श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी के माता-पिता कौन हैं?
प्रमाण:- श्री शिव महापुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित) में इनके पिता का ज्ञान है, श्री शिव महापुराण के रूद्रसंहिता खण्ड में पृष्ठ 100 से 110 तक निम्न प्रकरण है:-
अपने पुत्र नारद जी के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री ब्रह्मा जी ने कहा कि हे पुत्र! आपने सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता के विषय में जो प्रश्न किया है, उसका उत्तर सुन। प्रारम्भ में केवल एक “सद्ब्रह्म” ही शेष था। सब स्थानों पर प्रलय था। उस निराकार परमात्मा ने अपना स्वरूप शिव जैसा बनाया। उसको “सदाशिव” कहा जाता है, उसने अपने शरीर से एक स्त्राी निकाली, वह स्त्राी दुर्गा, जगदम्बिका, प्रकृति देवी तथा त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) की जननी कहलाई जिसकी आठ भुजाएं हैं, इसी को शिवा भी कहा है।
“श्री विष्णु जी की उत्पत्ति”-
सदाशिव और शिवा (दुर्गा) ने पति-पत्नी रूप में रहकर एक पुत्र की उत्पत्ति की, उसका नाम विष्णु रखा।
“श्री ब्रह्मा जी की उत्पत्ति”:-
श्री ब्रह्मा जी ने बताया कि जिस प्रकार विष्णु जी की उत्पत्ति शिव तथा शिवा के संयोग (भोग-विलास) से हुई है, उसी प्रकार शिव और शिवा ने मेरी भी उत्पत्ति की।
नोट:- यहाँ पर शिव को काल ब्रह्म जानें, शिवा को दुर्गा जानें, प्रिय पाठको! इस रूद्र संहिता खण्ड में शंकर जी की उत्पत्ति का प्रकरण नहीं है, यह अनुवादकर्ता की गलती है। वैसे देवी पुराण में शंकर जी ने स्वयं स्वीकारा है कि मेरा जन्म दुर्गा (प्रकृति) से हुआ है।
श्री शकंर जी भी शिव तथा शिवा का पुत्र है:-
श्री शिव महापुराण के विध्वेश्वर संहिता खण्ड पृष्ठ 24 से 30 पर प्रमाण:- एक समय श्री ब्रह्मा जी तथा श्री विष्णु जी का इस बात पर युद्ध हो गया कि ब्रह्मा जी ने कहा मैं तेरा पिता हूँ क्योंकि यह संसार मेरे से उत्पन्न हुआ है, मैं प्रजापिता हूँ। विष्णु जी ने कहा कि मैं तेरा पिता हूँ, तू मेरे नाभि कमल से उत्पन्न हुआ है। दोनों एक-दूसरे को मारने के लिए तत्पर हो गए। उसी समय सदाशिव अर्थात् काल ब्रह्म ने उन दोनों के बीच में एक सफेद रंग का प्रकाशमय स्तंभ खड़ा कर दिया, फिर स्वयं शंकर के रूप में प्रकट होकर उनको बताया कि तुम कोई भी कर्ता नहीं हो।
हे पुत्रो! मैंने तुमको जगत की उत्पत्ति और स्थिति रूपी दो कार्य दिए हैं, इसी प्रकार मैंने शंकर और रूद्र को दो कार्य संहार व तिरोगति दिए हैं, मुझे वेदों में ब्रह्म कहा है। मेरे पाँच मुख हैं, एक मुख से अकार (अ), दूसरे मुख से उकार (उ) तथा तीसरे मुख से मकार (म), चैथे मुख से बिन्दु (.) तथा पाँचवे मुख से नाद (शब्द) प्रकट हुए हैं, उन्हीं पाँच अववयों से एकीभूत होकर एक अक्षर ओम् (ऊँ) बना है, यह मेरा मूल मन्त्र है।
उपरोक्त शिव महापुराण के प्रकरण से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शकंर जी की माता श्री दुर्गा देवी (अष्टंगी देवी) है तथा पिता सदाशिव अर्थात् “काल ब्रह्म” है जिसने श्रीमद् भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था। इसी को क्षर पुरूष, क्षर ब्रह्म भी कहा गया है। यही प्रमाण श्री मद्भगवत गीता अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में भी है कि रज् (रजगुण ब्रह्मा), सत् (सतगुण विष्णु), तम् (तमगुण शंकर) तीनों गुण प्रकृति अर्थात् दुर्गा देवी से उत्पन्न हुए हैं। प्रकृति तो सब जीवों को उत्पन्न करने वाली माता है। मैं (गीता ज्ञान दाता) सब जीवों का पिता हूँ। मैं दुर्गा (प्रकृति) के गर्भ में बीज स्थापित करता हूँ जिससे सबकी उत्पत्ति होती है।
प्रश्न 7: यह कहाँ प्रमाण है कि रजगुण ब्रह्मा है, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शंकर है?
उत्तर:
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श्री मार्कण्डेय पुराण (सचित्र मोटा टाईप गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) के 123 पृष्ठ पर कहा है कि रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शंकर, तीनों ब्रह्म की प्रधान शक्तियाँ है, ये ही तीन देवता हैं। ये ही तीन गुण हैं।
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श्री देवी महापुराण संस्कृत व हिन्दी अनुवाद (श्री वैंकटेश्वर प्रैस बम्बई से प्रकाशित) में तीसरे स्कंद अध्याय 5 श्लोक 8 में लिखा है कि शंकर भगवान बोले, हे मातः! यदि आप हम पर दयालु हैं तो मुझे तमोगुण, ब्रह्मा रजोगुण तथा विष्णु सतोगुण युक्त क्यों किया?
उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध हुआ कि रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शंकर जी हैं।
प्रश्न 8:- परमात्मा को अजन्मा, अजर-अमर कहते हैं। उपरोक्त प्रकरण तथा प्रमाणों से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा श्री विष्णु तथा श्री शंकर तीनों नाशवान हैं, फिर अविनाशी परमात्मा कौन है, क्या ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर और काल ब्रह्म परमात्मा नहीं हैं? प्रमाण सहित बताऐं:-
उत्तर:- पहले स्पष्ट करते हैं कि श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री शंकर तथा ब्रह्म परमात्मा है या नहीं। यह तो आपने अपने प्रश्न में ही सिद्ध कर दिया कि परमात्मा तो अजन्मा अर्थात् जिसका कभी जन्म न हुआ हो, वह होता है, पूर्वोक्त विवरण तथा प्रमाणों से सिद्ध हो चुका है कि ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के माता-पिता हैं। ब्रह्म भी नाशवान है, इसका भी जन्म हुआ है, इससे स्वसिद्ध हुआ कि ये परमात्मा नहीं हैं। अब प्रश्न रहा फिर अविनाशी कौन है? इसके उत्तर में श्री मद्भगवत गीता से ही प्रमाणित करते हैं कि अविनाशी परमात्मा गीता ज्ञान देने वाले (ब्रह्म) से अन्य है। श्री मद्भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक 12, गीता अध्याय 4 श्लोक 5, गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में गीता ज्ञान दाता ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी कि मेरी उत्पत्ति हुई है, मैं जन्मता-मरता हूँ, अर्जुन मेरे और तेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, मैं भी नाशवान हूँ। गीता अध्याय 2 श्लोक 17 में भी कहा है कि अविनाशी तो उसको जान जिसको मारने में कोई भी सक्षम नहीं है और जिस परमात्मा ने सर्व की रचना की है, अविनाशी परमात्मा का यह प्रथम प्रमाण हुआ।
प्रमाण नं. 2: श्री मद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में तीन पुरूष (प्रभु) कहे हैं। गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में कहा है कि इस लोक में दो पुरूष प्रसिद्ध हैं:- क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष। ये दोनों प्रभु तथा इनके अन्तर्गत सर्व प्राणी नाशवान हैं, आत्मा तो सबकी अमर है। गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि उत्तम पुरूष अर्थात् पुरूषोत्तम तो कोई अन्य ही है, जिसे परमात्मा कहा गया है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है, वह वास्तव में अविनाशी है।
गीता अध्याय 7 श्लोक 29 में कहा है कि जो साधक केवल जरा (वृद्धावस्था), मरण (मृत्यु), दुःख से छूटने के लिए प्रयत्न करते हैं। वे तत् ब्रह्म को जानते हैं, सब कर्मों तथा सम्पूर्ण अध्यात्म से परिचित हैं। गीता अध्याय 8 श्लोक 1 में अर्जुन ने पूछा कि “तत् ब्रह्म” क्या है? गीता ज्ञान दाता ने अध्याय 8 श्लोक 3 में उत्तर दिया कि वह “परम अक्षर ब्रह्म‘‘ है अर्थात् परम अक्षर पुरूष है। (पुरूष कहो चाहे ब्रह्म) गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में जो ’’उत्तम पुरूषः तु अन्यः परमात्मा इति उदाहृतः’’ कहा है, वह “परम अक्षर ब्रह्म” है, इसी को पुरूषोत्तम कहा है।