ऋषि रामानन्द, सेऊ, समन तथा नेकी व कमाली के पूर्व जन्मों का ज्ञान
ऋषि रामानन्द जी का जीव सत्ययुग में विद्याधर ब्राह्मण था जिसे परमेश्वर सत सुकृत नाम से मिले थे। परमेश्वर की परवरिश की लीला इन्हीं के घर पर हुई थी। इनकी पत्नी का नाम दीपिका था। ये निःसन्तान थे। त्रोता युग में वह वेदविज्ञ नामक ऋषि था जिसको परमेश्वर मुनिन्द्र नाम से शिशु रूप में प्राप्त हुए थे तथा कमाली वाली आत्मा सत्य युग में विद्याधर की पत्नी दीपिका थी। त्रोता युग में सूर्या नाम की वेदविज्ञ ऋषि की पत्नी थी। दोनों जन्मों में ये निःसन्तान थे। उस समय इन्होने परमेश्वर को पुत्रावत् पाला तथा प्यार किया था। उसी पुण्य के कारण ये आत्माऐं परमात्मा को चाहने वाली थी। कलयुग में भी इनका परमेश्वर के प्रति अटूट विश्वास था। ऋषि रामानन्द व कमाली वाली आत्माऐं ही सत्ययुग में ब्राह्मण विद्याधर तथा ब्राह्मणी दीपिका वाली आत्माऐं थी। आयु 60 वर्ष हो चुकी थी, निःसन्तान थे, उनको ससुराल से आते समय कबीर परमेश्वर एक तालाब में कमल के फूल पर शिशु रूप में मिले थे। यही आत्माऐं त्रोता युग में (वेदविज्ञ तथा सूर्या) ऋषि दम्पति थे। जिन्हें परमेश्वर शिशु रूप में प्राप्त हुए थे। उस समय भी दोनों की आयु लगभग 60 वर्ष थी, निःसन्तान थे। सम्मन तथा नेकी वाली आत्माऐं द्वापर युग में कालु बाल्मीकि तथा उसकी पत्नी गोदावरी थी। जिन्होंने द्वापर युग में परमेश्वर कबीर जी का शिशु रूप में लालन पालन किया था। उसी पुण्य के फल स्वरूप परमेश्वर ने उन्हें अपनी शरण में लिया था। सेऊ (शिव) वाली आत्मा द्वापर में ही एक गंगेश्वर नामक ब्राह्मण का पुत्रा गणेश था। जिसने अपने पिता के घोर विरोध के पश्चात् भी मेरे (कबीर जी अर्थात् करुणामय के) उपदेश को नहीं त्यागा था तथा गंगेश्वर ब्राह्मण वाली आत्मा कलयुग में शेख तकी बना। वह द्वापर युग से ही परमेश्वर का विरोधी था। गंगेश्वर वाली आत्मा शेख तकी को काल ब्रह्म ने फिर से प्रेरित किया। जिस कारण से शेख तकी (गंगेश्वर) परमेश्वर कबीर जी का शत्राु बना। भक्त गणेश श्री कालु तथा गोदावरी को माता-पिता तुल्य सम्मान करता था। रो-2 कर कहता था काश आज मेरा जन्म आप (बाल्मीकि) के घर होता। मेरे (पालक) माता-पिता (कालु तथा गोदावरी) भी गणेश से पुत्रावत् प्यार करते थे। उनका मोह भी उस बालक में अत्यधिक हो गया था। इसी कारण से वे फिर से उसी गणेश वाली आत्मा अर्थात् सेऊ के माता-पिता (नेकी तथा सम्मन) बने। सम्मन की आत्मा ही नौशेरखां शहर में नौशेरखाँ राजा बना फिर बलख बुखारे का बादशाह अब्राहिम अधम सुलतान हुआ तब उसको पुनः भक्ति पर लगाया।