अध्याय गरूड़ बोध का सारांश
कबीर सागर में 11वां अध्याय ‘‘गरूड़ बोध‘‘ पृष्ठ 65 (625) पर है:- परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि मैंने विष्णु जी के वाहन पक्षीराज गरूड़ जी को उपदेश दिया, उसको सृष्टि रचना सुनाई। अमरलोक की कथा सत्यपुरूष की महिमा सुनकर गरूड़ देव अचम्भित हुआ। अपने कानों पर विश्वास नहीं कर रहे थे। मन-मन में विचार कर रहे थे कि मैं आज यह क्या सुन रहा हूँ? मैं कोई स्वपन तो नहीं देख रहा हूँ। मैं किसी अन्य देश में तो नहीं चला गया हूँ। जो देश और परमात्मा मैंने सुना है, वह जैसे मेरे सामने चलचित्र रूप में चल रहा है। जब गरूड़ देव इन ख्यालों में खोए थे, तब मैंने कहा, हे पक्षीराज! क्या मेरी बातों को झूठ माना है। चुप हो गये हो। प्रश्न करो, यदि कोई शंका है तो समाधान कराओ। यदि आपको मेरी वाणी से दुःख हुआ है तो क्षमा करो। मेरे इन वचनों को सुनकर खगेश की आँखें भर आई और बोले कि हे देव! आप कौन हैं? आपका उद्देश्य क्या है? इतनी कड़वी सच्चाई बताई है जो हजम नहीं हो पा रही है। जो आपने अमरलोक में अमर परमेश्वर बताया है, यदि यह सत्य है तो हमें धोखे में रखा गया है। यदि यह बात असत्य है तो आप निंदा के पात्र हैं, अपराधी हैं। यदि सत्य है तो गरूड़ आपका दास खास है। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि मैंने कहा, हे गरूड़देव! जो शंका आपको हुई है, यह स्वाभाविक है, परंतु आपने संयम से काम लिया है। यह आपकी महानता है। परंतु मैं जो आपको अमरपुरूष तथा सत्यलोक की जानकारी दे रहा हूँ, वह परम सत्य है। मेरा नाम कबीर है। मैं उसी अमर लोक का निवासी हूँ। आपको काल ब्रह्म ने भ्रमित कर रखा है। यह ज्ञान ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी को भी नहीं है। आप विचार करो गरूड़ जी! जीव का जन्म होता है। आनन्द से रहने लगता है। परिवार विस्तार होता है। उसके पालन-पोषण में सांसारिक परंपराओं का निर्वाह करते-करते वृद्ध हो जाता है। जिस परिवार को देख-देखकर अपने को धन्य मानता है। उसी परिवार को त्यागकर संसार छोड़कर मजबूरन जाना पड़ता है। स्वयं भी रो रहा है, अंतिम श्वांस गिन रहा है। परिवार भी दुःखी है। यह क्या रीति है? क्या यह उचित है? गरूड़ देव बोले, हे कबीर देव! यह तो संसार का विधान है। जन्मा है तो मरना भी है। परमेश्वर जी ने कहा कि क्या कोई मरना चाहता है? क्या कोई वृद्धावस्था पसंद करता है? गरूड़ देव का उत्तर=नहीं। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि यदि ऐसा हो कि न वृद्ध अवस्था हो, न मृत्यु तो कैसा लगे? गरूड़ देव जी ने कहा कि कहना ही क्या, ऐसा हो जाए तो आनन्द हो जाए परंतु यह तो ख्वाबी ख्याल (स्वपन विचार) जैसा है। हे धर्मदास! मैंने कहा कि वेदों तथा पुराणों को आप क्या मानते हो, सत्य या असत्य? गरूड़ देव जी ने कहा, परम सत्य।
देवी पुराण के तीसरे स्कंद में स्वयं विष्णु जी ने कहा कि हे माता! तुम शुद्ध स्वरूपा हो। यह सारा संसार तुमसे ही उद्भाषित हो रहा है। मैं ब्रह्मा तथा शंकर आपकी कृपा से विद्यमान हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है।
परमेश्वर कबीर जी के मुख कमल से ऐसे पुख्ता प्रमाण (सटीक प्रमाण) सुनकर गरूड़ देव चरणों में गिर गए। अपने भाग्य को सराहा और कहा कि जो देव सृष्टि की रचना, ब्रह्मा-विष्णु-महेश तथा दुर्गा देव तथा निरंजन तक की उत्पत्ति जानता है, वह ही रचनहार परमेश्वर है। आज तक किसी ने ऐसा ज्ञान नहीं बताया। यदि किसी जीव को पता होता, चाहे वह ऋषि-महर्षि भी है तो अवश्य कथा करता। मैंने बड़े-बड़े मण्डलेश्वरों के प्रवचन सुने हैं। किसी के पास यह ज्ञान नहीं है। इनको वेदों तथा गीता का भी ज्ञान नहीं है। आप स्वयं को छुपाए हुए हो। मैंने आपको पहचान लिया है। कृपा करके मुझे शरण में ले लो परमेश्वर। परमेश्वर कबीर जी ने गरूड़ से कहा कि आप पहले अपने स्वामी श्री विष्णु जी से आज्ञा ले लो कि मैं अपना कल्याण कराना चाहता हूँ। एक महान संत मुझे मिले हैं। मैंने उनका ज्ञान सुना है। यदि आज्ञा हो तो मैं अपना कल्याण करा लूँ। मैं आपका दास नौकर हूँ, आप मालिक हैं। हमें सब समय इकट्ठा रहना है। यदि मैं छिपकर दीक्षा ले लूँगा तो आपको दुःख होगा। गरूड़ ने ऐसा ही किया। विष्णु जी से सब बात बताई। श्री विष्णु जी ने कहा मैं आपको मना नहीं करता, आप स्वतंत्र हैं। आपने अच्छा किया, सत्य बता दिया। मुझे कोई एतराज नहीं है।
हे धर्मदास! मैंने गरूड़ को प्रथम मंत्र दीक्षा पाँच नाम (कमलों को खोलने वाले प्रत्येक देव की साधना के नाम) की दी। गरूड़ देव ने कहा कि हे गुरूदेव! यह मंत्र तो इन्हीं देवताओं के हैं। अमर पुरूष का मंत्र तो नहीं है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि ये इनकी पूजा के मंत्र नहीं हैं। ये इन देवताओं को अपने अनुकूल करके इनके जाल से छूटने की कूँजी (ज्ञमल) है। इनके वशीकरण मंत्र हैं। जैसे भैंसे को आकर्षित करने के लिए यदि उसको भैंसा-भैंसा करते हैं तो वह आवाज करने वाले की ओर देखता तक नहीं। जब उसका वशीकरण नाम पुकारा जाता है, हुर्र-हुर्र तो वह तुरंत प्रभाव से सक्रिय हो जाता है। आवाज करने वाले की ओर दौड़ा आता है। आवाज करने वाला व्यक्ति उससे अपनी भैंस को गर्भ धारण करवाता है। इसी प्रकार आप यदि श्री विष्णु जी के अन्य किसी नाम का जाप करते रहें, वे ध्यान नहीं देते। जब आप इस मंत्र का जाप करोगे तो विष्णु देव जी तुरंत प्रभावित होकर साधक की सहायता करते हैं। ये देवता तीनों लोकों (पृथ्वी, स्वर्ग तथा पाताल) के प्रधान देवता हैं। ये केवल संस्कार कर्म लिखा ही दे सकते हैं। इस मंत्र के जाप से हमारे पुण्य अधिक तथा भक्ति धन अधिक संग्रहित हो जाता है। उसके प्रतिफल में ये देवता साधक की सहायता करते हैं। इस प्रकार इनकी साधना तथा पूजा का अंतर समझना है। जैसे अपने को आम खाने हैं तो पहले मेहनत, मजदूरी, नौकरी करेंगे, धन मिलेगा तो आम खाने को मिलेगा। नौकरी पूजा नहीं होती। उस समय हमारा पूज्य आम होता है। पूज्य की प्राप्ति के लिए किया गया प्रयत्न नौकरी है। इसी प्रकार अपने पूज्य परमेश्वर कबीर जी हैं तथा अमर लोक है। उसके लिए हम श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री शिव, श्री गणेश तथा श्री दुर्गा जी की मजदूरी करते हैं, साधना करते हैं। पूजा परमेश्वर की करते हैं। गरूड़ जी बड़े प्रसन्न हुए और इस अमृत ज्ञान की चर्चा हेतु श्री ब्रह्मा जी से मिले। उनको बताया कि मैंने एक महर्षि से अद्भुत ज्ञान सुना है। मुझे उनका ज्ञान सत्य लगा है। उन्होंने बताया कि आप (ब्रह्मा), विष्णु तथा शिव नाशवान हो, पूर्ण करतार नहीं हो। आप केवल भाग्य में लिखा ही दे सकते हो। आप किसी की आयु वृद्धि नहीं कर सकते हो। आप किसी के कर्म कम-अधिक नहीं कर सकते। पूर्ण परमात्मा अन्य है, अमर लोक में रहता है। वह पाप कर्म काट देता है। वह मृत्यु को टाल देता है। आयु वृद्धि कर देता है। प्रमाण भी वेदों में बताया है। ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2 में कहा है कि रोगी का रोग बढ़ गया है। वह मृत्यु को प्राप्त हो गया है। तो भी मैं उस भक्त को मृत्यु देवता से छुड़वा लाऊँ, उसको नवजीवन प्रदान कर देता हूँ। उसको पूर्ण आयु जीने के लिए देता हूँ।
ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 5 में कहा है कि हे पुनर्जन्म प्राप्त प्राणी! तू मेरी भक्ति करते रहना। यदि तेरी आँखें भी समाप्त हो जाएंगी तो तेरी आँखें स्वस्थ कर दूँगा, तेरे को मिलूंगा भी यानि मैं तेरे को प्राप्त भी होऊँगा।
ब्रह्मा जी को वेद मंत्र कंठस्थ हैं। तुरंत समझ गए, परंतु संसार में लोकवेद के आधार से ब्रह्मा जी अपने आपको प्रजापिता यानि सबकी उत्पत्तिकर्ता मान रहे थे। वेदों को कठंस्थ (याद) कर लेना भिन्न बात है। वेद मंत्रों को समझना विशेष ज्ञान है। मान-बड़ाई वश होकर ब्रह्मा जी ने कहा कि वेदों का ज्ञान मेरे अतिरिक्त विश्व में किसी को नहीं है। इन मंत्रों का अर्थ गलत लगाया है। कबीर परमेश्वर ने ऐसे व्यक्तियों के विषय में कहा है कि:-
कबीर, जान बूझ साच्ची तजैं, करै झूठ से नेह।
ताकि संगत हे प्रभु, स्वपन में भी ना देय।।
शब्दार्थ:- कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि जो व्यक्ति प्रमाण आँखों देखकर भी झूठ को ही आधार मानता है, उस व्यक्ति से तो परमात्मा! स्वपन में भी ना मिलाना। वह इतना दुष्ट है। उससे ज्ञान चर्चा करना व्यर्थ है।
ब्रह्मा जी गरूड़ के वचन सुनकर अति क्रोधित हुए और कहा कि तेरी पक्षी वाली बुद्धि है। तेरे को कोई कुछ कह दे। उसी की बातों पर विश्वास कर लेता है। तेरे को अपनी अक्ल नहीं है। ब्रह्मा जी ने उसी समय विष्णु, महेश, इन्द्र तथा सब देवताओं व ऋषियों को बुला लिया। सभा लग गई। ब्रह्मा जी ने उनको बुलाने का कारण बताया कि गरूड़ आज नई बात कर रहा है कि ब्रह्मा-विष्णु-महेश नाशवान हैं। पूर्ण परमात्मा कोई अन्य है। वह अमर लोक में रहता है। तुम कर्ता नहीं हो। यह बात सुनकर श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी बहुत क्रोधित हुए और गरूड़ को ब्रह्मा वाले उलाहणें (दोष निकालकर बुरा-भला कहना) कहे। फिर सबने मिलकर निर्णय लिया कि माता (दुर्गा) जी से सत्य जानते हैं। सब मिलकर माता के पास गए। यही प्रश्न पूछा कि क्या हमारे (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) से अन्य कोई पूर्ण प्रभु है। क्या हम नाशवान हैं?
माता ने दो टूक जवाब दिया कि तुमको यह गलतफहमी (भ्रम) कब से हो गया कि तुम अविनाशी तथा जगत के कर्ता हो। यदि ऐसा है तो तुम मेरे भी कर्ता (बाप) हुए जबकि तुम्हारा जन्म मेरी कोख से हुआ है। वास्तव में परमेश्वर अन्य है, वही अविनाशी है। वही सबका कर्ता है। यह बात सुनकर सभा भंग हो गई, सब चले गए। परंतु ब्रह्मा-विष्णु-शिव जी के गले में यह सत्य नहीं उतर पा रहा था। उन्होंने गरूड़ को बुलाया। गरूड़ ने आकर प्रणाम किया। आदेश पाकर बैठ गया। तीनों देवताओं ने कहा, हे पक्षीराज! आपको कैसे विश्वास हो कि हम जगत के कर्ता हैं? आप जो चाहो, परीक्षा करो। गरूड़ जी उठकर उड़कर मेरे पास (कबीर जी के पास) आए तथा सब वृतांत बताया। तब मैंने कहा कि बंग देश (वर्तमान में बांग्लादेश) में एक ब्राह्मण का बारह वर्षीय बालक है। उसकी आयु समाप्त होने वाली है। वह कुछ दिन का मेहमान है। मैंने उस बालक को शरण में लेने के लिए ब्रह्मा, विष्णु, शिव की स्थिति बताई जो गरूड़ तेरे को बताई है। उस बालक ने बहुत विवाद किया और मेरे ज्ञान को नहीं माना। तब मैंने उस बालक से कहा कि तेरी आयु तीन दिन शेष है। यदि तेरे ब्रह्मा-विष्णु-शिव समर्थ हैं तो अपनी रक्षा कराओ। मैं इतना कहकर अंतध्र्यान हो गया। बालक बेचैन है। उस बालक को लेकर देवताओं के पास जाओ। उनसे कुछ बनना नहीं है। फिर आप मेरे से ध्यान से बातें करना। मैं तेरे को आगे क्या करना है, वह बताऊँगा। गरूड़ जी उस बालक को लेकर ब्रह्मा-विष्णु-शिव के पास गए। गरूड़ ने बालक को समझाया कि आप उन देवताओं से कहना कि हम आपके भक्त हैं। मेरे दादा- परदादा, पिता और मैंने सदा आपकी पूजा की है। मेरे जीवन के दो दिन शेष हैं। मेरी आयु भी क्या है? कृपा मेरी आयु वृद्धि कर दें।
बच्चे ने यही विनय की तो तीनों ने कोशिश की परंतु व्यर्थ। फिर विचार किया कि धर्मराज (न्यायधीश) के पास चलते हैं। सबका हिसाब (account) उसी के पास है। उससे वृद्धि करा देते हैं। यह विचार करके सबके सब धर्मराज के पास गए। उनसे तीनों देवताओं ने कहा कि पहले तो यह बताओ कि इस ब्राह्मण बच्चे की कितनी आयु है? धर्मराज ने डाॅयरी (रजिस्टर) देखकर बताया कि कल इसकी मृत्यु हो जाएगी। तीनों देवताओं ने कहा कि आप इस बच्चे की आयु वृद्धि कर दो। धर्मराज ने कहा, यह असंभव है। तीनों ने कहा कि हम आपके पास बार-बार नहीं आते, आज इज्जत-बेइज्जती का प्रश्न है। हमारे आये हुओं की इज्जत तो रख लो। धर्मराज ने कहा कि एक पल भी न बढ़ाई जा सकती है, न घटाई जा सकती है। यदि आप अपनी आयु इसको दे दो तो वृद्धि कर सकता हूँ।
यह सुनते ही सबकी हवा निकल गई। उस समय कहने लगे कि यह तो परमेश्वर ही कर सकता है। वहाँ से तुरंत चल पड़े और गरूड़ से कहा कि कोई और समर्थ शक्ति है तो तुम इसकी आयु बढ़वाकर दिखा दो। गरूड़ ने कबीर जी से ध्यान द्वारा (टेलीफोन से) सम्पर्क किया। परमेश्वर कबीर जी ने ध्यान द्वारा बताया कि आप इसके लिए मानसरोवर से जल ले आओ। वहाँ एक श्रवण नाम का भक्त मिलेगा। उसको मैंने सब समझा दिया है, आप अमृत ले आओ।
गरूड़ जी ने जैसी आज्ञा हुई, वैसा ही किया। अमृत लाकर उस बच्चे को पिला दिया। उस बालक के पास मैं गया। गरूड़ ने उसे सब समझा दिया कि अमृत तो बहाना है। ये स्वयं परमेश्वर हैं। इन्होंने जल मन्त्रिात करके दिया था। बालक तुम दीक्षा ले लो। इस अमृत से तो दस दिन जीवित रहोगे। बालक ने मेरे से दीक्षा ली। जब बालक 15 दिन तक नहीं मरा तो गरूड़ ने तीनों ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी को बताया कि वह बालक जीवित है। मेरे गुरू जी से दीक्षा ले ली है। उन्होंने उस बच्चे को पूर्ण आयु जीने का आशीर्वाद दे दिया है। ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों फिर धर्मराज के पास गए, साथ में गरूड़ भी गया। तीनों देवताओं ने धर्मराज से पूछा कि वह बालक कैसे जीवित है, उसको मर जाना चाहिए था। धर्मराज ने उसका खाता देखा तो उसकी आयु लम्बी लिखी थी। धर्मराज ने कहा कि यह ऊपर से ही होता है। यह तो कभी-कभी होता है। उस परमेश्वर की लीला को कौन जान सकता है?
तीनों देवताओं को आश्चर्य हुआ, परंतु मान-बड़ाई के कारण प्रत्यक्ष देखकर भी सत्य को माना नहीं। अपना अहम भाव नहीं त्यागा। गरूड़ को विश्वास अटल हो गया।
कबीर, राज तजना सहज है, सहज त्रिया का नेह।
मान बड़ाई ईष्र्या, दुर्लभ तजना येह।।
शब्दार्थ:- अध्यात्म ज्ञान के अभाव के कारण मानव को कुछ असाध्य बुराई घेर लेती हैं जैसे मान-बड़ाई, ईष्र्या। मान-बड़ाई का अर्थ है पद या धन के अहंकार के कारण सम्मानित व्यक्ति। ये दोनों (सम्मान के कारण बड़प्पन यानि मान-बड़ाई तथा ईष्र्या) ऐसी बुराई हैं, इनके अभिमान में अँधा होकर इन्हें नहीं छोड़ता। राज त्याग सकता है, स्त्राी को त्याग सकता है, परंतु इन दोनों को त्यागना कठिन है। इस गरूड़ बोध के अंत में वासुकी नाग कन्या वाला प्रकरण गलत तरीके से लिखा है। इसमें गरूड़ को गुरू पद पर चित्रार्थ कर रखा है। वह ऐसा नहीं है। जो भी किया, परमेश्वर कबीर जी ने किया है।
अब पढ़ें कुछ अमृतवाणी गरूड़ बोध से
धर्मदास वचन
धर्मदास बीनती करै, सुनहु जगत आधार।
गरूड़ बोध भेद सब, अब कहो तत्त्व विचार।।
शब्दार्थ:- धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से गरूड़ देव जी के बारे में ज्ञान जानने की इच्छा से निवेदन किया कि हे संसार के धारण करने वाले परमात्मा मुझे गरूड़ देव पक्षी के विषय में यथार्थ ज्ञान बताने की कृपा करें।
सतगुरू वचन (कबीर वचन)
प्रथम गरूड़ सों भैंट जब भयऊ। सत साहब मैं बोल सुनाऊ।
धर्मदास सुनो कहु बुझाई। जेही विधि गरूड़ को समझाई।।
शब्दार्थ:- कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को बताया कि जब मैं प्रथम बार गरूड़ से मिला तो मैंने सत साहेब बोला। हे धर्मदास! सुनो जिस प्रकार गरूड़ को समझाया, वही विधि बताता हूँ।
गरूड़ वचन
सुना बचन सत साहब जबही। गरूड़ प्रणाम किया तबही।।
शीश नीवाय तिन पूछा चाहये। हो तुम कौन कहाँ से आये।।
शब्दार्थ:- जब गरूड़ पक्षी ने सत साहेब वचन सुना, उसी समय प्रणाम किया। सिर झुकाकर मुझसे पूछा कि आप कौन हो? कहाँ से आए हो?
ज्ञानी (कबीर) वचन
कहा कबीर है नाम हमारा। तत्त्वज्ञान देने आए संसारा।।
सत्यपुरूष है कुल का दाता। हम वाका सब भेद बताता।।
सत्यलोक से हम चलि आए। जीव छुड़ावन जग में प्रकटाए।।
शब्दार्थ:- कबीर ने कहा कि मैंने गरूड़ को बताया कि मेरा नाम कबीर है। सम्पूर्ण विश्व को तत्वज्ञान यानि यथार्थ अध्यात्म ज्ञान प्रदान करने आया हूँ। मैं सत्यलोक यानि सनातन परम धाम से चलकर आया हूँ। काल जाल से जीवों को छुड़वाने के लिए जग में प्रकट हुआ हूँ। सत्य पुरूष कुल का मालिक है। सबका पोषण करने वाला है। सबका दाता है। मैं उसका सम्पूर्ण भेद बता दूँ।
गरूड़ वचन
सुनत बचन अचम्भो माना। सत्य पुरूष है कौन भगवाना।।
प्रत्यक्षदेव श्री विष्णु कहावै। दश औतार धरि धरि जावै।।
शब्दार्थ:- कबीर जी ने बताया कि गरूड़ ने सत्य साहेब सुना तो आश्चर्य किया और पूछा कि यह कौन परमात्मा है? अध्यात्म ज्ञान से स्पष्ट है कि श्री विष्णु परमात्मा है। वही दस अवतार धारण करके पृथ्वी पर आता है।
ज्ञानी (कबीर) बचन
तब हम कहया सुनो गरूड़ सुजाना। परम पुरूष है पुरूष पुराना।।(आदि का)
वह कबहु ना मरता भाई। वह गर्भ से देह धरता नाहीं।।
कोटि मरे विष्णु भगवाना। क्या गरूड़ तुम नहीं जाना।।
जाका ज्ञान बेद बतलावैं। वेद ज्ञान कोई समझ न पावैं।।
जिसने कीन्हा सकल बिस्तारा। ब्रह्मा, विष्णु, महादेव का सिरजनहारा।।
जुनी संकट वह नहीं आवे। वह तो साहेब अक्षय कहावै।।
शब्दार्थ:- कबीर जी ने कहा है कि हे सज्जन गरूड़! सुनो यह सत्य पुरूष यानि परम पुरूष आदि परमात्मा है यानि सदा का भगवान है। वह कभी नहीं मरता तथा न गर्भ से जन्म लेता। हे गरूड़! क्या आपको पता नहीं कि करोड़ों विष्णु मर चुके हैं। जिस परम अक्षर पुरूष का ज्ञान वेदों में बताया है। उस वेद के ज्ञान को ठीक से कोई समझ नहीं सका। जिसने सर्व ब्रह्मण्डों का विस्तार किया है, जिसने ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव की उत्पत्ति की है, वह परमात्मा चैरासी लाख योनियों के संकट में नहीं आता। वह तो अविनाशी कहा जाता है।
गरूड़ वचन
राम रूप धरि विष्णु आया। जिन लंका का मारा राया।।
पूर्ण ब्रह्म है विष्णु अविनाशी। है बन्दी छोड़ सब सुख राशी।।
तेतीस कोटि देवतन की बन्द छुड़ाई। पूर्ण प्रभु हैं राम राई।।
शब्दार्थ:- गरूड़ ने कहा कि विष्णु जी ने राम का अवतार धारण करके श्रीलंका के राजा रावण को मारा था। श्री विष्णु जी अविनाशी पूर्ण ब्रह्म हैं। तेतीस करोड़ देवताओं को राजा रावण की कैद से छुड़वाया। वह सब सुखों की खान बंदी छोड़ है। श्री राम राजा पूर्ण परमात्मा हैं।
ज्ञानी (कबीर) वचन
तुम गरूड़ कैसे कहो अविनाशी। सत्य पुरूष बिन कटै ना काल की फांसी।।
जा दिन लंक में करी चढ़ाई। नाग फांस में बंधे रघुराई।।
सेना सहित राम बंधाई। तब तुम नाग जा मारे भाई।।
तब तेरे विष्णु बन्दन से छूटे। याकु पूजै भाग जाके फूटे।।
कबीर ऐसी माया अटपटी, सब घट आन अड़ी।
किस-किस कूं समझाऊँ, कूअै भांग पड़ी।।
शब्दार्थ:- कबीर जी ने कहा कि हे गरूड़ देव! आप श्री विष्णु जी को कैसे अविनाशी कहते हो? सत्यपुरूष के बिना काल की फाँस यानि कर्म बँधन समाप्त नहीं हो सकता। हे गरूड़! याद कर, जिस समय श्री रामचन्द्र जी ने श्रीलंका पर आक्रमण किया था। युद्ध के दौरान श्री राम तथा उसकी सब सेना नागफांस में बँधी थी। तुमने श्री राम तथा सर्व सेना को नागफांस काटकर मुक्त करवाया था। तब तेरे विष्णु बँधन से छूटे थे। श्री राम व सेना के लिए तो आप बंदी छोड़ हुए। जो श्री विष्णु को इष्ट रूप में पूजता है, उसका भाग्य फूटा है यानि खराब किस्मत वाला है। कबीर जी ने दुःखी मन से कहा कि काल ब्रह्म ने अपने मायाजाल से सर्व प्राणियों का घट यानि हृदय अज्ञान से भरा है। किस-किस को समझाऊँ, यह तो ऐसी समस्या है जैसे किसी ने कूँए के जल में एक क्विंटल भाँग कूट-पीसकर मिलाई हो। जो भी व्यक्ति उस कूँए के जल को पीएगा, उसको भी नशा हो जाएगा। जितने भी व्यक्ति उस भाँग को पीकर नशे में होते हैं, उन सबकी एक जैसी लड़खड़ाकर चाल, तुतलाई बोली होती है। यही दशा काल ब्रह्म के द्वारा भ्रमित प्राणियों की है। वे सब यही कहते हैं कि श्री विष्णु तथा श्री शिव, श्री ब्रह्मा अविनाशी प्रभु हैं। सबके उत्पत्ति, स्थिति तथा संहारकर्ता हैं। इन तीनों से अन्य कोई परमात्मा ही नहीं है।
गरूड़ वचन
ज्ञानी गरूड़ है दास तुम्हारा। तुम बिन नहीं जीव निस्तारा।।
इतना कह गरूड़ चरण लिपटाया। शरण लेवों अविगत राया।।
कबहु ना छोडूँ तुम्हारा शरणा। तुम साहब हो तारण तरणा।।
पत्थर बुद्धि पर पड़े है ज्ञानी। हो तुम पूर्ण ब्रह्म लिया हम जानी।।
शब्दार्थ:- गरूड़ जी ने कबीर जी से कहा है कि हे विद्वान कबीर जी! मैं गरूड़ आपका गुलाम हूँ। आपके बिना जीव का कल्याण संभव नहीं है। कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि इतनी बात कहकर गरूड़ मेरे चरणों से लिपट गया और बोला, हे परमेश्वर! मुझे शरण में ले लो। मैं कभी आपकी शरण नहीं छोडूंगा। आप वास्तव तरण-तारण यानि पूर्ण मोक्ष करने वाले हो। हे ज्ञानी कबीर जी! हम जीवों की बुद्धि पर अज्ञान के पत्थर पड़े हैं। अब मुझे ज्ञान हो गया है कि आप ही पूर्ण ब्रह्म हैं।
ज्ञानी (कबीर) वचन
तब हम गरूड़ कुं पाँच नाम सुनाया। तब वाकुं संशय आया।।
यह तो पूजा देवतन की दाता। या से कैसे मोक्ष विधाता।।
तुमतो कहो दूसरा अविनाशी। वा से कटे काल की फांसी।।
नायब से कैसे साहेब डरही। कैसे मैं भवसागर तिरही।।
शब्दार्थ:- कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को बताया कि गरूड़ की प्रार्थना पर मैंने उसे पाँच नाम का दीक्षा मंत्र दिया जो शरीर में बने कमलों में प्रकट देवताओं व देवी दुर्गा की साधना के हैं। तब गरूड़ को शंका हुई कि हे प्रभु! आपने तो ये मंत्र देवताओं की पूजा के दिए हैं। आपने तो बताया है कि इनसे दूसरा वास्तव अविनाशी सत्य पुरूष है। वह काल के बँधन को काटता है। इन देवताओं की पूजा से कैसे पूर्ण मोक्ष हो सकेगा? ये तो नायब यानि छोटे देव हैं। इनका साहब यानि मालिक काल प्रभु है। नायब यानि छोटे देवता से साहब यानि मालिक कैसे भय मानेगा यानि इन देवताओं की भक्ति से काल के जाल से कैसे छूट पाऐंगे? ज्ञानी (कबीर) वचन
साधना का े प ूजा मत जाना े। साधना क ू ं मजद ूरी माना े।।
जो कोऊ आम्र फल खानो चाहै। पहले बहुते मेहनत करावै।।
धन होवै फल आम्र खावै। आम्र फल इष्ट कहावै।।
पूजा इष्ट पूज्य की कहिए। ऐसे मेहनत साधना लहिए।।
यह सुन गरूड़ भयो आनन्दा। संशय सूल कियो निकन्दा।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी से गरूड़ देव ने कहा कि हे परमेश्वर! आपने तो इन्हीं देवताओं के नाम मंत्र दे दिये। यह इनकी पूजा है। आपने बताया कि ये तो केवल 16 कला युक्त प्रभु हैं। काल एक हजार कला युक्त प्रभु है। पूर्ण ब्रह्म असँख्य कला का परमेश्वर है। आपने सृष्टि रचना में यह भी बताया है कि काल ने आपको रोक रखा है। काल ब्रह्म के आधीन तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी हैं। हे परमेश्वर! नायब (उप यानि छोटा) से साहब (स्वामी-मालिक) कैसे डरेगा? यानि ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी तो केवल काल ब्रह्म के नायब हैं। जैसे नायब तहसीलदार यानि छोटा तहसीलदार होता है। तो छोटे से बड़ा कैसे डर मानेगा? भावार्थ है कि ये काल ब्रह्म के नायब हैं। आपने इनकी भक्ति बताई है, इनके मंत्र जाप दिए हैं। ये नायब अपने साहब (काल ब्रह्म) से हमें कैसे छुड़वा सकेंगे? तब परमेश्वर कबीर जी ने पूजा तथा साधना में भेद बताया कि यदि किसी को आम्र फल यानि आम का फल खाने की इच्छा हुई है तो आम फल उसका पूज्य है। उस पूज्य वस्तु को प्राप्त करने के लिए किया गया प्रयत्न साधना कही जाती है। जैसे धन कमाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। उस धन से आम मोल लेकर खाया जाता है। इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा हमारा इष्ट देव यानि पूज्य देव है। जो देवताओं के मंत्र का जाप मेहनत (मजदूरी) है। जो नाम जाप की कमाई रूपी भक्ति धन मिलेगा, उसको काल ब्रह्म में छोड़कर कर्जमुक्त होकर अपने इष्ट यानि पूज्य देव कबीर देव (कविर्देव) को प्राप्त करेंगे। यह बात सुनकर गरूड़ जी अति प्रसन्न हुए तथा गुरू के पूर्ण गुरू होने का भी साक्ष्य मिला कि पूर्ण गुरू ही शंका का समाधान कर सकता है और दीक्षा प्राप्ति की। गरूड़ को त्रोतायुग में शरण में लिया था। श्री विष्णु जी का वाहन होने के कारण तथा बार-बार उनकी महिमा सुनने के कारण तथा कुछ चमत्कार श्री विष्णु जी के देखकर गरूड़ जी की आस्था गुरू जी में कम हो गई, परंतु गुरू द्रोही नहीं हुआ। फिर किसी जन्म में मानव शरीर प्राप्त करेगा, तब परमेश्वर कबीर जी गरूड़ जी की आत्मा को शरण में लेकर मुक्त करेंगे। दीक्षा के पश्चात् गरूड़ जी ने ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी से ज्ञान चर्चा करने का विचार किया। गरूड़ जी चलकर ब्रह्मा जी के पास गए। उनसे ज्ञान चर्चा की।
‘‘‘गरूड़ वचन ब्रह्मा के प्रति‘‘
ब्रह्मा कहा तुम कैसे आये। कहो गरूड़ मोहे अर्थाय।।
तब हम कहा सुनों निरंजन पूता। आया तुम्हें जगावन सूता।।
जन्म-मरण एक झंझट भारी। पूर्ण मोक्ष कराओ त्रिपुरारी।।
शब्दार्थ:- परमेश्वर कबीर जी से दीक्षा लेने के पश्चात् तथा संसार की उत्पत्ति की कथा सुनकर गरूड़ जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि जो ज्ञान पुराणों व वेदों में है, वह ज्ञान कबीर जी के ज्ञान से मिलता है तो जो अन्य ज्ञान है, वह गलत नहीं हो सकता। सृष्टि की उत्पत्ति का ज्ञान उत्पत्तिकर्ता यानि परमेश्वर के बिना कोई नहीं बता सकता। यह ऋषि नहीं परमेश्वर हैं। यह विचार करके गरूड़ जी श्री ब्रह्मा जी के लोक में गए क्योंकि ब्रह्मा जी को वेदों का ज्ञाता माना जाता है। ब्रह्मा ने गरूड़ से आने का कारण जानना चाहा कि बताओ गरूड़ कैसे आना हुआ? गरूड़ ने कारण बताते हुए कहा कि हे ज्योति निरंजन के पुत्र यानि ब्रह्मा! सुनो मेरे आने का कारण, मैं आप जी को अज्ञान अंधकार में सोए हुए को तत्वज्ञान द्वारा जगाने यानि सतर्क करने आया हूँ। जन्म-मरण का भारी संकट है। आप अपना पूर्ण मोक्ष करवाओ।
‘‘ब्रह्मा वचन‘‘
हमरा कोई नहीं जन्म दाता। केवल एक हमारी माता।।
पिता हमारा निराकर जानी। हम हैं पूर्ण सारंगपाणी।।
हमरा मरण कबहु नहीं होवै। कौन अज्ञान में पक्षि सोवै।।
तबही ब्रह्मा विमान मंगावा। विष्णु, ब्रह्मा को तुरंत बुलावा।।
गए विमान दोनों पासा। पल में आन विराजे पासा।।
इन्द्र कुबेर वरूण बुलाए। तेतिस करोड़ देवता आए।।
आए ऋषि मुनी और नाथा। सिद्ध साधक सब आ जाता।।
ब्रह्मा कहा गरूड़ नीन्द मैं बोलै। कोरी झूठ कुफर बहु तोलै।।
कह कोई और है सिरजनहारा। जन्म-मरण बतावै हमारा।।
ताते मैं यह मजलिस जोड़ी। गरूड़ के मन क्या बातां दौड़ी।।
ऋषि मुनि अनुभव बताता। ब्रह्मा, विष्णु, शिव विधाता।।
निर्गुण सरगुण येही बन जावै। कबहु नहीं मरण मैं आवै।।
शब्दार्थ:- ब्रह्मा ने कहा कि हे गरूड़! हमारा जन्म-मृत्यु होता ही नहीं। हमारा कोई माता-पिता नहीं, हमारी केवल एक माता है। हमारा पिता निराकार है। हम पूर्ण परमात्मा हैं। (सारंग माने धनुष, पाणी माने हाथ=हाथ में धनुष रखने वाले को काल लोक के प्राणी परमात्मा कहते हैं।) हे पक्षी गरूड़! तू अज्ञान निद्रा में सोया है। सुन! हमारा जन्म-मरण कभी नहीं होता। उसी समय ब्रह्मा ने विमान मँगवाकर चालक से कहा कि विष्णु और शिव को ले आओ। विमान दोनों को क्षण में लेकर आ गया। इसके साथ-साथ तेतीस करोड़ देवता तथा देवताओं के राजा इन्द्र तथा धन के देवता कुबेर, जल के देवता वरूण भी बुलाए। अठासी हजार ऋषिजन, नौ नाथ, चैरासी सिद्ध सबको बुलाया गया। पूरी सभा लग गई। ब्रह्म ने कहा कि गरूड़ ऐसी बातें कर रहा है जैसे कोई नींद में बड़बड़ाता है। सब झूठ कह रहा है। कह रहा है कि तुम ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव का जन्म-मृत्यु होता है। तुमसे अन्य कोई सृष्टि की रचना करने वाला परमात्मा है। इसलिए हमने यह सभा बुलाई है कि गरूड़ के मन में ये कैसी बातें आ रही हैं?
ब्रह्मा जी कहते रहे थे कि सब ऋषि व मुनि (साधक) अपना अनुभव बताते हैं कि ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जगत के उत्पत्तिकर्ता परमात्मा हैं। ये ही निर्गुण तथा सगुण बनकर लीला करते हैं। इनकी कभी मृत्यु नहीं होती।
‘‘विष्णु वचन‘‘
पक्षीराज यह क्या मन में आई। पाप लगै बना आलोचक भाई।। हमसे और कौन बडेरा दाता। हमहै कर्ता और चैथी माता।। तुमरी मति अज्ञान हरलीनि। हम हैं पूर्ण करतार तीनी।।
शब्दार्थ:- विष्णु ने कहा कि हे पक्षियों के राजा गरूड़! तेरे मन में यह गलत बात कैसे आई कि हमारा जन्म-मरण होता है। आप तो निंदा के पात्र बन गए हैं। हमसे बड़ा कौन परमात्मा है? हम तीनों तथा चैथी माता दुर्गा ही इस संसार के कर्ता हैं। तेरी बुद्धि अज्ञान ने समाप्त कर दी है। हमसे कोई अन्य सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता बता रहा है। हम तीनों पूर्ण करतार यानि पूर्ण परमात्मा हैं। सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता हैं।
‘‘महादेव वचन‘‘
कह महादेव पक्षी है भोला। हृदय ज्ञान इन नहीं तोला।।
ब्रह्मा बनावै विष्णु पालै। हम सबका का करते कालै।।
और बता गरूड़ अज्ञानी। ऋषि बतावै तुम नहीं मानी।।
चलो माता से पूछै बाता। निर्णय करो कौन है विधाता।।
सबने कहा सही है बानी। निर्णय करेगी माता रानी।।
सब उठ गए माता पासा। आपन समस्या करी प्रकाशा।।
शब्दार्थ:- महादेव यानि शिव जी ने कहा कि यह पक्षी भोला है। इसने अपने ज्ञान की जाँच किए बिना ही बोल रहा है। ब्रह्मा जीव की उत्पत्ति करता है, विष्णु पालन करता है। मैं सहार करता हूँ। हे अज्ञानी गरूड़! तू बता, अन्य कौन समर्थ प्रभु है? श्री शिव जी ने उपस्थित सभा से कहा कि चलो माता दुर्गा जी से जानते हैं कि पूर्ण परमात्मा कौन है, निर्णय करके बताए। शिव जी की राय का सबने अनुमोदन किया। कहा कि आपकी बातें सही हैं। माता रानी निर्णय करेंगी। सभा में उपस्थित सब उठकर माता देवी जी के पास गए और अपनी समस्या बताई।
‘‘माता वचन‘‘
कहा माता गरूड़ बताओ। और कर्ता है कौन समझाओ।।
शब्दार्थ:- माता देवी ने गरूड़ से ही प्रश्न किया कि तुम ही बताओ कि संसार का विधाता यानि उत्पत्ति करने वाला इनसे भिन्न कौन है?
‘‘गरूड़ वचन‘‘
मात तुम जानत हो सारी। सच्च बता कहे न्याकारी।।
सभा में झूठी बात बनावै। वाका वंश समूला जावै।।
मैं सुना और आँखों देखा। करता अविगत अलग विशेषा।।
जहाँ से जन्म हुआ तुम्हारा। वह है सबका सरजनहारा।।
वेद जाका नित गुण गावैं। केवल वही एक अमर बतावै।।
मरहें ब्रह्मा विष्णु नरेशा। मर हैं सब शंकर शेषा।।
अमरपुरूष सत पुर रहता। अपने मुख सत्य ज्ञान वह कहता।।
वेद कहे वह पृथ्वी पर आवै। भूले जीवन को ज्ञान बतलावै।।
क्या ये झूठे शास्त्रा सारे। तुम व्यर्थ बन बैठे सिरजनहारे।।
मान बड़ाई छोड़ो भाई। ताकि भक्ति करे अमरापुर जाई।।
माता कहना साची बाता। बताओ देवी है कौन विधाता।।
शब्दार्थ:- गरूड़ ने कहा, हे माता! आपको सब ज्ञान है। न्यायधीश को चाहिए कि वह सत्य बात कहे। जो न्यायकर्ता सभा में झूठी बात करता है तो यह परमात्मा का विधान है कि उसका वंश नष्ट होता है। गरूड़ ने आगे कहा कि हे माता! जिस परमेश्वर ने आपकी भी उत्पत्ति की है, वह सबका उत्पत्ति करता है। मैंने आँखों देखा और तत्वदर्शी से सुना है। वह कर्ता दिव्य अविगत विशेष है। वह भिन्न है।(अविगत का अर्थ है जिसका भेद गुप्त हो) वेदों में उसी की महिमा अधिक कही है। वेदों में बताया है कि केवल वही एक अविनाशी बताया है। ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव की मृत्यु होगी। अविनाशी परमात्मा तो सतलोक (ऋतधामा) में रहता है। वही पृथ्वी पर प्रकट होकर यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान अपने मुख से बोली वाणी में बताता है। अज्ञान के कारण सत्य भक्ति मार्ग से भटके अच्छे साधकों को सत्य मार्ग का ज्ञान कराता है। यह सब वेदों में प्रमाण है। क्या ये सब शास्त्रा झूठे हैं? हे तीनों देवताओ! आप फोकट सिरजनहार बने बैठे हो। हे भाई (ब्रह्मा-विष्णु-शिव)! मान-बड़ाई त्यागकर अपने जीव का कल्याण करवाओ। उस पूर्ण परमात्मा की भक्ति करो। गरूड़ ने माता की ओर अभिमुख होकर प्रार्थना की कि हे माता! सत्य बताओ, कौन है संसार का उत्पत्तिकर्ता?
‘‘माता (दुर्गा) वचन‘‘
माता कह सुनो रे पूता। तुम जोगी तीनों अवधूता।।
भक्ति करी ना मालिक पाए। अपने को तुम अमर बताए।।
वह कर्ता है सबसे न्यारा। हम तुम सबका सिरजनहारा।।
गरूड़ कहत है सच्ची बानी। ऐसे बचन कहा माता रानी।।
सब उठ गए अपने अस्थाना। साच बचन काहु नहीं माना।।
शब्दार्थ:- माता देवी दुर्गा ने ब्रह्मा, विष्णु, शिव से कहा कि हे पुत्रो! सुनो! तुम तीनों स्वयं साधक हो। सत्य भक्ति की नहीं। अपने को अमर बता रहे हो क्योंकि तुम्हें परमात्मा मिला ही नहीं। वह सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता तो सबसे भिन्न है। उसी ने तुम्हारे और हमारे जीवों की आत्मा की उत्पत्ति की है। माता ने जब यह बात कही तो सभा के सब सदस्य व ब्रह्मा, विष्णु, महेश उठकर अपने-अपने स्थानों पर चले गए, परंतु माता की बात को भी सत्य नहीं माना।
‘‘गरूड़ वचन‘‘
ब्रह्मा विष्णु मोहे बुलाया। महादेव भी वहाँ बैठ पाया।।
तीनों कहे कोई दो प्रमाणा। तब हम तोहे साचा जाना।।
मैं कहा गुंगा गुड़ खावै। दुजे को स्वाद क्या बतलावै।।
मैं जात हूँ सतगुरू पासा। ला प्रमाण करू भ्रम विनाशा।।
त्रिदेव कहें लो परीक्षा हमारी। पूर्ण करें तेरी आशा सारी।।
हमही मारें हमही बचावैं। हम रहत सदा निर्दावैं।।
गरूड़ कहा हम करें परीक्षा। तुम पूर्ण तो लूं तुम्हारी दीक्षा।।
उड़ा वहाँ से गुरू पासे आया। सब वृन्तात कह सुनाया।।
शब्दार्थ:- गरूड़ जी को श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी ने अपने पास श्री विष्णु लोक में बुलाया और कहा कि हे गरूड़! तुम कोई प्रमाण दो कि हमसे ऊपर कोई समर्थ शक्ति है, कोई अनुभव बताओ। तब हम आपकी बात को सत्य मानेंगे। गरूड़ जी ने उत्तर दिया कि जैसे गूंगा व्यक्ति गुड़ खाकर अन्य को उसका स्वाद नहीं बता सकता। वह उसका आनंद स्वयं ही महसूस करता है। प्रसन्नचित दिखाई देता है। इसी प्रकार मैं अपने अनुभव को आपसे साझा नहीं कर सकता। मैंने सतगुरू से सत्य आध्यात्मिक ज्ञान सुना है तथा पूर्ण परमात्मा को आँखों देखा है। आपको तो सतगुरू ही परमात्मा के दर्शन करवा सकते हैं। मैं अपने सतगुरू जी के पास जाता हूँ। आपको विश्वास करवाने के लिए कोई प्रमाण लाऊँगा जिससे आपकी शंका का समाधान हो सके। तीनों देवता बोले कि तू हमारी परीक्षा करके देख। हम तेरी सब मनोकामना पूर्ण कर देंगे। हम ही उत्पन्न करते हैं। हम ही पालन करते हैं। हम ही मारते हैं। हम ही मृत्यु से बचाते हैं। हम तीनों पूर्ण स्वतंत्र हैं। हम जो चाहें, वही कर सकते हैं। गरूड़ जी ने कहा कि मैं आपकी परीक्षा लूँगा। यदि आप पूर्ण परमात्मा साबित हुए तो मैं आपका शिष्य बनूँगा। गरूड़ वहाँ से उड़कर सतगुरू कबीर जी के पास आया। कबीर जी उस समय जोगजीत नाम से प्रकट थे। जोगजीत जी (कबीर जी) को सब वृत्तांत बताया।
‘‘सतगुरू (कबीर) वचन‘‘
गरूड़ सुनो बंग देश को जाओ। बालक मरेगा कहो उसे बचाओ।।
दिन तीन की आयु शेषा। करो जीवित ब्रह्मा विष्णु महेशा।।
फिर हम पास आना भाई। हम बालक को देवैं जिवाई।।
बंग देश में गरूड़ गयो, बालक लिया साथ।
त्रिदेवा से अर्ज करी, जीवन दे बालक करो सुनाथ।।
शब्दार्थ:- कबीर जी ने कहा कि हे गरूड़! आप बंग देश (वर्तमान में बंगलादेश) में जाओ। वहाँ एक बालक की तीन दिन की आयु शेष है। उसकी मृत्यु होगी। उस बालक को लेकर ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पास ले जाना। उनसे कहना कि इस बालक को जीवित करो। उनसे जीवित नहीं होगा। फिर मेरे पास बालक को ले आना। मैं जीवित कर दूँगा। गरूड़ जी अपने सतगुरू के आदेशानुसार बंग देश से बालक साथ लेकर तीनों देवताओं के पास गया और अर्ज की कि इस लड़के की आयु वृद्धि करके जीवन दान दो तो मानूँ कि आप समर्थ परमात्मा हो।
‘‘त्रिदेव वचन‘‘
धर्मराज पर है लेखा सारा। बासे जाने सब विचारा।।
गरूड़ और बालक सारे। गए धर्मराज दरबारे।।
धर्मराज से आयु जानी। दिन तीन शेष बखानी।।
याकी आयु बढ़ै नाहीं। मृत्यु अति नियड़े आयी।।
त्रिदेव कहँ आए राखो लाजा। हम क्या मुख दिखावैं धर्मराजा।।
धर्म कह आपन आयु दे भाई। तो बालक की आयु बढ़ जाई।।
चले तीनों नहीं पार बसाई। बने बैठे थे समर्थ राई।।
सुन गरूड़ यह सत्य है भाई। आई मृत्यु न टाली जाई।।
शब्दार्थ:- तीनों देवताओं ने कहा कि धर्मराज के पास सब जीवों की जन्म-मृत्यु का लेखा है। उससे बात करते हैं। गरूड़, बच्चा तथा तीनों देवता धर्मराज (काल ब्रह्म का न्यायधीश) के कार्यालय में गए और बालक की आयु कितनी शेष है, यह पता किया तो तीन दिन की आयु शेष पाई। धर्मराज ने कहा कि इसकी मृत्यु अति निकट है। आयु बढ़ नहीं सकती। तीनों देवताओं ने धर्मराज से कहा कि हे धर्मराज! हम आपके दरबार में आए हैं। हमारी इज्जत रखो। इस बालक की आयु वृद्धि कर दो। इस संसार में कैसे इज्जत पाऐंगे? धर्मराज ने कहा कि आपमें से कोई भी अपनी आयु दो तो आपकी मृत्यु हो जाएगी, बालक की आयु बढ़ जाएगी। गरूड़ ने बताया कि यह बात सुनकर तीनों उठकर चले गए जो स्वयंभू समर्थ बने बैठे थे। तीनों यह कहते हुए चले गए कि हे गरूड़! यह सत्य है कि जिसकी मृत्यु आ जाती है, उसे टाला नहीं जा सकता।
गरूड़ वचन
समर्थ में गुण ऐसा बताया। आयु बढ़ावै और अमर करवाया।।
अब मैं जाऊँ समर्थ पासा। बालक बचने की पूरी आशा।।
गया गरूड़ कबीर की शरणा। दया करो हो साहब जरणा(विश्वास)।।
शब्दार्थ:- गरूड़ ने कहा कि समर्थ में यह शक्ति बताई है कि साधक की आयु वृद्धि करता है तथा जन्म-मरण को सदा के लिए समाप्त करके अमर कर देता है। अब मैं समर्थ परमेश्वर के पास जाता हूँ। लड़के की मृत्यु टलने की पूरी आश है। यह कहकर गरूड़ जी ने बालक को उसके घर छोड़ा और कबीर परमेश्वर के पास गया और कहा कि हे परमात्मा! बच्चे को जीवित करने की दया करो ताकि जनता को आपके सामथ्र्य पर विश्वास हो सके।
‘‘कबीर साहब वचन‘‘
सुनो गरूड़ एक अमर बानी। यह अमृत ले बालक पिलानी।।
जीवै बालक उमर बढ़ जावै। जग बिचरे बालक निर्दावै।।
बालक लाना मेरे पासा। नाम दान कर काल विनाशा।।
जैसा कहा गरूड़ ने कीन्हा। बालक कूं जा अमृत दीना।।
ले बालक तुरंत ही आए। सतगुरू से दीक्षा पाए।।
आशीर्वाद दिया सतगुरू स्वामी। दया करि प्रभु अंतर्यामी।।
बदला धर्मराज का लेखा। ब्रह्मा विष्णु शिव आँखों देखा।।
गए फिर धर्मराज दरबारा। लेखा फिर दिखाऊ तुम्हारा।।
धर्मराज जब खाता खोला। अचर्ज देख मुख से बोला।।
परमेश्वर का यह खेल निराला। उसका क्या करत है काला।।
वो समर्थ राखनहारा। वाने लेख बदल दिया सारा।।
सौ वर्ष यह बालक जीवै। भक्ति ज्ञान सुधा रस पीवै।।
यह भी लेख इसी के माहीं। आँखों देखो झूठी नाहीं।।
देखा लेखा तीनों देवा। अचर्ज हुआ कहूँ क्या भेवा।।
बोले ब्रह्मा विष्णु महेशा। परम पुरूष है कोई विशेषा।।
जो चाहे वह मालिक करसी। वाकी शरण फिर कैसे मरसी।।
पक्षीराज तुम साचे पाये। नाहक हम मगज पचाऐ।।
करो तुम जो मान मन तेरा। तुम्हरा गरूड़ भाग बड़ेरा।।
पूर्ण ब्रह्म अविनाशी दाता। सच्च में है कोई और विधाता।।
इतना कह गए अपने धामा। गरूड़ और बालक करि प्रणामा।।
भक्ति करी बालक चित लाई। गरूड़ अरू बालक भये गुरू भाई।।
धर्मदास यह गरूड़ को बोधा। एक-एक वचन कहा मैं सोधा।।
शब्दार्थ:- कबीर परमेश्वर जी ने अपने करमण्डल (लोटे) से कुछ जल गरूड़ को दिया और कहा कि यह अमृत जल है। इसे लड़के को पिला दे। इसको पीने से उसकी इच्छा दीक्षा लेने की बनेगी। काल का दबाव हट जाएगा। फिर उस लड़के को मेरे पास लाकर दीक्षा दिलाना। उसका आने वाला काल (मृत्यु) समाप्त हो जाएगा। सतगुरू के आदेश का पालन गरूड़ ने किया। लड़के को अमृत पिलाया। उससे उसकी प्रबल इच्छा दीक्षा लेने की बनी। गरूड़ बच्चे को सतगुरू जी के पास लाया और दीक्षा दिलाई। परमात्मा ने बालक को आशीर्वाद देकर कृतार्थ किया। उसी समय धर्मराज जी का लेखा बदल गया। इसको तीनों देवताओं ने धर्मराज के दरबार में जाकर अपनी आँखों देखा। धर्मराज ने उसे पढ़कर सुनाया व दिखाया जिसमें लिखा था कि यह मनुष्य शरीरधारी जीव अब सौ वर्ष तक जीवित रहेगा तथा भक्ति भी करेगा। यह पूर्ण परमात्मा की ओर से आयु वृद्धि की गई है। धर्मराज ने पढ़ा तथा ब्रह्मा, विष्णु, शिव ने आँखों देखा। यह देखकर उनको आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हुआ? धर्मराज ने भी देखकर आश्यर्च किया और कहा कि परमेश्वर की यह अद्भुत लीला है। उसका काल यानि काल ब्रह्म क्या कर सकता है? काल ब्रह्म द्वारा निर्धारित मृत्यु समय परमेश्वर के आदेश से समाप्त हो जाता है। वह अन्य समर्थ जीव का रक्षक है। उसने मेरी किताब में सब पुराने लेख बदल दिए। यह बच्चा सौ वर्ष तक जीवित रहेगा तथा भक्ति भी करेगा। यह भी इसी में लिखा है। मैं झूठ नहीं कह रहा हूँ, आप स्वयं देख लो। आँखों देखकर ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी ने कहा कि यह आश्चर्य की बात है। वास्तव में कोई परम पुरूष अन्य है। वह जो चाहे सो कर सकता है। जो उसकी शरण में चला गया, वह कैसे मर सकता है? हे पक्षियों के राजा गरूड़! तुम्हारी बात सत्य पाई। हमने तो व्यर्थ में आपसे वाद-विवाद किया। तुम करो जो तेरे मन माने। हे गरूड़! तुम्हारा भाग्य अच्छा है। इतनी बात कहकर तीनों अपने-अपने धाम को चले गए। गरूड़ तथा लड़के ने उनको तथा धर्मराज को प्रणाम किया।
कबीर जी ने धर्मराज जी को बताया कि इस प्रकार वह लड़का तथा गरूड़ दोनों गुरू भाई बने। हे धर्मदास! यह है गरूड़ को शरण में लेने की कथा यानि गरूड़ बोध।
श्री हनुमान जी के गुरू जी कौन थे? आप जी पढ़ें ‘‘कबीर सागर’’ से अध्याय ‘‘हनुमान बोध’’ का सारांश:-