परमात्मा साकार है - निष्कर्ष सर्व सद्ग्रन्थों तथा परमात्मा प्राप्त संतों का

जितने भी सन्त महात्मा हुए हैं, जिन को परमात्मा मिले हैं, उन्होंने कोई धर्म विशेष की स्थापना नहीं की। हाँ, उन्होंने धार्मिकता को उभारा है तथा यथार्थ भक्ति को उजागर करने की कोशिश की है। परन्तु समय बीत जाने पर वह एक धर्म अर्थात् समुदाय का रूप ले लेता है। जैसे सिक्ख धर्म बना, वैसे ही बिश्नोई धर्म बन गया। पहले ये सब हिन्दू धर्म को मानने वाले थे, परन्तु हिन्दू धर्म में सत्य साधना नहीं रही थी तो परमात्मा से प्राप्त यथार्थ ज्ञान के आधार से इन महात्माओं ने भक्ति तथा धार्मिकता को जनता को बताया जिससे अनुयाईयों को लाभ होने लगा, वे उस मार्ग से जुड़ने लगे। इस प्रकार कई सौ वर्ष बीत गए। सिक्ख धर्म के प्रवर्तक गुरू नानक देव जी तथा बिश्नोई धर्म के संस्थापक श्री सन्त जम्भेश्वर जी समकालीन थे। वर्तमान में दोनों ही धर्मों में वह भक्ति तथा मर्यादा नहीं रही। इसका पुनः उत्थान मेरे (सन्त रामपाल के) द्वारा किया जा रहा है, वही यथार्थ भक्ति तथा मर्यादा पालन कराई जा रही है जो उपरोक्त महापुरूष करते तथा कराते थे। उपरोक्त महात्माओं के साथ उस समय बहुत व्यक्तियों ने विरोध किया, उनको भला बुरा भी कहा। परन्तु सन्त अपने उद्देश्य पर अडिग रहते हैं क्योंकि वे मानव कल्याण के लिए ही जन्म लेते हैं। वर्तमान में मेरे (सन्त रामपाल जी के) साथ क्या अत्याचार व अन्याय हो रहा है, कैसे बदनाम किया जा रहा हूँ, परन्तु सत्य को मिटाया नहीं जा सकता। इस आध्यात्म ज्ञान के तूफान को कोई नहीं रोक पाएगा। अब सत्य आध्यात्म ज्ञान का विस्फोट हो चुका है।

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