धर्मदास के पुत्र नारायण दास का काल दूत का रूप दिखाना
धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी को अपने घर पर आया देख अति श्रद्धा से सत्कार किया। अपने पुत्र नारायण दास से कबीर देव से नाम दिक्षा लेने की प्रार्थना की। नारायण दास ने धर्मदास जी से कहा हे पिता जी! आप कैसी बातें कर रहे हो? श्री कृष्ण जी से ऊपर कोई परमात्मा नहीं है। आप को इस साधु ने भ्रमित कर रखा है। कोई सतपुरूष अन्य परमात्मा नहीं, श्री विष्णुलोक को ही सेत (श्वेत) लोक कहते हैं। श्री विष्णु ही अविनाशी परमात्मा हैं। इनके कोई माता-पिता नहीं है। धर्मदास जी ने देखा मेरा पुत्र काल के मुख में जाएगा पुत्र मोह वश बार-2 अपने पुत्र नारायण दास को समझाने की कोशिश की। परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ से भी प्रार्थना की है प्रभु! कृप्या आप ही कुछ समझाओ यह तो बहुत ही हठ कर रहा है। परमात्मा कबीर जी के समझाने से भी नारायण दास नहीं माना तो धर्मदास ने अति प्यार से नारायण दास को मनाना चाहा परन्तु नारायण दास टस से मस नहीं हुआ तथा कहा कि यह सन्त मुझे अच्छा नहीं लगता। इसने मेरे पिता को यथार्थ ज्ञान से विचलित करके मनमुखी कथाओं पर आरूढ़ कर दिया है। धर्मदास जी को अति परेशान देख कर परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को अपने पास बुलाया तथा कहा हे धर्मदास! नारायण दास की ओर ध्यानपूर्वक देख। ऐसा कहकर कबीर प्रभु ने अपना दायाँ हाथ आशीर्वाद देने की स्थिति में नारायण दास की ओर किया। उसी समय नारायण दास का चेहरा भयंकर दिखाई दिया। फिर वैसा ही हो गया जो नारायण दास का था। धर्मदास ने परमेश्वर से विनयपूर्वक पूछा हे परमेश्वर मेरे पुत्र का यह ऐसा भयंकर स्वरूप कैसे दिखाई दिया। परमेश्वर कबीर जी ने बताया हे धर्मदास! आप मेरे अंश हो काल ब्रह्म ने अपना दूत आप के घर पहले ही पुत्र रूप में भेज रखा है। आप को पुत्र मोह में फंसा कर अपने जाल में ही रखना चाहता है। धर्मदास जी अपने पुत्र को काल दूत देखकर अति व्याकुल हो गए। नारायण दास से कहा ठीक है बेटा जैसे तेरी इच्छा, करले काम ! धर्मदास जी को अपना वंश नष्ट होने की चिन्ता सताने लगी। धर्मदास जी को चिन्तित देखकर कबीर परमेश्वर ने पूछा धर्मदास! किस कारण से चिन्तित हो? धर्मदास जी ने बताया हे परमेश्वर ! मेरा तो वंश काल का कुल होगा। मेरा वंश नष्ट हो जाएगा। कबीर परमेश्वर ने कहा धर्मदास। आप चिन्ता मत करो। तेरा वंश ब्यालीस पीढ़ी तक चलेगा जो मेरा गुणगान करेगा। तब धर्मदास ने पूछा हे बन्दी छोड़! मेरा तो इकलौता पुत्र है नारायण दास। यह काल का दूत है। मेरी ब्यालीस पीढ़ी कैसे होंगी, तब कबीर परमेश्वर जी ने कहा आपको एक पुत्र मेरी कृपा से प्राप्त होगा जिससे तेरा ब्यालीस पीढ़ी तक वंश रहेगा। धर्मदास जी ने विनम्र होकर पूछा हे दीनदयाल! आप के दास की आयु 85 वर्ष हो चुकी है। नारायण दास के पश्चात् कोई सन्तान नहीं हुई। आपकी शिष्या आमनी देवी का मासिक धर्म भी वर्षों से बन्द है। इस स्थिति में बच्चा उत्पन्न होना अति असम्भव है। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी के भ्रम को निवारण करने के लिए अपनी शक्ति से एक नवजात शिशु आंगन में लेटा हुआ दिखाया तथा कहा कि यह लड़का दसवें महिने तेरी पत्नी के गर्भ से उत्पन्न होगा। इसका नाम चूरामणी (चूड़ामणी ) रखना। वह बच्चा अन्तर्धान हो गया। आमिनी देवी को गर्भ रहा तथा दसवें महीने वि.सं. 1538 (सन् 1481) में एक सुन्दर लड़का उत्पन्न हुआ। जिसका नाम चूड़ामणी रखा। नारायण दास अपने छोटे भाई चूड़ामणी से द्वेष रखने लगा। चूड़ामणी बान्धव गढ़ छोड़ कर कुदरमाल गाँव में रहने लगा। कुछ समय पश्चात् बांधवगढ़ पूरा नगर नष्ट हो गया। नारायण दास ने बांधवगढ़ में श्री कृष्ण मन्दिर बनवा रखा था। नारायण दास का सर्व कुल व पंथ नष्ट हो गया। चूड़ामणी जी से धर्मदास का वंश चला जो ब्यालीस पीढ़ी तक चलेगा।
विशेष विचार:- उसी वंश की शाखा दामाखेड़ा (छत्तीसगढ़) में है। जो झूठा दावा करते हैं कि कबीर परमेश्वर जी ने कहा था कि केवल धर्मदास जी के वंश द्वारा उपदेश प्राप्त करके कलयुग में मोक्ष प्राप्त कर सकेंगे। जब तक धर्मदास का वंश चलेगा। तब तक मैं (कबीर जी) पृथ्वी पर पग (पैर) नहीं रखूंगा। यह दामाखेड़ा वाले महन्तों की मिथ्या भ्रमित करने वाली कहानी है। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी के अन्तर की चिन्ता को जाना था कि धर्मदास कुल नष्ट होने की आशंका के कारण अति चिन्तित हो गया है। इसलिए परमेश्वर बन्दी छोड़ जी ने धर्मदास जी का ब्यालीस (42) पीढ़ी तक वंश चलने का आशीर्वाद दिया था। नाम दान के लिए तो परमेश्वर कबीर जी ने कहा था:- कबीर, धर्मदास तोहे लाख दोहाई, सार शब्द कभी बाहर न जाई।। सार शब्द बाहर जो पड़ही। बिचली पीढ़ी हंस न तरही। फिर कहा है कि:-
धर्मदास तोहे लाख दुहाई। सार ज्ञान कभी बाहर ना जाई।
सार ज्ञान बाहर जो परही। बिचली पीढी हंस नहीं तिरही।
तेतीस अरब ज्ञान हम भाषा, सार ज्ञान गुप्त ही राखा।
मूल (सार) ज्ञान तब तक छुपाई। जब तक द्वादश पंथ न मिट जाई।
(प्रमाणः- कबीर सागर अध्याय कबीर चरित्र बोध पृष्ठ 1870 तथा अध्याय कबीर बानी पृष्ठ 136-137 पर तथा अध्याय जीव धर्म बोध में बोध सागर पृष्ठ 1937 पर )
कबीर सागर कबीर बाणी पृष्ठ 134 पर=बारहवें वंश प्रगट हो उजियारा, तेरहवें वंश मिटे सकल अंधियारा।
उपरोक्त वाणी से स्पष्ट होता है कि बीसवीं सदी के मध्य सन् 1950 से प्रारम्भ होने वाली बिचली (मध्यवाली) पीढ़ी से पहले यह सार नाम तथा सारज्ञान (तत्वज्ञान) भी गुप्त रखना है। धर्मदास! तेरे अतिरिक्त इस सारशब्द का जिस से पूर्ण मोक्ष सम्भव है बाहर अर्थात् अन्य को पता नहीं चलना चाहिए। इस सारशब्द तथा सारज्ञान को तब तक छुपा कर रखना है जब तक बारह (द्वादश) पंथ समाप्त न हो जाऐं। जब धर्मदास जी ने सारशब्द अपने वंशजों को भी नहीं बताया तो उनके द्वारा दिए उपदेश से मोक्ष प्राप्त होने का प्रश्न ही नहीं उठता। वे केवल जनता को भ्रमित करके काल जाल में फांस रहे हैं। कबीर सागर में चूड़ामणी जी साहब के पंथ (दामा खेड़ा में चल रहा है) महिमा तो कबीर परमेश्वर की कहते हैं नाम मन्त्रा गलत देते हैं। जिसका प्रमाण है उनके द्वारा दिए जाने वाले पाँच नाम (आदि नाम, अजर नाम, अमीनाम, पाताले सप्त सिंधु नाम, आकाशे अदली निज नाम-----------) है।
(वैसे तो सर्व कथित कबीर पंथी एक पूरी कविता नाम दिक्षा में देते हैं जिसमें पांचनामों का वर्णन है जो इस प्रकार है:- सत सुकृत की रहनी रहो अजर अमर गहो सत्य नाम कहे कबीर मूल दिक्षा सत्य शब्द प्रमाण। आदि नाम, अजर नाम, अमीनाम, पाताले सप्त सिंधु नाम यही नाम हंस का काम खुले कपाट पाँजी चढ मूल के घाट भर्म भूत का बांधों गोला। कहे कबीर यही प्रमाण पांच नाम ले हंसा सत्यलोक समान)
जिस से स्पष्ट है कि धर्मदास जी के वंशज गलत नाम दान करते है।
कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास के पुत्र चूड़ामणी को केवल पांच नाम का उपदेश देने का आदेश दिया (वे पाँच नाम उन नाम मन्त्रों से भिन्न तथा वास्तविक हैं जो दामाखेड़ा वाले महन्त देते हैं वे वास्तविक नाम संत रामपाल दास जी महाराज देते हैं) जिन से तेरे वंशजों में भक्ति भाव बना रहेगा तथा मेरी महिमा सन् 1951 अर्थात् बिचली पिढ़ी (मध्यवाली पीढ़ी जो शब्द वंश होगा) के प्रारम्भ तक संसार में बनी रहेगी। संवत् 1774 में अर्थात् संत गरीब दास गाँव छुड़ानी जि. झज्जर हरियाणा के उत्पन्न होने पर उनके द्वारा मेरी महिमा की वाणी प्रकट की जाएगी। उस वाणी से श्रद्धालुओं को विशेष लगन मुझ (कबीर जी) में होगी।
सन्त गरीबदास जी वाला पंथ काल का बारहवां पंथ होगा। बारहवें पंथ तक सर्व बारह पंथों के अनुयाई मेरी महिमा की वाणी के आधार पर अपने अनुयाईयों को प्रवचन किया करेगें परन्तु वे मेरी वाणी को यथार्थ रूप से नहीं समझ सकेंगे क्योंकि उन्हें सार ज्ञान (तत्वज्ञान) नहीं होगा। बारहवें पंथ अर्थात् गरीब दास जी वाले पंथ में आगे चल कर हम ही चल कर आऐंगे अर्थात् कोई मेरा परम सन्त उत्पन्न होगा जो सन्त गरीब दास जी वाले पंथ का अनुयाई होगा तथा मेरी वाणी को यथार्थ रूप में समझेगा। फिर सर्व पंथों को ज्ञान आधार से समाप्त करके केवल एक पंथ ही चलाऐंगे। पूरे विश्व में एक तत्वज्ञान ही चलेगा। कबीर परमेश्वर जी ने कहा था धर्मदास उस समय पृथ्वी पर केवल मेरा ही ज्ञान रह जाएगा अन्य लोक वेद समाप्त हो जाएगा।
यदि दामाखेड़ा (मध्यप्रदेश) वाले महन्तों की यह बात सत्य नहीं है कि कबीर साहेब जी ने धर्मदास जी से कहा था कि जब तक तेरा वंश पृथ्वी पर रहेगा मैं पृथ्वी पर पग (पैर) नहीं रखूंगा। परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी सन् 1518 में मगहर स्थान से सशरीर सतलोक जाने के पश्चात् (1) सन्त दादू साहेब जी को पृथ्वी पर आकर मिले थे सतलोक दर्शन करा कर नाम उपदेश दिया, (2) सन्त घीसा सन्त जी को मिले, (3) सन्त गरीब दास जी को सन् 1727 में मिले तथा उपदेश दिया उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध हुआ कि दामाखेड़ा (मध्यप्रदेश) वाले महन्तों का वह दावा मिथ्या है जिसमें कहा है कि कबीर जी ने कहा था कि जब तक धर्मदास जी का पंथ चलेगा वे (कबीर परमेश्वर जी) पृथ्वी पर प्रकट नहीं होंगे न किसी को नाम दान करेंगे केवल धर्मदास के वंश से ही नाम दान लेना होगा वही मोक्ष मन्त्रा देगा। यह सर्वथा गलत और मनघड़ंत कहानी दामाखेड़ा वाले महन्तों ने काल प्रेरणा से श्रद्धालुओं को भ्रमित करने तथा काल जाल में फांसने के उद्देश्य से बनाई है। परमेश्वर कबीर जी ने तो कहा है कि:-
द्वादश पंथ काल फरमाना, भूले जीव न जायें ठिकाना
(प्रमाणः- कबीर सागर अध्याय कबीर वाणी पृष्ठ 136) उपरोक्त वाणी का भावार्थ है कि उन बारह पंथों में काल का उपदेश अर्थात् नाम दान चलेगा, उन बारह पंथों के जीव वास्तविक भक्ति विधि से अपरिचित होंगे जिस कारण से वे अपने ठिकाने अर्थात् सत्यलोक में नहीं जा सकेंगे।
विशेष विवरणः- पुस्तक ‘‘कबीर सागर’’ अध्याय=कबीर चरित्र बोध पृष्ठ स. 1862 से 1865 तक लिखा है कि कलयुग में कबीर साहेब ने चार गुरू नियत किए हैं (1) धर्मदास जी जिसके बियालीस वंश हैं, उत्तर में गुरूवाई सौंपी है। (2) दूसरे चतुर्भज जी दक्षिण में गुरूवाई करेंगे। (3) तीसरे बंके जी पूर्व में गुरूवाई करेंगे। (4) चैथे सहती जी पश्चिम में गुरूवाई करेंगे।
विमर्श:- जिस समय कबीर सागर लिखा गया संवत् 1542 से 1562 (सन् 1485 से 1505 तक) में, उस समय तक केवल एक धर्मदास जी ही प्रकट हुए थे। जब शेष तीन गुरू भी प्रकट हो जाऐंगे अर्थात् अपने-2 अनुयाईयों को नाम दान देकर भक्ति पर लगाऐंगे तब पूरी पृथ्वी पर केवल कबीर साहेब जी का ही ज्ञान चलेगा। यही प्रमाण कबीर सागर अध्याय ‘‘अनुराग सागर’’ में पृष्ठ सं. 104- 105 पर है। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हुआ कि धर्मदास जी के पश्चात् पृथ्वी पर नाम दान देने के लिए तीन अन्य सन्त भी नाम दान देंगे उनके कार्य क्षेत्र भी भिन्न-2 विभाजित किए गए थे। इस से स्पष्ट हुआ कि धर्मदास जी के अतिरिक्त अन्य तीन सन्तों को भी कबीर जी ने कलयुग में नाम दान करने का आदेश दिया था जिनके द्वारा भी जीव उद्धार होगा। उपरोक्त विवरण से भी दामाखेड़ा वाले महन्तों द्वारा बनाई मनघड़ंत कथा गलत सिद्ध हुई कि कलयुग में केवल धर्मदास जी के वंशजों द्वारा ही जीव उद्धार सम्भव है, अन्य कोई अधिकारी परमेश्वर कबीर जी ने कलयुग में नहीं बनाया है।
प्रश्नः- धर्मदास जी ने अपने पुत्र चूड़ामणी जी को वास्तविक पाँच नाम
दान किए थे तथा आगे चूड़ामणी जी ने वे ही पाँच नाम दान किस लिए नहीं दिए?
उत्तरः- चूड़ामणी जी के वंशजों अर्थात् दामाखेड़ा वालों द्वारा लिखी पुस्तक ‘‘सुमरण शरण् गह बयालिस वंश’’ लेखकः- महंत हरिसिंह राठौर के पृष्ठ 52 पर लिखा है।
वाणी:- सुन धर्मनि जो वंश नशाई, जिनकी कथा कहुँ समझाई (93) काल चपेटा देवे आई, मम सिर नहीं दोष कछु भाई (94) सप्त, एकादश, त्रयोदश अंशा, अरू सत्रह ये चारों वंशा(95) इनको काल छलेगा भाई, मिथ्या वचन हमरा न जाई (96) सब अपनी बुद्धि कहें भाई, अंश वंश सब गए नशाई (101)
भावार्थ:- उपरोक्त वाणी में कबीर परमेश्वर जी ने स्पष्ट किया है की धर्मदास तेरे सातवें वंश को काल छलेगा। उस सातवें वंश के पश्चात् ये पाँच वास्तविक नाम दान करना भी बन्द कर दिए जाऐंगे। शेष ग्यारहवें तेरहवें तथा सत्रहवें वंश के पश्चात् पूर्ण रूप से ज्ञान नष्ट हो जाएगा सर्व अपनी-2 बुद्धि के अनुसार प्रवचन किया करेंगे। इस प्रकार आप के वंशजों से भक्ति तो नष्ट हो जाएगी परन्तु तेरा वंश पूरा ब्यालीस पीढ़ी तक चलेगा। कबीर सागर के अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ के पृष्ठ 140 (264) पर भी स्पष्ट है कि परमेश्वर कबीर जी ने कहा था कि ‘‘धर्मदास तेरी गद्दी परंपरा में छठी गद्दी (पीढ़ी) वाले को नकली कबीर पंथी ‘‘टकसारी‘‘ पंथ वाला भ्रमित करेगा। जिस कारण से छठी पीढ़ी वाला यथार्थ नाम भक्ति जो मैं बताऊंगा, उसे त्याग कर उस टकसारी पंथ वाली भक्ति विधि प्रारम्भ करेगा। चैका आरती भी तथा मंत्र नाम भी टकसारी वाले कराया करेगा।‘‘
“चैदहवीं महंत गद्दी का परिचय” पुस्तक “धनी धर्मदास जीवन दर्शन एवं वंश परिचय” पृष्ठ 49 पर तेरहवें महंत दयानाम के बाद कबीर पंथ में उथल-पुथल मची। काल का चक्र चलने लगा। क्योंकि इस परम्परा में कोई पुत्र नहीं था। तब तक व्यवस्था बनाए रखने के लिए महंत काशीदास जी को चादर दिया गया। कुछ समय पश्चात् काशी दास ने स्वयं को कबीर पंथ का आचार्य घोषित कर दिया तथा खरसीया शहर में अलग गद्दी की स्थापना कर दी। यह देख तीनों माताऐं रोने लगी कि काल का चक्र चलने लगा। बाद में कबीर पंथ के हित में ढाई वर्ष के बालक चतुर्भुज साहेब को बड़ी माता साहिब ने गद्दी सौंप दी जो “गृन्धमुनि नाम साहेब” के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
विचार करें: एक ढाई वर्ष का बालक क्या नाम व ज्ञान देगा ?
माता जी ने गद्दी पर बैठा दिया। बेटा महंत बन गया। जिसे भक्ति का क-ख का भी ज्ञान नहीं। इस प्रकार भोले श्रद्धालुओं को दंत कथाओं (लोकवेद) के आधार से स्वार्थी सन्त व महंत भ्रमित करके स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं।
महंत काशी दास जी ने खरसिया शहर में नकली कबीर पंथी गद्दी प्रारम्भ कर दी। उसी खरसिया से एक उदीतनाम साहेब ने मनमुखी गद्दी लहर तारा तालाब पर काशी (बनारस) में चालु कर रखी है। कबीर चैरा काशी में एक गंगाशरण शास्त्राी जी भी महंत पद पर विराजमान है। परंतु भक्ति का क-ख भी ज्ञान नहीं है।
उपरोक्त विवरण से प्रभु प्रेमी पाठक स्वयं निर्णय करें कि दामा खेड़ा वाले महंतों के पास वास्तविक भक्ति है या नहीं?
श्री चुड़ामणी जी के कुदरमाल चले जाने के पश्चात् बांधवगढ़ पूरा नष्ट हो गया। आज भी प्रमाण है।
बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को बताया हे धर्मदास! वर्तमान में मैं तत्व ज्ञान को लिपिबद्ध कराने आया हूँ। यह ज्ञान पद्य भाग में लोकोक्तियों, दोहों में वाणी रूप में प्रकट करूंगा। जब बिचली (मध्यावाली) पीढ़ी प्रारम्भ होगी उस समय बारहवें पंथ (सन्त गरीबदास) का अनुयाई बन कर जो मेरा तेरहवाँ वंश (अंश) तत्वज्ञान प्रचार करेगा। वह इस पद्य भाग का गद्य भाग में यथार्थ अनुवाद करेगा। उस तत्वदर्शी सन्त को मुझे समझना (मम सन्त मुझे ही जान, मेरा ही स्वरूपम्) तब तक मेरे इस तत्व ज्ञान को अपनी -2 बुद्धि से यथार्थ न समझ कर उल्टा अर्थ लगाकर अनुयाईयों को भ्रमित करते रहेंगे। उस समय उन सर्व पंथों के अज्ञान का पर्दाफाश उस तेरहवें वंश (मेरे सन्त) द्वारा किया जाएगा। उस समय सर्व मानव शिक्षित होगा। अन्य सन्तों द्वारा लिखी भ्रमित ज्ञान युक्त पुस्तकों को पढ़कर तत्वज्ञान से तुलना करेंगे। दोनों की भिन्नता को जान कर तुरन्त मेरे तत्वदर्शी सन्त की शरण ग्रहण करेंगे। इस प्रकार सर्व सद्ग्रन्थों का यथार्थ अनुवाद भी मेरा वह तेरहवां वंश (सन्त) करेगा। अन्य सन्तों व ऋषियों द्वारा किया अनुवाद भी उस समय सर्व के समक्ष होगा जो वर्षों पूर्व किया गया होगा।
जिसे सत्य अनुवाद मानकर बहुत बड़ा जनसमूह उस सन्तों व ऋषियों से जुड़ चुका होगा अर्थात् उनके मिथ्या ज्ञान को तत्वज्ञान मानकर उन ऋषियों व सन्तों के ढेर सारे अनुयाई बन चुके होंगे। वे बुद्धिमान शिक्षित अनुयाई मेरे अंश सन्त द्वारा किए गए सद्रग्रन्थों के अनुवाद से अपने-2 गुरूओं द्वारा किए गए अनुवाद का मेल करेंगे तो तुरन्त भिन्नता समझ जाऐंगे तथा उन अज्ञानी ऋषियों व सन्तों को त्याग कर ऐसे मेरे सन्त की शरण ग्रहण करेंगे जैसे कोई हड़बड़ाकर जागा हो। इस प्रकार धीरे-2 पूरी पृथ्वी पर मेरा ही ज्ञान प्रकाश हो जाएगा। अज्ञान पूर्ण रूप से नष्ट हो जाएगा।