सेऊ (शिव) तथा सम्मन की कथा
{अचला के अंग की वाणी नं. 148-190 में है।}
अचला के अंग से वाणी नं. 148.190:-
गरीब, समन कै सतगुरु गये, संग फरीद कमाल। सत टोहन कौं ऊतरे, हो सतगुरु अबदाल।।148।।
गरीब, समन नेकी पूछिया, अन्न का कहौ बिचार। सतगुरु आये पाहुने, क्या दीजै जौंनार।।149।।
गरीब, नेकी समन सें कहै, अन्न नांहि घर मोरि। सतगुरु के प्रसाद कूं, घर ल्यावौं कोई फोरि।।150।।
गरीब, मांग्या मिलै न करज दे, आंनि बनी बहु भीर। कहि नेकी क्या कीजिये, ल्या धरैं तुम्हारा चीर।।151।।
गरीब, धरने लायक चीर कित, पाट्या पटल मोहि। समन सें नेकी कहै, चोरी जावौ तोहि।।152।।
गरीब, सेऊ माता सें कहै, चोरि खाट्या खांहि। माल बिराना मुसहरैं, जिन के सरबस जांहि।।153।।
गरीब, माता पुत्र सें कहै, सुनि सेऊ सुर ज्ञान। या में नहीं अकाज है, चोरि करि दे दान।।154।।
गरीब, सतगुरु दीन्हा बैठना, आसन दिये बिछाय। शेख फरीद कमाल कूं, लिये सुतार चढाय।।155।।
गरीब, शब्द उचारैं धुंनि करैं, सतगुरु आये आज। समन सें नेकी कहैं, घर में नाहीं नाज।।156।।
गरीब, सुनौं शब्द चित्त लाय करि, हौनी होय सो होय। सब बिधि काज समारही, चरण कमल चित्त पोय।।157।।
गरीब, सतगुरु आये पाहुनें, मिहमानी करि स्यांह। सेऊ माता सै कहै, शीश बेचि धरि स्यांह।।158।।
गरीब, सुनि रे पुत्र सरोमनी, नेकी कहै निराठि। सतगुरु आये पाहुनें, करौ शीश की सांटि।।159।।
गरीब, शेख फरीद कमाल कूं, बोले बचन सुशील। समन सें सतगुरु कहै, भोजन की क्या ढील।।160।।
गरीब, सतगुरु सें समन कहै, करौ ध्यान असनान। भोजन पाख षिलायस्यां, ऊगमतैंही भान।।161।।
गरीब, अर्ध रात चोरी चले, सेऊ समन साथ। कुंभिल दीना जाय करि, नाज लग्या जहां हाथ।।162।।
गरीब, कुंभिल में सेऊ बड़े, लाई बड़ी जु बेर। हम तौ फाकैही रहैं, तुम ल्याईयौ तीनै सेर।।163।।
गरीब, तीन सेर अन्न बांधि करि, पहली दिया चलाय। पीछै बनियां, जागिया, सेऊ पकर्या आय।।164।।
गरीब, चोर चोर बनियां करै, सेऊ पकरी मौंन। ठाड्यौ काहै बोलिये, तीन सेर लिया चैंन।।165।।
गरीब, बनिये रस्सा घालि करि, दिया खंभ सें बांधि। समन डेरै ले गया, नेकी रोटी छांदि।।166।।
गरीब, करद लिया एक हाथ में, उलटे चले समन। सेऊ टुक बतलाय ले, सूना पर्या भवन।।167।।
गरीब, बनियां सें सेऊ कहै, बाहर हमरा बाप। झूंठी शाख न बोलि हूं, शीश चढत मोहि पाप।।168।।
गरीब, खंभा सें पग बांधि दे, बाहर काढौं शीश। दोय बात बतलाय लौ, शाखी हैं जगदीश।।169।।
गरीब, पिता शीश शिर काटिले, सनमुख करद चलाय। ताक बीच धरि दीजियौं, बनियें पकरे पाय।।170।।
गरीब, समन करद चलाइया, सनमुख काट्या शीश। काटतही कसक्या नहीं, दढ है बिसवे बीस।।171।।
गरीब, शीश काटि घर ले गया, ताक बीच धरि दीन। नेकी करै रसोईयां, ज्ञान ध्यान प्रबीन।।172।।
गरीब, समन तैं नेकी करी, सेऊ का शिर काटि। तन देही कित डारिया, फेरा करियो हाटि।।173।।
गरीब, छह दौने परोसिया, सतगुरु पुरुष कबीर। सेऊ बोलै ताक में, में हूं दामनगीर।।174।।
गरीब, समन सें सतगुरु कहै, सेऊ आया नांहिं। देही तौ सूनि धरी, शीश ताक कै मांहि।।175।।
गरीब, आवो सेऊ जीमि ल्यौ, योह प्रसाद प्रेम। शीश कटत हैं चोरों कै, साधौं कै नित क्षेम।।176।।
गरीब, सेऊ धड़ परि शिर चढ्या, बैठे पंगत मांहि। नहीं घरहरा नाड़ि कै, वह सेऊ अक नांहि।।177।।
गरीब, समन सें सतगुरु कहैं, नेकी मन आनन्द। शीश काटि घर में धर्या, मात पिता धन्य धन्य।।178।।
गरीब, सतगुरु सें समन कहैं, सुनौं फरीदा गल। इब के सतगुरु आयसी, देसी शीश पहल।।179।।
गरीब, सतगुरु सें नेकी कहै, सुनौं फरीदा बात। आधी भक्ति कमाईया, रहे पिता पुत्र नहीं साथ।।180।।
गरीब, भौंहौं करि हूं आरता, पलकौं चैंर ढुराय। समन सें नेकी कहै, द्यौंह अपना शीश चढाय।।181।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल सैं, सुनौं फरीदा फेर। समन कै घर साच है, इत मत लावो बेर।।182।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल स्यौं, सुनौं फरीदा यार। समन कै घर साच है, ये धरि हैं शीश उतार।।183।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल सै, सुनौं फरीदा बात। समन कै घर साच है, शीश चढै स्यौं गात।।184।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल सैं, सुनौं फरीदा सैंन। समन कै घर साच है, ये बोलै आदू बैंन।।185।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल सैं, सुनौं फरीदा ख्याल। समन कै घर साच है, ये कीजै नजर निहाल।।186।।
गरीब, जेते अंबर तारियां, ते ते अवगुण मोहि। धड़ सूली शिर ताकमें, सतगुरु तौ नहीं बिसरौं तोहि।।187।।
गरीब, छप्पन भोग करे धनी, भये समन कै ठाठ। कहै कबीर कमाल सैं, चलौ फरीदा बाट।।188।।
गरीब, अष्टसिद्धि नौनिद्धि आगनैं, अन्न धनदिये अनन्त। सेऊ समन अमर कछ, नेकी पद बे अन्त।।189।।
गरीब, नेकी सेऊ पारिंग हुए, सतगुरु के प्रताप। समन भए नौशेरखांन, जुग-जुग संगी साथ।।190।।_
‘‘सेऊ-सम्मन की कथा’’
एक समय साहेब कबीर अपने भक्त सम्मन के यहाँ अचानक दो सेवकों (कमाल व शेखफरीद) के साथ पहुँच गए। सम्मन के घर कुल तीन प्राणी थे। सम्मन, सम्मन की पत्नी नेकी और सम्मन का पुत्र सेऊ (शिव)। भक्त सम्मन इतना गरीब था कि कई बार अन्न भी घर पर नहीं होता था। सारा परिवार भूखा सो जाता था। आज वही दिन था। भक्त सम्मन ने अपने गुरुदेव कबीर साहेब से पूछा कि साहेब खाने का विचार बताएँ, खाना कब खाओगे? कबीर साहेब ने कहा कि भाई भूख लगी है। भोजन बनाओ। सम्मन अन्दर घर में जा कर अपनी पत्नी नेकी से बोला कि अपने घर अपने गुरुदेव भगवान आए हैं। जल्दी से भोजन तैयार करो। तब नेकी ने कहा कि घर पर अन्न का एक दाना भी नहीं है। सम्मन ने कहा पड़ोस वालों से उधार मांग लाओ। नेकी ने कहा कि मैं मांगने गई थी लेकिन किसी ने भी उधार आटा नहीं दिया। उन्होंने आटा होते हुए भी जान बूझ कर नहीं दिया और कह रहे हैं कि आज तुम्हारे घर तुम्हारे गुरु जी आए हैं। तुम कहा करते थे कि हमारे गुरु जी भगवान हैं। आपके गुरु जी भगवान हैं तो तुम्हें माँगने की आवश्यकता क्यों पड़ी? ये ही भर देगें तुम्हारे घर को आदि-2 कह कर मजाक करने लगे। सम्मन ने कहा लाओ आपका चीर गिरवी रख कर तीन सेर आटा ले आता हूँ। नेकी ने कहा यह चीर फटा हुआ है। इसे कोई गिरवी नहीं रखता। सम्मन सोच में पड़ जाता है और अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए कहता है कि मैं कितना अभागा हूँ। आज घर भगवान आए और मैं उनको भोजन भी नहीं करवा सकता। हे परमात्मा! ऐसे पापी प्राणी को पृथ्वी पर क्यों भेजा। मैं इतना नीच रहा हूँगा कि पिछले जन्म में कोई पुण्य नहीं किया। अब सतगुरु को क्या मुंह दिखाऊँ? यह कह कर अन्दर कोठे में जा कर फूट-2 कर रोने लगा। तब उसकी पत्नी नेकी कहने लगी कि हिम्मत करो। रोवो मत। परमात्मा आए हैं। इन्हें ठेस पहुँचेगी। सोचंेगे हमारे आने से तंग आ कर रो रहा है। सम्मन चुप हुआ। फिर नेकी ने कहा आज रात्रि में दोनों पिता पुत्र जा कर तीन सेर (पुराना बाट किलो ग्राम के लगभग) आटा चुरा कर लाना। केवल संतों व भक्तों के लिए। तब लड़का सेऊ बोला माँ - गुरु जी कहते हैं चोरी करना पाप है। फिर आप भी मुझे शिक्षा दिया करती कि बेटा कभी चोरी नहीं करनी चाहिए। जो चोरी करते हैं उनका सर्वनाश होता है। आज आप यह क्या कह रही हो माँ? क्या हम पाप करेंगे माँ? अपना भजन नष्ट हो जाएगा। माँ हम चैरासी लाख योनियों में कष्ट पाएंगे। ऐसा मत कहो माँ। आपको मेरी कसम। तब नेकी ने कहा पुत्र तुम ठीक कह रहे हो। चोरी करना पाप है, परंतु पुत्र हम अपने लिए नहीं बल्कि संतों के लिए करेंगे। जिस नगर में निर्वाह किया है, इसकी रक्षा के लिए चोरी करेंगे। नेकी ने कहा बेटा - ये नगर के लोग अपने से बहुत चिड़ते हैं। हमने इनको कहा था कि हमारे गुरुदेव कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा) पृथ्वी पर आए हुए हैं। इन्होंने एक मृतक गऊ तथा उसके बच्चे को जीवित कर दिया था जिसके टुकड़े सिंकदर लौधी ने करवाए थे। एक लड़के तथा एक लड़की को जीवित कर दिया। सिंकदर लौधी राजा का जलन का रोग समाप्त कर दिया तथा श्री स्वामी रामानन्द जी (कबीर साहेब के गुरुदेव) को सिंकदर लौधी ने तलवार से कत्ल कर दिया था वे भी कबीर साहेब ने जीवित कर दिए थे। इस बात का ये नगर वाले मजाक कर रहे हैं और कहते हैं कि आपके गुरु कबीर तो भगवान हैं तुम्हारे घर को भी अन्न से भर देंगे। फिर क्यों अन्न (आटे) के लिए घर घर डोलती फिरती हो?
बेटा! ये नादान प्राणी हैं। यदि आज साहेब कबीर इस नगरी का अन्न खाए बिना चले गए तो काल भगवान भी इतना नाराज हो जाएगा कि कहीं इस नगरी को समाप्त न कर दे। हे पुत्र! इस अनर्थ को बचाने के लिए अन्न की चोरी करनी है। हम नहीं खाएंगे। केवल अपने सतगुरु तथा आए भक्तों को प्रसाद बना कर खिलाएगें। यह कह कर नेकी की आँखों में आँसू भर आए और कहा पुत्र नाटियो मत अर्थात् मना नहीं करना। तब अपनी माँ की आँखों के आँसू पौंछता हुआ लड़का सेऊ कहने लगा - माँ रो मत, आपका पुत्र आपके आदेश का पालन करेगा। माँ आप तो बहुत अच्छी हो न।
अर्ध रात्रि के समय दोनों पिता (सम्मन) पुत्र (सेऊ) चोरी करने के लिए चल दिए। एक सेठ की दुकान की दीवार में छिद्र किया। सम्मन ने कहा कि पुत्र मैं अन्दर जाता हूँ। यदि कोई व्यक्ति आए तो धीरे से कह देना मैं आपको आटा पकड़ा दूंगा और ले कर भाग जाना। तब सेऊ ने कहा नहीं पिता जी, मैं अन्दर जाऊँगा। यदि मैं पकड़ा भी गया तो बच्चा समझ कर माफ कर दिया जाऊँगा। सम्मन ने कहा पुत्र यदि आपको पकड़ कर मार दिया तो मैं और तेरी माँ कैसे जीवित रहेंगे? सेऊ प्रार्थना करता हुआ छिद्र द्वार से अन्दर दुकान में प्रवेश कर गया। तब सम्मन ने कहा पुत्र केवल तीन सेर आटा लाना, अधिक नहीं। लड़का सेऊ लगभग तीन सेर आटा अपनी फटी पुरानी चद्दर में बाँध कर चलने लगा तो अंधेरे में तराजू के पलड़े पर पैर रखा गया। जोर दार आवाज हुई जिससे दुकानदार जाग गया और सेऊ को चोर-चोर करके पकड़ लिया और रस्से से बाँध दिया। इससे पहले सेऊ ने वह चद्दर में बँधा हुआ आटा उस छिद्र से बाहर फैंक दिया और कहा पिता जी मुझे सेठ ने पकड़ लिया है। आप आटा ले जाओ और सतगुरु व भक्तों को भोजन करवाना। मेरी चिंता मत करना। आटा ले कर सम्मन घर पर गया तो सेऊ को न पा कर नेकी ने पूछा लड़का कहाँ है? सम्मन ने कहा उसे सेठ जी ने पकड़ कर थम्ब से बाँध दिया। तब नेकी ने कहा कि आप वापिस जाओ और लड़के सेऊ का सिर काट लाओ, नहीं तो लड़के को पहचान कर अपने घर पर लाएंगे। फिर सतगुरु को देखकर नगर वाले कहेंगे कि ये हैं जो चोरी करवाते हैं। हो सकता है सतगुरु देव को परेशान करें। हम पापी प्राणी अपने दाता को भोजन के स्थान पर कैद न दिखा दें। यह कह कर माँ अपने बेटे का सिर काटने के लिए अपने पति से कह रही है वह भी गुरुदेव जी के लिए। सम्मन ने हाथ में कर्द (लम्बा छुरा) लिया तथा दुकान पर जा कर कहा सेऊ बेटा, एक बार गर्दन बाहर निकाल। कुछ जरूरी बातें करनी हैं। कल तो हम नहीं मिल पाएंगे। हो सकता है ये आपको मरवा दें। तब सेऊ उस सेठ (बनिए) से कहता है कि सेठ जी बाहर मेरा बाप खड़ा है। कोई जरूरी बात करना चाहता है। कृपया करके मेरे रस्से को इतना ढीला कर दो कि मेरी गर्दन छिद्र से बाहर निकल जाए। तब सेठ ने उसकी बात को स्वीकार करके रस्सा इतना ढीला कर दिया कि गर्दन आसानी से बाहर निकल गई। तब सेऊ ने कहा पिता जी मेरी गर्दन काट दो। यदि आप मेरी गर्दन नहीं काटोगे तो आप मेरे पिता नहीं हो। मेरे को पहचानकर घर तक सेठ पहुँचेगा। राजा तक इसकी पहुँच है। यह अपने गुरूदेव को मरवा देगा। पिताजी हम क्या मुख दिखाएँगे? सम्मन ने एकदम करद मारी और सिर काट कर घर ले गया। सेठ ने लड़के का कत्ल हुआ देख कर उसके शव को घसीट कर साथ ही एक पजावा (ईटें पकाने का भट्ठा) था उस खण्डहर में डाल गया।
जब नेकी ने सम्मन से कहा कि आप वापिस जाओ और लड़के का धड़ भी बाहर मिलेगा उठा लाओ, तब सम्मन दुकान पर पहुँचा। उस समय तक सेठ ने उस दुकान की दीवार के छिद्र को बंद कर लिया था। सम्मन ने शव कीे घसीट (चिन्हों) को देखते हुए शव के पास पहुँच कर उसे उठा लाया। ला कर अन्दर कोठे में रख कर ऊपर पुराने कपड़े (गुदड़) डाल दिए और सिर को अलमारी के ताख (एक हिस्से) में रख कर खिड़की बंद कर दी।
कुछ समय के बाद सूर्य उदय हुआ। नेकी ने स्नान किया। फिर सतगुरु व भक्तों का खाना बनाया। फिर सतगुरु कबीर साहेब जी से भोजन करने की प्रार्थना की। नेकी ने साहेब कबीर व दोनों भक्त (कमाल तथा शेख फरीद), तीनों के सामने आदर के साथ भोजन परोस दिया। साहेब कबीर ने कहा इसे छः दौनों में डाल कर आप तीनों भी साथ बैठो। यह प्रेम प्रसाद पाओ। बहुत प्रार्थना करने पर भी साहेब कबीर नहीं माने तो छः दौनों में प्रसाद परोसा गया। पाँचों प्रसाद के लिए बैठ गए। तब साहेब कबीर ने कहा -
आओ सेऊ जीम लो, यह प्रसाद पे्रम। शीश कटत हैं चोरों के, साधों के नित्य क्षेम।।
साहेब कबीर ने कहा कि सेऊ आओ भोजन पाओ। सिर तो चोरों के कटते हैं। संतों (भक्तों) के नहीं। उनको तो क्षमा होती है। साहेब कबीर ने इतना कहा था उसी समय सेऊ के धड़ पर सिर लग गया। कटे हुए का कोई निशान भी गर्दन पर नहीं था तथा पंगत (पंक्ति) में बैठ कर भोजन करने लगा।
गरीब, सेऊ धड़ पर शीश चढ़ा, बैठा पंगत मांही। नहीं घरैरा गर्दन पर, औह सेऊ अक नांही।।
सम्मन तथा नेकी ने देखा कि गर्दन पर कोई चिन्ह भी नहीं है। लड़का जीवित कैसे हुआ? शंका हुई कि यह वही सेऊ है या कोई और। अन्दर जा कर देखा तो वहाँ शव तथा शीश नहीं था। केवल रक्त के छीटें लगे थे जो इस पापी मन के संशय को समाप्त करने के लिए प्रमाण बकाया था।
ऐसी-2 बहुत लीलाएँ साहेब कबीर (कविरग्नि) ने की हैं जिनसे यह स्वसिद्ध है कि ये ही पूर्ण परमात्मा हैं। सामवेद संख्या नं. 822 तथा ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2 में कहा है कि कविर्देव अपने विधिवत् साधक साथी की आयु बढ़ा देता है।
‘‘सम्मन का नौशेर खान के रूप में जन्म’’
{अचला के अंग की वाणी नं. 191-195 में है।}
अचला के अंग की वाणी नं. 191-195:-
गरीब, पातशाह नौसेरखां, अन्न धन नांही फेर। असी गंजले पीरके, दिये खजानैं गेर।।191।।
गरीब, असी गंज कोले भये, गरके जिन्द जमाल। पातशाह नौशेरवें कूं, दिखलाया है ख्याल।।192।।
गरीब, असी गंज सतगुरु दिये, खैरायत नहीं एक। पातशाह नौशेरवें कूं, बांटै बहुत अनेक।।193।।
गरीब, बुगदाद बिलायत बलख लग, दिल्ली अकबराबाद। पातशाह नौशेरवें की, इत लग सरू मुराद।।194।।
गरीब, जिन्द जमाल खलील परि, कुफर पर्या सब आंनि। पातशाह नौशेरवें कूं, सतगुरु भेटे जांनि।।195।।
‘‘सम्मन का तीसरा जन्म अब्राहिम सुल्तान अधम के रूप में हुआ’’
{अचला के अंग की वाणी नं. 196.208 में है।}
अचला के अंग की वाणी नं. 196-208:-
गरीब, पंजा दस्त कबीर का, शिर पर अरस अमान। पातशाह नौशेरवें सैं, आंनि भये सुलतान।।196।।
गरीब, ठारा लाख तुरा दिया, सोला सहंस हुरंभ। सतगुरु मिले शिकार में, मार्या बांन असंभ।।197।।
गरीब, अजब नवेली पदमनी, अजब नबेला भोग। देख अधम सुलतान कूं, कैसैं लीन्हा जोग।।198।।
गरीब, अजब नवेले महल में, अजब नवेली सेज। अजब नवेली कामनी, कैसैं टूट्या हेज।।199।।
गरीब, अजब नबेला तखत है, अजब नवेली फौज। बंधन टूटे मोह के, भई सतगुरु की मौज।।200।।
गरीब, माल खजाने सब तजे, तजे राज अरु पाट। सतगुरु सें सौदा भया, करी कबीरा साटि।।201।।
गरीब, गगन मंडल सैं, ऊतरे साहिब पुरुष कबीर। चैला धर्या खवास का, तोरे जम जंजीर।।202।।
गरीब, काटे बंधन मोह के, निर्भय भये निशंक। अन हौनी हौनी करी, मिटे कर्म के अंक।।203।।
गरीब, कफनी ताखी पहरि करि, चले अधम सुलतान। खलक बलक रोवत रह्या, छाडे मीर दिवान।।204।।
गरीब, क्षुध्या लगी सुलतान कूं, मालनि बेचै बेर। सवा लाख की पावडी, दई पलक में गेर।।205।।
गरीब, सेर बेर मालनि दिये, एक बेर की आश। एक बेर कै कारणैं, बीती बहुत तिरास।।206।।
गरीब, दीन दुनी सबही तजी, छाड्या बलख बुखार। एक बेर कै कारणैं, घाल्या हाथ गंवार।।207।।
गरीब, या सुख सें सुख संख गुन, ब्रह्म शब्द कै मांहि। सतगुरु मिलैं कबीर से, तौ सतलोक लै जांहि।।208।।
अब्राहिम अधम सुल्तान का वर्णन पारख के अंग की वाणी नं. 34-36, 50 में भी हैः-
गरीब, बेरा साटै बेचियां, बैरागर सुलतान। मालनि कूं जान्या नहीं, बे बुधि खैंचा तानि।।34।।
गरीब, सेर बेर पलडै चढे, एक पड्या भौं मांहि। मालनि और सुलतान कूं, हिलकारे ले जांहि।।35।।
गरीब, ढाई लाख की पाँवडी, एक पैसे के बेर। देखि अधम सुलतान कूं, कैसी डारी मेर।।36।।
गरीब, बाशिष्ट बिश्वामित्र से, आवैं जाहिं अनेक। कागभुसंड की पलक में, जो चाहे सो देख।।50।।
- उपरोक्त अचला के अंग तथा पारख के अंग की वाणियों का सरलार्थ कबीर सागर के अध्याय ‘‘सुल्तान बोध’’ में है। उसका सारांश निम्न है। इसमें अब्राहिम अधम सुल्तान का सम्पूर्ण परिचय है।