भक्त तरवर (वृक्ष) जैसे स्वभाव का होता है

एक बार एक समुद्री जहाज में एक सेठ व्यापार के लिए जा रहा था। उसके साथ रास्ते का खाना बनाने वाले तथा मजाक-मस्करा करके दिल बहलाने वालों की पार्टी भी थी। लम्बा सफर था। महीना भर लगना था। मजाकिया व्यक्तियों को एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जिसके ऊपर सब मजाक की नकल झाड़ सकें। खोज करने पर इब्राहिम को पाया और पकड़कर ले गए। सोचा कि इस भिखारी को रोटियाँ चाहिए, मिल जाएंगी। समुद्र में दूर जाने के पश्चात् सेठ के लिए मनोरंजन का प्रोग्राम शुरू हुआ। इब्राहिम के ऊपर मजाक झाड़ रहे थे। कह रहे थे कि एक इस (इब्राहिम) जैसा मूर्ख था। वह वृक्ष की उसी डाली पर बैठा था जिसे काट रहा था। गिरकर मर गया। हा-हा करके हँसते थे। इस प्रकार बहुत देर तक ऐसी अभद्र टिप्पणियाँ करते रहे।

इब्राहिम बहुत दुःखी हुआ। सोचा कि महीनों का दुःख हो गया। न भक्ति कर पाऊँगा, न चैन से रह पाऊँगा। उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे भक्त इब्राहिम! यदि तू कहे तो इन मूर्खों को मार दूँ। जहाज को डुबो दूँ, तुझे बचा लूँ। ये तेरे को तंग करते हैं। यह आकाशवाणी सुनकर जहाज के सब व्यक्ति भयभीत हो गए। इब्राहिम ने कहा, हे अल्लाह! यह कलंक मेरे माथे पर न लगा। ये बेखबर हैं। इतने व्यक्तियों के मारने के स्थान पर मुझे ही मार दे या इनको सद्बुद्धि दे दो, ये आपकी भक्ति करके अपने जीव का कल्याण कराऐं। जहाज मालिक सहित सब यात्रियों ने इब्राहिम से क्षमा याचना की तथा परमात्मा का ज्ञान सुना। आदर के साथ अपने साथ रखा। भक्ति करने के लिए जहाज में भिन्न स्थान दे दिया। इब्राहिम ने उन सबको सत्यज्ञान समझाकर आश्रम में लाकर गुरू जी से दीक्षा दिलाई।

इब्राहिम स्वयं दीक्षा दिया करता था। जब जिन्दा बाबा यानि परमेश्वर कबीर जी को किसी ने इब्राहिम की उपस्थिति में बताया कि हे गुरूदेव! इब्राहिम दीक्षा देता है। तब परमेश्वर जी ने बताया कि हे भक्त! आप गलती कर रहे हो। आप अधिकारी नहीं हो। उस दिन के पश्चात् इब्राहिम ने दीक्षा देनी बंद की तथा अपने सब शिष्यों को पुनः गुरू जी से उपदेश दिलाया। क्षमा याचना की, स्वयं भी अपना नाम शुद्ध करवाया। भविष्य में ऐसी गलती नहीं की।

प्रश्न:- इस बात का कहाँ प्रमाण है कि अल-खिज्र रूप में अल्लाह कबीर ही लीला कर रहे थे? कबीर जी जुलाहा (काशी-भारत वाले) ही कादर अल्लाह है जिसने सब रचना की है।

उत्तर:- पहले यह सिद्ध करता हूँ कि काशी (बनारस) शहर में जो कबीर नामक जुलाहा रहा करता था, वह सब सृष्टि का रचने वाला खुदा है। इसके लिए अनेकों चश्मदीद गवाह (eye witness) हैं जिन्होंने उस समर्थ (कादर) अल्लाह को ऊपर (तख्त) सिंहासन पर बैठे देखा तथा बताया कि जो कबीर काशी शहर (भारत देश) में जुलाहे की भूमिका किया करता, वही समर्थ परमेश्वर है।

गवाह नं. 1:- संत गरीबदास जी गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर, प्रांत-हरियाणा (देश-भारत):- संत गरीबदास जी दस वर्ष के बालक अपने खेतों में गाँव के अन्य ग्वालों के साथ प्रतिदिन की तरह गाय चराने गए हुए थे। विक्रमी संवत् 1774 (सन् 1717) फाल्गुन महीने की शुदी (चांदनी) द्वादशी को दिन के लगभग दस बजे ग्वाले तथा बालक गरीबदास जी एक जांडी के वृक्ष के नीचे छाया में बैठकर भोजन खा रहे थे। परमेश्वर जी जिंदा बाबा (अल-खिज्र) के वेश में ऊपर आसमान वाले तख्त (सिंहासन) से चलकर कुछ दूरी पर धरती के ऊपर उतरे तथा ग्वालों के पास गए। वह जांडी का पेड़ गाँव-कबलाना से गाँव-छुड़ानी को जाने वाले कच्चे रास्ते पर था तथा कबलाना की सीमा के सटे संत गरीबदास जी के खेत में था। {संत गरीबदास के पिता जी के पास गाँव में एक हजार तीन सौ पचहत्तर (1375) एकड़ जमीन थी। उसी जमीन पर चरागाह बना रखी थी जिसमें गाँव छुड़ानी के अन्य निर्धन व्यक्ति भी अपनी गायों को चराने के लिए ले जाया करते थे।} बाबा जिंदा यानि साधु को देखकर बड़ी आयु के ग्वालों (पालियों) में से एक ने कहा कि बाबा जी भोजन खाओ। साधु ने कहा, ‘‘भोजन तो मैं अपने डेरे से खाकर आया हूँ।’’ कई ग्वाले एक साथ बोले, ‘‘यदि भोजन नहीं खाते तो दूध पी लो।’’ परमेश्वर ने कहा कि दूध पिला दो, परंतु दूध उसका पिलाओ जिसको कभी बच्चा उत्पन्न न हुआ हो यानि कंवारी गाय का। पालियों ने उसे मजाक समझा।

बालक गरीबदास जी उठे तथा एक अपनी प्रिय बछिया को लाए और बोले, हे बाबा जी! यह कंवारी गाय दूध कैसे दे सकती है? तब बाबा जी ने कहा कि यह दूध देगी, तुम स्वच्छ बर्तन लेकर इसके थनों के नीचे रखो। संत गरीबदास जी ने एक मिट्टी का बर्तन (छोटा घड़ा 3.4 किलोग्राम की क्षमता का) लिया और उसे हाथों से पकड़कर बछिया के थनों के नीचे करके बैठ गया। बाबा जिंदा (अल-खिज्र) ने गाय की बछड़ी की पीठ के ऊपर हाथ से थपकी मारी। उसी समय थन लंबे व कुछ मोटे हो गए तथा दूध निकलने लगा। जब वह तीन-चार किलोग्राम का बर्तन भर गया तो थनों से दूध आना बंद हो गया। बालक गरीबदास जी ने वह दूध से भरा बर्तन बाबा जी को दे दिया तथा कहा कि यह तो आपकी दया से मिला है, पी लो। बाबा जिंदा ने उस बर्तन को मुख लगाकर कुछ दूध पीया। शेष उन पालियों की ओर किया कि पी लो, यह प्रसाद है। अन्य ग्वाले उठकर चल दिए। कहने लगे कि यह दूध जादू-जंत्र करके कंवारी बछड़ी से निकाला है। हमारे को कोई भूत-प्रेत की बाधा हो जाएगी। यह कोई सेवड़ा (भूत-प्रेत निकालने वाला) लगता है। कंवारी गाय का दूध पाप का दूध है। यह बाबा पता नहीं किस छोटी जाति का है। इसका झूठा दूध हम नहीं पीएँगे।

बालक गरीबदास जी ने बाबा से बर्तन लिया और पालियों के देखते-देखते उसमें से कुछ दूध पीया। वे बड़ी आयु के ग्वाले बालक को दूध न पीने के लिए कहते रहे। बालक नहीं माना। सब दूर चले गए। बाबा जिंदा तथा बालक गरीबदास जी रह गए। तब कुछ ज्ञान सुनाया। बालक ने सतलोक और समर्थ परमात्मा (जो ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी से भी शक्तिशाली जो बाबा ने बताया था) आँखों देखने की इच्छा की। जिंदा बाबा बालक गरीबदास के जीव को शरीर से निकालकर आसमान में ले गया। ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी के लोक दिखाए। स्वर्ग तथा नरक दिखाए। ब्रह्मलोक (महाजन्नत) काल ब्रह्म का दिखाया। फिर और ऊपर अपने अमरलोक में ले गए। जो बाबा जिंदा बालक के साथ गया था, वह ऊपर बने (तख्त) सिंहासन के ऊपर बैठ गया। उस समय परमात्मा रूप बन गए। परमात्मा के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश करोड़ सूर्यों के प्रकाश से भी अधिक था। अमरलोक प्रकाशित था। बालक गरीबदास जी का भी अन्य शरीर बन गया जिसका प्रकाश सोलह सूर्यों के समान था। अमरलोक के सब भक्त/भक्तमति (हँस/हँसनी) अपने परमेश्वर को दंडवत् करने लगे। जय हो कबीर सतपुरूष की बुलाने लगे। सबने कहा कि ये अनंत करोड़ ब्रह्मंड का सृजनहार समर्थ परमेश्वर है। इसका नाम कबीर है। फिर परमात्मा ने सब ज्ञान अपने नबी गरीबदास जी की आत्मा में डाल दिया। सारा सतलोक तथा नीचे के सब लोक दिखाकर बालक की आत्मा को शरीर में प्रवेश करा दिया। उस समय बालक गरीबदास जी के शरीर को अंतिम संस्कार के लिए चिता (लकड़ियांे के ढे़र) पर रखा था। अग्नि लगाने ही वाले थे, उसी समय गरीबदास जी उठ लिए। गाँव में खुशी की लहर दौड़ गई। संत गरीबदास जी को उसी जिंदा बाबा वेशधारी परमेश्वर जी ने दीक्षा दी। संत गरीबदास जी ने आँखों देखा तथा परमेश्वर के मुख कमल से सुना सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान दोहों, चैपाईयों, शब्दों के रूप में बोला जो एक दादू जी के पंथ से दीक्षित गोपाल दास नाम के महात्मा जी ने लिखा। लेखन कार्य में लगभग छः महीने लगे।

प्रसंग है कि यह कहाँ प्रमाण है कि अल-खिज्र ही अल कबीर है:- जैसे इसी ‘‘अल-खिज्र (अल कबीर) की जानकारी’’ वाले प्रकरण में ‘‘रूमी का परिचय’’ शीर्षक में लिखा है कि रूमी नाम का व्यक्ति टर्की देश के कोणया शहर में एक मस्जिद में मौलवी था जो मुसलमान धर्म का प्रचार किया करता था। लोग उनका विशेष सम्मान किया करते। जो समस्तरबेज संत के ज्ञान को समझकर मौलवी की पदवी त्यागकर गुरू जी समस्तरबेज द्वारा बताई भक्ति करते थे जो प्रसिद्ध कवि भी हुए हैं। उन्होंने बताया कि बलख शहर के राजा (बलखी) सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम ने अल-खिज्र से प्रेरणा पाकर राज त्याग दिया था। शेष जीवन अल-खिज्र के सम्पर्क में रहकर अल्लाह की इबादत में गुजारा। सुल्तान को अल-खिज्र के दर्शन हुआ करते थे। ऊपर आप जी ने पूरा प्रकरण सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम का पढ़ा जिसमें स्पष्ट है कि अल्लाह कबीर जी ने सुल्तान को भक्ति के लिए प्रेरणा दी थी। इसलिए अल-खिज्र ही अल कबीर है। इसी का समर्थन संत गरीबदास जी ने किया है कि:-

गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, काशी मांही कबीर हुआ।।

अर्थात् संत गरीबदास जी ने बताया है कि हम सब (मैं गरीबदास, सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम, सिख धर्म प्रवर्तक नानक जी तथा संत दादू जी) को उस सतगुरू कबीर परमेश्वर जी ने पार किया जो काशी शहर में जुलाहे जाति में हुआ है। फिर कहा है कि:-

गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मंड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरू पुरूष कबीर हैं, कुल के सृजनहार।।

अर्थात् सर्व ब्रह्मंडों के उत्पत्तिकर्ता यानि सारी कायनात के सृजनकर्ता मेरे सतगुरू कबीर परमेश्वर जी हैं। उन्होंने सब लोकों, तारागण तथा सब नक्षत्रों (सूर्य, चाँद, ग्रहों) को बनाकर अपनी शक्ति से रोका हुआ है जिसे विज्ञान की भाषा में गुरूत्वाकर्षण शक्ति कहते हैं। उस सृजनहार कबीर के ऊपर इस सारी रचना (अनंत करोड़ ब्रह्मंडों) का कोई भार नहीं है। जैसे वैज्ञानिक ने वायुयान (।पतचसंदम) बनाकर उड़ा लिया। स्वयं भी उसमें सवार हो गया। जिस प्रकार उस वायुयान का वैज्ञानिक के ऊपर कोई भार नहीं है, उल्टा उसके ऊपर सवार है। इसी प्रकार कबीर कादर अल्लाह सब लोकों की रचना करके उनके ऊपर सवार है तथा सारे जीव सवार कर रखे हैं। इससे सिद्ध हुआ कि अल-खिज्र ही अल कबीर है।

गवाह नं. 2 (संत दादू दास जी):- संत दादू दास जी ग्यारह वर्ष के बालक थे। तब गाँव के बाहर जंगल में दादू जी को अल्लाह कबीर एक जिंदा बाबा के वेश में मिला। संत दादू जी की आत्मा को निकालकर अल-कबीर जी ऊपर अपने सतलोक में ले गए। दादू जी तीन दिन-रात अचेत रहे। ऊपर अपना तख्त (सिंहासन) दिखाया। अपना परिचय करवाया कि मैं पूर्ण ब्रह्म (परमेश्वर) हूँ। सारी सृष्टि मैंने रची है। बालक दादू जी को अल्लाह कबीर जी ने सब ब्रह्मंडों की सैर करवाकर तीसरे दिन आत्मा शरीर में प्रवेश कर दी। संत दादू दास जी सचेत हो गए। तब लोगों ने पूछा कि आपको क्या हो गया था? दादू जी ने बताया कि मेरे को एक बाबा के वेश में अल्लाह कबीर मिले थे और मुझे दीक्षा दी। ऊपर आसमानों पर लेकर गए थे। दादू जी के साथ उस समय कुछ अन्य हमउम्र बच्चे भी थे। उन्होंने भी बताया था कि एक बाबा ने जंत्र-मंत्र का जल बनाकर स्वयं पीया तथा पान के पत्ते को कटोरे रूप में बनाकर उसमें अपना झूठा पानी दादू को पिलाया था। फिर बाबा दिखाई नहीं दिया। दादू बालक बेहोश हो गया। संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त ज्ञान को इस प्रकार बताया है किः-

गरीब, दादू कूँ सतगुरू मिले, देई पान का पीक।
बूढ़ा बाबा जिसे कहें, यह दादू की नहीं सीख।।

अर्थात् संत दादू जी को सतगुरू रूप में कबीर अल्लाह मिले थे जो एक जिंदा बाबा के वेश में थे। उन्होंने दादू जी को पान के पत्ते के ऊपर अपने मुख से निकाला जल डालकर दीक्षा के समय पिलाया था। जो व्यक्ति यह कहते हैं कि दादू को वृद्ध बाबा मिला था जो जंत्र-तंत्र विद्या को जानने वाला था, यह दादू ने नहीं बताया। दादू जी ने उसके विषय में जो बताया है, वह इस प्रकार है जो दादू जी के द्वारा बोली वाणी से बने दादू ग्रंथ में लिखा है। वाणी:-

जिन मोकूं निज नाम दिया, सोई सतगुरू हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजनहार।।

दादू नाम कबीर का, सुनकर कांपे काल। नाम भरोसै जो चले, होवे ना बांका बाल। केहरी नाम कबीर है, विषम काल गजराज। दादू भजन प्रताप से, भागे सुनत आवाज।। अर्थात् दादू जी ने कहा है कि मेरे को जिसने (निजनाम) भक्ति का यथार्थ मंत्र दिया, वह मेरा सतगुरू है। उसका नाम कबीर है। यही कबीर सारी कायनात (सृष्टि) का (सृजनहार) उत्पत्तिकर्ता है।

संत दादू जी ने कहा है कि ‘‘कबीर’’ नाम सुनते ही ज्योति निरंजन (काल) कांपने लग जाता है। कबीर नाम इतना शक्तिशाली है। जो भक्त कबीर जी के बताए नाम पर पूर्ण विश्वास करके जीवन यात्रा करता है तो काल ब्रह्म उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं कर सकता।

संत दादू जी ने कबीर अल्लाह की समर्थता एक उदाहरण के माध्यम से बताई है कि काल भी बहुत ताकतवर है, परंतु कबीर अल्लाह के सामने वह भी कमजोर पड़ जाता है। काल (गजराज) हाथियों के राजा के समान बलवान है। कबीर जी का भक्ति करने को दिया नाम भी बहुत शक्तिशाली है। वह केहरी यानि बब्बर शेर (ठपहहमेज स्पवद) के समान ताकतवर है। उस नाम का जाप (भजन) करने से उस नाम रूपी केहरी की शक्ति के आगे काल टिक नहीं पाता यानि नाम की सूक्ष्म दहाड़ (गाज) सुनकर काल रूप गजराज भाग जाता है। संत दादू दास जी ने स्पष्ट कर दिया है कि कबीर ही सारी सृष्टि (कायनात) को उत्पन्न करने वाला परमेश्वर है।

गवाह नं. 3 {संत धर्मदास जी बांधवगढ़ (मध्य प्रदेश, भारत) वाले}:- हिन्दू धर्म में जन्म होने के कारण धर्मदास जी हिन्दू धर्मगुरूओं द्वारा बताए अधूरे ज्ञान के आधार से साधना किया करते थे। एक समय धर्मगुरूओं के बताए अनुसार तीर्थ भ्रमण करते हुए मथुरा (श्री कृष्ण की नगरी) में गए हुए थे। पत्थर व पीतल की देवी-देवताओं (श्री विष्णु, श्री शंकर व देवी आदि) की मूर्तियों को थैले में डालकर साथ लिए हुए थे। सुबह तीर्थ में (उस तालाब में श्री कृष्ण स्नान किया करते थे, उसमें) स्नान करके मूर्तियों की पूजा करने लगा। उस समय कबीर अल्लाह भारत देश के काशी शहर में जुलाहे की भूमिका करने संसार में प्रकट थे, जो धर्मदास जी को सत्य मार्ग बताने हेतु मथुरा के उसी तालाब पर पहुँचे और सब क्रिया करते धर्मदास जी को देख रहे थे। धर्मदास जी ने मूर्तियों की उपासना के पश्चात् श्रीमद्भगवत गीता का पाठ किया। खुदा कबीर धर्मदास जी की सब क्रियाओं को ध्यान से देख व सुन रहा था। धर्मदास जी अपनी दैनिक भक्ति की क्रियाओं से फारिक हुआ। तब परमेश्वर कबीर जी ने उससे ज्ञान चर्चा की। ज्ञान चर्चा का दौर कई दिनों तक चला। धर्मदास जी को भी अल्लाह कबीर जी अपने सतलोक में बने तख्त के पास लेकर गए। धर्मदास जी तीन दिन तक बेहोश रहे। ऊपर के सब लोक दिखाए। अपना सतलोक दिखाया। सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान समझाकर पुनः शरीर में प्रवेश कर दिया। उसके पश्चात् संत धर्मदास जी ने अपनी पहले वाली इबादत त्याग दी तथा अपने नबी स्वयं बनकर आए अल्लाह कबीर द्वारा बताई सच्ची इबादत की और पूर्ण मोक्ष प्राप्त किया। धर्मदास जी ने अल्लाह कबीर की महिमा में अनेकों वाणी बोली:-

आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।।
अमरलोक से चलकर आए, काटन जम की जंजीर।
हिन्दू के तुम देव कहाए मुसलमान के पीर।
दोनों दीन का झगड़ा छिड़ गया, टोहा ना पाया शरीर।।
धर्मदास की अर्ज गुंसाई, खेवा लंघाइयो परले तीर।।

अर्थात् धर्मदास जी ने सतलोक देखने के बाद माना कि काशी वाला जुलाहा कबीर सारी कायनात को उत्पन्न करने वाला कादर अल्लाह है। उनकी महिमा विस्तार के साथ बताई जो आँखों देखी थी।

जब परमेश्वर कबीर जी भारत देश के गोरखपुर जिला उत्तरप्रदेश प्रांत के मगहर कस्बे से सशरीर सतलोक गए थे। उस समय उनके हिन्दू राजा बीर सिंह जो काशी शहर के राजा थे तथा मुसलमान नवाब बिजली खान पठान जो मगहर कस्बे के नवाब थे, दोनों शिष्य थे। अनेकों हिन्दू तथा मुसलमान मगहर, काशी तथा अनेकों स्थानों के व्यक्ति भी कबीर जी के शिष्य थे जो सँख्या में चैंसठ लाख बताए हैं। जब कबीर जी ने सतलोक जाने की बात कही तो दोनों (हिन्दू तथा मुसलमान) धर्मों के व्यक्ति तथा राजा अपनी-अपनी रीति से अंतिम संस्कार करने की बात की जिद करके लड़ने को तैयार हो गए थे। तब कबीर जी ने उनसे कहा कि आप लड़ाई नहीं करना। मैं एक चद्दर नीचे बिछाऊँगा, एक ऊपर ओढूँगा। आप मेरे शरीर के दो भाग कर लेना तथा एक-एक चद्दर व आधा-आधा शरीर ले लेना। जो लड़ाई करेगा, उसको त्याग दूँगा। एक चद्दर बिछाई गई। भक्तों ने श्रद्धा से उसके ऊपर दो-तीन इंच मोटाई में सुगंधित फूल बिछा दिए। कबीर जी उनके ऊपर लेट गए। एक चद्दर ऊपर ओढ़ी। दोनों धर्मों के व्यक्ति अपने मन में दोष लिए हुए थे कि आधे शरीर का संस्कार अपशगुन यानि बुरा होता है। इसलिए युद्ध करके पूरा शरीर लेकर संस्कार करेंगे। अल्लाह कबीर तो मन की बात भी जानता है। कुछ समय पश्चात् आकाश से आवाज आई कि चद्दर उठाकर देखो, इसके नीचे मुर्दा नहीं है। सबने ऊपर नजर की। देखा तो कबीर जी आकाश में ऊपर की ओर जा रहे थे। कह रहे थे कि मैं सर्व सृष्टि का रचनहार परमेश्वर कबीर करतार हूँ। तुम मुझे समझ नहीं सके। चद्दर उठाई तो शव के समान सुगांधित फूलांे का ढे़र लगा था। कबीर खुदा अपने आसमान वाले तख्त (सिंहासन) पर जा विराजे थे। यदि यह चमत्कार परमेश्वर न करते तो हिन्दू तथा मुसलमानों का घोर युद्ध होता। हजारों व्यक्ति मारे जाते। उस अनर्थ को परमेश्वर बिना कोई नहीं टाल सकता। उसी समय हिन्दू तथा मुसलमान आपस में गले लगकर अल्लाह के चले जाने के गम में बिलख-बिलखकर रोने लगे। कहने लगे कि हमने अल्लाह को पहचाना नहीं। हमसे बड़ी गलती हुई है। दोनों धर्मों में एक-एक चद्दर तथा आधे-आधे फूल बाँटे। बिजली खान पठान (मगहर के नवाब) ने अपने पीर कबीर जी के लिए दोनों धर्मों को एक स्थान पर (सौ फुट के अंतर में) फूलों का अंतिम संस्कार करने के लिए जगह दे दी। दोनों धर्मों ने एक चद्दर तथा आधे फूलों का अपनी-अपनी रीति से अंतिम संस्कार किया। आज भी दोनों यादगार मगहर नगर (जिला-संत कबीर नगर, उत्तरप्रदेश, भारत) में विद्यमान हैं। बिजली खान पठान ने दोनों यादगारों के लिए 500.500 बीघा जमीन दान (जकात) में दी थी।

जब परमेश्वर कबीर जी सबके बीच से चले गए तो इस वियोग में संत धर्मदास जी ने रोते हुए कहा था कि हे परमेश्वर कबीर जी! मुझे फिर से दर्शन दो। आप तो सतलोक से अपने तख्त (सिंहासन) से चलकर पृथ्वी के ऊपर हमारे कर्म बंधन रूपी जंजीर काटने आए थे। दोनों (धर्मों) का झगड़ा होने जा रहा था। सबने अपनी-अपनी सेना हथियारों सहित लड़ने को तैयार कर दी थी। आपका शरीर ही नहीं मिला। आप कादर अल्लाह हो। इसको 190 पुनर्जन्म होता है, पढ़ें ढ़ेर सारे प्रमाण

समझने के लिए यह लीला पर्याप्त है। हे परमेश्वर! मेरे जीवन रूपी खेवे (नौका) का संसार रूपी दरिया के (परले तीर) दूसरे किनारे लगाओ यानि मोक्ष प्रदान करो। कुछ दिनों के पश्चात् संत धर्मदास जी को अल्लाह कबीर जी फिर सतलोक से आकर मिले। उसके साथ रहे। संत धर्मदास जी को सतलोक भेजा। इससे सिद्ध हुआ कि जो अल-खिज्र रूप में हजरत मुहम्मद सल्लम आदि को मिला था, वह अल-कबीर ही सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता खुदा है।  गवाह नं. 4 (संत मलूक दास जी):- संत मलूक दास जी को भी कबीर जी सतलोक लेकर गए। सब व्यवस्था दिखाकर वापिस शरीर में छोड़ा था। पहले मलूक दास जी श्री कृष्ण तथा श्री रामचन्द्र (श्री विष्णु जी) के परम भक्त थे। उसके पश्चात् पहले वाली पूजा त्यागकर खुदा कबीर जी द्वारा बताई इबादत की। मोक्ष प्राप्त किया। संत मलूक दास जी ने कहा:-

जपो रे मन साहेब नाम कबीर, जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर।।
एक समय गुरू बंसी बजाई, कालंद्री के तीर।
सुर नर मुनिजन थकत भये, रूक गया जमना नीर।
अमृत भोजन म्हारे सतगुरू जीमें, शब्द दूध की खीर।
दास मलूक सलूक कहत है, खोजो खसम कबीर।।

अर्थात् संत मलूक दास जी ने स्पष्ट किया है कि परमात्मा कबीर जी का नाम जपा करो। उस (खसम) सर्व के मालिक कबीर जी की खोज करो, उसे पहचानो। सत्य साधना करके सतलोक में कबीर खुदा के पास जाओ। जैसे श्री कृष्ण के विषय में बताया जाता है कि वे बांसुरी मधुर बजाते थे। उसको सुनकर गोपियाँ व गायें खींची चली आती थी। मलूक दास ने बताया है कि एक समय मेरे सतगुरू कबीर जी ने (कालंद्री) जमना दरिया के किनारे बांसुरी बजाई थी जिसको सुनकर स्वर्ग लोक के देवता, ऋषिजन तथा आस-पास के गाँव के व्यक्ति खींचे चले आए थे। और क्या बताऊँ! जमना दरिया का जल भी रूक गया था। मेरे सतगुरू शब्द की खीर खाते हैं यानि अमृत भोजन के साथ-साथ अमर आनंद भी भोगते हैं। संत मलूक दास जी ने आँखों देखा बताया कि कबीर पूर्ण ब्रह्म (कादर अल्लाह) है।

गवाह नं. 5 (श्री नानक देव जी):- श्री नानक जी को परमात्मा मिले थे जिस समय श्री नानक देव साहेब जी सुल्तानपुर शहर में नवाब के यहाँ मोदी खाने में नौकरी करते थे। सुल्तानपुर शहर से आधा कि.मी. दूर बेई नदी बहती है। श्री नानक जी प्रतिदिन उस दरिया में स्नान करने जाया करते थे। एक दिन परमात्मा जिंदा बाबा की वेशभूषा में बेई नदी पर प्रकट हुए, वहाँ श्री नानक देव जी से ज्ञान चर्चा हुई। उसके पश्चात् श्री नानक जी ने दरिया में डुबकी लगाई लेकिन बाहर नहीं आए। वहाँ उपस्थित व्यक्तियों ने मान लिया कि नानक जी दरिया में डूब गए हैं। शहर के लोगों ने दरिया में जाल डालकर भी खोजा, परंतु निराशा ही हाथ लगी क्योंकि श्री नानक देव जी तो जिन्दा बाबा के रूप में प्रकट परमात्मा के साथ सच्चखण्ड (सत्यलोक) में चले गए थे। तीन दिन के पश्चात् श्री नानक देव जी वापिस पृथ्वी पर आए। उसी बेई नदी के उसी किनारे पर खड़े हो गए जहाँ से अन्तध्र्यान हुए थे। श्री नानक जी को जीवित देखकर सुल्तानपुर के निवासियों की खुशी का ठिकाना नहीं था। श्री नानक जी की बहन नानकी भी सुल्तानपुर शहर मंे विवाही थी। अपनी बहन के पास श्री नानक जी रहा करते थे। अपने भाई की मौत के गम से दुःखी बहन नानकी को बड़ा आश्चर्य हुआ और गम खुशी में बदल गया। श्री नानक देव को परमात्मा मिले, सच्चा ज्ञान मिला, सच्चा नाम (सत्यनाम) मिला। पुस्तक भाई बाले वाली “जन्म साखी गुरू नानक देव जी” में तथा प्राण संगली हिन्दी लिपि वाली में जिसके सम्पादक सन्त सम्पूर्ण सिंह हैं, इन दोनों पुस्तकों में प्रमाण है कि श्री गुरू नानक देव जी ने स्वयं मर्दाना को बताया कि मुझे परमात्मा जिंदा बाबा के रूप में बेई नदी पर मिले, जब मैं स्नान करने के लिए गया। मैं तीन दिन तक उन्हीं के साथ रहा था। वह बाबा जिन्दा मेरा सतगुरू भी है तथा वह सर्व सृष्टि का रचनहार भी है।

इसलिए वही “बाबा” कहलाने का अधिकारी है, अन्य को “बाबा” नहीं कहा जाना चाहिए, उसका नाम कबीर है।

कायम दायका कुदरती सब पीरन सिर पीर आलम बड़ा कबीर।।

इसलिए श्री नानक जी की वाणी (महला 1) है, वह सूक्ष्म वेद से मेल खाती है, यह सही है। अन्य सन्तों की वाणी इतनी सटीक नहीं है। कारण यह है कि श्री नानक देव जी को परमात्मा कबीर जी मिले थे।

प्रमाण:- श्री गुरू ग्रन्थ साहिब में पृष्ठ 24 पर लिखी वाणी:-

एक सुआन दुई सुआनी नाल भलके भौंकही सदा बियाल,
कुड़ छुरा मुठा मुरदार धाणक रूप रहा करतार।
तेरा एक नाम तारे संसार मैं ऐहो आश ऐहो आधार, धाणक रूप रहा करतार।
फाही सुरत मलूकी वेश, एह ठगवाड़ा ठगी देश।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।

श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी के पृष्ठ 731 पर निम्न वाणी है:-

नीच जाति परदेशी मेरा, क्षण आवै क्षण जावै।
जाकि संगत नानक रहंदा, क्यूकर मुंडा पावै।।

पृष्ठ 721 पर निम्न वाणी लिखी है:- यक अर्ज गुफतम पेश तोदर, कून करतार।हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदिगार।।

यह उपरोक्त अमृतवाणी श्री गुरू ग्रन्थ साहेब जी की है जिससे सिद्ध हुआ कि श्री नानक जी को परमात्मा मिले थे। वह “कबीर करतार” है जो काशी में धाणक रूप में लीला करने आए थे।

उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट हुआ है कि कबीर जुलाहा काशी (भारत) वाला सबका उत्पत्ति करने वाला, सबका धारण-पोषण करने वाला समर्थ परमात्मा है। वही अल-खिज्र के वेश में अच्छी आत्माओं को मिला था। वह ऐसे अन्य वेश बनाकर नेक आत्माओं को भी भक्ति की उत्तम विधि का ज्ञान करवाता है। ऊपर जो सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम के प्रकरण से भी स्पष्ट है कि अल-खिज्र ही कबीर अल्लाह है।

8 रूमी का परिचय:-

रूमी विश्व के जाने-माने कवि हैं और कबीर साहिब के बाद दूसरा नंबर रूमी का आता है। पश्चिमी देशों में रूमी काफी मशहूर हैं। रूमी की कविताएँ अमेरिका में सबसे ज्यादा बिकती हैं। रूमी की रचनाएँ ष्डंदेदंअपष् और क्पूंद.म.ज्ञंइपत को डमसअंदं डनेमनउए ज्ञवदलंए ज्नतामल में रखा गया है। रूमी की मजार ज्ञवदलंए ज्नतामल में स्थित है। उसी के साथ रूमी के मुर्शीद समस्तरबेज की भी कृत्रिम कब्र बनी हुई है। हर साल पूरे विश्व से लाखों लोग रूमी की मजार का सजदा करने जाते हैं और हैरत की बात ये है कि मुसलमानों से ज्याद गैर-मुसलमान जाते हैं।

रूमी की समस्तरबेज से मुलाकात:-

रूमी शहर कोणया, टर्की देश की मस्जिद के सबसे बड़े मौलवी थे और मुसलमान धर्म का प्रचार-प्रसार किया करते थे और उनके बहुत से शागिर्द थे। 15जी छवअमउइमत 1244 की रोज एक 60 साल का सफेद दाढ़ी वाला शख्स सर से एड़ी तक काला लिबास पहने हुए कोणया के महशूर चीनी बाजार में व्यापारियों की सराय में पहुँचा। इस शख्स का नाम समस्तरबेज ;ैींउे ज्मइतम्रद्ध था। पूछने पर लोगों को बताया कि मैं एक राह चलता व्यापारी हूँ। वो वहाँ जैसे कुछ खोज रहे थे और आखिरकार उन्हें रूमी घोड़े की सवारी करते हुए दिखाई दिया।

एक दिन एक हौज (तालाब) के किनारे रूमी पुरानी इल्मी किताबों का एक ढ़ेर रखकर बैठे थे और अपने शागिर्दों को पढ़ा रहे थे। समस्तरबेज वहाँ से गुजरे और उन किताबों के ढ़ेर की तरफ इशारा करते हुए रूमी से पूछा, ये क्या है? रूमी ने व्यंग्यपूर्वक उत्तर दिया, बाबा ’’ये वो है जो तू नहीं जानता।‘‘ ये सुन समस्तरबेज ने उन किताबों को हौज में धक्का दे दिया। ये देख रूमी आग-बबूला हो गए और कहा हे बदबक्त! ये तूने क्या किया? क्या तू जानता है ये किताबें कितनी कीमती थी? ये सुनकर समस्तरबेज हौज में कूद गए और एक-एक कर सारी किताबें पानी से बाहर निकालकर रख दी और एक भी किताब गीली नहीं हुई थी। उलटा उनमें से धूल निकल रही थी। ये हैरतंगेज नजारा देख रूमी दंग रह गया और समस्तरबेज से पूछा, बाबा ये क्या है? समस्तरबेज ने उत्तर दिया ’’ये वो है जो तू नहीं जानता‘‘, और वहाँ से चले गए।

अगले दिन रूमी अपने घोड़े पर सवार होकर बाजार में पहुँचे। वहाँ लोग आदर-सत्कार में उनका हाथ चूम रहे थे। तब अचानक समस्तरबेज वहाँ पहुँचे और रूमी के घोड़े की लगाम पकड़ ली। रूमी पहचान गया कि ये तो वही बाबा है, रूमी भी उनसे मिलना चाह रहे थे। बाबा ने कहा कि रूमी एक मसला है, मुझे ये बताओ कि मुहम्मद बड़ा या बायाजिद बसतामी बड़ा? (इंटरनेट पर ऐसा विवरण मिलता है कि मंसूर-अल-हल्लाज जिसने अनल हक्क का नारा लगाया था, बायाजिद बसतामी उनके जीवन को प्रभावित करने वालों में से एक हैं) रूमी ने कहा ये तो बच्चा भी जानता है, मुहम्मद बड़ा है। बाबा ने कहा अगर मुहम्मद बड़ा है तो उसने ये क्यों कहा कि ’’हे अल्लाह! मैं तुझे नहीं जानता, तू कौन है?‘‘ और बायाजिद बसतामी ने ये क्यों कहा कि ’’हे अल्लाह! तू पाक है, तू बादशाहों का बादशाह है और तेरी बड़ी शान है।‘‘ दोनों के बीच काफी लंबी चर्चा होती है और बाबा के तर्क सुनकर रूमी बेहोश होकर घोड़े से नीचे गिर पड़ता है। रूमी की आँखें खुली तो अपना सिर बाबा की गोद में पाया। बाबा रूमी को लेकर शहर से दूर चले जाते हैं। इसके बाद समस्तरबेज कोणया से गायब हो जाते हैं। रूमी उनकी याद में पागल-सा हो जाता है और बाबा की खोज में भटकने लगता है। एक वर्ष बाद रूमी को किसी से पता लगता है कि समस्तरबेज को क्ंउंेबने (आज ैपतलं देश का एक शहर) में देखा गया है। रूमी अपने बड़े लड़के से कहता है कि घर में जो सोना, चाँदी, गहने, पैसा पड़ा है, सब ले जा और बाबा को यहाँ ले आओ। रूमी का बड़ा लड़का क्ंउंेबने पहुँचकर समस्तरबेज के नाम पर भंडारा खोल देता है और देखता है कि कुछ दूरी पर बाबा एक लड़के के साथ शतरंज खेल रहे हैं। रूमी का लड़का बाबा से विनती करके उन्हें घोड़े पर बैठाकर कोणया ले आता है। रूमी कहता है कि बाबा आप क्यों गायब हो गए थे। आपने मेरे साथ ऐसे क्यों किया? मैं एक साल से आपकी याद में तड़फ रहा था। बाबा कहते हैं अगर मैं गायब ना होता तो तेरे दिल में आज ये आग ना होती। बाबा रूमी को इल्म देते हैं जिसे पाने के बाद रूमी अपनी पारंपरिक पूजा-पाठ छोड़ देता है। ये देख रूमी के शागिर्द समस्तरबेज से ईष्र्या करने लगते हैं।

एक रोज रूमी अपने मुर्शीद समस्तरबेज के साथ अपनी कुटिया में बैठे थे। तब रूमी का छोटा लड़का व कुछ शागिर्द समस्तरबेज के कत्ल के इरादे से वहाँ पहुँच जाते हैं और समस्तरबेज को आवाज लगाते हैं। समस्तरबेज रूमी से कहते हैं कि बस! अब मेरा जाने का वक्त आ गया है। शागिर्द जैसे ही उनको मारने के लिए तलवार उठाते हैं, समस्तरबेज अदृश्य हो जाते हैं।

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