सातवीं किस्त

राधा स्वामी पंथ की कहानी-उन्हीं की जुबानी: जगत गुरु

(धन-धन सतगुरु, सच्चा सौदा तथा जय गुरुदेव पंथ भी राधास्वामी की शाखाएं हैं)

(सातवीं किस्त)
(-- गतांक से आगे)

‘‘कैसे मिले भगवान?’’

सावधान:- राधास्वामी पंथ में पाँच नाम देते हैं। ज्योति निरंजन, ओंकार, रंरंकार, सोहं और सतनाम, इसी पंथ की शाखा धन-धन सतगुरू-सच्चा सौदा सिरसा वाले अब तीन नाम 1. सतपुरूष 2. अकाल मूर्ति 3. शब्द स्वरूपी राम तथा जगमालवाली वाले ‘‘धन-धन सतगुरू तेरा ही आसरा’’ एक नाम देते हैं, पहले पांच नाम ही दान किए जाते थे। दिनोंद (जिला भिवानी) हरियाणा में श्री ताराचन्द जी वाला पंथ एक ‘‘राधा स्वामी’’ नाम देता है इसी को सारनाम बताता है

श्री आसाराम जी (अहमदाबाद वाला) सोहं मन्त्र को दो भागों में स्मरण करने को कहता है तथा कई अन्य मन्त्र भी देता है। जिन में से रूची अनुसार साधक को स्वयं चुनना होता है।

  1. गायत्राी मन्त्र (ओम् भूर्भुवः ------)
  2. ओम् नमः शिवाय
  3. ओम् नमः भगवते वासुदेवाय 4.------

श्री सुधांशु जी (बकरवाला दिल्ली वाले) हरि ओम्-तत्-सत् का जाप मन्त्र देता है। श्री शिव भगवान को अजन्मा-अजर-अमर अर्थात् मृत्युंज्य तथा सर्वेश्वर आदि बताते हैं। जब कि श्री देवी महापुराण तथा शिव महापुराण में श्री शिव का जन्म मृत्यु लिखा है।

‘‘निरंकारी ‘‘ पंथ वाले एक नाम’’ तू ही एक निरंकार। मैं तेरी शरण मुझे बख्स लो’’ देते हैं तथा परमात्मा को निराकार बताते हैं। जबकि परमात्मा सशरीर है।

उपरोक्त मन्त्र शास्त्रविरूद्ध होने से मोक्ष दायक नहीं हैं।

‘‘हंसा देश पंथ’’ (श्री सतपाल जी महाराज पंजाबी बाग दिल्ली वाला तथा श्री प्रेम रावत उर्फ बालयोगेश्वर जी महरौली दिल्ली वाला) हंस का जाप दो हिस्से करके जाप करने को देते हैं। इसको उल्टा करके सहं करके सोहं को भी दो हिस्से करके जाप करने को देते है तथा आँख बन्द करके हठ योग क्रियाऐं देते हैं जो शास्त्रविरूद्ध हैं मोक्ष दायक नहीं हैं।

भावार्थ है कि ओम्-तत्(सांकेतिक) तथा सत्(सांकेतिक) के अतिरिक्त सर्व साधना शास्त्र विरूद्ध अर्थात् मनमाना आचरण (पूजा) है। जो पवित्रा गीता अध्याय 16 श्लोक (मन्त्र) 23 में व्यर्थ कहा है तथा (श्लोक) मन्त्र 24 में कहा है कि परमात्मा की भक्ति के लिए शास्त्रों(वेदों) को ही आधार मानें।

उपरोक्त साधना शास्त्र विरूद्ध है, मोक्ष दायक नहीं है।

कृप्या पढ़ें मोक्ष दायक साधना:-

सर्वप्रथम उपदेश प्राप्त करने वाले को मानव शरीर में बने कमलों को खोलने का मन्त्र जाप दिया जाएगा। जिससे आपकी कुण्डलनी शक्ति जागृत हो जाएगी अर्थात् कमल खिल जाएगें। आप का त्रिकुटी तक जाने का रास्ता साफ हो जाएगा। मानव शरीर में कमल (चक्र) बने हैं। 1. मूल कमल में देव (स्वामी) गणेश जी का कार्यालय है, 2. स्वाद कमल में भगवान (स्वामी) ब्रह्मा जी का कार्यालय है, 3.नाभि कमल में भगवान(स्वामी) विष्णु जी का कार्यालय है, 4. हृदय कमल में भगवान(स्वामी) शिव जी का कार्यालय है, 5. कण्ठ कमल में शक्ति दुर्गा का कार्यालय है। इन पांचों शक्तियों के पांच नाम (मंत्रा) जाप के हैं जो आपको प्रथम दिए जाएगें। जिनके जाप से आपको आगे जाने का रास्ता मिलेगा अर्थात् आपकी कुण्डलनी शक्ति जागृत हो जाएगी। दूसरे शब्दों में आपके कमल खुल जाएंगे।(योगीजनों ने इन्हीं कमलों को हठ योग से खोलने का व्यर्थ प्रयत्न किया।) तब आप त्रिकुटी पर पहुंच पाओगे। यह तो प्राथमिक पढ़ाई है जो पांच नामों की है। केवल बात बनाने से कि हम तो सीधे त्रिकुटी में जाते हैं, कोई कार्य सिद्ध नहीं होगा।

जैसे हम विदेश(काल लोक) में आए हैं। स्वदेश(सतलोक) जाना है। हमारे ऊपर विदेश के कार्यालयों (बिजली-पानी-टेलिफोन आदि) का बिल बकाया है तथा कुछ ऋण भी शेष है। प्रथम ऋण मुक्त प्रमाण पत्रा लेने होंगे। फिर आप त्रिकुटी अन्र्तराष्ट्रीय हवाई अड्डे (इन्टरनैशल एयर पोर्ट) पर पहुंच सकते हैं अन्यथा नहीं। आप यहां विदेश (काल के लोक) में ऋणी हो गए हैं। आप पर बहुत कर्जा है। जिस कारण से आपकी सर्व सुविधाएं छीनी जा चुकी हैं। जैसे बिजली का बिल न भरने से कनेक्शन कट जाता है। लाभ समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार आपके सर्व कार्य उल्ट-पुल्ट हो गए हैं। सतगुरू आपका जमानती (गारन्टर) बनेगा तथा श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिवजी आदि से आपके सर्व लाभ पुनर् चालु कराएगा। फिर उपरोक्त पांचों शक्तियों के नाम जाप की मजदूरी करके आपने ऋण मुक्त भी होना है तथा जब तक इस विदेश (काल लोक) में रहोगे सांसारिक सुविधाएं भी प्राप्त करते रहना है। सतनाम दो अक्षर (मन्त्र) के जाप (ओम् तत्) में एक ओम् (ऊँ) अक्षर है। इस ओम् नाम के जाप की कमाई से ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्मण्डों का ऋण चुकाना है। हम पहले ओम् नाम की कमाई स्वर्ग-महास्वर्ग में खर्च करते रहे। अब हम ओम् (ऊँ) मंत्रा के जाप की पूजा ब्रह्म (काल) को दे देंगे। यह हमें छोड़ देगा। भावार्थ है कि सतनाम के इस एक अक्षर ‘‘ओम्’’ के जाप की कमाई साधक को काल जाल से छुड़ाएगी। आप जी ने श्री नानक जी की वाणी में पढ़ा कि पूरा सतगुरू दो अक्षर का भेद बताएगा एक अक्षर छुड़ाएगा दूसरा तत् मन्त्र (जो सांकेतिक है) प्रभु को भंवर गुफा से पारदर्शक पर्त के पार सतलोक में सतपुरूष को लखाएगा अर्थात् दर्शन कराएगा।

यह एक अक्षर ओम् ही ब्रह्म अर्थात् काल का वास्तविक जाप का मन्त्र है का प्रमाण पवित्रा गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में है कि ‘‘ओम् इति एक अक्षरम् ब्रह्म व्याहरन् माम् अनुस्मरन्। य प्रयाति त्यजन देहम् सः याति परमाम् गतिम्।’’(8/13)

शब्दार्थ:- काल ब्रह्म ने कहा है कि जो मुझ ब्रह्म के एक अक्षर ओम् (ॐ) का जाप अन्तिम स्वांस तक करता है वह मेरे वाली भक्ति का पूर्ण लाभ प्राप्त करता है। गीता अध्याय 18 श्लोक 66 में गीता ज्ञान दाता (काल-ब्रह्म) ने कहा है कि यदि तूने उस परमात्मा की शरण में जाना है तो (सर्व धर्मान् परित्यज्य माम्) मेरे स्तर की सर्व धार्मिक पूजाऐं अर्थात् ओम् नाम का जाप यज्ञ आदि मुझमें छोड़ कर (एकम् शरणम्) उस एक सर्वशक्तिमान की शरण में (व्रज) जा (अहम् त्वा सर्व पापेभ्यः मोक्षयिष्यामि मा शुचः) मैं तुझे सर्व पापों से छुड़ा दूंगा, तू चिंता मत कर। जब हम शरीर त्याग कर सतलोक को प्रस्थान करेंगे तब काल(ब्रह्म) को ओम् (ऊँ) नाम की कमाई त्रिकुटी पर सौंप देंगे। यह काल हमें ऋण मुक्त कर देगा (पवित्रा गीता जी का हिन्दी अनुवाद कर्ताओं ने गलत अनुवाद किया है। गीता अध्याय 18 श्लोक 66 में व्रज का अर्थ आना किया है जबकि व्रज का अर्थ जाना होता है) फिर हम तत् मन्त्र (जो सांकेतिक है) के जाप की कमाई परब्रह्म को दे देगें। वह हमें अपने सात शंख ब्रह्मण्डों से पार करके भंवर गुफा तक पहुंचा देगा। वहां पर पूर्ण परमात्मा को हम केवल देख (लख) सकते हैं। जैसे शीशे के पार वस्तु को देखा जा सकता है प्राप्त नहीं किया जा सकता। तत् पश्चात सारनाम के जाप की कमाई भंवर गुफा से पार करके सतलोक में स्थाई स्थान प्राप्त कराएगी। फिर अपना जन्म मृत्यु कभी नहीं होगा। सतपुरुष (पूर्ण परमात्मा) की प्राप्ति होगी। सतलोक में सर्व आत्माओं का साकार अभौतिक शरीर है जो एक नूर तत्व से बना है पूर्ण परमात्मा का भी (अकायम् अश्नाविरम्) अभौतिक नूरी शरीर है परन्तु आत्मा और पूर्ण परमात्मा के शरीर के प्रकाश का अत्यधिक अन्तर है ऊपर के अन्य(अलख, अगम, अनामय) लोकों में जाने की भक्ति वहां सतलोक में प्रारम्भ होगी। वहां सतलोक में कोई कष्ट नहीं है। इसलिए ऊपर के लोकों की प्राप्ति की ईच्छा कोई बिरला ही करता है।

तत्व ज्ञान के अभाव से सर्व पवित्र हिन्दु समाज तथा राधास्वामी पंथ तथा धन-धन सतगुरु सच्चा-सौदा तथा अन्य पंथों के पवित्रा आत्मा संत तथा श्रद्धालु अपना जीवन व्यर्थ कर रहे हैं। सर्व से नम्र निवेदन है कि वह वास्तविक दो अक्षर (ओम् तत् सांकेतिक) का मंत्र जाप तथा एक अक्षर सारनाम जगत् गुरू तत्वदर्शी सन्त रामपाल दास जी महाराज के पास है तथा इस दो मंत्रा के योग से बने मंत्र (जिसे सतनाम कहते हैं) की कमाई पूरी होने के पश्चात आपको सत्शब्द अर्थात सारनाम जो एक अक्षर का है दिया जाएगा। फिर परमात्मा प्राप्ति होगी।

उदाहरण:- जैसे जल को प्राप्त करने के लिए नल लगाना होता है। दो अक्षर के नाम को बोकी लगाना जानो। ओम तत् (जिसमें तत् मंत्र अन्य है जो साधक को बताया जाएगा) का जाप स्वांस-उस्वांस से किया जाता है।

कबीर साहेब जी कहते हैं कि ‘‘स्वांस-उस्वांस में जाप जपो, व्यर्था स्वांस न खो। न जाने इस स्वांस को आवन हो के न हो।।‘‘

दो अक्षर से बने सतनाम से स्वांस-उस्वांस की बोकी लगाई जाएगी जो पाईप को जल तक पहुंचाएगी। फिर सारनाम रूपी हैंड पंप की मशीन लगाई जाएगी। उस सारनाम का भी स्मरण करना होता है। जैसे हैंड पम्प की हत्थी को हिला-हिला कर गति दी जाती है तब पानी प्राप्त होता है। इसी प्रकार सारनाम फिर एक ही रह जाता है उसका स्मरण करने से सतपुरूष (अविनाशी परमात्मा) की प्राप्ति होती है। पवित्रा गीता जी के अध्याय 17 श्लोक 23 में यह भी स्पष्ट किया है कि ओम्-तत्-सत् मंत्रा को तीन विधि से स्मरण किया जाता है। यह विधि केवल पूर्ण सन्त रामपाल दास जी महाराज के पास है जिसमें तीनों मंत्रों ओम् तत् (सतनाम) है तथा सत्शब्द (जो सारनाम) है को तीन प्रकार से ही स्मरण करना होता है।

कृप्या किस्त सं. 6 में प्रकाशित फोटो क¦पी ‘‘सन्तमत प्रकाश’’ भाग 4 पृष्ठ 262 में पढें जिसमें तीनों मन्त्रों का स्पष्ट वर्णन भी किया है कि एक ओम् शब्द दूसरा सोहं शब्द तीसरा सतशब्द। राधास्वामी पंथ वालों को दो अक्षर से बने सतनाम का तथा आदि नाम (जिसे सारनाम भी कहते हैं) का ज्ञान नहीं वे पाँचों नाम काल के देते हैं। जिसके विषय में तुलसी साहेब कृत घट रामायाण प्रथम भाग पृष्ठ-27 पर लिखा है कि पाँचों नाम काल के हैं इन पाँचों से भिन्न सतनाम तथा आदि नाम अर्थात् सारनाम है। जबकी आदि ग्रन्थ साहेब तथा कबीर जी की वाणी का प्रमाण बताया है वह सही है कि पूरा सन्त दो अक्षर का नाम जाप(ओम्$तत्) बताएगा। वही पूरा सन्त होगा।

श्री नानक साहेब जी की वाणी में स्पष्ट है कि ‘‘इक अख्खर हरि मन वसै नानक होत निहाल’’ फिर ग्रन्थ साहेब के पृष्ठ 747 की वाणी का प्रमाण लिखा है कि ‘‘एक अख्खर जो गुरू मुख जापै तिस की निरमल होई’’।

उपरोक्त वाणी स्पष्ट कर रही है कि एक अक्षर(जो सारनाम है) है वह भी गुरू मुख(पूर्ण सन्त के शिष्य) को जाप करना होता है। राधास्वामी पंथ वाले इसे वाणी को अपनी शास्त्रविरूद्ध साधना से जोड़ते हैं कि एक धुन अन्दर सुनने के विषय में कहा है ‘‘एक अख्खर का जाप करै’’ विचार करें धुन का जाप नहीं होता। वह तो केवल सुनी जाती है। जाप का संकेत एक मन्त्र सारनाम की ओर न की धुन सुनने के लिए है। पुस्तक सन्तमत प्रकाश भाग-4 पृष्ठ 261,262 की फोटो कापी में श्री सावन सिंह जी ने कहा है कि दो अक्षर पारब्रह्म में हैं। फिर कहा है कि वह एक अक्षर भी पारब्रह्म में मिलेगा। आप स्वयं विचार करें राधास्वामी पंथ के सन्त ज्ञानी है या अज्ञानी।

परंतु पूर्ण परमात्मा को प्राप्ति की विधि स्वयं पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने बताई है जो वर्तमान में पूरे विश्व में केवल पूर्ण सन्त रामपाल दास जी महाराज को प्राप्त है। अविलम्ब तथा निःशुल्क प्राप्त करें। यदि कोई उपरोक्त विधि को सन्त रामपाल दास जी महाराज से प्राप्त करके स्वयंभू गुरू बन कर नामदान करता है तो उसे अनाधिकारी जान कर सावधान रहें। वह अपना तथा भोले श्रद्धालुओं का जीवन नाशक है। एैसे-2 स्वयंभू नकली सन्तों ने प्रभु मार्ग को बिगाड़ रखा है। जिस समय भक्त समाज को ज्ञान हो जाएगा कि ऐसे नकली गुरू मानव जीवन के लिए कितने घातक हैं तब इन नकली गुरूओं को छुपने को स्थान नहीं मिलेगा। यह जागृति अति शीघ्र आने वाली है। उन्हीं के शिष्य इन सर्व शास्त्रविरूद्ध साधना बताने वाले गुरूओं तथा स्वयंभू गुरूओं को फाटक में रोकेगें ताकि ये समाज को गुमराह न कर सकें। सर्व भक्त समाज से प्रार्थना है कि झूठे तथा कपटी गुरूओं को त्याग कर सन्त रामपाल दास जी महाराज से सत्य साधना निःशुल्क प्राप्त करें।

कुछेक श्रद्धालु कहते हैं कि क्या गुरू बदलने में पाप तो नहीं लगेगा? उन श्रद्धालुओं से निवेदन है कि जैसे एक डाक्टर (वैद्य) से उपचार नहीं होता है तो दूसरा डाक्टर बदलने में लाभ होता है हानि नहीं होती ठीक इसी प्रकार गुरू को जानो। इसलिए शास्त्रविधि विरूद्ध ज्ञान वाले गुरू को त्यागकर पूर्ण गुरू धारण करना हितकर है। पाप नहीं अपितु पुण्य है। कुछ श्रद्धालु संकोच करते हैं कि हमारी तीस वर्ष की साधना का क्या होगा? अब कैसे छोड़ें? उन श्रद्धालुओं से निवेदन हैं कि विचार करें कि आपको किसी शहर में जाना है, तीस किलोमीटर जाने के बाद पता चले कि आप गलत रास्ते पर जा रहे हैं, तो तुरंत मुड़ जाना चाहिए। नहीं तो मंजिल दूर होती जाएगी। फिर भी कोई कहे कि हम तो तीस किलोमीटर सफर तय कर चुके हैं, अब कैसे छोड़ें इस रास्ते को? यह विचार तो बालक के या शराबी के हो सकते हैं।

समझदार तो तुरंत मुड़ जाएगा। इसलिए उस साधना को तुरंत त्यागकर वास्तविक शास्त्रविधि अनुसार साधना ग्रहण करें।

एक राधास्वामी पंथी से ज्ञान चर्चा:-
शेष अगले अंक में ----------------

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