कौन तथा कैसा है कुल का मालिक

जिन-जिन पुण्यात्माओं ने परमात्मा को प्राप्त किया उन्होंने बताया कि कुल का मालिक एक है। वह मानव सदृश तेजोमय शरीर युक्त है। जिसके एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ सूर्य तथा करोड़ चन्द्रमाओं की रोशनी से भी अधिक है। उसी ने नाना रूप बनाए हैं। परमेश्वर का वास्तविक नाम अपनी-अपनी भाषाओं में कविर्देव (वेदों में संस्कृत भाषा में) तथा हक्का कबीर (श्री गुरु ग्रन्थ साहेब में पृष्ठ नं. 721 पर क्षेत्रीय भाषा में) तथा सत् कबीर (श्री धर्मदास जी की वाणी में क्षेत्रीय भाषा में) तथा बन्दी छोड़ कबीर (सन्त गरीबदास जी के सद्ग्रन्थ में क्षेत्रीय भाषा में) कबीरा, कबीरन् व खबीरा या खबीरन् (श्री र्कुआन शरीफ़ सूरत फुर्कानि नं. 25, आयत नं. 19, 21, 52, 58, 59 में क्षेत्रीय अरबी भाषा में)। इसी पूर्ण परमात्मा के उपमात्मक नाम अनामी पुरुष, अगम पुरुष, अलख पुरुष, सतपुरुष, अकाल मूर्ति, शब्द स्वरूपी राम, पूर्ण ब्रह्म, परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं, जैसे देश के प्रधानमंत्री का वास्तविक शरीर का नाम कुछ और होता है तथा उपमात्मक नाम प्रधान मंत्री जी, प्राइम मिनिस्टर जी अलग होता है। जैसे भारत देश का प्रधानमंत्री जी अपने पास गृह विभाग रख लेता है। जब वह उस विभाग के दस्त्तावेजों पर हस्त्ताक्षर करता है तो वहाँ गृहमंत्री की भूमिका करता है तथा अपना पद भी गृहमंत्री लिखता है, हस्त्ताक्षर वही होते हैं। इसी प्रकार ईश्वरीय सत्ता को समझना है। जिन सन्तों व ऋषियों को परमात्मा प्राप्ति नहीं हुई, उन्होंने अपना अन्तिम अनुभव बताया है कि प्रभु का केवल प्रकाश देखा जा सकता है, प्रभु दिखाई नहीं देता क्योंकि उसका कोई आकार नहीं है तथा शरीर में धुनि सुनना आदि प्रभु भक्ति की उपलब्धि है।

आओ विचार करें - जैसे कोई अंधा अन्य अंधों में अपने आपको आँखों वाला सिद्ध किए बैठा हो और कहता है कि रात्रि में चन्द्रमा की रोशनी बहुत सुहावनी मन भावनी होती है, मैं देखता हूँ। अन्य अन्धे शिष्यों ने पूछा कि गुरु जी चन्द्रमा कैसा होता है। चतुर अन्धे ने उत्तर दिया कि चन्द्रमा तो निराकार है वह दिखाई थोड़े ही दे सकता है। कोई कहे सूर्य निराकार है वह दिखाई नहीं देता रवि स्वप्रकाशित है इसलिए उसका केवल प्रकाश दिखाई देता है। गुरु जी के बताये अनुसार शिष्य 2) घण्टे सुबह तथा 2 ) घण्टे शाम आकाश में देखते हैं। परन्तु कुछ दिखाई नहीं देता। स्वयं ही विचार विमर्श करते हैं कि गुरु जी तो सही कह रहे हैं, हमारी साधना पूरी 2 ) घण्टे सुबह शाम नहीं हो पाती। इसलिए हमंे सूर्य तथा चन्द्रमा का प्रकाश दिखाई नहीं दे रहा। चतुर गुरु जी की व्याख्या पर आधारित होकर उस चतुर अन्धे की (ज्ञानहीन) व्याख्या के प्रचारक करोड़ों अंधे (ज्ञानहीन) हो चुके हों। फिर उन्हें आँखों वाला (तत्वदर्शी सन्त) बताए कि सूर्य आकार में है और उसी से प्रकाश निकल रहा है। इसी प्रकार चन्द्रमा से प्रकाश निकल रहा है नेत्रहीनों! चन्द्रमा के बिना रात्रि में प्रकाश कैसे हो सकता है? जैसे कोई कहे कि ट्यूब लाईट देखी, फिर कोई पूछे कि ट्यूब कैसी होती है जिसकी आपने रोशनी देखी है? उत्तर मिले कि ट्यूब तो निराकार होने के कारण दिखाई नहीं देती। केवल प्रकाश देखा जा सकता है।

विचार करें:- ट्यूब बिना प्रकाश कैसा?

यदि कोई कहे कि हीरा स्वप्रकाशित होता है। फिर यह भी कहे कि हीरे का केवल प्रकाश देखा जा सकता है, क्योंकि हीरा तो निराकार है, वह दिखाई थोड़े ही देता है, तो वह व्यक्ति हीरे से परिचित नहीं है। फोकट जौहरी बना है। जो परमात्मा को निराकार कहते हैं तथा केवल प्रकाश देखना तथा धुनि सुनना ही प्रभु प्राप्ति मानते हैं वे पूर्ण रूप से प्रभु तथा भक्ति से अपरिचित हैं। जब उनसे प्रार्थना की कि कुछ नहीं देखा है तुमने, अपने अनुयाइयों को भ्रमित करके दोषी हो रहे हो। न तो आपके गुरुदेव के तत्वज्ञान रूपी नेत्र हैं और न ही आपको। इसलिए दुनियाँ को भ्रमित मत करो। इस बात पर सर्व ज्ञान रूपी नेत्रों के अन्धों ने लट्ठ उठा लिए कि हम तो झूठे, तूं एक सच्चा। आज वही स्थिति संत रामपाल जी महाराज के साथ है।

इस विवाद का निर्णय कैसे हो कि किस सन्त के विचार सही हैं किसके गलत हैं? मान लीजिए जैसे किसी अपराध के विषय में पाँच वकील अपना-अपना विचार व्यक्त कर रहे हैं। एक कहे कि इस अपराध पर संविधान की धारा 301 लगेगी, दूसरा कहे 302, तीसरा कहे 304, चैथा कहे 306 तथा पाँचवां वकील 307 को सही बताए।

ये पाँचों ठीक नहीं हो सकते। केवल एक ही ठीक हो सकता है यदि उसकी व्याख्या अपने देश के पवित्र संविधान से मिलती है। यदि उसकी व्याख्या भी संविधान के विपरीत है तो पाँचों वकील गलत हैं। इसका निर्णय देश का पवित्र संविधान करेगा जो सर्व को मान्य होता है। इसी प्रकार भिन्न-भिन्न विचार धाराओं में तथा साधनाओं में से कौन-सी शास्त्रा अनुकूल है या कौन-सी शास्त्र विरुद्ध है? इसका निर्णय पवित्र सद्ग्रन्थ ही करेंगे, जो सर्व को मान्य होना चाहिए (यही प्रमाण पवित्र श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में)।

जिन आँखों वालों (पूर्ण सन्तों) ने सूर्य (पूर्ण परमात्मा) को देखा उन में से कुछ के नाम हैं:-

  1. आदरणीय धर्मदास साहेब जी
  2. आदरणीय दादू साहेब जी
  3. आदरणीय मलूक दास साहेब जी
  4. आदरणीय गरीबदास साहेब जी
  5. आदरणीय नानक साहेब जी
  6. आदरणीय घीसा दास साहेब जी आदि।

1 आदरणीय धर्मदास साहेब जी, बांधवगढ़ मध्य प्रदेश वाले, जिनको पूर्ण परमात्मा जिंदा महात्मा के रूप में मथुरा में मिले, सतलोक दिखाया। वहाँ सत्लोक में दो रूप दिखा कर जिंदा वाले रूप में पूर्ण परमात्मा वाले सिंहासन पर विराजमान हो गए तथा आदरणीय धर्मदास साहेब जी को कहा कि मैं ही काशी (बनारस) में नीरू-नीमा के घर गया हुआ हूँ। वहाँ धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ आदरणीय श्री रामानन्द जी मेरे गुरु जी हैं। यह कह कर श्री धर्मदास जी की आत्मा को वापिस शरीर में भेज दिया। श्री धर्मदास जी का शरीर दो दिन बेहोश रहा, तीसरे दिन होश आया तो काशी में खोज करने पर पाया कि यही काशी में आया धाणक ही पूर्ण परमात्मा (सतपुरुष) है। आदरणीय धर्मदास साहेब जी ने पवित्र कबीर सागर, कबीर साखी, कबीर बीजक नामक सद्ग्रन्थों की आँखों देखे तथा पूर्ण परमात्मा के पवित्र मुख कमल से निकले अमृत वचन रूपी विवरण से रचना की। धर्मदास जी की वाणी में प्रमाण:-

धन-धन सतगुरू सत कबीर भक्त की पीर मिटाने वाले।।टेक।।
रहे नल-नील यत्न कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिंधु पर शिला तिराने वाले।।1।।
डसी सर्प नै जब जाय, पुकारी इन्द्रमति अकुलाय।
आप ने तुरंत करी सहाय, बहरूली मन्त्रा सुनाने वाले।।2।।
दामोदर सेठ के होंवे थे अकाज, अर्ज करि डूबता देख जहाज।
लाज मेरी रखियो गरीब नवाज, समुद्र से पार लंघाने वाले।।3।।
कह कर जोर दीन धर्मदास, दर्श दे पूर्ण करियो आश।
मेटियो जन्म-मरण की त्रास, सत्य पद प्राप्त कराने वाले।।4।।

2 आदरणीय दादू साहेब जी (अमृत वाणी में प्रमाण) कबीर परमेश्वर के साक्षी:-

आदरणीय दादू साहेब जी जब सात वर्ष के बालक थे तब पूर्ण परमात्मा जिंदा महात्मा के रूप में मिले तथा सत्यलोक ले गए। तीन दिन तक दादू जी बेहोश रहे। होश में आने के पश्चात् परमेश्वर की महिमा की आँखों देखी बहुत-सी अमृतवाणी उच्चारण की:-

जिन मोकूँ निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजन हार।।
दादू नाम कबीर की, जै कोई लेवे ओट।
उनको कबहू लागे नहीं, काल वज्र की चोट।।
दादू नाम कबीर का, सुन कर कांपे काल।
नाम भरोसे जो नर चले, होवे न बांका बाल।।
जो जो शरण कबीर के, तर गए अनन्त अपार।
दादू गुण कीता कहे, कहत न आवै पार।।
कबीर कर्ता आप है, दूजा नाहिं कोय।
दादू पूरन जगत को, भक्ति दृढ़ावत सोय।।
ठेका पूरन होय जब, सब कोई तजै शरीर।
दादू काल गँजे नहीं, जपै जो नाम कबीर।।
आदमी की आयु घटै, तब यम घेरे आय।
सुमिरन किया कबीर का, दादू लिया बचाय।।
मेटि दिया अपराध सब, आय मिले छिन माँह।
दादू संग ले चले, कबीर चरण की छांह।।
सेवक देव निज चरण का, दादू अपना जान।
भृंगी सत्य कबीर ने, कीन्हा आप समान।।
दादू अन्तरगत सदा, छिन-छिन सुमिरन ध्यान।
वारु नाम कबीर पर, पल-पल मेरा प्रान।।
सुन-2 साखी कबीर की, काल नवावै भाथ।
धन्य-धन्य हो तिन लोक में, दादू जोड़े हाथ।।
केहरि नाम कबीर का, विषम काल गज राज।
दादू भजन प्रतापते, भागे सुनत आवाज।।
पल एक नाम कबीर का, दादू मनचित लाय।
हस्ती के अश्वार को, श्वान काल नहीं खाय।।
सुमरत नाम कबीर का, कटे काल की पीर।
दादू दिन दिन ऊँचे, परमानन्द सुख सीर।।
दादू नाम कबीर की, जो कोई लेवे ओट।
तिनको कबहूँ ना लगे, काल बज्र की चोट।।
और संत सब कूप हैं, केते झरिता नीर।
दादू अगम अपार है, दरिया सत्य कबीर।।
अब ही तेरी सब मिटै, जन्म मरन की पीर।
स्वांस उस्वांस सुमिरले, दादू नाम कबीर।।
कोई सर्गुन मंे रीझ रहा, कोई निर्गुण ठहराय।
दादू गति कबीर की, मोते कही न जाय।।
जिन मोकूँ निज नाम दई, सदगुरु सोई हमार।
दादू दूसर कौन है, कबीर सिरजन हार।।

3 आदरणीय मलूक दास साहेब जी कविर्देव के साक्षी:-

42 वर्ष की आयु में श्री मलूक दास साहेब जी को पूर्ण परमात्मा मिले तथा दो दिन तक श्री मलूक दास जी अचेत रहे। फिर निम्न वाणी उच्चारण कीः-

जपो रे मन सतगुरु नाम कबीर।।टेक।।
जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर।
एक समय गुरु बंसी बजाई कालंद्री के तीर।
सुर-नर मुनि थक गए, रूक गया दरिया नीर।।
काँशी तज गुरु मगहर आये, दोनों दीन के पीर।
कोई गाढ़े कोई अग्नि जरावै, ढूंडा न पाया शरीर।
चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर।
दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।।

4 आदरणीय गरीबदास साहेब जी छुड़ानी जिला-झज्जर, हरियाणा वाले

(अमृत वाणी में प्रमाण) प्रभु कबीर (कविर्देव) के साक्षी:-

आदरणीय गरीबदास साहेब जी का आर्विभाव सन् 1717 (वि.सं. 1774) में हुआ तथा साहेब कबीर जी के दर्शन दस वर्ष की आयु में सन् 1727 में नला नामक खेत में हुए। सत्लोक वास सन् 1778 में हुआ। आदरणीय गरीबदास साहेब जी को भी परमात्मा कबीर साहेब जी सशरीर जिंदा रूप में मिले। आदरणीय गरीबदास साहेब जी अपने नला नामक खेतों में अन्य साथी ग्वालों के साथ गाय चरा रहे थे। जो खेत कबलाना गाँव की सीमा से सटा है। ग्वालों ने जिन्दा महात्मा के रूप में प्रकट कबीर परमेश्वर से आग्रह किया कि आप खाना नहीं खाते हो तो दूध ग्रहण करो क्योंकि परमात्मा ने कहा था कि मैं अपने सतलोक गाँव से खाना खाकर आया हूँ। तब परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि मैं कुँआरी गाय का दूध पीता हूँ। बालक गरीबदास जी ने एक कुँआरी गाय को परमेश्वर कबीर जी के पास लाकर कहा कि बाबा जी यह बिना ब्याई (कुँआरी) गाय कैसे दूध दे सकती है ? तब कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने कुँआरी गाय की बछिया के कमर पर हाथ रखा, अपने आप कुँआरी गांय (अध्नया धेनु) के थनों से दूध निकलने लगा। पात्र भरने पर रूक गया। वह दूध परमेश्वर कबीर जी ने पीया तथा प्रसाद रूप में कुछ अपने बच्चे गरीबदास जी को पिलाया तथा सतलोक के दर्शन कराये। सतलोक में अपने दो रूप दिखाकर फिर जिंदा वाले रूप में कुल मालिक रूप में सिंहासन पर विराजमान हो गए तथा कहा कि मैं ही 120 वर्ष तक काशी में धाणक (जुलाहा) रूप में रहकर आया हूँ। मैं पहले भी हजरत मुहम्मद जी को भी मिला था। पवित्र र्कुआन शरीफ में जो कबीरा, कबीरन्, खबीरा, खबीरन्, अल्लाहु अक्बर आदि शब्द हैं वे मेरा ही बोध कराते हैं तथा मैं ही श्री नानक जी को बेई नदी पर जिंदा महात्मा के रूप में ही मिला था {मुसलमानों में जिंदा महात्मा होते हैं, वे काला चैगा(ओवर कोट जैसा) घुटनों से नीचे तक तथा सिर पर चोटे वाला काला टोप पहनते हैं} तथा मैं ही बलख शहर में नरेश श्री अब्राहीम सुलतान अधम जी तथा श्री दादू जी को मिला था तथा चारों पवित्र वेदों में जो कविर अग्नि, कविर्देव (कविरंघारिः) आदि नाम हैं वह मेरा ही बोध है।

कबीर बेद हमारा भेद है, मैं मिलु बेदों से नांही।
जौन बेद से मैं मिलूं, वो बेद जानते नांही।।

मैं ही वेदों से पहले भी सतलोक में विराजमान था। {गाँव छुड़ानी जि. झज्जर (हरियाणा) में आज भी उस जंगल में जहाँ पूर्ण परमात्मा, का सन्त गरीबदास जी को मानव शरीर में साक्षात्कार हुआ था, एक यादगार विद्यमान है।} आदरणीय गरीबदास जी की आत्मा अपने परमात्मा कबीर बन्दी छोड़ के साथ चले जाने के बाद उन्हें मृत जान कर चिता पर रख कर जलाने की तैयारी करने लगे, उसी समय आदरणीय गरीबदास साहेब जी की आत्मा को पूर्ण परमेश्वर ने शरीर में प्रवेश कर दिया। दस वर्षीय बालक गरीब दास जीवित हो गए। उसके बाद उस पूर्ण परमात्मा का आँखों देखा विवरण अपनी अमृत वाणी में ‘‘सद्ग्रन्थ‘‘ नाम से ग्रन्थ की रचना की। अमृत वाणी में प्रमाण:

अजब नगर में ले गया, हमकूँ सतगुरु आन।
झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।
अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजन हार।।
गैबी ख्याल विशाल सतगुरु, अचल दिगम्बर थीर है।
भक्ति हेत काया धर आये, अविगत सत् कबीर हैं।।
हरदम खोज हनोज हाजर, त्रिवैणी के तीर हैं।
दास गरीब तबीब सतगुरु, बन्दी छोड़ कबीर हैं।।
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।
जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि हैं तीर।
दास गरीब सतपुरुष भजो, अविगत कला कबीर।।
जिंदा जोगी जगत् गुरु, मालिक मुरशद पीर।
दहूँ दीन झगड़ा मंड्या, पाया नहीं शरीर।।

गरीब जिस कूं कहते कबीर जुलाहाा। सब गति पूर्ण अगम अगाहा।।

उपरोक्त वाणी में आदरणीय गरीबदास साहेब जी महाराज ने स्पष्ट कर दिया कि काशी वाले धाणक (जुलाहे) ने मुझे भी नाम दान देकर पार किया, यही काशी वाला धाणक ही (सतपुरुष) पूर्ण ब्रह्म है।

परमेश्वर कबीर ही सतलोक से जिन्दा महात्मा के रूप में आकर मुझे अजब नगर (अद्धभुत नगर सतलोक) में लेकर गए। जहाँ आनन्द ही आनन्द है, कोई चिन्ता नहीं, जन्म-मृत्यु, अन्य प्राणियों के शरीर में कष्ट आदि का शोक नहीं है।

इसी काशी में धाणक रूप में आए सतपुरुष ने भिन्न-भिन्न समय में प्रकट होकर आदरणीय श्री अब्राहीम सुल्तान अधम साहेब जी तथा आदरणीय दादू साहेब जी व आदरणीय नानक साहेब जी को भी सतनाम देकर पार किया। वही कविर्देव जिसके एक रोम कूप में करोड़ो सूर्यों जैसा प्रकाश है तथा मानव सदृश है, अति तेजोमय अपने वास्तविक शरीर के ऊपर हल्के तेजपुंज का चोला (भद्रा वस्त्रा अर्थात् तेजपुंज का शरीर) डाल कर हमें मृत्य लोक (मनुष्य लोक) में मिलता है। क्योंकि उस परमेश्वर के वास्तविक स्वरूप के प्रकाश को चर्म दृष्टि सहन नहीं कर सकती।

आदरणीय गरीबदास साहेब जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा है ‘सर्व कला सतगुरु साहेब की, हरि आए हरियाणे नूँ‘‘। भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा कविर हरि(कविर्देव) जिस क्षेत्र में आए उसका नाम हरियाणा अर्थात् परमात्मा के आने वाला पवित्र स्थल, जिस के कारण आस-पास के क्षेत्र को हरिआना (हरियाणा) कहने लगे। सन् 1966 को पंजाब प्रान्त के विभाजन होने पर इस क्षेत्र का नाम हरिआणा(हरयाणा) पड़ा। लगभग 236 वर्ष पूर्व कही वाणी 1966 में सिद्ध हुई कि समय आने पर यह क्षेत्र हरयाणा प्रान्त नाम से विख्यात होगा। जो आज प्रत्यक्ष प्रमाण है।

इसीलिए गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721 पर अपनी अमृतवाणी महला 1 में श्री नानक जी ने कहा है कि -

“हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार।
नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक”

इसी का प्रमाण गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29

शब्द - एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल
कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।।
मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।।
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार।
मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच मनाति।।
काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।।
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।।
मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।
नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।।

गुरु ग्रन्थ साहेब, राग आसावरी, महला 1 के कुछ अंश -

साहिब मेरा एको है। एको है भाई एको है।
आपे रूप करे बहु भांती नानक बपुड़ा एव कह।। (पृष्ठ 350)

जो तिन कीआ सो सचु थीआ, अमृत नाम सतगुरु दीआ।। (पृष्ठ 352)

गुरु पुरे ते गति मति पाई। (पृष्ठ 353)

बूडत जगु देखिआ तउ डरि भागे।
सतिगुरु राखे से बड़ भागे, नानक गुरु की चरणों लागे।। (पृष्ठ 414)

मैं गुरु पूछिआ अपणा साचा बिचारी राम। (पृष्ठ 439)

उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि साहिब(प्रभु) एक ही है तथा उनका (श्री नानक जी का) कोई मनुष्य रूप में वक्त गुरु भी था जिसके विषय में कहा है कि पूरे गुरु से तत्वज्ञान प्राप्त हुआ तथा मेरे गुरु जी ने मुझे (अमृत नाम) अमर मन्त्रा अर्थात् पूर्ण मोक्ष करने वाला उपदेश नाम मन्त्रा दिया, वही मेरा गुरु नाना रूप धारण कर लेता है अर्थात् वही सतपुरुष है वही जिंदा रूप बना लेता है। वही धाणक रूप में भी काशी नगर में विराजमान होकर आम व्यक्ति अर्थात् भक्त की भूमिका कर रहा है। शास्त्रा विरुद्ध पूजा करके सारे जगत् को जन्म-मृत्यु व कर्मफल की आग में जलते देखकर जीवन व्यर्थ होने के डर से भाग कर मैंने गुरु जी के चरणों में शरण ली।

बलिहारी गुरु आपणे दिउहाड़ी सदवार।
जिन माणस ते देवते कीए करत न लागी वार।
आपीनै आप साजिओ आपीनै रचिओ नाउ।
दुयी कुदरति साजीऐ करि आसणु डिठो चाउ।
दाता करता आपि तूं तुसि देवहि करहि पसाउ।
तूं जाणोइ सभसै दे लैसहि जिंद कवाउ करि आसणु डिठो चाउ। (पृ. 463)

भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा जिंदा का रूप बनाकर बेई नदी पर आए अर्थात् जिंदा कहलाए तथा स्वयं ही दो दुनियाँ ऊपर(सतलोक आदि) तथा नीचे(ब्रह्म व परब्रह्म के लोक) को रचकर ऊपर सत्यलोक में आकार में आसन पर बैठ कर चाव के साथ अपने द्वारा रची दुनियाँ को देख रहे हो तथा आप ही स्वयम्भू अर्थात् माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते, स्वयं प्रकट होते हो। यही प्रमाण पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मं. 8 में है कि कविर् मनीषि स्वयम्भूः परिभू व्यवधाता, भावार्थ है कि कवीर परमात्मा सर्वज्ञ है (मनीषि का अर्थ सर्वज्ञ होता है) तथा अपने आप प्रकट होता है। वह (परिभू) सनातन अर्थात् सर्वप्रथम वाला प्रभु है। वह सर्व ब्रह्मण्डों का (व्यवधाता) भिन्न-भिन्न अर्थात् सर्व लोकों का रचनहार है।

एहू जीउ बहुते जनम भरमिआ, ता सतिगुरु शबद सुणाइया।।(पृ. 465) भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि मेरा यह जीव बहुत समय से जन्म तथा मृत्यु के चक्र में भ्रमता रहा अब पूर्ण सतगुरु ने वास्तविक नाम प्रदान किया।

श्री नानक जी के पूर्व जन्म:- सतयुग में राजा अम्ब्रीष, त्रेतायुग में राजा जनक हुए थे और फिर नानक जी हुए तथा अन्य योनियों के जन्मों की तो गिनती ही नहीं है।

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