सदन कसाई का उद्धार
सुमिरन का अंग (39)
वाणी नं. 39:-
गरीब, राम नाम सदने पिया, बकरे के उपदेस। अजामेल से ऊधरे, भगति बंदगी पेस।।39।।
भावार्थ:– एक सदन नाम का कसाई था, उसकी कथा इस प्रकार है:-
‘‘सदन कसाई का उद्धार’’
एक सदन नाम का व्यक्ति एक कसाई के बुचड़खाने में नौकरी करता था।
गरीब, सो छल छिद्र मैं करूं, अपने जन के काज। हरणाकुश ज्यूं मार हूँ, नरसिंघ धरहूँ साज।।
संत गरीबदास जी ने बताया है कि परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि जो मेरी शरण में किसी जन्म में आया है, मुक्त नहीं हो पाया, मैं उसको मुक्त करने के लिए कुछ भी लीला कर देता हूँ। जैसे प्रहलाद भक्त की रक्षा के लिए नरसिंह रूप {मुख और हाथ शेर (स्पवद) के, शेष शरीर नर यानि मनुष्य का} धारण करके हिरण्यकशिपु को मारा था। फिर कहा है कि:-
_गरीब, जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास।
गैल-गैल लागा रहूँ, जब तक धरणी आकाश।।**
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है जो जन (व्यक्ति) किसी जन्म में मेरी शरण में आ गया है। उसके मोक्ष के लिए उसके पीछे-पीछे फिरता रहता हूँ। जब तक धरती-आकाश रहेगा (महाप्रलय तक), तब तक उसको काल जाल से निकालने की कोशिश करता रहूँ। फिर कहा है कि:-
गरीब, ज्यूं बच्छा गऊ की नजर में, यूं सांई कूं संत।
भक्तों के पीछे फिरै, भक्त वच्छल भगवन्त।।
जैसे गाय अपने बच्चे (बछड़े-बछड़ी) पर अपनी दृष्टि रखती है। बच्चा भागता है तो उसके पीछे-पीछे भागती है। अन्य पशुओं से उसकी रक्षा करती है। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर जी अपने भक्त के साथ रहता है। यदि वर्तमान जन्म में उस पूर्व जन्म के भक्त ने दीक्षा नहीं ले रखी तो भी परमेश्वर जी उसके पूर्व जन्म के भक्ति कर्मों के पुण्य से उनके लिए चमत्कार करके रक्षा करते हैं। उदाहरण = भैंस का सींग परमात्मा बना, द्रोपदी का चीर बढ़ाना, प्रहलाद भक्ती की रक्षार्थ नरसिंह रूप धारण करना और इस कथा में सदन भक्त के लिए लीला करने का वर्णन है।
शंका:– नए पाठकों को भ्रम होगा कि परमेश्वर समर्थ होता है। फिर भी लाचार (विवश) कैसे है? एक ही जन्म में पार क्यों नहीं कर देता?
समाधान:– सब जीव अपनी गलती के कारण परमेश्वर की इच्छा के विरूद्ध अपनी इच्छा से काल के साथ आए हैं। जिस समय परमेश्वर कबीर जी प्रथम बार हमारी सुध लेने के लिए काल लोक में आए थे तो काल ने चरण पकड़कर कुछ शर्तें रखी थी जो परमेश्वर कबीर जी ने मान ली थी:-
- काल ब्रह्म ने कहा था कि हे प्रभु! आप कह रहे हो कि मैं जीवों को तेरे (काल ब्रह्म के) जाल से निकालकर वापिस सतलोक लेकर जाऊँ। हे स्वामी! मेरे को सतपुरूष ने श्राप दे रखा है कि एक लाख मानव शरीरधारी जीव खाने का तथा सवा लाख उत्पन्न करने का। यदि सब जीव वापिस चले गए तो मेरी क्षुधा (भूख) कैसे समाप्त होगी? इसलिए आप जोर-जबरदस्ती करके जीव न ले जाना। आप अपना ज्ञान समझाना। जो जीव आपके ज्ञान को स्वीकार करे, उसको ले जाना। जो न माने, वह मेरे लोक में रहे। परमेश्वर जी को ज्ञान था कि जब तक इनको सत्यलोक के सुख का और काल लोक के दुःख का ज्ञान नहीं होगा तो ये मेरा साथ देंगे ही नहीं। यदि जबरदस्ती (ठल थ्वतबम) ले जाऊँगा तो ये वहाँ रहेंगे ही नहीं क्योंकि इनका मोह परिवार और सम्पत्ति में फँसा है। पहले इनको ज्ञान ही कराना होगा। इसलिए परमेश्वर कबीर जी ने काल की शर्तों को स्वीकार किया था। अब काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने पूरा जोर लगा रखा है कि सब मानव को काल जाल में फँसे रहने का ज्ञान कराने के लिए अनेकों प्रचारक लगा रखे हैं जो केवल राम-कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी तथा इनके अंतर्गत अन्य देवी-देवताओं-भैरो, भूत-पित्तरों, माई-मसानी, सेढ़-शीतला आदि-आदि की महिमा का ज्ञान बताते रहते हैं। सतपुरूष (कबीर परमेश्वर जी) का नामो-निशान मिटा रखा है। अपने पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) तथा अपनी महिमा का ज्ञान सब स्थानों पर फैला रखा है। चारों वेद, गीता, पुराण, कुरान, बाईबल (जो तीन पुस्तकों जबूर, तौरात, इंजिल का संग्रह है) का ज्ञान पूरी पृथ्वी पर प्रचलित कर रखा है। सब मानव इन्हीं तक सीमित हो चुका है। इन पुस्तकों में पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का ज्ञान नहीं है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि:-
कबीर, बेद मेरा भेद है, ना बेदन के मांही। जोन बेद से मैं मिलूँ, बेद जानत नांही।।
प्रमाण:– यजुर्वेद अध्याय 40 श्लोक 10 में कहा है कि परमात्मा का यथार्थ ज्ञान (धीराणाम्) तत्त्वदर्शी संत बताते हैं, उनसे (श्रुणूं) सुनो।
गीता शास्त्र चारों वेदों का संक्षिप्त रूप है। इसमें भी कहा है कि परमात्मा तत्त्वज्ञान यानि अपनी जानकारी तथा प्राप्ति का ज्ञान अपने मुख कमल से वाणी बोलकर बताता है। उस ज्ञान से मोक्ष होगा। तथा सत्यलोक प्राप्ति होगी। उस ज्ञान को तत्त्वदर्शी संतों के पास जाकर समझ।(गीता अध्याय 4 श्लोक 32-34 में)
कुरान शरीफ सूरत फुर्कानि 25 आयत नं. 52 से 59 में कहा है कि:-
जिस परमेश्वर ने छः दिन में सृष्टि रची। फिर तख्त पर जा विराजा।(जा बैठा) वह अल्लाह कबीर है। उसकी जानकारी किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी संत) से पूछो। इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का ज्ञान इन उपरोक्त पवित्र शास्त्रों में नहीं है। वह ज्ञान स्वयं परमेश्वर कबीर जी प्रकट होकर बताते हैं। भक्ति विधि बताते हैं। शिष्य बनाते हैं। भक्ति के लिए मर्यादा बनाते हैं। कुछ नियम निर्धारित किये जाते हैं। नियम खण्डित होने से नाम (दीक्षा) खण्डित हो जाता है। जिस कारण से भक्त रूपी पतंग की डोर कट जाती है। वह कुछ देर हवा में लहराता फिरता है। फिर किसी वृक्ष पर टंगकर नष्ट हो जाता है या पृथ्वी पर गिरकर पशुओं के पैरों तले कुचला जाता है।
इसी प्रकार काल, सर्वप्रथम कबीर जी के भक्त का नाम खण्डित करवाता है। जिस कारण से उस साधक का सम्पर्क (ब्वददमबजपवद) परमात्मा से कट जाता है। जैसे बिजली का कनैक्शन कट जाने के पश्चात् सब लाभ बंद हो जाते हैं। न पंखा चलता है, न बल्ब-ट्यूब जगती है। सब मशीनें बंद हो जाती हैं। परमात्मा से कनैक्शन कटने का आभास देर से होता है। बिजली से कनैक्शन कटने का आभास शीघ्र हो जाता है। उसी प्रकार नाम खण्डित भक्त को परमात्मा से लगातार मिल रहा लाभ रूक जाता है। परंतु कुछ समय मर्यादा में रहकर किए मंत्रा जाप तथा यज्ञ-हवन, धर्म का लाभ संग्रह हो जाता है। जब तक वह पूर्व का भक्ति धन (पुण्य) संग्रह किया हुआ समाप्त नहीं होता, तब तक ऐसा लगता है कि सब ठीक है। परंतु वह जमा धन समाप्त होने के पश्चात् सब ओर से कठिनाईयाँ (संकट) घेर लेती हैं, तब ज्ञान होता है। भक्त को चाहिए कि वह नाम शुद्ध कराए। जैसे वर्तमान में इन्वर्टर (प्दअमतजमत) को बिजली से चार्जर द्वारा चार्ज किया जाता है। इन्वर्टर की बैटरी चार्ज हो जाती है। यदि चार्जर को हटा दिया जाए या अन्य किसी कारण से चार्जर का सम्पर्क बिजली से कट जाए तो बैटरी चार्ज होना बंद हो जाती है। परंतु पहले जितनी चार्ज हो चुकी है। उसके कारण पंखे भी चल रहे होते हैं। बल्ब-ट्यूब भी जल रही होती हैं। सब ठीक-ठाक लगता है। परंतु चार्जर के काम न करने के कारण अचानक सर्व ट्यूब-पंखे बंद हो जाते। अंधेरा-गर्मी आदि सब प्रकार की परेशानी खड़ी हो जाती है। इसी प्रकार किसी मानव जन्म में नाम-दीक्षा लेकर भक्ति करने वाले भक्त का नाम खण्डित हो तो उनको कुछ दिन सब लाभ मिलता है। परंतु वे काल के जाल में फँस चुके होते हैं। उनको कई जन्म लगातार मानव के भी मिल जाते हैं। उन मानव (स्त्री-पुरूष के) जन्मों में फिर से चार्जर नहीं लगा यानि फिर से सच्चे संत से दीक्षा नहीं मिली तो सब मानव जन्म नष्ट होकर चैरासी लाख योनियों में जन्म-मरण वाले चक्र में गिरकर बर्बाद हो जाता है। इसलिए परमेश्वर स्वयं ऐसे पूर्व जन्म वाले भक्तों को मिलकर उनको फिर से जागृत करके सत्य साधना पर लगाते हैं। पाप वाले कर्म छुड़वाते हैं। उस मार्ग से भटके प्राणी को फिर से भक्ति करने की प्रेरणा करते हैं। जैसे सम्मन-सेऊ-नेकी वाली सत्य कथा में आपने पढ़ा। सम्मन वाली आत्मा नौशेरखान बना। फिर वही आत्मा बलख बुखारे का राजा अब्राहिम अधम सुल्तान बना। प्रत्येक जन्म में परमेश्वर मिले। भक्ति की प्रेरणा की, परंतु फिर भी काल जाल में रहे। अब्राहिम सुल्तान वाले जन्म में जाकर सम्मन वाला जीव मुक्त हुआ। परमात्मा कबीर जी ने कहा है जो संत गरीबदास जी ने बताया है:-
अनन्त कोटि बाजी जहाँ, रचे सकल ब्रह्माण्ड। गरीबदास मैं क्या करूं, काल करे जीव खंड।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि हे गरीबदास! मैं इतना समर्थ हूँ। मैंने अनन्त करोड़ ब्रह्माण्डों की रचना की। उनका संचालन कर रहा हूँ, परंतु मैं क्या करूं? काल ब्रह्म मेरे भक्त को मेरे से खण्ड यानि भिन्न कर देता है। उसका नाम खंडित करवा देता है। जिस कारण से वह प्राणी फिर से काल के जाल में रह जाता है। मैं उसको फिर किसी मानव जन्म में किसी संत-भक्त के रूप में मिलता हूँ। उसकी भक्ति की गाड़ी फिर से पटरी पर लाता हूँ। जो भक्त विश्वास के साथ मर्यादा में रहकर आजीवन भक्ति करते रहते हैं, वे काल के सिर पर पैर रखकर भक्ति की शक्ति से सतलोक चले जाते हैं। वे परम पद प्राप्त करते हैं तथा वह शाश्वत स्थान (सनातन परम धाम) प्राप्त करते हैं जिसका वर्णन गीता अध्याय 15 श्लोक 4 तथा अध्याय 18 श्लोक 62 में है। उसी विधान अनुसार परमेश्वर कबीर जी ने नरक इकठ्ठा कर रहे पूर्व जन्म के सदना कसाई को पुनः शरण में लिया। अब सदना कसाई की उद्धार कथा सुनाता हूँ:-
सदना एक कसाई का नौकर था। प्रतिदिन 2 से 10 तक बकरे-बकरी, गाय-भैंसें काटता था। उसी से निर्वाह चल रहा था। एक दिन परमेश्वर एक मुसलमान फकीर जिन्दा बाबा के रूप में सदन कसाई को मिले। उसको भक्ति ज्ञान समझाया। जीव हिंसा से होने वाले पाप से परिचित कराया। सर्व ज्ञान समझकर सदन कसाई ने दीक्षा लेने की प्रबल इच्छा व्यक्त की। परमेश्वर जिन्दा ने कहा कि पहले यह कसाई का कार्य त्याग, तब दीक्षा दूँगा। सदना के सामने निर्वाह की समस्या थी। वह जिन्दा बाबा को बताई। जिन्दा वेशधारी प्रभु ने कहा कि भाई सदना! कसाई तो कुल सौ हैं आपके शहर में, अन्य हजारों व्यक्ति भी निर्वाह कर रहे हैं। आप भी कोई अन्य कार्य कर लो। सदना इस कार्य के लिए तैयार नहीं हुआ। अपनी निर्वाह की समस्या आगे रखी। जिन्दा ने कहा कि आप हिंसा कम कर दो। सदना ने कहा कि मैं मालिक की आज्ञा की अवहेलना नहीं कर सकता। वह जितने पशु काटने को कहेगा, मुझे काटने पड़ेंगे। जिन्दा बाबा ने कहा कि आप निर्धारित कर लो कि इतने पशुओं से अधिक नहीं काटूँगा चाहे नौकरी त्यागनी पड़े, तो मैं आपको दीक्षा दे दूँगा। सदना कसाई की दीक्षा लेने की इच्छा प्रबल थी। नौकरी छूटने का भय भी कम नहीं था। इसलिए इस बात पर सहमत हो गया और हिसाब लगाया कि प्रतिदिन छोटे-बड़े 10 या 12 पशु ही कटते हैं। यदि कोई इद-बकरीद त्यौहार आता है या किसी के विवाह में माँस की पार्टी होती है तो मुश्किल से 50 पशु वध किए जाते हैं। सदना ने कहा कि बाबाजी! मैं पक्का वादा (वचन) करता हूँ कि सौ पशुओं से अधिक नहीं काटूँगा, चाहे नौकरी भी क्यों न त्यागनी पड़े। जिन्दा बाबा बोले, ठीक है। आपको मुझसे मिलने की इच्छा हो तो मैं जगन्नाथ मंदिर में पुरी में रहता हूँ, वहाँ आ जाना।
कुछ समय सब ठीक-ठाक चलता रहा। एक दिन नगर में कई विवाह थे। साथ में नवाब के लड़के का विवाह था। उस दिन पूरे सौ बकरे काटे। सदना ने अल्लाह का धन्यवाद किया। अपना वचन खण्ड होने से बाल-बाल बचा। सब औजार धोकर साफ करके रख दिए। कुछ रात्रि बीतने के पश्चात् मालिक कसाई के पास एक अन्य कसाई आया। उसके शहर में 50 बकरों की आवश्यकता थी। उसके लिए वह सदना के मालिक के पास आया तथा 50 बकरे लेने की बात कही, सौदा तय हो गया। रात्रि में सदना के मालिक के घर ही रूका। उसके खाने के लिए मालिक ने सदना को बुलाया तथा एक बकरा काटकर एक व्यक्ति की सब्जी के लिए माँस रसोई में भेजने के लिए कहा। सदना को पसीना आ गया। अपना वचन खण्ड होने का भय सताने लगा। उसी समय एक विचार आया कि क्यों न बकरे के अण्डकोष काटकर रसोई में भेज दूँ। मेरा वचन भी रह जाएगा और मालिक भी खुश रहेगा। एक बकरा लाकर सदना ने उसके अण्डकोष काटने के लिए छुरा उठाया। उसी समय परमात्मा ने बकरे को मनुष्य बुद्धि प्रदान कर दी तथा तत्त्वज्ञान की रोशनी कर दी। बकरे ने कहा कि हे सदन भाई! आप मेरी गर्दन काटो, अण्डकोष मत काटो। आप यह नया वैर शुरू ना करो। हे सदना! मैंने कसाई रूप में तेरे कई सिर काटे हैं जब तुम बकरे की योनि में थे। आपने भी मेरे बहुत सिर काटे हैं जब मैं बकरा और तुम कसाई थे। यदि आप मेरे अण्डकोष काटोगे तो मैं सारी रात्रि तड़फ-तड़फकर रो-रोकर मरूँगा। अगले किसी जन्म में जब मैं कसाई बनूँगा, तुम बकरा बनोगे तो अल्लाह के विधान अनुसार मैं तेरे अण्डकोष काटूँगा, तुम भी तड़फ-तड़फकर प्राण त्यागोगे। इसलिए यह नई दुश्मनी शुरू न कर। मेरी गर्दन काट, अपना बदला ले।
उसी समय सदने के हाथ से करद (लम्बा चाकू) छूट गया। काँपने लगा। अचेत होकर गिर गया। मालिक ने रसोईये को आवाज लगाई कि खाना लाओ। रसोईये ने बताया कि सदना ने माँस नहीं पहुँचाया तो मालिक कुछ नौकरों के साथ आया। सदना जमीन पर बैठा था। वह सचेत हो चुका था। बकरा खड़ा था। वहीं पर चाकू पड़ा था। मालिक ने कहा, नमक हराम! इतनी देर कर दी माँस भेजने में, जल्दी कर। सदना ने हाथ जोड़कर कहा, मालिक! बहुत बकरे काट दिए हैं। सौ बकरे काटे हैं, अब और नहीं कटते। मैं और नहीं काटूँगा। कल काट दूँगा। मालिक जो कसाई ठहरा। क्रोध में भरकर साथ में आए नौकरों से कहा कि इसी छुरे से इसके दोनों हाथ काट दो, चाहे सदना हाथ जोड़े, गिड़गिड़ाता रहे। ये नमक-हराम मेरे लाभ में खुश नहीं है। इस सौदागर ने दुगने मूल्य में बकरों का सौदा किया है। भोजन देरी के कारण नाराज होकर चला गया तो मेरी कितनी हानि हो जाएगी। यह आज आज्ञा का पालन नहीं कर रहा है, पक्का हराम खोर है। इतना सुनकर नौकरों ने सदना के दोनों हाथ काट दिए। नौकरी से निकाल दिया। वैद्य के पास जाकर इलाज कराया। जख्म भरने के पश्चात् सदना भक्त जगन्नाथ पुरी की ओर चला। चलते-चलते रात्रि में एक गाँव में एक नम्बरदार के घर रूका। नम्बरदारनी ने सदना को अपने हाथों भोजन कराया। सदना ने उस देवी की भूरी-भूरी प्रशंसा की। नम्बरदारनी की चाल-चलन (चरित्र) अच्छा नहीं था। वह सदना के यौवन पर दृष्टि लगाए हुए थी। सदना सुंदर जवान था। आयु तीस वर्ष के आसपास थी। रात्रि में नम्बरदारनी सदना के बिस्तर पर आ गई और अपने साथ संभोग करने को कहा। सदना बिस्तर छोड़कर खड़ा हो गया और कहा बहन! आप नम्बरदार की इज्जत हो, आप उसकी धरोहर हो। मैं पहले ही दुःखी हूँ। आप मुझे क्षमा करो। मैं अभी चला जाता हूँ। आप नम्बरदार जी के साथ धोखा कर रही हो, आपको अल्लाह के दरबार में जवाब देना पड़ेगा। डरो उस परवरदिगार से।
सदना का यह उत्तर सुनकर नम्बरदारनी ने विचार किया कि यह मेरे पति को बताएगा, इससे पहले मैं ही बता देती हूँ। रात्रि के दो बजे थे। नम्बरदारनी ने कहा कि वह व्यक्ति जो आज अपना मेहमान बना था, मेरे साथ गलत हरकत करने लगा। यह कहकर बुरी तरह रोने लगी। पृथ्वी पर गिरकर सिर पटकने लगी। नम्बरदार ने तुरंत अपने आदमियों को सदना को पकड़कर लाने को कहा। सदना को पकड़कर पंचायतघर (चैपाल) में बाँधकर बैठा दिया। नवाब के पास शिकायत की गई। नवाब ने सदना को बुलाकर पूछा कि तेरे को अतिथि बनाकर रखा, भोजन दिया। अरे दुष्ट! तूने यह क्या किया? सदना ने अपनी हकीकत बताई, परंतु नवाब तथा पंचायत को झूठी कहानी लगी। नवाब ने सदना भक्त को मीनार में चिनवाने का आदेश दिया। एक छोटा-सा मंदिरनुमा भवन बनाया गया, उसके अंदर भक्त को बाँधकर डाला गया। उद्देश्य था कि सदना दम घुटकर रो-रोकर, तड़फ-तड़फकर मरे। नम्बरदारनी ने आरोप लगाया था कि इसने मेरी छाती पर हाथ डाला। दोनों स्तनों को टुंडे हाथों से छूआ। मेरी नींद खुली तो मैंने विरोध किया तथा पति को बताने की बात कही तो उठकर चला गया। रास्ते से पकड़कर लाए हैं जी! ज्योंही कारीगर मीनार का द्वार बंद करके हटे, उसी समय मीनार के पत्थर-ईटें आकाश में उड़ गई जैसे बम्ब विस्फोट हुआ हो। कुछ वहीं आसपास गिर गई, कुछ नवाब के आँगन में गिरी। कुछ नम्बरदार के घर की छत पर तथा आँगन में गिरी। नम्बरदारनी के दोनों स्तन कटकर गिर गए। वो दर्द के मारे चिल्लाने लगी। अपनी गलती को बताने लगी। पूरे शहर के व्यक्ति-नवाब तथा उसका परिवार मीनार के पास आया। भक्त सदना आराम से बैठा था। उसके दोनों हाथ स्वस्थ हो गए। कटे हुए थे, पूर्ण हो गए। सब नगर निवासियों ने तथा नम्बरदार-नम्बरदारनी ने अपनी-अपनी गलती की क्षमा याचना की। भक्त सदना वहाँ से चलकर जगन्नाथ पुरी में पहुँचा। वहाँ वही सतगुरू मिले। उनको सदना ने बकरे से प्राप्त उपदेश बताया। दीक्षा ली और कल्याण कराया।
{नोट:- कुछ वक्ता कहते हैं कि सदना के हाथ कसाई ने नहीं कटवाए थे, नवाब ने कटवाए थे क्योंकि नम्बरदारनी ने कहा था कि हाथों से मेरे स्तनों को छूआ था। परंतु विचार करें तो ऐसे निष्कर्ष निकलता है:- मुसलमान राजा या नवाब हाथ काटने की सजा चोरी करने वाले को देते थे। यह चोरी का मामला नहीं था। दूसरा विचार यह आता है कि यदि नम्बरदारनी के स्तन हाथों से छूने के कारण हाथ नवाब ने कटवाए थे तो मौत की सजा नहीं सुनाई जाती। हाथ कटवा देना पर्याप्त दण्ड था। फिर भी हमने कथा के सारांश को समझना है।} सदना भक्त से क्षमा याचना तथा अपनी गलती सार्वजनिक करने से नम्बरदारनी के स्तनों के जख्म ठीक हो गए। दर्द भी बंद हो गया, परंतु कटे निशान आजीवन बने रहे। कुछ वर्षों के पश्चात् सदना की प्रेरणा से उस नगर के 80 प्रतिशत हिन्दु-मुसलमानों ने परमेश्वर जिन्दा बाबा से दीक्षा ली और अपने जीव का कल्याण कराया। वाणी नं. 39 का अनुवाद चल रहा है।
परमेश्वर कबीर जी ने अपनी प्यारी आत्मा संत गरीबदास जी को तत्त्वज्ञान दिया जिसको संत गरीबदास जी ने आध्यात्म ज्ञान रूपी सागर को अमृत वाणी रूपी गागर (घड़े) में भरकर रखा है जिसका सरलार्थ कार्य मुझ दास (संत रामपाल दास) द्वारा गागर से सागर का रूप दिया जा रहा है।