शेखतकी द्वारा कबीर साहेब को गुंडों से मरवाने की निष्फल कुचेष्टा

कबीर साहेब के काशी आने के बाद शेखतकी ने सोचा कि यह कबीर तो किसी भी प्रकार नहीं मर रहा। वह कबीर साहेब को मारने के लिए रात्री के समय कुछ गुंडों को साथ लेकर कबीर साहेब की झोपड़ी पर गया। कबीर साहेब सो रहे थे। शेखतकी ने गुंडों से कहा कि इसके टुकड़े-टुकड़े कर दो। गुंडों ने तलवार से पूज्य कबीर साहेब जी के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और अपनी तरफ से मरा हुआ जानकर चल पड़े। जब वे झोपड़ी से बाहर निकले तो पीछे से कबीर साहेब ने उठकर कहा कि पीर जी, दूध पीकर जाना। ऐसे थोड़े ही जाते हैं। शेखतकी व उसके गुंडों ने सोचा कि यह भूत है। वहाँ से भाग गये। उन गुंडों को तो बुखार हो गया। कई दिन तक बुखार नहीं उतरा।

कबीर साहेब उनके पास गये और उनको ठीक किया तथा कहा कि यह पीर तुम्हें मरवा कर छोड़ेगा, यह तुम्हें गुमराह कर रहा है। तब उन्होंने कबीर साहेब से क्षमा याचना की।

श्री कृष्ण जी की उपस्थिति में ऋषि दुर्वासा के श्राप से श्री कृष्ण जी का पूरा परिवार व पूरा यादव कुल आपस में लड़कर मर गया। श्री कृष्ण जी उस लड़ाई (गृह युद्ध) को रोक नहीं पाए। अपने कुल की रक्षा नहीं कर पाए तथा त्रेतायुग में श्री विष्णु जी ने श्री रामचन्द्र रूप में बाली राजा को वृक्ष की ओट लेकर धोखे से मारा था। उसका बदला द्वापर युग में श्री कृष्ण रूप में देना पड़ा। श्री कृष्ण जी को बाली वाली आत्मा (जो उस समय शिकारी जो बालिया नाम से जन्मा था) ने विषाक्त (जहर से बुझे) तीर से मारा। अपनी रक्षा भी नहीं कर सके तथा ऋषि दुर्वासा के श्राप से भी बचाव नहीं कर सके जो तीन ताप में से एक ताप है।

संत गरीबदास जी ने कहा है कि:-

तुम कौन राम का जपते जापं। तातैं कटैं ना तीनूं तापं।।

अर्थात् आप किस प्रभु को इष्ट रूप में मानकर जाप करते हो यानि श्री विष्णु (राम) भगवान की भक्ति से तीन ताप नहीं कट सकते। परम अक्षर ब्रह्म कबीर जी तीन ताप भी काट देते हैं। होने वाले युद्ध को भी टाल सकते हैं। परमेश्वर कबीर जी की मृत्यु नहीं हुई, वे सशरीर सतलोक गए थे।

© Kabir Parmeshwar Bhakti Trust (Regd) - All Rights Reserved