कबीर सृजनकर्ता है, पेश हैं छः गवाह
कलयुग में परमात्मा अन्य निम्न अच्छी आत्माओं (दृढ़ भक्तों) को मिले:-
प्रश्न:- इस बात का कहाँ प्रमाण है कि कबीर जी जुलाहा (काशी-भारत वाले) ही समर्थ
परमेश्वर है जिसने सब रचना की है।
उत्तर:- पहले यह सिद्ध करता हूँ कि काशी (बनारस) शहर में जो कबीर नामक जुलाहा रहा करता था, वह सब सृष्टि का रचने वाला परम अक्षर ब्रह्म है। इसके लिए अनेकों चश्मदीद गवाह (Eye Witness) हैं जिन्होंने उस समर्थ परमेश्वर को ऊपर (तख्त) सिंहासन पर बैठे देखा तथा बताया कि जो कबीर काशी शहर (भारत देश) में जुलाहे की भूमिका किया करता, वही समर्थ परमेश्वर है।
गवाह नं. 1:- संत गरीबदास जी गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर, प्रांत-हरियाणा (देश-भारत):- संत गरीबदास जी दस वर्ष के बालक अपने खेतों में गाँव के अन्य ग्वालों के साथ प्रतिदिन की तरह गाय चराने गए हुए थे। विक्रमी संवत् 1774 (सन् 1717) फाल्गुन महीने की शुदी (चांदनी) द्वादशी को दिन के लगभग दस बजे ग्वाले तथा बालक गरीबदास जी एक जांडी के वृक्ष के नीचे छाया में बैठकर भोजन खा रहे थे। परमेश्वर जी जिंदा बाबा (अल-खिज्र) के वेश में ऊपर आसमान वाले तख्त (सिंहासन) से चलकर कुछ दूरी पर धरती के ऊपर उतरे तथा ग्वालों के पास गए। वह जांडी का पेड़ गाँव-कबलाना से गाँव-छुड़ानी को जाने वाले कच्चे रास्ते पर था तथा कबलाना की सीमा के सटे संत गरीबदास जी के खेत में था। {संत गरीबदास के पिता जी के पास गाँव में एक हजार तीन सौ पचहत्तर (1375) एकड़ जमीन थी। उसी जमीन पर चरागाह बना रखी थी जिसमें गाँव छुड़ानी के अन्य निर्धन व्यक्ति भी अपनी गायों को चराने के लिए ले जाया करते थे।} बाबा जिंदा यानि साधु को देखकर बड़ी आयु के ग्वालों (पालियों) में से एक ने कहा कि बाबा जी भोजन खाओ। साधु ने कहा, ‘‘भोजन तो मैं अपने डेरे से खाकर आया हूँ।’’ कई ग्वाले एक साथ बोले, ‘‘यदि भोजन नहीं खाते तो दूध पी लो।’’ परमेश्वर ने कहा कि दूध पिला दो, परंतु दूध उसका पिलाओ जिसको कभी बच्चा उत्पन्न न हुआ हो यानि कंवारी गाय का। पालियों ने उसे मजाक समझा। बालक गरीबदास जी उठे तथा एक अपनी प्रिय बछिया को लाए और बोले, हे बाबा जी! यह कंवारी गाय दूध कैसे दे सकती है? तब बाबा जी ने कहा कि यह दूध देगी, तुम स्वच्छ बर्तन लेकर इसके थनों के नीचे रखो। संत गरीबदास जी ने एक मिट्टी का बर्तन (छोटा घड़ा 3-4 किलोग्राम की क्षमता का) लिया और उसे हाथों से पकड़कर बछिया के थनों के नीचे करके बैठ गया। बाबा जिंदा (अल-खिज्र) ने गाय की बछड़ी की पीठ के ऊपर हाथ से थपकी मारी। उसी समय थन लंबे व कुछ मोटे हो गए तथा दूध निकलने लगा। जब वह तीन-चार किलोग्राम का बर्तन भर गया तो थनों से दूध आना बंद हो गया। बालक गरीबदास जी ने वह दूध से भरा बर्तन बाबा जी को दे दिया तथा कहा कि यह तो आपकी दया से मिला है, पी लो। बाबा जिंदा ने उस बर्तन को मुख लगाकर कुछ दूध पीया। शेष उन पालियों की ओर किया कि पी लो, यह प्रसाद है। अन्य ग्वाले उठकर चल दिए। कहने लगे कि यह दूध जादू-जंत्र करके कंवारी बछड़ी से निकाला है। हमारे को कोई भूत-प्रेत की बाधा हो जाएगी। यह कोई सेवड़ा (भूत-प्रेत निकालने वाला) लगता है। कंवारी गाय का दूध पाप का दूध है। यह बाबा पता नहीं किस छोटी जाति का है। इसका झूठा दूध हम नहीं पीएँगे।
बालक गरीबदास जी ने बाबा से बर्तन लिया और पालियों के देखते-देखते उसमें से कुछ दूध पीया। वे बड़ी आयु के ग्वाले बालक को दूध न पीने के लिए कहते रहे। बालक नहीं माना। सब दूर चले गए। बाबा जिंदा तथा बालक गरीबदास जी रह गए। तब कुछ ज्ञान सुनाया। बालक ने सतलोक और समर्थ परमात्मा (जो ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी से भी शक्तिशाली जो बाबा ने बताया था) आँखों देखने की इच्छा की। जिंदा बाबा बालक गरीबदास के जीव को शरीर से निकालकर आसमान में ले गया। ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी के लोक दिखाए। स्वर्ग तथा नरक दिखाए। ब्रह्मलोक काल ब्रह्म का दिखाया। फिर और ऊपर अपने अमरलोक में ले गए। जो बाबा जिंदा बालक के साथ गया था, वह ऊपर बने (तख्त) सिंहासन के ऊपर बैठ गया। उस समय परमात्मा रूप बन गए। परमात्मा के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश करोड़ सूर्यों के प्रकाश से भी अधिक था। अमरलोक प्रकाशित था। बालक गरीबदास जी का भी अन्य शरीर बन गया जिसका प्रकाश सोलह सूर्यों के समान था। अमरलोक के सब भक्त/भक्तमति (हँस/हँसनी) अपने परमेश्वर को दंडवत् करने लगे। जय हो कबीर सतपुरूष की बुलाने लगे। सबने कहा कि ये अनंत करोड़ ब्रह्मंड का सृजनहार समर्थ परमेश्वर है। इसका नाम कबीर है। फिर परमात्मा ने सब ज्ञान अपने नबी गरीबदास जी की आत्मा में डाल दिया। सारा सतलोक तथा नीचे के सब लोक दिखाकर बालक की आत्मा को शरीर में प्रवेश करा दिया। उस समय बालक गरीबदास जी के शरीर को अंतिम संस्कार के लिए चिता (लकड़ियों के ढे़र) पर रखा था। अग्नि लगाने ही वाले थे, उसी समय गरीबदास जी उठ लिए। गाँव में खुशी की लहर दौड़ गई। संत गरीबदास जी को उसी जिंदा बाबा वेशधारी परमेश्वर जी ने दीक्षा दी। संत गरीबदास जी ने आँखों देखा तथा परमेश्वर के मुख कमल से सुना सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान दोहों, चैपाईयों, शब्दों के रूप में बोला जो एक दादू जी के पंथ से दीक्षित गोपाल दास नाम के महात्मा जी ने लिखा। लेखन कार्य में लगभग छः महीने लगे। संत गरीबदास जी ने बताया:-
गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, काशी मांही कबीर हुआ।।
अर्थात् संत गरीबदास जी ने बताया है कि हम सब (मैं गरीबदास, सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम, सिख धर्म प्रवर्तक नानक जी तथा संत दादू जी) को उस कबीर सतगुरू परमेश्वर ने पार किया जो काशी शहर में जुलाहे जाति में हुआ है। फिर कहा है कि:-
गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मंड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरू पुरूष कबीर हैं, कुल के सृजनहार।।
अर्थात् सर्व ब्रह्मंडों के उत्पत्तिकर्ता यानि सारी कायनात के सृजनकर्ता मेरे सतगुरू तथा परमेश्वर कबीर जी हैं। उन्होंने सब लोकों, तारागण तथा सब नक्षत्रों (सूर्य, चाँद, ग्रहों) को बनाकर अपनी शक्ति से रोका हुआ है जिसे विज्ञान की भाषा में गुरूत्वाकर्षण शक्ति कहते हैं। उस सृजनहार कबीर के ऊपर इस सारी रचना (अनंत करोड़ ब्रह्मंडों) का कोई भार नहीं है। जैसे वैज्ञानिक ने वायुयान (Airplane) बनाकर उड़ा लिया। स्वयं भी उसमें सवार हो गया। जिस प्रकार उस वायुयान का वैज्ञानिक के ऊपर कोई भार नहीं है, उल्टा उसके ऊपर सवार है। इसी प्रकार कबीर कादर अल्लाह सब लोकों की रचना करके उनके ऊपर सवार है तथा सारे जीव सवार कर रखे हैं। इससे सिद्ध हुआ कि अल-खिज्र ही अल कबीर है।
गवाह नं. 2 (संत दादू दास जी):- संत दादू दास जी ग्यारह वर्ष के बालक थे। तब गाँव के बाहर जंगल में दादू जी को अल्लाह कबीर एक जिंदा बाबा के वेश में मिला। उनको भी सतलोक लेकर गए। आत्मा को निकालकर ऊपर अपने सतलोक में ले गए। दादू जी तीन दिन-रात अचेत रहे। ऊपर अपना तख्त (सिंहासन) दिखाया। अपना परिचय करवाया कि मैं पूर्ण ब्रह्म (परमेश्वर) हूँ। सारी सृष्टि मैंने रची है। सब ब्रह्मंडों की सैर करवाकर तीसरे दिन आत्मा शरीर में प्रवेश कर दी। संत दादू दास जी सचेत हो गए। तब लोगों ने पूछा कि आपको क्या हो गया था? दादू जी ने बताया कि मेरे को एक बाबा के वेश में अल्लाह कबीर मिले थे और मुझे दीक्षा दी। ऊपर आसमानों पर लेकर गए थे। दादू जी के साथ उस समय कुछ अन्य हमउम्र बच्चे भी थे। उन्होंने भी बताया था कि एक बाबा ने जंत्र-मंत्र का जल बनाकर स्वयं पीया तथा पान के पत्ते को कटोरे रूप में बनाकर उसमें अपना झूठा पानी दादू को पिलाया था। फिर बाबा दिखाई नहीं दिया। दादू बालक बेहोश हो गया। संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त ज्ञान को इस प्रकार बताया है कि:-
गरीब, दादू कूँ सतगुरू मिले, देई पान का पीक।
बूढ़ा बाबा जिसे कहें, यह दादू की नहीं सीख।।
अर्थात् संत दादू जी को सतगुरू रूप में कबीर अल्लाह मिले थे जो एक जिंदा बाबा के वेश में थे। उन्होंने दादू जी को पान के पत्ते के ऊपर अपने मुख से निकाला जल डालकर दीक्षा के समय पिलाया था। जो व्यक्ति यह कहते हैं कि दादू को वृद्ध बाबा मिला था जो जंत्र-तंत्र विद्या को जानने वाला था, यह दादू ने नहीं बताया। दादू जी ने उसके विषय में जो बताया है, वह इस प्रकार है जो दादू जी के द्वारा बोली वाणी से बने दादू ग्रंथ में लिखा है। वाणी:-
जिन मोकूं निज नाम दिया, सोई सतगुरू हमार। दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजनहार।।
दादू नाम कबीर का, सुनकर कांपे काल। नाम भरोसै जो चले, होवे ना बांका बाल।।
केहरी नाम कबीर है, विषम काल गजराज। दादू भजन प्रताप से, भागे सुनत आवाज।।
अर्थात् दादू जी ने कहा है कि मेरे को जिसने (निजनाम) यथार्थ भक्ति का मंत्र दिया, वह मेरा सतगुरू है। उसका नाम कबीर है। यही कबीर सारी कायनात (सृष्टि) का (सृजनहार) उत्पत्तिकर्ता है।
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संत दादू जी ने कहा है कि ‘‘कबीर’’ नाम सुनते ही ज्योति निरंजन (काल) कांपने लग जाता है। कबीर नाम इतना शक्तिशाली है। जो भक्त कबीर जी के बताए नाम पर पूर्ण विश्वास करके जीवन यात्र करता है तो काल ब्रह्म उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं कर सकता।
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संत दादू जी ने कबीर अल्लाह की समर्थता एक उदाहरण के माध्यम से बताई है कि काल भी बहुत ताकतवर है, परंतु कबीर अल्लाह के सामने वह भी कमजोर पड़ जाता है। काल (गजराज) हाथियों के राजा के समान बलवान है। कबीर जी का भक्ति करने को दिया नाम भी बहुत शक्तिशाली है। वह केहरी यानि बब्बर शेर (biggest lion) के समान ताकतवर है। उस नाम का जाप (भजन) करने से उस नाम रूपी केहरी की शक्ति के आगे काल टिक नहीं पाता यानि नाम की सूक्ष्म (गाज) दहाड़ सुनकर काल रूप गजराज भाग जाता है। संत दादू दास जी ने स्पष्ट कर दिया है कि कबीर ही सारी सृष्टि (कायनात) का उत्पन्न करने वाला परमेश्वर है।
गवाह नं. 3 {संत धर्मदास जी बांधवगढ़ (मध्य प्रदेश, भारत) वाले}:- धर्मदास जी का हिन्दू धर्म में जन्म होने के कारण हिन्दू धर्मगुरूओं द्वारा बताए अधूरे ज्ञान के आधार से साधना किया करते थे। उसी को करते हुए तीर्थ भ्रमण करते हुए मथुरा (श्री कृष्ण की नगरी) में गए हुए थे। पत्थर व पीतल की देवी-देवताओं (श्री विष्णु, श्री शंकर आदि) की मूर्तियों को थैले में डालकर साथ लिए हुए था। सुबह तीर्थ में (उस तालाब में श्री कृष्ण स्नान किया करते थे, उसमें) स्नान करके मूर्तियों की पूजा करने लगा। उस समय कबीर अल्लाह भारत देश के काशी शहर में जुलाहे की भूमिका करने संसार में प्रकट थे। धर्मदास जी ने मूर्तियों की उपासना के पश्चात् श्रीमद्भगवत गीता का पाठ किया। खुदा कबीर धर्मदास जी की सब क्रियाओं को ध्यान से देख व सुन रहा था। धर्मदास जी अपनी दैनिक भक्ति की क्रियाओं से फारिक हुआ। तब परमेश्वर कबीर जी ने उससे ज्ञान चर्चा की। ज्ञान चर्चा का दौर कई दिनों तक चला। धर्मदास जी को भी अल्लाह कबीर जी अपने सतलोक में बने तख्त के पास लेकर गए। धर्मदास जी तीन दिन तक बेहोश रहे। ऊपर के सब लोक दिखाए। अपना सतलोक दिखाया। सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान समझाकर पुनः शरीर में प्रवेश कर दिया। उसके पश्चात् संत धर्मदास जी ने अपनी पहले वाली इबादत त्याग दी तथा अपने नबी स्वयं बनकर आए अल्लाह कबीर द्वारा बताई सच्ची इबादत की और पूर्ण मोक्ष प्राप्त किया। धर्मदास जी ने अल्लाह कबीर की महिमा में अनेकों वाणी बोलीः-
आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।।
अमरलोक से चलकर आए, काटन जम की जंजीर।
हिन्दू के तुम देव कहाए मुसलमान के पीर।।
दोनों दीन का झगड़ा छिड़ गया, टोहा ना पाया शरीर।।
धर्मदास की अर्ज गुंसाई, खेवा लंघाइयो परले तीर।।
अर्थात् धर्मदास जी ने सतलोक देखने के बाद माना कि काशी वाला जुलाहा कबीर सारी कायनात को उत्पन्न करने वाला कादर अल्लाह है। उनकी महिमा विस्तार के साथ बताई जो आँखों देखी थी।
गवाह नं. 4 (संत मलूक दास जी):- संत मलूक दास जी को भी कबीर जी सतलोक लेकर गए। सब व्यवस्था दिखाकर वापिस शरीर में छोड़ा था। पहले मलूक दास जी श्री कृष्ण तथा श्री रामचन्द्र (श्री विष्णु जी) के परम भक्त थे। उसके पश्चात् पहले वाली पूजा त्यागकर कबीर जी द्वारा बताई भक्ति की। मोक्ष प्राप्त किया। संत मलूक दास जी ने कहा:-
जपो रे मन साहेब नाम कबीर, जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर।।
एक समय गुरू बंसी बजाई, कालंद्री के तीर। सुर नर मुनिजन थकत भये, रूक गया जमना नीर।
अमृत भोजन म्हारे सतगुरू जीमें, शब्द दूध की खीर। दास मलूक सलूक कहत है, खोजो खसम कबीर।।
अर्थात् संत मलूक दास जी ने स्पष्ट किया है कि परमात्मा कबीर जी का नाम जपा करो। उस (खसम) सर्व के मालिक कबीर जी की खोज करो, उसे पहचानो। सत्य साधना करके सतलोक में कबीर खुदा के पास जाओ। जैसे श्री कृष्ण के विषय में बताया जाता है कि वे बांसुरी मधुर बजाते थे। उसको सुनकर गोपियाँ व गायें खींची चली आती थी। मलूक दास ने बताया है कि एक समय मेरे सतगुरू कबीर जी ने (कालंद्री) जमना दरिया के किनारे बांसुरी बजाई थी जिसको सुनकर स्वर्ग लोक के देवता, ऋषिजन तथा आस-पास के गाँव के व्यक्ति खींचे चले आए थे। और क्या बताऊँ! जमना दरिया का जल भी रूक गया था। मेरे सतगुरू शब्द की खीर खाते हैं यानि अमृत भोजन के साथ-साथ अमर आनंद भी भोगते हैं। संत मलूक दास जी ने आँखों देखा बताया कि कबीर पूर्ण ब्रह्म (कादर अल्लाह) है।
गवाह नं. 5:- संत नानक देव जी को सुल्तानपुर शहर के पास बह रही बेई नदी पर मिले जहाँ गुरू द्वारा ’’सच्चखण्ड साहेब’’ यादगार रूप में बना है:-