अल्लाह पृथ्वी पर आता है या नहीं

  1. मुसलमान धर्म के मौलानाओं की शंका का समाधान
  2. बाखबर कौन है? अल्लाह का नाम क्या है? (Who is Baakhabar)
  3. नबी मुहम्मद की (मेराज) आसमान यात्रा पर मतभेद (Discord on Al Miraj)
  4. मुहम्मद साहब के मेआराज (Ascent of Muhammad to Heaven on Buraq - Al Miraj)
  5. परमात्मा के लिए कुछ भी असंभव नहीं है

(अध्याय नं. 2)

’’अल्लाह पृथ्वी पर आता है या नहीं‘‘

  • मुसलमान धर्म के उलमा (विद्वान) कहते हैं कि अल्लाह ताला धरती के ऊपर मानव सदृश कभी नहीं आता। जैसा हिन्दू धर्म की पुस्तक श्रीमद्भगवत गीता के अध्याय 4 के श्लोक 7-8 में कहा है। गीता अध्याय 4 श्लोक 7:-

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारतः।
अभ्युत्थानम् धर्मस्य तदा आत्मानाम् सृजामि अहम।।7।।

अर्थात् हे भारत (अर्जुन)! जब-जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता है और धर्म की हानि होती है, तब-तब मैं अपने अंश अवतार पैदा करता हूँ। वे पृथ्वी पर जन्म लेते हैं।

गीता अध्याय 4 श्लोक 8:-

परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।8।।

अर्थात् साधु-महापुरूषों का उद्धार करने के लिए, पापकर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह स्थापना करने के लिए अपने अवतार उत्पन्न करता हूँ। यह हम (मुसलमान) नहीं मानते।

मुसलमान धर्म प्रचारकों का कहना है कि जैसे इंजीनियर ने DVD Player बना दिया। उसको चलाने-समझने के लिए User Manual लिखकर दे दिया। Manual को पढ़ो और DVD Player चलाओ। इंजीनियर किसलिए आएगा?

यानि परमात्मा (अल्लाह) ने मानव (स्त्री-पुरूष) बनाया। फिर धर्मग्रंथ जैसे पवित्र कुरआन, बाईबल (तौरेत, जबूर तथा इंजिल) अल्लाह ने manual भेज दिए। इनको पढ़ो और अपने धर्म-कर्म करो।

दास (रामपाल दास) का तर्क:- यदि manual को जन-साधारण नहीं समझ पाता और उसका DVD Player काम नहीं करता तो इंजीनियर उसे manual समझाने आता है। जैसे अल्लाह कबीर ने सूक्ष्मवेद रूपी manual काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) के पास भेजा था। इसने सूक्ष्मवेद का अधूरा ज्ञान चार वेदों, गीता, कुरआन, जबूर, तौरेत तथा इंजिल, इन चार किताबों आदि ग्रंथों में भेज दिया। उस अधूरे ज्ञान रूपी manual को भी ठीक से न समझकर सर्व धर्मों के व्यक्ति शास्त्रों के विपरित साधना करने लगे तो कादर अल्लाह यानि इंजीनियर सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान (सूक्ष्मवेद) रूपी manual लेकर आया था और युगों-युगों में आता है। अच्छी आत्माओं को मिलता है। उनकी भक्ति में उलझन को सुलझाता है। उनको यथार्थ अध्यात्म ज्ञान बताता है। फिर वे संत अपनी गलत साधना को त्यागकर सत्य भक्ति करके मोक्ष प्राप्त करते हैं।

{कुरआन मजीद की सूरः अल हदीद-57 की आयत नं. 26-27 में कुरआन ज्ञान देने वाले ने कहा है कि ‘‘रहबानियत (सन्यास) की प्रथा उन्होंने (कुछेक साधकों ने) खुद आविष्कृत की। हमने उनके लिए अनिवार्य नहीं किया। मगर अल्लाह की खुशी यानि परमात्मा से मिलने की तलब में उन्होंने खुद ही यह नई चीज निकाली।’’ यह उन मुसलमान फकीरों के लिए कहा है जिनको कादर अल्लाह अपना नबी आप बनकर आता है और नेक आत्माओं को मिलता है। उनको अल्लाह की इबादत का सही तथा सम्पूर्ण ज्ञान देता है। फिर वे उस साधना को करने लगते हैं। अपने धर्म में प्रचलित इबादत त्याग देते हैं। उनका विरोध उन्हीं के धर्म के व्यक्ति करने लगते हैं। जिस कारण से वे सन्यास ले लिया करते थे। काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) प्रत्येक धर्म के व्यक्तियों को भ्रमित करके उनके अपने धर्म ग्रन्थों के विपरित इबादत बताता है। अपने दूत भेजता रहता है। तप करने की प्रेरणा करता है। कठिन साधना करने की प्रेरणा करता है।

परमात्मा प्राप्ति की तड़फ में साधक वह करने लगता है। पूर्ण परमात्मा (कादर अल्लाह) उनको मिलता है। यथार्थ आसान नाम जाप करने की विधि इबादत (पूजा) बताता है।}

उदाहरण के लिए:-

  1. शेख फरीद जी पहले मुसलमान धर्म में प्रचलित साधना करते थे। फिर एक तपस्वी फकीर के बताए अनुसार गलत साधना कर रहे थे। स्वयं अल्लाह ताला जिंदा बाबा के वेश में उनको मिले। यथार्थ भक्ति विधि बताई। उनका कल्याण हुआ। {पढ़ें शेख फरीद के विषय में अध्याय अल-खिज्र (अल-कबीर) की जानकारी में पृष्ठ 196 पर।}
  2. धर्मदास जी (बांधवगढ़) को मिले जो श्री राम, श्री कृष्ण (श्री विष्णु) तथा श्री शिव जी को पूर्ण परमात्मा मानकर इन्हीं की भक्ति पर दृढ़ था। पूर्ण ब्रह्म जिंदा बाबा के वेश में मथुरा शहर (भारत) में तीर्थ पर मिले। उस सच्चे मालिक की (अपनी) जानकारी दी। सत्य साधना की विधि बताई। धर्मदास जी ने अपनी गलत धारणा तथा गलत साधना त्यागकर सत्य साधना परमात्मा कबीर जी द्वारा बताई करके मानव जीवन धन्य किया।
  3. दादू दास जी को मिले। उनको सत्य भक्ति बताई। उनका कल्याण किया।
  4. स्वामी रामानंद जी महर्षि को काशी शहर (भारत) में मिले। जब अल्लाह ताला कबीर जी लीला करने के लिए धरती पर एक सौ बीस वर्ष रहे। स्वामी रामानंद जी ने अधूरा manual यानि चारों वेदों व गीता वाला ज्ञान भी ठीक से नहीं समझा था। गलत अर्थ कर रखे थे। गलत साधना श्री विष्णु जी को पूर्ण परमात्मा मानकर कर रहा था। समर्थ परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानंद जी को वेदों से व गीता से ही समझाया कि यदि आप मानते हैं कि गीता श्री कृष्ण ने कहा तो गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 10 श्लोक 2 में गीता ज्ञान दाता अपने को जन्म-मृत्यु के चक्र में बता रहा है। वह नाशवान है।

गीता अध्याय 2 श्लोक 17, अध्याय 15 श्लोक 17, अध्याय 18 श्लोक 46, 61-62 में तथा अध्याय 8 श्लोक 3, 8-10 तथा 20-22 में अपने से अन्य अविनाशी तथा पूर्ण मोक्षदायक परम अक्षर ब्रह्म के विषय में बताया है तथा उसी की शरण में जाने को कहा है।

स्वामी रामानंद जी वेदों तथा गीता यानि डंदनंस को ठीक से नहीं समझ पाए थे। उस manual को ठीक से समझाने के लिए अल्लाह ताला सृष्टि सृजनकर्ता कबीर जी को धरती पर आना पड़ा तथा सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान (सूक्ष्मवेद) बताना पड़ा। तब स्वामी रामानंद जी ने हिन्दू धर्म वाली गलत साधना त्यागकर यथार्थ भक्ति करके कल्याण करवाया।

  • संत गरीबदास जी {गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर, हरियाणा (भारत)} को पूर्ण ब्रह्म एक जिंदा बाबा के वेश में सतलोक (सनातन परम धाम) से चलकर पृथ्वी पर आकर मिले। उनको ऊपर आसमान में उस अमर लोक में ले गए जहाँ पर कादर अल्लाह रहता है। (तख्त) सिंहासन पर बैठता है। अपना गवाह बनाकर वापिस शरीर में छोड़ा तथा यथार्थ अध्यात्म ज्ञान यानि सम्पूर्ण व सही manual दिया जो संत गरीबदास जी की वाणी यानि अमर ग्रंथ में लिखा है जिसके आधार से यह दास (लेखक) सब धार्मिक क्रिया करता तथा करवाता है।
  • बाईबल में (जो जबूर, तौरेत तथा इंजिल तीन पुस्तकों का संग्रह है, उसमें) पृष्ठ 30 पर उत्पत्ति अध्याय 26:1-3 में प्रमाण है कि यहोवा (परमात्मा यानि अल्लाह) ने इसहाक को दर्शन देकर कहा कि ’’मिस्र में मत जा। जो देश मैं तुझे बताऊँ, उसी में रह। मैं तेरे संग रहूँगा।‘‘
  • बाईबल में उत्पत्ति अध्याय में पृष्ठ 17 पर ’’वाचा का चिन्ह खतना‘‘ में अध्याय 17 श्लोक 1- 2 में लिखा है:- जब अब्राम निनानवे वर्ष का हो गया, तब योहवा (प्रभु) ने उसको दर्शन देकर कहा, ’’मैं सर्व शक्तिमान हूँ। मेरी उपस्थिति में चल और सिद्ध होता जा।‘‘
  • तैमूरलंग को अल्लाह पृथ्वी पर मिले:- तैमूरलंग मुसलमान बहुत निर्धन था। उसकी माता जी बहुत धार्मिक थी। अतिथि व साधु-बाबाओं की सेवा करती थी। कई बार स्वयं भूखी रह जाती थी। अतिथियों व राह चलते लोगों को रोटी अवश्य खिलाती थी। एक दिन ऐसा ही आया कि घर में एक रोटी का आटा था। माता जी रोटी बनाकर बेटे तैमूरलंग के लिए जंगल में लेकर गई थी जो साहूकारों की भेड़-बकरियाँ चराया करता था। माता स्वयं भूखी रही। बेटे के लिए रोटी ले गई थी। तैमूरलंग खाना खाने लगा तो उसी समय अल्लाह ताला एक जिंदा साधु के वेश में आया और रोटी माँगी। कहा, बच्चा! कई दिन से भूखा हूँ। बहुत लोगों से भोजन माँगा, किसी ने नहीं दिया, जान जाने वाली है। {तैमूरलंग में माता वाले गुण थे। अच्छे संस्कार माता-पिता से मिले थे। पिता का इंतकाल हो चुका था।} तैमूरलंग ने उसी समय रोटी उठाकर साधु बाबा को दे दी। अल्लाह ताला कबीर जी ने रोटी खाई। जल पीया। जब अल्लाह रोटी खा रहा था, तब दोनों माँ-बेटे ने अर्ज की, हे बाबा! हम बहुत निर्धन हैं। इतना दे दो कि हम भी भूखे ना रहें, अतिथि न भूखा जाए। अर्ज कई बार की। खाना खाकर जिंदा वेशधारी अल्लाह ने एक सांकल (chain) जो गाय, भैंस या बकरे को खूँटे या पेड़ से बाँधने के लिए रस्से के स्थान पर प्रयोग की जाती है जो तैमूरलंग के पास ही रखी थी, उठाई। उसको तीन बार मोड़ा और प्यार से तैमूरलंग की कमर में गिनकर सात मारी। (जैसे एक, दो, तीन .... सात।) फिर लात मारी, मुक्के मारे। तैमूरलंग की माता ने विचार किया हमने बार-बार अर्ज की है, बाबा चिड़ गया। नाराज होकर लड़के को पीट रहा है। माई ने कहा, हे महाराज! हे अल्लाह की जात! मेरे बेटे ने क्या गलती कर दी? माफ करो। आपका बच्चा है। तब जिंदा वेशधारी बाबा ने कहा, माई! जो सात सांकल मारी हैं, तेरे बेटे को सात पीढ़ी का राज बख्श दिया है। जो लात-मुक्के मारे हैं, ये सात पीढ़ी के बाद तुम्हारा राज टुकड़ों में बंट जाएगा। यह कहकर जिंदा बाबा रूप अल्लाह अंतध्र्यान हो गए। समय आने पर तैमूरलंग राजा बना। भारत पर भी कब्जा किया। तैमूरलंग से लेकर औरंगजेब तक सात पीढ़ी ने दिल्ली पर राज किया। फिर राज टुकड़ों में बंट गया। इतिहास भी साक्षी है।
  • नानक देव जी (सिख धर्म के प्रवर्तक) को भी अल्लाह अकबर (कबीर परमेश्वर) मिले। श्री नानक देव जी, श्री रामचन्द्र, श्री कृष्ण अर्थात् विष्णु जी के परम भक्त थे। हिन्दू धर्म में जन्म हुआ था। श्रीमद्भगवत गीता का पाठ किया करते थे। ब्रजलाल पांडे उनको गीता पढ़ाया करता था। परमेश्वर कबीर जी उनको सुल्तानपुर लोधी शहर के पास बेई दरिया पर सुबह के समय मिले तथा सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान रूपी manual दिया। सच्चखंड (सतलोक) लेकर गए और वापिस छोड़ा। उसके पश्चात् श्री नानक देव जी ने हिन्दू धर्म में प्रचलित सब साधना त्यागकर एक परमेश्वर (सतपुरूष) की भक्ति करके जीवन धन्य बनाया।

उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध हुआ कि अल्लाह ताला कबीर सबका उत्पत्तिकर्ता पृथ्वी पर मानव की तरह भ्रमण करता है। यथार्थ अध्यात्म ज्ञान बताता है। इसी से संबंधित प्रकरण ’’अल-खिज्र (अल-कबीर) की जानकारी‘‘ अध्याय में इसी पुस्तक के पृष्ठ नं. 196 पर विस्तारपूर्वक लिखा है।

’’मुसलमान धर्म के मौलानाओं की शंका का समाधान‘‘

’’बाखबर कौन है? अल्लाह का नाम क्या है?‘‘ (Who is Baakhabar)

  • गुरूदेव रामपाल दास जी से सेवकों का निवेदन है कि हम जब मुसलमान विद्वानों से ज्ञान चर्चा करते हैं। वे प्रश्न करते हैं। उनका हम सही जवाब नहीं दे पाते। कृपया हमें बताएँ कि हम क्या उत्तर दें। प्रश्न इस प्रकार हैं:-

प्रश्न:- यदि खुदा साकार यानि जिस्मानी रूप है और उनका नाम कबीर है। इसका क्या प्रमाण है?

  • रामपाल दास:- उनको इस प्रकार उत्तर दो:-

उत्तर:- खुदा साकार है। कुरआन मजीद में खुदा को निराकार नहीं बताया गया है। परन्तु मुस्लिम धर्म गुरूओं को खुदा का इल्म ना होने के कारण इस परवरदिगार को निराकार अर्थात् बेचून बताया है। कुरआन मजीद में खुदा को जिस्मानी अर्थात् दिखाई देने वाला साकार खुदा बताया गया है। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें इसी पुस्तक में अध्याय ’’हजरत आदम से हजरत मुहम्मद तक‘‘ में पृष्ठ 143 पर।

मिशाल के तौर पर देखिए:-

कुरआन मजीद की सूरः लुकमान-31 आयात नं. 27-29:- इन आयतों में खुदा को सुनने वाला अर्थात् देखने वाला बताया है।

कुरआन मजीद की सूरः हज-22 आयत नं. 61:- इसमें खुदा को बड़ी शान और बड़ा (कबीर) बताया गया है। अल्लाह सुनता तथा देखता है।

सूरः मोअमिन-40 आयत नं. 12 में कबीर का अर्थ बड़ा किया है जबकि कबीर ही लिखना था। इन आयतों से यह साबित होता है कि अल्लाह साकार अर्थात् जिस्मानी है। इन इल्म न रखने वाले मुस्लिम धर्मगुरुओं ने खुदा के असली नाम कबीर का अर्थ बड़ा कर दिया है जो कि गलत है। मुस्लिम प्रवक्ता यह तो स्वीकार करते हैं कि अल्लाह एक बार धरती के ऊपर, जल के ऊपर मंडराता था। धरती व आसमान व सब पेड़-पौधे व मानव, पशु-पक्षी आदि की उत्पत्ति करके ऊपर आसमान पर तख्त पर जा बैठा। इससे तो स्वतः परमेश्वर साकार मानव जैसा सिद्ध होता है। (तख्त) सिंहासन पर मानव ही बैठता है। बाईबल ग्रंथ के उत्पत्ति अध्याय में स्पष्ट ही है कि उस सबकी उत्पत्ति करने वाले कादर अल्लाह ने मनुष्य को अपनी शक्ल-सूरत जैसा बनाया यानि अपने स्वरूप जैसा उत्पन्न किया। इससे भी अपने आप अल्लाह (God) नराकार (मानव जैसे आकार का) सिद्ध हुआ। यह भी सिद्ध हुआ कि खुदा साकार अर्थात् जिस्मानी रूप है। उसका नाम कबीर है जिसका कुरआन के अनुवादकों ने बड़ा अर्थ किया है।

मिशाल के तौर पर:-

सूरः मुअ्मिन्-40 आयत 12:- जालिकुम् बिअन्नहू इजा दुअि-यल्लाहु बहदहू क-फर्तुम व इंय्युश्-रक् बिही तुअ्मिनू फल्हुक्मु लिल्लाहिल् अलिय्यिल्-कबीर।।12।।

मुसलमानों का किया अनुवाद:- यह इसलिए कि जब तन्हा खुदा को पुकारा जाता था तो तुम इंकार कर देते थे। अगर उसके साथ शरीक मुकरर किया जाता था तो मान लेते थे। तो हुक्म तो खुदा ही का है जो (सबसे) ऊपर (और सबसे) बड़ा है।(12)

सूरः मोमिन्-40 आयत 12 का रामपाल द्वारा किया सही अनुवाद:- (मरने के पश्चात् कयामत के दिन जो नरक में डाले जाएँगे, तब वे अपनी गलती को मानकर क्षमा चाहेंगे तो उनको कहा जाएगा कि) जब तुमको एक खुदा की इबादत के लिए कहा जाता था तो तुम इंकार कर देते थे। खुदा के सिवाय किसी अन्य देव या मूर्ति की पूजा के लिए कहते थे तो मान लेते थे। वह हुक्म (खुदा के सिवा अन्य को न पूजने का हुक्म) तो उस सर्वोपरि खुदा कबीर का ही है।(12)

भावार्थ:- मूर्ति पूजकों को कबीर खुदा का हुक्म बताया जाता था कि एक उसी कबीर कादर खुदा की इबादत करो तो तुम मना कर देते थे। आज जहन्नम में डालने का हुक्म (आदेश) भी उसी सर्वोच्च खुदा कबीर ही का तो है। मुसलमान अनुवादकों ने ‘‘कबीर’’ जो नाम खुदा का है, उसका अर्थ बड़ा कर दिया। जबकि ‘‘सबसे ऊपर खुदा’’ का अर्थ भी बड़ा होता है। फिर कबीर का अर्थ करना उचित नहीं है। सबसे ऊपर का अर्थ बड़ा ही होता है तो ’’सबसे ऊपर बड़ा‘‘ अर्थ करना अनुचित है। यह सबसे ऊपर वाले यानि सबसे बड़े खुदा कबीर का हुक्म ही है। यह अर्थ सही है।

और देखें:-

सूरः सबा-34 आयत नं. 23:- व ला तन्फअुश-शफाअतु अिन्दहू इल्ला लिमन् अजि-न लहू हत्ता इजा फुज्जि-अ अन् कुलूबिहिम् कालू माजा का-ल रब्बुकुम् कालुल्हक्-क व हुवल्- अलिय्युल्-कबीर।।23।।

मुसलमान विद्वानों द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद (सूरः सबा-34 आयत नं. 23):- और खुदा के यहाँ (किसी के लिए) सिफारिश फायदा न देगी। मगर उसके लिए जिसके बारे में वह इजाजत बख्शे, यहाँ तक कि जब उनके दिलों से बेचैनी दूर कर दी जाएगी तो कहेंगे कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या फरमाया है? फरिश्ते कहेंगे कि हक (फरमाया) है। और वह ऊँचे मर्तबे वाला (और) बहुत बड़ा है।(23)

इसका सही अनुवाद:- (रामपाल दास द्वारा किया गया)

सूरः सबा-34 आयत नं. 23:- और खुदा के यहाँ कोई सिफारिश लाभ नहीं देगी। जो जैसे कर्म करके आया है, उसे उसका फल स्वतः मिलेगा। मगर उसके लिए जिसके बारे में वह इजाजत बख्शे। यहाँ तक कि जब उनके दिलों की बेचैनी दूर कर दी जाएगी तो वे कहेंगे कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या फरमाया है? फरिश्ते कहेंगे कि हक (फरमाया) है यानि सबको सबके किए कर्म का फल दिया जाए। वह कबीर परवरदिगार बहुत ऊँचे मर्तबे वाला है यानि वह कबीर अल्लाह सबसे ऊपर शक्ति वाला है यानि कबीर खुदा सर्व शक्तिमान है।(23)

अब देखें सूरः मुल्क-67 आयत नं. 9:-

आयत नं. 9:- कालू बला कद् जा-अना नजीरून् फ-कज्जब्ना व कुल्ना मा नज्ज-लल्लाहु मिन् शैइन् इन् अन्तुम् इल्ला फी जलालिन् कबीर।।9।।

मुसलमान विद्वान द्वारा किया गया अनुवाद:-

आयत नं. 9:- वे कहेंगे क्यों नहीं, जरूर हिदायत करने वाला आया था। लेकिन हमने उसको झुठला दिया और कहा कि खुदा ने तो कोई चीज नाजिल ही नहीं की। तुम तो बड़ी गलती में (पड़े हुए) हो।(9)

{इस अनुवादकर्ता ने इस आयत के अनुवाद में भी ‘‘कबीर’’ का अर्थ ‘‘बड़ा’’ किया है।}

सूरः मुल्क-67 आयत नं. 9:- (यथार्थ अनुवाद रामपाल दास द्वारा):- आयत नं. 9 से पहले वाली आयतों में बताया है कि जो इस कुरआन का ज्ञान बताने वाले नबी से लोग कहते हैं कि तू झूठ बोल रहा है। और अल्लाह की हिदायतों की पालना न करके गलत साधना करके मरेंगे। फिर वे नरक (दोजख) में डाले जाएँगे तो उनसे दोजख के दरोगा (थानेदार) पूछेंगे कि क्या तुम्हारे पास कोई हिदायत देने वाला रसूल (messenger) नहीं आया था। तुमने गलत काम किए और कष्ट भोगने आ गए।

इस आयत नं. 9 में बताया है कि ‘‘वे कहेंगे कि हिदायत देने वाला यानि नबी तो आया था। हमने उसको यह कहकर झुठला दिया कि कबीर खुदा ने कोई चीज (जैसा तू बता रहा है) नाजिल नहीं की है, तुम गलत कह रहे हो।

विशेष:- कबीर अरबी भाषा का शब्द माना जाता है जिसका अर्थ बड़ा है। वैसे कोई भी शब्द है, उसका अर्थ तो होता ही है। जैसे ‘‘सूरज, प्रकाश’’ एक देश के राजा का नाम था। उसकी महिमा में कहा था कि राजा सूरज प्रकाश ने अपने नागरिकों के भले के लिए अनेकों काम किए। न्यायकारी था, नेक राजा था। यह महिमा दोहों, साखियों या कविता रूप में थी। यदि कोई उसका अनुवाद करे और उसके अनुवाद में ‘‘सूरज प्रकाश’’ का अर्थ ‘‘सूर्य की रोशनी’’ कर दे और ‘‘सूरज प्रकाश’’ न लिखे तो यह कैसे पता चलेगा कि उस देश के राजा का नाम क्या है जिसने जनहित के कार्य किए थे। ऊपर की आयतों में यदि अल्लाह से संबंधित प्रकरण नहीं होता, अन्य प्रकरण कोई नशा निषेध या धर्म-कर्म का वर्णन होता और उसमें कबीर शब्द होता और उसका अर्थ ‘‘बड़ा’’ किया होता तो ठीक था। परंतु इसमें परमात्मा का जिक्र है। इसलिए कबीर को कबीर ही लिख दिया जाए तो अल्लाह का नाम स्पष्ट होता जाता है जो अनिवार्य है और ग्रंथ की सार्थकता स्पष्ट होती है। और पढ़ें:-

सूरः फातिर (फातिह)-1 आयत नं. 1-7:-

बिस्मिल्ललहिर्रहमानरहीम

इसमें खुदा को रहीम कहा है। रहीम का मतलब रहम करने वाला। इस आयत का हिन्दी अनुवाद:- ‘‘शुरू करता हूँ खुदा का नाम लेकर, जो बड़ा मेहरबान व निहायत रहम वाला है।’’

इसमें कबीर नाम मूल पाठ में नहीं है, परंतु उसका नाम कबीर है, यह भी लिखना चाहिए। संत रामपाल जी महाराज बाखबर द्वारा बताए ज्ञान को समझकर आज बहुत बड़ा जन समूह अपने रहमान कादर रब (प्रभु) कबीर को पहचानकर सत्भक्ति कर रहा है अर्थात् वे सच्ची इबादत कर रहे हैं। इस आयत का सही तर्जुमा अर्थात् अनुवाद इस प्रकार है:- शुरु करता हूँ खुदा का नाम लेकर, जो कबीर बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है। वो खुदा कबीर है जो सभी चीजों का जानकार है तथा जिसमें ये गुण हैं।

विशेष:- सूरः फातिह-1 में 7 आयत हैं। मुसलमान समाज कहता है कि यह कुरआन का ज्ञान जिसने भेजा है, वह हमारा रब है। उसका दिया (बताया) इल्म (ज्ञान) जबरील फरिस्ता बिन मिलावट व फेर-बदल किए ज्यों का त्यों लाया और हजरत मुहम्मद को दिया।

कुरआन ज्ञान दाता ने कहा है कि ’’शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करने वाला है।‘‘ (यदि इसके तर्जुमा में ऐसे लिख दिया जाए कि ’’शुरू कबीर अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम वाला है‘‘, तो और सार्थकता बन जाती है।)

  • आयत नं. 1:- तारीफ (प्रशंसा) अल्लाह के लिए जो सारे जहान का रब (सबका मालिक) है।
  • आयत नं. 2:- (वह) बड़ा ही मेहरबान और दया करने वाला है।
  • आयत नं. 3:- अंतिम न्याय के दिन का मालिक है। (सबके कर्मों का लेखा वही करता है, उसी के अधिकार में है।)
  • आयत नं. 4:- हम तेरी ही इबादत (पूजा) करते हैं और तुझसे ही मदद चाहते हैं।
  • आयत नं. 5:- हमको सीधा मार्ग दिखा।
  • आयत नं. 6:- उन लोगों का मार्ग जो तेरे कृपा पात्र हुए।
  • आयत नं. 7:- जो तेरे (गजब) प्रकोप के भागी नहीं हुए हैं, जो भटके हुए नहीं हैं।

विशेष:- इस सूरः में कुरआन ज्ञान देने वाला अपने से अन्य (कादर अल्लाह) सबके मालिक की इबादत करने को कह रहा है। उसकी महिमा बता रहा है कि मैं उसकी प्रशंसा कर रहा हूँ जो सारे जहान का (रब) पालनहार सृजनहार मालिक है। वह (कबीर) बड़ा मेहरबान है और दया करने वाला है। सब कर्मों का हिसाब वही करता है। उसी से प्रार्थना की है कि तेरी इबादत करने वालों को सच्चा भक्ति का मार्ग बता।

विचार करें:- अल्लाह का कोई नाम भी है, वह नाम लिखना भी अनिवार्य है। जैसे प्रधानमंत्री की महिमा बताएँ तो उसका नाम भी बताना होता है। मुसलमान प्रचारक यही गलती किए हुए हैं। जिन साधकों यानि संतों-महापुरूषों को वह अल्लाह आसमान से अपने तख्त (सिंहासन) से चलकर पृथ्वी पर आकर मिला, उनको यथार्थ ज्ञान बताया। अपना वह लोक दिखाया जिसमें उसका (तख्त) सिंहासन है जो सब जन्नतों से उत्तम जन्नत (सतलोक) है।

उन संतों को फिर पृथ्वी पर छोड़ा। उन महान आत्माओं ने आँखों देखा अल्लाह का स्वरूप नाम तथा स्थान बताया है। हमने उन महापुरूषों पर विश्वास करना चाहिए।

हजरत मुहम्मद को जबरील जिस अल्लाह के पास ले गया, उसने तो नबी जी को दर्शन भी नहीं दिए। उस पर्दे के पीछे वाले अल्लाह के विषय में उन महात्माओं ने बताया कि वह ज्योति निरंजन काल है जो सबको अपने जाल में फँसाकर रखे हुए है। यह जीव को भ्रमित करके रखता है। स्पष्ट ज्ञान नहीं बताता। अधूरा ज्ञान बताता है। इसको श्राप लगा है एक लाख मानव को प्रतिदिन खाने का। अधिक जानकारी सृष्टि रचना नामक अध्याय में इसी पुस्तक में पढ़ें, सब स्पष्ट हो जाएगा।

  • संत रामपाल दास गुरूदेव जी से निवेदन है कि हम किसी मौलवी से ज्ञान करते हैं तो वे प्रश्न करते हैं जिनका उत्तर हम ठीक से नहीं दे पाते। कृपया निम्न प्रश्नों का जवाब बताएँ, हम क्या दें?

प्रश्न:- यदि खुदा कबीर है तो आप बाखबर संत रामपाल जी की पूजा अर्थात् इबादत क्यों करते हो?

बहुत से हमारे मुस्लिम भाईयों का कहना है कि यदि खुदा कबीर साहेब है तो आप संत (बाखबर) रामपाल जी महाराज की फोटो की इबादत क्यों करते हो।

  • रामपाल दास:- उनका उत्तर इस प्रकार दो:-

उत्तर:- पहले आप यह समझें कि पूजा तथा सत्कार में क्या भेद है:-

सुनो! जैसे पत्नी अपने पति के लिए समर्पित होती है। उसकी पूजा करती है। परंतु सत्कार यथोचित सबका करती है। सलाम सबको बोलती है। किसी को सत्कार देना पूजा में नहीं गिना जाता। जिस महापुरूष ने सच्चे खुदा की सच्ची राह बताई है, उसने मानव का महाउपकार किया है। उसका सत्कार करना हमारा फर्ज बनता है।

आप (मुसलमान) चार किताबों को तो सत्य मानते हैं:- 1) कुरआन 2) तौरेत 3) जबूर 4) इंजिल {बाईबल में तीन पुस्तक तौरेत, जबूर तथा इंजिल इकठ्ठी जिल्द की गई हैं। बाईबल कोई अलग ग्रंथ नहीं है।} आप जी ने बाईबल में सृष्टि रचना पढ़ी है जो तौरेत पुस्तक में लिखी है। उसमें वर्णन आता है कि परमेश्वर ने ’’आदम‘‘ को मिट्टी से उत्पन्न किया। फिर सब फरिस्तों को बुलाया तथा कहा कि ’’आदम‘‘ आदमी को सजदा करो। एक इबलिस नाम के फरिस्ते ने सजदा नहीं किया तथा कहा कि यह तो मिट्टी से बना आदमी है। मैं इसके आगे सिर नहीं झुकाऊँगा। बार-बार कहने पर भी उसने परमेश्वर का हुक्म नहीं माना तो उसे जन्नत से निकाल दिया। वह शैतान कहलाया। अन्य सब फरिस्तों ने परमेश्वर के हुक्म का पालन किया। वे जन्नत में सुखी हैं। हम कादर खुदा कबीर के हुक्म से संत रामपाल जी जो हमारे गुरू हैं, को दण्डवत प्रणाम करते हैं। उसी परमेश्वर (खुदा कबीर) का सूक्ष्मवेद (कलामे कबीर) में आदेश है जो इस प्रकार है:-

कबीर, गुरू गोबिंद कर जानियो, चलियो आज्ञा मांही।
मिले तो दण्डवत् बंदगी, नहीं पल-पल ध्यान लगाहीं।।
कबीर, गुरू मानुष कर जानते, ते नर कहिये अंध।
होवें दुःखी संसार में, आगे यम के फंद।।

अर्थात् अल्लाह कबीर सृष्टि रचनहार, पालनहार का आदेश है कि अपने गुरू जी को (गोबिन्द) खुदा मानना और उसकी आज्ञा का पालन करना। जब उनके दर्शन करने आश्रम में जाओ या वे मार्ग में मिल जाएँ तो अपने गुरू को दण्डवत् प्रणाम करो। बाकी समय में उनके अहसान को याद रखो। जो गुरू जी को मनुष्य मानते हैं, परमात्मा के तुल्य सम्मान नहीं देते हैं, वे तत्त्वज्ञान नेत्रहीन (अंधे) हैं। वे संसार में भी दुःखी रहेंगे। फिर यमराज के फंद यानि जहन्नम में गिरेंगे। गुरू जी का अहसान बताया है कि:-

कबीर, सतगुरू के उपदेश का सुनिया एक विचार।
जै सतगुरू मिलते नहीं तो जाते यम द्वार।।
कबीर, यमद्वार में दूत सब, करते खेंचातान।
उनसे कबहू ना छूटता, फिर फिरता चारों खान।।
कबीर, चार खानी में भ्रमता, कबहू ना लगता पार।
सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरू के उपकार।।
कबीर, सात समुद्र की मसि करूँ, लेखनी करूँ बनराय।
धरती का कागज करूँ, गुरू गुण लिखा न जाय।।

अर्थात् सतगुरू जी से दीक्षा लेने से क्या लाभ हुआ और यदि सतगुरू ना होता तो फिर क्या हानि होती, वह बताई है कि यदि सतगुरू जी नहीं मिलते तो दोजख की आग में जलते। यम के दूत पिटाई करते। फिर पशु-पक्षी, कीड़े आदि के जीवनों में कष्ट भोगते।

ये सब कष्ट सतगुरू जी के उपकार से समाप्त हो गए। ऐसे सच्चे पीर का गुण लिखने लगूँ तो सारे वृक्षों की कलम घिस जाए। यदि सात समुद्रों की जितनी मसि (ink) हो, वह समाप्त हो जाए और धरती जितने क्षेत्रफल का कागज लूँ, वह समाप्त हो जाए तो भी गुरू जी के उपकार का वर्णन नहीं हो सकता।

संत रामपाल दास जी हमारे सतगुरू (सच्चे पीर) हैं। उनका सत्कार सजदा करके करना उपरोक्त उपकार के कारण फर्ज बनता है।

गुरू जी को दंडवत् प्रणाम करने का कबीर खुदा (परमेश्वर) का आदेश (हुक्म) है। उसको पालन करना अनिवार्य है, नहीं तो शैतान की पदवी मिलेगी। आदेश का पालन करने से जन्नत मिलेगी। इसलिए हम अपने सतगुरू को दण्डवत् करते हैं।

मुसलमान भाई कहते हैं कि हमारे खुदा ने हजरत मुहम्मद जी पर कुरआन मजीद का ज्ञान उतारा। हम उस अल्लाह को सजदा (सिर झुकाकर जमीं पर रखकर सलाम) करते हैं। मुसलमान भाई विचारें कि कुरआन मजीद के ज्ञान दाता ने सूरः फुरकान-25 आयत नं. 52-59 में अपने से अन्य खुदा के विषय में बताया है कि जिसने सारी कायनात को पैदा किया। वह अपने भक्तों के पाप माफ करता है। उसी ने मानव पैदा किए। फिर किसी को दामाद, बहू बनाया। मीठा, खारा जल पृथ्वी में भिन्न-भिन्न भरा। वह छः दिन में सब रचना करके सातवें दिन तख्त पर जा बैठा। उसकी खबर किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी संत) से पूछो। इससे स्पष्ट है कि कुरआन मजीद (शरीफ) का ज्ञान बताने वाला बाखबर नहीं है। मुसलमान भाई उस अल्प ज्ञान वाले को सिर झुकाकर सलाम (सजदा) करते हैं। यदि हम बाखबर संत रामपाल जी को सजदा (दण्डवत् करके) करते हैं तो इसमें क्या दोष है?

प्रश्न:- क्या हजरत मुहम्मद (सल्ल.) बाखबर नहीं हैं? क्या इनके द्वारा बताई गई इबादत जैसे रोजे, नमाज, जकात देना इनके करने से जन्नत में नहीं जाया जाएगा, स्पष्ट कीजिए?

उत्तर:- इसका उत्तर यह है कि कुरआन की सूरः फुरकानि-25 आयत नं. 52-59 में कुरआन का ज्ञान देने वाला अल्लाह स्पष्ट कर रहा है जिसने सब सृष्टि के सब जीव उत्पन्न किए। वह कादर अल्लाह है। उसने छः दिन में सृष्टि की रचना की। फिर आसमान पर तख्त पर जा बैठा। उसकी खबर किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी) संत से पूछो।

हजरत मुहम्मद जी को तो कुरआन वाला ज्ञान था। जब हजरत मुहम्मद का खुदा ही बाखबर नहीं है तो उसका भेजा नबी बाखबर कैसे हो सकता है? जब ज्ञान ही अधूरा (incomplete) है तो जन्नत में कैसे जाया जा सकता है? जब बाखबर नहीं है तो जन्नत में भी नहीं जा सकता। संत गरीबदास जी ने कहा है कि:-

नबी मुहम्मद नहीं बहिसत सिधाना। पीछे भूला है तुरकाना।।

अर्थात् नबी मुहम्मद ही (बहिसत) स्वर्ग नहीं गया। उसके पीछे लगकर सब (तुर्क) मुसलमान यथार्थ भक्ति मार्ग को भूले हुए हैं। वे भी जन्नत में नहीं जा सकते।

हजरत मुहम्मद (सल्ल.) कुरआन शरीफ को बोलने वाले खुदा के भेजे हुए पैगम्बर हैं ना कि अल्लाह कबीर के भेजे हुए। इसके लिए आप जी एक नजर जीवनी हजरत मोहम्मद (सल्ल.) पर डालें जिससे पता चलेगा कि हजरत मौहम्मद (सल्ल.) पाक आत्मा (रूह) को पूरी जीन्दगी दुःखों का सामना करना पड़ा। बचपन में ही अब्बू (पिता जी) अम्मी (माता जी) का साया उनके ऊपर नहीं रहा। उनके चाचा जी ने उनकी परवरिश की थी। जवान हुए तो दो बार विधवा (बेवा) हो चुकी खदीजा से निकाह हुआ। वो भी ज्यादा समय तक उनके साथ न रह सकी। तीन पुत्र तथा चार बेटी संतान हुई। उनकी आँखो के सामने उनके तीनों पुत्र भी इंतकाल को प्राप्त हुए। जिस खुदा की दिन-रात सच्चे दिल से इबादत नबी जी किया करते थे। उनके बताए कुरआन मजीद वाले ज्ञान का प्रचार करने में काफिरों के पत्थर खाए, सिर फुड़वाया। अनेकों यातनाएँ काफिरों ने दी। सब सहन करते हुए कुरआन का ज्ञान फैलाया। उस सारे संघर्ष तथा उसकी इबादत करने से हजरत मुहम्मद सल्ल. को पूरा जीवन दुःखों में गुजारना पड़ा और जीवन के आखिरी क्षणों में भी तड़फ-तड़फकर इंतकाल को प्राप्त हुए तो आप जी खुद ही अनुमान लगा सकते हो। वे काल ब्रह्म के नबी थे। खुदा कबीर (अल्लाहू अकबर) के भेजे हुए नहीं थे। इसलिए उनके द्वारा बताई गई इबादत (रोजे, नमाज और जकात देने, ईद-बकरीद मनाने आदि के करने) से जन्नत में नहीं जाया जा सकता। जन्नत में केवल एक कबीर खुदा की इबादत बाखबर संत रामपाल जी महाराज की शरण ग्रहण करके इनके द्वारा बताई भक्ति आजीवन मर्यादा में रहकर करके जन्नत में जाया जा सकता है न कि मोहम्मद सल्ल. को कुरआन ज्ञान दाता अल्लाह के द्वारा बताई गई साधना (इबादत) से।

  • संत रामपाल गुरूदेव जी से निवेदन है कि हम जब मुसलमान धर्म के मौलवियों व अन्य प्रवक्ताओं से ज्ञान चर्चा करते हैं तो वे प्रश्न करते हैं। हम क्या जवाब दें, कृपया मार्गदर्शन करें। उनके प्रश्न इस प्रकार हैं:-

प्रश्न:- बाखबर किसे कहते हैं अर्थात् कौन होता है? प्रमाण सहित बताइए।

  • (रामपाल दास) उनको इस प्रकार उत्तर दें:-

उत्तर:- सभी किताबों का इल्म और खुदा की सच्ची इबादत बताने वाले को बाखबर कहते हैं। उसे ही हिन्दु समाज (धर्म) में तत्त्वदर्शी संत, सिख समाज में वाहेगुरू, ईसाई समाज में मसीहा अर्थात् परमेश्वर का जानकार और मुस्लिम समाज में बाखबर कहते हैं। बाखबर ही हमें इस जहान में आकर खुदा कबीर की पूर्ण जानकारी तथा सच्ची इबादत का तरीका बताता है। खुदा कौन है? कैसा है? कहाँ रहता है? ये सब बाखबर ही बताता है। आज वर्तमान समय में बाखबर केवल इस जहांन में संत रामपाल जी महाराज हैं। पवित्र कुरआन मजीद से प्रमाण:-

प्रमाण नं. 1:- सूरः बकरा-2 आयत नं. 114

इसमें खुदा को बाखबर बताया गया है। जब खुदा बाखबर है तो जो बाखबर है, उसे क्या उपमा दी जाए? उसे भी उतना ही सम्मान देने का फर्ज है।

प्रमाण नं. 2:- सूरः लुकमान-32 आयत नं. 33

इस आयत में भी खुदा को जानने वाला अर्थात् बाखबर बोला गया है।

प्रमाण नं. 3:- सूरः फुरकानि-25 आयत नं. 52-59

इन आयतों में बताया है कि अल्लाह ने छः दिन में सृष्टि रची और सातवें दिन तख्त पर जा विराजा। उसके विषय में किसी बाखबर से पूछने के लिए बोला है।

उपरोक्त आयतों में जिस बाखबर के विषय में कहा गया है, वह बाखबर संत रामपाल जी महाराज ही हैं जिन्होंने वर्तमान समय में एक कादर खुदा कबीर के विषय में बताया और उनकी इबादत करने का सही तरीका बताया है जो हमारी सभी किताबों (तौरेत, जबूर, इंजिल और कुरआन) में प्रमाण है। इनसे पहले किसी भी हिन्दु गुरू या ऋषि ने तथा पैगंबर ने यह नहीं बताया कि कबीर ही वह खुदा है जिसको हमारी कुरआन शरीफ प्रमाणित करती है, चारों वेद प्रमाणित करते हैं। इससे यह साबित होता है कि उस अल्लाह कबीर का भेजा हुआ बाखबर तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं। मुस्लिम धर्म के गुरूओं (मौलानाओं) को पवित्र कुरआन शरीफ का इल्म (ज्ञान) न होने के कारण बाखबर मोहम्मद सल्ल. को समझ लिया जबकि कुरआन शरीफ बोलने वाला खुदा (काल भगवान) खुद मोहम्मद सल्ल. को बता रहे हैं कि जिस खुदा ने आसमान और जमीन और जो कुछ इसके बीच में है, उसको छः दिन में बनाया और सातवें दिन ऊपर तख्त पर जाकर विराजमान हो गया। उसके बारे में खुद कुरआन शरीफ बोलने वाला खुदा भी नहीं जानता कि वो बाखबर कौन है? यदि मोहम्मद सल्ल. ही वो बाखबर होते तो कुरआन शरीफ बोलने वाला खुदा (काल भगवान) बाखबर की जगह मोहम्मद सल्ल. ही नाम बोल सकता था। इससे स्पष्ट होता है कि कुरआन शरीफ बोलने वाले खुदा (काल भगवान) को भी नहीं पता कि बाखबर कौन है? बाखबर वही है जो सच्चे खुदा कबीर की इबादत बताएगा।

सभी मुस्लिम समुदाय से प्रार्थना है कि कृपया करके अपने सच्चे बाखबर, रहनुमा, खुदा का भेजा हुआ वर्तमान में नबी, पैगम्बर (अवतार) जोकि संत रामपाल जी महाराज हैं, आयें और जन्नत में जाने का रास्ता इख्तयार करवाऐं। इसलिए कुरआन मजीद का ज्ञान दाता भी इबादत के योग्य नहीं है क्योंकि वह बाखबर नहीं है। संत रामपाल दास बाखबर हैं। इसलिए उनकी दण्डवत् प्रणाम रूप इबादत करते हैं जो कबीर कादर अल्लाह का आदेश है।

  • बाखबर के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान इसी पुस्तक में पढ़ें ’’सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान किसने बताया‘‘ नामक अध्याय में पृष्ठ नं. 196 पर।

’’नबी मुहम्मद की (मेराज) आसमान यात्रा पर मतभेद‘‘ (Discord on Al Miraj)

प्रश्न:- कुछ मुसलमान मानते हैं कि मेराज (सीढ़ी) यानि आसमानों की यात्रा कुछ नहीं है। यह मुहम्मद जी ने स्वपन देखा था। अधिकतर इसे सत्य मानते हैं। उस समय के व्यक्तियों ने उसे कोरी झूठ माना। मुहम्मद साहेब ने बताया कि जब मैं अकेला खुदा के पास चला तो मैंने सतरह पर्दे पार किए। एक पर्दे से दूसरे पर्दे तक जाने का मार्ग पाँच सौ वर्ष का था यानि व्यक्ति को एक पर्दे से दूसरे पर्दे तक जाने में पाँच सौ वर्षों का समय लगा। खच्चर जैसे जानवर (बुराक) पर बैठकर सीढ़ियों पर से चढ़कर ऊपर गए, आदि-आदि बातों को तथा अन्य सब बातें जो मुहम्मद जी ने अपने साथियों को बताई तो हजरत अबु बक्र ने तो तुरंत मान लिया। परंतु बहुत से मुसलमान मुसलमानी छोड़ गए। उनको एक बात अधिक खटकी, जब मुहम्मद ने कहा कि यह सब इतने समय में हुआ कि जब मैं (मुहम्मद) बुराक पर बैठने लगा तो मेरा पैर पानी से भरे कटोरे को लगा। उसका आधा पानी निकल पाया था। सब आसमानों की यात्रा करके वापिस आकर मैंने उसे रोका और शेष जल बचा दिया। क्या यह सत्य है?

उत्तर:- जो कुछ हजरत मुहम्मद जी ने आसमानों की यात्रा में देखा, वह सब सत्य है। जो पानी के कटोरे को पैर लगना, फिर वापिस आकर शेष पानी निकलने से बचाना, कटोरे को सीधा करना। प्रत्येक पर्दे की दूरी पाँच सौ वर्ष में तय होने का समय लगना। ऊपर नबियों की मंडली देखना। उनको नमाज अता करवाना, बाबा आदम को हँसते-रोते देखना आदि-आदि सब सत्य है। (लेखक)

उदाहरण:-

‘‘मुहम्मद साहब के मेआराज’’ (Ascent of Muhammad to Heaven on Buraq - Al Miraj)

मुहम्मद साहब मेआराज को गए। एक क्षण में ही सारे आकाश का भ्रमण करके नीचे आ गए। नीचे आने पर लोगों से अपना सब हाल कहा, किसी-किसी ने तो मान लिया पर बहुतों ने न माना। सुल्तान रूम ने तो इस बात के ऊपर तनिक भी विश्वास ही नहीं किया। मुहम्मद साहब की बात को बिल्कुल झूठ समझा बहुत दिनों तक ऐसा ही अविश्वासी बना रहा। एक दिन एक फकीर बादशाह के सामने आकर कहने लगा कि ईश्वर में सब शक्ति है। वह जो चाहे दिखलावे, जो चाहे सो कर दे। आप मुहम्मद साहब के मेआराज पर क्यों नहीं विश्वास लाते? मुहम्मद साहब का मेआराज बहुत ही ठीक है। उस फकीर ने बहुत प्रकार बादशाह को समझाया पर बादशाह ने एक भी न मानी, उस फकीर ने बादशाह से कहा कि पानी का एक बड़ा बर्तन मँगवाओ। बर्तन मँगवाया गया फकीर के कहने से उसमें पानी भरकर मैदान में रखवा दिया गया। उसने बादशाह से कहा कि इसमें अपना माथा डूबाकर निकाल लो। दरबारी लोग चारों तरफ से घेरकर खड़े थे। बादशाह ने जल में सिर डाल के तुरंत ही निकाल लिया। सिर निकालते ही उस फकीर के ऊपर क्रोध करके बहुत झुझंलाया कहा कि इस फकीर ने मेरे ऊपर बहुत कष्ट डाला था। फकीर ने कहा आपके सब आदमी यहाँ खड़ें हैं, मैंने आपको कुछ भी नहीं किया। मैं अलग खड़ा था। इन लोगों से पूछकर देखिये! लोगों ने भी कहाँ, हाँ हुजूर! यह फकीर तो अलग ही खड़ा है, इसने कुछ भी नहीं किया। अपने आदमियों की यह बात सुनकर बादशाह को बड़ा आश्चर्य हुआ कहने लगा कि मैंने जब पानी में सिर डूबोया उस समय देखा कि मैं स्त्री हो गया हूँ। एक मैदान में इधर-उधर फिर रहा हूँ। कोई आगे है, न कोई पीछे। वहाँ से थोड़े ही दूर पर खेतिहर लोग खेती का काम कर रहे थे। मैं उसी (स्त्री के) रूप में उन लोगों के पास गया। उन लोगों ने मुझे अकेला लावारिस जानकर अपने गाँव में चलने को कहाँ, वहाँ पहुँच कर एक युवक के साथ मेरा विवाह कर दिया, मैं उसके साथ रहने लगा। उसी अवस्था में बहुत से लड़के और लड़कियाँ उत्पन्न हुई। यहाँ तक कि मैं बहुत वृद्ध हो गया उसी बूढ़ी स्त्री के स्वरूप में एक दिन तालाब में स्नान करने गया। जल में सिर डूबा के बाहर निकलते ही अपने को यहाँ खड़ा पाया और जाना कि मैं शहंशाह रूम हूँ। आप लोगों को भी जैसे का तैसा खड़ा पाया। आश्चर्य है कि इतनी ही देर में क्या-क्या हो गया। स्त्री होकर बहुत से बच्चे जने वृद्ध हो नदी में स्नान करने गया डुबकी मारते ही पूर्वावस्था में आ गया। यह क्या कौतुक है? जो एक क्षण मात्र में ऐसा देखा। उस फकीर ने कहा कि खुदा की कुदरत है। वह जो चाहे सो कर सकता है। तब उस बादशाह को मुहम्मद के कथन पर विश्वास हुआ।

प्रश्न:- वह फकीर कौन था?

उत्तर:- वह अल्लाह कबीर था जो जिंदा बाबा के वेश में थे तथा जो अल-खिज्र नाम से भी जाना जाता है। परमात्मा चाहता है कि मानव आस्तिक बना रहे। किसी समय सच्ची भक्ति करके अपना कल्याण करवा ले।

  • पुराणों में प्रमाण है कि एक राजा अपनी बेटी को लेकर ब्रह्मा जी के पास (ऊपर ब्रह्मा के लोक में) बेटी के योग्य पति पूछने तथा विवाह की तारीख रखवाने के लिए गया। यह त्रेतायुग की बात है। त्रेतायुग में व्यक्तियों की ऊँचाई तीस फुट से भी अधिक होती थी। त्रेतायुग बारह लाख छयानवें हजार (12 लाख 96 हजार) वर्ष का होता है। यह त्रेतायुग के मध्य की घटना थी। ब्रह्मा ने कहा कि आप नीचे जाओ। लड़की का विवाह बलराम से कर दो। पृथ्वी का तो युग बीत गया है, यहाँ कुछ क्षण ही बीते हैं। राजा नीचे पृथ्वी के ऊपर आया तो उसके परिवार का कोई व्यक्ति नहीं बचा था। लड़की की ऊँचाई बलराम से बहुत अधिक थी। लिखा है कि राजा हैरान था। बलराम पंद्रह फुट लंबा था। लड़की तीस फुट लंबाई की थी। बलराम (श्री कृष्ण का भाई) ने हल उठाया और लड़की के सिर के ऊपर रखकर दबाया। उसे अपने समान लंबाई वाला बना दिया। तब उनका विवाह हुआ। वह राजा भी श्री कृष्ण के राज में रहा।

परमात्मा के मार्ग में सब कुछ संभव है। अविश्वास करना परमात्मा का अपमान करना है। भक्त का उद्देश्य जन्म-मृत्यु के कष्ट से छुटकारा पाना होना चाहिए। सत्य साधना के मंत्र पूर्ण गुरू से लेकर मर्यादा में रहकर मोक्ष प्राप्त करें। किसी पाखंडी गुरू की बातों में न आएँ। भोले व्यक्तियों को अपने जाल में फँसाते हैं। कहते हैं कि इतनी दक्षिणा दो। इतने रूपये अलग दो, तुम्हारे संकट निवारण के लिए अनुष्ठान करूँगा। जिनको सतनाम व सारनाम देने का अधिकार नहीं है, उनके द्वारा किया गया धार्मिक अनुष्ठान किसी काम का नहीं होता। अन्य प्रमाण:-

‘‘परमात्मा के लिए कुछ भी असंभव नहीं है’’

एक नगर के बाहर जंगल में दो महात्मा साधना कर रहे थे। एक चालीस वर्ष से घर त्यागकर साधना कर रहा था। दूसरा अभी दो वर्ष से साधना करने लगा था। परमात्मा के दरबार से एक देवदूत प्रतिदिन कुछ समय उन दोनों साधकों के पास व्यतीत करता था। दोनों साधकों के आश्रम गाँव के पूर्व तथा पश्चिम में जंगल में थे। बड़े का स्थान पश्चिम में तथा छोटे का स्थान गाँव के पूर्व में था।

देवदूत प्रतिदिन एक-एक घण्टा दोनों के पास बैठता, परमात्मा की चर्चा करते थे। दोनों साधकों का अच्छा समय व्यतीत होता। एक दिन देवदूत ने भगवान विष्णु जी से कहा कि भगवान! कपिला नगरी के बाहर आपके दो परम भक्त रहते हैं। श्री विष्णु जी ने कहा कि एक परम भक्त हे, दूसरा तो बनावटी भक्त है। देवदूत ने विचार किया कि जो चालीस वर्ष से साधनारत है, वह पक्का भक्त होगा क्योंकि लंबी-लंबी दाढ़ी, सिर पर बड़ी जटा (केश) है और समय भी चालीस वर्ष बहुत होता है। देवदूत बोला कि हे प्रभु! जो चालीस वर्ष से आपकी भक्ति कर रहा है, वह होगा परम भक्त। प्रभु ने कहा, नहीं। दूसरा जो दो वर्ष से साधना में लगा है। प्रभु ने कहा कि देवदूत! मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ। देवदूत बोला, प्रभु ऐसा नहीं है। परंतु मेरी तुच्छ बुद्धि यही मान रही है कि बड़ी आयु वाला भी अच्छा भक्त है। श्री विष्णु जी ने कहा कि कल आप देर से पृथ्वी पर जाना। दोनों ही देर से आने का कारण पूछेंगे तो आप बताना कि आज प्रभु जी ने हाथी को सूई के नाके से निकालना था। वह लीला देखकर आया हूँ। इसलिए आने में देरी हो गई। जो उत्तर मिले, उससे आपको भी पता लग जाएगा कि परम भक्त कौन है? पहले प्रतिदिन देवदूत सुबह आठ बजे के आसपास बड़े के पास जाता था और 10 बजे के आसपास छोटी आयु वाले के पास जाता था। अगले दिन बड़ी आयु वाले के पास दिन के 12 बजे पहुँचा। देर से आने का कारण पूछा तो देवदूत ने बताया कि आज 11:30 बजे दिन के परमात्मा ने लीला करनी थी, वह देखकर आया हूँ। चालीस वर्ष वाले ने पूछा कि क्या लीला की प्रभु ने? बताईएगा। देवदूत ने कहा कि श्री विष्णु जी ने कमाल कर दिया, हाथी को सूई के नाके (छिद्र) में से निकाल दिया। यह सुनकर भक्त बोला कि देवदूत! ऐसी झूठ बोल जो सुने उसे विश्वास हो। यह कैसे हो सकता है कि हाथी सूई के नाके में से निकल जाए। मेरे सामने निकालकर दिखाओ। देवदूत समझ गया कि भगवान सत्य ही कह रहे थे। यह तो पशु है, भक्त नहीं जिसे परमात्मा पर ही विश्वास नहीं कि वह सक्षम है। जो कार्य मानव नहीं कर सकता, परमात्मा कर सकता है। उसकी भक्ति व्यर्थ तथा बनावटी है। देवदूत नमस्ते करके चल पड़ा और छोटे भक्त के पास आया। भक्त ने देरी से आने का कारण पूछा तो देवदूत ने संकोच के साथ बताया कि कहीं यह कोई गलत भाषा न बोल दे। कहा कि भक्त क्या बताऊँ? परमात्मा ने तो अचरज कर दिया। कमाल कर दिया। देखकर आँखें फटी की फटी रह गई। परमात्मा ने हाथी को सूई के नाके (धागा डालने वाले छिद्र) के अंदर से निकाल दिया। यह सुनकर भक्त बोला कि देवदूत जी! इसमें आश्चर्य की कौन-सी बात है? परमात्मा निकाल दे पूरी पृथ्वी को सूई के नाके में से, हाथी की तो बात ही क्या है? देवदूत ने भक्त को सीने से लगाया और कहा कि धन्य हैं आपके माता-पिता जिनसे जन्म हुआ। कुर्बान हूँ आपके परमात्मा पर अटल विश्वास पर।

भक्त को परमात्मा पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए कि परमात्मा जो चाहे सो कर सकता है।

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