ज्ञानी यानि सत्संगी के लक्षण

सतगुरू का ज्ञान तथा दीक्षा प्राप्त करके यदि शिष्य जगत भाव में चलता है, वह मूर्ख है। वह भक्ति लाभ से वंचित रह जाता है। वह भक्ति में आगे नहीं बढ़ पाते। वे सार शब्द प्राप्ति योग्य नहीं बन पाते। यदि अंधे व्यक्ति का पैर बिष्टे (टट्टी) या गोबर पर रखा जाता है तो उसका कोई मजाक नहीं करता। कोई उसकी हाँसी नहीं करता। यदि आँखों वाला यानि भक्त कुठौर (गलत स्थान पर) जाता है (परनारी गमन, चोरी करना, मर्यादा तोड़ना, वर्जित वस्तु तथा साधना का प्रयोग करना कुठौर कहा है।) तो निंदा का पात्र होता है।

अनुराग सागर के पृष्ठ 162 तथा 163 का सारांश:-

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