संत धर्मदास जी के वंशों के विषय में

प्रश्न: संत धर्मदास जी की गद्दी दामा खेड़ा वाले कहते हैं कि इस गद्दी से नाम प्राप्त करने से मोक्ष संभव है ?

उत्तर: संत धर्मदास जी का ज्येष्ठ पुत्र श्री नारायण दास काल का भेजा हुआ दूत था। उसने बार-बार समझाने से भी परमेश्वर कबीर साहेब जी से उपदेश नहीं लिया। पुत्र प्रेम में व्याकुल संत धर्मदास जी को परमेश्वर कबीर साहेब जी ने नारायण दास जी का वास्तविक स्वरूप दर्शाया। संत धर्मदास जी ने कहा कि हे प्रभु ! मेरा वंश तो काल का वंश होगा। यह कह कर संत धर्मदास जी बेहोश (अचेत) हो गए। काफी देर बाद होश में आए। फिर भी अतिचिंतित रहने लगे। उस प्रिय भक्त का दुःख निवारण करने के लिए परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा कि धर्मदास वंश की चिंता मत कर। यह काल का दूत है। उसका वंश पूरा नष्ट हो जाएगा तथा तेरा बियालीस पीढी तक वंश चलेगा। तब संत धर्मदास जी ने पूछा कि हे दीन दयाल ! मेरा तो इकलौता पुत्र नारायण दास ही है। तब परमेश्वर ने कहा कि आपको एक शुभ संतान पुत्र रूप में मेरे आदेश से प्राप्त होगी। उससे केवल तेरा वंश चलेगा। तब धर्मदास जी ने कहा था कि हे प्रभु ! आप का दास वृद्ध हो चुका है। अब संतान का होना असंभव है। आपकी शिष्या भक्तमति आमिनी देवी का मासिक धर्म भी बंद है। परमेश्वर कबीर साहेब ने कहा कि मेरी आज्ञा से आपको पुत्र प्राप्त होगा। उसका नाम चुड़ामणी रखना। यह कह कर परमेश्वर कबीर साहेब ने उस भावी पुत्र को धर्मदास के आंगन में खेलते दिखाया। फिर अन्तध्र्यान कर दिया। संत धर्मदास जी शांत हुए। कुछ समय पश्चात् भक्तमति आमिनी देवी को संतान रूप में पुत्र प्राप्त हुआ उसका नाम श्री चुड़ामणी जी रखा। बड़ा पुत्र नारायण दास अपने छोटे भाई चुड़ामणी जी से द्वेष करने लगा। जिस कारण से श्री चुड़ामणी जी बांधवगढ़ त्याग कर कुदरमाल नामक शहर(मध्य प्रदेश) में रहने लगा। कबीर परमेश्वर जी ने संत धर्मदास जी से कहा था कि धार्मिकता बनाए रखने के लिए अपने पुत्र चुड़ामणी को केवल प्रथम मन्त्रा(जो यह दास/रामपाल दास प्रदान करता है) देना जिससे इनमें धार्मिकता बनी रहेगी तथा तेरा वंश चलता रहेगा। परंतु आपकी सातवीं पीढ़ी में काल का दूत आएगा। वह इस वास्तविक प्रथम मन्त्रा को भी समाप्त करके मनमुखी अन्य नाम चलाएगा। शेष धार्मिकता का अंत ग्यारहवां, तेरहवां तथा सतरहवां गद्दी वाले महंत कर देंगे। इस प्रकार तेरे वंश से भक्ति तो समाप्त हो जाएगी। परंतु तेरा वंश फिर भी बियालीस (42) पीढ़ी तक चलेगा। फिर तेरा वंश नष्ट हो जाएगा।

प्रमाण पुस्तक “सुमिरण शरण गह बयालिश वंश” लेखक: महंत श्री हरिसिंह राठौर, पृष्ठ 52 पर -

वाणीः सुनधर्मनिजोवंशनशाई,जिनकीकथाकहूँसमझाई।।93।।
काल चपेटा देवै आई, मम सिर नहीं दोष कछु भाई।।94।।
सप्त, एकादश,त्रयोदसअंशा, अरु सत्रह ये चारों वंशा।।95।।
इनको काल छलेगा भाई, मिथ्या वचन हमारा न जाई।।96।।
जब.2 वंश हानि होई जाई, शाखा वंश करै गुरुवाई।।97।।
दस हजारशाखा होई है, पुरुष अंश वो ही कहलाही है।।98।।
वंश भेद यही ह ै सारा, मूढ जीव पावै नहीं पारा।।99।।
भटकतफिरि हैंदोरहिदौरा, वंश बिलायगयेकेहीठौरा।।100।।
सब अपनी बुद्धि कहै भाई, अंश वंश सब गए नसाई।।101।।

उपरोक्त वाणी में कबीर परमेश्वर ने अपने निजी सेवक संत धर्मदास साहेब जी से कहा कि धर्मदास तेरे वंश से भक्ति नष्ट हो जाएगी वह कथा सुनाता हूँ। सातवीं पीढ़ी में काल का दूत उत्पन्न होगा। वह तेरे वंश से भक्ति समाप्त कर देगा। जो प्रथम मन्त्रा आप दान करोगे उसके स्थान पर अन्य मनमुखी नाम प्रारम्भ करेगा। धार्मिकता का शेष विनाश ग्यारहवां, तेरहवां तथा सतरहवां महंत करेगा। मेरा वचन खाली नहीं जाएगा भाई। तेरे सर्व अंश वंश भक्ति हीन हो जाएंगे। अपनी.2 मन मुखी साधना किया करेंगे। इसी अज्ञान के आधार से गुरूवाई किया करेंगे। तेरे वंश गद्दी वालों की दस हजार शाखाऐं बनेंगी। जब-जब जिस परम्परा में कोई बालक नहीं होगा तो शाखा वंश वाले गुरूवाई किया करेंगे। परन्तु यथार्थ भक्ति तथा ज्ञान तो छठी पीढ़ी (वंश) से ही समाप्त हो जाएगा। सब अपनी-अपनी बुद्धि अनुसार अज्ञान प्रचार किया करेंगे।

नोट:- उपरोक्त वाणी संख्या 95 में ‘‘सप्त‘‘ यानि सातवां वंश लिखा है कि इस को काल का दूत भ्रमित करेगा। यह पुस्तक ‘‘सुमिरण शरण गह बियालिश वंश‘‘ एक महंत जी की लिखी है। इसमें सप्त (सातवां) गद्दी वंश वाले के विषय में लिखा है कि उसको काल छलेगा। यहाँ गलती लगी। कृपया आप जी प्रमाणित पवित्र सद्ग्रन्थ ‘‘कबीर सागर‘‘ के अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ के पृष्ठ 140 की फोटोकापी में इसी पुस्तक के पृष्ठ 9 पर स्वयं पढ़ें जिसमें कहा है कि छठी पीढ़ी (छठी वंश गद्दी) वाले को काल का दूत नकली कबीर पंथी टकसारी पंथ वाला भ्रमित करके अपना (काल का) पंथ चलाएगा। वह सही है। फिर भी भक्ति का नाश चाहे छठी पीढ़ी में हुआ या सातवीं पीढ़ी में वर्तमान में वही काल पूजा ही दामाखेड़ा धर्मनगर के धर्मदास जी के वंशजों द्वारा श्री प्रकाश मुनि द्वारा प्रचलित है।

अब आप पढ़ें निम्न फोटोकापी पवित्र ग्रन्थ ‘‘कबीर सागर‘‘ के अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ के पृष्ठ 138 (262) 139 (263), 140 (264), 141 (265)

यह फोटोकापी कबीर सागर के अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ के पृष्ठ 138 (262) की है। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी से कहा था कि ‘‘तेरे वंश के पंथ में जो कुछ भविष्य में होगा, उसका संक्षिप्त वर्णन करता हूँ। तेरे वंश परंपरा की गद्दी वाले महन्तों में अहंकार प्रवेश करेगा। आपके बिन्द (वंश) वालों का स्वभाव होगा कि वे अहंकार का त्याग नहीं करेंगे। इस पृष्ठ 138 के नीचे से नौंवीं पंक्ति में कहा है कि ‘‘अंश मोर सुपन्थ चलावै है। ताहि देख सो राड़ि बढ़ावै है।‘‘

भावार्थ है कि परमेश्वर कबीर जी ने कहा था कि तेरे वंश गद्दी वाले मेरे उस अंश के साथ झगड़ा करेंगे जो मेरे ‘‘यथार्थ कबीर पंथ‘‘ को चलाएगा। इसी पृष्ठ 138 की अन्य वाणियों का भावार्थ है कि धर्मदास से परमेश्वर कबीर जी ने कहा था ‘‘तेरे वंश गद्दी वाले उस मेरे वंश की बात न मान कर अपना ही अज्ञान अनुभव जनता में बताऐंगे। अपने स्वार्थवश अनन्त जीवों को यथार्थ कबीर पंथ (मार्ग) से भटकाऐंगे। हे धर्मदास! इसलिए अपने वंश वालों को कह दो कि जब मेरा (कबीर जी का) नाद वाला अंश (सन्त रामपाल दास जी महाराज प्रकट होगा कलयुग की बिच्चली पीढ़ी में) प्रकट होगा। उस से प्रेम से मिलें और अपना कल्याण कराऐं। परमेश्वर कबीर जी ने नाद पुत्र की परिभाषा भी स्पष्ट की है कि जैसे आप (धर्मदास जी) मेरे नाद (वचन) के पुत्र (अंश) हो। ऐसे गरीबदास वाले बारहवें पंथ से वचन का अंश मेरा ही अंश होगा। फिर यह भी स्पष्ट किया है कि मेरे नाद वाले भी सब अच्छे नहीं होंगे। उदाहरण देकर परमेश्वर कबीर जी ने बताया था कि जैसे कमाल नामक बालक को मैंने मुर्दे से जीवित करके उसको नाद पुत्र बनाया (नाम-दीक्षा देकर नाद पुत्र बनाया) उसने मेरे साथ भी धोखा किया। फिर मैंने उसको भी धिक्कार दिया, भक्तिहीन कर दिया था। (शेष विवरण अगले पृष्ठ 139 के नीचे पढें।)

यह फोटोकापी कबीर सागर के अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ के पृष्ठ 139 की है। प्रकरण पृष्ठ 138 से चला आ रहा है। कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि ‘‘धर्मदास! हम तो प्रेम भक्ति के साथी हैं। हम किसी लालच वश अपने सिद्धान्त को नहीं बदल सकते। जो मेरे को प्रेम भाव से याद करेगा, मैं उसके साथ सदा रहूँगा। इस पृष्ठ 139 में ऊपर से तीसरी पंक्ति से वाणियों का भावार्थ यह है कि ‘‘परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि धर्मदास! यदि मैं अहंकार वाले भक्तों से राजी (प्रसन्न) होता तो पंडितों और काजियों को ही यथार्थ नाम का भेद बता देता। आप को क्यों दिया? क्योंकि आप आधीन (नम्र) भाव के हैं। इसीलिए मैं उस नाद पुत्र को यह गुरू पद सौपंूगा जो दास भाव में रहेगा। तेरे वंश वाले तो यह अहंकार किया करेंगे कि हम तो धर्मदास कुल के पुत्र हैं। हम ही विश्व में सर्व श्रेष्ठ हैं। हे धर्मदास! जहां अहंकार है वहां हम (परमेश्वर कबीर जी) नहीं हैं। वहां तो काल का ही निवास होता है।

पाठक जन! विचार करें, परमेश्वर कबीर जी अपने आप को कबीर दास कहते थे। धर्मदास जी भी अपने आप को धर्मदास कहते थे, धर्मदास के कुल वाले साहब कहते हैं। जैसे ‘‘पंथ श्री प्रकाश मुनि नाम साहेब‘‘, ‘‘पंथ श्री ग्रन्ध मुनि नाम साहेब‘‘ आदि कहते-कहाते हैं।

सन्त रामपाल जी अपने आपको दास = रामपाल दास परमेश्वर का कुत्ता कहते हैं। इस से सहज में जाना जा सकता है कि मामला क्या है? दाल में काला ही नहीं, सारी दाल ही काली है।

फिर धर्मदास ने प्रार्थना की कि हे प्रभु! मेरे वंश वालों का उद्धार कैसे होगा? परमेश्वर कबीर जी ने कहा था कि ‘‘ मेरे भेजे नाद पुत्र से जो नाम प्राप्त करके दृढ़ता से भक्ति करेंगे तो हे धर्मदास! वे कैसे पार नहीं होंगे। तेरे बियालीस वंश को मैंने एक वचन से तार दिया है जिसमें कहा कि तेरे वंश वाले मेरे नाद पुत्र (सन्त रामपाल दास जी महाराज) से दीक्षा प्राप्त करके भक्ति करेंगे तो सर्व पार हो जाऐंगे। तेरे बिन्द अर्थात् वंश गद्दी वाले कहे जाते हैं। यदि वे वचन वाले (नाद पुत्र जो मैं कलयुग की बिच्चली पीढ़ी वाले समय में भेजूंगा) से दीक्षा ले लेंगे तो लघु (छोटे)-दीर्घ (बड़े) सब तेरे वंश वाले पार हो जाऐंगे। बात रही तेरी 42 पीढ़ी तक वंश चलने की उसका ठेका अर्थात् जिम्मेदारी मुझ समर्थ की है कि तेरा वंश 42 पीढ़ी तक अवश्य चलेगा। यही बात सन्त गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर जी ने बताई थी जो सतग्रन्थ में लिखी है। धर्मदास जी के प्रकरण में लिखा है कि ‘‘वंश बीयालीस रहे तेरा अंश रे‘‘ मोक्ष होगा नाद परम्परा वाले मेरे अंश से।

यह फोटोकापी कबीर सागर के अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ के पृष्ठ 140 की है। इसमें भी स्पष्ट किया है कि ‘‘परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि जैसे आप के बिन्द (वंश) वाले चुड़ामणि को मैंने शिष्य बनाया है, यह मेरा नाद पुत्र हुआ। मैं चुड़ामणि को गुरू पद प्रदान करूंगा। इसको केवल प्रथम मन्त्रा (पांच नाम वाला) दूंगा और इसी को आगे देने का निर्देश चुड़ामणि को दूंगा। इस से तेरे बिन्द (वंश) वाले दीक्षा लेंगे तो उनका उतना कल्याण हो जाएगा जितना पांच नाम से होना है। परन्तु तेरे वंश वाले अज्ञानी (मूर्ख) होंगे। चुड़ामणि के पश्चात् छठी गद्दी (पीढ़ी) वाले को नकली कबीर पंथी ‘‘टकसारी पंथ‘‘ वाला भ्रमित करेगा। जिस कारण से उसके पश्चात् वास्तविक भक्ति मन्त्रा अर्थात् वास्तविक भक्ति विधि जो मैंने चुड़ामणि को दी है, वह समाप्त हो जाएगी और ‘‘टकसारी पंथ‘‘ वाले नकली पांच मन्त्रा (अमी नाम, आदि नाम, अमर .......) की दीक्षा और आरती-चैंका नकली प्रारम्भ हो जाएगी। (जो वर्तमान में दामाखेड़ा वाले धर्मदास जी के वंश गद्दी वाले कर रहे हैं) इस प्रकार बहुत से जीवों को लख चैरासी अर्थात् चैरासी लाख प्राणियों के जन्म के कष्ट में डालेंगे। तेरे वंश गद्दी वाले अपने आप को श्रेष्ठ बताकर मेरे द्वारा भेजे नाद अंश के साथ झगड़ा किया करेंगे। तेरे वंश वाले दुर्बुद्धि वाले होंगे और वचन वंश (जो मैं बिच्चली पीढ़ी वाले समय में जब कलयुग 5505 बीतेगा तब उस) के यथार्थ कबीर पंथ (मार्ग) में बाधक बनेंगे। इस प्रकार पाप के भागी बनेंगे। फिर धर्मदास जी ने कहा कि ‘‘हे प्रभु एक और तो आप ने कहा था कि तेरा बीयालीस पीढ़ी तक वंश बेरोक-बेटोक चलेगा और काल निकट नहीं आएगा। अब कह रहे हो कि ये काल वश होकर भक्ति नहीं करेंगे। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि धर्मदास! मैंने यह कहा है कि यदि आपके वंश वाले मेरी आज्ञा का पालन करेंगे तो वे काल वश नहीं रहेंगे। फिर भी मैं आप के वंश वालों की रक्षा करूंगा और पार करूंगा मैं अपना नाद अंश (सन्त रामपाल दास जी महाराज) भेजूंगा और आप का वंश नहीं मानेगा तो उनकी गलती होगी।

विशेष:- दामाखेड़ा वालों ने जो पुस्तक ‘‘यथार्थ कबीर पंथ रहस्य‘‘

भक्तों को भ्रमित करने के लिए छापी है। उसके पृष्ठ 83 पर कबीर सागर से ‘‘कबीर बानी‘‘ अध्याय के पृष्ठ 140 (1004) की साखी लिखी है। एक पंक्ति छोड़ दी जो इस प्रकार है। कृपया देखें फोटोकापी पृष्ठ 140 (1004) की।

यह फोटोकापी कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ के पृष्ठ 140 (1004) की है। इसमें नीचे से तीसरी पंक्ति इस प्रकार है ‘‘अटक काहु की तुम जिन मानों। पाँन (पाँच) नाम तुम निश्चय जानों।

(नोट:- इस पंक्ति में ‘‘पाँन‘‘ गलत प्रिन्ट है।)

भावार्थ है कि परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी से कहा था कि मैं आप को आदेश देता हूँ कि केवल पाँच नाम देना। इन्हीं पाँच नाम की आपके वंश को गुरूवाई दी जाएगी। परन्तु अनुराग सागर के पृष्ठ 140 (264) पर स्पष्ट कर दिया कि छठी पीढ़ी के बाद ये वास्तविक पाँच नाम भी तेरे वंश वालों के पास नहीं रहेंगे।

यह फोटोकापी पुस्तक ‘‘यथार्थ कबीर पंथ रहस्य‘‘ के पृष्ठ 83-84 की है जो दामाखेड़ा वालों ने बनाई है। इसमें भ्रान्ति नं. 2 का वर्णन है जिसमें कहा है कि ‘‘कबीर सागर‘‘ में कहीं पर प्रमाण नहीं है कि छठी पीढ़ी वंश गद्दी वाला वास्तविक नाम बदल देगा, यह सब झूठ है।

पाठकगण कृपया पढ़ें इसी पुस्तक में पृष्ठ 9 पर फोटोकापी में जो कबीर सागर के अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ के पृष्ठ 140 की है। इसमें स्पष्ट किया है कि मैं तेरे बिन्द वाले पुत्र चुड़ामणि को नाद (वचन) का अंश तो बनाऊंगा अर्थात् तेरे पुत्र चुड़ामणि को मैं शिष्य बना कर उसे गुरू पद अवश्य प्रदान करूंगा। परन्तु जो दीक्षा इसी परम्परा में छठी पीढ़ी (गद्दी) वाले को नकली कबीर पंथी ‘‘टकसारी पंथ‘‘ वाला भ्रमित करेगा। जिस कारण से वह तेरी छठी वंश गद्दी वाला ‘‘टकसारी पंथ‘‘ वाले मन्त्रा तथा आरती-चैका प्रारम्भ कर देगा। उस के पश्चात् यही दीक्षा पद्धति तेरे वंश गद्दी वालों में चलेगी। जिस कारण से सर्व चैरासी लाख प्राणियों के शरीर को प्राप्त होंगे। फिर बताया है कि इसी पद्धति को तेरे वंश की छोटी (लघु) तथा बड़ी गद्दी वाले चलाऐंगे। जब किसी गद्दी का वंश नहीं होगा तो शाखा वंश वाले वंश गद्दी बनाकर गुरू प्रणाली जारी रखेंगे। इस प्रकार तेरा 42 पीढ़ी तक वंश चलेगा। परन्तु उनके पास सत्य भक्ति न होने से वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाऐंगे। इसलिए इनको समझा देना कि जब कलयुग 5505 वर्ष बीत जाएगा। तब मेरा कृपा पात्र नाद (वचन) अंश 12 वें पंथ (गरीब दास पंथ) में आएगा। उसके पास पूर्ण भक्ति विधि होगी। उस से प्रेम से मिलें। उसका विरोध न करें। मेरे उस वचन के वंश से दीक्षा लेकर अपना कल्याण कराऐं। जब काल मेरे पंथ में प्रवेश करके झपट्टा मारेगा अर्थात् मेरे मार्ग (पंथ) का पतन करेगा। तब-तब मैं अपना वचन वंश प्रकट करके भ्रमित भक्त समाज को सही दिशा प्रदान कराऊंगा।

ये दोनों फोटोकापी पुस्तक ‘‘यथार्थ कबीर पंथ रहस्य‘‘ 83-84 की हैं। जो दामाखेड़ा वालों ने इस पुस्तक ‘‘यथार्थ कबीर पंथ परिचय‘‘ के ज्ञान की आलोचना करके भ्रम फैलाने की कुचेष्टा की है। इसमें यह बताने की कोशिश की है कि ‘‘एक तथाकथित कबीर अवतार (सन्त रामपाल दास जी) ने गलत लिखा है कि सातवीं पीढ़ी से वास्तविक भक्ति समाप्त हो जाएगी। प्रिय पाठको! आप जी ने स्वयं पढ़ा कबीर सागर के अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ के पृष्ठ 140 (264) में इसी पुस्तक के पृष्ठ 9 पर। उस में परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ‘‘छठी पीढ़ी वाले वंश (बिन्द) गुरू को टकसारी पंथ वाला भ्रमित करेगा। उस के पश्चात् तेरे वंश गद्दी गुरू उस टकसारी वाला पान प्रवाना तथा आरती चैंका किया करेंगे। जिस कारण से बहुत जीवों को चैरासी लाख प्राणियों के शरीरों में कष्ट भोगने के लिए डाल देंगे।

यह भी कबीर परमेश्वर ने स्पष्ट किया है कि यह मेरा वचन खाली नहीं जाएगा। अब पाठकगण दामाखेड़ा वालों को रोऐंगे कि ये कितने झूठे तथा चार-सौ-बीस हैं। कबीर सागर के अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ के पृष्ठ 140 (264) पर स्पष्ट लिखा है। फिर भी भक्त समाज को भ्रमा कर अपनी दुकान चलाने पर तुले हैं।

ऐसे काल के दूतों के विषय में परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि:-

कबीर, जान बूझ साच्ची तजै, करै झूठ से नेह।
ताकि संगत हे प्रभु! स्वपन में भी न दे।।

यह फोटोकापी कबीर सागर के अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ के पृष्ठ 141 की है। इसमें परमेश्वर कबीर जी ने पुनः कहा है कि हे धर्मदास! जैसे आप मेरे नाद पुत्र हो (नाम-दीक्षा लेकर शिष्य रूप में पुत्र हो) मैंने तेरे को मोक्ष मार्ग बता दिया। इसी प्रकार मैं अपना नाद अंश वंश (सन्त रामपाल दास जी महाराज को बिच्चली पीढ़ी के समय जब कलयुग 5505 वर्ष बीत जाएगा) भेजूंगा तथा तेरे वंश में बिगड़ी भक्ति विधि को समाप्त करके यथार्थ कबीर पंथ (मार्ग) से जोड़ कर तेरे बीयालीस पीढ़ी के वंशों को पार करूंगा। यदि वे उस मेरे नाद परम्परा वाले (सन्त रामपाल दास जी महाराज) से दीक्षा ले लेंगे तो फिर स्पष्ट किया है कि धर्मदास! वास्तविकता तो यह है कि चाहे नाद (शिष्य परम्परा) वाले हों, चाहे बिन्द (वंश) वाले हों जो यथार्थ कबीर पंथ (मार्ग) के अनुसार भक्ति करेगा, उसी का कल्याण होगा। बिना गुरू के मोक्ष नहीं होगा। मेरे नाद वंश (शिष्य परम्परा के सन्त) से तेरे वंश वाले प्रेम करें। यदि काल के धोखे से बचना चाहते हैं तो इसलिए अपने वंश वालों को समझा देना। इस पृष्ठ 141 (अनुराग सागर) में यह भी स्पष्ट किया है कि मेरे यथार्थ कबीर पंथ (मार्ग) को नाद (शिष्य परम्परा) वालों ने ही उभारा है। यह चारों युगों का प्रमाण है।

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