चैदहवीं महंत गद्दी का परिचय
पुस्तक “धनी धर्मदास जीवन दर्शन एवं वंश परिचय” पृष्ठ 49 पर तेरहवें महंत दयानाम के बाद कबीर पंथ में उथल-पुथल मची। काल का चक्र चलने लगा। क्योंकि इस परम्परा में कोई पुत्र नहीं था। तब तक व्यवस्था बनाए रखने के लिए महंत काशीदास जी को चादर दिया गया। कुछ समय पश्चात् काशी दास ने स्वयं को कबीर पंथ का आचार्य घोषित कर दिया तथा खरसीया में अलग गद्दी की स्थापना कर दी। यह देख तीनों माताऐं रोने लगी कि काल का चक्र चलने लगा। बाद में कबीर पंथ के हित में ढाई वर्ष के बालक चतुर्भुज साहेब को बड़ी माता साहिब ने गद्दी सौंप दी जो “गृन्धमुनि नाम साहेब” के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
विचार करें: एक ढाई वर्ष का बालक क्या नाम व ज्ञान देगा ? माता जी ने गद्दी पर बैठा दिया। बेटा महंत बन गया। जिसे भक्ति का क-ख का भी ज्ञान नहीं। सन्त धर्मदास जी के वंशज भोले श्रद्धालुओं को दंत कथाओं (लोकवेद) के आधार से भ्रमित करके गुमराह कर रहे हैं। महंत काशी दास जी ने खरसिया शहर में नकली कबीर पंथी गद्दी प्रारम्भ कर दी। उसी खरसिया से एक श्री उदीतनाम साहेब ने मनमुखी गद्दी लहर तारा तालाब पर काशी (बनारस) में चालु कर रखी है।
कबीर चैरा काशी में श्री गंगाशरण शास्त्राी जी भी अलग से महंत पद पर विराजमान है। परंतु तत्व ज्ञान व वास्तविक भक्ति का किसी को क-ख भी ज्ञान नहीं है।
उपरोक्त विवरण से प्रभु प्रेमी पाठक स्वयं निर्णय करें कि दामा खेड़ा वाले महंतों के पास वास्तविक भक्ति है या ड्रामाबाजी?
श्री चुड़ामणी जी के कुदरमाल चले जाने के पश्चात् बांधवगढ़ पूरा नष्ट हो गया। आज भी प्रमाण है।
प्रश्न: दामा खेड़ा गद्दी वाले तो कहते हैं कि कबीर जी ने कहा था कि जब तक तेरी बियालीस वंश की गद्दी चलेगी तब तक मैं पृथ्वी पर नहीं आऊँगा अर्थात् अन्य को यह नाम दान आदेश नहीं दूंगा?
उत्तर: यह उनकी मनघड़ंत कहानी है। कबीर सागर में कबीर बानी नामक अध्याय में पृष्ठ 136-137 पर बारह पंथों का विवरण देते हुए वाणी लिखी हैं जो निम्न हैं:-
द्वादश पंथ चलो सो भेद
द्वादश पंथ काल फुरमाना। भूले जीव न जाय ठिकाना।।
प्रथम आगम कहि हम राखा। वंश हमार चूरामणि शाखा।
दूसर जगमें जागू भ्रमावै। विना भेद ओ ग्रन्थ चुरावै।।
तीसरा सुरति गोपालहि होई। अक्षर जो जोग ²ढ़ावे सोई।।
चैथा मूल निर/न बानी। लोकवेद की निर्णय ठानी।।
पंचम पंथ टकसार भेद लै आवै। नीर पवन को सन्धि बतावै।।
सो ब्रह्म अभिमानी जानी। सो बहुत जीवन की करी है हानी।।
छठवाँ पंथ बीज को लेखा। लोक प्रलोक कहें हममें देखा।।
पांच तत्व का मर्म ²ढावै। सो बीजक शुक्ल ल े आवै।।
सातवाँ पंथ सत्यनामि प्रकाशा। घटके माहीं मार्ग निवासा।।
आठवाँ जीव पंथले बोले बानी। भयो प्रतीत मर्म नहिं जानी।।
नौवें राम कबीर कहावै। सतगुरू भ्रमले जीव ²ढावै।।
दसवें ज्ञान की काल दिखावै। भई प्रतीत जीव सुख पावै।।
ग्यारहवें भेद परमधाम की बानी। साख हमारी निर्णय ठानी।।
साखी भाव प्रेम उपजावै। ब्रह्मज्ञान की राह चलावै।।
तिनमें वंश अंश अधिकारा। तिनमें सो शब्द होय निरधारा।।
सम्वत् सत्रासै पचहत्तर होई, तादिन प्रेम प्रकटें जग सोई।।
साखी हमारी ले जीव समझावै, असंख्य जन्म ठौर नहीं पावै।।
बारवें पंथ प्रगट ह्न ै बानी, शब्द हमारे की निर्णय ठानी।।
अस्थिर घर का मरम न पावैं, ये बारा पंथ हमही को ध्यावैं।
बारवें पंथ हम ही चलि आवैं, सब पंथ मेटि एकही पंथ चलावें।।
उपरोक्त वाणी में ‘‘बारह पंथों’’ का विवरण किया है तथा लिखा है कि संवत् 1775 में प्रभु का प्रेम प्रकट होगा तथा हमरी बानी प्रकट होवेगी। (संत गरीबदास जी महाराज छुड़ानी, (हरियाणा) वाले का जन्म 1774 में वैसाख पूर्णमासी को हुआ है उनको प्रभु कबीर 1784 में मिले थे। यहाँ पर इसी का वर्णन है तथा सम्वत् 1775 के स्थान पर 1774 होना चाहिए, गलती से 1775 लिखा है दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि भारतीय वर्ष चैत्र मास से प्रारम्भ होता है सन्त गरीबदास जी का जन्म वैसाख मास में हुआ जो चैत्र के बाद प्रारम्भ होता है। कई बार दो चैत्र मास भी बनाए जाते हैं। उस समय शिक्षा का अति अभाव था। प्रत्येक गाँव में एक ही तीथि बताने वाला होता था। वह भी अशिक्षित ही होता था। आस-पास के शहर या गाँव से तिथि किसी अन्य ब्राह्मण से पता करके फिर गाँव में सर्व को बताता इस कारण से भी संवत् 1774 के स्थान पर संवत् 1775 लिखा गया हो वास्तव में यह संकेत गरीबदास जी के विषय में ही है)।
भावार्थ यह है कि:- कबीर परमात्मा ने गरीबदास जी का ज्ञान योग खोल कर उनके द्वारा अपना तत्वज्ञान स्वयं ही प्रकट किया। जो सत्ग्रन्थ साहेब रूप में लीपि बद्ध है। कारण यह था कि कबीर वाणी में नकली कबीर पंथियों ने मिलावट कर दी थी। इसलिए परमेश्वर कबीर जी की महिमा का ज्ञान पुनर् प्रकट कराया फिर भी तत्व भेद (सार ज्ञान) गुप्त ही रखा (जो अब प्रकट हो रहा है।) इस कारण गरीबदास जी के पंथ में तत्वज्ञान नहीं है जिस कारण से वे गरीबदास साहेब की वाणी का विपरीत अर्थ लगा कर जन्म व्यर्थ करते रहे उन्हें असंख जन्म भी ठौर नहीं है अर्थात् वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते केवल एक सन्त शीतल दास जी वाली प्रणाली में मुझ दास तक एक सन्त ही पार होता आया है जो एक सन्त सारनाम प्राप्त करके केवल एक को आगे बताकर गुप्त रखने की कसम दिलाता था। वह भी आगे केवल एक शिष्य को बताकर गुप्त रखता था समय आने पर परमेश्वर कबीर जी के संकेत से ही आगे शिष्य को आज्ञा देता था। इस प्रकार मुझ दास तक यह सारनाम कड़ी से जुड़ा हुआ पहुँचा है अब यह सर्व अधिकारी श्रद्धालु भक्तों को देने का आदेश प्रभु कबीर जी का है इसलिए कहा है बारहवां पंथ जो गरीबदास जी का चलेगा यह पंथ हमारी साखी लेकर जीव को समझाएगें। परन्तु वास्तविक मन्त्रा से अपरिचित होने के कारण गरीबदास पंथ के साधक असंख्य जन्म तक सतलोक नहीं जा सकते। उपरोक्त बारह पंथ हमको ही प्रमाण करके भक्ति करेगें परन्तु स्थाई स्थान (सतलोक) प्राप्त नहीं कर सकते। बारहवें पंथ (गरीबदास वाले पंथ) में आगे चलकर हम (कबीर जी) स्वयं ही आऐगें तथा सब बारह पंथों को मिटा एक ही पंथ चलाऐगें। उस समय तक सारशब्द छुपा कर रखना है। यही प्रमाण सन्त गरीबदास जी महाराज ने अपनी अमृतवाणी ‘‘असुर निकंन्दन रमैणी’’ में किया है कि ‘‘सतगुरू दिल्ली मण्डल आयसी, सूती धरती सूम जगायसी’’ पुराना रोहतक जिला (वर्तमान में सोनीपत जिला, झज्जर जिला, रोहतक जिला) दिल्ली मण्डल कहलाता है। जो पहले अग्रेंजों के शासन काल में केन्द्र के आधीन था। बारह पंथों का विवरण कबीर चरित्र बोध (बोध सागर) पृष्ठ नं. 1870 पर भी है जिसमें बारहवां पंथ गरीबदास जी वाला पंथ स्पष्ट लिखा है।
कबीर साहेब के पंथ में काल द्वार प्रचलित बारह पंथों का विवरण कबीर चरित्र बोध (कबीर सागर) पृष्ठ नं. 1870 से:- (1) नारायण दास जी का पंथ (2) यागौदास (जागू) पंथ (3) सूरत गोपाल पंथ (4) मूल निरंजन पंथ (5) टकसार पंथ (6) भगवान दास (ब्रह्म) पंथ (7) सत्यनामी पंथ (8) कमाली (कमाल का) पंथ (9) राम कबीर पंथ (10) प्रेम धाम (परम धाम) की वाणी पंथ (11) जीवा पंथ (12) गरीबदास पंथ।
यदि कबीर परमश्ेवर जी ऐसा वचन कहते कि ‘‘जब तक धर्मदास का वंश चलेगा तब तक मैं पृथ्वी पर पग नहीं रखुंगा अर्थात् पृथ्वी पर प्रकट नहीं होऊँगा। तो सन् 1518 में सतलोक प्रस्थान के 33 वर्ष पश्चात् सन् 1551 में सात वर्षीय संत दादू साहेब जी को नहीं मिलते, 209 वर्ष पश्चात् सन् 1727 में दस वर्षीय संत गरीबदास जी को गाँव छुड़ानी, जिला झज्जर(हरियाणा प्रदेश, भारत) में नहीं मिलते तथा गरीबदास जी को नामदान नहीं देते और आगे नामदान करने का आदेश नहीं देते। इसके बाद फिर 292 वर्ष पश्चात् सन् 1813 में सात वर्षीय संत घीसा दास जी को गाँव खेखड़ा, जिला मेरठ(उतर प्रदेश) में नहीं मिलते। जो आज भी यादगार साक्षी हैं तथा उपरोक्त संतों द्वारा लिखी अमृत वाणी साक्षी रूप हलफिया ब्यान(एफिडेविट) है कि परमेश्वर कबीर जी काशी वाले जुलाहा धाणक ने स्वयं साक्षात दर्शन दिए तथा अपने सतलोक के भी दर्शन करा करके अपनी समर्थता का प्रमाण दिया।
मुझ दास (रामपाल दास) को परमेश्वर कबीर साहेब जी संवत् 2054 फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष एकम(मार्च) 1997 को दिन के दस बजे मिले तथा सारशब्द की वास्तविकता तथा संगत को दान करने का सही समय का संकेत दे कर अन्र्तध्यान हो गए तथा इसको अगले आदेश तक रहस्य युक्त रखने का आदेश दिया।