संत गरीबदास यानि बारहवें पंथ में भक्ति की झलक (A Primer on Worship in Garib Das Panth)
संत गरीबदास जी महाराज (छुड़ानी वाले) को जो तत्वज्ञान परमेश्वर कबीर जी ने बताया था तथा ऊपर के सर्व ब्रह्माण्डों को आँखों दिखाया था, उसके विषय में संत गरीबदास जी ने लगभग दो हजार चार सौ (2400) अमृतवाणी बोली जो लिखी गई थी। उनको वर्तमान में ग्रन्थ के रूप में प्रिन्ट करवाया गया है। पहले हाथ से लिखी थी। इस अमृतज्ञान को ठीक से न समझकर संत गरीबदास जी के आशय के विरूद्ध ज्ञान बताना शुरू कर दिया गया तथा साधना भी ग्रन्थ के आदेश के विरूद्ध शुरू कर दी। कारण यह रहा कि संत गरीबदास जी सन् 1778 में शरीर त्याग गए थे। उस समय उनके नाममात्र ही शिष्य थे जिनको प्रथम मंत्र ही दिया था। केवल एक शीतल दास जी को गुप्त रहस्य बताया था। उसको भी गुप्त रखने का आदेश था। केवल अपने एक उत्तराधिकारी को बताने का आदेश था। यह परम्परा मेरे गुरू जी तक चली। जिस कारण से अन्य गरीबदास जी वाले साधकों को यथार्थ भक्ति विधि का ज्ञान नहीं हुआ। वे मनमानी साधना करने लगे तथा ग्रन्थ को न समझकर एक सोहं नाम का जाप करने लगे। यह माना जाता है जो सत्य भी है कि संत गरीबदास जी के बारहवें पंथ का विस्तार संत ब्रह्मसागर जी भूरीवाले (रामपुर धाम, पंजाब) के द्वारा किया गया है। पंजाब प्रान्त के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में हरिद्वार व ऋषिकेश में तथा पूरे भारतवर्ष में 200 से अधिक आश्रम हैं। अकेले पंजाब में लगभग 125 गाँवों में संत गरीबदास के प्रचारक संत भूरी वाले ब्रह्मसागर जी की कुटिया आश्रम हैं। कई शहरों (लुधियाना, तलवण्डी, ऊँची, निर्वी, रामपुर, जलूर आदि) में बड़े आश्रम बने हैं। हरिद्वार व ऋषिकेश में लगभग 29 आश्रम हैं।
श्री संत भूरीवाले क्या भक्ति-साधना करते थे तथा क्या अनुयाईयों को प्रदान करते थे? उसका वर्णन करता हूँ:-
संत ब्रह्मसागर भूरी (लोई) वाले जी सोहं नाम जाप करते थे। जाप करने की विधि इस प्रकार थी:- ‘‘सो’’ का जाप श्वांस को बाहर छोड़ते समय तथा ‘‘हं’’ का जाप श्वांस के साथ अंदर लेते समय करते थे। इन्होंने सन् 1896 से सन् 1917 तक (21 वर्ष) मौन रहकर गाँव-कैलपुर जिला-लुधियाना (पंजाब) में साधना की थी। इन्होंने ही छुड़ानी धाम (हरियाणा) को रोशन किया। इन्होंने संत गरीबदास जी के मृत शरीर पर बनी छोटी-सी मंढ़ी का जीर्णोद्वार करवाकर उस पर संत गरीबदास जी की मूर्ति स्थापित करवाकर बड़ी यादगार बनवाई है जिसको छतरी साहेब कहते हैं जिस पर वर्तमान में वर्ष में दो बार बड़े समागम होते हैं। वही भक्ति जो श्री ब्रह्मसागर जी बताते थे, वहाँ छुड़ानी तथा सर्व आश्रमों में प्रचलित है। एक और कमाल है:- ‘‘सोहं’’ नाम का स्मरण केवल उनको दिया जाता है जो भगवां वस्त्रा पहनते हैं तथा घर त्यागकर आश्रमों में रहकर सेवा करते हैं। जो जनता-जन अनुयाई बनते हैं, उनको केवल ‘‘ॐ भगवते वासुदेवाय नमः’’ नाम जाप करने की दीक्षा देते हैं। श्री ब्रह्मसागर जी भूरी वाले को तथा संत गरीबदास जी को साक्षात् श्री विष्णु (श्री कृष्ण) का अवतार मानते हैं। श्री ब्रह्मसागर जी एक चद्दर रखते थे जिसे पंजाब में भूरी (हरियाणा में लोई) कहते हैं। इस कारण से श्री ब्रह्मसागर जी को भूरी वाला बाबा कहने लगे। इनका जन्म 22 अगस्त सन् 1862 में जन्माष्टमी (कृष्ण जन्माष्टमी) के दिन हुआ था तथा इन्होंने 24 दिसंबर 1947 को 85 वर्ष की आयु में जलूर साहेब धाम जिला-संगरूर (पंजाब) में चोला छोड़ा। इनका जन्म स्थान गाँव-रामपुर तहसील-आनंदपुर साहेब जिला-बिलासपुर (पंजाब) था। संत गरीबदास जी के ग्रन्थ के साथ-साथ श्रीमद्भागवत (सुधा सागर) का पाठ भी इनके अनुयाई संत-भक्त करते हैं। वर्तमान में श्री दर्शन सिंह महंत जी हैं।
पाठकजनों को पता चला कि संत गरीबदास जी के बारहवें कबीर पंथ में क्या भक्ति चल रही है? इन्हें संत गरीबदास जी की अमृतवाणी का यथार्थ ज्ञान नहीं है। जिस कारण से गुरूदेव के अंग से ‘‘सोहं’’ नाम लेकर दो भाग करके भक्ति करने लगे। भोली जनता को श्री कृष्ण की पूजा का मंत्र देने लगे जो ग्रन्थ में है ही नहीं।
गुरूदेव के अंग में लिखा है ‘‘सतगुरू सोहं नाम दे, गुज बिरज बिस्तार। बिन सोहं सूझै नहीं, मूल मंत्र निज सार।।’’ इस वाणी में स्पष्ट किया है कि सतगुरू सोहं नाम देकर उसका गुप्त भेद विस्तार से बताएगा। इस नाम (सोहं) के ऊपर भी एक नाम है जिससे मोक्ष संभव है। सुमिरन के अंग में ग्रन्थ में लिखा है कि ‘‘सोहं ऊपर और है, सत सुकृत एक नाम। सब हंसों का वंश है, बस्ती है बिन ठाम।।’’ उस सोहं से ऊपर वाले मंत्र यानि सार शब्द बिना मोक्ष नहीं हो सकता। जिस कारण से परमेश्वर कबीर जी ने कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर बानी’’ में पृष्ठ 136-137 पर स्पष्ट किया है कि:-
बारहवें पंथ प्रकट हवै बानी। शब्द हमारे की निर्णय ठानी।।
साखी हमारी ले जीव समझावैं। असंख जन्म ठौर नहीं पावैं।।
अस्थिर घर का मर्म नहीं पावैं। ये बारह पंथ हमहीं को ध्यावैं।।
बारहवें पंथ हम ही चलि आवैं। सब पंथ मिटा एक पंथ चलावैं।।
धर्मदास मेरी लाख दोहाई। सार शब्द कहीं बाहर नहीं जाई।।
सार शब्द बाहर जो परही। बिचली पीढ़ी हंस नहीं तरहीं।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने अपने परम शिष्य धर्मदास जी को बताया कि हे धर्मदास! जिस समय कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच (5505) वर्ष बीतेगा, उस समय से बीचली पीढ़ी के उद्धार के लिए यथार्थ भक्ति पंथ चलाया जाएगा। तब तक काल ब्रह्म धोखा करके मेरे (कबीर) नाम से फर्जी पंथ चलाएगा। तेरी छठी पीढ़ी को भी काल भ्रमित करके मेरे द्वारा बताई सत्य साधना छुड़वाकर गलत साधना प्रारम्भ करवा देगा। इस प्रकार काल मेरे यानि कबीर नाम से बारह नकली पंथ प्रारम्भ करवाएगा। अन्य पंथ भी शुरू करवाएगा जो सतलोक की बातें करेंगे, साधना सब व्यर्थ बताकर साधकों को काल जाल में ही रखेंगे। हे धर्मदास! मैंने तेरे को सम्पूर्ण भक्ति साधना के मंत्र बताए हैं। इनमें सारनाम (सारशब्द) भी बताया। इस सारशब्द को उस समय तक किसी को नहीं बताना है, जब तक कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष न बीत जाए। मेरे नाम से चलने वाले पंथों में बारहवां पंथ गरीबदास पंथ होगा। उस पंथ के प्रवर्तक का जन्म विक्रमी संवत् सतरह सौ चौहत्तर (1774) में होगा। उससे यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान व भक्ति साधना की बानी प्रकट करवाऊँगा। उससे मेरी महिमा सुन-सुनकर मेरे प्रति भक्त समाज का प्रेम बढ़ेगा। ये बारह पंथों के अनुयाई मेरी वाणी को पढ़कर निर्णय करेंगे, परंतु ठीक से न समझकर सत्य भक्ति से वंचित रहेंगे। जिस कारण से असंख्यों जन्मों तक स्थिर घर यानि अमर लोक (सतलोक) को प्राप्त नहीं कर सकेंगे। जो बारहवां पंथ (संत गरीबदास वाला) चलेगा, उस पंथ के पश्चात् उसी बारहवें पंथ में मैं (कबीर) जाऊँगा। यथार्थ तेरहवां पंथ चलाकर सर्व पंथों (धर्मों) को तत्वज्ञान के आधार से समझाकर एक करूँगा। बीचली पीढ़ी को यथार्थ ज्ञान तथा भक्ति बताकर भक्ति की प्रेरणा करके भक्ति करवाकर सत्यलोक ले जाऊँगा।
- वह तेरहवां पंथ अब लेखक (संत रामपाल दास) द्वारा चलाया गया है। यह सब परमेश्वर कबीर जी की कृपा तथा गुरूदेव जी के आशीर्वाद से हो रहा है।
- संत ब्रह्मसागर भूरी वाले उन्हीं बारह पंथों में से बारहवें पंथ गरीबदास पंथ के अनुयाई थे। उनके द्वारा की गई साधना तथा जाप के मंत्रों से स्पष्ट है कि इनकी मुक्ति हुई या नहीं?
सारनाम बिन सतलोक प्राप्त नहीं हो सकता। वह मेरे (रामपाल दास के) अतिरिक्त विश्व में किसी के पास नहीं है।