मंशूर अली का उद्धार कबीर जी ने किया
परमात्मा कबीर जी अपने सिद्धांत अनुसार एक अच्छी आत्मा समशतरबेज मुसलमान को जिंदा बाबा के रूप में मिले थे। उन्हें अल्लाहू अकबर (कबीर परमात्मा) यानि अपने विषय में समझाया, सतलोक दिखाया, वापिस छोड़ा। उसके पश्चात् कबीर परमात्मा यानि जिंदा बाबा नहीं मिले। उसे केवल एक मंत्र दिया ‘‘अनल हक’’ जिसका अर्थ मुसलमान गलत करते थे कि मैं वही हूँ यानि मैं अल्लाह हूँ अर्थात् जीव ही ब्रह्म है। वह यथार्थ मंत्र ‘‘सोहं’’ है। इसका कोई अर्थ करके स्मरण नहीं करना होता। इसको परब्रह्म (अक्षर पुरूष) का वशीकरण मंत्र मानकर जाप करना होता है। समस्तरबेज परमात्मा के दिए मंत्र का नाम जाप करता था। उसका आश्रम बगदाद (वर्तमान में ईराक देश की राजधानी) शहर के बाहर बणी में था।
{एक स्थान पर ऐसा भी लिखा है कि परमेश्वर कबीर जी ने समस्तरबेज को प्रेरणा करके दूर भेज दिया। स्वयं समस्तरबेज का वेश बनाकर उसी असली समस्तरबेज वाले आश्रम में रहने लगे। फिर मुलतान शहर में उस लीला के अंत में समस्तरबेज को मुलतान शहर में भेजा। उस समय मुहम्मद (मंशूर) शरीर त्याग चुका था। असली समस्तरबेज मौनी हो गया था। बोल नहीं पा रहा था। कई वर्ष से उसकी यही दशा थी, परंतु स्वस्थ था। कबीर परमेश्वर जी ने भी जान-बूझकर मुलतान में कई दिनों से मौन धारण कर रखा था। जिस दिन असली समस्तरबेज मुलतान में आया, उसी दिन परमात्मा कबीर जी घूमने के बहाने प्रतिदिन की तरह आश्रम से बाहर गए। वापिस नहीं आए। जिस समय कबीर जी (समस्तरबेज) प्रतिदिन लौटकर आते थे, उसी समय समस्तरबेज ने आश्रम देखा। उसमें चला गया।
उपस्थित व्यक्तियों को कुछ पता नहीं लगा। उन्होंने जाना कि पीर समस्तरबेज सैर करके लौट आए हैं। समस्तरबेज का मुलतान शहर में जाते ही देहांत हो गया। लोगों ने मजार बना दी।}
अब उस आश्रम में अल्लाह कबीर समस्तरबेज के रूप में विराजमान रहे। उस नगरी के राजा की एक लड़की जिसका नाम शिमली था, समस्तरबेज के ज्ञान व सिद्धि से प्रभावित होकर उनकी परम भक्त हो गई। उसने दिन-रात नाम जाप किया। सतगुरू की सेवा करने प्रतिदिन आश्रम में जाने लगी। पिता जी से आज्ञा लेकर जाती थी। बेटी के साधु भाव को देखकर पिता भी उसे नहीं रोक पाया। वह प्रतिदिन सुबह तथा शाम सतगुरू जी का भोजन स्वयं बनाकर ले जाया करती थी। किसी व्यक्ति ने मंशूर अली से कहा कि आपकी बहन शिमली शाम के समय आश्रम में अकेली जाती है। यह शोभा नहीं देता। नगर में आलोचना हो रही है।
एक शाम को जब शिमली बहन संत जी का खाना लेकर आश्रम में गई तो भाई मंशूर गुप्त रूप से पीछे-पीछे आश्रम तक गया। दीवार के सुराख से अंदर की गतिविधि देखने लगा। लड़की ने संत को भोजन खिलाया। फिर संत जी ने ज्ञान सुनाया। मंशूर भी ज्ञान सुन रहा था। वह जानना चाहता था कि ये दोनों क्या बातें करते हैं? क्या गतिविधि करेंगे? प्रत्येक क्रिया जो शिमली तथा संत समशतरबेज कर रहे थे तथा जो बातें कर रहे थे, ध्यानपूर्वक सुन रहा था। अन्य दिन तो आधा घंटा सत्संग करता था, उस दिन दो घण्टे सत्संग किया। मंशूर ने भी प्रत्येक वचन ध्यानपूर्वक सुना। वह तो दोष देखना चाहता था, परंतु उस तत्त्वज्ञान को सुनकर कृतार्थ हो गया। परमात्मा की भक्ति अनिवार्य है। अल्लाह साकार है, कबीर है। ऊपर के आसमान में विराजमान है। पृथ्वी के ऊपर भी मानव शरीर में प्रकट होता है। सत्संग के बाद संत समस्तरबेज तथा बहन शिमली ने दोनों हाथ सामने करके परमात्मा से प्रसाद माँगा। आसमान से दो कटोरे आए। दोनों के हाथों में आकर टिक गए। समस्तरबेज ने उस दिन आधा अमृत पीया। शिमली बहन सब पी गई। समस्तरबेज ने कहा कि बेटी! यह शेष मेरा अमृत प्रसाद आश्रम से बाहर खड़े कुत्ते को पिला दे। उसका अंतःकरण पाप से भरा है। उसका दिल साफ हो जाएगा। शिमली गुरूजी वाले शेष बचे प्रसाद को लेकर दीवार की ओर गई। गुरूजी ने कहा कि इस सुराख से फैंक दे। बाहर जाएगी तो कुत्ता भाग जाएगा। लड़की ने तो गुरूजी के प्रत्येक वचन का पालन करना था। शिमली ने उस सुराख से अमृत फैंक दिया जिसमें से मंशूर जासूसी कर रहा था। मंशूर का मुख कुछ स्वभाविक खुला था। उसमें सारा अमृत चला गया। मंशूर का अंतःकरण साफ हो गया। उसकी लगन सतगुरू से मिलने की प्रबल हो गई। वह आश्रम के द्वार पर आया। शिमली ने पहचान लिया। वह डर गई, बोली नहीं। मंशूर सीधा गुरू समस्तरबेज के चरणों में गिर गया। अपने मन के पाप को बताया। अपने उद्धार की भीख माँगी। समस्तरबेज ने दीक्षा दे दी।
मंशूर प्रतिदिन आश्रम में जाने लगा। ‘‘अनल हक’’ मंत्र को बोल-बोलकर जाप करने लगा। मुसलमान समाज ने विरोध किया। कहा कि मंशूर काफिर हो गया। परमात्मा को मानुष जैसा बताता है। ऐसा कहता है कि पृथ्वी पर आता है परमात्मा। अनल हक का अर्थ गलत करके कहते थे कि मंशूर अपने 196 मंशूर अली का उद्धार कबीर जी ने किया
को अल्लाह कहता है। इसे जिंदा जलाया जाए या अनल हक कहना बंद कराया जाए। मंशूर राजा का लड़का था। इसलिए किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि मंशूर को मार दे। यदि कोई सामान्य व्यक्ति होता तो कब का राम नाम सत कर देते। नगर के हजारों व्यक्ति राजा के पास गए। राजा को मंशूर की गलती बताई। राजा ने सबके सामने मंशूर को समझाया। परंतु वह अनल हक-अनल हक का जाप करता रहा। उपस्थित व्यक्तियों से राजा ने कहा कि जनता बताए कि मंशूर को क्या दण्ड दिया जाए? जनता ने कहा कि मंशूर को चैराहे पर बाँधकर रखा जाए। नगर का प्रत्येक व्यक्ति एक-एक पत्थर जो लगभग आधा किलोग्राम का हो, मंशूर को मारे तथा कहे कि छोड़ दे काफिर भाषा। यदि मंशूर अनल हक कहे तो पत्थर मारे, आगे चला जाए। दूसरा भी यही कहे। तंग आकर मंशूर अनल हक कहना त्याग देगा।
नगर के सारे नागरिक एक-एक पत्थर लेकर पंक्ति बनाकर खड़े हो गए। उन नागरिकों में भक्तिमति शिमली भी पंक्ति में खड़ी थी। उसने पत्थर एक हाथ में उठा रखा था तथा दूसरे हाथ में फूल ले रखा था। शिमली ने सोचा था कि भक्त-भाई है। पत्थर के स्थान पर फूल मार दूँगी। जनता में निंदा भी नहीं होगी तथा भाई को भी कष्ट नहीं होगा। प्रत्येक व्यक्ति (स्त्राी-पुरूष) मंशूर से कहते कि छोड़ दे अनल हक कहना, नहीं तो पत्थर लगेगा। मंशूर बोले अनल हक, अनल हक, अनल हक, अनल हक। पत्थर भी साथ-साथ लग रहे थे। मतवाले मंशूर अनल हक बोलते जा रहे थे। शरीर लहू-लुहान यानि बुरी तरह जख्मी हो गया था। रक्त बह रहा था। परमात्मा का आशिक अनल हक कह रहा था। हँस रहा था। जब शिमली बहन की बारी आई। वह कुछ नहीं बोली। मंशूर ने पहचान लिया और कहने लगा, बहन! बोल अनल हक। शिमली ने अनल हक नहीं बोला। हाथ में ले रखा फूल भाई मंशूर को मार दिया। मंशूर बुरी तरह रोने लगा। शिमली ने कहा, भाई! अन्य व्यक्ति पत्थर मार रहे थे। घाव बन गए, आप रोये नहीं। मैंने तो फूल मारा है जिसका कोई दर्द नहीं होता। आप बुरी तरह रोने लगे। क्या कारण है? मंशूर बोला कि बहन! जनता तो अनजान है कि मैं किसलिए कुर्बान हूँ। आपको तो ज्ञान है कि परमात्मा के लिए तन-मन-धन भी सस्ता है। मेरे को भोली जनता के द्वारा पत्थर मारने का कोई दुःख नहीं था क्योंकि इनको ज्ञान नहीं है। हे बहन! आपको तो सब पता है। मेरे को इस मार्ग पर लाने वाली तू है। तेरा हाथ मेरी ओर कैसे उठ गया? बेईमान तेरे फूल का पत्थर से कई गुना दर्द मुझे लगा हैं। तेरे को (मुरसद) गुरूजी क्षमा नहीं करेगा। नगर के सब व्यक्ति पत्थर मार-मारकर घर चले गए। कुछ धर्म के ठेकेदार मंशूर को जख्मी हालत में राजा के पास लेकर गए तथा कहा कि राजा! धर्म ऊपर राज नहीं। परिवार नहीं है। मंशूर अनल हक कहना नहीं छोड़ रहा है। इससे कहा जाए कि या तो अनल हक कहना त्याग दे, नहीं तो तेरे हाथ, गर्दन, पैर सब टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएँगे। यदि यह अनल हक कहना नहीं त्यागे तो इस काफिर को टुकड़े-टुकड़े करके जलाकर इसकी राख दरिया में बहा दी जाए। मंशूर को सामने खड़ा करके कहा गया कि या तो अनल हक कहना त्याग दे नहीं तो तेरा एक हाथ काट दिया जाएगा। मंशूर ने हाथ उस काटने वाले की ओर कर दिया (जो तलवार लिए काटने के लिए खड़ा था) और कहा कि अनल हक। उस जल्लाद ने एक हाथ काट दिया। फिर कहा कि अनल हक कहना छोड़ दे नहीं तो दूसरा हाथ भी काट दिया जाएगा। मंसूर ने दूसरा हाथ उसकी ओर कर दिया और बोला ‘‘अनल हक’’। दूसरा हाथ भी काट दिया। फिर कहा गया कि अबकी बार अनल हक कहा तो तेरी गर्दन काट दी जाएगी। मंशूर बोला अनल हक, अनल हक, अनल हक। मंशूर की गर्दन काट दी गई और फँूककर राख को दरिया में बहा दिया। उस राख से भी अनल हक, अनल हक शब्द निकल रहा था। कुछ देर बाद एक हजार मंशूर नगरी की गली-गली में अनल हक कहते हुए घूमने लगे। सब डरकर अपने-अपने घरों में बंद हो गए। परमात्मा ने वह लीला समेट ली। एक मंशूर गली-गली में घूमकर अनल हक कहने लगा। फिर अंतध्र्यान हो गया।
मंशूर का नाम बदलकर मुहम्मद रखा और उसको लेकर सतगुरू समस्तरबेज मुलतान शहर (पाकिस्तान) की ओर चल पड़े।
{एक पुस्तक में लिखा है कि मंशूर अली जिस शहर के राजा का लड़का था, उस शहर का नाम बगदाद है जो वर्तमान में ईराक देश की राजधानी है। संत गरीबदास जी की वाणी भी यही संकेत कर रही है। गरीब, खुरासान काबुल किला, बगदाद बनारस एक। बलख और बिलायत लग, हम ही धारैं भेष।। अर्थात् जैसे बनारस (काशी) शहर में कुछ समय रहे, ऐसे ही बगदाद में रहे। बगदाद से मंशूर निकाला। बनारस से रामानंद का उद्धार किया। बलख शहर से सुलतान इब्राहिम इब्न अधम को निकाला। बिलायत यानि इंग्लैंड तक हम (परमेश्वर कबीर जी) ही वेश बदलकर लीला करते हैं।}