दसवीं किस्त

राधा स्वामी पंथ की कहानी-उन्हीं की जुबानी: जगत गुरु

(धन-धन सतगुरु, सच्चा सौदा, कृपाल सिंह, ठाकुर सिंह तथा दिनोंद भिवानी वाले पंथ तथा जय गुरुदेव पंथ

भी इसी की शाखाएं हैं)

(दसवीं किस्त)
(------ गतांक से आगे)

सर्व ब्रह्मण्डों का पूरा विवरण तथा कहाँ है? कैसा है? तथा कौन है भगवान?:-

प्रथम अकह लोक, दूसरा अगम लोक, तीसरा अलख लोक और चैथा सतलोक है। उपरोक्त चारों लोकों में पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म ही भिन्न-2 रूप धारण करके मनुष्य रूप में साकार विराजमान है। उसी परमात्मा के उपमात्मक नाम अर्थात् पदवी के नाम हैं। अनामी पुरुष, अगम पुरुष, अलख पुरुष तथा सतपुरुष।(जैसे देश के माननीय प्रधान मंत्री जी के शरीर का नाम तो अन्य होता है तथा प्रधान मंत्री उनका पदवी का नाम होता है। प्रधान मंत्री कई विभाग अपने पास रखता है तो व्यक्ति वही होता है परंतु पद भिन्न-2 होते हैं फिर वही व्यक्ति गृह मंत्री, रक्षा मंत्री आदि कहलाता है तथा प्रत्येक कार्यालय में उनकी शक्ति भिन्न होती है) नीचे सात शंख ब्रह्मण्ड अक्षर पुरुष (परब्रह्म) के हैं तथा फिर इक्कीस ब्रह्मण्ड क्षर पुरुष (ब्रह्म/काल) के हैं। तीन पुत्र ब्रह्म (काल) तथा दुर्गा से उत्पन्न रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिवजी केवल काल(ब्रह्म) के एक ब्रह्मण्ड में एक-2 विभाग के स्वामी(प्रभु) हैं। मानव शरीर को पिण्ड भी कहते हैं। इसी पिण्ड में एक ब्रह्मण्ड का नक्शा (मानचित्र) है। ब्रह्मण्ड का आकार अण्डे जैसा है। इसलिए इसे अण्ड भी कहते हैं। तीन स्थिति नहीं हैं। जैसे राधास्वामी पंथ तथा शाखा पंथ धन-धन सतगुरू- सच्चा सौदा वाले संतों ने अण्ड-पिण्ड तथा ब्रह्मण्ड को भिन्न-2 बता कर बेतुका जोड़ जोड़ा है।

वास्तव में सतलोक वह स्थान है जहां पर सतपुरुष रहता है। सतनाम दो अक्षर का मंत्र है जिसमें एक ओम् तथा दूसरा तत् यह भी गुप्त है तथा सारनाम (सतशब्द) है जो पूर्ण परमात्मा ने पूर्ण रूप से गुप्त रखा है। जो अब मुझ दास को दिया है। सारशब्द उस अटल वचन शक्तियुक्त समर्थ परमात्मा का नाम है जिसने सर्व उत्पति अपने शब्द(वचन) से की है इसलिए उसे शब्द स्वरूप राम भी कहते हैं। उसको तो प्राप्त करना है। जैसा कि आप जी ने इसी पुस्तक के पृष्ठ 49-50 पर सातवीं किस्त में नल द्वारा जल प्राप्त करने की विधि में पढ़ा। केवल सतपुरुष, अकाल मूर्ति, शब्द स्वरूपी राम कहने से परमात्मा प्राप्ति नहीं है। यह तो एक ही शक्ति के पर्यायवाची नाम हैं। सतपुरुष का अर्थ है अविनाशी प्रभु, अकाल मूर्ति का अर्थ भी है कि जिस मुर्ति(साकार स्वरूप) का नाश न हो अर्थात् अविनाशी प्रभु, तथा शब्द स्वरूपी राम का भी अर्थ है अविनाशी प्रभु। शब्द अविनाशी है जो परमात्मा की अटल आदेशात्मक आवाज है इसलिए उस परमात्मा को पाने के मन्त्र को सारशब्द भी कहते हैं। वह सारनाम जाप करने का है तथा धुनात्मक शब्द अर्थात अनहद धुन अन्य वस्तु है वह परमात्मा नहीं है। केवल जल-पानी-नीर कहने से जल नहीं मिलेगा। जल प्राप्ति की विधि भिन्न है जो पांचवीं किस्त में वर्णित है। गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721 पर महला पहला में स्पष्ट किया है कि (कून करतार) शब्द स्वरूपी राम अर्थात् अविनाशी प्रभु(हक्का कबीर) सत कबीर है। यही प्रमाण महला पहला की वाणी पृष्ठ 24 पर लिखा है - ‘धाणक रूप रहा करतार‘। स्वयं श्री सावन सिंह जी महाराज राधास्वामी पंथ वाले भी स्वीकार करते है कि पूर्ण परमात्मा अर्थात अकाल पुरूष कबीर साहेब जी हैं। पुस्तक सन्तमत प्रकाश भाग 4 पृष्ठ 264 पर श्री सावन सिंह जी ने लिखा है कि कबीर साहेब को इन्दुमति रानी ने सतलोक में अकाल पुरूष रूप देखा तो कहा कि मुझे नहीं पता था कि आप ही अकाल पुरूष अर्थात् पूर्ण परमात्मा हो। कृप्या पढ़ें फोटो कापी पुस्तक सन्तमत प्रकाश भाग-4 पृष्ठ-264, इसी पुस्तक (सच्चखण्ड का संदेश) के पृष्ठ 130 पर।

विचार करेंः- राधास्वामी धन-धन सतगुरू-सच्चा सौदा सिरसा पंथ वाले सतलोक में केवल प्रकाश ही कहते हैं तथा सतपुरूष को निराकार ही बताते हैं तथा मोक्ष प्राप्त आत्मा परमात्मा में समुन्द्र में बूंद की तरह समा जाती है, भिन्न नहीं रहती। इन्दुमति रानी ने तो ऊपर सतलोक में कबीर जी को सतपुरूष(अकाल पुरूष) रूप में भिन्न देखा था अर्थात् कबीर परमात्मा को सतलोक में इन्दुमति रानी ने साकार में देखा था। इस से दो बातें सिद्ध हुई:-

(1) पूर्ण परमात्मा (सतपुरूष) कबीर जी काशी वाला जुलाहा है। (2) सतपुरूष साकार है मनुष्य जैसा है राधास्वामी पंथ के सन्त अपने सिद्धान्त को आप ही गलत कर रहे हैं। जो वास्तव में गलत ही है।

राधास्वामी मत का सिद्धान्त है कि मोक्ष प्राप्त आत्मा सतलोक में जाकर निराकार परमात्मा सतपुरूष में ऐसे समा जाती है जैसे बून्द समा जाती है समुन्द्र में। यदि कबीर जी पहले सतपुरूष में लीन हो गए थे तथा बाद में रानी इन्दुमति सतपुरूष में लीन हुई थी (जैसा पुस्तक सन्तमत प्रकाश भाग 4 पृष्ठ 264 में लिखा है) तो भिन्न-2 रहने का प्रश्न ही नहीं उठता। श्री सावन सिंह महाराज सन्तमत प्रकाश भाग-4 पृष्ठ 264 पर तथा भाग 5 पृष्ठ 223 पर स्पष्ट कह रहे हैं कि इन्दुमति रानी ने सतलोक में कबीर जी को अकाल पुरूष अर्थात सतपुरूष रूप में देखा। यदि लीन हो जाती तो बूंद समुन्द्र में मिलने के पश्चात् अलग अस्तित्व नहीं रहता। वास्तविक्ता यही है कि सतपुरूष कबीर परमेश्वर है तथा मानव सदृश शरीर में है। यह विवरण(जो इन्द्रमति रानी का है) कबीर सागर में लिखा है, जो सत्य है। सतलोक(सच्चखण्ड) में सतपुरूष (परम अक्षर ब्रह्म) मनुष्य सदृश साकार है। एक तत्व से बना नूरी शरीर है। जिस के एक रोम कूप की शोभा करोड़ सूर्यों तथा करोड़ चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है। इसी प्रकार मोक्ष प्राप्त आत्माऐं तथा अन्य पूर्व सृष्टि वाली आत्माऐं भी मानव सदृश साकार हैं। परन्तु सतलोक में रहने वाली आत्माओं के शरीर की शोभा सोलह सूर्यों के प्रकाश तुल्य है। यही प्रमाण पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मन्त्र 1 तथा 32 में है मन्त्र 1 में कहा हैः-(अग्नेः) परमेश्वर(तनूः) सशरीर(असि) है। (त्वा) उस (विष्णवे) सर्व पालन कर्ता सर्वेश्वर(सोमस्य) अमर पुरूष का अर्थात् सतपुरूष का (तनूः) शरीर (असि) है। मन्त्र 32 में लिखा है (कविरंघारिरसि) पाप का शत्रु अर्थात पाप नाशक कविर्देव(कबीर परमेश्वर) है। वही(बम्भारिरसि) बन्धनों का शत्रु अर्थात बन्दी छोड़ है। जो(ऋतधामा असि) सतलोक में रहने वाला है। वह (स्वज्र्याेतिः) स्वयं प्रकाशित है। अर्थात तेजोमय शरीरयुक्त है। यही प्रमाण पवित्र बाईबल में उत्पति ग्रन्थ में पृष्ठ 2 पर 1:20, 2:5 वाणी सं. 26 से 28 में लिखा है कि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार बनाया है।(इस से सिद्ध हुआ कि परमात्मा भी मनुष्य सदृश शरीर युक्त साकार है।) यह भी लिखा है कि परमेश्वर ने छः दिन में सृष्टि रचना की तथा सातवें दिन तख्त पर विश्राम किया। यही प्रमाण पवित्र र्कुआन शरीफ में सुरत फुर्कानि सं. 25 आयत सं. 58, 59 में लिखा है कि कबीर नामक परमात्मा छः दिन में सृष्टि रचकर सातवें दिन तख्त पर जा विराजा। (पवित्र र्कुआन शरीफ में लगभग चालीस प्रतिशत विवरण पवित्र बाईबल वाला है) आयत सं. 58, 59 में यह भी प्रमाण है कि र्कुआन शरीफ का ज्ञान दाता प्रभु अपने पैगम्बर(अवतार) हजरत मुहम्मद जी को कह रहा है कि जो परमात्मा तुझे जिन्दा साधु के रूप में मिला था वही वास्तव में अविनाशी तथा पापों को क्षमा (नाश) करने वाला है। उसकी खबर किसी बाखबर से पूछो अर्थात तत्वदर्शी (पूर्ण) सन्त से पूछो। मैं (र्कुआन शरीफ ज्ञान दाता) नहीं जानता।

उपरोक्त दोनों सद्ग्रन्थों(पवित्र बाईबल तथा पवित्र र्कुआन शरीफ) ने रल-मिल कर सिद्ध कर दिया कि परमात्मा मनुष्य सदृश शरीर में साकार है। उसका नाम अल्लाह अकबर अर्थात परमात्मा कबीर है।

यही प्रमाण आदि ग्रन्थ महला पहला की वाणी पृष्ठ 721 पर श्री नानक साहेब जी ने दिया है कहा है कि(कून करतार) शब्द स्वरूपी परमात्मा(हक्का कबीर) सत कबीर है। आदि ग्रन्थ पृष्ठ 24 वचन 29 में महला पहला की वाणी में श्री नानक साहेब ने यह भी प्रमाणित किया है कि वही सतकबीर काशी(बनारस) में धाणक(जुलाहा) रूप में प्रकट था।

कबीर परमात्मा को सतलोक में देखने के पश्चात श्री नानक जी ने प्रथम उदासी वाली यात्र में बनारस(काशी) में धाणक(जुलाहा) रूप में देख कर कहा थाः-

फाई सूरत मलूकि वेश- इह ठगवाड़ा ठगी देश खरा सियाणा बहुता भार-धाणक रूप रहा करतार।

उपस्थित व्यक्तियों से श्री नानक जी ने कहा था कि यह मन को आकृषित करने वाला चेहरा जहाँ जाता है वहाँ वैसी ही वेशभूषा बना लेता है। (क्योंकि पूर्ण परमात्मा कबीर जी श्री नानक जी को बेई नदी पर एक जिन्दा साधु के रूप में मिले थे।

सतलोक में सतपुरूष रूप में तथा फिर काशी में धाणक रूप में तब उपरोक्त वाणी कही थी) उपरोक्त सर्व पवित्र धर्मों के पवित्र सद्ग्रन्थों से सिद्ध हुआ कि सर्व सृष्टि रचनहार(करतार) मानव सदृश शरीरयुक्त साकार है तथा उसका नाम कबीर है। यह वही सतकबीर है जो काशी में जुलाहा(धाणक) की लीला करके सशरीर सतलोक चला गया था। यही काशी में जुलाहे(धाणक) की लीला करने वाला कबीर अकाल पुरूष सन् 1727 में आदरणीय गरीबदास जी महाराज(गांव छुड़ानी जिला-झज्जर, हरयाणा वाले) को जिन्दा महात्मा के रूप में सशरीर मिला था। जब गरीब दास जी महाराज की आयु दस वर्ष की थी तथा जंगल में गऊऐं चरा रहे थे। प्रत्यक्ष दृष्टा कई अन्य बड़े ग्वाले भी थे। उस स्थान पर एक यादगार भी बनी है। श्री नानक देव जी की तरह परमेश्वर कबीर जी ने बालक गरीब दास जी को भी सतलोक के दर्शन करा के वापिस छोड़ा था। तब गरीब दास जी ने भी सतलोक तथा अन्य लोकों व ब्रह्मण्डों का आँखों देखा हाल अपनी अमृतवाणी में वर्णन किया है।

गरीब - हम सुलतानी नानक तारे, दादु को उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद न पाया, काशी मांही कबीर हुआ।।
जिन्दा जोगी जगत गुरू, मालिक मुरसीद पीर।
दोनों दीन झगड़ा मंड्या, पाया नहीं शरीर।।
अनन्त कोटी ब्रह्मण्ड का, एक रती नहीं भार।
सतगुरू पुरूष कबीर हैं, कुल के सिरजन हार।।

उपरोक्त वाणी में सन्त गरीब दास जी महाराज ने बताया है कि हम अर्थात मैं (गरीब दास) तथा अब्राहिम सुलतान जी तथा नानक जी तथा दादु जी आदि सब को कबीर परमेश्वर ने पार किया। वह जगत गुरू कुल का मालिक जिन्दा रूप में मुझे मिला तथा वही काशी (बनारस) में जुलाहे (धाणक) रूप में एक सौ बीस वर्ष लीला करके मगहर स्थान से सशरीर चला गया। उनका शरीर नहीं मिला था केवल सुगंधित पुष्प ही मिले थे। उस को कोई नहीं समझ सका।

उपरोक्त सदग्रन्थों तथा आँखों देखने वाले संतों, गवाहों (साक्षियों) ने स्पष्ट रूप से सिद्ध कर दिया कि सर्व सृष्टि रचनहार सर्व का पालन कर्ता तथा पाप नाशक, पूर्ण मोक्ष दायक काल की कारागार से छुड़ाने वाला बन्दी छोड़, तेजोमय शरीर युक्त सतलोक में तथा पृथ्वी लोक आदि में लीला करने वाला सतपुरूष अर्थात अविनाशी परमात्मा काशी वाला जुलाहा कबीर है। इससे सिद्ध है कि राधास्वामी पंथ तथा धन-धन सतगुरू पंथ तथा अन्य शाखा पंथों का ज्ञान सही नहीं है तथा भक्ति विधि भी शास्त्र विरूद्ध मनमाना आचरण(पूजा) है जो लाभदायक नहीं है।

राधास्वामी पंथ तथा धन-धन सतगुरू पंथ व शाखाओं के सन्तों ने श्रद्धालुओं को उल्टी पढाई पढा रखी है कि सन्त गुरू रूप धार कर आता है वही सृजन हार है। परन्तु सतलोक में परमात्मा निराकार है केवल परमात्मा का प्रकाश है। काल लोक में भक्ति मार्ग दर्शन करके सन्त गुरू तथा साधक सतलोक में परमात्मा के प्रकाश में ऐसे समा जाते हैं जैसे बून्द समा जाती है समुन्द्र में। वहाँ सतलोक में आत्मा तथा परमात्मा का अलग अस्तित्व नहीं रहता। जबकि वास्तविकता इन के लोकवेद जिसको (दन्त कथा) के विपरित है जो ऊपर वर्णित है। जिसको श्री सावन सिंह जी महाराज राधास्वामी पंथी भी सन्तमत प्रकाश भाग-4 पृष्ठ 264 पर स्वीकार करते हैं कि कबीर जी को उनकी शिष्या इन्दुमति ने सतलोक में अकाल पुरूष के रूप में देखा। इससे स्वसिद्ध है कि पूर्ण परमात्मा कबीर है वह सशरीर है तथा आत्मा तथा परमात्मा की भिन्न-2 स्थिती है। ‘‘शब्द’’ ‘‘कर नैनों दीदार महल में प्यारा है’’ में कबीर परमेश्वर की वाणी है जिसे श्री सावन सिंह जी ने खोला है लिखा है कि सतलोक में आत्मा का प्रकाश सोलह सूर्यों के समान हो जाता है तथा परमात्मा के एक रोम का प्रकाश करोड़ सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है। इस व्याख्या से भी राधास्वामी पंथ का सिद्धान्त गलत सिद्ध हो जाता है।

इससे सिद्ध हुआ कि राधास्वामी पंथ तथा उसकी शाखाऐं धन-धन सतगुरू-सच्चा सौदा, जयगुरू देव मथूरा वाला, दिनोंद भिवानी वाला व कृपाल सिंह दिल्ली वाला पंथ पूर्ण रूप से निराधार सिद्धान्त पर टिका है। इन पंथों के पवित्र आत्मा सन्त तथा श्रद्धालु अनुयायी अपना अनमोल जीवन व्यर्थ कर रहे हैं। उनसे करबद्ध प्रार्थना है कि ठण्डे दिमाग से विचार करें तथा मुझ दास(रामपाल दास) को पूज्य कबीर परमेश्वर जी का भेजा कुत्ता जानें जो सर्व प्रभु चाहने वाले परमात्मा धन के धनियों को जगाने के लिए भौंक रहा है। जो जाग जाएगा वह लाभ उठाएगा। कृप्या मुझ दास को अपना दास या छोटा-बड़ा भाई जान कर आत्म कल्याण कराऐं। जिससे आप का जन्म-मरण का दीर्घ रोग समाप्त होगा तथा जब तक इस संसार में रहोगे आप का शरीर स्वस्थ, धन लाभ, परिवार में सुख सदा बना रहेगा।

प्रभु प्रेमी पाठकों को उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हो गया कि कहाँ है कैसा है व कौन है भगवान ?

सन्त रामपाल दास महाराज

(पुस्तक‘‘सन्तमत प्रकाश’’ भाग-4 पृष्ठ- 264 से फोटो कापी)

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