शेखतकी द्वारा कबीर साहेब को गहरे कुएँ (झेरे) में डालना
शेखतकी ने देखा कि यह तो ऐसे भी नहीं मरा। मुसलमानों को पुनर् इक्कठा किया और कहा कि अब की बार इस कबीर को कुएँ में डालकर ऊपर से मिट्टी, ईटें और रोड़े डाल देंगे। तब देखेंगे यह कैसे बचेगा? भोली जनता तो जैसे पीर जी कहे वैसे ही करने को तैयार थी।
शेखतकी ने सिकंदर लौधी से कहा कि हम इसकी एक परीक्षा और लेंगे। सिकंदर ने पूछा कि क्या परीक्षा लोगे? शेखतकी ने कहा कि हम इसको झेरे कुएँ में डालेंगे और फिर देखेंगे कि वहाँ से कैसे जीवित होगा?
{अब इतनी लीला देखकर भी राजा का अपने मालिक (खुदा कबीर) पर विश्वास नहीं बना। नहीं तो धमका देता कि जा करले तूने जो करना है। मैं नहीं दुःखी करूं अपने भगवान को। फिर देखता उसका राज्य जाता या और मौज हो जाती।} राजा ने सोचा कहीं मेरा राज्य न चला जाए। सिकंदर लौधी राजा ने साहेब से प्रार्थना की कि यह शेखतकी तो नहीं मानता और आज ऐसे-ऐसे जिद्द किए हुए है। पूज्य कबीर साहेब जी ने कहा ठीक है। कर लेने दे इसको जो यह करे। मेरा भी टंटा कटे। मैं भी दुःखी हो लिया। कह दे कि तुने जो करना है कर ले।
शेखतकी कबीर साहेब जी को बाँध जूड़ कर ले गया और जाकर गहरे झेरे कुएँ में डलवा दिया। वहाँ पर हजारों व्यक्तियों को इक्कठा किए हुए था। बहुत गहरा अंधा कुआँ जिसमें पानी गंदा और थोड़ा-सा पड़ा था और ऊपर से मिट्टी, कांटेदार छड़ी, गोबर, ईंट आदि से डेढ़ सो फूट ऊँचा पूरा भर दिया। फिर शेखतकी हाथ-मुँह धोकर सिकंदर लौधी के पास गया तथा कहा कि राजा कर दिया तेरे शेर को समाप्त। उसके ऊपर इतनी मिट्टी डाल दी है कि अब किसी भी प्रकार बाहर नहीं आ सकता। सिकंदर लौधी ने पूछा पीर जी आप किसकी बात कर रहे हो? शेखतकी बोला कि तेरे गुरुदेव कबीर की। उसको आज हमने समाप्त कर दिया है। सिकंदर ने कहा कि पीर जी पूज्य कबीर साहेब जी तो अंदर कमरे में बैठे हैं, वे तो कहीं पर गये ही नहीं। शेखतकी ने अंदर जाकर देखा तो पूज्य कबीर साहेब अंदर कमरे में आसन पर आराम से बैठे थे। शेखतकी को तो और ज्यादा इष्र्या हो गई कि यह कबीर तो मारे से मर नहीं रहा। अब क्या किया जाए? अन्य समझदार व्यक्ति तो मान गये, हजारों ने उपदेश लिया, प्रभु कबीर जी के शिष्य बने, परन्तु वह शेखतकी दुष्ट नहीं माना।
शाहतकी नहीं लखी, निरंजन चाल रे। इस परचे तै आगे माँगे जवाल रे।।
शेखतकी बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर की महिमा को नहीं समझ पाया। उसको चाहिए था भगवान के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करता तथा अपना आत्म कल्याण करवाता, परन्तु मान-बड़ाई वश होकर साहेब का दुश्मन बन गया। शेखतकी ने और भी बहुत से जुल्म किए। कबीर साहेब काशी लौट गए।