अन्य संतों द्वारा सृष्टि रचना की दन्त कथा

अन्य संतों द्वारा जो सृष्टि रचना का ज्ञान बताया है वह कैसा है?

कृप्या निम्न पढ़ें:- सृष्टि रचना के विषय में राधास्वामी पंथ के सन्तों के व धन-धन सतगुरू पंथ के सन्त के विचार:-

पवित्र पुस्तक जीवन चरित्र परम संत बाबा जयमल सिंह जी महाराज‘‘ पृष्ठ नं102-103 से ‘‘सृष्टि की रचना‘‘ (सावन कृपाल पब्लिकेशन, दिल्ली)

‘‘पहले सतपुरुष निराकार था, फिर इजहार (आकार) में आया तो ऊपर के तीन निर्मल मण्डल (सतलोक, अलखलोक, अगमलोक) बन गया तथा प्रकाश तथा मण्डलों का नाद (धुनि) बन गया।‘‘

पवित्र पुस्तक सारवचन (नसर) प्रकाशक:- राधास्वामी सत्संग सभा, दयालबाग आगरा, ‘‘सृष्टि की रचना‘‘ पृष्ठ 8:-

‘‘प्रथम धूंधूकार था। उसमें पुरुष सुन्न समाध में थे। जब कुछ रचना नहीं हुई थी। फिर जब मौज हुई तब शब्द प्रकट हुआ और उससे सब रचना हुई, पहले सतलोक और फिर सतपुरुष की कला से तीन लोक और सब विस्त्तार हुआ।‘‘

यह ज्ञान तो ऐसा है जैसे एक समय कोई बच्चा नौकरी लगने के लिए साक्षात्कार (इन्टरव्यू) के लिए गया। अधिकारी ने पूछा कि आप ने महाभारत पढ़ा है। लड़के ने उत्तर दिया कि उंगलियों पर रट रखा है। अधिकारी ने प्रश्न किया कि पाँचों पाण्डवों के नाम बताओ। लड़के ने उत्तर दिया कि एक भीम था, एक उसका बड़ा भाई था, एक उससे छोटा था, एक और था तथा एक का नाम मैं भूल गया। उपरोक्त सृष्टि रचना का ज्ञान तो ऐसा है।

सतपुरुष व सतलोक की महिमा बताने वाले व पाँच नाम (औंकार - ज्योति निरंजन - ररंकार - सोहं - सत्यनाम) देने वाले व तीन नाम (अकाल मूर्ति - सतपुरुष - शब्द स्वरूपी राम) देने वाले संतों द्वारा रची पुस्तकों से कुछ निष्कर्ष:-

  • संतमत प्रकाश भाग 3 पृष्ठ 76 पर लिखा है कि ‘‘सच्चखण्ड या सतनाम चौथा लोक है‘‘, यहाँ पर ‘सतनाम‘ को स्थान कहा है।

  • फिर इस पवित्र पुस्तक के पृष्ठ नं 79 पर लिखा है कि ‘‘एक राम दशरथ का बेटा, दूसरा राम ‘मन‘, तीसरा राम ‘ब्रह्म‘, चौथा राम ‘सतनाम‘, यह असली राम है।‘‘

  • फिर पवित्र पुस्तक संतमत प्रकाश पहला भाग पृष्ठ नं. 17 पर लिखा है कि ‘‘वह सतलोक है, उसी को सतनाम कहा जाता है।‘‘

  • पवित्र पुस्तक ‘सार वचन नसर यानि वार्तिक‘ पृष्ठ नं. 3 पर लिखा है कि ‘‘अब समझना चाहिए कि राधा स्वामी पद सबसे उच्चा मुकाम है कि जिसको संतों ने सतलोक और सच्चखण्ड और सार शब्द और सत शब्द और सतनाम और सतपुरुष करके ब्यान किया है।‘‘

  • पवित्र पुस्तक सार वचन (नसर) आगरा से प्रकाशित पृष्ठ नं 4 पर भी उपरोक्त ज्यों का त्यों वर्णन है।

  • पवित्र पुस्तक ‘सच्चखण्ड की सड़क‘ पृष्ठ नं. 226 ‘‘संतों का देश सच्चखण्ड या सतलोक है, उसी को सतनाम- सतशब्द-सारशब्द कहा जाता है।‘‘

विशेष:- उपरोक्त व्याख्या ऐसी लगी जैसे किसी ने जीवन में न तो शहर देखा, न कार देखी और न पैट्रोल देखा है, न ड्राईवर का ज्ञान हो कि ड्राईवर किसे कहते हैं और वह व्यक्ति अन्य साथियों से कहे कि मैं शहर में जाता हूँ, कार में बैठ कर आनंद मनाता हूँ। फिर साथियों ने पूछा कि कार कैसी है, पैट्रोल कैसा है और ड्राईवर कैसा है, शहर कैसा है? उस गुरु जी ने उत्तर दिया कि शहर कहो चाहे कार एक ही बात है, शहर भी कार ही है, पैट्रोल भी कार को ही कहते हैं, ड्राईवर भी कार को ही कहते हैं, सड़क भी कार को ही कहते हैं।

आओ विचार करें - सतपुरुष तो पूर्ण परमात्मा है, सतनाम वह दो मंत्र का नाम है जिसमें एक ओ3म् + तत् सांकेतिक है तथा इसके बाद सारनाम साधक को पूर्ण गुरु द्वारा दिया जाता है। यह सतनाम तथा सारनाम दोनों स्मरण करने के नाम हैं। सतलोक वह स्थान है जहाँ सतपुरुष रहता है। पुण्यात्माएं स्वयं निर्णय करें सत्य तथा असत्य का।

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