अदालत के प्रश्न तथा कबीर जी के वकील के उत्तर

अदालत में प्रमाण पेश हैं कि श्रीमद्भगवत् गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा। उनके शरीर में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने कहा था।

अदालत का कबीर जी के वकील से प्रश्न नं. 1:- गीता का ज्ञान कब तथा किसने, किसको सुनाया, किसने लिखा? विस्तार से बताएँ।

कबीर जी के वकील का उत्तर:- श्री मद्भगवत् गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके काल भगवान ने (जिसे वेदों व गीता में “ब्रह्म” नाम से भी जाना जाता है) अर्जुन को सुनाया।

जिस समय कौरव तथा पाण्डव अपनी सम्पत्ति अर्थात् दिल्ली के राज्य पर अपने-अपने हक का दावा करके युद्ध करने के लिए तैयार हो गए थे, दोनों की सेनाएँ आमने-सामने कुरूक्षेत्र के मैदान में खड़ी थी। अर्जुन ने देखा कि सामने वाली सेना में भीष्म पितामह, गुरू द्रोणाचार्य, रिश्तेदार, कौरवों के बच्चे, दामाद, बहनोई, ससुर आदि-आदि लड़ने-मरने के लिए खड़े हैं। कौरव और पाण्डव आपस में चचेरे भाई थे। अर्जुन में साधु भाव जागृत हो गया तथा विचार किया कि जिस राज्य को प्राप्त करने के लिए हमें अपने चचेरे भाईयों, भतीजों, दामादों, बहनोइयों, भीष्म पितामह जी तथा गुरूजनों को मारेंगे। यह भी नहीं पता कि हम कितने दिन संसार में रहेंगे? इसलिए इस प्रकार से प्राप्त राज्य के सुख से अच्छा तो हम भिक्षा माँगकर अपना निर्वाह कर लेंगे, परन्तु युद्ध नहीं करेंगे। यह विचार करके अर्जुन ने धनुष-बाण हाथ से छोड़ दिया तथा रथ के पिछले भाग में बैठ गया। अर्जुन की ऐसी दशा देखकर श्री कृष्ण बोले:- देख ले सामने किस योद्धा से आपने लड़ना है। अर्जुन ने उत्तर दिया कि हे कृष्ण! मैं किसी कीमत पर भी युद्ध नहीं करूँगा। अपने उद्देश्य तथा जो विचार मन में उठ रहे थे, उनसे भी अवगत कराया। उसी समय श्री कृष्ण जी में काल भगवान प्रवेश कर गया जैसे प्रेत किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करके बोलता है। ऐसे ही काल ने श्री कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके श्री मद्भगवत गीता का ज्ञान युद्ध करने की प्रेरणा करने के लिए तथा कलयुग में वेदों को जानने वाले व्यक्ति नहीं रहेंगे, इसलिए चारों वेदों का संक्षिप्त वर्णन व सारांश “गीता ज्ञान” रूप में 18 अध्यायों में 584 श्लोकों में सुनाया।(श्रीमद्भगवत गीता में कुल 700 श्लोक हैं जिनमें से 584 काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके बोले थे। शेष संजय, धृतराष्ट्र संवाद के श्लोक हैं।) श्री कृष्ण को तो पता नहीं था कि मैंने क्या बोला था गीता ज्ञान में।

कुछ वर्षों के बाद वेदव्यास ऋषि ने इस अमृतज्ञान को संस्कृत भाषा में देवनागरी लिपि में लिखा। बाद में अनुवादकों ने अपनी बुद्धि के अनुसार इस पवित्र ग्रन्थ का हिन्दी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जो वर्तमान में गीता प्रैस गोरखपुर (UP) से प्रकाशित किया जा रहा है जो कुछ गलत कुछ ठीक है।

पेश हैं ढ़ेर सारे प्रमाण कि गीता शास्त्र का ज्ञान “काल” ने कहा।

सर्व प्रथम गीता से ही प्रमाणित करता हूँ:-

प्रमाण नं. 1:- गीता अध्याय 11 में प्रमाण है कि जब गीता ज्ञान दाता ने अपना विराट रूप दिखा दिया तो उसको देखकर अर्जुन भयभीत हो गया, काँपने लगा। यहाँ पर यह बताना भी अनिवार्य है कि अर्जुन का साला था श्री कृष्ण क्योंकि श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से हुआ था।

गीता ज्ञान दाता ने जिस समय अपना भयंकर विराट रूप दिखाया जो हजार भुजाओं वाला था। तब अर्जुन ने पूछा कि हे देव! आप कौन हैं? (गीता अध्याय 11 श्लोक 31)

पेश है गीता अध्याय 11 श्लोक 31 की फोटोकाॅपी:-

Gita Adhyay 11 Shlok 31

गीता अध्याय 11 श्लोक 46:-

हे सहंस्राबाहु (हजार भुजा वाले) आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए (क्योंकि अर्जुन उन्हें विष्णु अवतार कृष्ण तो मानता ही था, परन्तु उस समय श्री कृष्ण के शरीर से बाहर निकलकर काल ने अपना अपार विराट रूप दिखाया था) मैं भयभीत हूँ, आपके इस रूप को सहन नहीं कर पा रहा हूँ।

ध्यान रहे:- श्री विष्णु (श्री कृष्ण) केवल चार भुजा से युक्त हैं। ये दो भुजा तो बना सकते हैं, परंतु चार से अधिक का प्रदर्शन नहीं कर सकते। काल ब्रह्म हजार (संहस्र) भुजा युक्त है। यह एक हजार तथा इन से नीचे भुजाओं का प्रदर्शन कर सकता है। हजार भुजाओं से अधिक का प्रदर्शन नहीं कर सकता। चार भुजा, दो भुजा, दस भुजा आदि-आदि बना सकता है। शरीर में बने कमल चक्रों में भी इस काल ब्रह्म के चक्र का नाम संहस्र कमल दल चक्र है।

पेश है गीता अध्याय 11 श्लोक 46 की फोटोकाॅपी:-

Gita Adhyay 11 Shlok 46
  • विचारणीय विषय है कि क्या हम अपने साले से पूछेंगे कि हे महानुभाव! बताईए आप कौन हैं? {एक समय एक व्यक्ति में प्रेत बोलने लगा। साथ बैठे व्यक्ति ने पूछा आप कौन बोल रहे हो? उत्तर मिला कि तेरा मामा बोल रहा हूँ। मैं दुर्घटना में मरा था। क्या हम अपने भाई को नहीं जानते? ठीक इसी प्रकार श्री कृष्ण में काल बोल रहा था।}

प्रमाण नं. 2:- गीता अध्याय 11 श्लोक 21 में अर्जुन ने कहा कि आप तो देवताओं के समूह के समूह को ग्रास (खा) रहे हैं जो आपकी स्तुति हाथ जोड़कर भयभीत होकर कर रहे हैं। महर्षियों तथा सिद्धों के समुदाय आप से अपने जीवन की रक्षार्थ मंगल कामना कर रहे हैं। गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में गीता ज्ञान दाता ने बताया कि हे अर्जुन! मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब प्रवृत हुआ हूँ अर्थात् श्री कृष्ण के शरीर में अब प्रवेश हुआ हूँ। सर्व व्यक्तियों का नाश करूँगा। विपक्ष की सर्व सेना, तू युद्ध नहीं करेगा तो भी नष्ट हो जाएगी।

पेश है गीता अध्याय 11 श्लोक 21 व 32 की फोटोकाॅपी:-

(गीता अध्याय 11 श्लोक 21 की फोटोकाॅपी)

Gita Adhyay 11 Shlok 21

(गीता अध्याय 11 श्लोक 32 की फोटोकाॅपी)

Gita Adhyay 11 Shlok 32

इससे सिद्ध हुआ कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रविष्ट होकर काल ने कहा है। श्री कृष्ण जी ने पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ। श्री कृष्ण जी को देखकर कोई भयभीत नहीं होता था। गोप-गोपियाँ, ग्वाल-बाल, पशु-पक्षी सब दर्शन करके आनंदित होते थे। तो ‘‘क्या श्री कृष्ण जी काल थे?‘‘ नहीं। इसलिए गीता ज्ञान दाता ‘‘काल‘‘ है जिसने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके गीता शास्त्र का ज्ञान दिया।

प्रमाण नं. 3:- गीता अध्याय 11 श्लोक 47 में गीता ज्ञानदाता ने कहा कि हे अर्जुन! मैंने प्रसन्न होकर अपनी कृपा से तेरी दिव्य दृष्टि खोलकर यह विराट रूप दिखाया है। यह विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा है।

विचार करें:- महाभारत ग्रन्थ में प्रकरण आता है कि जिस समय श्री कृष्ण जी कौरवों की सभा में उपस्थित थे और उनसे कह रहे थे कि आप दोनों (कौरव और पाण्डव) आपस में बातचीत करके अपनी सम्पत्ति (राज्य) का बटँवारा कर लो, युद्ध करना शोभा नहीं देता। पाण्डवों ने कहा कि हमें पाँच (5) गाँव दे दो, हम उन्हीं से निर्वाह कर लेंगे। दुर्योधन ने यह भी माँग नहीं मानी और कहा कि पाण्डवों के लिए सुई की नोक के समान भी राज्य नहीं है, युद्ध करके ले सकते हैं। इस बात से श्री कृष्ण भगवान बहुत नाराज हो गए तथा दुर्योधन से कहा कि तू पृथ्वी के नाश के लिए जन्मा है, कुलनाश करके टिकेगा। भले मानव! कहाँ आधा, राज्य कहाँ 5 गाँव। कुछ तो शर्म कर ले। इतनी बात श्री कृष्ण जी के मुख से सुनकर अभिमानी दुर्योधन राजा आग-बबूला हो गया और सभा में उपस्थित अपने भाईयों तथा मन्त्रिायों से बोला कि इस कृष्ण यादव को गिरफ्तार कर लो। उसी समय श्री कृष्ण जी ने विराट रूप दिखाया। सभा में उपस्थित सर्व सभासद उस विराट रूप को देखकर भयभीत होकर कुर्सियों के नीचे छिप गए, कुछ आँखों पर हाथ रखकर जमीन पर गिर गए। श्री कृष्ण जी सभा छोड़ कर चले गए तथा अपना विराट रूप समाप्त कर दिया।

गीता अध्याय 11 श्लोक 47 में गीता ज्ञान दाता ने कहा था कि यह मेरा विराट रूप तेरे अतिरिक्त अर्जुन! पहले किसी ने नहीं देखा था। यदि श्री कृष्ण गीता ज्ञान बोल रहे होते तो यह कभी नहीं कहते कि मेरा विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा था क्योंकि श्री कृष्ण जी के विराट रूप को कौरव तथा अन्य सभासद पहले देख चुके थे।

इससे भी सिद्ध हुआ कि श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा, उनके शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके काल (क्षर पुरूष) ने कहा था। (यह तीसरा प्रमाण हुआ।)

पेश है गीता अध्याय 11 श्लोक 47 की फोटोकाॅपी:-

Gita Adhyay 11 Shlok 32

प्रमाण के लिए पेश है गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 की फोटोकाॅपी जिनमें काल ब्रह्म यानि गीता का ज्ञान बताने वाले ने कहा है कि मैं कभी भी किसी के समक्ष प्रकट नहीं होता। अपनी योग माया (भक्ति की शक्ति) से छिपा रहता हूँ:-

(गीता अध्याय 7 श्लोक 24 की फोटोकाॅपी)

Gita Adhyay 7 Shlok 24

(गीता अध्याय 7 श्लोक 25 की फोटोकाॅपी)

Gita Adhyay 7 Shlok 25

यथार्थ अनुवाद:- गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 का यथार्थ अनुवाद इस प्रकार हैः-

काल ब्रह्म ने कहा है कि मुझ अव्यक्त (गुप्त रहने वाले) को ये बुद्धिहीन जन-समुदाय मेरे (अनुतमम्) घटिया (अव्ययम्) अविनाशी यानि अटल नियम को नहीं जानते कि मैं अपने यथार्थ रूप में किसी के सामने प्रत्यक्ष नहीं होता। मुझे (व्यक्तिम्) मनुष्य रूप में यानि कृष्ण मान रहे हैं। (मैं कृष्ण नहीं हूँ।) श्लोक 25 में कहा है कि मैं अपनी योग माया से छिपा रहता हूँ। किसी के सामने प्रत्यक्ष नहीं होता। यह (मूढ़ः) अज्ञानी जन समुदाय मुझको इस प्रकार नहीं जानता कि मैं कृष्ण की तरह नहीं जन्मता। गीता 4 श्लोक 9 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि मेरे जन्म तथा कर्म अलौकिक (दिव्य) हैं यानि यह जन्मता-मरता तो है। वह अलग परम्परा है। उपरोक्त दोनों श्लोकों से सिद्ध हुआ कि काल गुप्त रहकर कार्य करता है।

प्रमाण नं. 4:- श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) के चैथे अंश के अध्याय 2 श्लोक 19-26 में प्रमाण है कि एक समय देवताओं और राक्षसों का युद्ध हुआ। देवता पराजित होकर समुद्र के किनारे जाकर छिप गए। फिर भगवान की तपस्या स्तुति करने लगे। काल का विधान है अर्थात् काल ने प्रतिज्ञा कर रखी है कि मैं अपने वास्तविक काल रूप में कभी किसी को दर्शन नहीं दूंगा। अपनी योग माया से छिपा रहूँगा। (प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में) इसलिए यह काल (क्षर पुरूष) किसी को विष्णु जी के रूप में दर्शन देता है, किसी को शंकर जी के रूप में, किसी को ब्रह्मा जी के रूप में दर्शन देता है।

देवताओं को श्री विष्णु जी के रूप में दर्शन देकर कहा कि मैंने जो आप की समस्या है, वह जान ली है। आप पुरंज्य राजा को युद्ध के लिए तैयार कर लो। मैं उस राजा श्रेष्ठ के शरीर में प्रविष्ट होकर राक्षसों का नाश कर दूंगा, ऐसा ही किया गया।

पेश है श्री विष्णु पुराण के चैथे अंश के अध्याय 2 से संबंधित प्रकरण की फोटोकाॅपी:-

Vishnu Purana Adhyay 2

इस फोटोकाॅपी में स्पष्ट लिखा है कि गीता ज्ञान देने वाला काल ब्रह्म अन्य के शरीर में प्रवेश करके कार्य करता है। इसी प्रकार श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके गीता का ज्ञान कहा है।

प्रमाण नं. 5:- श्री विष्णु पुराण के चैथे अंश के अध्याय 3 श्लोक 4-6 में प्रमाण है कि एक समय नागवंशियों तथा गंधर्वों का युद्ध हुआ। गंधर्वों ने नागों के सर्व बहुमूल्य हीरे, लाल व खजाने लूट लिए, उनके राज्य पर भी कब्जा कर लिया। नागाओं ने भगवान की स्तुति की, वही ‘‘काल‘‘ भगवान विष्णु रूप धारण करके प्रकट हुआ। कहा कि आप पुरूकुत्स राजा को गंधर्वों के साथ युद्ध के लिए तैयार कर लें। मैं राजा पुरूकुत्स के शरीर में प्रवेश करके दुष्ट गंधर्वों का नाश कर दूँगा, ऐसा ही हुआ।

पेश है श्री विष्णु पुराण के चैथे अंश के अध्याय 3 से संबंधित प्रकरण की फोटोकाॅपी:-

Vishnu Purana Adhyay 3

उपरोक्त विष्णु पुराण की दोनों कथाओं से प्रमाणित हुआ कि यह काल भगवान (क्षर पुरूष) इस प्रकार अव्यक्त (गुप्त) रहकर कार्य करता है। इसी प्रकार इसने श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके गीता का ज्ञान कहा है।

प्रमाण नं. 6:- महाभारत ग्रन्थ में (गीता प्रैस गोरखपुर (UP) से प्रकाशित में) भाग-2 पृष्ठ 800-802 पर लिखा है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठर को राजगद्दी पर बैठाकर श्री कृष्ण जी ने द्वारिका जाने की तैयारी की। तब अर्जुन ने श्री कृष्ण जी से कहा कि आप वह गीता वाला ज्ञान फिर से सुनाओ, मैं उस ज्ञान को भूल गया हूँ। श्री कृष्ण जी ने कहा कि हे अर्जुन! आप बड़े बुद्धिहीन हो, बड़े श्रद्धाहीन हो। आपने उस अनमोल ज्ञान को क्यों भुला दिया, अब मैं उस ज्ञान को नहीं सुना सकता क्योंकि मैंने उस समय योगयुक्त होकर गीता का ज्ञान सुनाया था। जब वक्ता को ज्ञान नहीं तो श्रोता को कैसे याद रह सकता है। इससे सिद्ध है कि श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान नहीं कहा।

  • प्रमाण के लिए पढे़ं संक्षिप्त महाभारत ग्रन्थ (भाग-2) के पृष्ठ 800-802 की फोटोकाॅपी इसी पुस्तक के पृष्ठ 78-80 पर।

विचार करें:- युद्ध के समय योगयुक्त हुआ जा सकता है तो शान्त वातावरण में योगयुक्त होने में क्या समस्या हो सकती है? वास्तव में यह ज्ञान काल ने श्री कृष्ण में प्रवेश करके बोला था।

  • श्री कृष्ण जी को स्वयं तो वह गीता ज्ञान याद नहीं, यदि वे वक्ता थे तो वक्ता को तो सर्व ज्ञान याद होना चाहिए। श्रोता को तो प्रथम बार में 40 प्रतिशत ज्ञान याद रहता है। इससे सिद्ध है कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी में प्रवेश होकर काल (क्षर पुरूष) ने बोला था। उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट हुआ कि श्रीमद् भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा। उनको तो पता ही नहीं कि क्या कहा था, श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके काल पुरूष (क्षर पुरूष) ने बोला था।

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