हजरत मुहम्मद जी को अल्लाह कबीर मिले

जैसा कि वेदों में प्रमाण है कि परमेश्वर यानि कादर अल्लाह सारी कायनात (सृष्टि) को पैदा करने वाला नेक आत्माओं को ऊपर आसमान वाले (तख्त) सिंहासन से पृथ्वी पर आकर मिलता है। उन्हीं नेक आत्माओं में हजरत मुहम्मद जी हैं जिनको अल्लाह अकबर मिले। परंतु अल्लाह किसी ने देखा ही नहीं है। अन्य विद्वान गलत ज्ञान के आधार से अल्लाह को बेचून (निराकार) बताते हैं। जिस कारण से यह विश्वास होना कि जो अल-खिज्र रूप में मिला है, वह अल्लाह ताला ही है, कठिन है। इसी कारण से हजरत मुहम्मद जी अल-खिज्र रूप में मिले। अल्लाह ताला को पहचान नहीं सके।

संत गरीबदास जी (गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर, प्रांत-हरियाणा, देश-भारत) को भी दस वर्ष की उम्र में जिंदा बाबा यानि अल-खिज्र वाले वेश में अल्लाह ताला मिला था। जब बालक गरीबदास जी को विश्वास नहीं हुआ कि यह बाबा जिंदा रूप में परमेश्वर ही है तो संत गरीबदास जी को अल्लाह ताला ऊपर आसमान में बने अपने (तख्त) सिंहासन वाले सतलोक में लेकर गए। बालक गरीबदास जी को ऊपर के सब आसमानों (ब्रह्मंडों व लोकों) की सैर करवाई। वहाँ की सारी व्यवस्था दिखाई। तत्त्वज्ञान उनकी आत्मा में डाल दिया। संत गरीबदास जी को वापिस शरीर में पृथ्वी पर छोड़ा। बालक गरीबदास को मृत जानकर चिता के ऊपर लकड़ियों के ढ़ेर पर रखा गया। अग्नि लगाने की तैयारी थी। उसी समय बालक गरीबदास जी जीवित हो उठे। उठकर चल पड़े। संत गरीबदास को अल्लाह अकबीर (परमेश्वर कबीर) जी ने जो बताया, वह संत गरीबदास जी ने अपने मुख से उच्चारण करके वाणी (साखी) बोलकर बताया कि कबीर जी ने कहा था कि:-

गरीब खुरासान काबुल किला, बगदाद बनारस एक।
बलख और विलायत (इंग्लैंड) तक हम ही धारें भेष।।

अर्थात् खुदा कबीर जी ने बताया है कि सारी पृथ्वी के ऊपर जितने भी देश-प्रदेश हैं, जहाँ-जहाँ अच्छी आत्माएँ जन्मी हैं, उनको यथार्थ अध्यात्म ज्ञान बताने तथा सच्ची साधना बताने के लिए मैं ही विभिन्न (भेष) वेश धारण करके जाता हूँ। अरब देशों में काबुल, खुरासान (रूम का एक शहर), बगदाद (इराक देश की राजधानी), बनारस (भारत का एक शहर) तथा (विलायत) इंग्लैंड देश आदि-आदि में मैं ही जाता हूँ। मेरे लिए सब देश, सब मानव एक समान हैं।

हजरत मुहम्मद जी को भी जिंदा वेश धारण करके मक्का शहर में खुदा कबीर मिले थे। संत गरीबदास को बताया था। वाणी (अमर कछ रमैंणी से):-

मुहमंद बोध सुनो ब्रह्म ज्ञानी, शंकर दीप से आये प्राणी।।(24)
लोक दीप कूं हम लेगैऊ, इच्छा रूपी वहाँ न रहेऊ।।(25)
उलट मुहमंद महल पठाया, गुझ बीरज एक कलमा धाया।।(26)
रोजा बंग, निवाज दई रे, बिसमल की नहीं बात कही रे।।(27)

अर्थात् कबीर जी ने बताया है कि नबी मुहम्मद की आत्मा शिव (तमगुण) देवता के (शंकर द्वीप) लोक से आयी थी। भक्ति में ध्यान अधिक रहता था। जब उनको काल के भेजे फरिस्ते जबरील ने काल ब्रह्म वाला ज्ञान डरा-धमकाकर बताया जो हजरत मुहम्मद ने जनता तक पहुँचाया जो अधूरा तथा काल जाल में फँसाए रखने वाला ज्ञान है। जब मैंने (कबीर खुदा ने) देखा कि नेक आत्मा मुहम्मद काल के जाल में फँस गए हैं, तब उसे मिला। यथार्थ ज्ञान समझाया। उनके आग्रह पर उनको ऊपर अपने लोक में जहाँ मेरा (तख्त) सिंहासन है, लेकर गया। उसका शंकर द्वीप भी दिखाया जहाँ से वह पृथ्वी पर आया था। परंतु मुहम्मद ने सतलोक में रहने की इच्छा व्यक्त नहीं की। इसलिए वापिस शरीर में छोड़ दिया। फिर भी मुहम्मद की

समय-समय पर गुप्त मदद करता रहा। वाणी (मुहम्मद बोध से):-

ऐसा ज्ञान मुहम्मद पीरं, मारी गऊ शब्द के तीरं।
शब्दै फिर जिवाई, जिन गोसत नहीं भख्या।
हंसा राख्या ऐसे पीर मुहम्मद भाई।।

अर्थात् परमेश्वर कबीर जी ने एक कलमा ’’अल्लाह अकबर‘‘ मुहम्मद जी को जाप करने को कहा। उससे मुहम्मद जी में सिद्धियाँ प्रकट हो गई। एक दिन मुहम्मद जी ने एक गाय को वचन सिद्धि से मारकर सैंकड़ों मुसलमानों के सामने जीवित कर दी। पीर मुहम्मद ऐसे महान थे। उन्होंने जीव (गाय) की रक्षा की। उसका माँस नहीं खाया।

वाणी (अमर कछ रमैंणी से):-

चार यार मिल मसलत भीनी, गऊ पकड़कर बिसमल कीन्ही।।(28)
तब हम मुहम्मद याद किया रे, शब्द सरूपी हम बेग गया रे।।(29)
मूई गऊ हम बेग जिवाई, जब मुहम्मद के निश्चय आई।।(30)
तुम्ह सतकबीर अल्लह दरवेसा, मोमिन मुहम्मद का गया अंदेशा।।(31)
दास गरीब अनाहद थीरं, भज ल्यौ सतनाम और सतकबीरं।।(32)

अर्थात् जिन मुसलमानों के सामने हजरत मुहम्मद जी ने वचन की सिद्धि-शक्ति से गाय (ब्वू) मारकर फिर वचन (शब्द) से ही जीवित की थी, उन्होंने यह बात सबको बताई। जो विरोधी लोग थे, उन्होंने मसलत (डममजपदह) की और फैसला लिया कि हम गाय को बिसमिल करेंगे यानि गाय की गर्दन काटकर मारेंगे। हमारे सामने मुहम्मद जी गाय को जीवित करेंगे तो मानेंगे।

निश्चित दिन हजारों मुसलमानों तथा गैर-मुसलमानों के सामने गाय को काटा गया। मुहम्मद जी ने गाय को जीवित करने के लिए सब मंत्र-जंत्र कर लिए, गाय जीवित नहीं हुई। तब मुहम्मद जी ने अल्लाह कबीर को अल्लाह अकबर कहकर ऊँची आवाज में कई बार पुकारा। अल्लाह अकबर बोलते-बोलते धरती के ऊपर हर बार मथा लगाकर और फिर आकाश की ओर मुख करके दोनों हाथ फैलाकर अल्लाह अकबर पुकारने लगा जो वर्तमान में सजदा कहा जाने लगा। तब कबीर खुदा वहाँ पर पहुँचा जो केवल हजरत मुहम्मद जी को दिखाई दे रहा था। उपस्थित लोगों को दिखाई नहीं दे रहा था। हजरत मुहम्मद ने अल्लाह कबीर को सजदा किया और अपनी इज्जत रखने के लिए अर्ज की। तब कबीर परमेश्वर जी (कादर अल्लाह कबीर जी) ने तुरंत गाय जीवित कर दी। तब मुहम्मद जी की शंका (अंदेशा) समाप्त हुई और कहा कि हे सतकबीर (अमर कबीर)! आप वास्तव में अल्लाह के दरवेश (संत यानि नबी) हो। हजरत मुहम्मद जी अभी भी अल्लाह कबीर जी को खुदा नहीं मान रहे थे। खुदा का संत शक्तियुक्त मान रहे थे। जिस कारण से परमेश्वर कबीर जी गाय को जीवित करके अंतध्र्यान हो गए।

उसके पश्चात् खुदा कबीर जी हजरत मुहम्मद की अरूचि देखकर उसे उस वेश में नहीं मिले। इतनी शक्ति देखकर भी काल व कर्म के प्रभाव से सतलोक में जाने की बात नहीं मानी। सत्य साधना उनको नहीं मिली। जो काल ब्रह्म (पर्दे के पीछे से बोलने वाले प्रभु) की बताई साधना {रोजा रखना, नमाज करना, अजान (बंग) लगाना} से जन्नत (भ्मंअमद) में जाने की नहीं हैं। जो कलमा जाप करने का कबीर अल्लाह जी ने मुहम्मद जी को दिया था, उससे सिद्धि आती हैं। युद्ध में सफलता प्राप्त हो सकती है। वह जन्नत जाने में सहयोगी नहीं है। जिस कारण से नबी मुहम्मद जी जन्नत में भी नहीं जा सके। पित्तर लोक में अन्य नबियों के पास गए हैं। फिर अन्य जन्म धारण करेंगे।

5 रूमी द्वारा अल-खिज्र का जिक्र।

रूमी द्वारा अपने मुर्शीद (गुरू) समस्तरबेज (Shams Tabrizi) की बड़ाई में लिखी दो रचनाओं डंदेदंअप (मसनवी) और क्पूंद.म.ज्ञंइपत (दीवान-ए-कबीर) में भी अल-खिज्र का जिक्र है।

6 Hayat-al-Qulub (Volume 2) Battle of Badar

Amirul Momineen के हवाले से Ibn Babawayh बताते हैं: अली बयान करता है कि बदर की लड़ाई से पहले एक रात अल-खिज्र मुझे सपने में दिखाई दिए। मैंने उनसे कहा कि कृपा करके मुझे ऐसी दुआ (नाम मंत्र) दीजिए जिससे मैं लड़ाई में जीत हासिल कर सकूँ। अल-खिज्र ने मुझे कहा पढ़ो "O he, O one who is not except that He is." सुबह होने पर मैंने इसकी चर्चा हजरत मुहम्मद से की। ये सुन मुहम्मद ने कहा, अली! अल-खिज्र ने तुम्हें अल्लाह का सबसे बड़ा नाम सिखाया है। अली आगे बताता है कि मैं बदर की लड़ाई के दौरान अल-खिज्र द्वारा बताए बड़े नामों को निरंतर याद कर रहा था।

© Kabir Parmeshwar Bhakti Trust (Regd) - All Rights Reserved