शेख तकी पीर ने नहीं पहचाना परमेश्वर को

एक बार दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोधी को जलन का रोग हो गया। जलन का रोग ऐसा होता है जैसे किसी का आग में हाथ जल जाए उसमें पीड़ा बहुत होती है। जलन के रोग में कहीं से शरीर जला दिखाई नहीं देता है परन्तु पीड़ा अत्यधिक होती है। उसको जलन का रोग कहते हैं। जब प्राणी के पाप बढ़ जाते हैं तो दवाई भी व्यर्थ हो जाती हैं। दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लौधी के साथ भी वही हुआ। सभी प्रकार की औषधी सेवन की। बड़े-बड़े वैद्य बुला लिए और मुँह बोला इनाम रख दिया कि मुझे ठीक कर दो, जो माँगोगे वही दूँगा। दुःख में व्यक्ति पता नहीं क्या संकल्प कर लेता है? सर्व उपाय निष्फल हुए। उसके बाद अपने धार्मिक काजी, मुल्ला, संतों आदि सबसे अपना आध्यात्मिक इलाज करवाया। परन्तु सब असफल रहा। {जब हम दुःखी हो जाते हैं तो हिन्दू और मुसलमान नहीं रहते। फिर तो कहीं पर रोग कट जाए, वही पर चले जाते हैं। वैसे तो हिन्दू कहते हैं कि मुसलमान बुरे और मुसलमान कहते हैं कि हिन्दू बुरे और बीमारी हो जाए तो फिर हिन्दू व मुसलमान नहीं देखते। जब कष्ट आए तब तो कोई बुरा नहीं। बुरा कोई नहीं है। जो मुसलमान बुरे हैं वे बुरे हैं और जो हिन्दू बुरे हैं वे बुरे भी हैं और दोनों में अच्छे भी है। हर मज़हब में अच्छे और बुरे व्यक्ति होते हैं। लेकिन हम जीव हैं। हमारी कोई जाति व्यवस्था नहीं है। हमारी जीव जाति है हमारा धर्म मानव है-परमात्मा को पाना है।} हिन्दू वैद्य तथा आध्यात्मिक संत भी बुलाए, स्वयं भी उनसे जाकर मिला और सबसे आशीर्वाद व जंत्र-मंत्र करवाऐं परन्तु सर्व चेष्टा निष्फल रही।

किसी ने बताया कि काशी शहर में एक कबीर नाम का महापुरूष है। यदि वह कृपा कर दे तो आपका दुःख निवारण अवश्य हो जाएगा।

जब बादशाह सिकंदर ने सुना कि एक काशी के अन्दर महापुरूष रहता है तो उसको कुछ-कुछ याद आया कि वह तो नहीं है जिसने गाय को भी जीवित कर दिया था। हजारों अंगरक्षकों सहित दिल्ली से काशी के लिए चल पड़ा। बीर सिंह बघेला काशी नरेश पहले ही कबीर साहेब की महिमा और ज्ञान सुनकर कबीर साहेब के शिष्य हो चुके थे और पूर्ण रूप से अपने गुरुदेव में आस्था रखते थे। उनको कबीर साहेब की महिमा का ज्ञान था क्योंकि कबीर परमेश्वर वहाँ पर बहुत लीलाएँ कर चुके थे। जब सिकंदर लोधी बनारस(काशी) गया तथा बीर सिंह से कहा बीर सिंह मैं बहुत दुःखी हो गया हूँ। अब तो आत्महत्या ही शेष रह गई है। यहाँ पर कोई कबीर नाम का संत है? आप तो जानते होंगे कि वह कैसा है? इतनी बात सिकंदर बादशाह के मुख से सुनी थी। काशी नरेश बीर सिंह की आँखों में पानी भर आया और कहा कि अब आप ठीक स्थान पर आ गए। अब आपके दुःख का अंत हो जाएगा। बादशाह सिकंदर ने पूछा कि ऐसी क्या बात है? बीर सिंह ने कहा कि वह कबीर जी स्वयं भगवान आए हुए हैं। परमेश्वर स्वरूप हैं। यदि उनकी दयादृष्टि हो गई तो आपका रोग ठीक हो जाएगा। राजा सिकंदर ने कहा कि जल्दी बुला दो। काशी नरेश बीरदेवसिंह बघेल ने विनम्रता से प्रार्थना की कि आपकी आज्ञा शिरोधार्य है, आदेश भिजवा देता हूँ। लेकिन ऐसा सुना है कि संतो को बुलाया नहीं करते। यदि वे आ भी गए और रजा नहीं बख्शी तो भी आने का कोई लाभ नहीं। बाकी आपकी इच्छा। सिकंदर ने कहा कि ठीक है मैं स्वयं ही चलता हूँ। इतनी दूर आ गया हँू वहाँ पर भी अवश्य चलूँगा।

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