ब्रह्मा से मन व काम (सैक्स) वश नहीं हुआ

ब्रह्मा की कहानी सुनो:-ब्रह्मा जी बहुत ही विद्वान् देव हैं। चारों वेदों के ज्ञाता माने जाते हैं तथा ब्रह्मापुरी में देवताओं को ज्ञान सुनाया करते हैं।

एक दिन बहुत से नौजवान देव ब्रह्मा जी की सभा में ज्ञान सुनने हेतु आए हुए थे। ब्रह्मा जी कह रहे थे कि देवताओं हमारा सबसे पहला दुश्मन कामदेव (सैक्स) है। इससे बचने के लिए एक मात्रा उपाय है कि दूसरे की पत्नी को माँ समान व पुत्राी को बेटी समान समझें। यदि कोई ऐसा विचार नहीं रखता है तो वह नीच आत्मा है। उसके दर्शन भी अशुभ होते हैं आदि-आदि। ब्रह्मा जी की पुत्राी सरस्वती जो कुंवारी थी को अपनी माता जी से गृहस्थ का ज्ञान हुआ कि जवान लड़की ने शादी करके अपना घर बसाना चाहिए। नहीं तो स्त्राी का आदर कम हो जाता है। इस बात को सुनकर सरस्वती हम उम्र सहेलियों (देव स्त्रिायों) के पास गई। उसने उनको माता द्वारा शादी करने का वृत्तांत सुनाया। तब सभी ने मिल कर कहा कि सरस्वती जवानी ढल जाने के बाद आपको कोई देव स्वीकार नहीं करेगा। शादी के आनन्द से वंचित रहकर मानव शरीर का कोई लाभ नहीं है। अन्य बहुत अश्लील बातों से सरस्वती में पति प्राप्ति की प्रबल इच्छा प्रेरित की। साथ में कहा कि आज सुअवसर है कि सर्वदेव आपके पिता के दरबार में आए हुए हैं। अपना पति चुन ले। यह बात सुनकर सरस्वती (ब्रह्मा की पुत्राी) स्नान आदि करके, हार सिंगार (श्रृंगार) करके सुन्दर वस्त्रा पहन कर पति प्राप्ति के लिए ब्रह्मा जी की सभा मंे गई। सर्व देवों को विशेष अदा के साथ देखती हुई चली। उसी समय ब्रह्मा जी अपनी पुत्राी के यौवन को देखकर ज्ञान-ध्यान भूलकर अपनी बेटी पर मोहित होकर आसन छोड़कर कामवासना वश होकर सरस्वती की कौली (बाथ भरना - दोनों भुजाओं से दबोच लेना) भर ली। वासना विकार वश होकर दुष्कर्म पर उतारू हुआ ही था कि इतने में भगवान शिव ने ब्रह्मा जी के शिर पर थाप (थप्पड़) मारी और कहा क्या कर रहे हो? ऐसा अपराध! ब्रह्मा यह शरीर त्याग दे नहीं तो कुत्ते की जूनी में जाएगा। उसी समय ब्रह्मा जी योग ध्यान में आया। शरीर त्याग दिया। दुर्गा ने वचन शक्ति से उसी आत्मा को अन्य शरीर में प्रवेश कर दिया जो उसी आयु का शरीर था जो वर्तमान में ब्रह्मा रूप में विराजमान है। अब पाठकजन स्वयं विचार करें फिर आम (साधारण) जीव कैसे ज्ञान योगयुक्त व वासना विकार रहित हो सकता है। यह सब काल (महाविष्णु, ज्योति निरंजन) का जाल है। आदरणीय गरीबदास साहेबजी महाराज कहते हैं:-

गरीब, बीजक की बातां कहैं, बीजक नाहीं हाथ। पृथ्वी डोबन उतरे, कह-2 मीठी बात।।
कहन सुनन की करते बाता। कोई न देखा अमृत खाता।। ब्रह्मा पुत्राी देख कर, हो गए डामा डोल।।

भावार्थ:- वेदों व गीता के श्लोकों को कंठस्थ करके उच्चारण करके भक्ति मार्ग बताते हैं, परंतु बीजक यानि वेदों व गीता के यथार्थ अर्थ तथा भावार्थ का ज्ञान नहीं है। ये कथित विद्वान बनकर पृथ्वी के सब मानवों को शास्त्रों के विपरित गलत ज्ञान बताकर जीवन नष्ट करने के लिए जन्में हैं। ये केवल बातें बनाते हैं कि हमने परमात्मा प्राप्त कर लिया है, बड़ा आनंद आ रहा है। इन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं है। ब्रह्मा जी कितनी बातें बना रहे थे। अपनी ही पुत्राी को देखकर डगमग हो गए। तत्वदर्शी संत से ज्ञान समझकर सत्य साधना से सर्व विकार सामान्य हो जाते हैं और मोक्ष भी मिलता है।

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