श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी का पिता कौन है?
श्री ब्रह्मा (रजगुण), श्री विष्णु (सतगुण) तथा श्री शिव जी (तमगुण) की माता देवी दुर्गा है तथा पिता काल ज्योति निरंजन है।
प्रमाण:- श्री शिव महापुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित) में इनके पिता का ज्ञान है, श्री शिव महापुराण के रूद्रसंहिता खण्ड में अध्याय 5 से 9 तक निम्न प्रकरण हैः-
अपने पुत्र नारद जी के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री ब्रह्मा जी ने कहा कि हे पुत्र! आपने सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता के विषय में जो प्रश्न किया है, उसका उत्तर सुन।
प्रारम्भ में केवल एक “सद्ब्रह्म” ही शेष था। सब स्थानों पर प्रलय था। उस निराकार परमात्मा ने अपना स्वरूप शिव जैसा बनाया। उसको “सदाशिव” कहा जाता है, उसने अपने शरीर से एक स्त्राी निकाली, वह स्त्राी दुर्गा, जगदम्बिका, प्रकृति देवी तथा त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) की जननी कहलाई जिसकी आठ भुजाएं हैं, इसी को शिवा भी कहा है।
“श्री विष्णु जी की उत्पत्ति”:- सदाशिव और शिवा (दुर्गा) ने पति-पत्नी रूप में रहकर एक पुत्र की उत्पत्ति की, उसका नाम विष्णु रखा।
“श्री ब्रह्मा जी की उत्पत्ति”:- श्री ब्रह्मा जी ने बताया कि जिस प्रकार विष्णु जी की उत्पत्ति शिव तथा शिवा के संयोग (भोग-विलास) से हुई है, उसी प्रकार शिव और शिवा ने मेरी (ब्रह्मा की) भी उत्पत्ति की।
नोट:- यहाँ पर शिव को काल ब्रह्म जानें, शिवा को दुर्गा जानें, (अदालत नोट करे) इस रूद्र संहिता खण्ड में शंकर जी की उत्पत्ति का प्रकरण नहीं है, यह अनुवादकर्ता की गलती है। वैसे देवी पुराण में शंकर जी ने स्वयं स्वीकारा है कि मेरा जन्म दुर्गा (प्रकृति) से हुआ है।
पेश है संक्षिप्त शिवपुराण की रूद्र संहिता खंड से संबंधित प्रकरण की फोटोकाॅपी:-
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श्री शकंर जी भी शिव (काल ब्रह्म) तथा शिवा (देवी दुर्गा) का पुत्र है:-
श्री शिव महापुराण के विद्येश्वर संहिता के प्रथम खण्ड अध्याय 6 से 10 में प्रमाण:- एक समय श्री ब्रह्मा जी तथा श्री विष्णु जी का इस बात पर युद्ध हो गया कि ब्रह्मा जी ने कहा मैं तेरा पिता हूँ क्योंकि यह संसार मेरे से उत्पन्न हुआ है, मैं प्रजापिता हूँ। विष्णु जी ने कहा कि मैं तेरा पिता हूँ, तू मेरे नाभि कमल से उत्पन्न हुआ है। दोनों एक-दूसरे को मारने के लिए तत्पर हो गए। उसी समय सदाशिव अर्थात् काल ब्रह्म ने उन दोनों के बीच में एक सफेद रंग का प्रकाशमय स्तंभ खड़ा कर दिया। उसके पश्चात् अपने पुत्र तमगुण शिव के रूप में प्रकट होकर उस स्तंभ को अपने लिंग (private part) का आकार दे दिया। उसी दिन से शिव जी का लिंग विख्यात हुआ। लिंग पूजा आरंभ हुई।(पाँचवें अध्याय के श्लोक 26- 31 में) उस काल ब्रह्म ने स्वयं शंकर के रूप में प्रकट होकर उनको बताया कि तुम दोनों में से कोई भी कर्ता नहीं है। तुमने (ब्रह्मा व विष्णु ने) जो अज्ञानता से अपने आपको ’’ईश‘‘ माना यानि अपने को जगत का कर्ता माना, यह बड़ा ही अद्धभुत हुआ। उसी (भ्रम) को दूर करने के लिए मैं रणस्थल पर आया हूँ। अब तुम दोनों अपना अभिमान त्यागकर मुझ ईश्वर में अपनी बुद्धि लगाओ।
हे पुत्रो! मैंने तुमको तुम्हारे तप के प्रतिफल में जगत की उत्पत्ति और स्थिति रूपी दो कार्य दिए हैं, इसी प्रकार मैंने शंकर और रूद्र को दो कार्य संहार व तिरोगति दिए हैं, मुझे वेदों में ब्रह्म कहा है। मेरे पाँच मुख हैं, एक मुख से अकार (अ), दूसरे मुख से उकार (उ) तथा तीसरे मुख से मकार (म), चैथे मुख से बिन्दु (.) तथा पाँचवे मुख से नाद (शब्द) प्रकट हुए हैं, उन्हीं पाँच अववयों से एकीभूत होकर एक अक्षर ओम् (ऊँ) बना है, यह मेरा मूल मन्त्र है।
शिव पुराण के इस उल्लेख से यह भी सिद्ध हुआ कि मेरे को ब्रह्म कहते हैं। पाँच अक्षरों से बना एक ओम् (ॐ) मेरा मूल मंत्र (नाम) है जो मेरी साधना है। गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में भी इसी ब्रह्म ने कहा है कि (माम् ब्रह्म) मुझ ब्रह्म का स्मरण करने का एक ॐ (ओम्) अक्षर है। इससे भी स्वसिद्ध है कि गीता का ज्ञान काल रूप ब्रह्म ने श्री कृष्ण के शरीर में प्रेतवत् प्रवेश करके बोला है।
लिंग व लिंगी की पूजा करने को कहना:- काल ब्रह्म ने अपने लिंग (private part) तथा स्त्राी की लिंगी (private part) की पूजा करने को कहा है। जो मंदिरों में शिवलिंग स्थापित किया होता है, उसको ध्यान से देखा जाए तो पता चलता है कि पत्थर की लिंगी (स्त्री की योनि) में पत्थर का लिंग यानि शिव का लिंग (पेशाब इन्द्री) प्रविष्ट किया गया होता है। श्री शिव पुराण के विद्येश्वर संहिता के खण्ड-1 अध्याय 5 श्लोक 26-31 तथा अध्याय 9 श्लोक 40-46 में प्रमाण है। इनकी फोटोकाॅपी आगे लगाई हैं, वहाँ पर पढ़ें। विचार करें कि यह कितनी बेशर्मी की बात है। कितना अभद्र मजाक काल ब्रह्म ने किया। ब्रह्मा तथा विष्णु से कहा कि तुम इस मेरे लिंग व लिंगी (स्त्री योनि) की पूजा करो।
पेश है (श्री वैंकटेश्वर प्रैस मुम्बई से प्रकाशित, संस्कृत-हिन्दी अनुवाद वाली) शिव महापुराण के विद्येश्वर संहिता खंड के अध्याय 5, 6, 7, 8, 9 तथा 10 से संबंधित प्रकरण की फोटोकाॅपी:-
![Shiv Maha Puran Vidhweshvar Samhita](https://books.jagatgururampalji.org/media/kabir-krishan/shiv-puran-11.png)
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![Shiv Maha Puran Vidhweshvar Samhita](https://books.jagatgururampalji.org/media/kabir-krishan/shiv-puran-18.png)
![Shiv Maha Puran Vidhweshvar Samhita](https://books.jagatgururampalji.org/media/kabir-krishan/shiv-puran-19.png)
उपरोक्त शिव महापुराण के प्रकरण से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शकंर जी की माता श्री दुर्गा देवी (अष्टंगी देवी) है तथा पिता सदाशिव अर्थात् “काल ब्रह्म” है जिसने श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था। इसी को क्षर पुरूष, क्षर ब्रह्म (ज्योति निरंजन) काल ब्रह्म भी कहा गया है। यही प्रमाण श्री मद्भगवत गीता अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में भी है कि रज् (रजगुण ब्रह्मा), सत् (सतगुण विष्णु), तम् (तमगुण शंकर) तीनों गुण प्रकृति अर्थात् दुर्गा देवी से उत्पन्न हुए हैं। प्रकृति तो सब जीवों को उत्पन्न करने वाली माता है। मैं (गीता ज्ञान दाता) सब जीवों का पिता हूँ। मैं दुर्गा (प्रकृति) के गर्भ में बीज स्थापित करता हूँ जिससे सबकी उत्पत्ति होती है।
ये तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) ही जीवात्मा को शरीर में बाँधते हैं यानि सब जीवों को काल के जाल में फसांकर रखने वाले ये ही तीनों देवता हैं। यही प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 12-15 में है कि जिनकी बुद्धि तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) से मिलने वाले क्षणिक लाभ तक सीमित है यानि जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूर्ख हैं जो मुझे (गीता ज्ञान दाता को) नहीं भजते।
विशेष:- श्री शिव पुराण के विद्येश्वर संहिता संहिता खण्ड-1 अध्याय 9 के श्लोक 40-46 तथा अध्याय 5 के श्लोक 26-31 की फोटोकाॅपी ऊपर लगी हैं। इनमें कहा है कि काल ब्रह्म ने कहा है कि जीवों को जन्म-मृत्यु के चक्र में रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव (ये तीनों गुण यानि तीनों देवता) डालते हैं। अपना बचाव कर रहा है। यह (काल ब्रह्म) इस प्रकार कपटयुक्त कार्य करता है। गीता अध्याय 7 श्लोक 12 में इसी ने कहा है कि जो कुछ तीनों गुणों यानि रजगुण ब्रह्मा से उत्पत्ति, सतगुण विष्णु से स्थिति तथा तमगुण शिव से संहार हो रहा है, इसका निमित मैं हूँ। परम अक्षर ब्रह्म यानि कबीर जी ने यथार्थ ज्ञान अपनी प्रिय आत्मा संत गरीबदास (छुड़ानी वाले) को बताया। उन्होंने अपनी वाणी में उसे समझाया। कहा कि अकेले ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव इसके कारण नहीं हैं। वाणी:-
ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, माया और धर्मराया कहिए।
इन पाँचों मिल प्रपंच बनाया, वाणी हमरी लहिए।।
इन पाँचों मिल जीव अटकाए। जुगन जुगन हम आन छुड़ाए।।
पेश है गीता अध्याय 14 श्लोक 4-5 की फोटोकाॅपी:-
(गीता अध्याय 14 श्लोक 4 की फोटोकाॅपी)
![Bhagavad Gita](https://books.jagatgururampalji.org/media/kabir-krishan/gita-14-4.png)
(गीता अध्याय 14 श्लोक 5 की फोटोकाॅपी)
![Bhagavad Gita](https://books.jagatgururampalji.org/media/kabir-krishan/gita-14-5.png)
यही सच्चाई छः सौ वर्ष पूर्व कबीर जी ने बताई थी। जो आज सब ग्रन्थों से प्रमाणित हुई जो इस प्रकार है:-