तैमूरलंग को सात पीढ़ी का राज्य प्रदान करना

कबीर परमात्मा ने एक रोटी के बदले सात पीढ़ी का राज तैमूरलंग को दिया

परमेश्वर कबीर जी एक जिंदा बाबा का वेश बनाकर पृथ्वी के ऊपर धार्मिकता देखना चाहते थे। वैसे तो परमात्मा कबीर जी अंतर्यामी हैं, फिर भी संसार भाव बरतते हैं। जिंदा बाबा के वेश में कई शहरों-गाँवों में गए, एक रोटी माँगते रहे। अन्न का अभाव रहता था। बारिश पर खेती निर्भर थी। जिस कारण से अधिकतर व्यक्तियों का निर्वाह कठिनता से चलता था। जब परमात्मा चलते-चलते उस नगर में आए जिसमें तैमूरलंग मुसलमान लुहार अपनी माता के साथ रहता था। तैमूर के पिता की मृत्यु हो चुकी थी। तैमूर अठारह वर्ष की आयु का था। निर्धनता कमाल की थी। कभी भोजन खाने को मिलता, कई बार एक समय का भोजन ही नसीब होता था। तैमूरलंग की माता जी बहुत धार्मिक स्त्राी थी। कोई भी यात्राी साधु या सामान्य व्यक्ति द्वार पर आता था तो उसे खाने के लिए अवश्य आग्रह करती थी। स्वयं भूखी रह जाती थी, रास्ते चलते व्यक्ति को अवश्य भोजन करवाती थी। जिस दिन परमात्मा जिंदा रूप में परीक्षा के उद्देश्य से आए, उस दिन केवल एक रोटी का आटा बचा था। तैमूरलंग को भोजन खिला दिया था। स्वयं भी खा लिया था। शाम के लिए केवल एक रोटी का आटा शेष था।

तैमूरलंग अमीर व्यक्तियों की भेड़-बकरियों को चराने के लिए जंगल में प्रतिदिन ले जाया करता। वह किराये का पाली था। धनी लोग उसे अन्न देते थे। निर्धनता के कारण तैमूरलंग एक लौहार के अहरण पर शाम को घण की चोट लगाने की ध्याड़ी करता था। उससे भी अन्न मिलता था। जिस दिन परमात्मा तैमूरलंग को जंगल में मिले। उस दिन भी तैमूरलंग प्रतिदिन की तरह भेड़-बकरियाँ चराने जंगल में गाँव के साथ ही गया हुआ था। जब परमात्मा तैमूरलंग को मिले तथा रोटी माँगी तो तैमूरलंग खाना खा चुका था। तैमूरलंग ने कहा कि महाराज! आप बैठो। मेरी भेड़-बकरियों का ध्यान रखना कि कहीं कोई गुम न हो जाए। मैं निर्धन हूँ। भाड़े पर बकरियों तथा भेड़ों को चराता हूँ। मैं घर से रोटी लाता हूँ। यहाँ पास में ही हमारा घर है। परमात्मा ने कहा ठीक है, संभाल रखूँगा। तैमूरलंग घर गया। माता को बताया कि एक बाबा कई दिन से भूखा है। रोटी माँग रहा है। माता ने तुरंत आटा तैयार किया। एक रोटी बनाई क्योंकि आटा ही एक रोटी का बचा था। एक रोटी कपड़े में लपेटकर जल का लोटा साथ लेकर बाबा जी के पास दोनों माँ-बेटा आए। रोटी देकर जल का लोटा साथ रख लिया। माता तथा बेटे ने बाबा जी की स्तूति की तथा माता ने कहा, महाराज! हम बहुत निर्धन हैं। दया करो, कुछ रोटी का साधन बन जाए। बाबा ने रोटी खाई। तब तक माई ने आँखों में आँसू भरकर कई बार निवेदन किया कि मेहर करियो दाता। बाबा जिंदा ने रोटी खाकर जल पीया। बकरी बाँधने की सांकल (बेल) लेकर उसको तैमूरलंग की कमर में सात बार मारा। चीढ़ की सण की बेल थी। चीढ़ को कामण भी कहते हैं। कामण की छाल का रस्सा बहुत मजबूत होता है। फिर लात मारी तथा मुक्के मारे। माता को लगा कि मैंने बाबा को बार-बार बोल दिया जिससे चिढ़कर लड़का पीट दिया। माई ने पूछा कि बाबा जी! बच्चे ने क्या गलती कर दी। माफ करो, बच्चा है। परमात्मा बोले कि माई! इस एक रोटी का फल तेरे पुत्रा को सात पीढ़ी का राज्य का वरदान दिया है जो सात बार बेल (संाकल) मारी है। जो लात तथा मुक्के मारे हैं, यह इसका राज्य टुकड़ों में बँट जाएगा। माई को लगा कि बाबा पागल है। रोटी शाम की नहीं, कह रहा है तेरा बेटा राज करेगा। माई विचार कर ही रही थी कि बाबा जिंदा अंतध्र्यान हो गया।

कुछ दिन के पश्चात् गाँव की एक जवान लड़की को राजा के सिपाही उठाने की कोशिश कर रहे थे। वे राजा के लिए विलास करने के लिए ले जाना चाहते थे। तैमूरलंग दौड़ा-दौड़ा गया। सिपाहियों को लाठी से पीटने लगा। कहने लगा कि हमारी बहन हमारी इज्जत है। दुष्ट लोगो! चले जाओ। परंतु वे चार-पाँच थे। घोड़े साथ थे। उन्होंने तैमूरलंग को बहुत पीटा। मृत समझकर छोड़ दिया और लड़की को उठा ले गए। तैमूरलंग होश में आया। गाँव में चर्चा चली की तैमूरलंग ने बहादुरी का काम गाँव की इज्जत के लिए किया। अपनी जान के साथ खेलकर गाँव की इज्जत बचानी चाही। गाँव के प्रत्येक व्यक्ति की हमदर्दी का पात्रा बन गया।

एक रात्रि को स्वपन में बाबा जिंदा तैमूरलंग को दिखाई दिया और बोला कि जिस लुहार के अहरण पर शाम को नौकरी करता है, उसके नीचे खजाना है। तू उस स्थान को मोल ले ले। मैं उस लुहार के मन में बेचने की प्रेरणा कर दूँगा। दो महीने की उधार कह देना। तैमूरलंग ने अपना सपना अपनी माता जी को बताया। जो-जो बात परमात्मा से हुई थी, माता जी को बताई। माता जी ने कहा, बेटा! बाबा जी मुझे भी आज रात्रि में स्वपन में दिखाई दिए थे। कुछ कह रहे थे, मुझे स्पष्ट नहीं सुनाई दिया। माता ने कहा कि बाबा जी की बात सच्ची है तो बेटा धन्य हो जाएँगे। तू जा, अहरण वाले से बात कर।

अहरण वाले के मन में कई दिन से प्रबल प्रेरणा हो रही थी कि यह स्थान कम पड़ गया है। मेरी दूसरी जगह जमीन बड़ी है। इसे कोई उधार भी ले ले तो दे दूँगा। मैं अपने बड़े प्लाट में अहरण लगा लूँगा।

तैमूरलंग अहरण वाले मालिक के पास गया और वर्तमान अहरण वाली जगह को उधार लेने की प्रार्थना की। अहरण वाला बोला कि बात पक्की करना। जो समय रूपये देने का रखा जाएगा, उस समय रूपये देने होंगे। तैमूरलंग ने कहा कि दो-तीन महीने में रूपये दे दूँगा। अहरण वाला तो एक वर्ष तक उधार पर देने को तैयार था। बात पक्की हो गई। तीसरे दिन अहरण वाली जगह खाली कर दी गई। तैमूरलंग ने अपनी माता जी के सहयोग से उस जगह की मिट्टी के डलों की चारदिवारी बनाई। वहाँ पर झोंपड़ी डाल ली। रात्रि में खुदाई की तो खजाना मिला। अहरण वाला पुराना अहरण भी उसे दे गया। उसके कुछ रूपये ले लिए। स्वयं नया अहरण ले आया। परमात्मा स्वपन में फिर तैमूरलंग को दिखाई दिए तथा कहा कि बेटा! खजाने से थोड़ा-थोड़ा धन निकालना। उससे एक-दो घोड़ा लेना। उन्हें मंहगे-सस्ते, लाभ-हानि में जैसे भी बिके, बेच देना। फिर कई घोड़े लाना, उन्हें बेच आना। जनता समझेगी कि तैमूरलंग का व्यापार अच्छा चल गया। तैमूरलंग ने वैसे ही किया। छः महीने में अलग से जमीन मोल ले ली। पहले भेड़-बकरियाँ खरीदी, बेची। फिर सैंकड़ों घोड़े वहाँ बाँध लिए। उन्हें बेचने ले जाता, और ले आता। गाँव के नौजवान लड़के नौकर रख लिए। बड़ा मकान बना लिया। तैमूरलंग को वह घटना रह-रहकर कचोट रही थी कि यदि मैं राजा बन गया तो सर्वप्रथम उस अपराधी बेशर्म राजा को मारूँगा जिसने मेरे गाँव की इज्जत लूटी थी। जवान लड़की को उसके सैनिक बलपूर्वक उठाकर ले गए थे। अब तैमूरलंग के साथ धन था। जंगल में वर्कशाॅप बनाई। लुहार कारीगर था, स्वयं तलवार बनाने लगा। गाँव के नौजवान व्यक्तियों को अपना उद्देश्य बताया कि उस राजा को सबक सिखाना है जिसने अपने गाँव की बेटी की इज्जत लूटी है। मैं सेना तैयार करूँगा। जो सेना में भर्ती होना चाहे, उसे एक रूपया तनख्वाह दूँगा। उस समय एक रूपया चाँदी का बहुत होता था। जवान लड़के सैंकड़ों तैयार हो गए। वे अपने रिश्तेदारों को ले आए। इस प्रकार बड़ी सेना तैयार की। लुहार कारीगर तनख्वाह पर रखे। तलवार-ढ़ाल तैयार करके उस राजा पर धावा बोल दिया। उसे अपने आधीन कर लिया। उसका राज्य छीन लिया। उसको मारा नहीं, अलग गाँव में भेज दिया। उसके निर्वाह के लिए महीना देने लगा। धीरे-धीरे तैमूरलंग ने इराक, ईरान, तुर्किस्तान पर कब्जा कर लिया। फिर भारत पर भी अपना शासन जमा लिया। दिल्ली के राजा ने उसकी पराधीनता (गुलामी) स्वीकार नहीं की, उसे मार भगाया। उसके स्थान पर बरेली के नवाब को दिल्ली का वायसराय बना दिया जो तैमूरलंग का गुलाम रहा। उसे प्रति छः महीने फसल कटने पर कर देकर आता था। तैमूरलंग की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली के वायसराय ने कर देना बंद कर दिया। स्वयं स्वतंत्रा शासक बन गया। उससे बलोल लोधी ने दिल्ली की गद्दी छीन ली। बाबर तैमूरलंग का तीसरा पोता था। उस समय दिल्ली का राजा इब्राहिम लोधी था जो सिंकदर लोधी का पुत्रा तथा बलोल लोधी का पोता था। बाबर ने बार-बार युद्ध करके इब्राहिम लोधी को पानीपत की प्रथम लड़ाई हराकर 21 अप्रैल सन् 1526 में भारत का राज्य प्राप्त कर लिया। बाबर का पुत्रा हमायूं था। हमायूं का अकबर, अकबर का जहांगीर, जहांगीर का शाहजहां, शाहजहां का पुत्रा औरंगजेब हुआ। सात पीढ़ियों ने भारत पर राज्य किया। इतिहास गवाह है। फिर औरंगजेब के बाद राज्य टुकड़ों में बँट गया। अन्नदेव की आरती में भी संत गरीबदास जी ने कहा है कि:- रोटी तैमूरलंग कूं दिन्ही, तातें सात बादशाही लिन्हीं।।

तैमूरलंग को परमात्मा उसी जिंदा वाले वेश में फिर मिले जब वह अस्सी (80) वर्ष का हो गया था। शिकार करने गया था, राजा था। तब उसको समझाया कि भक्ति कर राजा, नहीं तो (दोजख) नरक में गिरेगा। भूल गया वो दिन जब एक रोटी ही घर पर थी। उस समय तैमूरलंग बाबा के चरणों में गिर गया। दीक्षा ली। राज्य पुत्रा को दे दिया। दस वर्ष और जीवित रहा। वह आत्मा जन्म-मरण में है। परंतु भक्ति का बीज पड़ गया है। यदि उस निर्धनता में भक्ति करने को कहता तो नहीं मानना था। परमात्मा कबीर जी ही जानते हैं कि काल की जकड़ से कैसे जीव को निकाला जा सकता है।

कृष्ण जी के वकील:- जब पांडव वनवास में थे तो दुर्योधन के दबाव में ऋषि दुर्वासा जी अठासी हजार ऋषियों को साथ लेकर पांडवों के पास वन में गए। भोजन खिलाने को कहा तथा कहा कि यदि हम सबको भोजन नहीं करवाया तो तुम्हें श्राप देकर नष्ट कर दूँगा। तब श्री कृष्ण जी ने पांडवों की रक्षा की। सब्जी वाले बर्तन को धोकर पीया। उसमें एक सब्जी का पत्ता बचा था। उसे खाकर अठासी हजार ऋषियों का पेट भर दिया। क्या समझते हो तुम कबीर जी को? कबीर जी का वकील:- श्री कृष्ण उर्फ श्री विष्णु तीन लोक के मालिक (प्रभु) हैं। ये भी राहत दे सकते हैं, परंतु परमेश्वर कबीर जी असंख ब्रह्मण्डों के मालिक (प्रभु) हैं। वे जो राहत दे सकते हैं, वह श्री कृष्ण (श्री विष्णु) जी नहीं दे सकते। श्री कृष्ण जी ने तो केवल अठासी हजार ऋषियों का एक बार पेट भरा। कबीर परमेश्वर जी ने काशी शहर में अठारह लाख व्यक्तियों (साधु-संतों) का पेट तीन दिन तक दिन में दो-तीन बार भरा क्योंकि दक्षिणा के लालच में कोई प्रतिदिन तीन बार भोजन खाता था। दो बार तो प्रत्येक व्यक्ति खाता ही है। पढें़ कथा कबीर जी द्वारा काशी शहर में तीन दिन भंडारा देने की:-

© Kabir Parmeshwar Bhakti Trust (Regd) - All Rights Reserved