पारख का अंग 37-41
{पारख के अंग का सरलार्थ चल रहा है।}
पारख के अंग की वाणी नं. 37-41:
गरीब, नौ लख नानक नाद में, दस लख गोरख तीर। लाख दत्त संगी सदा, चरणौं चरचि कबीर।।37।।
गरीब, नौलख नानक नाद में, दस लख गोरख पास। अनंत संत पद में मिले, कोटि तिरे रैदास।।38।।
गरीब, रामानंदसे लक्षि गुरु, त्यारे शिष्य कै भाय। चेलौं की गिनती नहीं, पद में रहे समाय।।39।।
गरीब, खोजी खालिक सें मिले, ज्ञानी कै उपदेश। सतगुरु पीर कबीर हैं, सब काहू उपदेश।।40।।
गरीब, दुर्बासा और गरुड़ स्यौं, कीन्हा ज्ञान समोध। अरब रमायण मुख कही, बाल्मीक कूं सोध।।41।।
सरलार्थ:– परमात्मा कबीर जी की शरण में आकर (नाद) वचन के शिष्य बनकर श्री नानक देव (सिख धर्म के प्रवर्तक) जैसे भक्त नौ लाख पार हो गए तथा श्री गोरखनाथ जैसे सिद्ध पुरूष दस लाख पार हो गए। श्री दत्तात्रो जैसे ऋषि एक लाख उनकी शरण में सदा उनकी महिमा की चर्चा करते रहते हैं। संत रविदास (रैदास) जैसी करोड़ों भक्त आत्मा पार हो गई कबीर जी के ज्ञान व साधना का आश्रय लेकर। (37-38)
स्वामी रामानन्द काशी वाले जैसी लाखांे आत्माएँ पार की। रामानन्द जी को गुरू बनाकर पार किया और जो शिष्य बनाकर भवसागर से पार किए, उनकी तो गिनती ही नहीं की जा सकती। (39)
परमात्मा कबीर जी ज्ञानी के नाम से प्रकट थे। तब एक खोजी यानि ज्योतिष करने वाला तथा गुम हुए पशु तथा अन्य चोरी हुए सामान को बताता था कि ऐसे गुम हुआ है। वहाँ रखा है। ऐसे व्यक्ति पूर्व जन्म की भक्ति की शक्ति से कुछ सत्य बता देते हैं। परंतु अपनी पूर्व जन्म की भक्ति नष्ट करके नरक में गिरते हैं। खोजी को सतगुरू कबीर जी ने पार किया। संत गरीबदास जी ने स्पष्ट किया है कि विश्व में एकमात्र कबीर जी ही सतगुरू हैं या उनके ज्ञान को ठीक से समझा हुआ ही उनका कृपा पात्र सतगुरू है। यह सबको बता रहा हूँ। यह सबको उपदेश है। (40)
परमात्मा कबीर जी त्रोतायुग में ऋषि मुनीन्द्र के नाम से प्रकट हुए थे। उस समय ऋषि दुर्वासा तथा श्री विष्णु जी का वाहन गरूड़ उनकी शरण में आए थे। दुर्वासा जी सिद्धियाँ युक्त था। अपने को पूर्ण ऋषि मानता था। परमात्मा कबीर जी के ज्ञान को सुना, परंतु विश्वास नहीं किया। शिष्य भी बना, परंतु अपना अहंकार नहीं त्यागा। गरूड़ ने ज्ञान समझा। शिष्य हुआ, भक्ति भी कर रहा है। किसी जन्म में फिर शरण में आएगा। उस समय बताया था कि रामचन्द्र तो अरबों बार रामलीला कर-करके मर लिए। (41)