स्वस्मबेद बोध पृष्ठ160-171

स्वस्मबेद बोध पृष्ठ 160 से 162 पर सामान्य ज्ञान है।

स्वस्मबेद बोध पृष्ठ 163 का सारांश:-

‘‘मृत्यु के समय जीव जिस रास्ते से जाता है, उसके भविष्य का ज्ञान‘‘

‘‘अथ जीव के अंत काल वाली वाणी‘‘

अंतकाल जब जिवको आवै। यथा कर्म तस देही पावै।।
हेठ (गुदा) द्वार जब जीव निकाशा। नरक खानिमें ताको बासा।।
गिरे नरक शीस बल जाई। ताही में पुनि रहै समाई।।
नाभिद्वार जो प्रान चलाना। जलचर योनि माहिं प्रकटाना।।
मुत्रद्वार कर जीव पयाना। पशु योनिमें तासु ठिकाना।।
मुख द्वारते जिव कढ़ि आवै। अन्न खानि में बासा पावै।।
श्वास द्वारते जिव जब जाता। अंडज खानि में सो प्रकटाता।।
नेत्र द्वार जब जीव सिधारा। मक्खी आदिक तन सो धारा।।
श्रवण द्वारते जिव जब चाला। प्रेत देह पावै ततकाला।।
दशमद्वारते निकसै प्राना। राजा होय भोग विधि नाना।।
रंभ द्वारते जिव जब जाता। परम पुरूष के लोक समाता।।

इन वाणियों में ‘‘नाभि द्वार’’ का भी वर्णन है। इसको संत गरीबदास जी ने कहा है ‘‘बड़वानल का द्वार है नाभि-नाभि के नीचे’’ अन्य दस द्वार तो सामान्य संत-भक्त भी जानता है, परंतु बारहवें द्वार का ज्ञान केवल इस लेखक (रामपाल दास) को है। अन्य को नहीं है। नाभि द्वार शरीर के अंदर ही खुलता है। इसलिए इसको मुख्य द्वारों में नहीं गिना जाता।

पृष्ठ 164 से 170 तक चार मुक्तियों तथा कबीर परमेश्वर का अंतध्र्यान होने का गलत प्रकरण है। ठीक पढ़ें इसी पुस्तक में कबीर चरित्र बोध के सारांश में।

स्वस्मबेद बोध पृष्ठ 165 पर सतनाम का कुछ सांकेतिक वर्णन है।

तीन अंश आगे परमाना। ओहं-सोहं को अस्थाना।।
आठ अंश तहवां उपजाए। अंश बंश अस्थान बनाए।।
ओहं-सोहं होत उचारा। जन्म रोगा का यही उपचारा।।

स्वस्मबेद बोध पृष्ठ 171 का सारांश:-

इस पृष्ठ पर वह अमृतवाणी लिखी है जिसमें महापुरूष कलयुग के पाँच हजार पाँच सौ पाँच (5505) वर्ष बीत जाने के पश्चात् यथार्थ कबीर पंथ प्रारम्भ होगा और जो महापुरूष उस पंथ का संचालक-प्रवर्तक होगा, वह अपने ज्ञान को पूरे विश्व में फैलाएगा। परमेश्वर कबीर जी का ज्ञान संसार में फैलेगा तथा सारा संसार भक्ति करेगा।

स्वस्मबेद बोध पृष्ठ 170 पर कुछ वाणी लिखी हैं:-

‘‘स्वस्मबेद बोध की स्फुट वार्ता-चौपाई‘‘

एक लाख असी हजारा। पीर पैगंबर और औतारा।।
सो सब आही निरंजन बंशा। तन धर करें निज पिता प्रशंसा।।670
दश औतार निरंजन केरे। राम कृष्ण सब मांही बडेरे।।
पूरण आप निरंजन होई। यामें फेर फार नहीं कोई।।

भावार्थ:- जो मुसलमान धर्म में एक लाख अस्सी हजार पैगंबर माने गए हैं। हजरत मुहम्मद जी अंतिम नबी (पैगम्बर) माने गए हैं। ये तथा अन्य अवतार जो हिन्दू धर्म में माने जाते हैं। ये सबके सब काल निरंजन के अंश थे और संसार में जन्म लेकर काल की महिमा बताकर काल के पंथ का प्रचार करने आए थे। हिन्दू धर्म में दश अवतार माने गए हैं। उनमें से मुख्य श्री रामचन्द्र तथा श्री कृष्ण चन्द्र जी हैं। काल निरंजन इनमें सर्व शक्तिशाली है। कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि मैं जो कह रहा हूँ, इसमें कोई हेरफेर नहीं है अर्थात् यह सत्य है। पृष्ठ 171 पर अंकित वाणियों में कहा है कि पूर्ण परमात्मा का यथार्थ ज्ञान देने के लिए मेरा भेजा हुआ मेरा अंश उस समय आएगा, जब कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच (5505) वर्ष बीत जाएगा। वह मेरी सत्य साधना का फरमान (संदेश) लेकर आएगा। उस समय हिन्दू तुर्क यानि मुसलमान या अन्य सब धर्मों में जितने जीव संसार में हैं, वे सत्यनाम की महिमा से परिचित होकर निर्वाण (मोक्ष) मार्ग को ग्रहण करेंगे। जितने भी धर्म के नाम के पंथ हैं तथा काल द्वारा भ्रमित करके परमेश्वर कबीर जी के नाम से 12 पंथ चलाए गए हैं, वे सब तत्त्वज्ञान जो वह महापुरूष प्रमाणित करके बताएगा, उसको सुनकर तथा समझकर उस महापुरूष द्वारा चलाए गए तेरहवें यथार्थ कबीर पंथ में स्वतः आकर ऐसे मिल जाएंगे जैसे सरित गण यानि दरियाओं का समूह अपने आप विवश हुआ समुद्र में मिलकर एक हो जाते हैं। इसी प्रकार सर्व धर्म समूह एक हो जाएंगे। जब तक वह निर्धारित समय नहीं आता (5505 वर्ष कलयुग का) तब तक मनुष्यों में छल-कपट, चतुराई करके कर्म खराब करना बना रहेगा और जो यह ज्ञान मैं स्वस्मबेद बोध में कह रहा हूँ, यह भी निराधार लगेगा। जब वह समय आएगा, सब ही स्त्राी-पुरूष शुद्ध आचरण वाले होकर कपट-चतुराई त्यागकर कबीर परमेश्वर जी की शरण प्राप्त करेंगे।

जो धर्म के नाम पर भ्रमित करके काल द्वारा चलाए गए अनेकों पंथ हैं। ये सब फिर से एक हो जाएंगे। उस महापुरूष से सतनाम आदि सर्व मंत्रों की दीक्षा लेकर सब दीक्षित हंस सत्यलोक को जाएंगे। घर-घर में मेरे ज्ञान की चर्चा होगी। कृपा पढ़ें निम्न वाणियाँ:-

‘‘स्वसमबेद बोध‘‘ पृष्ठ 171 से कुछ वाणियाँ:-

दोहा-पांच सहंस अरू पाँच सौ पाँच, जब कलियुग बीत जाय।
महापुरूष फरमान तब, जग तारन को आय।।
हिन्दु तुर्क आदिक सबै, जेते जीव जहान।
सत्य नाम की साख गहि, पावैं पद निर्बान।।
यथा सरितगण आपही, मिलैं सिन्धु में धाय।
सत्य सुकृत के मध्ये तिमि, सबही पंथ समाय।।
जब लगि पूरण होय नहीं, ठीके को तिथि वार।
कपट चातुरी तबहिलों, स्वसमबेद निरधार।।
सबहिं नारि नर शुद्ध तब, जब ठीके का दिन आवन्त।
कपट चातुरी छोड़ि के, शरण कबीर गहंत।।
एक अनेक ह्नै गयो, पुनि अनेक हो एक।
हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक।।
घर-घर बोध विचार हो, दुमर्ति दूर बहाय।
कलयुग में सब एक होई। बरतें सहज सुभाय।।
कहाँ उगर कहाँ शुद्र हो। हरै सबकी भव पीर (पीड़)।
सो समान समदृष्टि है। समरथ सत्य कबीर।।

भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि मेरी महिमा के ज्ञान की घर-घर चर्चा चलेगी। सबकी दुर्मति समाप्त हो जाएगी। सब परमात्मा से डरने वाले होंगे, कोई शराब, तम्बाकू, माँस का सेवन नहीं करेगा। चोरी, जारी (व्याभिचार), डाके डालना, रिश्वत लेना पाप जानकर सब छोड़ देंगे। शुद्ध होकर सहज स्वभाव से रहा करेंगे। माया जोड़ने की प्रवृति समाप्त हो जाएगी। चाहे कोई डाकू हो, चाहे अन्य मलीन कर्म करने वाला व्यक्ति हो, वह सब बुरे कर्म त्यागकर उस पंथ में दीक्षा लेंगे। सब साधकों की भवपीर यानि संसारिक कष्ट हरेगा यानि सर्व दुःख दूर करेगा। उस पंथ का प्रवर्तक स्वयं कबीर परमेश्वर समान भक्ति-शक्ति समर्थ होगा। सबको समान दृष्टि से देखेगा यानि ऊँच-नीच जाति आधार से किसी में अंतर नहीं करेगा, न राजा तथा रंक में कोई अंतर रहेगा। राजा भी अपने को जनता का सेवक मानकर अपना कर्तव्य करेगा तथा भक्ति को प्राथमिकता देकर जीवन सफल करने के उद्देश्य से कार्य करेगा। इस प्रकार सर्व संसार मोक्ष प्राप्ति का उद्देश्य लेकर जीया करेगा। सबका मोक्ष होगा जो उस संत से दीक्षा लेकर आजीवन मर्यादा में रहकर भक्ति करेगा। स्वस्मवेद बोध अध्याय का सारांश सम्पूर्ण हुआ।

कबीर सागर के अध्याय ‘‘स्वस्मवेद बोध‘‘ का सारांश सम्पूर्ण हुआ।

।।सत साहेब।।

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