अल-खिज्र (अल कबीर) की विशेष जानकारी
- अल-खिज्र (अल कबीर) की विशेष जानकारी
- सूक्ष्मवेद (कलामे कबीर = कबीर वाणी) के अतिरिक्त किसी धर्म ग्रन्थ में सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं है।
- वेदों में सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं है
- श्रीमद्भगवत गीता में भी सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं है
- बाईबल में तथा कुरआन में भी सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं है
- कुरआन शरीफ (मजीद) में भी सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं है
- पढ़ें वेदमंत्रों में कि अल्लाह पृथ्वी पर आता है
- अल-खिज्र का 55 हदीसों में जिक्र मिलता है
- हजरत मुहम्मद जी को अल्लाह कबीर मिले
अल-खिज्र (अल कबीर) की जानकारी
Quran Sharif Sura-Kafh 18:60-82 (कुरआन शरीफ सुरा-काफ 18 आयत 60-82) में जिक्र है, अल्लाह मूसा को उससे ज्यादा इल्म (तत्त्वज्ञान) रखने वाले एक शख्स से मिलने के लिए भेजता है। (हदीस में ये कहानी विस्तार से बताई गई है। 55 हदीसों में इस कहानी का जिक्र मिलता है।)
एक दिन हजरत मूसा सत्संग फरमा रहे थे। उनसे एक सत्संगी ने पूछा कि हे मूसा आज के दिन जमीन पर सबसे ज्यादा इल्म रखने वाला शख्स कौन है?
हजरत मूसा ने बड़े गर्व से उत्तर दिया ‘‘मैं’’।
अल्लाह को मूसा का ये अंदाज बिल्कुल पसंद ना आया और कहा कि मूसा तेरी यह बात सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ। तूने अपने आपको सबसे बड़ा इल्मी कैसे मान लिया?
घुटनों के बल बैठे मूसा ने कहा कि मैं आपका भेजा हुआ रसूल हूँ और मुझे सारा इल्म आपसे हासिल है। इसलिए मैंने ये कह दिया कि आज जमीन पर मेरे से ज्यादा इल्म किसी के पास नहीं है।
अल्लाह ने कहा कि मूसा जमीन पर तेरे से ज्यादा इल्म रखने वाला शख्स मौजूद है और तेरा इल्म उसके इल्म के सामने कुछ भी नहीं।
मूसा ने कहा कि हे अल्लाह! मैं उस शख्स से मिलना चाहता हूँ ताकि मैं वो इल्म हासिल कर सकूँ जो मेरे पास नहीं है। वो शख्स कहाँ रहता है और कैसे मिलेगा? ये बताने की मेहरबानी कीजिए।
अल्लाह ने कहा कि वो ’’मजमा-ए-बाहरेन‘‘ में रहता है यानि जहाँ मीठे और खारे पानी के दो दरिया आपस में मिलते हैं।
मूसा बोला कि हे अल्लाह! मैं उसे पहचानूंगा कैसे?
अल्लाह ने बताया कि तू अपने साथ एक बर्तन में मरी हुई मछली ले जा। जहाँ वो मछली जिंदा होकर पानी में गोता लगा देगी, समझ लेना वो नजदीक है।
(हदीस पुष्टि करती है कि ये शख्स जो मूसा से ज्यादा इल्मी/intelligent है और जिससे अल्लाह ने मूसा को कुरआन शरीफ सुरा काफ 18 आयत 60-82 में मिलने के लिए कहा है। उसका नाम अल-खिज्र है और सारा मुस्लिम जगत इससे सहमत है।)
मूसा अपने एक शागिर्द/सेवक को लेकर अल-खिज्र की तलाश में निकल पड़ता है और कसम खाता है चाहे मुझे सदियों तक क्यों न चलना पड़े, मैं अल-खिज्र से इल्म हासिल करके ही चैन लूँगा।
काफी लंबा सफर तय करने के बाद मूसा व उसका शागिर्द ’’मजमा-ए-बाहरेन‘‘ के इलाके में पहुँच गए। मूसा लंबे सफर की थकान उतारने के लिए एक पत्थर का टेका लेकर सो गए। इस दौरान शागिर्द ने देखा कि वो मृतक मछली जिसे वो एक बर्तन में लेकर चले थे, झटपटाई और जिंदा होकर पानी में कूद गई।
शागिर्द मूसा को मछली की जिंदा होने वाली बात बताना भूल जाता है और मूसा अल-खिज्र की खोज में अपने सफर पर आगे चल पड़ते हैं।
पूरा दिन, पूरी रात चलने के बाद अगली सुबह मूसा शागिर्द से बोलता है कि मैं सफर की थकान से चूर-चूर हो गया हूँ। ला मुझे कुछ खाने को दे दे। तब शागिर्द को ध्यान आता है कि जो मछली हम अपने साथ लाए थे, वह तो कल जहाँ हमने टेका लिया था, वहीं जिंदा होकर पानी में कूद गई थी और शैतान के प्रभाव से मैं आपको बताना भूल गया। ये सुनकर मूसा बोले यही तो वो मुकाम था जहाँ हमें रूकना था। मूसा और शागिर्द अपने कदमों के निशानों को देखते हुए वापिस उसी जगह पहुँच जाते हैं और उन्हें सफेद चादर ओढ़े हुए सफेद दाढ़ी वाला एक शख्स मिलता है।
मूसा ने अपना परिचय दिया और कहा कि मुझे अल्लाह ने आपसे इल्म सीखने के लिए भेजा है। मैं आपकी पैरवी करता हूँ। आप मुझे वो नेक इल्म सिखा दें जो आपके पास है। उत्तर में अल-खिज्र ने कहा कि मूसा! आप मेरे साथ हरगिज सब्र नहीं कर सकेंगे क्योंकि जिस चीज की हकीकत का आपको इल्म नहीं, उस पर आप सब्र कर भी कैसे सकते हैं? मूसा ने कहा कि आप मुझे सब्र करने वाला पाएँगे और मैं किसी बात में आपकी नाफरमानी नहीं करूँगा।
अल-खिज्र ने कहा कि अच्छा! अगर आप मेरे साथ चलना ही चाहते हो तो ध्यान रहे आप किसी चीज के बारे में मेरे से सवाल ना कीजिएगा, जब तक मैं खुद उसके बारे में ना बताऊँ।
इस मकाम से मूसा ने अपने शागिर्द को वापिस भेज दिया और अल-खिज्र के साथ अपना सफर शुरू किया।
रास्ते में कुछ मस्किन लोगों की एक कश्ती देखी। वो मेहनत करते और किराया लेकर लोगों को दरिया पार करवाया करते थे। अल-खिज्र और मूसा उस कश्ती पर सवार हो गए।
सफर के दौरान अल-खिज्र ने उस कश्ती के तख्ते तोड़ दिए और कश्ती में पानी भरने लगा। लोग पानी बाहर फैंकने लगे और जैसे-तैसे डूबने से बचे। ये देख मूसा ने इसे नापसंद फरमाया और अल-खिज्र से बोले क्या लोगों को डुबाने का इरादा है? इस पर अल-खिज्र ने जवाब दिया कि मैंने पहले ही कह दिया था कि आप मेरे साथ सब्र नहीं कर सकेंगे। मूसा ने कहा कि मेरी अक्ल ने काम नहीं किया। मुझे क्षमा कर दीजिए, आगे ऐसी गलती नहीं होगी।
फिर वह दोनों आगे चले और एक लड़के से मिले। अल-खिज्र ने उस लड़के को मार डाला। ये देखकर मूसा बोले क्या आपने एक बेगुनाह की जान ली? और वो भी किसी के खून के बदले में नहीं। ये तो आपने बड़ी घटिया और बेहद नापसंदीदा हरकत की। इस पर अल-खिज्र बोले मैंने आपसे कहा था कि आप मेरे साथ रहकर हरगिज सब्र नहीं कर सकेंगे।
मूसा ने जवाब दिया कि अब अगर मैं आपसे किसी चीज के बारे में सवाल करूँ तो बेशक मुझे अपने साथ ना रखिएगा यकीनन आप मेरी तरफ से हद्द ऊजुर को पहुँच चुके हैं। एक बार फिर सफर शुरू हुआ। दोनों एक गाँव में पहुँचे और मूसा ने खाने के लिए पूछा। गाँव वालों ने उनकी मेहमान नवाजी करने से साफ इनकार कर दिया। उस गाँव में दोनों ने एक दीवार को देखा जो गिरने के करीब थी। अल-खिज्र ने उसे दुरूस्त कर दिया। ये देखकर मूसा बोल पड़े आप चाहते तो इसकी गुजरत/कीमत ले सकते थे जिसे देकर हम खाना खा सकते थे। अल-खिज्र ने मूसा से कहा, बस! अब आपके और मेरे दरम्यान जुदाई है, जाने से पहले मैं आपको उन बातों की हकीकत बताऊँगा जिन पर आप सब्र ना कर सके।
- कश्ती कुछ गरीब मस्किन लोगों की थी जो दरिया में कामकाज करते थे। मैंने उसमें कुछ तोड़फोड़ करने का इरादा किया क्योंकि उनके आगे एक बादशाह था जो हर एक सही कश्ती को जबरन जब्त कर लेता, छेद होने की वजह से वो बादशाह उनकी कश्ती को जब्त नहीं करेगा और वो मस्किन कुछ पैसे लगाकर उसे दुरूस्त कर लेंगे।
- दूसरे वाकये के बारे में बताया कि उस लड़के के माँ-बाप अल्लाह को चाहने वाले थे। हमें खौफ हुआ कि कहीं ये लड़का उन्हें अपनी सरकशी और कुफ्र से आजिस और परेशान ना कर दे। इसलिए हमने चाहा कि उन्हें उनका परवरदिगार उससे बेहतर पाकीजगी वाला व उससे ज्यादा प्यार मोहब्बत वाला बच्चा इनायत फरमाए।
- दीवार का किस्सा ये है कि उस गाँव में दो यतीम बच्चे हैं जिनका खजाना उस दीवार के नीचे दफन है। उनका बाप बहुत नेक था। रब की यह चाहत थी कि ये दोनों यतीम अपनी जवानी की उम्र में आकर अपना ये खजाना उस रब की मेहरबानी और रहमत से निकालें।
इन तीनों किस्सों की मुहमलत करने के बाद अल-खिज्र एक अजीम अमल बयान करते हुए फरमाते हैं कि मूसा! ये थी असल हकीकत उन वाकियात की जिन पर आप सब्र ना कर सके।
’’सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान के विषय में प्रमाण‘‘
सूक्ष्मवेद (कलामे कबीर = कबीर वाणी) के अतिरिक्त किसी धर्म ग्रन्थ में सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं है।
प्रमाण:- हिन्दू धर्म के मुख्य ग्रन्थ चार वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) हैं। उनका सार यानि संक्षिप्त में ज्ञान श्रीमद्भगवत गीता है। इनका ज्ञान भी उसी अल्लाह (प्रभु) ने दिया है जिसने चारों किताबों (जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरआन) का ज्ञान दिया है। यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 में वेद ज्ञान दाता ने कहा है कि कोई तो परमेश्वर को कभी न उत्पन्न होने वाला यानि निराकार बताता है। कोई उत्पन्न होने वाला साकार मानते हैं जैसे राम, कृष्ण का जन्म हुआ, इनको प्रभु मानते हैं। परमात्मा निराकार है या साकार है? उत्पन्न होता है या उत्पन्न नहीं होता है? अवतार धारण करता है या नहीं करता? इसके विषय में (धीराणाम्) तत्त्वदर्शी संत ठीक-ठीक बताते हैं, उनसे सुनो।
विशेष:- सिद्ध हुआ कि वेदों में सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं है।
श्रीमद्भगवत गीता में भी सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं है।
प्रमाण:- हिन्दू समाज के लिए चारों वेद महत्वपूर्ण व विश्वास के योग्य ग्रन्थ है। वेदों से अधिक गीता को पढ़ा जाता है। गीता का ज्ञान भी उसी प्रभु (अल्लाह) ने दिया है जिसने चारों वेदों तथा चारों किताबों (जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरआन) का ज्ञान दिया है। हिन्दू धर्माचार्य मानते हैं कि श्रीमद्भगवत गीता चारों वेदों का सार है। इसी गीता के अध्याय 4 श्लोक 32 में कहा है कि (ब्रह्मणः) पूर्ण ब्रह्म (मुखे) अपने मुख कमल से वाणी बोलकर यथार्थ ज्ञान प्रचार करता है। उनकी उस वाणी में बताया ज्ञान ’’तत्त्वज्ञान‘‘ कहा जाता है। फिर गीता अध्याय 4 के ही श्लोक 34 में कहा है कि ’’हे अर्जुन! उस तत्त्वज्ञान को (जो समर्थ परमेश्वर मुख से वाणी बोलकर बताता है) तू किसी तत्त्वदर्शी संतों से पूछो। दंडवत् प्रणाम करके नम्रतापूर्वक प्रश्न करने से वे तत्त्वज्ञान जानने वाले ज्ञानी महात्मा तेरे को तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे।‘‘ {क्योंकि वही यथार्थ ज्ञान वही समर्थ प्रभु समय-समय पर अच्छी आत्माओं नेक बंदों को बताता रहता है, इसलिए कहा है। वह ज्ञान वर्तमान में मुझ दास (रामपाल दास) के पास है। विश्व में किसी को उसका ज्ञान नहीं है।}
विशेष:- इससे सिद्ध हुआ कि सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान श्रीमद्भगवत गीता में भी नहीं है।
बाईबल (जो जबूर, तौरेत तथा इंजिल तीनों पुस्तकों का योग है। इस बाईबल) में तथा कुरआन में भी सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं है।
प्रमाण:- ऊपर ‘‘अल-खिज्र (अल-कबीर) की जानकारी’’ शीर्षक में बताया है कि जिस अल्लाह ने पवित्र पुस्तक ’’जबूर‘‘ का, पवित्र पुस्तक तौरेत तथा पवित्र पुस्तक इंजिल का ज्ञान दिया है। उसने हजरत मुहम्मद जी को भी बताया (जो पवित्र पुस्तक कुरआन की सूरः काफ-18, आयत 60-82 में अंकित है) कि मैंने मूसा को वह ज्ञान जानने के लिए एक शख्स के पास भेजा जो ज्ञान मूसा को नहीं था। उस ज्ञान के सामने मूसा को प्राप्त ज्ञान (पुस्तक तौरेत) कुछ भी मायने नहीं रखता। मूसा जी उस ज्ञान को प्राप्त किए बिना ही खाली लौट आया था। इस प्रकरण से कई बातें निकलकर सामने आती हैं:-
- वह ज्ञान तौरेत पुस्तक में नहीं है। यदि होता तो अल-खिज्र के पास ज्ञान प्राप्ति के लिए भेजने की आवश्यकता ही नहीं थी।
- पवित्र जबूर, पवित्र तौरेत तथा पवित्र इंजिल का ज्ञान इसी अल्लाह ने क्रमशः हजरत दाऊद, हजरत मूसा तथा हजरत ईशा को एक-एक ही बार में दिया था यानि कुरआन के ज्ञान की तरह थोड़ा-थोड़ा करके नहीं उतारा था।
हजरत मूसा जी तौरेत के ज्ञान का प्रचार कर रहे थे। उसी ज्ञान का सत्संग कर रहे थे। सत्संग के दौरान किसी सत्संगी ने पूछा था कि हे मूसा! वर्तमान में संसार में सबसे विद्वान कौन है? मूसा ने अपने को संसार में सबसे विद्वान बताया था। जिससे मूसा जी के अल्लाह जी ने कहा था कि तेरा ज्ञान अल-खिज्र के ज्ञान के सामने कुछ भी मायने नहीं रखता। इससे सिद्ध हुआ कि तौरेत का ज्ञान अधूरा है।
- यदि जबूर पुस्तक में सम्पूर्ण ज्ञान होता तो अल्लाह कह देता कि जबूर वाला ज्ञान तेरे ज्ञान से उत्तम है। वह उस अध्याय में अंकित है। परंतु ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता। इससे सिद्ध हुआ कि जबूर का ज्ञान भी अल-खिज्र के ज्ञान के समान नहीं है।
- यदि इंजिल में सम्पूर्ण ज्ञान होता तो हजरत मुहम्मद को अल्लाह कह देता कि अल-खिज्र वाला ज्ञान मरियम के बेटे ईसा को ’’इंजिल‘‘ में दे रखा है। परंतु यह भी कहीं प्रमाण नहीं है। इससे सिद्ध हुआ कि पवित्र पुस्तक ’’इंजिल‘‘ में भी अल-खिज्र (अल-कबीर) वाला ज्ञान नहीं है।
विशेष:- उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट हुआ कि सम्पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान पवित्र बाईबल में नहीं है।
{पवित्र बाईबल ग्रन्थ में केवल तीन पुस्तकें इकठ्ठी जिल्द की गई हैं:-
- जबूर,
- तौरेत,
- इंजिल।
इन तीनों का योग बाईबल नाम से जाना जाता है।}
कुरआन शरीफ (मजीद) में भी सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं है:-
प्रमाण:- सूरत फुरकान 25 आयत नं. 52-59 में पवित्र कुरआन मजीद (शरीफ) का ज्ञान देने वाले अल्लाह ने अपने भेजे नबी मुहम्मद (अलैही वसल्लम) को इन आयतों में बताया है कि कबीर नामक अल्लाह अर्थात् अल्लाह अक्कबर (कादर) समर्थ परमेश्वर है। इस बात पर काफिर इमान (विश्वास) नहीं लाते। आप उनकी बातों को न मानना। मेरे द्वारा दी गई कुरआन की दलीलों से उस कबीर अल्लाह के लिए संघर्ष करना। उसी ने आदमी उत्पन्न किए। उसी ने मानव को ससुराल, बेटी, बहू आदि दी। उसी ने दो खारे तथा मीठे जल की दरियाएँ बहाई। उनके बीच में मजबूत रोक लगाई। हमने तेरे को (हजरत मुहम्मद) को केवल उनको समझाने तथा अजाब से बचाने के लिए भेजा है। उनसे कह दो कि मैं तुमसे कोई पैसा नहीं लेता। कहीं यह समझो कि मैं स्वार्थ के लिए ऐसा कर रहा हूँ। और ऐ पैगंबर! वह कबीर अल्लाह अपने बंदों के गुनाहों को क्षमा करने वाला बड़ा रहमान (मेहरबान) है।
आयत नं. 59:- और वह अल्लाहू अकबर वही है जिसने छः दिन में सृष्टि की उत्पत्ति की और फिर ऊपर तख्त (सिंहासन) पर जा बैठा। उसकी खबर (पूर्ण जानकारी) किसी बाखबर (तत्त्वज्ञानी) से पूछो।
विशेष:- इससे सिद्ध हुआ कि पवित्र कुरआन पुस्तक में भी संपूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं है। परंतु लेखक का कहने का यह तात्पर्य बिल्कुल नहीं कि उपरोक्त सब शास्त्रों (पवित्र वेदों, पवित्र श्रीमद्भगवत गीता, पवित्र बाईबल तथा पवित्र कुरआन) का ज्ञान गलत है। उपरोक्त शास्त्रों का ज्ञान गलत नहीं, परंतु अधूरा (incomplete) है।
उदाहरण दें तो जैसे दसवीं कक्षा तक का पाठ्यक्रम (syllabus) गलत नहीं है। परंतु बी.ए., बी.एस.सी, पी.एच.डी., इन्जीनियरिंग तथा डाॅक्टरी आदि के लिए आगे की पढ़ाई पढ़नी पड़ती है। वह पाठ्यक्रम दसवीं से आगे का होता है जिससे पढ़ाई का उद्देश्य पूर्ण होता है। वह सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान अल्लाह कबीर स्वयं ही पृथ्वी पर प्रकट होकर बताता है। परमेश्वर कबीर माता से जन्म नहीं लेता। वह ऊपर सतलोक वाले अपने सिंहासन (तख्त) से सशरीर चलकर आता है। जैसे बाईबल ग्रन्थ में भी प्रमाण है कि सृष्टिकर्ता परमेश्वर का निज निवास ऊपर के लोक में है जो सर्वोच्च आकाश पर है। परमेश्वर ने वहीं से आकर सृष्टि की रचना छः दिन में सम्पूर्ण की और सातवें दिन ऊपर (तख्त) सिंहासन पर जा विराजा। सातवें दिन विश्राम किया।
पवित्र वेदों में भी प्रमाण है कि परमेश्वर सबसे ऊपर के लोक में बैठा है। वहाँ से सशरीर चलकर पृथ्वी के ऊपर आता है। नेक बंदों को जो परमात्मा की खोज में लगे रहते हैं, उनको मिलता है। किसी संत या जिंदा बाबा के रूप में साधकों से आमने-सामने बात करता है। उसे पृथ्वी पर पहचानना कठिन होता है। वह पूर्ण ब्रह्म (कादर अल्लाह कबीर) कुरआन, बाईबल, वेद, गीता आदि के ज्ञान देने वाले की तरह छुपकर काम नहीं करता। जो पर्दे के पीछे से यानि गुप्त रहकर बात करता है या किसी में प्रवेश करके बात करता है। वह ज्योति निरंजन काल (शैतान) है। इसने कभी भी किसी के सामने प्रत्यक्ष न होने की प्रतिज्ञा कर रखी है। पूर्ण ब्रह्म वेश बदलकर प्रत्यक्ष होकर ज्ञान देता है। अपना परिचय देने के लिए उनको ऊपर वाले लोक में ले जाकर वापिस पृथ्वी पर शरीर में छोड़ता है। फिर वे चस्मदीद गवाह (eye witness) आँखों देखा वर्णन उस कादर अल्लाह कबीर का करते हैं। उससे प्राप्त ज्ञान का प्रचार करते हैं जिसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रहती।
- अब पढ़ें वेदमंत्रों में कि अल्लाह पृथ्वी पर आता है। यथार्थ ज्ञान भक्तों को बताता है। साधना के सच्चे नामों का ज्ञान भी बताता है:- देखें फोटोकाॅपी वेदमंत्रों की
विवेचन:- उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट हुआ कि पूर्ण ब्रह्म (परमेश्वर) यानि सृजनहार कबीर अल्लाह है। वह ही यथार्थ सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान सूक्ष्मवेद {जो उसकी बोली हुई कबीर बाणी (कलामे कबीर) है} में बताता है। वह सम्पूर्ण ज्ञान वर्तमान में दास (रामपाल दास) के अतिरिक्त विश्व में किसी के पास नहीं है। यह अभिमान की बात नहीं, सच्चाई है। सर्व धर्मों के मानव (स्त्री-पुरूष) उसी अल्लाह कबीर (परमेश्वर कबीर जी) की अपनी आत्मा है। सबका कल्याण करना उस परमेश्वर का उद्देश्य है। यहाँ पर शैतान (काल ब्रह्म) ने सबको भ्रमित कर रखा है। सच्ची राह वही आकर दिखाता है। अब आप जी और अधिक जानकारी पढ़ें उसी परमेश्वर के विषय में वह कैसे-कैसे वेश बनाकर अच्छी आत्माओं तक पहुँचता है।
अल-खिज्र को आज अलग-अलग सभ्यताओं में विभिन्न नामों से जाना व पूजा जाता है, अल-खिज्र का 55 हदीसों में जिक्र मिलता है, कुछ वाकये निम्नलिखित हैं:-
1. मुहम्मद को अल-खिज्र का दिखाई देना व साथ घूमना।
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Al-Zuhad में विवरण है। मुहम्मद कहते हैं कि अल-खिज्र व एल्लियाह/इलयास / Elijah हर साल रमजान का महीना जेरूसलम में एक साथ गुजारते हैं। कुछ मुसलमान व ईसाई शास्त्रियों का ये मानना है कि अल-खिज्र व एल्लियाह एक ही शख्स है। एल्लियाह का बाईबल में 5 जगह (मत्ती/Matthew 17:1-8, 2 Chronicles 21:12, 1 राजा/King, 2 राजा/King, Malachi 3:1 & 4:5) और कुरआन शरीफ में 2 जगह (Sura AlSaafat 37:123-132 & Sura an'am 6:85) जिक्र है।
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Umar II में विवरण है, जो शख्स मुहम्मद के साथ टहल रहा था, वो अल-खिज्र था।
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Abu Zura Al Razi में विवरण है, मुहम्मद अपने जीवन काल में अल-खिज्र से दो बार मिले थे। एक बार जवानी में और एक बार बुढ़ापे में पर अल-खिज्र की उम्र बिल्कुल नहीं बदली थी।
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Ayun Akhbar Al-Rida में विवरण है, अली कहता है कि मदीना की एक गली से गुजरते वक्त अल-खिज्र ने हजरत मुहम्मद और मुझे दर्शन दिए और हमसे बात की।
2. (Al-Bayhaqi) अल-खिज्र का मुहम्मद के अंतिम संस्कार पर मौजूद होना व अली से मुलाकात।
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मुहम्मद की मृत्यु के उपरांत उनके शव को अंतिम दर्शन के लिए मुसलमानों के बीच रखा गया था। तब एक ताकतवर दिखने वाला सुंदर नाक-नक्शे का और आकर्षित करने वाली हस्ती का सफेद दाढ़ी वाला एक आदमी वहाँ मौजूद मुसलमानों की भीड़ को चीरते हुए मुहम्मद के शव के पास पहुँचा और शोक व्यक्त करके चला गया। बाद में अली ने बताया कि वह शख्स अल-खिज्र था।
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एक दूसरे व्याख्यान में अल-खिज्र अली को काबा के पास दिखाई दिए। वहाँ अली को अल-खिज्र ने एक दुआ (मंत्र) दी और कहा कि तुम इस दुआ को करना, ये दुआ तुम्हें अद्भुत लाभ देगी। तुम्हारे गुनाहों की गिनती आसमान के तारों या जमीन पर पड़ी कंकरों जितनी क्यों ना हो, ये दुआ उनका एक पल (Blink of an eye) में नाश कर देगी।
3. Lataif al Minan (1:84-98) में जिक्र है कि अल-खिज्र आज भी जिंदा है।
- मुसलमानों का ये मानना है कि अल-खिज्र अमर (immortal) है और आज भी धरती पर जिंदा व मौजूद है और अल्लाह की राह पर जो उलझन में हैं, उनका मार्गदर्शन करता है।
4. अल-खिज्र के बारे में और कुछ प्रचलित कहानियाँ।
- मुस्लिम शास्त्रियों का मानना है कि अल-खिज्र को लोगों के बीच उसके नरम हाथों से पहचाना जा सकता है। कुछ का मानना है कि अल-खिज्र के हाथों में हड्डियाँ नहीं हैं। सूफी इमामों का मानना है कि हम अपने जीवन काल में एक बार अल-खिज्र से जरूर मिलते हैं। जब आप किसी सफेद दाढ़ी वाले आदमी से हाथ मिलाओ और उसके हाथ में हड्डी ना हों तो समझ जाना वो अल-खिज्र है। अल-खिज्र को जिंदा पीर भी कहा गया है। मुस्लिम देशों में अल-खिज्र की अनगिनत यादगार मौजूद हैं।
’’हजरत मुहम्मद जी को अल्लाह कबीर मिले‘‘
जैसा कि वेदों में प्रमाण है कि परमेश्वर यानि कादर अल्लाह सारी कायनात (सृष्टि) को पैदा करने वाला नेक आत्माओं को ऊपर आसमान वाले (तख्त) सिंहासन से पृथ्वी पर आकर मिलता है। उन्हीं नेक आत्माओं में हजरत मुहम्मद जी हैं जिनको अल्लाह अकबर मिले। परंतु अल्लाह किसी ने देखा ही नहीं है। अन्य विद्वान गलत ज्ञान के आधार से अल्लाह को बेचून (निराकार) बताते हैं। जिस कारण से यह विश्वास होना कि जो अल-खिज्र रूप में मिला है, वह अल्लाह ताला ही है, कठिन है। इसी कारण से हजरत मुहम्मद जी अल-खिज्र रूप में मिले। अल्लाह ताला को पहचान नहीं सके।
संत गरीबदास जी (गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर, प्रांत-हरियाणा, देश-भारत) को भी दस वर्ष की उम्र में जिंदा बाबा यानि अल-खिज्र वाले वेश में अल्लाह ताला मिला था। जब बालक गरीबदास जी को विश्वास नहीं हुआ कि यह बाबा जिंदा रूप में परमेश्वर ही है तो संत गरीबदास जी को अल्लाह ताला ऊपर आसमान में बने अपने (तख्त) सिंहासन वाले सतलोक में लेकर गए। बालक गरीबदास जी को ऊपर के सब आसमानों (ब्रह्मंडों व लोकों) की सैर करवाई। वहाँ की सारी व्यवस्था दिखाई। तत्त्वज्ञान उनकी आत्मा में डाल दिया। संत गरीबदास जी को वापिस शरीर में पृथ्वी पर छोड़ा। बालक गरीबदास को मृत जानकर चिता के ऊपर लकड़ियों के ढ़ेर पर रखा गया। अग्नि लगाने की तैयारी थी। उसी समय बालक गरीबदास जी जीवित हो उठे। उठकर चल पड़े। संत गरीबदास को अल्लाह अकबीर (परमेश्वर कबीर) जी ने जो बताया, वह संत गरीबदास जी ने अपने मुख से उच्चारण करके वाणी (साखी) बोलकर बताया कि कबीर जी ने कहा था कि:-
गरीब खुरासान काबुल किला, बगदाद बनारस एक।
बलख और विलायत (इंग्लैंड) तक हम ही धारें भेष।।
अर्थात् खुदा कबीर जी ने बताया है कि सारी पृथ्वी के ऊपर जितने भी देश-प्रदेश हैं, जहाँ-जहाँ अच्छी आत्माएँ जन्मी हैं, उनको यथार्थ अध्यात्म ज्ञान बताने तथा सच्ची साधना बताने के लिए मैं ही विभिन्न (भेष) वेश धारण करके जाता हूँ। अरब देशों में काबुल, खुरासान (रूम का एक शहर), बगदाद (इराक देश की राजधानी), बनारस (भारत का एक शहर) तथा (विलायत) इंग्लैंड देश आदि-आदि में मैं ही जाता हूँ। मेरे लिए सब देश, सब मानव एक समान हैं।
हजरत मुहम्मद जी को भी जिंदा वेश धारण करके मक्का शहर में खुदा कबीर मिले थे।
संत गरीबदास को बताया था। वाणी (अमर कछ रमैंणी से):-
मुहमंद बोध सुनो ब्रह्म ज्ञानी, शंकर दीप से आये प्राणी।।(24)
लोक दीप कूं हम लेगैऊ, इच्छा रूपी वहाँ न रहेऊ।।(25)
उलट मुहमंद महल पठाया, गुझ बीरज एक कलमा धाया।।(26)
रोजा बंग, निवाज दई रे, बिसमल की नहीं बात कही रे।।(27)
अर्थात् कबीर जी ने बताया है कि नबी मुहम्मद की आत्मा शिव (तमगुण) देवता के (शंकर द्वीप) लोक से आयी थी। भक्ति में ध्यान अधिक रहता था। जब उनको काल के भेजे फरिस्ते जबरील ने काल ब्रह्म वाला ज्ञान डरा-धमकाकर बताया जो हजरत मुहम्मद ने जनता तक पहुँचाया जो अधूरा तथा काल जाल में फँसाए रखने वाला ज्ञान है। जब मैंने (कबीर खुदा ने) देखा कि नेक आत्मा मुहम्मद काल के जाल में फँस गए हैं, तब उसे मिला। यथार्थ ज्ञान समझाया। उनके आग्रह पर उनको ऊपर अपने लोक में जहाँ मेरा (तख्त) सिंहासन है, लेकर गया। उसका शंकर द्वीप भी दिखाया जहाँ से वह पृथ्वी पर आया था। परंतु मुहम्मद ने सतलोक में रहने की इच्छा व्यक्त नहीं की। इसलिए वापिस शरीर में छोड़ दिया। फिर भी मुहम्मद की समय-समय पर गुप्त मदद करता रहा। वाणी (मुहम्मद बोध से):-
ऐसा ज्ञान मुहम्मद पीरं, मारी गऊ शब्द के तीरं।
शब्दै फिर जिवाई, जिन गोसत नहीं भख्या।
हंसा राख्या ऐसे पीर मुहम्मद भाई।।
अर्थात् परमेश्वर कबीर जी ने एक कलमा ’’अल्लाह अकबर‘‘ मुहम्मद जी को जाप करने को कहा। उससे मुहम्मद जी में सिद्धियाँ प्रकट हो गई। एक दिन मुहम्मद जी ने एक गाय को वचन सिद्धि से मारकर सैंकड़ों मुसलमानों के सामने जीवित कर दी। पीर मुहम्मद ऐसे महान थे। उन्होंने जीव (गाय) की रक्षा की। उसका माँस नहीं खाया। वाणी (अमर कछ रमैंणी से):-
चार यार मिल मसलत भीनी, गऊ पकड़कर बिसमल कीन्ही।।(28)
तब हम मुहम्मद याद किया रे, शब्द सरूपी हम बेग गया रे।।(29)
मूई गऊ हम बेग जिवाई, जब मुहम्मद के निश्चय आई।।(30)
तुम्ह सतकबीर अल्लह दरवेसा, मोमिन मुहम्मद का गया अंदेशा।।(31)
दास गरीब अनाहद थीरं, भज ल्यौ सतनाम और सतकबीरं।।(32)
अर्थात् जिन मुसलमानों के सामने हजरत मुहम्मद जी ने वचन की सिद्धि-शक्ति से गाय (cow) मारकर फिर वचन (शब्द) से ही जीवित की थी, उन्होंने यह बात सबको बताई। जो विरोधी लोग थे, उन्होंने मसलत (meeting) की और फैसला लिया कि हम गाय को बिसमिल करेंगे यानि गाय की गर्दन काटकर मारेंगे। हमारे सामने मुहम्मद जी गाय को जीवित करेंगे तो मानेंगे।
निश्चित दिन हजारों मुसलमानों तथा गैर-मुसलमानों के सामने गाय को काटा गया। मुहम्मद जी ने गाय को जीवित करने के लिए सब मंत्र-जंत्र कर लिए, गाय जीवित नहीं हुई। तब मुहम्मद जी ने अल्लाह कबीर को अल्लाह अकबर कहकर ऊँची आवाज में कई बार पुकारा। अल्लाह अकबर बोलते-बोलते धरती के ऊपर हर बार मथा लगाकर और फिर आकाश की ओर मुख करके दोनों हाथ फैलाकर अल्लाह अकबर पुकारने लगा जो वर्तमान में सजदा कहा जाने लगा। तब कबीर खुदा वहाँ पर पहुँचा जो केवल हजरत मुहम्मद जी को दिखाई दे रहा था। उपस्थित लोगों को दिखाई नहीं दे रहा था। हजरत मुहम्मद ने अल्लाह कबीर को सजदा किया और अपनी इज्जत रखने के लिए अर्ज की। तब कबीर परमेश्वर जी (कादर अल्लाह कबीर जी) ने तुरंत गाय जीवित कर दी। तब मुहम्मद जी की शंका (अंदेशा) समाप्त हुई और कहा कि हे सतकबीर (अमर कबीर)! आप वास्तव में अल्लाह के दरवेश (संत यानि नबी) हो। हजरत मुहम्मद जी अभी भी अल्लाह कबीर जी को खुदा नहीं मान रहे थे। खुदा का संत शक्तियुक्त मान रहे थे। जिस कारण से परमेश्वर कबीर जी गाय को जीवित करके अंतध्र्यान हो गए।
उसके पश्चात् खुदा कबीर जी हजरत मुहम्मद की अरूचि देखकर उसे उस वेश में नहीं मिले। इतनी शक्ति देखकर भी काल व कर्म के प्रभाव से सतलोक में जाने की बात नहीं मानी। सत्य साधना उनको नहीं मिली। जो काल ब्रह्म (पर्दे के पीछे से बोलने वाले प्रभु) की बताई साधना {रोजा रखना, नमाज करना, अजान (बंग) लगाना} से जन्नत (heaven) में जाने की नहीं हैं। जो कलमा जाप करने का कबीर अल्लाह जी ने मुहम्मद जी को दिया था, उससे सिद्धि आती हैं। युद्ध में सफलता प्राप्त हो सकती है। वह जन्नत जाने में सहयोगी नहीं है। जिस कारण से नबी मुहम्मद जी जन्नत में भी नहीं जा सके। पित्तर लोक में अन्य नबियों के पास गए हैं। फिर अन्य जन्म धारण करेंगे।
(5. रूमी द्वारा अल-खिज्र का जिक्र। रूमी द्वारा अपने मुर्शीद (गुरू) समस्तरबेज (Shams Tabrizi) की बड़ाई में लिखी दो रचनाओं Mansnavi (मसनवी) और Diwan-e-Kabir (दीवान-ए-कबीर) में भी अल-खिज्र का जिक्र है।
6. Hayat-al-Qulub (Volume 2) Battle of Badar
- Amirul Momineen के हवाले से Ibn Babawayh बताते हैं: अली बयान करता है कि बदर की लड़ाई से पहले एक रात अल-खिज्र मुझे सपने में दिखाई दिए। मैंने उनसे कहा कि कृप्या करके मुझे ऐसी दुआ (नाम मंत्र) दीजिए जिससे मैं लड़ाई में जीत हासिल कर सकूँ। अल-खिज्र ने मुझे कहा पढ़ो "O he, O one who is not except that He is." सुबह होने पर मैंने इसकी चर्चा हजरत मुहम्मद से की। ये सुन मुहम्मद ने कहा, अली! अल-खिज्र ने तुम्हें अल्लाह का सबसे बड़ा नाम सिखाया है। अली आगे बताता है कि मैं बदर की लड़ाई के दौरान अल-खिज्र द्वारा बताए बड़े नामों को निरंतर याद कर रहा था।