पाठ प्रकाश के समय विनती

हम विनती करते जी,गुरुजी तेरे आगै,साहिब तेरे आगै।।टेक।।

गरीब, साहिब मेरी विनती, सुनो गरीब निवाज।
जल की बूंद महल रच्या, भला बनाया साज।1।
साहिब मेरी विनती, सुनियो अरज अवाज।
माद्र पिद्र करीम तूं , पुत्र पिता कुं लाज।2।
साहिब मेरी विनती, कर जोरुं करतार।
तन मन धन कूरबानं जां, दीजै मोहे दिदा।3।
मालिक मीरां मिहरबान, सुनियो अरज अवाज।
पंजा राखो शीश पर, जम नहीं होत तिरास।4।
मीरां मोपै मिहिर कर, मैं आया तक श्याम।
समरथ तुम्हारे आसरै, बांदी जाम गुलाम।5।
मैं समर्थ के आसरै, दम कदम करतार।
गफलत मेरी दूर करो, खड़ा रहूं दरबार।6।
अविनासी के आसरै, अजरा वर की श्याम।
अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष होंही, समरथ राजा राम।7।
अर्ज अवाज अनाथ की, आजिज की अरदास।
आवन जान मेटियो, दिज्यो निश्चल बास।8।
अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सिरजन हार।9।
जुगन-जुगन के पाप सब, जुगन-जुगन के मैल।
जानत है जगदीश तूं, जोर किए बद फैल।10।
अलल पंख अनुराग है, सुन्न मण्डल रहै थीर।
दास गरीब उधारिया, सतगुरु मिले कबीर।11।
अकाल पुरुष साहिब धनी, अबिगत अविनासी।
गरीब दास शरणै लग्या, काटो यम फांसी।12।

।।शब्द (बधाई)।।

हमारै हुआ पाठ प्रकाश बधाई मैं बाटुंगी।
हमारै आये साहिब कबीर बधाई मैं बाटुंगी।
हमारै आए गरीब दास बधाई मैं बाटुंगी।टेक।
अमर लोक से चलकर आए, भव बन्धन से जीव छुड़ाए।
दे मन्त्र (नाम) सत्यलोक पठाए, ये देते निश्चल बास।1।
पाप पुण्य को हरदम तोलूं, घर-घर में मैं कहती डोलूं।
दुश्मन मीत सभी से बोलूं, तुम करियो आवणकी ख्यास।2।
म्हारै भक्त महात्मा आवैंगे, वो शब्द साहिब के गावेंगे।
हमारे भ्रम भूत मिट जावेंगे, फिर होवै नाम विश्वास ।3।
नगर निवासी सब ही आना, आपस के मत भेद भूलाना।
कोए दिन में सबको चलेजाना, या झूठी जगकी आस।4।
दुःख मेटैं और सुख का दाता, पूर्ण ब्रह्म है आप विधाता।
जब चाहे चोला धर आता, हुआ सुल्तानी कै खवास।5।
काशी में केशव बण आया, समन के घर भोग लगाया।
सेऊ धड़ पर शिश चढ़ाया, यह काटैं कर्म की फांस।6।
जिस घरका यह होता पाठजी, उन भक्तोंके होते ठाठजी।
भक्ति बिहुने बारह बाट जी,जिनको लगी ना भजन की प्यास।7।
गुरु राम देवानन्द गुण गाता है, दास रामपाल को समझाता है।
भजन बिना नहीं सुख पाता है, चाहे पृथ्वी पति हो खास।8।

।।सत साहिब।।

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