सेऊ-सम्मन की कथा

सुमिरन का अंग (30-38)

वाणी नं. 30 में कहा है कि:

सेऊ कूं तो शीश दिया, बेच बन्दगी नाज।

सेऊ (शिव) ने किस कारण शीश दान किया, पढ़ें सत्य कथा:-

एक समय साहेब कबीर अपने भक्त सम्मन के यहाँ अचानक दो सेवकों (कमाल व शेखफरीद) के साथ पहुँच गए। सम्मन के घर कुल तीन प्राणी थे। सम्मन, सम्मन की पत्नी नेकी और सम्मन का पुत्र सेऊ (शिव)। भक्त सम्मन इतना गरीब था कि कई बार अन्न भी घर पर नहीं होता था। सारा परिवार भूखा सो जाता था। आज वही दिन था। भक्त सम्मन ने अपने गुरुदेव कबीर साहेब से पूछा कि साहेब खाने का विचार बताएँ, खाना कब खाओगे? कबीर साहेब ने कहा कि भाई भूख लगी है। भोजन बनाओ। सम्मन अन्दर घर में जा कर अपनी पत्नी नेकी से बोला कि अपने घर अपने गुरुदेव भगवान आए हैं। जल्दी से भोजन तैयार करो। तब नेकी ने कहा कि घर पर अन्न का एक दाना भी नहीं है। सम्मन ने कहा पड़ोस वालों से उधार मांग लाओ। नेकी ने कहा कि मैं मांगने गई थी लेकिन किसी ने भी उधार आटा नहीं दिया। उन्होंने आटा होते हुए भी जान बूझ कर नहीं दिया और कह रहे हैं कि आज तुम्हारे घर तुम्हारे गुरु जी आए हैं। तुम कहा करते थे कि हमारे गुरु जी भगवान हैं। आपके गुरु जी भगवान हैं तो तुम्हें माँगने की आवश्यकता क्यों पड़ी? ये ही भर देगें तुम्हारे घर को आदि-2 कह कर मजाक करने लगे। सम्मन ने कहा लाओ आपका चीर गिरवी रख कर तीन सेर आटा ले आता हूँ। नेकी ने कहा यह चीर फटा हुआ है। इसे कोई गिरवी नहीं रखता। सम्मन सोच में पड़ जाता है और अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए कहता है कि मैं कितना अभागा हूँ। आज घर भगवान आए और मैं उनको भोजन भी नहीं करवा सकता। हे परमात्मा! ऐसे पापी प्राणी को पृथ्वी पर क्यों भेजा। मैं इतना नीच रहा हूँगा कि पिछले जन्म में कोई पुण्य नहीं किया। अब सतगुरु को क्या मुंह दिखाऊँ? यह कह कर अन्दर कोठे में जा कर फूट-2 कर रोने लगा। तब उसकी पत्नी नेकी कहने लगी कि हिम्मत करो। रोवो मत। परमात्मा आए हैं। इन्हें ठेस पहुँचेगी। सोचंेगे हमारे आने से तंग आ कर रो रहा है। सम्मन चुप हुआ। फिर नेकी ने कहा आज रात्रि में दोनों पिता पुत्र जा कर तीन सेर (पुराना बाट किलो ग्राम के लगभग) आटा चुरा कर लाना। केवल संतों व भक्तों के लिए। तब लड़का सेऊ बोला माँ – गुरु जी कहते हैं चोरी करना पाप है। फिर आप भी मुझे शिक्षा दिया करती कि बेटा कभी चोरी नहीं करनी चाहिए। जो चोरी करते हैं उनका सर्वनाश होता है। आज आप यह क्या कह रही हो माँ? क्या हम पाप करेंगे माँ? अपना भजन नष्ट हो जाएगा। माँ हम चैरासी लाख योनियों में कष्ट पाएंगे। ऐसा मत कहो माँ। आपको मेरी कसम। तब नेकी ने कहा पुत्र तुम ठीक कह रहे हो। चोरी करना पाप है, परंतु पुत्र हम अपने लिए नहीं बल्कि संतों के लिए करेंगे। जिस नगर में निर्वाह किया है, इसकी रक्षा के लिए चोरी करेंगे। नेकी ने कहा बेटा – ये नगर के लोग अपने से बहुत चिड़ते हैं। हमने इनको कहा था कि हमारे गुरुदेव कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा) पृथ्वी पर आए हुए हैं। इन्होंने एक मृतक गऊ तथा उसके बच्चे को जीवित कर दिया था जिसके टुकड़े सिंकदर लौधी ने करवाए थे। एक लड़के तथा एक लड़की को जीवित कर दिया। सिंकदर लौधी राजा का जलन का रोग समाप्त कर दिया तथा श्री स्वामी रामानन्द जी (कबीर साहेब के गुरुदेव) को सिंकदर लौधी ने तलवार से कत्ल कर दिया था वे भी कबीर साहेब ने जीवित कर दिए थे। इस बात का ये नगर वाले मजाक कर रहे हैं और कहते हैं कि आपके गुरु कबीर तो भगवान हैं तुम्हारे घर को भी अन्न से भर देंगे। फिर क्यों अन्न (आटे) के लिए घर घर डोलती फिरती हो? बेटा! ये नादान प्राणी हैं। यदि आज साहेब कबीर इस नगरी का अन्न खाए बिना चले गए तो काल भगवान भी इतना नाराज हो जाएगा कि कहीं इस नगरी को समाप्त न कर दे। हे पुत्र! इस अनर्थ को बचाने के लिए अन्न की चोरी करनी है। हम नहीं खाएंगे। केवल अपने सतगुरु तथा आए भक्तों को प्रसाद बना कर खिलाएगें। यह कह कर नेकी की आँखों में आँसू भर आए और कहा पुत्र नाटियो मत अर्थात् मना नहीं करना। तब अपनी माँ की आँखों के आँसू पौंछता हुआ लड़का सेऊ कहने लगा – माँ रो मत, आपका पुत्र आपके आदेश का पालन करेगा। माँ आप तो बहुत अच्छी हो न।

अर्ध रात्रि के समय दोनों पिता (सम्मन) पुत्र (सेऊ) चोरी करने के लिए चल दिए। एक सेठ की दुकान की दीवार में छिद्र किया। सम्मन ने कहा कि पुत्र मैं अन्दर जाता हूँ। यदि कोई व्यक्ति आए तो धीरे से कह देना मैं आपको आटा पकड़ा दूंगा और ले कर भाग जाना। तब सेऊ ने कहा नहीं पिता जी, मैं अन्दर जाऊँगा। यदि मैं पकड़ा भी गया तो बच्चा समझ कर माफ कर दिया जाऊँगा। सम्मन ने कहा पुत्र यदि आपको पकड़ कर मार दिया तो मैं और तेरी माँ कैसे जीवित रहेंगे? सेऊ प्रार्थना करता हुआ छिद्र द्वार से अन्दर दुकान में प्रवेश कर गया। तब सम्मन ने कहा पुत्र केवल तीन सेर आटा लाना, अधिक नहीं। लड़का सेऊ लगभग तीन सेर आटा अपनी फटी पुरानी चद्दर में बाँध कर चलने लगा तो अंधेरे में तराजू के पलड़े पर पैर रखा गया। जोर दार आवाज हुई जिससे दुकानदार जाग गया और सेऊ को चोर-चोर करके पकड़ लिया और रस्से से बाँध दिया। इससे पहले सेऊ ने वह चद्दर में बँधा हुआ आटा उस छिद्र से बाहर फैंक दिया और कहा पिता जी मुझे सेठ ने पकड़ लिया है। आप आटा ले जाओ और सतगुरु व भक्तों को भोजन करवाना। मेरी चिंता मत करना। आटा ले कर सम्मन घर पर गया तो सेऊ को न पा कर नेकी ने पूछा लड़का कहाँ है? सम्मन ने कहा उसे सेठ जी ने पकड़ कर खम्ब से बाँध दिया। तब नेकी ने कहा कि आप वापिस जाओ और लड़के सेऊ का सिर काट लाओ। क्योंकि लड़के को पहचान कर अपने घर पर लाएंगे। फिर सतगुरु को देख कर नगर वाले कहेंगे कि ये हैं जो चोरी करवाते हैं। हो सकता है सतगुरु देव को परेशान करें। हम पापी प्राणी अपने दाता को भोजन के स्थान पर कैद न दिखा दें। यह कह कर माँ अपने बेटे का सिर काटने के लिए अपने पति से कह रही है वह भी गुरुदेव जी के लिए। सम्मन ने हाथ में कर्द (लम्बा छुरा) लिया तथा दुकान पर जा कर कहा सेऊ बेटा, एक बार गर्दन बाहर निकाल। कुछ जरूरी बातें करनी हैं। कल तो हम नहीं मिल पाएंगे। हो सकता है ये आपको मरवा दें। तब सेऊ उस सेठ (बनिए) से कहता है कि सेठ जी बाहर मेरा बाप खड़ा है। कोई जरूरी बात करना चाहता है। कृपया करके मेरे रस्से को इतना ढीला कर दो कि मेरी गर्दन छिद्र से बाहर निकल जाए। तब सेठ ने उसकी बात को स्वीकार करके रस्सा इतना ढीला कर दिया कि गर्दन आसानी से बाहर निकल गई। तब सेऊ ने कहा पिता जी मेरी गर्दन काट दो। यदि आप मेरी गर्दन नहीं काटोगे तो आप मेरे पिता नहीं हो। मेरे को पहचानकर घर तक सेठ पहुँचेगा। राजा तक इसकी पहुँच है। यह अपने गुरूदेव को मरवा देगा। पिताजी हम क्या मुख दिखाएँगे? सम्मन ने एकदम करद मारी और सिर काट कर घर ले गया। सेठ ने लड़के का कत्ल हुआ देख कर उसके शव को घसीट कर साथ ही एक पजावा (ईटें पकाने का भट्ठा) था उस खण्डहर में डाल गया।

जब नेकी ने सम्मन से कहा कि आप वापिस जाओ और लड़के का धड़ भी बाहर मिलेगा उठा लाओ, तब सम्मन दुकान पर पहुँचा। उस समय तक सेठ ने उस दुकान की दीवार के छिद्र को बंद कर लिया था। सम्मन ने शव कीे घसीट (चिन्हों) को देखते हुए शव के पास पहुँच कर उसे उठा लाया। ला कर अन्दर कोठे में रख कर ऊपर पुराने कपड़े (गुदड़) डाल दिए और सिर को अलमारी के ताख (एक हिस्से) में रख कर खिड़की बंद कर दी।

कुछ समय के बाद सूर्य उदय हुआ। नेकी ने स्नान किया। फिर सतगुरु व भक्तों का खाना बनाया। फिर सतगुरु कबीर साहेब जी से भोजन करने की प्रार्थना की। नेकी ने साहेब कबीर व दोनों भक्त (कमाल तथा शेख फरीद), तीनों के सामने आदर के साथ भोजन परोस दिया। साहेब कबीर ने कहा इसे छः दौनों में डाल कर आप तीनों भी साथ बैठो। यह प्रेम प्रसाद पाओ। बहुत प्रार्थना करने पर भी साहेब कबीर नहीं माने तो छः दौनों में प्रसाद परोसा गया। पाँचों प्रसाद के लिए बैठ गए। तब साहेब कबीर ने कहा –

आओ सेऊ जीम लो, यह प्रसाद पे्रम। शीश कटत हैं चोरों के, साधों के नित्य क्षेम।।

साहेब कबीर ने कहा कि सेऊ आओ भोजन पाओ। सिर तो चोरों के कटते हैं। संतों (भक्तों) के नहीं। उनको तो क्षमा होती है। साहेब कबीर ने इतना कहा था उसी समय सेऊ के धड़ पर सिर लग गया। कटे हुए का कोई निशान भी गर्दन पर नहीं था तथा पंगत (पंक्ति) में बैठ कर भोजन करने लगा।

गरीब, सेऊ धड़ पर शीश चढ़ा, बैठा पंगत मांही। नहीं घरैरा गर्दन पर, औह सेऊ अक नांही।।

सम्मन तथा नेकी ने देखा कि गर्दन पर कोई चिन्ह भी नहीं है। लड़का जीवित कैसे हुआ? शंका हुई कि यह वही सेऊ है या कोई और। अन्दर जा कर देखा तो वहाँ शव तथा शीश नहीं था। केवल रक्त के छीटें लगे थे जो इस पापी मन के संश्य को समाप्त करने के लिए प्रमाण बकाया था।

ऐसी-2 बहुत लीलाएँ साहेब कबीर (कविरग्नि) ने की हैं जिनसे यह स्वसिद्ध है कि ये ही पूर्ण परमात्मा हैं। सामवेद संख्या नं. 822 तथा ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2 में कहा है कि कविर्देव अपने विधिवत् साधक साथी की आयु बढ़ा देता है।

वाणी नं. 31 से 37 (जो पृष्ठ 47 पर लिखी हैं) में कहा है कि इन-इन महापुरूषों तथा देवताओं की जो महिमा आप सुनते हैं। इन्होंने भी भक्ति की थी। उसी कारण उनकी प्रसिद्धि संसार में हुई है। परंतु मुक्ति तो यथार्थ भक्ति ज्ञान तथा निज नाम से ही संभव है।

वाणी नं. 38:-

गरीब, ऐसा निर्मल नाम है, निर्मल करै शरीर। और ज्ञान मण्डलीक है, चकवै ज्ञान कबीर।।

भावार्थ:– वेदों, गीता, पुराणों तथा कुरान व बाईबल में मण्डलीक (आंशिक) ज्ञान है। कबीर परमेश्वर द्वारा बोली अमरवाणी स्वस्मवेद में संपूर्ण अर्थात् चक्रवर्ती ज्ञान है। इसके लिए पढ़ें सृष्टि रचना।

(राग बिलावल से शब्द 21 भी पढ़ें। उसमें कबीर परमेश्वर की अथाह शक्ति का प्रमाण है।)

अबिगत राम कबीर हैं, चकवै अबिनाशी। ब्रह्मा बिष्णु वजीर हैं, शिब करत खवासी।।टेक।। इन्द्र कोटि अनंत हैं, जाकै प्रतिहारा। बरूण कुबेर धर्मराय, ठाढे दरबारा।।1।। तेतीस कोटि देवता, ऋषि सहंस अठासी। वैष्णव कोटि अनंत हैं, गुण गावैं राशी।।2।। नौ जोगेश्वर नाद भरि, सुर पूरै संखा। सनकादिक संगीत हैं, अबिचल गढ बंका।।3।। शेष गणेश रु सरस्वती, और लक्ष्मी राजैं। सावित्राी गौरा रटैं, गण संख बिराजैं।।4।। अनंत कोटि मुनि साध हैं, गण गंधर्व ज्ञानी। अरपैं पिंड रु प्राण कूं, जहां संखौं दानी।।5।। सावंत शूर अनंत हैं, कुछ गिणती नाहीं। जती सती और शीलवंत, लीला गुण गाहीं।।6।। चंद्र सूर बिनती करैं, तारा गण गाढे। पांच तत्व हाजिर खड़े, हुकमी दर ठाढे।।7।। तीर्थ कोटि अनंत हैं, और नदी बिहंगा। ठारा भार तो कूं रटै, जल पवन तरंगा।।8।। अष्ट कुली परबत रटैं, धर अंबर ध्याना। महताब अगनि तो कूं जपैं, साहिब रहमाना।।9।। अर्स कुर्स पर सेज है, तन तबक तिराजी। एक पलक में करत हैं, सो राज बिराजी।।10।। अलख बिनानी कबीर कूं, रंग खूब चवाया। एक पानी की बूंद से, संसार बनाया।।11।। अनंत कोटि ब्रह्मंड हैं, कछू वार न पारा। लख चैरासी खान का, तूं सिरजनहारा।।12।। सूक्ष्म रूप स्वरूपहै, बौह रंग बिनानी। गरीबदास के मुकट में, हाजिर प्रवानी।।13।।21।।

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