शिशु कबीर देव द्वारा कंवारी गाय का दूध पीना
बालक कबीर को दूध पिलाने की कोशिश नीमा ने की तो परमेश्वर ने मुख बन्द कर लिया। सर्व प्रयत्न करने पर भी नीमा तथा नीरू बालक को दूध पिलाने में असफल रहे। 25 दिन जब बालक के निराहार बीत गए तो माता-पिता अति चिन्तित हो गए। 24 दिन से नीमा तो रो-2 कर विलाप कर रही थी। सोच रही थी यह बच्चा कुछ भी नहीं खा रहा है। यह मरेगा, मेरे बेटे को किसी की नजर लगी है। 24 दिन से लगातार नजर उतारने की विधि भिन्न-भिन्न स्त्राी-पुरूषों द्वारा बताई प्रयोग करके थक गई। कोई लाभ नहीं हुआ। पच्चीसवां दिन उदय हुआ। माता नीमा रात्रि भर जागती रही तथा रोती रही कि पता नहीं यह बच्चा कब मर जाएगा। मैं भी साथ ही फांसी पर लटक जाऊंगी। मैं इस बच्चे के बिना जीवित नहीं रह सकती। बालक कबीर का शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ था तथा ऐसे लग रहा था जैसे बच्चा प्रतिदिन एक किलो ग्राम (एक सेर) दूध पीता हो। परन्तु नीमा को डर था कि बिना कुछ खाए-पिए यह बालक जीवित रह ही नहीं सकता। यह कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। यह सोचकर फूट-2 कर रो रही थी। भगवान शंकर के साथ-साथ निराकार प्रभु की भी उपासना तथा उससे की गई प्रार्थना जब व्यर्थ रही तो अति व्याकुल होकर रोने लगी।
25 वें दिन नीरू ने सोचा कि हमने मुसलमान काजी-मुल्लाओं के बताए अनुसार तो सर्व क्रिया कर ली है। परन्तु बच्चा दूध नहीं पी रहा। उस समय स्वामी रामानन्द जी प्रसिद्ध पंडित थे। उनके पास जा कर अपनी समस्या सुनाई कि मुझे जंगल में एक पुत्र प्राप्त हुआ था। {नीरू को कमल के फूल पर जल में पुत्र प्राप्त हुआ था। परन्तु जिस से भी यह कहता कि कमल के पुष्प पर पुत्र प्राप्त हुआ था। सर्व अस्वीकार करते थे, कहते थे कि यह कैसे सम्भव हो सकता है? इसी डर से नीरू ने स्वामी रामानन्द जी से कहा कि उद्यान में मुझे एक नवजात शिशु प्राप्त हुआ है।} वह 25 दिन से कुछ भी नहीं खा-पी रहा है। हे स्वामी कुछ विधि बताओ? स्वामी रामानन्द जी ने कहा कि आप पूर्व जन्म में भी ब्राह्मण थे। उस समय आप से भगवान की भक्ति में कोई त्रुटि हुई थी जिस कारण से आप जुलाहा बने हो। नीरू ने कहा कि हे स्वामी! वह तो जैसा कर्म किया था, उसका फल तो मुझे मिलना ही था। अब मैं संकट के समय आप के पास आया हूँ। ऐसी कृपा करो बालक दूध पी ले। स्वामी रामानन्द जी ने कहा कि एक कंवारी गाय (बछिया) ले आना जिसको बैल ने छुआ न हो। उसको अपने बालक के पास खड़ा कर देना, वह कंवारी गाय दूध देगी, उस दूध को बालक पी लेगा।
नीरू ने मन ही मन में सोचा कि स्वामी जी ने मेरे साथ मजाक किया है। कंवारी गाय कैसे दूध दे सकती है। वह दुःखी मन से वापिस आकर अपनी झोंपड़ी में बैठकर रोने लगा।
भगवान शिव, एक साधु का रूप बना कर नीरू की झांेपड़ी के सामने आ खड़े हुए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा। नीमा रोती रही हिचकियाँ लेती रही। साधु रूप में खड़े भगवान शिव जी के अति आग्रह करने पर नीमा रोती-2 कहने लगी।
हे महात्मा! मेरे दुःख से परिचित होकर आप भी दुःखी हो जाओगे। साधु वेशधारी शिव भगवान बोले हे माई! कहते है अपने मन का दुःख दूसरे के समक्ष कहने से मन हल्का हो जाता है। हो सकता है आप के कष्ट को निवारण करने की विधि भी प्राप्त हो जाए। आँखों में आंसू जिह्वा लड़खड़ाते हुए गहरे साँस लेते हुए नीमा ने बताया हे विप्र जी! हम निःसन्तान थे। पच्चीस दिन पूर्व हम दोनों प्रतिदिन की तरह काशी में लहरतारा तालाब पर स्नान करने गए थे। उस दिन ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी की सुबह थी। रास्ते में मैंने अपने इष्ट भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति की हृदय से प्रार्थना की थी मेरी पुकार सुनकर दीनदयाल भगवान शंकर जी ने उसी दिन एक बालक लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर हमें दिया। बच्चे को प्राप्त करके हमारे हर्ष का कोई ठिकाना नहीं रहा। यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा। इस बच्चे ने दूध नहीं पीया। सर्व प्रयत्न करके हम थक चुके हैं। आज इस बच्चे को पच्चीसवां दिन है कुछ भी आहार नहीं किया है। यह बालक मरेगा। इसके साथ ही मैं आत्महत्या करूंगी। मैं इसकी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रही हूँ। सारी रात्रि बैठ कर तथा रो-2 व्यतीत की है। मैं भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही हूँ कि हे भगवन्! इससे अच्छा तो यह बालक न देते। अब इस बच्चे में इतनी ममता हो गई है कि मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी। नीमा के मुख से सर्वकथा सुनकर साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा।
आप का बालक मुझे दिखाइए। नीमा ने बालक को पालने से उठाकर महात्मा जी के समक्ष प्रस्तुत किया। नीमा ने बालक को साधु के चरणों मे डालना चाहा कि बच्चे के जीवन की रक्षा हो सके। बालक पृथ्वी पर न गिर कर ऊपर उठ गया और साधु वेश धारी शिव के सिर के सामान्तर हवा में ठहर गया। नीमा ने सोचा कि यह चमत्कार इस साधु ने किया है, मेरे बच्चे को हवा में स्थिर कर दिया। साधु ने अपनी बाहें फैलाकर बच्चे को लेना चाहा। उसी समय बालक स्वयं साधु रूपधारी शिव के हाथों में आ गया।
दोनों प्रभुओं की आपस में दृष्टि मिली। भगवान शंकर जी ने शिशु रूप कबीर जी को अपने हाथों में ग्रहण किया तथा मस्तिष्क की रेखाऐं व हस्त रेखाऐं देख कर बोले नीमा! आप के बेटे की लम्बी आयु है यह मरने वाला नहीं है। देख कितना स्वस्थ है। कमल जैसा चेहरा खिला है। नीमा ने कहा हे महात्मा! बनावटी सांत्वना से मुझे सन्तोष होने वाला नहीं है। बच्चा दूध पीएगा तो मुझे सुख की सांस आएगी। पच्चीस दिन के बालक का रूप धारण किए परमेश्वर कबीर जी ने भगवान शिव जी से कहा हे भगवन्! आप इन्हें कहो एक कंवारी गाय लाऐं। आप उस कंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी। मैं उस कंवारी गाय का दूध पीऊँगा। वह गाय आजीवन बिना ब्याऐ (अर्थात् कंवारी रह कर ही) दूध दिया करेगी उस दूध से मेरी परवरिश होगी। परमेश्वर कबीर जी तथा भगवान शंकर (शिव) जी की सात बार चर्चा हुई।
शिवजी ने नीमा से कहा आप का पति कहाँ है? नीमा ने अपने पति को पुकारा वह भीगी आँखों से उपस्थित हुआ तथा साधु को प्रणाम किया। साधु रूप में शिव ने कहा नीरू! आप एक कंवारी गाय लाओं वह दूध देगी। उस दूध को यह बालक पीएगा। नीरू कंवारी गाय ले आया तथा साथ में कुम्हार के घर से एक ताजा छोटा घड़ा (चार कि.ग्रा. क्षमता का मिट्टी का पात्र) भी ले आया। परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार साधु रूपधारी शिव जी ने उस कंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा जैसे थपकी लगाते हैं। गऊ माता के थन लम्बे-2 हो गए तथा थनों से दूध की धार बह चली। नीरू को पहले ही वह पात्र थनों के नीचे रखने का आदेश दे रखा था। दूध का पात्र भरते ही थनों से दूध निकलना बन्द हो गया। वह दूध शिशु रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने पीया। नीरू नीमा ने साधु रूपधारी भगवान शिव के चरण लिए तथा कहा आप तो साक्षात् भगवान शिव के रूप हो। आपको भगवान शिव ने ही हमारी पुकार सुनकर भेजा है। हम निर्धन व्यक्ति आपको क्या दक्षिणा दे सकते हैं? हे विप्र! 24 दिनों से हमने कोई कपड़ा भी नहीं बुना है। साधु रूपधारी भगवान शंकर बोले! साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं। जो है भूखा धन का, वह तो साधू नाहीं। यह कह कर विप्र रूपधारी शिवजी वहाँ से चले गए।
।।बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर का कलयुग में प्रकट होना।।
(संत गरीबदास जी की वाणी)
गरीब, चैरासी बंधन कटे, कीनी कलप कबीर।
भुवन चतुर्दश लोक सब, टूटैं जम जंजीर।।1।।
गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मंड में, बंदी छोड़ कहाय।
सो तो एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।2।।
गरीब, शब्द स्वरूप साहिब धनी, शब्द सिंध सब मांहि।
बाहर भीतर रमि रह्या, जहां तहां सब ठांहि।।3।।
गरीब, जल थल पृथ्वी गगन में, बाहर भीतर एक।
पूर्ण ब्रह्म कबीर हैं, अबिगत पुरूष अलेख।।4।।
गरीब, सेवक होय कर ऊतरे, इस पृथ्वी के मांहि।
जीव उधारन जगतगुरू, बार बार बलि जांहि।।5।।
।।नीरू नीमा को शिशु रूप में मिले।।
गरीब, काशी पुरी कस्त किया, उतरे अधर आधार।
मोमन कूँ मुजरा हुवा, जंगल में दीदार।।1।।
गरीब, कोटि किरण शशि भान सुधि, आसन अधर विमान।
परसत पूर्ण ब्रह्म कूँ, शीतल पिंड रू प्राण।।2।।
गरीब, गोद लिया मुख चूम करि, हेम रूप झलकंत।
जगर मगर काया करै, दमकैं पदम अनंत।।13।।
गरीब, काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर।
कोई कहै ब्रह्मा विष्णु हैं, कोई कहै इन्द्र कुबेर।।14।।
गरीब, कोई कहै वरूण धर्मराय है, कोई कोई कहते ईश।
सोलह कला सुभांन गति, कोई कहै जगदीश।।5।।
गरीब, भक्ति मुक्ति ले उतरे, मेटन तीनूं ताप।
मोमन के डेरा लिया, कहै कबीरा बाप।।6।।
गरीब, दूध न पीवै न अन्न भखै, नहीं पलने झूलंत।
अधर अमान ध्यान में, कमल कला फूलंत।।7।।
गरीब, कोई कहै छल ईश्वर नहीं, कोई किंनर कहलाय।
कोई कहै गण ईश का, ज्यूं ज्यूं मात रिसाय।।8।।
गरीब, खलक मुलक देखन गया, राजा प्रजा रीत।
जंबू दीप जिहांन में, उतरे शब्द अतीत।।9।।
गरीब, दुनी कहै यौह देव है, देव कहत हैं ईश।
ईश कहै परब्रह्म है, पूर्ण बिसवे बीस।।10।।
।।शिशु रूप परमेश्वर का नामांकन।।
गरीब, काजी गये कुरांन ले, धरि लरके का नाम।
अक्षर अक्षर में फुर्या, धंन कबीर बलिजांव।।1।।
गरीब, सकल कुरांन कबीर हैं, हरफ लिखे जो लेख।
काशी के काजी कहैं, गई दीन की टेक।।2।।
।।शिशु कबीर परमेश्वर द्वारा कंवारी गाय का दूध पीने का वर्णन।।
गरीब, शिव उतरे शिवपुरी से, अबिगत बदन विनोद।
महके कमल खुसी भये, लिया ईश कूँ गोद।।1।।
गरीब, नजर नजर से मिल गई, किया ईश प्रणाम।
धंन मोमन धंन पूरना, धंन काशी निःकाम।।2।।
गरीब, सात बार चर्चा करी, बोले बालक बैंन।
शिव कूँ कर मस्तक धर्या, ल्या मोमन एक धैंन।।3।।
गरीब, अनब्यावर कूँ दूहत है, दूध दिया तत्काल।
पीवै बालक ब्रह्म गति, तहां शिव भये दयाल।।4।।
गरीब, षष्ट मास के जदि भये, नित दहनांवर देह।
चरण चलें नित पुरी में, याह शिक्षा नित लेह।।5।।
।।स्वामी रामानन्द जी को शरण में लेना।।
गरीब, भक्ति द्राविड़ देश थी, इहां नहीं एक रिंच।
ऊत भूत की ध्यावना, पाखंड और प्रपंच।।1।।
गरीब, रामानंद आनंद में, काशी नगर मंझार।
देश द्राविड़ छाडि करि, आये पुरी विचार।।2।।
गरीब, जोग जुगति प्राणायाम करि, जीत्या सकल शरीर।
त्रिवैणी के घाट में, अटक रहे बलबीर।।3।।
गरीब, तीरथ व्रत एकादशी, गंगोदक असनान।
पूजा विधि विधान से, सर्व कला सुर ज्ञान।।4।।
गरीब, करै मानसी सेव नित, आत्म तत्त्व का ध्यान।
षट पूजा आरंभ गति, धूप दीप विधान।।5।।
गरीब, चैदह से चेले किये, काशी नगर मंझार।
च्यार संप्रदा 3चलत हैं, और बावन दरबार।।6।।
।।स्वामी रामानन्द से दीक्षा लेने का वर्णन।।
पंच वर्ष के जदि भये, काशी मंझ कबीर।
दास गरीब अजब कला, ज्ञान ध्यान गुण थीर।।1।।
गुल भया काशी पुरी, अटपटे बैंन बिहंग।
दास गरीब गुनी थके, सुन जुलहा प्रसंग।।2।।
रामानंद अधिकार सुन, जुलहा अक जगदीश।
दास गरीब बिलंब ना, ताहि नवावत शीश।।3।।
रामानंद कूँ गुरू कहै, तन से नहीं मिलात।
दास गरीब दर्शन भये, पैंडे लगी जुं लात।।4।।
पंथ चलत ठोकर लगी, राम नाम कहि दीन।
दास गरीब कसर नहीं, सीख लई प्रवीन।।5।।
।।बालक कबीर जी ने रामानन्द जी को बताया ‘‘मैं परमेश्वर हूँ‘‘।।
आडा पड़दा लाय कर, रामानंद बूझंत।
दास गरीब कुलंग छवि, अधर डाक कूदंत।।1।।
कौन जाति कुल पंथ है, कौन तुम्हारा नाम।
दास गरीब अधीन गति, बोलत है बलि जांव।।2।।
जाति हमारी जगतगुरू, परमेश्वर पद पंथ।
दास गरीब लिखत परै, नाम निंरजन कंत।।3।।
रे बालक सुन दुर्बुद्धि, घट मठ तन आकार।
दास गरीब दरद लग्या, हो बोले सिरजनहार।।4।।
तुम मोमन के पालवा, जुलहे के घर वास।
दास गरीब अज्ञान गति, एता दृढ़ विश्वास।।5।।
मान बड़ाई छाड़ि करि, बोलो बालक बैंन।
दास गरीब अधम मुखी, एता तुम घट फैंन।।6।।
कलयुग खेत्रपाल हैं, क्या भैरौं कोई भूत।
दास गरीब दतब बिना, गया जगत सब ऊत।।7।।
मनी मगज माया तजो, तजो मान गुमान।
दास गरीब सुबात कहि, नहीं पावौगे जान।।8।।
ए बालक बुद्धि तोर गति, कूड़ि साखि न भांडि।
दासगरीब हदीस कर, नहीं लेवैंगे डांडी।।9।।
शाह सिकंदर से कहूँ बांधै, पग ऊपर तर शीश।
दास गरीब अज्ञान गति, तोर कह्या जगदीश।।10।।
जडे़ंगे हाथ हथौकड़ी, गल में तौंक जंजीर।
दास गरीब परख बिना, यह बानी गुन कीर।।11।।
परख निरख नहीं तोर कूँ, नीच कुलीन कुजाति।
दास गरीब अकल बिना, तैं जु कहीं क्या बात।।12।।
रे बालक नीची कला, तुम होय बोले ऊंच।
दास गरीब पलक घरी, खबर नहीं दम कूँच।।13।।
महके बदन खुलास करि, सुन स्वामी प्रवीन।
दास गरीब मनी मरे, मैं आजिज आधीन।।14।।
मैं अबिगत गति से परे, च्यार बेद से दूर।
दास गरीब दशौं दिशा, सकल सिंध भरपूर।।15।।
सकल सिंध भरपूर हूँ, खालिक हमरा नाम।
दास गरीब अजाति हूँ, तैं जूं कह्या बलि जांव।।16।।
जाति पाति मेरे नहीं, बस्ती है बिन थाम।
दास गरीब अनिन गति, तन मेरा बिन चाम।।17।।
ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमारे तीर।
दास गरीब अधर बसूं, अबिगत सत्य कबीर।।18।।
अनंत कोटि सलिता बहैं, अनंत कोटि गिरि ऊंच।
दास गरीब सदा रहूँ, नहीं हमारे कूंच।।19।।
पौहमी धरणि आकाश में, मैं व्यापक सब ठौर।
दास गरीब न दूसरा, हम समतुल नहीं और।।20।।
मैं सतगुरु मैं दास हूँ, मैं हंसा मैं बंस।
दास गरीब दयाल मैं, मैं ही करूँ पाप विध्वंस।।21।।
ममता माया हम रची, काल जाल सब जीव।
दास गरीब प्राण पद, हम दासातन पीव।।22।।
हम दासन के दास हैं, करता पुरुष करीम।
दास गरीब अवधूत हम, हम ब्रह्मचारी सीम।।23।।
सुन रामानंद राम मैं, मैं बावन नरसिंह।
दास गरीब सर्व कला, मैं ही व्यापक सरबंग।।24।।
हम मौला सब मुलक में, मुलक हमारे मांहि।
दास गरीब दयाल हम, हमसें दूसर कछु नांहि।।25।।
हम से ही पानी हम पवन हैं, हम से हीं धरणि अकाश।
दास गरीब तत्त्व पंच में, हम हीं शब्द निवास।।26।।
सुन स्वामी सति भाख हूँ, झूठ न हमरै रिंच।
दास गरीब हम रूप बिन, और सकल प्रपंच।।27।।
हम मुक्ता हम नहीं बंध में, हम ख्याली खुशहाल।
दास गरीब सब सृष्टि में, टोहत हैं हंस लाल।।28।।
मैं रोवत हूँ सृष्टि कूँ, सृष्टि रोवती मोहि।
दास गरीब बिजोग कूं, बूझै और न कोय।।29।।
मैं बूझूं मैं ही कहूँ, हम हीं किया बिजोग।
गरीबदास गलतान हम, शब्द हमारा भोग।।30।।
च्यार जुगन में हम फिरैं, मैं आवूं मैं जांव।
गरीबदास गुरू भेद से, लखो हमारी ठांव।।31।।
सुन स्वामी शर घालि हूँ, वार पार फूटंत।
गरीबदास जीव अभय होय, काल कर्म छूटंत।।32।।
जेता अंजन आंजिये, चिसम्यौं में चमकंत।
गरीबदास हरि भक्ति बिन, माल बाल ज्यूं जंत।।33।।
कनी धनी के पास हैं, धनी कनी नहीं देत।
गरीबदास बोये बिना, जिन के खाली खेत।।34।।
लगी मुहीम गनीम पर, काल कटक कूटंत।
दास गरीब निर्भय करूं, जो कोई नाम जपंत।।35।।
मारग बंक अगाध गति, चलत चलत जुग जांहि।
गरीबदास घर अगम है, जहां जन्म-मरण कबहु नाहीं।।36।।
गगन सुन्न गुप्ता रहूँ, हम प्रगट प्रवाह।
गरीबदास घट घट बसूं, विकट हमारी राह।।37।।
आवत जात न दीख हूँ, रहता सकल समीप।
गरीबदास जल तरंग हूँ, हम ही सायर सीप।।38।।
गोता लाऊँ स्वर्ग से, फिर पैठूँ पाताल।
गरीबदास ढूंढत फिरूं, हीरे माणिक लाल।।39।।
इस दरिया कंकर बहुत, लाल कहीं कहीं ठाव।
गरीबदास माणिक चुगैं, हम मुरजीवा नाम।।40।।
।।स्वामी रामानन्द जी के मन की बात बताना।।
मन सोचत रामानन्द, यह बालक नहीं कोई देव।
प्रथम नित नेम करूं, फिर पूछूं सब भेव।।1।।
बोलत रामानंद जी, हम घर बड़ा सुकाल।
गरीबदास पूजा करैं, मुकुट फही जदि माल।।2।।
सेवा करो संभाल कर, सुन स्वामी सुर ज्ञान।
गरीबदास सिर मुकुट धरि, माला अटकी जान।।3।।
स्वामी घुंडी खोलि करि, फिर माला गल डार।
गरीबदास इस भजन कूँ, जानत है करतार।।4।।
ड्योढी पड़दा दूरि करि, लीया कंठ लगाय।
गरीबदास गुजरी बौहत, बदने बदन मिलाय।।5।।
मन की पूजा तुम लखी, मुकुट माल प्रवेश।
गरीबदास गति को लखै, कौन वर्ण क्या भेष।।6।।
यह तो तुम शिक्षा दई, मानि लई मन मोर।
गरीबदास कोमल पुरूष, हमरा बदन कठोर।।7।।
।।स्वामी रामानन्द जी को तत्त्वज्ञान समझाना।।
‘‘कबीर बचन’’
ए स्वामी तुम स्वर्ग की, छाडो आशा रीति।
गरीबदास तुम कारणैं, उतरे शब्दातीत।।1।।
‘‘रामानन्द बचन’’
सुन बच्चा मैं स्वर्ग की, कैसे छाडौं रीति।
गरीबदास गुदरी लगी, जनम जात है बीत।।2।।
च्यार मुक्ति बैकुंठ में, जिन की मोरै चाह।
गरीबदास घर अगम की, कैसे पाऊँ थाह।।3।।
हेम रूप जहाँ धरणि है, रतन जड़े बौह शोभ।
गरीबदास बैकुंठ कूँ, तन मन हमरा लोभ।।4।।
संख चक्र गदा पदम हैं, मोहन मदन मुरारि।
गरीबदास मुरली बजै, सुरग लोक दरबारि।।5।।
दूधौं की नदियां बगैं, सेत वृक्ष सुभान।
गरीबदास मंदल मुक्ति, सुरगापुर अस्थान।।6।।
रतन जड़ाऊ मनुष्य हैं, गण गंधर्व सब देव।
गरीबदास उस धाम की, कैसे छाडूँ सेव।।7।।
ऋग युज साम अथर्वणं, गावैं चारौं वेद।
गरीबदास घर अगम का, कैसे जानौं भेद।।8।।
च्यार मुक्ति चितवन लगी, कैसे बंचू ताहि।
गरीबदास गुप्तार गति, हम कूँ द्यौ समझाय।।9।।
सुरग लोक बैकुंठ है, यासे परै न और।
गरीबदास षट् शास्त्रा, च्यार बेद की दौर।।10।।
च्यार बेद गावै तिसैं, सुर नर मुनि मिलाप।
गरीबदास धु्रव पौर जिस, मिट गये तीनूं ताप।।11।।
प्रहलाद गये तिस लोक कूँ, सुरगा पुरी समूल।
गरीबदास हरि भक्ति की, मैं बंचत हूँ धूल।।12।।
वृन्दावन खेले सही, रज केसर समतूल।
गरीबदास उस मुक्ति कूँ, कैसैं जाऊँ भूल।।13।।
नारद ब्रह्मा जिसे रटें, गावैं शेष गणेश।
गरीबदास बैकुंठ से, और परै को देश।।14।।
सहंस अठासी जिसे जपैं, और तेतीसौं सेव।
गरीबदास जासैं परै, और कौन है देव।।15।।
‘‘कबीर बचन’’
सुन स्वामी निज मूल गति, कहि समझाऊँ तोहि।
गरीबदास भगवान कूँ, राख्या जगत समोहि।।16।।
तीनि लोक के जीव सब, विषय वास भरमाय।
गरीबदास हम कूँ जपै, तिस कूँ धाम दिखाय।।17।।
जो देखैगा धाम कूँ, सो जानत है मुझ।
गरीबदास तोसे कहूँ, सुन गायत्री गुझ।।18।।
कृष्ण विष्णु भगवान कूँ, जहड़ायें हैं जीव।
गरीबदास त्रिलोक में, काल कर्म सिर शीव।।19।।
पौहमी धरणि अकाश थंभ, चलसी चंदर सूर।
गरीबदास रज बीरज की, कहाँ रहैगी धूर।।20।।
तारायण त्रिलोक सब, चलसी इन्द्र कुबेर।
गरीबदास सब जात हैं, सुरग पाताल सुमेर।।21।।
च्यार मुक्ति बैकुंठ बट, फना हुआ कई बार।
गरीबदास सतलोक को, नहीं जाने संसार।।22।।
कहो स्वामी कित रहोगे, चैदह भुवन बिहंड।
गरीबदास बीजक कह्या, चलत प्राण और पिंड।।23।।
सुन स्वामी एक शक्ति है, अरधंगी ॐकार।
गरीबदास बीजक तहां, अनेक लोक सिंघार।।24।।
जैसे का तैसा रहै, परलो फनां प्रान।
गरीबदास उस की शक्ति कूँ, बार बार कुरबांन।।25।।
कोटि इन्द्र ब्रह्मा जहां, कोटि कृष्ण कैलाश।
गरीबदास शिव कोटि हैं, करो कौन की आश।।26।।
कोटि विष्णु जहां बसत हैं, उस शक्ति के धाम।
गरीबदास गुल बौहत हैं, अलफ बस्त निहकाम।।27।।
शिव शक्ति जासे हुए, अनंत कोटि अवतार।
गरीबदास उस अलफ कूँ, लखै सो होय करतार।।28।।
सतपुरूष हम स्वरूप हैं, तेज पुंज का कंत।
गरीबदास गुल से परे, चलना है बिन पंथ।।29।।
बिना पंथ उस कंत के, धाम चलन है मोर।
गरीबदास गति ना किसी, संख सुरग पर डोर।।30।।
संख सुरग पर हम बसैं, सुन स्वामी यह सैंन।
गरीबदास हम सतपुरूष हैं, यौह गुल फोकट फैंन।।31।।
‘‘स्वामी रामानन्द जी की शंका‘‘
जो तैं कहया सौ मैं लह्या, बिन देखे नहीं धीज।
गरीबदास स्वामी कहैं, कहां अलफ वह बीज।।32।।
हद बेहद कहीं ना कहीं, ना कहीं थरपी ठौर।
गरीबदास निज ब्रह्म की, कौन धाम वह पौर।।33।।
‘‘कबीर परमेश्वर जी ने कहा‘‘
तहां कोटि बैकुंठ हैं, नक सरबर संगीत।
गरीबदास स्वामी सुनो, जात अनन्त जुग बीत।34।।
प्राण पिंड पुर में धसौ, गये रामानंद कोटि।
गरीबदास सर सुरग में, रहो शब्द की ओट।।35।।
सुन स्वामी एक गल गुझ, तिल तारी पल जोरि।
गरीबदास सर गगन में, सूरज अनंत करोरि।।36।।
सहर अमान अनन्त पुर, रिमझिम रिमझिम होय।
गरीबदास उस नगर का, मरम न जानैं कोय।।37।।
सुन स्वामी कैसे लखौ, कहि समझाऊँ तोहि।
गरीबदास बिन पर उड़ै, तन मन शीश न होय।।38।।
रबनपुरी एक चक्र है, तहां धनंजय बाय।
गरीबदास जीते जन्म, याकूं लेत समाय।।39।।
आसन पदम लगाय कर, भिरंग नाद को खैंचि।
गरीबदास अचवन करे, देवदत्त को ऐंचि।40।।
काली ऊनि कुलीन रंग, जाके दो फुंन धार।
गरीबदास कूरंभ सिर, तास करे उद्गार।।41।।
चिस्में लाल गुलाल रंग, तीनि गिरह नभ पेच।
गरीबदास वह नागनी, हौंन न देवै रेच।।42।।
कुंभक रेचक सब करै, ऊन करत उदगार।
गरीबदास उस नागनी कूँ, जीतै कोई खिलार।।43।।
कुंभ भरै रेचक करै, फिर टूटत हैं पौंन।
गरीबदास मंडल गगन, नहीं होत है गौंन।।।44।।
आगे घाटी बंद है, इला-पिंगला दोय।
गरीबदास सुषमन खुलै, तास मिलावा होय।।45।।
चंदा के घर सूर रखि, सूरज के घर चंद।
गरीबदास मधि महल है, तहां वहां अजब आनंद।।46।।
त्रिवैणी का घाट है, गंग जमुन गुपतार।
गरीबदास परबी परखि, बहै सहंस मुख धार।।47।।
मध्य किवारी ब्रह्म दर, वाह खोलत नहीं कोय।
गरीबदास सब जोग की, पैज पछोड़ी होय।।48।।
कबीर परमेश्वर जी ने उपर तो योग साधना बताई है जो रामानन्द जी किया करते थे। फिर कहा है कि उस की आवश्यकता नहीं है। जैसे सुविधा हो वैसे ही बैठ कर नाम जाप करते रहो।
ज्यूं का त्यूं ही बैठि रहो, तजि आसन सब जोग।
गरीबदास पल बीच पद, सर्व सैल सब भोग।।49।।
घंटा टूटै ताल भंग, शंख न सुनिये टेर।
गरीबदास मुरली मुक्ति, सुनि चढ़ी हंस सुमेर।।50।।
खुल्है खिरकी सहज धुंनि, दम नहीं खैंचि अतीत।
गरीबदास एक सैंन है, तजि अनभय छंद गीत।।51।।
धीरै धीरै डाटि हैं, सुरग चढैंगे सोय।
गरीबदास पग पंथ बिन, ले राखौं जहां तोय।।52।।
सुन स्वामी सीढ़ी बिना, चढौ गगन कैलाश।
गरीबदास प्राणायाम तजि, नाहक तोरत श्वास।।53।।
सुन स्वामी यह गति अगम, मनुष्य देव से दूर।
गरीबदास ब्रह्मा विष्णु थके, किन्हे न पाया मूर।।5।।
मूल डार जाके नहीं, है सो अनिन अरंग।
गरीबदास मजीठ चलि, ये सब लोक पतंग।।55।।
सुतह सिधि प्रकाशिया, कहां अरघ असनान।
गरीबदास तप कोटि जुग, पचि हारे सुर ज्ञान।।56।।
कोटि कोटि बैकुंठ हैं, कोटि कोटि शिव शेष।
गरीबदास उस धाम में, ब्रह्मा कोटि नरेश।।57।।
अबादान अमान पुर, चलि स्वामी तहां चाल।
गरीबदास परलौ अनंत, बौहरि न झंपै काल।।58।।
अमर चीर तहां पहरि है, अमर हंस सुख धाम।
गरीबदास भोजन अजर, चल स्वामी निजधाम।।59।।
सतलोक को देखकर, जाना परम प्रभु का भेव।
गरीबदास यह धाण का, है सब देवन का देव।।60।।
तहां वहाँ चित चक्रित भया, देखि फजल दरबार।
गरीबदास सिजदा किया, हम पाये दीदार।।61।।
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि, भर्म कर्म किये नाश।
गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरै दृढ़ विश्वास।।62।।
सुन्न-बेसुन्न सैं तुम परै, उरैं स हमरै तीर।
गरीबदास सरबंग में, अबिगत पुरूष कबीर।।63।।
कोटि कोटि सिजदे करैं, कोटि कोटि प्रणाम।
गरीबदास अनहद अधर, हम परसैं तुम धाम।।64।।
बोलत रामानंद जी, सुन कबीर करतार।
गरीबदास सब रूप में, तुम हीं बोलन हार।।65।।
तुम साहिब तुम संत हो, तुम सतगुरू तुम हंस।
गरीबदास तुम रूप बिन, और न दूजा अंस।।66।।
मैं भक्ता मुक्ता भया, किया कर्म कुंद नाश।
गरीबदास अबिगत मिले, मेटी मन की बास।।67।।
दोहूँ ठौर है एक तूं, भया एक से दोय।
गरीबदास हम कारणे, उतरे हो मघ जोय।।68।।
बोले रामानंद जी, सुनो कबीर सुभांन।
गरीबदास मुक्ता भये, उधरे पिंड अरु प्राण।।69।।