठे होकर।
  • आयत नं. 72:- हाँ, तुम में कोई-कोई आदमी ऐसा भी है जो लड़ाई से जी चुराता है।
  • आयत नं. 74-84:- अतः ऐ नबी! तुम अल्लाह की राह में लड़ो।

इस प्रकार की वह्य (संदेश) भेज-भेजकर हजरत मुहम्मद जी को आजीवन लड़ाई करने में लगाए रखा। उनका जीवन नरक बना रहा। परिवार के अंदर मृत्यु का कहर, दुश्मनों से लड़ा-लड़ाकर कर्म खराब करवाए और उस भक्त आत्मा को यथार्थ ज्ञान भी नहीं बताया, न यथार्थ भक्ति की विधि बताई। इसका प्रमाण इस बात से है कि सूरःफुरकान-25 आयत नं. 52-59 में कहा है कि कादर अल्लाह कबीर है जिसने सब रचना की है। उसकी खबर किसी बाखबर से जानों। इससे स्वसिद्ध है कि कुरआन का ज्ञान अधूरा है।

सूरः अश् शूरा-42 आयत नं. 1-2 में सांकेतिक शब्द (code words) बताए हैं:-

  1. हा. मीम
  2. अैन, सीन, काफ। ये मोक्ष मंत्र हैं। परंतु अधूरे हैं। इनका ज्ञान न हजरत मुहम्मद जी को था, न किसी मुसलमान श्रद्धालु को। फिर मुक्ति कैसे मिलेगी? यदि कोई यह कहे कि नबी मुहम्मद जी को तो इनका ज्ञान होगा? यदि नबी जी को ज्ञान होता तो क्या अपने साथियों को नहीं बताता? एक-एक शब्द मुसलमानों से शेयर किया करते।

इसी अल्लाह ने हजरत मूसा जी को तौरेत किताब का ज्ञान दिया था जो एक ही बार में उतारी थी। उस ‘‘तौरेत’’ पुस्तक के ज्ञान के आधार से मूसा जी सत्संग फरमा रहे थे। एक सत्संगी ने पूछा हे मूसा! वर्तमान में सबसे बड़ा इल्मी (विद्वान) कौन है? हजरत मूसा ने कहा कि मैं विश्व में सबसे बड़ा इल्मी हूँ। इस बात से नाराज होकर अल्लाह ने मूसा से कहा कि तेरा ज्ञान तो अल-खिज्र के ज्ञान के सामने कुछ भी नहीं है। उस ज्ञान को प्राप्त करने मूसा अल-खिज्र के पास जाता है। बिना ज्ञान लिए वापिस आ जाता है। मूसा जी को तो यह विश्वास था कि मेरे को ज्ञान कादर अल्लाह का दिया हुआ है। इसलिए अपने को सबसे विद्वान कहा। फिर वह अल्लाह (ज्योति निरंजन काल) कहता है कि तेरा ज्ञान कुछ भी नहीं है। यदि तौरेत का ज्ञान यथार्थ ज्ञान के (जो अल-खिज्र के पास था, उसके) सामने कुछ भी नहीं था। तो उसे हजरत मूसा को किसलिए बताया? जब मूसा जी अल-खिज्र के पास ज्ञान लेने गया और खाली लौट आया तो उसे वह यथार्थ ज्ञान बता देना चाहिए था। वह ज्ञान हजरत मुहम्मद जी को भी नहीं बताया। उसे भी कह दिया कि कादर सृष्टि की उत्पत्ति करने वाले कादर अल्लाह के विषय में यथार्थ ज्ञान किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी संत) से पूछो।

इससे स्पष्ट है कि हजरत आदम से हजरत मुहम्मद जी तक को अधूरा ज्ञान देने वाला तथा माँस खाने व लड़ने की प्रेरणा करके पाप करवाने वाला ज्योति निरंजन काल है। इसी काल ब्रह्म ने श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान अर्जुन को दिया। जिस समय चचेरे व ताऊ के भाईयों कौरवों तथा पांडवों के बीच राज्य के बंटवारे के लिए युद्ध होने वाला था। दोनों की सेनाएँ लड़ने के लिए आमने-सामने खड़ी थी। पांडव योद्धा अर्जुन ने अपने चचेरे भाईयों व भतीजों को देखा जो लड़ने के लिए मैदान में खड़े थे। तब दया उत्पन्न हो गई कि जिन भाईयों के बच्चों को गोद में लेकर प्यार किया करते, आज उनको मारने के लिए तैयार हूँ। विचार किया कि लड़ाई में अनेकों सैनिक मारे जाएँगे, उनकी पत्नियाँ विधवा होंगी। अनेकों बच्चे यतीम हो जाएँगे। मेरे को घोर पाप लगेगा। इसलिए युद्ध न करने का निर्णय लेकर हथियार डालकर रथ के पिछले भाग में बैठ गया। अर्जुन के युद्ध से मना कर देने पर युद्ध नहीं होना था।

जब काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने देखा कि युद्ध नहीं होगा। तब अपने पुत्र श्री विष्णु उर्फ श्री कृष्ण के (जिसको अपना नबी बनाकर उस समय भेज रखा था, उसके) शरीर में प्रेतवत् प्रवेश करके गीता पुस्तक का ज्ञान कहा तथा कहा कि अर्जुन तू युद्ध कर। तेरे को तो केवल निमित मात्र बनना है। इन सबको मैंने मार रखा है। परंतु अर्जुन मानने को तैयार नहीं था। कह रहा था कि हे कृष्ण! भाईयों/रिश्तेदारों को मारकर राज प्राप्त करने से अच्छा तो हम भिक्षा का अन्न खाना पंसद करेंगे। मैं युद्ध नहीं करूँगा।

  • काल ने गीता अध्याय 2 के श्लोक 37 में अर्जुन को बहकाया कि हे अर्जुन! तेरे दोनों हाथों में लड्डू हैं। यदि तू युद्ध में मारा गया तो स्वर्ग (जन्नत) प्राप्त करेगा। यदि युद्ध जीत गया तो पृथ्वी का राज प्राप्त करके राज का सुख भोगेगा।

  • गीता अध्याय 2 के श्लोक 38 में कहा कि जय और पराजय, लाभ और हानि और सुख-दुःख को समान समझकर युद्ध के लिए तैयार हो जा। इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को प्राप्त नहीं होगा।

जब अर्जुन युद्ध करने के लिए तैयार नहीं हुआ तो अर्जुन को डराने के लिए अपना विराट विकराल काल रूप दिखाया। उसे देखकर अर्जुन डरकर काँपने लगा और युद्ध के लिए मान गया। महाभारत नाम से युद्ध हुआ जो एक प्रकार का विश्व युद्ध था। उसमें लाखों सैनिक मारे गए। पांडव जीत गए। पांडवों में से बड़े युधिष्ठिर थे जो राजा बने। युधिष्ठिर को स्वपन में बिन सिर के मानव के धड़ दिखाई देने लेगे। युद्ध में विधवा हुई सैनिकों की पत्नियाँ विलाप करती दिखाई देने लगी। युधिष्ठिर भयभीत होकर जाग जाता। फिर नींद नहीं आती थी। खाना-पीना भी छूट गया। आँखें फटी-फटी रहने लगी। युधिष्ठिर के अन्य चारों भाईयों (अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव) ने भाई की यह दशा देखी। युधिष्ठिर से कारण जाना तो बताया मुझे रात्रि में नींद नहीं आती। नींद आती है तो भयंकर स्वपन देखकर डरकर बैठ जाता हूँ। पांडवों के गुरू श्री कृष्ण जी थे जिसके शरीर में प्रवेश करके काल प्रभु ने गीता का ज्ञान अर्जुन पर उतारा था। अर्जुन मान रहा था कि गीता पुस्तक का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने बताया है। अपने गुरू जी के पास पाँचों भाई गए तथा युधिष्ठिर की समस्या बताई। तब श्री कृष्ण ने कहा कि तुमने युद्ध में बंधुओं (भाईयों, भतीजों आदि) को मारा है। उस पाप के कारण यह संकट राजा पद पर विराजमान होने से युधिष्ठिर को हुआ है। इसके समाधान के लिए एक अश्वमेघ यज्ञ करो। उसमें पूरी पृथ्वी के साधु, संत, ऋषि-मुनि व रिश्तेदार तथा स्वर्ग के देवता आदि-आदि को उस यज्ञ में भोजन खाने के लिए निमंत्रण दो।

यह बात श्री कृष्ण के मुख से सुनकर अर्जुन पांडव को ध्यान आया कि जब दोनों सेनाएं युद्ध के लिए खड़ी थी। मैं युद्ध न करने के लिए कह रहा था। श्री कृष्ण ने कहा था कि युद्ध कर ले, तेरे को पाप नहीं लगेगा। मेरे लाख बार मना करने पर भी नहीं माना। युद्ध करने के लिए प्रेरित किया। कितने मानव मारे। अब कह रहा है कि तुमको युद्ध में मानव मारने के पाप के कारण यह संकट आया है। जिसके समाधान में उस समय के अरबों रूपये खर्च होने थे। भाई की जान संकट में थी। इसलिए सब्र किया। यज्ञ की गई, युधिष्ठिर स्वस्थ हुआ।

फिर श्री कृष्ण जी के पूरे कुल का (सब बालक, वृद्ध, युवा, कृष्ण समेत सब परिजन व भाई-बंधुओं का) दुर्वासा द्वारा श्राप दिलाकर काल ज्योति निरंजन ने नाश करवाया। छप्पन करोड़ यादव (श्री कृष्ण जी के कुल के व्यक्ति) थे। आपस में लड़कर मर गए। श्री कृष्ण को भी एक शिकारी ने मारा। काल ने अपने नबी श्री कृष्ण को भी नहीं बख्शा। उनकी आँखों के सामने उनका सर्वनाश हो गया। पांडवों को राज्य भी पूरी आयु नहीं करने दिया। जब श्री कृष्ण जी मरने लगे तो पाँचों पांडवों से कहा कि तुम्हारे सिर पर युद्ध किए पापों का दंड बहुत अधिक है। तुम पाँचों हिमालय पर्वत के ऊपर जाकर तप करो, वहीं मरो। युद्ध में किए पाप समाप्त हो जाएँगे। पाँचों पांडवों राज्य त्यागकर हिमालय पर्वत में बर्फ में गलकर मरे। फिर उन्हें युद्ध के पापों के कारण नरक में डाला गया।

नरक में पापों को भोगकर पुण्यों का फल स्वर्ग में प्राप्त करते हैं। यह इसका भयंकर जाल है। काल ज्योति निरंजन झूठ बोलकर जीव को भ्रमित करके अपने जाल में फँसाकर रखता है। कोई सुख इसके लोक में जीव को नहीं हो सकता। इसी प्रकार हजरत आदम से हजरत मुहम्मद तक की दुर्गति इसी ने की थी, जिसे कादर अल्लाह कबीर जी ने कसाई की संज्ञा दी है जो सब जीवों को भ्रमित करके अपने जाल में फँसाकर रखे हुए हैं। इसके जाल से निकलने के लिए समर्थ कबीर अल्लाह की शरण में सबको आना पड़ेगा।

वर्तमान में मुझ दास (रामपाल दास) को उस कबीर अल्लाह ने अपना अंतिम नबी बनाकर भेजा है। मेरे पास यथार्थ भक्ति विधि तथा यथार्थ ज्ञान है। आप विश्व के सब मानव मेरे द्वारा बताई इबादत करके करो जिससे कादर अल्लाह कबीर जी के सतलोक चले जाओगे। वहाँ सदा सुखी रहोगे। कभी मृत्यु नहीं होगी। जब तक काल के लोक में जीवन है, सुख से जीओगे। अकाल मृत्यु नहीं होगी। रोग, शोक से पूर्ण बचाव होगा।

उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध है कि जिसने बाईबल, कुरआन, गीता का ज्ञान दिया, वह काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) है। कादर अल्लाह कबीर है। वह सच्चा ज्ञान बताता है।

प्रश्न:- चलने-फिरने में, खाना खाने-बनाने में, खेती करने में आदि-आदि में भी जीव मरते हैं। तो भक्त कैसे मोक्ष पा सकते हैं? उनसे भी पाप लगता है। पापी जन्नत में नहीं जा सकते तो वे कैसे जाएँगे? गाय, बकरी, मुर्गी तथा मानव व अन्य सूक्ष्म जीवों में आत्मा तो एक ही जैसी है।

उत्तर:- कादर अल्लाह ने विधान बनाया है। बताया है कि:-

कबीर इच्छा कर मारे नहीं, बिन इच्छा मर जाय।
कह कबीर तास का पाप नहीं लगाय।।

अर्थात् पैदल चलते समय, खेती-मजदूरी करते समय जमीन खोदने में, खाना पकाने आदि में जीव मारना उद्देश्य नहीं होता। वे जिस कारण से उनके मरने का पाप नहीं लगता। यह पाप उसको तो लगता है जिसने कबीर अल्लाह की शरण नहीं ले रखी यानि उसके द्वारा भेजे नबी (संत) से जिसने दीक्षा नहीं ले रखी। कबीर जी की शरण में नाम-दीक्षा लेने वाले को अनजाने में हुए पाप नहीं लगते। अन्य को लगेंगे चाहे वे किसी संत से उपदेश भी लिए हुए हैं। कबीर जी के भक्त को पूर्ण ज्ञान होता है। वह जान-बूझकर पाप नहीं कर सकता। अनजाने में हुए पाप का उसे दंड नहीं भोगना पड़ता।

उदाहरण:- जैसे ड्राइविंग (चालक) लाइसेंस (प्रमाण पत्र) उसी को मिलता है जो गाड़ी चलाना पूर्ण रूप से जानता है। फिर यदि उससे दुर्घटना हो जाती है और उसमें कोई मर जाता है तो उसमें उसे हत्या का दोषी नहीं माना जाता क्योंकि उसके पास चालक प्रमाण पत्र है। इसी प्रकार जिसने दास (रामपाल दास) से दीक्षा ले रखी है, उसको अनजाने में हुए पाप का दंड भोगना नहीं पड़ता।

प्रश्न:- मोक्ष की परिभाषा क्या है तथा मोक्ष प्राप्ति कैसे होती है?

उत्तर:- मोक्ष का अर्थ है ‘‘मुक्ति’’। किसी बंधन से छुटकारा पाना मोक्ष प्राप्त करना कहा जाता है। जैसे तोते पक्षी को पिंजरे में बंद कर रखा था। तब वह बंधन में था। तोते को पिंजरे से निकालकर स्वतंत्र कर दिया तो वह बंधन मुक्त हो गया।

अध्यात्म मार्ग में मोक्ष तथा बंधन इस प्रकार हैं:-

कर्मों के बंधन में जीव बंधा है। जिस कारण से जन्म तथा मृत्यु के चक्रव्यहू में फँसकर कष्ट उठा रहा है। यह बंधन है। इस कर्मों के बंधन से छुटकारा मिलना मोक्ष प्राप्ति है। सब जीव जो काल ज्योति निरंजन के लोक में हैं, ये सब कर्मों के बंधन में बंधे हैं। जैसा कर्म अच्छा या बुरा प्राणी करेगा, उसका फल भी उसे अवश्य मिलेगा। जो काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) के रसूलों (संदेशवाहकों) द्वारा बताए ज्ञान के आधार से भक्ति कर्म करते हैं, उनको गुरू बनाना अनिवार्य है। गुरू जी के बताए अनुसार भक्ति करने से वे काल ब्रह्म के साधक स्वर्ग (जन्नत) तथा नरक (जहन्नम) में अवश्य जाएँगे क्योंकि काल ब्रह्म के लोक में दोनों प्रकार के कर्म (पाप कर्म तथा पुण्य कर्म) भोगकर ही समाप्त करने पड़ते हैं। गुरू अपने शिष्य/शिष्या को पाप कर्मों से बचने की तथा पुण्य कर्म करने की प्रेरणा करता है। जिस कारण से गुरू जी का अनुयाई पुण्य अधिक प्राप्त कर लेता है। इसलिए जब वह संसार छोड़कर जाएगा तो स्वर्ग (जन्नत) में रहने का समय अधिक मिलता जाता है जो पुण्यों का प्रतिफल होता है। स्वर्ग समय समाप्त होने के पश्चात् वह साधक (दोजख) नरक में भी जाता है तथा पृथ्वी के ऊपर अन्य प्राणियों के शरीरों में कर्म का दंड भोगता है। फिर एक मानव (स्त्री-पुरूष का) जन्म उसे मिलता है। उस मानव जीवन में जैसे कर्म करेगा, उसको फिर उपरोक्त कर्मफल मिलेगा। यह सिलसिला सदा चलता रहेगा।

ये काल ब्रह्म के भक्त स्वर्ग (जन्नत) के निवास के समय को मोक्ष मानते हैं जो सीमित है। यह मोक्ष समय चाहे चार युग (सतयुग, त्रोतायुग, द्वापर युग तथा कलयुग) जितना यानि तिरतालीस लाख बीस हजार वर्ष का होता है। ये चारों युगों का समय है, इसे चतुर्युग भी कहते हैं। यह मोक्ष समय एक हजार चतुर्युग का होता है जो ब्रह्मा जी (रजगुण देवता) का एक दिन का समय है।

कुछ ऋषियों ने ब्रह्मलोक (काल लोक की महाजन्नत) यानि महास्वर्ग को भी प्राप्त किया है। उन्होंने कई हजार चतुर्युग तक उसमें निवास किया। अधिक समय का मोक्ष प्राप्त किया है। वे भी पुनः जन्म-मृत्यु के चक्र में आए हैं। पशु-पक्षियों के जीवन भी भोगे हैं। नरक (जहन्नम) में भी कष्ट भोगा है। इन ऋषियों ने वेदों में वर्णित भक्ति की थी। गीता में भी वही वेदों वाला ज्ञान है। वेदों में पाँच यज्ञ करने का प्रावधान है तथा ओम् (ॐ) नाम का जाप करने को कहा है।

किसी ऋषि ने पाँचों यज्ञ की, किसी ने चार की, किसी ने दो या एक की। ओम् नाम का जाप जपा। उस आधार से उनको मोक्ष का समय न्यून व अधिक मिला।

तप, हठयोग करके भी स्वर्ग का राज्य प्राप्त किया जाता है। तप करने वाले को तप का फल राज पद से मिलता है। स्वर्ग का राजा इंद्र तप करके बनता है। सौ मन (एक मन में 40 किलोग्राम होते हैं) देसी घी एक यज्ञ में लगना होता है, ऐसी-ऐसी सौ यज्ञ करके भी इन्द्र की पदवी प्राप्त होती है, परंतु समय सीमित है। उसके पश्चात् वहाँ भी मृत्यु होती है। फिर जन्म-मृत्यु का चक्र चलता है। यह अस्थाई मोक्ष है। जिनको सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं है, वे स्वर्ग में जाने को मोक्ष मानते हैं। यह अस्थाई मोक्ष है।

सतलोक स्थान जो सतपुरूष (कादर अल्लाह) का निवास स्थान है, जहाँ उसका तख्त है। वह सतलोक अमर स्थान है। सतपुरूष (परम अक्षर ब्रह्म) कबीर भी अविनाशी है। जो सतपुरूष कबीर जी की सत्य साधना करते हैं, वे उस अमर स्थान (सत्यलोक) में चले जाते हैं। वे फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते। वहाँ सदा सुखी रहते हैं। उनको अमर शरीर मिलता है। यह पूर्ण मोक्ष है। यही सही मायनों में मुक्ति है।

बाईबल तथा कुरआन का ज्ञान देने वाला भी ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। इनमें भक्ति विधि गीता तथा वेदों से भी अधूरी है। इनमें बताई इबादत से भी पूर्ण मोक्ष नहीं हो सकता।

प्रश्न:- क्या कब्रों में शव के अंदर जीवात्मा रहती है?

उत्तर:- हजरत आदम से हजरत मुहम्मद तक सब अनुयाई कहते हैं कि मरने के पश्चात् सबको कब्रों में दबाया जाएगा। जब कयामत आएगी, तब सबको जिलाया (जीवित किया) जाएगा। फिर वे अच्छे कर्मी जन्नत में तथा पाप कर्मी जहन्नम में सदा रहेंगे। यह सिद्धांत हजरत मुहम्मद जी की आसमानों की यात्रा (मेअराज) से ही खंडित हो जाता है जब वे बाबा आदम से लेकर हजरत ईशा तक को जन्नत में देखते हैं। वास्तव में वह पित्तर लोक है जो जन्नत तथा जहन्नम के मध्य में है। वहाँ पर पृथ्वी जैसा ही सुख तथा दुःख है।

वास्तविकता यह है:- शिव पुराण में एक प्रसंग आता है कि एक समय शिव जी अपनी पत्नी पार्वती को नाम-दीक्षा देने के लिए एकांत स्थान पर ले जाता है। एक सूखे वृक्ष के पास बैठ जाते हैं। नाम-दीक्षा मंत्र अधिकारी को सुनाना होता है। शिव जी ने हाथों से तीन बार ताली बजाई। उसकी भयंकर आवाज हुई जिसके भय से सब पशु व पक्षी दूर चले गए। उस सूखे वृक्ष के तने में बिलनुमा सुराख बने थे जो अधिक आयु के पेड़ों के तने में अमूमन हो जाते हैं जो दीमक आदि के लगने से होते हैं। उस वृक्ष के तने की खोगर (सुराख) में एक मादा तोते ने अंडे पैदा कर रखे थे। जो अंडे स्वस्थ थे, उनमें तोते पक्षी बनकर उड़ गए। एक अंडा गंदा हो गया था, वह वहीं रह गया। प्रत्येक अंडे में जीव थे। गंदे अंडे वाला जीव उसी में था। जब शिव जी को विश्वास हो गया कि आस-पास कोई प्राणी हमारी बातें सुनने वाला नहीं है, तब अपनी पत्नी पार्वती को पूर्ण परमात्मा की महिमा सुनानी प्रारंभ की तथा कमलों के (जो शरीर में बने कमल चक्र हैं, उनके) विषय में बताने लगे। प्रत्येक कमल को खोलने का मंत्र जाप भी बताने लगे। पार्वती जी मंत्र सुन-सुनकर प्रत्येक बात को स्वीकार करने का संकेत हाँ-हूँ करके करती थी। कुछ समय पश्चात् पार्वती जी को निंद्रा की झपकी आई। उस समय वृक्ष के बिल से हाँ-हूँ की आवाज आने लगी क्योंकि परमात्मा की कथा अधिकारी से सुनने से अधिक प्रभाव करती है। जिस कारण से तोते का गंदा अंडा स्वस्थ होकर उसमें पक्षी बन गया। तोता पक्षी हुँकारा भरने लगा था। शिव जी ने देखा पार्वती नहीं बोल रही। फिर हाँ-हूँ कौन कर रहा है? किसी ने मेरा अमर मंत्र सुन लिया। इसे मार देना चाहिए। शिव जी को उठते देख तोता पक्षी उड़ गया जो तोते का शरीर त्यागकर ऋषि वेद व्यास जी की पत्नी के पेट में चला गया। उस समय व्यास जी की पत्नी ने जम्बाही (उबासी) लेने के लिए मुख खोला था। मुख मार्ग से तोते का जीव पेट में गया था। बारह वर्ष गर्भ में रहा। फिर सुखदेव ऋषि रूप में जन्मा। यह लंबी कथा है। अब प्रसंग पर आता हूँ। बात ’’कब्रों में जीव रहता है या नहीं‘‘ चल रही है।

जिसको मानव (स्त्री-पुरूष) का शरीर मिला है। यदि वह सतगुरू की शरण में जाकर धर्म-कर्म भक्ति करता है, नेक काम करता है तो वह मृत्यु के पश्चात् शरीर त्यागकर कर्मों के अनुसार ऊपर के लोकों में चला जाता है। कबीर जी का भक्त व भक्तमति सतलोक चला जाता है। अन्य जो भक्ति नहीं करते हैं या गलत भक्ति करते हैं, मृत्यु के पश्चात् वे भी अपने कर्मों अनुसार नरक में या अन्य प्राणियों के शरीरों में चले जाते हैं। कुछ जीव ऐसे कर्महीन (खराब कर्मों वाले) होते हैं जिनको शीघ्र कोई शरीर नहीं मिलता। वे प्रेत योनि को प्राप्त करते हैं। जिन प्राणियों को अगला शरीर नहीं मिलता, वे अपने पुराने शरीर के मोह में फंसकर उसी के पास रहते हैं। जैसे जिस शरीर में जीव रहता है, उसको वह बहुत प्यारा लगता है। इस भाव से वे प्राणी कब्रों में दबे शरीर के साथ रहते हैं। उस कब्र के ऊपर रहते हैं। यदि कोई सुराख चींटी कर देती है तो उसमें से शरीर के साथ चिपक जाते हैं। कभी बाहर निकल आते हैं। जब तक उनको नया शरीर नहीं मिलता, तब तक पुराने शरीर के मोहवश उसी से चिपके रहते हैं। हिन्दू धर्म में शव (मृत शरीर को) जलाने के पश्चात् बचे हुए हड्डियों के टुकड़ों को (जिसको फूल उठाना कहते हैं) उठाकर दरिया के गहरे जल में प्रवाह कर देते हैं कि जो घर का सदस्य मरा है, वह यदि प्रेत बना होगा तो उस शरीर के टुकड़ों (हड्डियों के अवशेषों) के साथ चिपका दूर चला जाएगा। हमको परेशान नहीं करेगा। विषय कब्रों में जीव रहता है या नहीं, चला था। उसको स्पष्ट किया है कि कब्रों मंे केवल वही जीव रहते हैं जिनको प्रेत या जिन्न योनि मिली है। जिस कारण से आगे शरीर नहीं मिला है। प्रमाण के लिए तोते का जीव गंदे अंडे से चिपका था। उसे अपना मान रहा था। यही दशा कब्रों वाले जीवों की है। प्रेत योनि में कब्रों पर रहते हैं। नया शरीर मिलने के पश्चात् कब्रों में उस शव वाला जीव नहीं रहता।

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