गंगा में पित्तरों को जल दे रहे पंडितों का भ्रम निवारण
परमेश्वर कबीर जी सुबह गंगा दरिया पर गए जो काशी नगर के बगल से बहती है। वहां पर कुछ मनमुखी ब्राह्मण गंगा के जल को सूर्य की ओर मुख करके हाथों तथा लोटे से वापिस डाल रहे थे। परमेश्वर कबीर जी गंगा दरिया में प्रविष्ट होकर गंगा दरिया के जल को किनारे पर बाहर दोनों हाथों से फैंकने लगे।
ब्राह्मणों ने पूछा कि हे कबीर जी! आप क्या कर रहे हो। परमेश्वर कबीर जी ने ब्राह्मणों से पूछा कि आप क्या कर रहे हो? ब्राह्मणों ने उत्तर दिया:-
हम अपने पितरों को स्वर्ग में जल भेज रहे हैं। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि ‘‘मैंने अपने घर के सामने बगीची लगाई है।, उस की सिंचाई कर रहा हूँ। यह सुन कर सर्व ब्राह्मण हंसने लगे और कहा कि जल तो यहाँ पृथ्वी पर गिरा है। यह वहां कैसे जाएगा? कबीर जी ने कहा कि आप जी ने भी तो जल यहीं पृथ्वी पर डाला है। यदि आपका जल करोड़ों किलोमीटर दूर स्वर्ग में आकाश में जा सकता है तो मेरे वाले जल को आधा किलोमीटर जाने में क्या बाधा आएगी। यह तर्क सुनकर सर्व निरूत्तर हो गए। सत्य को जान कर कबीर जी के अनुयाई बने। कबीर जी ने बताया कि आप यह भी कह रहे हो कि आपके पितर (माता-पिता, दादा-दादी) स्वर्ग में हैं। फिर आप यह भी मानते हो वहां पर उन्हें जल नहीं मिल रहा। आप यहां से भेज रहे हो। आप यह भी मानते हो कि स्वर्ग में किसी वस्तु का अभाव नहीं है। परमात्मा कबीर जी बता रहे हैं कि आप को भ्रमित ज्ञान प्राप्त है। आपकी भक्ति विधि शास्त्रा विरूद्ध है। इसलिए आप के पितरों को तो लाभ दूर रहा, आप को ही लाभ नहीं मिलेगा। मेरे पास वह शास्त्रानुकूल भक्ति है जिस से आप का भी तथा आप के पितरों का भी कल्याण हो जाएगा।
जिस भक्ति की शक्ति से यहाँ डाला जल कहीं और गिरे वह आपके पास नहीं है। मैंने काशी में अपने पैर पर जल डाला था। वह जगन्नाथ पुरी के पाण्डे के पैर पर डालने के उद्देश्य से डाला था। मैंने स्वयं वहां पहुंच कर उसकी रक्षा की थी। यदि आप मेरी बताई भक्ति करोगे तो तुम्हें व तुम्हारे पितरों को मैं स्वयं वहाँ जाकर तृप्त करूंगा। आपका तथा आपके पितरों का उद्धार हो जाएगा। सर्व ब्राह्मणों तथा अन्य उपस्थित व्यक्तियों ने परमात्मा कबीर जी से दीक्षा ली।