रावण तथा भस्मासुर की कथा
2. तमगुण शिवजी के उपासकों का चरित्र: लंका के राजा रावण ने तमगुण शिव की भक्ति की थी। उसने अपनी शक्ति से 33 करोड़ देवताओं को कैद कर रखा था। फिर देवी सीता का अपहरण कर लिया। उसका क्या हाल हुआ, आप सब जानते हैं। तमगुण शिव का उपासक रावण राक्षस कहलाया, सर्वनाश हुआ। निंदा का पात्र बना।
अन्य उदाहरण:- आप जी को भष्मासुर की कथा का तो ज्ञान है ही। भगवान शिव (तमोगुण) की भक्ति भष्मागिरी करता था। वह बारह वर्षों तक शिव जी के द्वार के सामने ऊपर को पैर नीचे को सिर (शीर्षासन) करके भक्ति तपस्या करता रहा। एक दिन पार्वती जी ने कहा हे महादेव! आप तो समर्थ हैं। आपका भक्त क्या माँगता है? इसे प्रदान करो प्रभु। भगवान शिव ने भष्मागिरी से पूछा बोलो भक्त क्या माँगना चाहते हो। मैं तुझ पर अति प्रसन्न हूँ। भष्मागिरी ने कहा कि पहले वचनबद्ध हो जाओ, तब माँगूंगा। भगवान शिव वचनबद्ध हो गए। तब भष्मागिरी ने कहा कि आपके पास जो भष्मकण्डा (भष्मकड़ा) है, वह मुझे प्रदान करो। शिव प्रभु ने वह भष्मकण्डा भष्मागिरी को दे दिया। कड़ा हाथ में आते ही भष्मागिरी ने कहा कि होजा शिवजी होशियार! तेरे को भष्म करुँगा तथा पार्वती को पत्नी बनाउँगा। यह कहकर अभद्र ढ़ंग से हँसा तथा शिवजी को मारने के लिए उनकी ओर दौड़ा। भगवान शिव उस दुष्ट का उद्देश्य जानकर भाग निकले। पीछे-पीछे पुजारी आगे-आगे इष्टदेव शिवजी (तमगुण) भागे जा रहे थे।
विचार करें धर्मदास! यदि आपके देव शिव जी अविनाशी होते तो मृत्यु के भय से नहीं डरते। आप इनको अविनाशी कहा करते थे। आप इन्हें अन्तर्यामी भी कहते थे। यदि भगवान शिव अन्तर्यामी होते तो पहले ही भष्मागिरी के मन के गन्दे विचार जान लेते। इससे सिद्ध हुआ कि ये तो अन्तर्यामी भी नहीं हैं।
जिस समय भगवान शिव जी आगे-आगे और भष्मागिरी पीछे-पीछे भागे जा रहे थे, उस समय भगवान शिव ने अपनी रक्षा के लिए परमेश्वर को पुकारा। उसी समय ‘‘परम अक्षर ब्रह्म’’ जी पार्वती का रुप बनाकर भष्मागिरी दुष्ट के सामने खड़े हो गए तथा कहा हे भष्मागिरी! आ मेरे पास बैठ। भष्मागिरी को पता था कि अब शिवजी निकट स्थान पर नहीं रुकेंगे। भष्मागिरी तो पार्वती के लिए ही तो सर्व उपद्रव कर रहा था। हे धर्मदास! आपको सर्व कथा का पता है। पार्वती रुप में परमात्मा ने भष्मागिरी को गण्डहथ नाच नचाकर भस्म किया। तमोगुण शिव का पुजारी भष्मागिरी अपने गन्दे कर्म से भष्मासुर अर्थात् भस्मा राक्षस कहलाया।
इसलिए इन तीनों देवों के पुजारियों को राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच दूषित कर्म करने वाले मूर्ख कहा है।