प्रभु कबीर जी का मगहर से सहशरीर सत्यलोक गमन तथा सूखी नदी में नीर बहाना

उसके बाद इस भ्रम को तोड़ने के लिए कि जो मगहर में मरता है वह गधा बनता है और कांशी में मरने वाला स्वर्ग जाता है। (बन्दी छोड़ कहते थे कि सही विधि से भक्ति करने वाला प्राणी चाहे वह कहीं पर प्राण त्याग दे वह अपने सही स्थान पर जाएगा।) उन नादानों का भ्रम निवारण करने के लिए कबीर साहेब ने कहा कि मैं मगहर में मरूँगा और सभी ज्योतिषी देख लेना कि मैं कहाँ जाऊँगा? नरक में जाऊँगा या स्वर्ग से भी ऊपर सतलोक में। कबीर साहेब ने कांशी से मगहर के लिये प्रस्थान किया। बीर सिंह बघेला और बिजली खाँ पठान ये दोनों ही सतगुरू के शिष्य थे। बीर सिंह ने अपनी सेना साथ ले ली कि कबीर साहेब वहाँ पर अपना शरीर छोड़ेंगे। इस शरीर को लेकर हम काँशी में हिन्दु रीति से अंतिम संस्कार करेंगे। यदि मुसलमान नहीं मानेंगे तो लड़ाई कर के शव को लायेंगे। सेना भी साथ ले ली, अब इतनी बुद्धि है हमारी। हर रोज शिक्षा दिया करते कि हिन्दु मुसलमान दो नहीं हैं। अंत में फिर वही बुद्धि। उधर से बिजली खाँ पठान को पता चला कि कबीर साहेब यहाँ पर आ रहे हैं। बिजली खाँ पठान ने सतगुरू तथा सर्व आने वाले भक्तों तथा दर्शकों की खाने तथा पीने की सारी व्यवस्था की और कहा कि सेना तुम भी तैयार कर लो। हम अपने पीर कबीर साहेब का यहाँ पर मुसलमान विधि से अंतिम संस्कार करेंगे। कबीर साहेब के मगहर पहुँचने के बाद बिजली खाँ ने कहा कि महाराज जी स्नान करो। कबीर साहेब ने कहा कि बहते पानी में स्नान करूँगा। बिजली खान ने कहा कि सतगुरू देव यहाँ पर साथ में एक आमी नदी है, वह भगवान शिव के श्राप से सूखी पड़ी है। उसमें पानी नहीं है। जैसी व्यवस्था दास से हो पाई है पानी का प्रबंध करवाया है। लेकिन संगत बहुत आ गई। नहाने की तो बात बन नहीं पाएगी। पीने का पानी पर्याप्त मात्रा में बाहर से मंगवा रखा है। कबीर साहेब ने कहा कि वह नदी देखें कहाँ पर है? उस नदी पर जा कर साहेब ने हाथ से ऐसे इशारा किया था जैसे यातायात (ट्रैफिक) का सिपाही रूकी हुई गाड़ियों को जाने का संकेत करता है। वह आमी नदी पूरी भरकर चल पड़ी। (यह आमी नदी वहाँ पर अभी भी विद्यमान है) सब ने जय जयकार की।

साहेब ने कहा कि एक चदद्र नीचे बिछाओ, एक मैं ऊपर ओढ़ूँगा। (क्योंकि वे तो जानी जान थे) कहने लगे कि ये सेना कैसे ला रखी है तुमने? अब बिजली खाँ पठान और बीर सिंह बघेला आमने-सामने खड़े हंै। उन्होंने तो मुँह लटका लिया और बोले नहीं। वे दूसरे हिन्दु और मुसलमान बिना नाम वाले बोले कि जी हम आपका अंतिम संस्कार अपनी विधि से करेंगे। दूसरे कहते हैं कि हम अपनी विधि से करेंगे। चढा ली बाहें, उठा लिए हथियार तथा कहने लगे कि आ जाओ। कबीर साहेब ने कहा कि नादानों क्या मैंने यही शिक्षा दी थी 120 वर्ष तक। इस मिट्टी का तुम क्या करोगे? चाहे फंूक दो या गाड दो, इससे क्या मिलेगा? तुमने क्या शिक्षा ली मेरे से? सुन लो यदि झगड़ा कर लिया तो मेरे से बुरा नहीं होगा। वे जानते थे कि ये कबीर साहेब परम शक्ति युक्त हैं। यदि कुछ कह दिया तो बात बिगड़ जाएगी। शांत हो गये पर मन में यही थी कि शरीर छोड़ने दो, हमने तो यही करना है। वे तो जानी जान थे। उस दिन गृहयुद्ध शुरू हो जाता, सत्यानाश हो जाता, यदि साहेब अपनी कृपा न बख्सते। कबीर साहेब ने कहा कि एक काम कर लेना तुम मेरे शरीर को आधा-आधा काट लेना। परन्तु लड़ना मत। ये मेरा अंतिम आदेश सुन लो और मानो, इसमें जो वस्तु मिले उसको आधा आधा कर लेना। महिना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी वि. स. 1575 (एक हजार पाँच सौ पचहतर) सन् 1518 को कबीर साहेब ने एक चद्दर नीचे बिछाई और एक ऊपर ओढ़ ली। कुछ फूल कबीर साहेब के नीचे वाली चद्दर पर दो इंच मोटाई में बिछा दिये। थोड़ी सी देर में आकाश वाणी हुई कि मैं तो जा रहा हूँ सतलोक में (स्वर्ग से भी ऊपर)। देख लो चद्दर उठा कर इसमें कोई शव नहीं है। जो वस्तु है वे आधी-आधी ले लेना परन्तु लड़ना नहीं। जब चदद्र उठाई तो सुगंधित फूलों का ढेर शव के समान ऊँचा मिला। बोलो सतगुरू देव की जय।

बीर देव सिंह बघेल और बिजली खाँ पठान एक दूसरे के सीने से लग कर ऐसे रोने लगे जैसे कि बच्चों की माँ मर जाती है। फिर तो वहाँ पर रोना-धोना मच गया। हिन्दु और मुसलमानों का प्यार सदा के लिए अटूट बन गया। एक दूसरे को सीने से लगा कर हिन्दू और मुसलमान रो रहे थे। कहने लगे कि हम समझे नहीं। ये तो वास्तव में अल्लाह आए हुए थे। और ऊपर आकाश में प्रकाश का गोला जा रहा था। बोलो सतगुरू देव की जय ‘‘सत साहेब।‘‘ तो वहाँ मगहर में दोनों धर्मों (हिन्दुओं तथा मुसलमानों) ने एक-एक चद्दर तथा आधे-आधे सुगंधित फूल लेकर सौ फूट के अंतर पर एक-एक यादगार भिन्न-भिन्न बनाई जो आज भी विद्यमान है तथा कुछ फूल लाकर कांशी में जहाँ कबीर साहेब एक चबूतरे(चैरा) पर बैठकर सतसंग किया करते वहाँ कांशी चैरा नाम से यादगार बनाई। अब वहाँ पर बहुत बड़ा आश्रम बना हुआ है। मगहर में दोनों यादगारों के बीच में एक सांझा द्वार भी है, आपस में कोई भेद-भाव नहीं है।

insert pic here (मगहर स्थान से सतलोक जाने के समय का दृश्य) insert pic here (मगहर स्थान पर हिंदुओं तथा मुसलमानों द्वारा बनाई गई साथ-2 यादगार)

हिन्दु और मुसलमान ऐसे रहते हैं कि जैसे सगे भाई रहा करते हैं। उनसे हमने बात की थी तो उन्होंने कहा कि हमारी आज तक धर्म के नाम पर कोई लड़ाई नहीं हुई। वैसे कहा सुनी तो घर के घर में हो जाती है। फिर भी हमारी आपस में धर्म के नाम पर लड़ाई नहीं होती है। बिजली खाँ पठान ने दोनों यादगारों के नाम पाँच सौ, पाँच सौ बीघा जमीन दी जिसमें हिन्दु तथा मुसलमान अपने प्रबन्धक कमेटी बनाकर व्यवस्थित किए हैं। संत रामपाल दास जी महाराज अपने सैंकड़ों सेवकों सहित तीन बार इस ऐतिहासिक ध्ाार्मिक स्थल को देखकर आ चुके हैं। वहाँ जाकर ऐसा लगता है जैसे हमने सच्चाई का खजाना प्राप्त हो गया हो। बोलो सतगुरू देव की जय ‘‘सत साहेब।‘‘

गरीबदास जी महाराज की वाणी से ‘‘पारख का अंग‘‘ से वाणी:-

चले कबीर मगहर के तांई, तहां वहां फूलन सेज बिछाई।
दोनों दीन अधिक परभाऊ, दोषी दुश्मन और सब साऊ।।1125।।
तहां बिजली खां चले पठाना, बीर सिंह बघेला पद प्रवाना।
काशी उमटी चली मगहर कूँ, कोई न पावै तास डगर कूँ।।1126।।
वैरागी संयासी जोगी, चले मगहर को शब्द वियोगी।
तीन रोज में पौहचे जाई, तहां वहां सुमिरन राम खुदाई।।1127।।
दहूँ दीन रहे बाहां जोरी, शस्त्रा बांधि लिये भर गोरी।
वै गाडै वै जारन कही, दोनू दीन अधिक ही फही।।1128।।
तहां कबीर कही एक भाषा, शस्त्रा करै सो ताहीं तलाका।
शस्त्रा करै सो हमरा द्रोही, जा की पैज पिछोड़ी होई।।1129।।
सुन बिजली खां बात हमारी, हम हैं शब्द रूप निर्विकारी।
बीर सिंह बघेला विनती करि है, हे सतगुरू तुम किस विधि मरि है।।1130।।
तहां वहां चादर फूल बिछाये, सिज्या छाड़ी पदहि समाये।
दो चादर दहूँ दीन उठाई, ताके मध्य कबीर न पाई।।1131।।
तहां वहां अबिगत फूल सुवासी, मगहर घोर और चैरा काशी।
अबिगत रूप अलख निरवाणी, तहां वहां नीर क्षीर दिया छांनी।।1132।।
दोहा-संख जुगन जुग जगत में, पद प्रवानि है न्यार।
दास गरीब कबीर हरि, अबिगत अधरि अधार।।1133।।

बन्दी छोड़ गरीबदास जी महाराज की वाणी से:-

(सतग्रन्थ साहेब में राग मारू से शब्द)

सतगुरू कीन्हा मगहर पियाना हो, दोन्यू दीन चले संगि जाकै, हिंदू मुसलमाना हो।।टेक।। मुक्ति खेत कूँ छाड़ि चले हैं, तजि काशी असथाना हो। शाह सिकंदर कदम लेत है, पातिशाह सुलताना हो।।1।। च्यारि बेद के बकता संगि हैं, खोजी बड़े बयाना हो। शालिगराम सुरति से सेवैं, ज्ञान समुंद्र दाना हो।।2।। षट्दर्शन जाकै संगि चाले, गावत बानी नाना हो। अपना अपना इष्ट संभालैं, बांचैं पोथी पाना हो।।3।। चदरि फूल बिछाये सतगुरू, देखै सकल जिहाना हो। च्यारि दाग से रहत जुलहदी, अबिगत अलख अमाना हो।।4।। बीर सिंह बघेला करै बीनती, बिजली खान पठाना हो। दो चदरि बख्शीश करी हैं, दीन्हा यौह प्रवाना हो।।5।। नूर नूर निरगुण पद मेला, देखि भये हैराना हो। स्यों देही सतलोक गए अविनाशी, पाये पिण्ड न प्राना हो।।6।। शब्द सरूप साहिब सरबंगी, शब्दें शब्द समाना हो। दास गरीब कबीर अर्श में, फरकैं धजा निशाना हो।।7।।8।।

जब कबीर साहिब सतलोक जा रहे थे उस समय आदि माया प्रकृति ने फिर जाल बिछाया। एक सुन्दर स्त्राी(अप्सरा) का रूप बना कर कबीर साहिब को भोग विलास के लिए प्रेरित करती है।

बन्दी छोड़ गरीबदास जी महाराज की वाणी से:-

(सतग्रन्थ साहेब में राग मारू से शब्द)

देख्या मगहर जहूरा हो, काशी में कीर्ति कर चाले, झिलमिल देही नूरा हो।।टेक।। माया आदि अर्श तै उतरी, बनी अपसरा हूरा हो। हम तो बरैं कबीर पुरुष कूँ, तूं है दुलहा पूरा हो।।1।। माया कहै कबीर पुरुष से, देखो बदन जहूरा हो। अर्श विमान सुरग में मंदर, भोगैं हम कूँ सूरा हो।।2।। कहै कबीर सुनौ री माया, कुटिल नजरि तुम घूरा हो। जिनि भोगी सोई कलि रोगी, हो गये धूरम धूरा हो।।3।। माया कहै कबीर पुरुष से, मैं हूँ जग से दूरा हो। मैं तुमरी पटरानी दासी, राखौं पलक हजूरा हो।।4।। कहै कबीर सुनौ री माया, तुम हो लड्डू बूरा हो। जो तुझि खावै सो बहि जावै, तास अकलि के कूरा हो।।5।। सेत मुकट जहां सेत छत्र है, बाजंै अनहद तूरा हो। दास गरीब कबीर कहै सुनि माया, हम से रहियौ दूरा हो।।6।।9।।

।।वाणी।।

माया सतगुरु सूं अटकी, माया सतगुरु सूं अटकी।
जोगनि हमरै क्यूं भटकी, जोगनि हमरै क्यूं भटकी।।74।।
हम तो भगलीगर जोगी, हम तो भगलीगर जोगी।
हम नहीं माया के भोगी, हम नहीं माया के भोगी।।75।।
तोमें झगरा है भारी, तोमें झगरा है भारी।
मारे बड़ छत्रधारी, मारे बड़ छत्रधारी।।76।।
सेवा करि सूं मैं नीकी, सेवा करि सूं मैं नीकी।
हम कूँ लागत है फीकी, हम कूँ लागत है फीकी।।77।।
हमरी सार नहीं जानी, हमरी सार नहीं जानी।
अरी तैं तो घालि दई घानी, अरी तैं तो घालि दई घानी।।78।।
चलती फिरती क्यूं नांही, चलती फिरती क्यूं नांही।
हम रहते अबिगत पद मांही, हम रहते अबिगत पद मांही।।79।।
अरी तूं गहली है गोली, अरी तूं गहली है गोली।
दाग लगावैगी चोली, दाग लगावैगी चोली।।80।।
मेरा अंजन है नूरी, मेरा अंजन है नूरी।
अंदर महकै कस्तूरी, अंदर महकै कस्तूरी।।81।।
तुम किसी राजा पै जावो, तुम किसी राजा पै जावो।
हमरे मन नांही भावो, हमरे मन नांही भावो।।82।।
मैं तो अर्धंगी दासी, मैं तो अर्धंगी दासी।
हम हैं अनहद पुर बासी, हम हैं अनहद पुर बासी।।83।।
हमरा अनहद में डेरा, हमरा अनहद में डेरा।
अंत न पावैगी मेरा, अंत न पावैगी मेरा।।84।।
हम तो आदि जुगादिनि जी, हम तो आदि जुगादिनि जी।
अरी तुझे माता कहूँ अक धी, अरी तुझे माता कहूँ अक धी।।85।।
अब मैं देऊँगी गारी, अब मैं देऊँगी गारी।
हम तो जोगी ब्रह्मचारी, हम तो जोगी ब्रह्मचारी।।86।।
आसन बंधंूगी जिंदा, आसन बंधंूगी जिंदा।
गल में डारौंगी फंदा, गल में डारौंगी फंदा।।87।।
आसन मुक्ता री माई, आसन मुक्ता री माई।
तीनूं लोक न अंघाई, तीनूं लोक न अंघाई।।88।।
हमरै द्वारै क्यूं रोवो, हमरै द्वारै क्यूं रोवो।
किसी राजा राणे कूँ जोवो, किसी राजा राणे कूँ जोवो।।89।।
हमरै भांग नहीं भूनी, हमरै भांग नहीं भूनी।
माया शीश कूटि रूंनी, माया शीश कूटि रूंनी।।90।।
तूं तो जोगनि है खंडी, तूं तो जोगनि है खंडी।
मौहरा फेरि चली लंडी, मौहरा फेरि चली लंडी।।91।।

-ः शब्द:-

आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।।टेक।।
सत्य लोक से चल कर आए, काटन यम की जंजीर ।।1।।
थारे दर्शन से म्हारे पाप कटत हैं, निर्मल होवै जी शरीर ।।2।।
अमृत भोजन म्हारे सतगुरू जीमैं, शब्द दूध की खीर।।3।।
हिन्दू के तुम देव कहाये, मुसलमान के पीर।।4।।
दोनांे दीन का झगड़ा छिड़ गया, टोहे ना पाये शरीर।।5।।
धर्मदास की अर्ज गुसाई, खेवा लंघाइयों परले तीर।।6।।

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