हरियाणा में हरि आऐंगे
श्री जम्भेश्वर जी की शब्द वाणी सं. 102 में लिखा है:-
विष्णु-विष्णु भण अजर जरी जै, धर्म हुवै पापां छुटिजै।
हरि पर हरि को नाम जपीजै, हिरयालो हरि आण हरूं, हरि नारायण देव नरूं।
आशा सास निरास भइलो, पाइलो मोक्ष दवार खिंणू।।
भावार्थ:- इसमें कहा है कि “हिरयालो हरि आण हरुं” इसमें “हरियालो” शब्द का अर्थ हरियाणा है। उस समय हरियाणा प्रांत नहीं था। इसलिये “हरियालो” लिख दिया गया है। इस पंक्ति का अर्थ कि “हरि अर्थात् परमात्मा हरियालो यानि हरियाणा प्रांत में आऐंगे।” परमात्मा जिसे नारायण कहते हैं। वे नर अर्थात् साधारण मनुष्य का रूप धारण करके आऐंगे। वैसे नारायण का अर्थ है जल पर प्रकट होने वाला, वह केवल परमेश्वर ही है। इसलिए परमात्मा को नारायण कहा जाता है। उनके द्वारा बताए ज्ञान से निराश भक्तों की आशा जागेगी और मोक्ष का द्वार प्राप्त होगा। भावार्थ है कि शास्त्र विरूद्ध साधना करने से साधक भक्ति करके भी कोई लाभ प्राप्त नहीं कर रहे थे, परमात्मा हरियाणा में आऐंगे। उनके द्वारा बताई शास्त्रोक्त भक्ति की साधना से मोक्ष का द्वार प्राप्त होगा तथा निराशों को आशा होगी कि अब यहाँ भी सुख मिलेगा तथा प्रलोक में भी तथा मोक्ष प्राप्ति अवश्य होगी।
वाणी:- हरि पर हीरे को नाम उपीजै। यह वाणी इस प्रकार पढ़ें:-
हर पल हरि को नाम जपीजै।
“श्री जम्भेश्वर जी के भी कोई गुरू थे” (पहले लिख दिया है।)
प्रमाण:- शब्द वाणी सं. 90, 91, 92
शब्द सं. 90 की गुरू सम्बन्धी वाणी गुरू आसण समराथले।
कहै सतगुरू भूल मत जाइयों पड़ोला अमै दोजखे।
शब्द सं. 91 से कुछ अंश:-
मेरे गुरू जो दीन्ही शिक्षा, सर्व आलिडगंण फेरी दीक्षा।
सत सत भाखत गुरू रायों जरा मरण भय भागु।।
प्रमाण के लिए पुस्तक ‘‘गीता तेरा ज्ञान अमृत‘‘ से संबंधित श्रीमद्भगवत गीता के कुछ अध्याय तथा श्लोक जिनका हिन्दी अनुवाद ‘‘श्री जयदयाल गोयन्दका‘‘ द्वारा किया गया है तथा भारत की प्रसिद्ध प्रैस ‘‘गीता प्रैस गोरखपुर‘‘ (उत्तर प्रदेश) द्वारा प्रकाशित है।
(श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 1 में कोई भी श्लोक गीता ज्ञान दाता का बोला हुआ नहीं है। इसलिए इसको छोड़ दिया जाता है।)